आइये जाने व्यवसाय एवं नौकरी के योग और कब होगा प्रमोशन/उन्नति…???

आपकी जन्म कुंडली में व्यवसाय या नौकरी के योग—
नौकरी या व्यवसाय का चयन व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर करता है। सफलता भी इंसान की योग्यता और उसकी मेहनत पर निर्भर होती है। मेहनती और पढ़े-लिखे होने के साथ यदि आप ज्योतिष के आधार पर यह जानना चाहें कि आपका कार्य क्षेत्र कौनसा होगा अर्थात कैसी नौकरी मिलेगी, इन योगों के आधार पर समझ सकते हैं-

आजीविका का निर्धारण व्यक्ति की योग्यता शिक्षा, अनुभव से तो होता ही है, उसकी कुंडली में बैठे ग्रह भी प्रभाव डालते हैं। चंद्र, सूर्य या लग्न इनमें से जो भी ग्रह कुंडली में अधिक बली होता है, उससे दशम भाव में जो भी राशि पड़ती है, उस राशि का स्वामी जिस नवमांश में है, उस राशि के स्वामी ग्रह के गुण, स्वभाव तथा साधन से जातक धन प्राप्त करता है। जैसे- दशम भाव की राशि का स्वामी नवमांश में यदि कर्क राशि में स्थित है, तो व्यक्ति चंद्र ग्रह से संबंधित कार्य करेगा। ऎसा भी हो सकता है कि दशम भाव में कोई ग्रह नहीं हो, तो दशमेश ग्रह के अनुसार व्यक्ति व्यवसाय करेगा। साथ बैठे अन्य ग्रहों का प्रभाव भी व्यक्ति के व्यवसाय पर पड़ना संभव है।

