आइये जाने व्यवसाय एवं नौकरी के योग और कब होगा प्रमोशन/उन्नति…???
षष्ठम भाव का स्वामी बलवान हो, षष्ठेश उच्च का हो या त्रिकोण में हो तो व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करता है। छठे भाव स्थित ग्रह या षष्ठेश स्वगृही या उच्च का होता है, तो जातक सरकारी एवं बड़ी कंपनी में नौकरी करने वाला होगा।
——-दसवें, ग्यारहवें और छठे स्थान के ग्रहों का परिवर्तन व्यक्ति को विदेश में उच्च पद दिलाता है। दशम भाव में शनि उच्च या स्वग्रही होने पर व्यक्ति की उन्नति होती है।
——-बलवान सूर्य दशम भाव में रहकर सरकारी नौकरी कराता है। दशम भाव में सूर्य की दृष्टि भी सरकारी नौकरी का योग बनाती है।
——लग्न या चतुर्थ स्थान का गुरू सरकारी नौकरी के योग बनाता है। यदि दशमेश लाभ स्थान में है, तो भी जातक सरकारी नौकरी करेगा।
——कारकांश कुंडली में सूर्य स्थित हो, तो जातक सरकारी नौकरी करता है।
——दशम भाव में सूर्य+शनि की युति पायलेट या मैनेजमेंट में कार्य करने का सूचक है।
——-दशम भाव में चंद्र+मंगल की युति जातक को रंग-रसायन के कार्य करने को प्रेरित करती है।
——-दशम भाव में गुरू या गुरू की दृष्टि प्रोफेसर के कार्य में रूचि को दर्शाती है।
——-षष्ठेश+दशमेश का युति, प्रतियुति या दृष्टि संबंध व्यक्ति से कोर्ट-कचेरी का काम कराता है।
——-उच्च, स्वगृही मंगल सेना में उच्च पद दिलाता है। दशम भाव में मंगल या मंगल की दृष्टि हो तो व्यक्ति फौज या पुलिस विभाग में नौकरी करता है।
——-दशम भाव में चंद्र या दशमेश चंद्र जमीन या जल से संबंधित कार्य कराता है। चंद्र प्रभाव वाले व्यक्ति कैशियर बनते हैं।
——-लाभेश और लाभ स्थान स्थित ग्रह उच्च, स्वग्रही हो, तो जातक विदेश में नौकरी करता है।
——-दशम, षष्ठम और एकादश भाव के ग्रहों का परिवर्तन योग जातक को विदेश में उच्च पद दिलाता है।
——-द्वितीय स्थान में स्थित ग्रह या द्वितीयेश उच्च का या स्वग्रही होता है, तो जातक को उच्च पद, मान-सम्मान मिलता है।
——दशमेश द्वादश भाव में हो तो व्यक्ति नौकरपेशा ही होगा। दशम भाव में शनि या शनि की दृष्टि ही व्यक्ति को जीवनभर नौकरी कराती है। चाहे वह क्लार्क हो या आई.ए.एस. अधिकारी।
‘प्रथमं नवमं चैव धनमित्युच्यते बुधै:’।
- लग्नेश एवं चंद्रमा, दोनों केतु के साथ हों और मारकेश से युत या दृष्ट हों।
- लग्नेश पाप ग्रह के साथ छठे, आठवें या 12 वें स्थान में मौजूद हो।
- पंचमेश एवं नवमेश षष्ठ या अष्टम भाव में हों।
- लग्नेश, पंचमेश या नवमेश का त्रिकेश के साथ परिवर्तन हो।
- लग्नेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी त्रिक स्थान में मारकेश के साथ हो।
- कुंडली में भाग्येश ही अष्टमेश या पंचमेश ही षष्ठेश हो और वह व्ययेश से युत या दृष्ट हो।
- जातक की कुंडली में केमद्रुम, रेका, दरिद्री, या भिक्षुक योग हो।
- लग्नेश षष्ठभाव में और षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो तथा वह मारकेश से दृष्ट हो।
