चिकित्सा के लिए हस्त मुद्रा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में एक चिकित्सा पद्धति है हस्त मुद्रा चिकित्सा।
आधुनिक विज्ञान ने भी माना है कि हस्त मुद्रा से चिकित्सा प्रभावी और असरकारक हो सकती है। दैनिक जीवन में इन मुद्राओं के उपयोग से रोग तुरन्त मिट जाते हैं। इन मुद्राओं को करने से षरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह इन मुद्राओं की विषेषता है। मानव षरीर पाँच तत्वों का बना है। अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाष। हाथ में भी अंगूठे और अंगुलियों की संख्या पाँच है। ये एक तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे अंगूठे को अग्नि तत्व का प्रतीक माना गया है। तर्जनी अंगुली वायु, मध्यमा आकाष, अनामिका पृथ्वी, कनिष्ठका जल तत्व के प्रतिनिधि माने गये हैं। इस चिकित्सा पद्धति की विषेषता यह है कि एलोपैथी दवा के साथ भी इस पद्धति का उपयोग किया जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति से दवा का प्रभाव तेजी से देखने को मिलता है। हस्त मुद्रा का उपयोग करने से पहले इसके कुछ सरल नियम हैः-
हस्त मुद्रा करते वक्त पद्मासन में बैठना आवष्यक है। हस्त मुद्रा करते वक्त व्यक्ति को अपने इष्ट देव या इष्ट देवी का स्मरण करना चाहिए। दाहिने हाथ की मुद्रा करने से बायें हिस्से में और बायें हाथ की मुद्रा करने से दाहीने हिस्से में रोग समाप्त होता है। प्राण मुद्रा: अनामिका और कनिष्ठका अंगुलियों एवं अंगूठे के उपयोग से यह मुद्रा बनती है, जो निम्न चित्र में बताया गया है। प्राण मुद्रा से पूरे षरीर में प्राण का संचार होता है। यह मुद्रा पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। उपयोगिता: नेत्र रोग, आँख का विकार, निस्तेज आँखों जैसे रोगों में यह मुद्रा प्रातःकाल ..-15 मिनट करनी चाहिए। अनिद्रा के रोग में यह मुद्रा करने से धीरे-धीरे अनिद्रा का रोग समाप्त होता है। मधुमेह के रोग के लिए की जाने वाली आसन मुद्रा के साथ प्राण पुद्रा करने से रोग तेजी से समाप्त होता है। लिंग मुद्रा: दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे में फंसा के मुट्ठी बनाते हैं और बायें हाथ के अंगूठे को ऊपर कर के खड़ा किया गया है। षरीर का ताप बढ़ाने हेतु यह मुद्रा काफी प्रभावी है। उपयोगिता: सर्दी-जुकाम एवं ज्यादातर पुरानी सर्दी-खांसी मिटाने हेतु यह मुद्रा .0 मिनट चाहिए। इस मुद्रा से रोग मिटाने में बहुत फायदा होता है। दमे का हमला होते समय रोगी को यह मुद्रा करने से तुरंत फायदा होता है। दवाई बिना दमे के हमले को रस मुद्रा से रोका जा सकता है। लंबे समय तक यह मुद्रा करने से रोग में काफी कमी आती है। निम्न रक्तचाप के रोग में यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल .0 मिनट तक करना फयदेमंद है। षंख मुद्रा: दोनो हाथों से की जाने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है। इस मुद्रा में मुट्ठी में रखे गये अंगूठे का दबाव हाथ के तल पर पड़ने से पिच्युटरी और थाइराॅयड ग्रंथियों में से होने वाले स्राव पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। नाभी चक्र पर भी इस मुद्रा का प्रभाव पड़ता है।
उपयोगिता: वाणी संबंधी सभी रोगों की चिकित्सा हेतु यह मुद्रा 15-20 मिनट तक प्रातः एवं सायं काल करने से धीरे-धीरे फायदा होता है। भूख न लगना, खाना हजम न होना एवं पेट संबंधी सभी रोग इस मुद्रा को करने से खत्म हो जाते हैं और तेज भूंख लगती है। स्वर एवं गले से संबंधित बीमारियां इस मुद्रा के प्रभाव से खत्म हो जाती हैं। नाभी चक्र पर इस मुद्र्रा का प्रभाव पड़ने से नाभी चक्र जाग्रत होता है। मुयान मुद्रा: मध्यमा, अनामिका अंगुलियां एवं अंगूठे से बनने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है। षरीर स्वस्थ रखने हेतु यह मुद्रा प्रभावी है। उपयोगिता: अयान मुद्रा 45 मिनट तक प्रातःकाल करने से सिर दर्द एवं आधासीसी का रोग तेजी से समाप्त होता है। पहले यह मुद्रा कम समय तक करनी चाहिए फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाना चाहिए। मूत्र संबंधी षिकायतें, 2-3 दिन तक मूत्र न आना आदि में यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल 20-25 तक करने से मूत्र संबंधी षिकायत नहीं रहती। दातों को स्वस्थ रखने हेतु यह मुद्रा सुबह 10 मिनट तक करनी चाहिए। मधुमेह के नियंत्रण हेतु यह मुद्रा सुबह 15-20 मिनट तक प्रातः और सायं काल करनी चाहिए। इस मुद्रा के प्रभाव से षरीर में हानि करने वाले भिन्न-भिन्न पदार्थ, पसीना, मल और मूत्र मार्ग से षरीर स्वस्थ रहता है।
योगाभ्यास में उच्च स्थान प्राप्त करने हेतु यह मुद्रा प्रभावी है। अयान वायु मुद्रा: तर्जनी, मध्यमा, अनामिका अंगुलियों और अंगूठे से, चित्र में बताये अनुसार, यह मुद्रा बनती है। अयान मुद्रा़़ और वायु मुद्रा को जोड़कर यह मुद्रा बनती है। हृदय रोग से इस मद्रा का संबंध होने से इस मुद्रा को हृदय मुद्रा, या मृत संजीवनी मुद्रा भी कहते हैं। उपयोगिता: हृदय रोग के आक्रमण के समय इस मुद्रा को करने से इंजेक्षन जैसा प्रभाव देखने को मिलता है। हृदय रोग की परेषानी जिन व्यक्तियों को हो, वह प्रातःकाल यह मुद्रा 30 मिनट तक करें। अवष्य फायदा होगा। उच्च रक्तचाप निवारण हेतु यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल 20 मिनट करना फायदेमंद है। पेट में होने वाले गैस (वायु विकार) में यह मुद्रा प्रभावी होती है। गैस खत्म हो जाती है। अनिद्रा, मानसिक चिंता, सिर दर्द दूर करने हेतु यह मुद्रा सुबह-षाम करनी चाहिए। ज्ञान मुद्रा: तर्जनी अंगुली एवं अंगूठे को स्पर्ष कर के चित्र में बताये अनुसार, ज्ञान मुद्रा बनती है। ज्ञान मुद्रा से पिच्युटरी ग्रंथि और पायनीयल ग्रंथि से निकलने वाले वात स्राव का नियंत्रण होता है। उपयोगिता: स्मरण षक्ति तेज करने हेतु प्रातः काल यह मुद्रा 30 मिनट करनी चाहिए। सिरदर्द एवं आधासीसी रोग में यह मुद्रा करना बहुत प्रभावी है। पागलपन, उन्माद, क्रोध, उत्तेजना और मन को षान्त करने यह मुद्रा प्रभावी हैं। सूर्य मुद्रा: अनामिका अंगुली और अंगूठे से यह मुद्रा निम्न चित्र अनुसार बनती है। उपयोगिता: यकृत संबंधी षिकायत, कब्ज की षिकायत के लिए प्रातःकाल यह मुद्रा 20 मिनट तक करें। मोटापा दूर करने हेतु यह मुद्रा करनी चाहिए। न्यूमोनिया, तपेदिक के रोगों में, दवा के साथ, यह मुद्रा प्रभावी रहती है। जल मुद्रा: कनिष्ठिका अंगुली और अंगूठे से बनने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है।
उपयोगिता: रक्त संबंधी रोगी में यह मुद्रा करना लाभदायी माना गया है। स्नायु संबंधी रोग पर जल मुद्रा का प्रभाव काफी है। चर्म रोग मिटाने हेतु यह मुद्रा करनी चाहिए। ऊँ नमः षिवाय हथेली में स्थित तिल का महत्व हस्तरेखा षास्त्र किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान से संबंधित जानकारी हेतु एक अत्यन्त ही उपयोगी और सफलतम माध्यम के रूप में समाहित रहा है। कभी-कभी ग्रह कुुंडली के आधार पर की गई भविष्यवाणियां असत्य भी सिद्ध होती हैं, परन्तु हस्तरेखा का फलादेष हमेषा सत्य के निकट और प्रमाणिक रहा है। इसके पीछे षायद यही तथ्य कार्य करता है कि इस संसार में एक ही तरह की कई कुंडलियां देखने में आ जायेंगी परन्तु एक जैसी दो हथेलियों का मिलना असंभव जान पड़ता है। यू ंतो व्यक्ति की हथेली में स्थित प्रमुख रेखाओं और पर्वतों को ही सर्वाधिक महत्ता प्राप्त है परन्तु कुछ ऐसे भी चिन्ह हैं जो हथेली में उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि प्रमुख रेखाएं व पर्वत। हथेली के विभिन्न भागों में स्थित नक्षत्र, क्राॅस, वर्ग, त्रिभुज, वृत्त, जाल आदि चिन्ह फलादेष के परिणाम में आष्चर्यजनक रूप से उलट-फेर का कारण बन सकते हैं। इन्हीं चिन्हों में तिल का अपना एक स्वतंत्र महत्व है। ये तिल मानव के भविष्य को आष्चर्यजनक ढंग से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। प्रस्तुत लेख में इन्हीं तिलों की महत्ता पर प्रकाष डालने का प्रयास किया गया है।
