केमद्रुम योग से धनवान निर्धन बनता हे .?–पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया
चन्द्र ज्योतिष महर्षियो ऐ मन का अधिपति माना गया हे, और आप की मानशिक विचारसारणी, बुध्धि, मानशिक वालाण, इन्छाओ विगेरे पर चन्द्र के प्रभाव हे , परिणाम चन्द्र जो शुभ और बलवान जरुरी होते हे , जो जातक के चन्द्र शुबहा हो तो शुभ विचारो और अच्छी सारी प्रकृति भी मिलती हे
जब चन्द्र अशुभ हो तो सब नष्ट प्रकृति भी हो जाता हे, और अशुभ विचारों भी आता हे, हरेक मनुष्य कर्मफल के बंधार्नमें जुड़े हुवे हे जेशे विचार जेशी इन्छाओ एशा ही फल मिलता हे जिश जातक के शुभ विचार हो शुभ इन्छाओ हो तो शुभ फल भी मिलता हे , इस में एक कहावत हे जेसा कर्म एषा परिणाम भी मिलता हे, ये इस जगत के शार्स्वत परिणाम हे जो कोय जातक किसी खता में चोरी करता हे जातक को पता हे कोय नही हे या में कोय गोलमाल करता हू किसी के पता नही चलता लेकिन भगवान को ही पता चलता हे तुर्ताज जाताक के उसका फल दे देता हे, किसी व्यक्ति एषा ही न माने में कुचा करता हू किसी को ही पता नही चलता लेकिन उसका फल तो तुर्ताज मिलजाता हे उसके पता व्यक्तिसे ही नही लगता के ये क्या हुवा हे, और ग्रहों के प्रभाव और प्रभाव वंश होने के बाद उसका फल मिलता हे,
इस शास्त्र मुलभुत रिते कर्मवाद की थियेरी के आधार पर हे, नशीबवाले प्रोत्सहन देता नही हे जब ज्योतिषियो वाही आगाही करता हे वाही आम कर्मफल के दर्शन होते हे, कर्म के मूल विचार इन्छा हे इन्छा के मूल कारक चन्द्र हे चन्द्र की स्थिति पर ही जातक की प्रकृति वर्तणुक सब मालूम हो जाता हे, समज में आजाता हे वाही केसे विचार और किश कारण से ही ये हवा हे सब पाटा चाल जाता हे, इस के अनुभव करके ही एक अनुभवी ज्योतिष फल बताता हे, ये वैग्नानिक हे , और ग्रहों के भरमान वैश्विक वतावरन से ही असर पर आधार रखता हे, इस पर जातक के मन पर असर करता हे, इस अशर के दिखता हे ये ज्योतिष शास्त्र हे ,
ज्योति ये हे प्रकाश ये खगोल मंडल ( निहारिका ) या अवकाश में रहेने वाला आबजो पूजो से ही अशर जनसकता हे , चन्द्र दुर्सित होते हे तब जातक के मानशिक अशांति व्यथा , लक्ष्मी ( धन ) व्यय और रझलपाट भार्या अस्थिर जीवन मिलता हे ,
ज्योतिष शास्त्र प्राचीन ग्रंथो में भी केमेंद्रुम योग दिया हवा हे , चन्द्र से दुशरे या बारमे स्थान में जब किसी शुभ ग्रह न होता हे तब केमेंद्रुम योग बनता हे ,
इस योग में जन्म लेनेवाला जातक निर्धन रहेता हे या बहुत महेनत कर के कमाता हे तो भी धन मिलता हे लेकिन कर्जा बहुत रहेता हे या वारसाय से भी मिलनेवाला धन भी इस जातक के पास रहेता नही हे, संजोगो जी झपट में सब गुमाँ देता हे , जिश जातक की कुंडली में जो केमेंद्रुम योग होता हे और दुश्ररा योग जो लक्ष्मी योग या राज योग से भी मिलनेवाला धन भी इस के पास टिक ता नही हे , आखिर तक जब तक केमेंद्रुम योग के टाइम तक ये जातक निर्धन ही रहेता हे,
