जानिए उत्तराखंड  के नवोदित मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत  का परिचय—


जानिए कौन हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत  ?


त्रिवेंद्र सिंह रावत दो दशकों तक आरएसएस के प्रचारक रहे हैं. रावत साल …4 के बाद से ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीब आ गए. पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के भी वो बेहद करीबी हैं. खबरों के मुताबिक त्रिवेंद्र रावत का मुख्यमंत्री के लिए नाम भी कोश्यारी ने ही आगे बढ़ाया |


रावत राज्य में भाजपा के पांचवें मुख्यमंत्री हैं. पार्टी ने उत्तराखंड में अपनी पहली सरकार साल 2000 में बनाई थी, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर यह राज्य बना था. नित्यानंद स्वामी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे. त्रिवेंद्र सिंह रावत को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का करीबी माना जाता है. 2014 के लोकसभा के दौरान रावत ने शाह के साथ काम किया था. मंत्री के रूप में उन्हें कई वर्षों का अनुभव है. उनका नाम बीजेपी नेता प्रकाश पंत ने प्रस्तावित किया था. सतपाल महाराज ने भी उनके नाम पर हामी भरी थी. हालांकि ये दोनों नेता भी सीएम पद की रेस में थे. रावत प्रदेश के नौवें मुख्यमंत्री होंगे |


श्री रावत ने शनिवार ( 18 March: 2017 ) को दोपहर तीन बजे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए. रावत ने राज्य के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इसके अलावा, सतपाल महाराज, प्रकाश पंत, हरक सिंह रावत ने भी मंत्री पद की शपथ ली.मदन कौशिक ने भी मंत्री पद की शपथ ली. कौशिक हरिद्वार से विधायक हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य ने भी मंत्री पद की शपथ ली. अरविंद पांडे ने भी मंत्री पद की शपथ ली. सुबोध उनियाल को भी सरकार में शामिल किया है. विजय बहुगुणा के करीबी माने जाते हैं. सोमेश्वर सीट से 710 वोटों से जीत दर्ज करने वाली रेखा आर्य को भी मंत्री बनाया गया है. श्रीनगर से पहली बार विधायक बने धन सिंह रावत को भी मंत्रीमंडल में जगह दी गई है | इससे पहले शुक्रवार को बीजेपी के विधायक दल की बैठक में त्रिवेंद्र सिंह रावत को विधायक दल का नेता चुन लिया गया |


झारखंड में बीजेपी की सरकार बनवाने में रावत की बड़ी भूमिका-


त्रिवेंद्र सिंह रावत को जमीनी स्तर का नेता माना जाता है. 57 साल के रावत 1979 से संघ से जुड़े रहे हैं. रावत का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से रिश्ता उनके मुख्यमंत्री बनने में अहम माना जा रहा है. इससे पहले साल 201. में वो बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव रह चुके हैं. 2007 में वो उत्तराखंड में बीजेपी सरकार में कृषि और शिक्षा मंत्री रहे. माना जाता है कि अक्टूबर 2014 में झारखंड में बीजेपी की सरकार बनवाने में उनकी बड़ी भूमिका थी |


20 दिसंबर 1960 को खैरासैण गांव में हुआ था जन्म—


57 साल के त्रिवेन्द्र सिंह रावत का जन्म 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी गढ़वाल के मल्ला बदलपुर पट्टी के गांव खैरासैण में हुआ था. उनके पिता का नाम स्व. प्रताप सिंह रावत जबकि मां का नाम स्व. बोद्धा देवी है. त्रिवेन्द्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत एक सरकारी टीचर हैं. आपको बता दें कि रावत को दो बेटियां हैं |


RSS में स्वयं सेवक के रूप भूमिका:-
– 1979 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने.
– 1981 में संघ के प्रचारक के रुप कार्य करने का संकल्प लिया.
– 1985 में देहरादून महानगर के प्रचारक बने |


राजनीतिक जीवन:–
त्रिवेंद्र सिंह रावत पहली बार साल 2002 में डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे. साल 2007 में दूसरी बार डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से रावत ने 14127 मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल की और तात्कालिक सीएम भुवनचन्द्र खण्डूरी की कैबिनेट में कृषि और लघु सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री के रूप में अपने दायित्वों का निवर्हन किया. इसके बाद वह उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल के मंत्रिमण्डल में दोबारा कैबिनेट मंत्री बनें |