विभिन्न रेखाओं पर स्थित तिल- 1. जीवन रेखा पर तिल की उपस्थिति व्यक्ति को क्षय रोग से ग्रस्त करने का कारण बनती है। 2. यहद हृदय रेखा पर तिल की उपस्थित हो तो यह तिल हृदय को कमजोर बनाता है। 3. मस्तिष्क रेखा पर स्थित तिल जातक के मानसिक रोगों से पीडि़त होने का सूचक होता है। 4. यात्रा रेखा पर स्थित तिल यात्रा के दौरान मृत्यु की सूचना देता है। 5. चन्द्र रेखा पर तिल की उपस्थित व्यक्ति की उन्नति में बाधा का कार्य करती है। 6. स्वास्थ्य रेखा पर तिल व्यक्ति के कमजोर स्वास्थ्य का सूचक होता है। 7. सूर्य रेखा पर तिल व्यक्ति के विकास मार्ग को अवरूद्ध करता है। 8. मंगल रेखा पर स्थित तिल व्यक्ति को कायर तथा कमजोर हृदय वाला बना देता है। 9. विवाह रेखा पर तिल विवाह में बाधा उत्पन्न करता है। 10. भाग्य रेखा पर तिल की उपस्थिति व्यक्ति के जीवन को दुर्भाग्यपूर्ण बना देती है। अंगुली पर स्थित तिल- 1. अनामिका अंगुली पर तिल की उपस्थिति व्यापार में असफलता की सूचना देती है। 2. तर्जनी अंगुली पर तिल नौकरी से निष्कासन और बदनामी का कारक होता है। 3. मध्यमा अंगुली पर तिल व्यक्ति के भाग्य में रोड़े अटकाता है। 4. कनिष्ठ अंगुली पर तिल व्यापार में घाटा और अवरोध की सूचना देता है। विभिन्न पर्वतों पर स्थित तिल- 1. राहु क्षेत्र पर तिल की उपस्थिति युवावस्था में आर्थिक हानि की सूचना देती है। 2. षुक्र पर्वत पर स्थित तिल व्यक्ति को कामासक्त बनाकर गुप्त रोगों से पीडि़त करता है। 3. क्ेतु क्षेत्र पर तिल बचपन को दुखमय बनाता है। 4. चन्द्र क्षेत्र पर स्थित तिल विवाह में विलंब और जलाघात से पीडि़त होने के सूचक होते हैं। 5. षनि क्षेत्र पर स्थित तिल प्रेम बाधक, कलंकदायी और गृहस्थ जीवन के लिए दुखदायक होता है।
तिल और उनका योग प्रभाव- 1. बल्लकी योग: जिस व्यक्ति के दायें हाथ में मंगल रेखा के नीचे या दायीं ओर लाल तिल हो उसे बल्लकी योग से प्रभावित माना जाता है। बल्लकी योग एक षुभ चिन्ह है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को मित्र लाभ, प्रसन्नता, स्फूर्ति, कला, दक्षता और प्रसिद्धि प्राप्त होती हैं। ऐसा व्यक्ति स्वभाव से षंात, गंभीर और सुलझे हुए विचारों वाला होता है। 2. दामिनी याग: यदि किसी व्यक्ति की हथेली में सूर्य और षनि पर्वत के मध्य में तिल हो तो यह दामिनी योग की सृष्टि करता है। दामिनी योग भी एक षुभ लक्षण है। यह चिन्ह जिसके हाथ में हो वह व्यक्ति सदाचारी विचारों से श्रेष्ठ, परोपकारी, बौद्धिक क्षमता से सम्पन्न और समाजप्रिय होता है। 3. षारदा योग: हथेली पर बुध पर्वत पर स्थित तिल षारदा योग की सृष्टि करता है। षारदा योग से सम्पन्न व्यक्ति पारिवारिक सुख अवष्य प्राप्त करता है। असके परिवारजनों की संख्या पर्याप्त होती हे। पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, माता-पिता, भाई-बहन आदि लोगों का सुख उसे अवष्य प्राप्त होता है। षारदा योग से सम्पन्न व्यक्ति आस्थावान, धर्मभीरू, देवताओं का विष्वासी और उपासक होता है। बौद्धिक दृष्टि से भी वी पर्याप्त समर्थ, जागरूक प्रकृति का तथा अत्यन्त ही सावधान होता है। 4. पष योग: बृहस्पति पर्वत के ऊपर पाया जाने वाला तिल पाष योग की सृष्टि करता है। ऐसा व्यक्ति लोकप्रिय, मित्र सम्पन्न सेवा वृत्ति से आजीविका चलाने वाला और समान रूप् से षत्रु मित्र दोनों में ही आदरणीय होता है। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न का जीवन व्यतीत करता है। 5. कारक योग: बृहस्पति रेखा के बायीं ओर स्थित तिल कारक योग की सृष्टि करता है। यह योग अपने नाम के अनुसार ही व्यक्ति को कर्मषील, उद्यमी, आषावादी और र्धर्यवान बनाता है। ऐसे व्यक्ति को व्यापार में भी पर्याप्त सफलता प्राप्त होती ळें 6. अर्द्धचन्द्र योग: हथेली में चन्द्र रेखा के दायीं अर्थात् नीचे की ओर तिल की उपस्थिति अर्द्धचन्द्र योग का निर्माण करती हे। इस योग का धारक सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी, जनप्रिय तथा भौतिक दृष्टि से सम्पन्न होता है। किसी भी तरह की चिन्ता से रहित यह व्यक्ति बड़ा ही खुषदिल और चैतन्य प्रकृति का होता है। उत्साह, प्रसन्नता, परोपकार की भावना उसमें जन्मजात होती है। 7. कर्ज योग: षनि रेखा के दायीं तरफ स्थित तिल कर्ज योग की सृष्टि करता है। इस योग का कारक नाम के अनुरूप ही जीवन में निरन्तर कर्ज से पीडि़त रहता है। आर्थिक असंतुलन उसे दूसरे का ऋणी बनाकर सदैव मानसिक उत्पीड़न और क्लेष का कारण बना अपमानित जीवन ही देता है। 8. कूट योग: हथेली के बीच में कहीं भी आसपास दो तिल ऐसी स्थिति में हो कि मुट्ठी बंद करने पर अंगुलियों के नीचे आ जाते हो तो यह स्थिति कूट योग को जन्म देती है। यह एक षुभ साहसवर्द्धक और तेजस्विता पूरक योग है। जिसके हाथ में कूट योग दृष्टिगत हो, तुरन्त समझ जाना चहिए कि यह व्यक्ति बलिष्ठ, पराक्रमी और साहसी है। प्रतिकूल परिस्थिति को साहस और धैर्य के बल पर अपने अनुुकूल करने में इन्हें बहुत ज्यादा समय नहीं लगता। ऐसे लोग निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहते हैं। 9. समुद्र योग: सूर्य रेखा के दाहिने या नीचे की ओर स्थित तिल समुद्र योग की सृष्टि करता है। इस योग के फलस्वरूप धारक को राजसुख की प्राप्ति होती है। अपनी किसी प्रतिभा या विद्वता के लिए भी ऐसे व्यक्ति प्र्याप्त यष प्राप्त करते हैं। उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैलती है। इस प्रकार समुद्र योग व्यक्ति को धन-मान, धर्म और भौतिक सुख सभी कुछ देने वाला होता है। 10. छत्र योग: हथेली में षुक्र रेखा के नीचे आसपास में स्थित तिल छत्र योग की सृष्टि करता है। यह योग की सृष्टि करता है। यह योग अपने नाम के अनुरूप ही सुरक्षा और सम्मान की सृष्टि करता है। सामाजिक सुरक्षा और सम्मान देकर यह व्यक्ति को चैतन्य बना मौज मस्ती से भरे जीवन की ओर संकेत करता है। छत्र योग से सम्पन्न व्यक्ति साहसी, निडर, चपल, रसिक, और पारिवारिक सुख का उपभोक्ता होता है। छत्र एक राजचिन्ह है। अतएव हाथ में इसकी उपस्थिति आर्थिक और मानसिक सम्पन्नता प्रदान करती है। 11. विद्युत योग: हथेली में मणिबन्ध बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। यहां के चिन्ह मानव जीवन को बहुत षीघ्र ही प्रभावित करते हैं। मणिबन्ध पर तिल की उपस्थित व्यक्ति को विद्युत योग का धारक बनाती है। यह योग भी अन्य षुभ योगों की तरह ही बहुत काम हाथों में पाया जाता है। जिसके हाथ में विद्युत योग हो उसके संबंध में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति राजोचित सम्पत्ति और सुख प्राप्त करते हैं। 12. दिग्बल योग: बुध, सूर्य, बृहस्पति के पर्वतों के ऊपर पाये जाने वाले तिल दिग्बल योग की सृष्टि करते हैं। ऊपरी किसी भी पर्वत पर यदि तिल उपस्थित हों तो व्यक्ति दिग्बल योग के कारण व्यक्ति कर्मवीर, कार्यकुषल, सफलता के मार्ग पर अग्रसर रहने वाला और समाज में सम्मान का पात्र होता है। समाज में ऐसे व्यक्ति सम्पन्न और सफल माने जाते हैं। 13. जप योग: हथेली में मंगल पर्वत विषेषकर ऊपरी मंगल के ऊपर स्थित तिल युग्मद की उपस्थित जप योग की सृष्टि करती है। इस योग के परिणामस्वरूप् व्यक्ति को जीवन में सर्वत्र सफलता और विजय की प्राप्ति होती है। राजसिक गुण, साहस, धैर्य, षक्ति तथा षत्रु दमन की क्षमता से सम्पन्न ऐसे जातक सदैव और सर्वत्र एक विषेष आदर के साथ सम्मानित होते हैं। जप योग राजयोग की सृष्टि भी करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव की हथेली में स्थित तिल का कितना व्यापक और महत्वपूर्ण प्रभाव है। तिल छोटा हो या बड़ा यह अपना प्रभाव अवष्य दिखाता है। अतएव हथेली के तिलों को हमेंषा गंभीरता से लेना चाहिए। तभी सटीक फलादेष संभव है।