ऊं श्रीं गीं तर्जनीभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गीं शिरसे स्वाहा।
ऊं श्रीं गूं मध्यमाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गूं शिखायै वषट्।
ऊं श्रीं गैं अनामिकाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गैं कवचाय हुम्।
ऊं श्रीं गौं कनिष्ठकाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऊं श्रीं ग: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। ऊं श्रीं ग: अस्त्रायं फट्।
धृताब्जयालिंगितमब्धिपु˜या लक्ष्मीगणोशं कनकाभमीडे ।।
- पूजन में लाल चंदन, दूर्वा, रक्तकनेर, कमल के पुष्प, मोदक एवं पंचमेवा अर्पित किए जाते हैं।
- भक्ति भाव से पूजन, मनोयोगपूर्वक जप एवं श्रद्धा सहित हवन करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
- अनुष्ठान के दिनों में गणपत्यथर्वशीर्षसूक्त, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त कनकधारास्तोत्र आदि का पाठ करना फलदायक है।
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इन योग से आपको मिलेगा नोकरी/व्यवसाय में प्रमोशन-उन्नति—
सफलता किसके चरण चूमती है. और कब कोई उन्नति के शिखर पर पहुंचता है. इसे ज्योतिष से सरलता से ज्ञात किया जा सकता है. इसमे उन्नति के समय का निर्धारण किया जाता है.
1. तीन वर्ग कुण्डलियां: —-
जन्म कुण्डली जीवन की सभी सूचनाओं का चित्र है. मोटी मोटी बातों को जानने के लिये जन्म कुन्डली को देखने से प्रथम दृ्ष्टि मे ही जानकारी हो जाती है. सूक्ष्म अध्ययन के लिये नवांश कुण्डली को देखा जाता है. व्यवसाय मे उन्नति के काल को निकालने के लिये दशमांश कुण्डली की विवेचना भी उतनी ही आवश्यक हो जाती है (The Dashamsh kundali is important in predicting career prospects). इन तीनों कुण्डलियों में दशम भाव दशमेश का सर्वाधिक महत्व है.
तीनों वर्ग कुण्डलियों से जो ग्रह दशम/एकादश भाव या भावेश विशेष संबध बनाते है. उन ग्रहों की दशा, अन्तरदशा में उन्नति मिलने की संभावना रहती है . कुण्डलियों में बली ग्रहों की व शुभ प्रभाव के ग्रहों की दशा मे भी प्रमोशन मिल सकता है. एकादश घर को आय की प्राप्ति का घर कहा जाता है. इस घर पर उच्च के ग्रह का गोचर लाभ देता है.
2. पद लग्न से : —-
पद लग्न वह राशि है जो लग्नेश से ठीक उतनी ही दूरी पर स्थित है. जितनी दूरी पर लग्न से लग्नेश है. पद लग्न के स्वामी की दशा अन्तरदशा या दशमेश/ एकादशेस का पद लग्न पर गोचर करना उन्नति के संयोग बनाता है. पद लग्न से दशम / एकादश भाव पर दशमेश या एकादशेस का गोचर होने पर भी लाभ प्राप्ति की संभावना बनती है.
3. महत्वपूर्ण दशाएं: —–
ऋषि पराशर के अनुसार लग्नेश, दशमेश व उच्च के ग्रहों की दशाएं व्यक्ति को सफलता देती है. इन दशाओं का संबध व्यवसाय के घर या आय के घर से होने से आजीविका में वृ्द्धि होती है. इन दशाओं का संबध यदि सप्तम या सप्तमेश से हो जाये तो सोने पे सुहागे वाला फल समझना चाहिए.
