विक्रय अधिकारियों( मार्केटिंग मेनेजर) का कक्ष ओर वास्तुशास्त्र—- 
जब भी किसी भवन/मकान/आवास/कार्यालय का निर्माण किया जाए तब उसमें वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का भलीभांति पालन करना चाहिए चाहे वह निवास स्थान हो या व्यवसायिक परिसर है। किसी भी व्यावसायिक संगठन का मूलाधार प्रबंधन है, तो व्यवसाय की प्राण ऊर्जा विपणन में निहित है। उदाहरण के लिए किसी कारखाने में किसी खास वस्तु का ठीक-ठाक उत्पादन हो रहा हो, उत्पादन हेतु उचित मात्रा में पूंजी निवेश भी किया गया हो, उत्पाद की गुणवत्ता भी उत्तम श्रेणी की हो, इसके उत्पादन में लगे हुए कर्मचारी भी ठीक से काम कर रहे हों, मंगर उत्पाद का बाजार में वितरण उचित ढंग से नहीं हो रहा हो, तो भुगतान भी समय पर नहीं आ पाएंगे। इस तरह बाकी कार्य सुचारु रूप से नहीं होंगे। ऐसे में वितरण से जुडे़ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को उत्साहित एवं ऊर्जान्वित करना जरूरी हो जाता है, ताकि उनकी दक्षता बढ़ सके।
यह नियम छोटी से छोटी दुकान से लेकर बड़े से बड़े व्यावसायिक संगठन पर लागू होता है। वास्तुशास्त्र विषिश्ट कार्य प्रयोजन हेतु विशिष्ट स्थान की ऊर्जा को संतुलित रखने का विज्ञान है। यह एक सच्चाई है कि एक व्यक्ति निरंतर यदि पूर्व की ऊर्जा ग्रहण करता रहे और एक अन्य व्यक्ति निरंतर पश्चिम की, तो दोनों की ऊर्जा, कार्यक्षमता, कार्यशैली, आचरण व्यवहार आदि में व्यापक अंतर होता है। 
     वास्तुशास्त्र की दृश्टि से विपणन से जुडे़ कर्मचारियों के लिए कार्यालय या दुकान में उत्तर-पश्चिम दिशा उपयुक्त रहती है। विपणन से जुडे़ लोगों का व्यवहार मृदुल, उत्साहपूर्ण तथा लाभकारी रहना आवश्यक होता है, उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह न सिर्फ मालिक का बल्कि ग्राहकों का पूरा-पूरा ध्यान रखेगा। प्रतिस्पर्धा के मौजूद दौर में हर संगठन के लिए लाभकारी व्यवसाय नितांन आवश्यक है और उसके कर्मचारी ही इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होते हैं। 
       वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पश्चिम दिषा व्यक्ति के शरीर में अवस्थित सात चक्रों में से अनाहत चक्र को ऊर्जान्वित करती है। अनाहत चक्र की ऊर्जा संतुलित होने के फलस्वरूप व्यक्ति की प्रवृत्तियों में व्यवहार कुशलता, सद्भावना एवं सहअस्तित्व की भावना का विकास होता है। आमतौर पर यह उम्मीद की जाती है कि एक विक्रय प्रतिनिधि में ये सभी गुण हों। वैसे कार्यालय में उत्तर दिशा का स्थान खुला हुआ होना बेहद अच्छा माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि विक्रय अधिकारियों का कक्ष तो उत्तर-पश्चिम दिशा में हो, लेकिन उस कक्ष का दरवाजा उत्तर दिशा में खुले, तो श्रेयस्कर रहता है।
         किसी कारणवश यदि उत्तर दिशा में दरवाजे के लिए जगह नहीं हो, तो इस दिशा में कम से कम खिड़की की व्यवस्था जरूर करनी चाहिए। इसके अलावा विक्रय प्रतिनिधि यदि अपना मुंह उत्तर की ओर करके बैठें, तो उनके तथा संस्थान दोनों के लिए बेहद अच्छा रहता है। इन साधारण किंतु चमत्कारिक वास्तुशास्त्र सिद्धांतों के आधार पर यदि विक्रय अधिकारियों का कक्ष का निर्माण किया जाऐ तो उत्तरोतर प्रगति संभव है। 


 पं. दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0 — .
 E-Mail –    vastushastri08@yahoo.com,  
              -vastushastri08@rediffmail.co

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