इन ज्योतिष योग से मिलेगी व्यापार अथवा नौकरी—-
जब आप कैरियर के विषय में निर्णय लेते हैं उस समय अक्सर मन में सवाल उठता है कि व्यापार करना चाहिए अथवा नौकरी. ज्योतिष विधान के अनुसार अगर कुण्डली में द्वितीय, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव और उन में स्थित ग्रह कमजोर हैं तो आपको नौकरी करनी पड़ सकती है. इन भावों में अगर ग्रह मजबबूत हैं तो आप व्यापार सकते हें.
—–जातक का लग्न यदि स्थिर राशि [., 5, 8, .1] का है, तो व्यक्ति स्थिर आमदनी वाला व्यवसाय करता है। बलवान लग्नेश शारीरिक शक्ति, हिम्मत, जोश से व्यवसाय कराता है। बलवान सूर्य आत्म विश्वास की क्षमता बढ़ाता है। बुध बलवान होकर कार्य क्षमता में उन्नति के विचार की शक्ति देता है। स्थिर राशि का चंद्र स्थिर व्यापार कराने में विशेष सहायक होता है। 
——-चर राशि के चंद्रमा वाले लोग बार-बार व्यवसाय व्यापार में पैसा फंसाकर व्यवसाय बदलते हैं। राशि [., 7, 11] लग्न वाले लोगों को जनसंपर्क वाले व्यवसाय नहीं करने चाहिए, क्योंकि ऎसे व्यक्ति को जल्दी गुस्सा आता है। 
——–इसी प्रकार जल तत्व राशि [4, 8, 12] लग्न वाले व्यक्ति को भी व्यवसाय के झंझट में नहीं फंसना चाहिए, क्योंकि ऎसा व्यक्ति अपने व्यवहार के कारण व्यवसाय में नाकाम रहता है। व्यवसाय की सफलता तब ही संभव होती है, जब 2, 9, 1., 11 भाव के स्वामी कुंडली में त्रिक भाव [6, 8, 12] में निर्बल, अशुभ, पापयुक्त या पापकर्लरी योग में नहीं हों। कर्म स्थान का ग्रह उच्च का हो, तो स्वतंत्र व्यवसाय से आय संभव है। बलवान सूर्य भी स्वतंत्र व्यवसाय दर्शाता है। 
——-पंचमेश उच्च, त्रिकोण स्थान में होने पर व्यक्ति ने जिस विषय की पढ़ाई की है, उसी से संबंधित व्यवसाय करता है। पंचम स्थान में यदि उच्च का ग्रह है, तो व्यक्ति रेस, लॉटरी, जुआ-सट्टे से धन कमाता है। लाभेश उच्च या त्रिकोण स्थान में होता है, तो विदेशी वस्तुओं से लाभ संभव है।
——दशम भाव में चंद्र-शुक्र की युति होने पर व्यक्ति जवाहरात का व्यवसाय करता है। चंद्र-शनि की युति खनिज पदार्थ का व्यवसाय करना भी दर्शाता है। प्रवास कारक चंद्र, व्यवसाय कारक बुध की युति ट्रेवल संबंधी व्यवसाय कराती है। 
——चंद्र, बुध का संबंध 3, 7, 9 भाव से हो और गुरू बलवान हो, तो ट्रेवल एजेंसी का कार्य संभव है। उच्च का चंद्र व्यक्ति को एजेंट बनाता है। केंद्र में शनि और मंगल की युति व्यक्ति को उद्योगपति बनाती है। यदि मंगल, शनि, शुक्र कुंडली में उच्च के होते हैं, तो सौंदर्य प्रसाधन एवं विदेशी महंगी चीजों से संबंधित उत्पादन का व्यवसाय कराती हैं। 
——-मंगल और राहु की युति शुभ भाव में हो, तो व्यक्ति कम समय में अकल्पित कमाई शीघ्रता से करता है। कुंडली में बुध, शनि ग्रह उच्च के हों और मंगल रूचक योग बने, तो व्यक्ति अच्छा लेखक, मंत्री, पत्रकार बन सकता है। उच्च का शुक्र और नेपच्युन मेडिकल, विदेशी वस्तु, ब्यूटी पार्लर, संगीत, सिनेमा, नाटक जैसे कार्य कराता है। 
——षष्ठम भाव में शुभ ग्रह और षष्ठेश शुभ ग्रह के साथ हो तथा षष्ठेश बलवान हो तो आप नौकरी करेंगे। कर्मेश का संबंध षष्टम से हो या छठे भाव के स्वामी का संबंध लाभ भाव या धनभाव से होता है तो व्यक्ति नौकरी करना पसंद करता है। 
षष्ठम भाव का स्वामी बलवान हो, षष्ठेश उच्च का हो या त्रिकोण में हो तो व्यक्ति उच्च पद प्राप्त करता है। छठे भाव स्थित ग्रह या षष्ठेश स्वगृही या उच्च का होता है, तो जातक सरकारी एवं बड़ी कंपनी में नौकरी करने वाला होगा।
——-दसवें, ग्यारहवें और छठे स्थान के ग्रहों का परिवर्तन व्यक्ति को विदेश में उच्च पद दिलाता है। दशम भाव में शनि उच्च या स्वग्रही होने पर व्यक्ति की उन्नति होती है।
——-बलवान सूर्य दशम भाव में रहकर सरकारी नौकरी कराता है। दशम भाव में सूर्य की दृष्टि भी सरकारी नौकरी का योग बनाती है।
——यदि चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण में बली होकर स्थित हो, तो जातक सरकारी नौकरी करता है।
——लग्न या चतुर्थ स्थान का गुरू सरकारी नौकरी के योग बनाता है। यदि दशमेश लाभ स्थान में है, तो भी जातक सरकारी नौकरी करेगा।
——कारकांश कुंडली में सूर्य स्थित हो, तो जातक सरकारी नौकरी करता है।
आपकी कुंडली के दशम भाव में ग्रह और आजीविका एवं आय—-