प्रतिदिन कुत्ते को रोटी या अन्न खिलाने का मंत्र- द्वौ ष्वानौ ष्वाम षबलौ वैवस्वत कुलोदभवौ। ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।
षुभ कुत्ते की पहचान- जिस कुत्ते के अगले दाहिने पैर में छः नाखून हों तथा षेष तीनों पैरों में प्रत्येक में पांच-पांच नाखून हों (इस प्रकार 6$15=21 नाखून कुल हों) जिसकी नाक की नांैक तथा ओंठ ताम्रवर्ण (तामिया रंग के) हो, भालू के समान आंखें, लम्बे कान तथा झबरी पूंछ हो तथा जो भूमि को सूंघकर चलता है, जिसकी चाल सिंह के समान हो वह कुत्ता षुभ होता है। ऐसा कुत्ता अपने स्वामी के घर में चिरकाल तक लक्ष्मी का निवास कराता है।
श्री गर्गाचार्य के षब्दों में: जिस दिन कृतिका, मूल, मघा, विषाखा, आष्लेषा, भरणी, आद्र्रा इनमें से कोई नक्षत्र हो उस दिन कुत्ता किसी को काट ले तो विषेष सावधानी से उसका उपचार करावें। हथेली में पाए जाने वाले चिन्ह लाभदायक या हानिकारक तारा- हथेली में इस चिन्ह को अत्यन्त ष्षुभ माना गया है। किसी रेखा के अंतिम सिरे पर जब तारा होता है तब उस रेखा का प्रभाव काफी बढ़ जाता है।
तारा हथेली के जिस किसी पर्वत पर होता है उस पर्वत की ष्षक्ति काफी बढ़ जाती है जिससे आपको उस पर्वत से सम्बन्धित फल में उत्तमता प्राप्त होती है। तारा जिस पर्वत पर होता है उसके अनुसार मिलने वाले फल की बात करें तो यह अगर बृहस्पति पर हो तो आप षक्तिषाली एवं प्रतिष्ठति होंगे व आपके मान सम्मान में इजाफा होगा। तारा सूर्य पर्वत पर दिख रहा है तो इसका मतलब यह है कि आपके पास पैसा भी होगा और आप अच्छे पद एवं प्रभाव में होंगे फिर भी मन में खुषी की अनुभूति नहीं होगी। आपके हाथों तारा अगर चन्द्र पर्वत पर है तो आप लोकप्रियता एवं यष प्राप्त करेंगे हो सकता है िकइस स्थिति में आप कलाकर हो सकते हैं। मंगल पर्वत पर तारा होने से आपका भाग्य अच्छा रहेगा और आपके सामने एक से एक अवसर आते रहेंगे। आप विज्ञान के क्षेत्र में कामयाबी प्राप्त कर सकते हैं और इस क्षेत्र में एक सफलता हासिल कर सकते हैं। आप किसी से प्रेम करते हैं तो देखिये आपके षुक्र पर्वत पर तारा का निषान है या नही। अगर इस स्थान पर तारा का निषान है तो आप प्रेम में कामयाब रहेंगे। षनि पर्वत पर तारा का निषान है तो आप प्रेम में कामयाब रहेंगे। ष्षनि पर्वत पर तारा का निषान होना इस बात का संकेत है कि आप जीवन में कामयाबी हासिल करेंगे, परंतु इसके लिए आपको काफी परेषानी व कठिनाईयों से गुजरना होगा।
द्वीप- द्वीप चिन्ह को हस्तरेखीय ज्योतिषी में दुर्भाग्यषाली चिन्ह माना जाता है। यह जिस पर्वत पर होता है उस पर विपरीत प्रभाव डलता है। गुरू पर्वत पर यह चिन्ह होने पर गुरू कमजोर हो जाता है। जिससे आपके मान सम्मान की हानि होती है और जीवन में अपने उद्येष्य को प्राप्त करने में असफल होते हैं। द्वीप चिन्ह सूर्य पर्वत पर होने से सूर्य का प्रभाव क्षीण होता है फलतः आपकी कलात्मक क्षमता उभर नहीं पाती है। चन्द्र पर्वत पर इस चिन्ह के होने से आपकी कल्पना ष्षक्ति प्रभावित होती है। मंगल पर्वत पर द्वीप चिन्ह होने से अंदर साहस एवं हिम्मत की कमी होती और बुध पर इस चिन्ह के होने से आपका मन अस्थिर होता है जिससे आप किसी भी काम को पूरा करने से पहले ही आपका मन उचट जाता है और आप काम में बीच में ही अधूरा छोड़ देते हैं। जिनके षुक्र पर्वत पर द्वीप के निषान होते हैं वे बहुत अधिक ष्षौकीन होते हैं और सुन्दरता के प्रति दीवानगी रखते हैं। आपके ष्षनि पर्वत पर यदि द्वीप बना हुआ है तो आपके जीवन में ष्षनि का प्रकोप रहेगा यानी काफी मेहनत के बाद ही आपका कोई काम सफल होेगा। आपका एक काम बनेगा तो दूसरी परेषानी सिर उठाए खड़ी रहेगी। हस्तरेखा विषेषज्ञ कहते हैं द्वीप चिन्ह अगर हृदय रेखा पर साफ और उभरी नजर आ रही हैं तो आप हृदय रोग से पीडि़त हो सकते है; इस स्थिति में आपको दिल का दौरा भी पड़ सकता है। यह चिन्ी का मास्तिष्क रेखा पर होने से आपको मानसिक परेषानियों का सामना करना होता है व आपके सिर में दर्द रहता है। गुणा- हस्त रेखा अध्ययन में इस चिन्ह को कई अर्थों में देखा जाता है क्योंकि यह चिन्ह कठिन, निराषा, दुर्घटना और जीवन में आने वाले बदलाव को दर्षाता है। इस चिन्ह को यू ंतो ष्षुभ नहीं माना जाता है परंतु कुछ स्थिति में यह जाभदायक भी होता है। यह चिन्ह जब बृहस्पति पर होता है तब आपकी रूचि गुप्त एवं रहस्मयी विषयों में होती है। इस स्थिति में आप दर्षनषास्त्र में अभिरूचि लेते हैं इसी प्रकार जब यह निषान हथेली के मध्य होती है तब आप पूजा पाठ एवं अध्यात्म में रूचि लेते हैं आप अनसुलझे रहस्यों पर से पर्दा हटाने की कोषिष करते हैं अर्थात् पराविजान की ओर आकर्षित रहते हैं। हस्त रेखा से भविष्य का आंकलन करने वाले कहते हैं गुणा का चिन्ह जब सूर्य पर्वत पर होता है तब आपको विभिन्न प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में आपकी आर्थिक दषा कमजोर रहती है आपके अंदर की कला का विकास सही से नहीं हो पाता है और न तो आपको प्रसिद्धि मिल पाती है। मंगल पर्वत पर बुध के नीचे अगर यह चिन्ह नजर आ रहा है तो आपको अपने ष्षत्रुओं से सावधान रहने की आवष्यकता है क्योंकि इस स्थिति में आपको अपने ष्षत्रुओं से काफी खतरा रहता है। इसी प्रकार मंगल पर्वत पर यह चिन्ह बृहस्पति के नीचे दिखाई दे रहा तो यह भी ष्षुभ संकेत नहीं है इस स्थिति आपको संघर्ष से बच कर रहना चाहिए अन्यथा आपकी जान को खतरा रहता है। यह चिन्ह अगर ष्षनि पर्वत पर हो और भाग्य रेखा को छू रहा हो तो यह समझना चाहिए कि दुर्घटना अथवा संघर्ष में जान का खतरा हो सकता है। ष्षनि पर्वत के मध्य यह चिन्ह हो तब इसी तरह की घटना होने की संभावना और भी प्रबल हो जाती है। गुणा का चिन्ह जीवन रेखा पर होना जीवन के लिए घातक होता है, जीवन रेखा में जिस स्थान पर यह होता है उस स्थान पर प्राण को संकट रहता है।