– 1993 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री बने.
– साल 1997 से 2002 तक प्रदेश के संगठन मंत्री बने और इस दौरान सम्पन्न सभी विधानसभा, लोकसभा और विधान परिषद चुनाव में बीजेपी को अभूतपूर्व सफलता मिली.
– साल 2013 में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को राष्ट्रीय सचिव और टेक्नोक्रेट सेल का प्रभारी बनाया.
– साल 2017 में रावत ने तीसरी बार डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से 24869 मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल की |
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कभी गुस्सा नहीं आता—-
त्रिवेंद्र रावत की पत्नी सुनीता रावत ने कहा कि उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ हर जिम्मेदारी को निभाया है, वह आठ भाईयों में से सबसे छोटे हैं, उन्हें पूरे परिवार को सहयोग मिला है. सुनीता ने कहा कि त्रिवेंद्र साधारण खाना खाते हैं, बड़े धैर्यवान हैं उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता है. वह हमेशा राज्य के हित में काम करेंगे.


सेना से खासा लगाव–
त्रिवेंद्र सिंह रावत पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लाक के खैरासैण गांव के रहने वाले हैं. यहां साल 1960 में प्रताप सिंह रावत और भोदा देवी के घर त्रिवेन्द्र सिंह का जन्म हुआ. त्रिवेंद्र रावत के पिता प्रताप सिंह रावत सेना की रुड़की कोर में सेवा दे चुके हैं. रावत का सेना से खासा लगाव है. उन्होंने कई शहीद सैनिकों की बेटियों को गोद ले रखा है. वह सेना और भूतपूर्व सैनिकों से जुड़े कार्यक्रम में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.


नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे—
त्रिवेंन्द्र रावत की पत्नी सुनीता स्कूल टीचर हैं और उनकी दो बेटियां हैं. त्रिवेंद्र सिंह नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. रावत की शुरुआती पढ़ाई खैरासैण में ही हुई. त्रिवेन्द्र ने कक्षा 10 की पढ़ाई पौड़ी जिले के सतपुली इंटर कॉलेज और 12वीं की पढ़ाई एकेश्वर इंटर कॉलेज से हासिल की. शुरू से ही शांत स्वभाव वाले त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने लैंसडाउन के जयहरीखाल डिग्री कॉलेज से स्नातक और गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातकोत्तर की डिग्री की. श्रीनगर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए करने के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत 1984 में देहरादून चले गए. यहां भी उन्हें RSS में अहम पदों की जिम्मेदारी सौंपी गई.


2002 में पहली बार बने विधायक–
देहरादून में संघ प्रचारक की भूमिका निभाने के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मेरठ का जिला प्रचारक बनाया गया. जहां उनके काम से संघ इतना प्रभावित हुआ कि इन्हें उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के विरेंद्र मोहन उनियाल के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया गया. 2002 में रावत ने डोईवाला से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2007 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा ने रावत पर भरोसा जताया और वह राज्य विधानसभा पहुंचने में सफल हुए.


उथल-पुथल भरा रहा राजनीतिक सफर–
रावत साल 2012 में अपनी परंपरागत सीट डोईवाला छोड़कर रायपुर से चुनाव लड़े, लेकिन यहां उन्हें कांग्रेस के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद हरिद्वार से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक ने डोईवाला सीट छोड़ी, तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत फिर से इस विधानसभा सीट से कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट के खिलाफ उपचुनाव में मैदान में उतरे, लेकिन फिर से उन्हें इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा. 2017 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक बार फिर से डोईवाला विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरे और इस बार उन्होंने कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को करारी हार दी.


मोदी और शाह के करीबी—
रावत संघ के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. मोदी एवं शाह के नजदीकी होने और संघ के भरोसेमंद स्वयंसेवक होने के कारण त्रिवेंद्र रावत आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं. पार्टी संगठन को हमेशा से त्रिवेन्द्र सिंह रावत की नेतृत्व क्षमता पर पूरा भरोसा रहा. लिहाजा उनको पार्टी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया. साथ ही झारखंड़ जैसे राज्य का प्रभारी और लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के सहप्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया |




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