कुण्डली के दशम भाव में चन्द्रमा सूर्य होने पर पिता अथवा पैतृक सम्पत्ति से लाभ मिलता है. इस सूर्य की स्थिति से यह भी पता चलता है कि आप पैतृक कार्य करेंगे अथवा नहीं. चन्द्रमा अगर इस भाव में हो तो माता एवं मातृ पक्ष से लाभ की संभावना बनती है. चन्द्रमा से सम्बन्धित क्षेत्र में कामयाबी की प्रबल संभावना रहती है. मंगल की उपस्थिति दशम भाव में होने पर विरोधी पक्ष से लाभ मिलता है.
रक्षा विभाग अथवा अस्त्र शस्त्र के कारोबार से लाभ होता है. बुध दशम भाव में होने पर मित्रों से लाभ एवं सहयोग मिलता है. बृहस्पति की उपस्थिति होने पर भाईयों से सुख एवं सहयोग मिलता है. बृहस्पति से सम्बन्धित क्षेत्र में अनुकूल लाभ मिलता है. शुक्र सौन्दर्य एवं कला के क्षेत्र में तरक्की देता है. शनि की स्थिति दशम में होने पर परिश्रम से कार्य में सफलता मिलती है. टूरिज्म के कारोबार में कामयाबी मिलती है. लोहा, लकड़ी, सिमेंट, रसायन के काम में सफलता मिलती है.
——दशम भाव में सूर्य-बुध होने पर व्यक्ति पत्रकार बनता है।
——दशम भाव में सूर्य+शनि की युति पायलेट या मैनेजमेंट में कार्य करने का सूचक है।
——-दशम भाव में चंद्र+मंगल की युति जातक को रंग-रसायन के कार्य करने को प्रेरित करती है।
——-दशम भाव में गुरू या गुरू की दृष्टि प्रोफेसर के कार्य में रूचि को दर्शाती है।
——-षष्ठेश+दशमेश का युति, प्रतियुति या दृष्टि संबंध व्यक्ति से कोर्ट-कचेरी का काम कराता है।
——-उच्च, स्वगृही मंगल सेना में उच्च पद दिलाता है। दशम भाव में मंगल या मंगल की दृष्टि हो तो व्यक्ति फौज या पुलिस विभाग में नौकरी करता है।
——-दशम भाव में चंद्र या दशमेश चंद्र जमीन या जल से संबंधित कार्य कराता है। चंद्र प्रभाव वाले व्यक्ति कैशियर बनते हैं।
——-लाभेश और लाभ स्थान स्थित ग्रह उच्च, स्वग्रही हो, तो जातक विदेश में नौकरी करता है।
——-दशम, षष्ठम और एकादश भाव के ग्रहों का परिवर्तन योग जातक को विदेश में उच्च पद दिलाता है।
——-द्वितीय स्थान में स्थित ग्रह या द्वितीयेश उच्च का या स्वग्रही होता है, तो जातक को उच्च पद, मान-सम्मान मिलता है।
—–लग्न भाव स्थित शनि, कर्मेश, लाभेश, भाग्येश धनेश के साथ युति-प्रतियुति, दृष्टि आदि से संबंध बनता है, तो व्यक्ति अपने कòरियर की शुरूआत नौकरी से करता है।
——दशमेश द्वादश भाव में हो तो व्यक्ति नौकरपेशा ही होगा। दशम भाव में शनि या शनि की दृष्टि ही व्यक्ति को जीवनभर नौकरी कराती है। चाहे वह क्लार्क हो या आई.ए.एस. अधिकारी।
ये हें व्यवसाय में फ़लदायी मंत्र —
मंत्र शास्त्र स्न.कारोबारी परेशानियों से बचाता है ‘श्री लक्ष्मी गणेश मंत्र’ मानव जीवन के घटनाचक्र को जानने एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया बतलाने वाले महर्षि पाराशर ने व्यापार एवं आर्थिक स्थिति का विचार बड़े ही तर्कसंगत ढंग से किया है। उनका मानना है कि जन्मकुंडली में लग्न, पंचम एवं नवम भाव लक्ष्मी के स्थान होने के कारण धनदायक होते हैं यथा –
‘लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात्’ तथा
‘प्रथमं नवमं चैव धनमित्युच्यते बुधै:’।
कुंडली में चतुर्थ एवं दशम स्थान इच्छाशक्ति एवं कर्मठता के सूचक होने के कारण धन कमाने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर षष्ठ, अष्टम एवं व्यय भाव, जो कर्ज, अनिष्ट एवं हानि के सूचक हैं, व्यापार में हानि और परेशानी देने वाले होते हैं।
आपके कारोबार में परेशानी सूचक योग—-
महर्षि पाराशर ने अपनी कालजयी रचना ‘मध्यपाराशरी’ में व्यापार में हानि एवं परेशानी के सूचक निम्न योग बताए हैं-
    1. लग्नेश एवं चंद्रमा, दोनों केतु के साथ हों और मारकेश से युत या दृष्ट हों।
    2. लग्नेश पाप ग्रह के साथ छठे, आठवें या 12 वें स्थान में मौजूद हो।
    3. पंचमेश एवं नवमेश षष्ठ या अष्टम भाव में हों।
    4. लग्नेश, पंचमेश या नवमेश का त्रिकेश के साथ परिवर्तन हो।