जीवन रेखा पर यह चिन्ह होने से आपके अपने करीबी रिष्तेदारों से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते हैं। ष्षुक्र पर यह निषान एवं प्रेमी के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। त्रिकोण- आप श्रंखला के पहले भाग में पढ़ चुके होंगे कि सभी चिन्ह ष्षुभ नहीं होते हैं और न तो सभी अषुभ प्रभाव डालने वाले होते हैं। यहँा हम जिस चिन्ह की बात कर रहे हैं वह चिन्ह हथेली में होना ष्षुभता की निषानी होती है। इस चिन्ह को यानी त्रिकोण को श्रेष्ठ चिन्ह कहा गया है। हस्तरेखीय ज्योतिष के अनुसार अगर यह आपके हाथ में है तो आप भले ही आसमान को न छूं पाएं परन्तु जमीन पर मजे में जीवन गुजार सकते हैं कहने का तात्पर्य यह है िकइस चिन्ह से बहुत बड़ी उपलब्धि तो नहीं मिलती हैं लेकिन यह बुरी स्थिति से भी बचाव करती हैं। अंगूठे के पहले पोर में अगर चक्र और गुरू पर्वत पर क्राॅस है, तो ऐसे व्यक्तिओं को सुंदर पत्नी/पति मिलते हैं। अंगुठे के तीसरे पोर में अगर द्वीप है, तो उस व्यक्ति की एक संतान गौरवषाली होती है। तर्जनी के पहले पोर में खड़ी रेखा है, तो व्यक्ति धार्मिक एवं आड़ी रेखा हो, तो नास्तिक और तीसरे पोर में खड़ी रेखा वाला व्यक्ति भाग्यषली होता है। मध्यमा के पहले पोर पर आड़ी रेखा वाला व्यक्ति दूसरों के धन से व्यापार चलाता है। अगर क्राॅस है, तो वह ष्षत्रु से भयभीत रहता है। अनामिका में खड़ी रेखा से व्यक्ति, कोई नया अविष्कार कर के, यष, प्रसिद्धि पाता है। कनिठिका के पहले पोर में चैकोर चिन्ह होने से व्यक्ति ज्यादा अभ्यास से भाग्योदय करता है।
योग- गजलक्ष्मी येागः- जिस मनुष्य के दोनों हाथों में भाग्य रेख मणिबंध से प्रारंभ हो कर सीधी ष्षनि पर्वत पर जा रही हो तथा, सूर्य पर्वत विकसित होने के साथ-साथ, उसपर सूर्य रेखा भी पतली, लंबी तथा लालिमा लिए हुए हो और इसके साथ ही मस्तिष्क रेखा, स्वास्थ्य रेखा तथा आयु रेखा पुष्ट हों, तो उसके होथ में गजलक्ष्मी योग बनता है। जिसके हाथ में गजलक्ष्मी योग होता है, वह व्यक्ति साधारण घराने में जन्म ले कर भी उच्चस्तरीय सम्मान प्राप्त करता है। इसके साथ ह वह अपने कार्यों से पहचाना जाता है। आर्थिक एवं भौतिक दृष्टि से ऐसे व्यक्तियों के जीवन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती। षुभ योगः- दाहिने हाथ में ष्षनि पर्वत विकसित हो तथा उसपर स्पष्ट भाग्य रेखा बनी हो, उसके हाथ में ष्षुभ योग होता है। ऐसा व्यक्ति प्रसिद्ध वक्ता तथा जनता को मोहित करने की क्षमता रखने वाला होता है। ष्षुभ योग से संपन्न व्यक्ति का भाग्योदय अपने जन्म स्थान से दूर जाने पर ही होता है। लक्ष्मी योगः- हथेली में गुरू, ष्षुक्र, बुध और चन्द्रमा के पर्वत पूर्ण विकसित हों तथा लालिमा लिए हुए हों, उस व्यक्ति के हाथ में लक्ष्मी योग बनता है। जिस जातक के हाथ में लक्ष्मी योग होता है। वह जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति करता है। जीवन की सभी भौतिक दच्छाएं समय पर पूरी होती हैं और वाहन सुख, भवन सुख तथा स्त्री सुख में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती है। कला योगः- हथेली में मस्तिष्क रेखा से कोई सीधी रेखा अनामिका की जड़ तक पहुंची हो, या दोनों हाथों में सूर्य रेखा जीवन रेखा से प्रारम्भ होती हो, तो कला योग बनता है। जिस मनुष्य के हाथ में कला योग हो, वह मनुष्य कला के माध्यम से जीविकापार्जन करता है तथा सफलता प्राप्त करता है।
धन वृद्धि योगः- हाथ में कही पर भी कलष का चिन्ह हो, तो धन वृद्धि योग होता है। थ्जसके हाथ में यह चिन्ह होता है, उस व्यक्ति को निरंतर धन की प्राप्ति होती रहती है और उसकी बैंक में जमा पूंजी बढ़ती ही रहती है। अकस्मात धन प्राप्ति योगः- मनुष्य के हाथ में कच्छप, यानी कछुए का चिन्ह हो, तो अकस्मात धन प्राप्ति योग बनता है। जिस मनुष्य के हाथ में यह चिन्ह हो, उसे अचानक धन की प्राप्ति होती है। कुलवर्द्धन योगः- हाथ पर कहीं भी चक्र का चिन्ह हो, तो कलवर्द्धक योग बनता है। कमल योगः- हाथ की दसों उंगलियों पर चक्र के निषान हों, तो कमल योग बनता है। ऐसा मनुष्य समाज में सम्मान प्राप्त करने वाला, विख्यात, सुषिक्षित, बातचीत करने में चतुर, दीर्घायु तथा स्वस्थ्य एवं योग्य होता है। भाग्यवान योगः- हाथ में कहीं छतरी का सा चिन्ह दिखाई दे, तो भाग्यवान योग बनता है। जिस व्यक्ति के हाथ में यह योग होता है, वह प्रसिद्धि प्राप्त करता है और चतुर तथा बंधु-बांधवों का सहायक होता है एवं ऐसा व्यक्ति भाग्यषाली कहा जाता है। दुर्घटना का संकेत किन चिन्हों से प्रकट होता है ?ः- ष्षनि तथा मंगल पर्वत पर तारक चिन्ह, चन्द्र पर्वत के मध्य एक खड़ी रेखा, हाथ के सिरे की ओर जाती हुई, लहरदार, नीचे की ओर झुकी हुई मस्तिष्क रेखा दुर्घटना कराती हैं। ष्षनि पर्वत के नीचे खंडित मस्तिष्क रेखा एवं धब्बे से सिर पर चोट लगती है। सूर्य पर्वत के नीचे खंडित मस्तिष्क रेखा भी दुर्घटना कराती है।
हाथ देख कर बीमारियों के बारे में कैसे जाना जाता है ?ः- बीमारियों के बारे में अनेक स्थानों से जाना जाता है, जैसे अधिक फैला हुआ हाथ और चैड़ा नाखून हृदय की बीमारी उत्पन्न करते हैं। हाथ में अनेक नसें नीली आभायुक्त दिखने पर रक्त एवं हृदय रोग का संकेत माना जाता है। यदि लंबी बीमारी होगी, तो हृदय रेखा और जीवन रेखा अधिकतर दोषी पायी जाएंगी तथा कई स्थानों पर कटी होंगी। मुख्य रूप से हथेली में सिकुड़ी हुई मांसपंषियां तथा एक दूसरे की ओर मुड़ी हुई अंगुलियां बड़ी बीमारी, या मस्तिष्क क्षमता की कमी को दर्षाती हैं। कभी-कभी अंगुलियां असामान्य रूप से लंबी तथा लचीली होती हैं, तो भी बीमारी की अवस्था का संकेत पाया जाता है।
विदेष से लाभ दिलाने वाली रेखाओं के बारे में — भाग्य रेखा चन्द्र क्षेत्र से निकल कर ष्षनि क्षेत्र में जाए, अंगूठा पीछे की ओर झुका हो, मस्तिष्क रेखा सीधी हो एवं ऊपरी चन्द्र, या मंगल को जाए, हाथ मणिबंध से चन्द्र रेखाएं निकलती हों, कुछ चंद्र रेखा जीवन रेखा से मिलती हों, तो विदेष से लाभ का संकेत मिलता है।
दांपत्य जीवन में प्रेम की कमी तथा अवैध संबंधो के लक्षण क्या हैं ?ः- जीवन रेखा का सीधा होना, भाग्य रेखा का जीवन रेखा के नजदीक होना, जीवन रेखा की ष्षाखा भाग्य रेखा में मिले, ष्षुक्र एवं चंद्र पर्वत का अधिक उभरा होना तथा मस्तिष्क रेखा का झुकाव चंद्र क्षेत्र की ओर होने से जातक के दांपत्य जीवन में कटुता आती है तथा अवैध संबंध होने की संभावना रहती है। भाग्य रेखा मोटी हो कर मस्तिष्क रेखा पर रूक जाए, हृदय रेखा जंजीरनुमा, अथवा द्वीपयुक्त हों, तो ऐसे जातक अवैध संबंधों को अधिक पसंद करते हैं।
अधिक आत्मविष्वास तथा राजनीति में सफलता की पहचान कैसे की जाती है ?ः- जब मस्तिष्क रेखा गुरू क्षुत्र से चलती है, तो जातक में आत्मविष्वास अधिक होता है। ऐसी रेखा उसे नेतृत्व की ष्षक्ति देती है तथा स्थितिप्रज्ञ भी बनाती है। जातक विषम परिस्थति को भी अनुकूल बनाने में सफल हो जाता है। ऐसे जातक की बौद्धिक ष्षक्ति जब भी कार्य करती है, तो एक समय में एक ही कार्य की ओर केंद्रित होती है तथा उसे अच्छा निर्णायक भी कहा जा सकता है। कभी-कभी अधिक लंबा अंगूठा भी आत्मविष्वास की वृद्धि करता है। दूसरी ओर जब मस्तिष्क रेखा दो भागों में विभाजित हो कर एक ष्षाखा उच्च मंगल तथा दूसरी चंद्र की ओर जाती हैं और गुरू से ष्षुरू होती हैं, तो वह जातक, नेता-राजनेता आदि बनने पर, स्वार्थी भावना में बहक जाएगा तथा स्वतः के स्वार्थ के लिए झूठ और बहाने का सहयोग लेगा एवं इस कार्य में सफल भी होगा।
रक्त संबंधी बीमारी के लक्षण क्या हैं ?:- नाखून पर नीले रंग की आभा होना, ष्षनि क्षेत्र के नीचे हृदय रेखा का खराब होना, अथवा नाखून में चंद्र का अभाव हो, तो रक्त अल्पता, अथवा रक्त संचार में खराबी के संकेत मिलते हैं। मंगल पर्वत पर त्रिभुज, वृत्त यव आदि का होना, या मंगल पर्वत अविकसित हो, अथवा अधिक विकसित हों, तो रक्त संचार अनियमित हो जाता है। द्वितीय मंगल क्षेत्र पर धब्बे का होना, मंगल पर्वत पर अनेक रेखओं का होना, हथेली का रंग अधिक लाल हो, स्वास्थ्य रंखा पर अनेक छोटी-छोटी रेखाएं हों, तो रक्त संचार प्रभावित होता है। जीवन रेखा में नीलापन होना, तर्जनी और मध्यमा के बीच से हृदय रेखा का निकलना तथा उसमें खराबी होना रक्त संचार में कमी लाते हैं।