दाखला. :- एक बड़ा बिजनेश मेंन दादा पर दादा से ही बहुत गर्भ श्रीमत था इस की कुंडली में केमेंद्रुम योग था तब बताया था आप को इस दिनक से इस दिनक तक बहुत खियाल रखना पड़ेगा नही वत सब खतम होने से बहुत आर्थिक नुकशानी के फंदे फसा जाओगे वाही जातक जब पहेले से ही गोल्ड बाजार शेर बाजार और तेल बाजार में शुरू शरू में जब दुश्ररा ग्रहों और योग के खातिर बहुत अच्छा रूपया कमाया और जब केमेंद्रुम योग की शुरू आत हुय तो तो थोडा थोडा कर के सब कुछ खतम कर दिया आज बहुत गरीब आदमी बना दिया हे जब केमेंद्रुम योग के टाइम खत्म हो चूका तो बाद में जातक के नजिक के सबंधी की सहाय से विदेश में चला गया हे और फिर सुधरने लगा हे,
एक टेक्षटाइल मिलर की कुंडली में भी केमेंद्रुम योग था तब बताया था के साहेब आप इस दिनक से इस दिनक तक बहुत खियाल रखना जरुरी हे, तब एक तरफ मार्केट में मंदी के पराक्रम शुरू हुवा कहासे भी इस के माल के निकाल होना बंध कचे माल के बहुत भरवा हो चूका था और कर्ज बहुत चाड चूका था जब मंदी बहुत आगे चली गय तब जातक के विचार आया कर्ज से ही मुक्त लेने के लिए सब काचा माल बिक दिया और सांचा भी बेच दिया तो भी कर्ज से मुक्त न हुवा और सब मिल्कत बिक्दिया हे और आज दूसरे के कारखाना पे नोकरी करता हे,
केमेंद्रुम योग सेम जब तक चन्द्र की आस पास के स्थानों में पाप ग्रहों बिराजमान होता हे , पाप ग्रहों वही हे शनि , राहू , केतु , मगल , इस में से कोय भी ग्रह बिराजमान होने से पापकर्तरी योग बनता हे, इस योग में जो पैदा होनेवाला जातक बहुत निर्धनता के सामना करना पड़ता हे , इस में निर्धनता एशी होती हे इस में रोग , शत्रु और मानशिक कष्ट भी सहन कराता हे , इस लिए चन्द्र के पापकर्तरी योग ने भी केमद्रुम योग से बहुत जयादा आशुभ मन्ना पड़ता हे , इस लिए कहां जाता हे वही मन , वचन और कर्म पर जयादा अशर करके ही दुःख पैदा करता हे………………
जय द्वारकाधीश ………, जय श्रीकृष्णा……. , हर हर महादेव ………
चन्द्र ज्योतिष महर्षियो ऐ मन का अधिपति माना गया हे, और आप की मानशिक विचारसारणी, बुध्धि, मानशिक वालाण, इन्छाओ विगेरे पर चन्द्र के प्रभाव हे , परिणाम चन्द्र जो शुभ और बलवान जरुरी होते हे , जो जातक के चन्द्र शुबहा हो तो शुभ विचारो और अच्छी सारी प्रकृति भी मिलती हे
जब चन्द्र अशुभ हो तो सब नष्ट प्रकृति भी हो जाता हे, और अशुभ विचारों भी आता हे, हरेक मनुष्य कर्मफल के बंधार्नमें जुड़े हुवे हे जेशे विचार जेशी इन्छाओ एशा ही फल मिलता हे जिश जातक के शुभ विचार हो शुभ इन्छाओ हो तो शुभ फल भी मिलता हे , इस में एक कहावत हे जेसा कर्म एषा परिणाम भी मिलता हे, ये इस जगत के शार्स्वत परिणाम हे जो कोय जातक किसी खता में चोरी करता हे जातक को पता हे कोय नही हे या में कोय गोलमाल करता हू किसी के पता नही चलता लेकिन भगवान को ही पता चलता हे तुर्ताज जाताक के उसका फल दे देता हे, किसी व्यक्ति एषा ही न माने में कुचा करता हू किसी को ही पता नही चलता लेकिन उसका फल तो तुर्ताज मिलजाता हे उसके पता व्यक्तिसे ही नही लगता के ये क्या हुवा हे, और ग्रहों के प्रभाव और प्रभाव वंश होने के बाद उसका फल मिलता हे,
इस शास्त्र मुलभुत रिते कर्मवाद की थियेरी के आधार पर हे, नशीबवाले प्रोत्सहन देता नही हे जब ज्योतिषियो वाही आगाही करता हे वाही आम कर्मफल के दर्शन होते हे, कर्म के मूल विचार इन्छा हे इन्छा के मूल कारक चन्द्र हे चन्द्र की स्थिति पर ही जातक की प्रकृति वर्तणुक सब मालूम हो जाता हे, समज में आजाता हे वाही केसे विचार और किश कारण से ही ये हवा हे सब पाटा चाल जाता हे, इस के अनुभव करके ही एक अनुभवी ज्योतिष फल बताता हे, ये वैग्नानिक हे , और ग्रहों के भरमान वैश्विक वतावरन से ही असर पर आधार रखता हे, इस पर जातक के मन पर असर करता हे, इस अशर के दिखता हे ये ज्योतिष शास्त्र हे ,