    5. लग्नेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी त्रिक स्थान में मारकेश के साथ हो।
    6. कुंडली में भाग्येश ही अष्टमेश या पंचमेश ही षष्ठेश हो और वह व्ययेश से युत या दृष्ट हो।
    7. जातक की कुंडली में केमद्रुम, रेका, दरिद्री, या भिक्षुक योग हो।
    8. लग्नेश षष्ठभाव में और षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो तथा वह मारकेश से दृष्ट हो।
      ये हें परेशानी से बचने का उपाय—
      वैदिक चिंतनधारा में व्यक्ति के विचार एवं निर्णयों को विकृत करने वाला तत्व ‘विघ्न’ तथा उसके काम-धंधे में रुकावटें डालने वाला तत्व बाधा कहलाता है। इन विघ्न-बाधाओं को दूर करने की क्षमता भगवान श्रीगणोश जी में है। मां लक्ष्मी तो स्वभाव से ही धन, संपत्ति एवं वैभव स्वरूपा हैं, इसीलिए व्यापार एवं काम-धंधे में आने वाली विघ्न-बाधाओं को दूर कर धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए श्रीलक्ष्मी गणोशजी के पूजन की परंपरा हमारे यहां आदिकाल से है।
      श्री लक्ष्मीविनायक मंत्र :—
      ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
      विनियोग :—-
      ऊं अस्य श्री लक्ष्मी विनायक मंत्रस्य अंतर्यामी ऋषि:गायत्री छन्द: श्री लक्ष्मी विनायको देवता श्रीं बीजं स्वाहा शक्ति: सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।
      करन्यास – अंगन्यास—-
      ऊं श्रीं गां अंगुष्ठाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गां हृदयाय नम:।
      ऊं श्रीं गीं तर्जनीभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गीं शिरसे स्वाहा।
      ऊं श्रीं गूं मध्यमाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गूं शिखायै वषट्।
      ऊं श्रीं गैं अनामिकाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गैं कवचाय हुम्।
      ऊं श्रीं गौं कनिष्ठकाभ्यां नम:। – ऊं श्रीं गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
      ऊं श्रीं ग: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। ऊं श्रीं ग: अस्त्रायं फट्।
      ध्यान—
      दन्ताभये चक्रदरौदधानं कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
      धृताब्जयालिंगितमब्धिपु˜या लक्ष्मीगणोशं कनकाभमीडे ।।
      विधि—-
      नित्य नियम से निवृत्त होकर आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर आचमन एवं प्राणायाम कर श्रीलक्ष्मी विनायक मंत्र के अनुष्ठान का संकल्प करना चाहिए। तत्पश्चात चौकी या पटरे पर लाल कपड़ा बिछाएं। भोजपत्र/रजत पत्र पर असृगंध एवं चमेली की कलम से लिखित इस लक्ष्मी विनायक मंत्र पर पंचोपचार या षोडशोपचार से भगवान लक्ष्मी गणोश जी का पूजन करना चाहिए। इसके बाद विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर एकाग्रतापूर्वक मंत्र का जप करना चाहिए। इस अनुष्ठान में जपसंख्या सवा लाख से चार लाख तक है।
      इस नियम से करें अनुष्ठान  —-
      साधक स्नान कर रेशमी वस्त्र धारण करे। भस्म का त्रिपुंड या तिलक लगाकर रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला पर जप करना चाहिए। इस जप को परेशानियों का नाश करने वाला माना गया है।
        1. पूजन में लाल चंदन, दूर्वा, रक्तकनेर, कमल के पुष्प, मोदक एवं पंचमेवा अर्पित किए जाते हैं।
        2. भक्ति भाव से पूजन, मनोयोगपूर्वक जप एवं श्रद्धा सहित हवन करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
        3. अनुष्ठान के दिनों में गणपत्यथर्वशीर्षसूक्त, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त कनकधारास्तोत्र आदि का पाठ करना फलदायक है।
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        इन योग से आपको मिलेगा नोकरी/व्यवसाय में प्रमोशन-उन्नति—