जिन जातकों में काम पिपासा अधिक पायी जाती है, उनके हाथ में कौन से लक्षण देते हैं ?ः- जिन जातकों के हाथ में गुरू पर्वत खराब एवं ष्षुक्र तथा चंद्र पर्वत अधिक विकसित होते हैं, हथेली मजबूत एवं खुरदरी हो, ष्षुक्र पर्वत पर वृत्त, अथवा जाली हो, अंगूठा छोटा हो, अंगुलियों का तृतीय पर्व फुला हुआ हो, हाथ कठोर तथा मोटा हो, अंगूठा दृढ़ हो, तो जातक में काम भावना बहुत अधिक होती है। षुक्र क्षेत्र, अथवा जीवन रेखा से निम्न मंगल क्षेत्र की ओर कई रेखाएं जाती हों, मस्तिष्क रेखा हथेली के मध्य भाग हों, मस्तिष्क रेखा हथेली के मध्य भाग तक जा कर अचानक नीचे की और झुके, अथवा मस्तिष्क रेखा से छोटी-छोटी रेखाएं नीचे क ओर बढ़ें, तो जातक कामी होता है। विवाह रेखा श्रंखलाकार तथा गहरी, अथवा सर्प जिह्वाकार हो, जीवन रेखा त्रिभुज में समाप्त हेाती हो तथा ष्षुक्र एवं चंद्र विकसित हों, तो जातक में काम भावना अधिक पायी जाती है।
भाग्योदय का समयः- जीवन रेखा से भाग्य रेखा उदय होने के समय मोटी से पतली होने की आयु में, भाग्य रेखा पर बड़े द्वीप की समाप्ति की आयु में , भाग्य रेखा पर प्रभावित रेखा मिल कर भाग्य रेखा पुष्ट होने के समय, जब भाग्य रेखा चंद्रमा से निकल कर ष्षनि पर्वत पर पहुंचती है, तो ऐसे व्यक्ति जन्म से ही भाग्यषाली होते हैं। बुध पर्वत उन्नत हो, बुध की अंगुली तिरछी हो, तो 32-33 वर्ष की आयु से भाग्य में श्रेष्ठता आती है। ष्षनि क्षेत्र में किसी रेखा द्वारा कटाव हो, तो 36 वें वर्ष में भाग्योदय होता है। भाग्य रेखा को राहु रेखएं काटती हों, तो 42 वें वर्ष में भाग्योदय होता है। भाग्य रेखा मोटी हो कर हृदय रेखा पर रूकी हो, तो 50 वें वर्ष में भाग्योदय होता है। मस्तिष्क रेखा में मोटी भाग्य रेखा रूकती हो, तो 35 वें वर्ष में भाग्योदय होता है।
भाग्यः- भाग्य रेखा लगभग मणिबंध के ऊपरी भाग से प्रारंभ हो कर मध्यमा, अथवा तर्जनी अंगुली के मूल तक जाती है। रेखा अगर पूर्ण, अखंडित, ष्षुद्ध तथा बलवान हो, तो ऐसा जातक धनी होता है। यह रेखा चंद्र क्षेत्र के निचले भाग से और कभी जीवन रंखा से निकल कर ष्षनि क्षेत्र की ओर जाती है, कभी सूर्य, अथवा गुरू क्षेत्र तक जाती है। उसी के अनुरूप उस स्थिति को असाधारण कहा जा सकता है। इस रेखा से जातक का भाग्य, भाग्योदय, धन जायदाद आदि संबंधी विचार किया जाता है। भाग्य रेखा जब स्पष्ट ष्षुरू होती है, उसी समय से जातक का स्वर्णिम काल प्रारंभ होता है। भाग्य रेखा की अनुपस्थिति बतलाती है कि लगातार प्रयत्न की अत्यंत आवष्यकता है। यदि भाग्य रेखा सही अवस्था में पुष्ट एवं सुदीर्घ हो तथा उसमें से उसकी एक ष्षाखा बृहस्पति पर्वत की ओर जाए, तो जातक की सफलता, उसकी उच्च आकांक्षाओं एवं जनता पर ष्षासन करने की योग्यता की ओर इंगित कराती है। कुषल राजनीतिज्ञों के हाथ में यह रेखा अधिक पायी जाती है। यदि भाग्य रेखा सही अवस्था में पुष्ट एवं सुदीर्घ हो तथा उसमें से एक ष्षाखा सूर्य पर्वत की ओर जाती हो, तो जातक कला, व्यापार तथा अभिनय के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। यदि भाग्य रेखा स्पष्ट हो और उसमें से एक रेखा निकल कर बुध पर्वत की ओर जाती हो, तो जातक अत्यधिक चालाक, व्यापारिक गुणों में दक्ष, बातचीत करने में पटु, वैज्ञानिक अभिरूचि वाला एवं पूर्णतः सफल होता है। ऐसा जातक सिर्फ अपने दिमाग से बहुत धन अर्जित करता है।
यदि भाग्य रेखा कहीं पर टूटी हो, तो उस समय कोई आकस्मिक विपत्ति आएगी। यदि भाग्य रेखा पर द्वीप, या क्राॅस का चिन्ह हो, तो यह एक अषुभ संकेत है। यदि भाग्य रेखा हथेली के मध्य में टूट रही हो, तो यह सूचित करती है कि जातक की मध्य आयु को दैहिक कष्ट प्रभावित करेगा। यदि मस्तिष्क रेखा भाग्य रेखा द्वारा रोक दी गयी हो, तो ऐसा जातक, अपनी मूर्खता के कारण, अन्नति नहीं कर सकेगा।
व्यवसायः- व्यवसाय का संबंध पूर्णतः बुध रेखा से है। पर व्यवसाय रेखा के संबंध में किसी तरह का निष्कर्ष निकालने के पहले जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा और सूर्य रेखा की स्थिति एवं उनके पारस्परिक तालमेल तथा प्रभाव का अध्ययन करना जरूरी है। यदि बुध रेखा से निकल कर एक ष्षाखा बृहस्पति पर्वत की ओर जाए, तो जातक को अपनी महत्वाकांक्षा और लोगों का नेतृत्व करने तथा, उनपर नियंत्रण रखने की अपनी योग्यता से, व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है। यदि सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा से निकल कर हर्षल तक पहुंचती है, तो इसे अत्यंत श्रेष्ठ मानते हैं। ऐसे व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभासंपन्न होते हैं। ये जीवन में जिस कार्य को भी प्रारम्भ करते हैं, उसमें सफलता प्राप्त करते हैं। वे समाज में अत्यधिक ख्याति और सम्मान अर्जित करते हैं; यद्यपि कार्य के प्रारंभ में इनका अत्यधिक विरोध भी होता है।
प्रायः ऐसे व्यक्ति उच्च कोटि के वैज्ञानिक, वकील, दार्षनिक, ज्योतिर्विद, साहित्यकार तथा राजनीतिक व्यक्ति होते हैं। साझेदारीः- जिन अंगुलियों पर तारे का चिन्ह होता है, वह जातक अत्यंत भाग्यषाली होता है। उसकी साझेदारी फलीभूत होती है। उसको जीवन भर सहायक और सहयोगी मिलते रहते हैं। जिन अंगुजियों पर चतुर्भुज का चिन्ह पाया जाता है, ऐसे व्यक्ति स्वावलंबी होते हैं और अपना जीवन अपने बल पर आरंभ करते हैं। पारिवारिक सहयोग नगण्य रहता है। साझेदारी इन्हें फलीभूत नहीं होती है। यदि अंगुलियां अपने आधार पर, जहां हथेली के साथ जुड़ती हैं, अंदर की ओर मोटी हों, तो उनका स्वामी अच्छी वस्तुओं का प्रेमी, स्वार्थी और भौतिकवादी होता है तथा साझेदारी उसके लिए अच्छी नहीं होती।
उच्चाधिकारीः- यदि सूर्य पर्वत पर मत्स्य रेखा हो, हाथ की बनावट सुडौल हो, सूर्य और गुरू पर्वत विकसित हों, भाग्य रेखा स्पष्ट हो, दोनों हाथों की कनिष्ठिका अंगुली सामान्य से अधिक लंबी हो, मंगल क्षेत्र विकसित हो तथा सूर्य रेखा स्पष्ट हो, तो वे उच्च पदों पर कार्यरत होते हैं। चिकित्सकः- मंगल और बुध पर्वत विकसित हों, सूर्य और भाग्य रेखाएं स्पष्ट हां, चंद्र पर्वत विकसित हों, यदि दोनां हथेलियों में उन्नत बुध क्षेत्र पर तीन खड़ी रेखाएं हों, तो चिकित्सक बनने का योग होता है।
विदेष यात्राः- जब जीवन रेखा अंतिम छोर पर दो भागों में बंट जाए और एक ष्षाखा चंद्र क्षेत्र पर जाए, तो यह दूरस्थ स्थानों की यात्रा का संकेत है। चंद्र क्षेत्र पर जाती है, तो व्यक्ति को लंबी यात्राएं कराती है। जब मणिबंध से निकलने वाली रेखा चंद्र क्षेत्र पर जाती है, तो व्यक्ति को लंबी यात्रांए कराती है। चंद्रमा, बुध और ष्षुक्र यात्रा प्रवृत्ति तथा क्रिया के प्रमुख कारक ग्रह हैं। विदेष यात्रा के लिए अन तीनों ग्रहों का सबल होना नितांत आवष्यक है। अंगूठे के मूल से निकल कर जीवन रेखा की ओर जाने वाली, या असमें जा मिलने वाली रेखाएं, अर्थात् ष्षुक्र पर्वत पर स्थित खड़ी निर्दोष रेखाएं विदेष गमन की रेखाएं होती हैं।
इसी तरह कनिष्ठिका के मूल में उत्पन्न हो कर आयु रेखा पर पहुंचने वाली रेखाएं भी विदेष यात्रा का योग बनाती हैं। साथ ही चंद्र पर्वत से निकल कर कोई स्पष्ट रेख बुध पर्वत की ओर जाए, तो जातक निस्सदेंह विदेष यात्रा करता है। मणिबंध से उत्पन्न खड़ी रेखएं यदि मंगल पर जा पहुंचे, तो वह एक लंबी यात्रा का संकेत देती हैं। जीवन रेखा से निकल कर उसके सहारे समानांतर चलती रेखा विदेष में नौकरी की सूचक है।