ज्योति ये हे प्रकाश ये खगोल मंडल ( निहारिका ) या अवकाश में रहेने वाला आबजो पूजो से ही अशर जनसकता हे , चन्द्र दुर्सित होते हे तब जातक के मानशिक अशांति व्यथा , लक्ष्मी ( धन ) व्यय और रझलपाट भार्या अस्थिर जीवन मिलता हे ,
ज्योतिष शास्त्र प्राचीन ग्रंथो में भी केमेंद्रुम योग दिया हवा हे , चन्द्र से दुशरे या बारमे स्थान में जब किसी शुभ ग्रह न होता हे तब केमेंद्रुम योग बनता हे ,
इस योग में जन्म लेनेवाला जातक निर्धन रहेता हे या बहुत महेनत कर के कमाता हे तो भी धन मिलता हे लेकिन कर्जा बहुत रहेता हे या वारसाय से भी मिलनेवाला धन भी इस जातक के पास रहेता नही हे, संजोगो जी झपट में सब गुमाँ देता हे , जिश जातक की कुंडली में जो केमेंद्रुम योग होता हे और दुश्ररा योग जो लक्ष्मी योग या राज योग से भी मिलनेवाला धन भी इस के पास टिक ता नही हे , आखिर तक जब तक केमेंद्रुम योग के टाइम तक ये जातक निर्धन ही रहेता हे,
दाखला. :- एक बड़ा बिजनेश मेंन दादा पर दादा से ही बहुत गर्भ श्रीमत था इस की कुंडली में केमेंद्रुम योग था तब बताया था आप को इस दिनक से इस दिनक तक बहुत खियाल रखना पड़ेगा नही वत सब खतम होने से बहुत आर्थिक नुकशानी के फंदे फसा जाओगे वाही जातक जब पहेले से ही गोल्ड बाजार शेर बाजार और तेल बाजार में शुरू शरू में जब दुश्ररा ग्रहों और योग के खातिर बहुत अच्छा रूपया कमाया और जब केमेंद्रुम योग की शुरू आत हुय तो तो थोडा थोडा कर के सब कुछ खतम कर दिया आज बहुत गरीब आदमी बना दिया हे जब केमेंद्रुम योग के टाइम खत्म हो चूका तो बाद में जातक के नजिक के सबंधी की सहाय से विदेश में चला गया हे और फिर सुधरने लगा हे,
एक टेक्षटाइल मिलर की कुंडली में भी केमेंद्रुम योग था तब बताया था के साहेब आप इस दिनक से इस दिनक तक बहुत खियाल रखना जरुरी हे, तब एक तरफ मार्केट में मंदी के पराक्रम शुरू हुवा कहासे भी इस के माल के निकाल होना बंध कचे माल के बहुत भरवा हो चूका था और कर्ज बहुत चाड चूका था जब मंदी बहुत आगे चली गय तब जातक के विचार आया कर्ज से ही मुक्त लेने के लिए सब काचा माल बिक दिया और सांचा भी बेच दिया तो भी कर्ज से मुक्त न हुवा और सब मिल्कत बिक्दिया हे और आज दूसरे के कारखाना पे नोकरी करता हे,
केमेंद्रुम योग सेम जब तक चन्द्र की आस पास के स्थानों में पाप ग्रहों बिराजमान होता हे , पाप ग्रहों वही हे शनि , राहू , केतु , मगल , इस में से कोय भी ग्रह बिराजमान होने से पापकर्तरी योग बनता हे, इस योग में जो पैदा होनेवाला जातक बहुत निर्धनता के सामना करना पड़ता हे , इस में निर्धनता एशी होती हे इस में रोग , शत्रु और मानशिक कष्ट भी सहन कराता हे , इस लिए चन्द्र के पापकर्तरी योग ने भी केमद्रुम योग से बहुत जयादा आशुभ मन्ना पड़ता हे , इस लिए कहां जाता हे वही मन , वचन और कर्म पर जयादा अशर करके ही दुःख पैदा करता हे………………
जय द्वारकाधीश ………, जय श्रीकृष्णा……. , हर हर महादेव ………