4. दशमेश नवांश में जिस राशि मे जाये उसके स्वामी से संबन्ध: —-
जन्म कुण्डली के दशवें घर का स्वामी नवांश कुण्डली में जिस राशि में जाये उसके स्वामी के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय व उसपर बली ग्रह की दशा/ गोचर उन्नति के मार्ग खोलता है. इन ग्रहों की दशा में व्यक्ति को अपनी मेहनत में कमी न करते हुए अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए. उन्नति के समय में आलस्य व्यक्ति को मिलने वाले शुभ फलों में कमी का कारण बन सकता है.
5. गोचर: ——
आजीविका और कैरियर के विषय में दशम भाव को देखा जाता है.दशम भाव अगर खाली है तब दशमेश जिस ग्रह के नवांश में होता है उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है.द्वितीय एवं एकादश भाव में ग्रह अगर मजबूत स्थिति में हो तो वह भी आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार व्यक्ति की कुण्डली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है तो यह आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाओं का दर्शाता है.दशमांश अगर षष्टम, अष्टम द्वादश भाव में हो अथवा कमज़ोर हो तो यह रोजी रोजगार के संदर्भ में कठिनाई पैदा करता है.
जैमिनी पद्धति के अनुसार व्यक्ति के कारकांश कुण्डली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र होता है तो व्यक्ति राजकीय पक्ष से सम्बन्धित कारोबार करता है अथवा सरकारी विभाग में नौकरी करता है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न स्थान में हो और शुक्र उसे देखता हो तो इस स्थिति में अध्यापन के कार्य में सफलता और कामयाबी मिलती है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न में होता है और बुध उसे देखता है तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में कैरियर की बेहतर संभावनाओं को दर्शाता है.कारकांश में मंगल के लग्न स्थान पर होने से व्यक्ति अस्त्र, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की ऊँचाईयों को छूता है.कारकांश लग्न में जिस व्यक्ति के बुध होता है वह कला अथवा व्यापार को अपनी आजीविका का माध्यम बनता है तो आसानी से सफलता की ओर बढ़ता है.कारकांश में लग्न स्थान पर अगर शनि या केतु है तो इसे सफल व्यापारी होने का संकेत समझना चाहिए.सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति रसायनशास्त्री अथवा चिकित्सक हो सकता है.
ज्योतिष विधान के अनुसार कारकांश से तीसरे, छठे भाव में अगर पाप ग्रह स्थित हैं या उनकी दृष्टि है तो इस स्थिति में कृषि और कृषि सम्बन्धी कारोबार में आजीविका का संकेत मानना चाहिए.कारकांश कुण्डली में चौथे स्थान पर केतु व्यक्ति मशीनरी का काम में सफल होता है.राहु इस स्थान पर होने से लोहे से कारोबार में कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा अगर लग्न स्थान से पंचम स्थान पर होता है और गुरू एवं शुक्र से दृष्ट या युत होता है तो यह लेखन एवं कला के क्षेत्र में उत्तमता दिलाता है.
कारकांश में लग्न से पंचम स्थान पर मंगल होने से व्यक्ति को कोर्ट कचहरी से समबन्धित मामलों कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली के सप्तम भाव में स्थित होने से व्यक्ति शिल्पकला में महारत हासिल करता है और इसे अपनी आजीविका बनाता है तो कामयाब भी होता है.करकांश में लग्न से पंचम स्थान पर केतु व्यक्ति को गणित का ज्ञाता बनाता है.
—–व्यापर में उन्नति का अचूक टोटका—-शनिवार का दिन छोड़कर किसी भी दूसरे दिन एक पीपल का पत्ता लेकर गंगाजल से धोकर उस पर केसर से तीन बार ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय नम: लिखकर पत्ते को पूजा स्थल पर रख लें। इसकी रोज पूजा करें व धूप-दीप दिखाएं। 21 दिन बाद यह पत्ता ले जाकर अपने व्यापार-व्यवसाय स्थल या ऑफिस में किसी ऐसी जगह रखें जहां किसी की नजर इस पर न पड़े। आपका व्यवसाय लगातार उन्नति करने लगेगा।