स्वास्थ्यः- स्वास्थ्य रेखा सामान्यतः मणिबंध से निकल कर बुध के क्षेत्र की ओर जाती है। इसी लिए इसे बुध रेखा भी कहते हैं। स्वास्थ्य रेखा जितनी अधिक स्पष्ट, दोषरहित और गहरी होगी, तत्संबंधी व्यक्ति का स्वास्थ्य अतना ही उत्तम होगा। चेहरे पर तेज, सुगठित कद और वह अपनी उम्र से सदैव कम दिखने वाला होगा। उत्तम सवास्थ्य के साथ सूर्य रेखा अच्छी हो, तो जातक आजीवन सुखी और स्वास्थ्य रहेगा। स्वास्थ्य तथा भाग्य रेखा के मिलने से यदि मस्तक रेखा के नीचे त्रिकोण बना हो, तो मनुष्य यषस्वी, दूूरदर्षी और ष्षास्त्रज्ञ तथा मीमंसक होगा। स्वास्थ्य, भाग्य और मस्तिष्क रेखाएं मिल कर त्रिभुज बनाती हों, तो मनुष्य तांत्रिक हेागा। गुप्त विज्ञान में उसकी विषेष रूचि होगी। स्वास्थ्य रेखा यदि चक्कर खा कर चंद्र पर्वत पर चली गयी हो, तो जातक सदैव रोगग्रस्त ही रहेगा। यदि स्वास्थ्य रेखा चंद्र पर्वत से होते हुए, हथेली के किनारे-किनारे चल कर, बुध तक पहुंचती है, तो जातक कई बार विदेष की यात्राएं करता है। चंद्र रेखा और स्वास्थ्य रेखा मिल जाएं, तो जातक काव्य प्रणेता होता है। जो स्वास्थ्य रेखा न तो जीवन रेखा को पार करे और न ही उसे काटे, वही अच्छी मानी जाती है। वास्तव में इस रेखा की सबसे ष्षुभ स्थिति वह होती है, जब यह बुध क्षेत्र के नीचे ही नीचे सीधी चली आए। जब यह रेखा से मिल जाए, या इसमें से ष्षाखाएं निकल कर जीवन रेखा में मिलें, तो यह इस बात का संकेत है कि जातक के ष्षरीर में किसी रोग ने घर कर के उसके स्वास्थ्य को दुर्बल कर दिया है। ज्ब जीवन रेखा छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी हो, या जंजीरनुमा हो और स्वास्थ्य रेखा गहरी तथा भारी हो, तो जीवन भर भारी नजाकत और बीमारी बनी रहने की आषंका होती है। यदि स्वास्थ्य रेखा में मस्तिष्क रेखा के निकट, परंतु उसके ऊपर कोई द्वीप हो, तो नाक और गले के रोग होते हैं। यदि इस रेखा का मध्य भाग लाल है, तो उस व्यक्ति का स्वास्थ्य आजीवन खराब रहेगा। यदि स्वास्थ्य रेखा का प्रारंभ लाल है, तो उस व्यक्ति को हृदय रोग होगा। इस रेखा का अंतिम सिरा यदि लाल रंग का है, तो उसे सिर दर्द का रोग होगा।
फेंग सुइ के पांच तत्वः- फेंग सुइ में पृथ्वी पर संरचना का कारण पांच तत्व माने गये हैंः- 1. पानी 2. लकड़ी 3. अग्नि 4. पृथ्वी 5. धातु। इन पांच तत्वों से पृथ्वी पर संरचना हुई। चारों ओर पानी ही पानी था। पानी से काई तथा पेड़-पौधे आदि उत्पन्न हुए। समय के चलते लकड़ी सूखी एवं टकरायी। घर्षण से अग्नि उत्पन्न हुई। अग्नि से लकड़ी जलने लगी और राख उत्पन्न हो गयी। राख ने काल में पृथ्वी का रूप् ले लिया। पृथ्वी के अंदर आग थी और ऊपर राख। दबाव के कारण लकड़ी आदि वनस्पतियों ने कोयले आदि का ठोस रूप् ले लिया, जिससे धातु उत्पन्न हो गयी।
धातु पृथ्वी की आग से पिघली और फिर तरल पदार्थ का रूप ले लिया, जिससे फिर जल उत्पन्न हो गया। इस प्रकार पृथ्वी पर संरचना का चक्र चलता रहता है।
इसको निम्न चक्र से भी दिखा सकते हैंः यह पृथ्वी पर सकारात्मक (पोजिटिव) चक्र है। इसके विपरीत नकारात्मक (निगेटिव) चक्र भी निम्न प्रकार से चलता हैः- पानी अग्नि को ष्षांत करता है। अग्नि धातु को पिघला देती है। लकड़ी पृथ्वी को खोद कर नष्ट कर सकती है। पृथ्वी पानी के बहाव को रोक सकती है, मानों बाढ़ आ गयी हो। पानी के बहाव को रोकने के लिए रेत और राख के बोरों का उपयोग होता है। धातु की कुल्हाड़ी से वृक्ष काटे जाते हैं। इसको ऐसे भी दर्षाया जा सकता है।
हथेली पर पाए जाने वाले अन्य महत्वपूर्ण चिन्हः- चक्र का चिन्हः- चक्र के निषान हाथ में अंगुलियों के पौरवों पर जाये जाते हैं।जिन जातकों की हथेली पर एक चक्र है वह बुद्धिमान, दो चक्र वाला सुन्दर, तीन चक्र पाये जाने पर विलासी एवं नौ-दस चक्र वाला जातक राजा या राजा के समान पद प्राप्त करने वाला होता है। दस चक्र वाले जातक (महेष प्रकाष सांखला) को मैंने देखा है जो गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुका है एवं कई बार विदेष यात्राएं कर चुका है।
षंख का चिन्हः- जिस जातक की हथेली की अंगुली के प्रथम पौर पर ष्षंख का निषान हो वह विद्वान होता है। चार ष्षंख के निषान वाला व्यक्ति सरकार में प्रतिष्ठित पद प्राप्त करता है। पांच ष्षंख के निषान वाले जातक को विदेषों से आय होती है। छः ष्षंख के निषान वाला वयक्ति विद्वान एवं कर्मकाण्ड का ज्ञाता होता है। आठ ष्षंख के निषान वाला व्यक्ति धनवान, सुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है। वहीं यदि जातक की हथेली पर दस ष्षंख के निषान पाए जाते हैं तो व्यक्ति विधायक, मंत्री या महात्मा बनता है। यव का चिन्हः- अंगूठे के जोड़ पर पाए जाने वाला यव चिन्ह जातक के धनवान होने के प्रतीक हैं। प्रतिष्ठा प्रदान करता है। अगर जातक की हथेली पर यवमाला है तो जतक को धन के साथ ही साथ राजनीति में भी सफलता प्रदान करता है।
अंगुलियों की लम्बाई के आधार पर हथेली की विवेचनाः- 1. यदि कनिष्टका अंगुली अनामिका अंगुली के प्रथम पौर के मध्य तक जाती है तो जातक अपनी बुद्धि से व्यापार में खूब धन अर्जित करता है। 2. यदि अनामिका एवं मध्यमा अंगुली की लम्बाई बराबर हो तो जातक प्रतिष्ठित होता है एवं काफी धन अर्जित करता है। 3. यदि तर्जनी एवं मध्यमा अंगुली की लम्बाई बराबर हो तो जातक राजनीति में प्रतिष्ठत होता है एवं काफी धनवान होता है।
अंगुलियों पर काले धब्बों के निषानः- जातक की जिस अंगुली पर काले धब्बे के निषान होते हैं उस अंगुली के पर्वत के गुणों में कमी कर देते हैं। अंगुलियों पर नक्षत्र का चिन्हः- नक्षत्र का चिन्ह जिस अंगुली पर होता है उस अंगुली के पर्वत के गुणों में वृद्धि करता है एवं धन, प्रसिद्धि प्रदान करता है। अंगुलियों पर खड़ी रेखाएंः- चिकनाई व लालिमा लिए हुए नाखून जातक के अच्छे स्वास्थ्य, भाग्य के परिचायक हैं।
अंगुलियों पर पाये जाने वाले चन्द्र चिन्हः- नाखूनों की जड़ों पर पाये जाने वाले चन्द्र के चिन्ह समय-समय पर बनते एवं बिगड़ते रहते हैंै। जब जातक पूर्ण स्वस्थ्य होता है एवं अच्छा व्यापार चलता है तो अच्छे चन्द्र भी स्वास्क्य के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं।
कनिष्टका पर चन्द्र का चिन्हः- कनिष्टका अंगुली के नाखून के ऊपर ऐसा चिन्ह व्यापार, बौद्धिक स्तर एवं विज्ञान में सफलता प्रदान करता है।
अनामिका पर चन्द्र का चिन्हः- अनामिका अंगुली के नाखून के ऊपर पाया जाने वाला चिन्ह सम्मान एवं धन में वृद्धि का संकेत देता है।
तर्जनी पर चन्द्र का चिन्हः- तर्जनी अंगुली के नाखून पर ऐसा चिन्ह राजकीय सेवा से लाभ एवं जातक की धार्मिक प्रवृत्ति दर्षाता है।
अंगूठे पर चन्द्र का चिन्हः- अंगूठे के नाखून पर चन्द्र का चिन्ह सभी कार्यों में सफलता दिलाता है। ज्यादा बड़ा चिन्ह हृदय पर दबाव का द्योतक है। उंगलियों का झुकावः- कुछ हाथों में उंगलियों का झुकाव पीछे की ओर होता है। ऐसे जातक उदार स्वभाव के बुद्धिमान और तर्क-वितर्क में निपुण होते हैं।
गरूड़ पुराण के अनुसारः- सीधी उंगलियाँ ष्षुुभ होने के साभ ही आयुवृद्धि भी कराती हैं, साथ ही कर पृष्ठ की और झुकी उंगलियाँ षस्त्र से मृत्यु देती हैं। अगर उंगलियाँ हथेली की ओर झुकी हों तो जातक मन्दबुद्धि और उत्साह हीन होता है। मगर इन जातकों को दुनियाँदारी की समझ अच्छी होती है। अगर हाथ की उंगलियों में कोई उंगली टेढ़ी हो, कोई सीधी हो तो जातक सभी कलाओं की जानकारी रखता है मगर किसी में भी दक्ष नहीं होता है यानि (जैक आॅफ आॅल ट्रेड्स बट मास्टर आॅफ नोन।)
अगर उंगलियों को मिलाने पर उनके बीच में से छेद दिखाई दे तो ऐसे जातक बहुत खर्चीले होते हैं। उनके पास जमापूंजी नहीं के बराबर होती है उंगलियों में सामान्यतः तीन पर्व (भाग) होते हैं पर कभी-कभी किसी उंगली में चार पर्व दिख जाते हैं जो ष्षुभ नहीं होते। अगर स्त्री जातक की किसी उंगली में चार पर्व हैं तो वह जीवन में बहुत दुःख भोगती है।
कई बार किसी-किसी के हाथ में छोटी उंगली के साथ एक और उंगली होती है या किसी के अंगूठे के साथ एक और अंगूठा होता है। एकसे जातक जिन्दगी में बहुत संघर्ष करके धन कमाते हैं। ये जातक अपने कार्य में हमेषा जरूरत से ज्यादा सतर्क होते हैं। जुड़वां अंगूठे वाले विदेष में खास करके चीन में बहुत पाये जाते हैं। इन जातकों को जीवन काल में कोर्ट-कचहरी के चक्कर परूर काटने पड़ते हैं, वजह चाहे कुछ भी हो।
हस्त चिन्ह —
1. मछली चिन्ह:- यदि हाथ में मछली का चिन्ह हो, तो व्यक्ति धनवान् होता है तथा जलमार्ग से विदेष यात्रा सम्पन्न करता है।
2. हाथी चिन्ह:- यदि हाथ में हाथी का चिन्ह हो, तो जातक भग्यवान्, बुद्धिमान, एवं वैभावषाली होता है।
3. पद्त चिन्ह:- यदि हाथ में पद्म-चिन्ह हो, तो जातक का ष्षरीर सुदृढ़ एवं सुडौल होता है। ये आर्थिक ष्षीघ्रता से प्राप्त कर लेेते हैं।
4. पालकी चिन्ह:- यदि हाथ में पालकी का चिन्ह हो, तो जातक धन संग्रह में प्रवीण होता है तथा बाहनादि का सुख भोगता है।
5. ध्वजा चिन्ह:- यदि हाथ में ध्वजा का चिन्ह हो, तो जातक कुलदीप होता है एवं उत्तम व्यापार करने वाला होता है। 6. सिंह चिन्ह:- यदि हाथ में सिंह का चिन्ह हो, तो जातक साहसी, पराक्रमी, एवं ष्षासक होता है। इन पर माँ लक्ष्मी की कृपा होती है।
7. घोड़े का चिन्ह:- यदि हाथ में घोड़े का चिन्ह हो, तो जातक राज्य क्षेत्र में तथा सेना के उच्च पद पर प्रतिष्ठित होता है।
8. सरोवर चिन्ह:- यदि हाथ में सरोवर का चिन्ह हो, तो जातक धनवान्, परोपकारी, व्यापार में लाभ अर्जित करने वाला होता है।
9. तलवार चिन्ह:- यदि हाथ में तलवार चिन्ह हो, तो जातक भाग्यवान् तथा राज्य द्वारा सम्मानित होता है। ये युद्ध में सदैव विजयी हाते हैं।
10. फूलमाला चिन्ह:- यदि हाथ में फूलमाला का चिन्ह हो, तो जातक प्रसिद्ध, धनवान् एवं धार्मिक होता है। 11. सूर्य चिन्ह:- यदि हाथ में सूर्य का चिन्ह हो, तो जातक सूर्य के समान तेजस्वी एवं भोगी होता है। 12. अंकुष चिन्ह:- यदि हाथ में अंकुष का चिन्ह हो, तो जातक एंष्वर्यषाली एवं धनवान् होता है। 13. देव विमान चिन्ह:- यदि हाथ में देव विमान चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक तीर्थ यात्राएँ करने वाला तथा अपनी पूँजी से मंदिर का निर्माण कराने वाला होता है। 14. त्रिषूल चिन्ह:- यदि हाथ में त्रिषूल का चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक ऐष्वर्यषाली, वैभवषाली एवं समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करने वाला होता है। 15. धनुष चिन्ह:- यदि हाथ में धनुष का चिन्ह हो, तो जातक वीर, साहसी, एवं सदैव विजयश्री प्राप्त करने वाला होता है। 16. मेर चिन्ह:- यदि हाथ में मयूर (मोर) का चिन्ह अंकित हो, तो जातक संगीत के क्षेत्र में विष्व प्रसिद्ध होता है। 17. लक्ष्मी चिन्ह:- यदि हाथ में लक्ष्मी का चिन्ह अंकित हो, तो जातक भाग्यवान् एवं लक्ष्मीवान् होता है। 18. पर्वत चिन्ह:- यदि हाथ में पर्वत का चिन्ह हो, तो जातक बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करने वाले, रत्न व्यवसायी होता है। 19. चक्र चिन्ह:- यदि हाथ में चक्र का चिन्ह हो, तो जातक धार्मिक, विद्वानों की सहायता करने वाला तथा विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होने वाला होता है। 20. गदा चिन्ह:- यदि हाथ में गदा का चिन्ह हो, तो वह जातक दूसरों पर ष्षासन करके अपने प्रभाव को स्थापित करने वाला होता है। 21. रथ चिन्ह:- यदि व्यक्ति के हाथ में रथ का चिन्ह बन रहा हो, तो ऐसे जातक भाग्यषाली होते हैं तथा सुन्दर-आकर्षक घर भवन के स्वामी होकर पूर्ण भवनसुख भोगते हैं। प्रायः ये सुखी एवं सौभाग्यषाली माने जाते हैं। 22. सिंहासन चिन्ह:- यदि हाथ में सिंहासन का चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक उच्चाधिकारी पद पर सुषोभित होता है। 23. षंख चिन्ह:- यदि हाथ में ष्षंख का चिन्ह अंकित हो, तो जातक समुद्र मार्ग से विदेषी व्यापार करने वाला होता है। धार्मिक होते हुए अपने जीवनकाल में मंदिरों एवं धर्मषालाओं का निर्माण कराता है। 24. वज्र चिन्ह:- यदि हाथ में वज्र का चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक परमवीर चक्र से सम्मानित एवं उच्च पदाधिकारी होता है। 25. षट्कोण चिन्ह:- यदि हाथ में षटकोण का चिन्ह अंकित हो, तो ऐसा जकि धनवान् ऐष्वर्यवान् होता है। 26. त्रिकोण चिन्ह:- यदि हाथ में त्रिकोण का चिन्ह हो, तो जातक समाज में प्रतिष्ठत एवं सम्पत्तिवान् होता है। 27. चन्द्रमा चिन्ह:- यदि हाथ में चन्द्रमा का चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक भाग्यवान् एवं आकर्षक ष्षरीर का होता है। 28. तोरण चिन्ह:- यदि हाथ में तोरण का चिन्ह अंकित हो, तो जातक धनवान् एवं अचल सम्पत्ति का मालिक होता है। ऐसे व्यक्तियों को अल्प परिश्रम से ही आर्थिक अनुकूलता प्राप्त हो जाती है। 29. स्वस्तिक चिन्ह:- यदि हाथ में स्वास्तिक का चिन्ह विद्यमान हो, तो जातक समाज में प्रतिष्ठित होता है। 30. मुकुट चिन्ह:- यदि हाथ में मुकुट का चिन्ह हो, तो जातक धार्मिक, विद्वान, उच्च पदाधिकारी एवं यषस्वी होता है। 31. वर्ग का चिन्ह:- यदि हाथ में चन्द्र पर्वत पर वर्ग का चिन्ह हो, तो जातक धैर्यवान् एवं विवेकवान् क्षमाषील होता है। 32. त्रिभुज चिन्ह:- यदि हाथ में त्रिभुज का चिन्ह हो, तो जातक धैर्यवान् परेषानियों से नहीं घबराने वाला तथा अनेक पुरस्कार से सम्मानित होता है।
उपर्युक्त विवरण में हथेली में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के चिन्हों का वर्णन किया गया है। उनके फलों में न्यूवता एवं अधिकता, चिन्ह की पूर्ण आकृति एवं स्पष्टता तथा हथेली में चिन्ह किस स्थान पर अंकित है, आदि स्थितियों पर निर्भर करती है। अतः हथेली में चिन्हों का फलकथन करने से पहले उपर्युक्त सभी बातों का सूक्ष्मता से विचार कर लिया जाए, तो भविष्यवाणी में सुगमता होगी।
विषिष्ट एवं महत्वपूर्ण रेखाएँ —
अतीन्द्रिय ज्ञान रेखा- अतीन्द्रिय ज्ञान से तात्पर्य अन्तज्र्ञान से है। यह रेखा चन्द्र एवं बुध पर्वत को आपस में जोड़ती है। चन्द्रमा मन एवं बुध बुद्धि का कारक होता है। अत उक्त दोनों स्थितियों के समन्वय से व्यक्ति अन्तज्र्ञानी हो जाता है। हथेली में अन्तीन्द्रिय का उद्गम स्थल चन्द्र पर्वत होता है। यह चन्द्रपर्वत से धनुषाकार अथवा सीधी बुध पर्वत पर जाकर समाप्त होती है। इसकी आकृति की अपेक्षा इसका संबंध चन्द्र एवं बुध से बनना विषेष महत्वपूर्ण होता है। अतः जो रेखा चन्द्रपर्वत से प्रारंभ होकर बुधपर्वत पर समाप्त हो उसे अतीन्द्रिय ज्ञान रेखा कहा जाता है। जिस व्यक्ति के हाथ में यह रेखा स्थित हो, उसमें अन्तज्र्ञान अपेक्षा से अधिक होता है। प्रायः ये भविष्यद्रष्टा एवं वाक्सिद्ध होते हैं। इन्हें दूसरें मनुष्यों के मन की बात का पूर्वाभास ष्षीघ्रता से हो जाता है। साथ ही भविष्य में घटने वाली घटनाओं को ये पूर्व में ही देख लेते हैं। इनके मुँह से निकले वचन प्रायः सत्य सिद्ध होते हैं। इस रेखा वाले व्यक्ति कुषल ज्योतिषी अथवा कुषल सामुद्रिक ष्षास्त्री होते हैं। इनका भाविष्य संबंधी फलादेष सत्य सिद्ध होता है। यदि यह रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष तथा चन्द्र एवं बुध पर्वतों का स्पष्ट संबंध बना रही हो, तो जातक विख्यात योगी, अन्तज्र्ञानी तथा सभी रहस्यों का जानकार होता है। यदि दोनों हाथों में उक्त रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हो, तो उपर्युक्त फलों में वृद्धि की सूचक है। यदि यह रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हो तथा उक्त रेखा पर द्वीप का चिन्ह बन रहा हो, तो जातक अलौकिक दृष्टि का स्वामी होता है। ऐसा व्यक्ति निद्रावस्था में सम्पूर्ण संसार का भ्रमण करता है। यदि यह रेखा छोटी, लहरदार एवं जगह-जगह से खंडित हो, तो उक्त फलों में न्यूवता को इंगित करती है। यदि अतीन्द्रिय रेखा, भाग्य रेखा एवं मस्तिष्क रेखा के संयोग से हथेली में त्रिकोण का निर्माण हो रहा हो, तो ऐसा जातक गुप्त विद्याओं का जानकर होता है। इनकी रूचि प्रायः यंत्र-मंत्र इत्यादि में विषेष रूप से होती है। कालसर्प रेखा:- कालसर्प रेखा प्रायः उन हाथों में पाई जाती है जिनकी कुण्डली कालसर्पदोष से प्रभावित होती है। इस रेखा के उद्गम स्थल की अपेक्षा इसकी आकृति को विषेष महत्व दिया जाता है। इसकी आकृति सर्पाकार होती है अर्थत् यह लहरदार रेखा होती है। जो प्रायः हाथ में कहीं भी स्थित हो सकती है, तो व्यक्ति आंषिक रूप् से कालसर्पदोष से ग्रस्त होता है। आंषिक कालसर्प रेखा से प्रभावित व्यक्ति का जीवन प्रायः संघर्षपूर्ण होता है। इन्हें जीवन में उन्नति के लिए अत्यधिक परिश्रम एवं परेषानियों का सामना करना पड़ता है। यदि हथेली में राहु पर्वत उन्नत एवं निर्दोष हो, तो जातक जीवन में आर्थिक उन्नति करने में सक्षम होता है। यदि हाथ उपर्युक्त प्रकार की सर्पाकार अथवा लहरदार रेखा स्थित हो और उसका संबंध किसी न किसी प्रकार से राहु अथवा केतु पर्वत से बन रहा हो, तो व्यक्ति निष्चित रूप् से पूर्णकालसर्पयोग से ग्रस्त होता है। कालसर्प रेखा से प्रभावित व्यक्ति का जीवन संघर्षमय होता है। प्रायः इन्हें प्रत्येक कार्यों में अवरोध एवं रूकावटों का सामना करना पड़ता है।
विलासिता की रेखा:- हथेली में विलासिता की रेखा की उद्गम स्थल मंगल रेखा अथवा ष्षुक्र पर्वत होता है तथा इसका अन्त विवाह रेखा, बुध पर्वत, चन्द्र पर्वत एवं अथवा अन्य कहीं हो सकता है। यदि कोई रेखा मंगल रेखा हो रही हो, तो वह विलासिता रेखा कहलाती है। यदि ष्षुक्र पर्वत उन्नत एवं निर्दोष हो तथा मंगल रेखा से कोई ष्षाखा निकलकर बुध पर्वत पर जाकर समाप्त होती हो, तो ऐसे जातक विषय-भोग में लिप्त रहता है। यदि उक्त रेखा विवाह रेखा को काटती हो, तो जातक विषय-भोग में लिप्त होकर दाम्पत्य जीवन खराब कर लेते हैं। यदि मंगल रेखा से प्रारंभ होकर कोई रेखा मस्तिष्क रेखा मस्तिष्क रेखा को काटती हुई ष्षनि पर्वत पर जाकर समाप्त हो तथा अन्त में द्वीप का चिन्ह बनाती हो, तो जातक का उच्छंृखल काम वासना के कारण दांपत्य सुख नष्ट हो जाता है तथा अधिक विलासिता के कारण उसका मस्तिष्क विकृत हो जाता है। यदि मंगल रेखा से कोई रेखा निकलकर भाग्यरेख अथवा सूर्य रेखा को काट रही हो, तो जातक अत्यंत विलासी होता है तथा इस प्रवृत्ति के कारण ही उसके यष तथा भाग्य को हानि पहुँचती है। यदि विवाह रेखा अन्त में दो भागों में विभाजित हो और मंगल रेखा से कोई ष्षाखा निकलकर विवाह रेखा को काट रही हो, तो जातक की अत्यधिक विलासी प्रवृत्ति के कारण उसके वैवाहिक सुख में बाधा पड़ती है तथा जीवनसाथी से पृथकता की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। यदि मंगल रेखा से कोई रेखा निकलकर चन्द्रपर्वत पर जा रही हो तथा चन्द्र पर्वत पर नक्षत्र अथवा द्वीप का चिन्ह हो, तो जातक विलासी एवं आवारा होता है। यदि मंगल रेखा से कोई रेखा निकलकर चन्द्र पर्वत पर जो रही हो तथा अन्त में क्राॅस, बिन्दु अथवा अन्य छोटी रेखाओं से कटकर समाप्त हो रही हो और चन्द्र पर्वत निर्बल एवं दोषमुक्त हो, तो अत्यधिक भोग विलास के कारण जातक की ष्षीघ्र मृत्यु भी हो जाती है। यदि मंगल रेखा से कोई ष्षाखा निकलकर चन्द्र पर्वत पर जा रह ही हो साथ ही मस्तिष्क रेखा खंडित एवं श्रंखलाबद्ध हो, तो जातक अत्यधिक भोग विलास के कारण रोगी जाता है तथा भोग विलास की अत्यधिकता के कारण उनमाद की स्थिति में पहुँच जाता है।
कामुकता की रेखा:-कामुकता रेखा हथेली में केतु पर्वत से प्रारंभ होकर बुध पर्वत पर समाप्त होती है। यह हथेली में बुध एवं केतु पर्वत का स्पष्ट संबंध बनाती है। इस स्थिति में रेखा को देखकर स्वास्थ्य रेखा समझने का भ्रम उत्पन्न होता है। क्योंकि स्वास्थ्य का अन्त भी बुध पर्वत पर ही होता है। अतः यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि स्वास्थ्य रेखा का उद्गम स्थल हथेली में कहीं से भी हो सकता है, किन्तु अन्त बुध पर्वत पर ही होता है। जबकि कामुकता रेखा का उद्गम स्थल सदैव केतु पर्वत होता है तथा उन्त बुध पर्वत होता है। अर्थत् जो रेखा केतु एवं बुध पर्वत को आपस में स्पष्टरूप् से जोड़ती है, वहीं कामुकता रेखा कहलाती है।
यदि कामुकता रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हो साथ ही बुध पर्वत उन्नत एवं निर्दाेष हो, तो जातक का जीवन ऐष्वर्यषाली होता है। ये भोगी एवं बुद्धिमान होते हैं। इन्हें राजनीति कूटनीति में अपेक्षा से अधिक सफलता प्राप्त होती है। यदि हथेली में स्वास्थ्य रेखा अस्पष्ट, दोषयुक्त एवं खंडित हो, किन्तु कामुकता रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हो, तो जातक ष्षारीरिक दृष्टि से स्वस्थ्य एवं नीरोगी होता है। ये पूर्ण रूप् से भौतिक सुखों भोगते हैं। यदि कामुकता रेखा लहरदार एवं दोषयुक्त हो, तो जातक अत्यधिक कामुक प्रवृत्ति का होता है। काम वासना में लिप्त होकर अपने भाग्य को बर्बाद कर लेता है। यदि कामुकता रेखा श्रंखलाबद्ध हो तथा अन्त में बुध पर्वत पर जाकर दो भागों में विभाजित हो रही हो, तो जातक व्यभिचारी, डरपोक एवं संतनोपप्पति की क्षमता से रहित होता है।
यदि कामुकता रेखा खंडित एवं दोषमुक्त हो तथा उद्गम स्थल पर दो भागों में विभाजित हो जिसका एक भाग बुध पर्वत पर तथा दूसरा भाग ष्षुक्र पर्वत पर जा रहा हो, तो जातक अतिव्यभिचारी होता है। ऐसे जातक के अनेक विपरीतलिंगी से सम्पर्क होते हैं, जिससे ये गुप्तरोग अथवा जननेन्द्रीय संबंधित विकारों से ग्रस्त हो जातक हैं।
यदि कामुकता रेखा खंडित, लहरदार एवं दोषमुक्त हो तथा उस पर द्वीप का चिन्ह बन रहा हो, तो ऐसा व्यक्ति चिड़चिड़ा, झगड़लू एवं क्रोधी स्वभाव का होता है। ये विपरीत जिंगियों में आसक्त होकर अपनी अवनति कर लेते हैं। यदि कामुकता रेखा ख्ंाडित एवं दोषयुक्त हो तथा उस पर नक्षत्र का चिन्ह बन रहा हो साथ ही ष्षुक्र पर्वत अतिविकसित हो, तो जातक कामान्ध होता है। ऐसा जातक विषभोग में लिप्त होकर नरकतुल्य स्थितियों को प्राप्त करता है। यदि कामुकता रेखा से कोई ष्षाखा निकलकर सूर्य रेखा को काटे, तो जातक को भोग विलास के कारण धन एवं समृद्धि की हानि होती है। यदि कामुकता रेखा अधिक बड़ी, गहरी, चैड़ी तथा लाल रंग तथा स्वास्थ्य रेखा खंडित, श्रंखलाबद्ध एवं दोषमुक्त हो, तो जातक व्यभिचार कर्म में गम्यागम्य का विचार भी नहीं करता है।