        प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में कुछ ग्रह अति शुभ फल प्रदान करते हैं। इन ग्रहों को राजयोगकारक कहा जाता है। ये ग्रह कुंडली के केंद्र व त्रिकोण के स्वामी कहलाते हैं। जब यह एक दूसरे के साथ एक राशि  में होते हैं अथवा एक दूसरे से समसप्तक होते हैं तब यह अपनी दशा अथवा अर्न्तदशा में व्यापार में उन्नति व नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति करवाते हैं।
        अधिकांश व्यक्तियों का प्रश्न होता है कि उन्हें व्यवसाय अथवा सर्विस में प्रमोशन कब मिलेगा? कुछ व्यक्तियों को अत्यधिक परिश्रम के बाद भी आशानुरूप सफलता नहीं मिल पाती है और कुछ को थोड़ी सी मेहनत से ही अच्छी सफलता मिल जाती है. यह ग्रहों और उनके गोचर का प्रभाव होता है.

         सफलता किसके चरण चूमती है. और कब कोई उन्नति के शिखर पर पहुंचता है. इसे ज्योतिष से सरलता से ज्ञात किया जा सकता है.  इसमे उन्नति के समय का निर्धारण किया जाता है. 

        1. तीन वर्ग कुण्डलियां: —-
        जन्म कुण्डली जीवन की सभी सूचनाओं का चित्र है. मोटी मोटी बातों को जानने के लिये जन्म कुन्डली को देखने से प्रथम दृ्ष्टि मे ही जानकारी हो जाती है. सूक्ष्म अध्ययन के लिये नवांश कुण्डली को देखा जाता है. व्यवसाय मे उन्नति के काल को निकालने के लिये दशमांश कुण्डली की विवेचना भी उतनी ही आवश्यक हो जाती है (The Dashamsh kundali is important in predicting career prospects). इन तीनों कुण्डलियों में दशम भाव दशमेश का सर्वाधिक महत्व है.
        तीनों वर्ग कुण्डलियों से जो ग्रह दशम/एकादश भाव या भावेश विशेष संबध बनाते है. उन ग्रहों की दशा, अन्तरदशा में उन्नति मिलने की संभावना रहती है . कुण्डलियों में बली ग्रहों की व शुभ प्रभाव के ग्रहों की दशा मे भी प्रमोशन मिल सकता है. एकादश घर को आय की प्राप्ति का घर कहा जाता है. इस घर पर उच्च के ग्रह का गोचर लाभ देता है. 

        2. पद लग्न से : —-
        पद लग्न वह राशि है जो लग्नेश से ठीक उतनी ही दूरी पर स्थित है. जितनी दूरी पर लग्न से लग्नेश है. पद लग्न के स्वामी की दशा अन्तरदशा या दशमेश/ एकादशेस का पद लग्न पर गोचर करना उन्नति के संयोग बनाता है. पद लग्न से दशम / एकादश भाव पर दशमेश या एकादशेस का गोचर होने पर भी लाभ प्राप्ति की संभावना बनती है. 

        3. महत्वपूर्ण दशाएं: —–
        ऋषि पराशर के अनुसार लग्नेश, दशमेश व उच्च के ग्रहों की दशाएं व्यक्ति को सफलता देती है. इन दशाओं का संबध व्यवसाय के घर या आय के घर से होने से आजीविका में वृ्द्धि होती है. इन दशाओं का संबध यदि सप्तम या सप्तमेश से हो जाये तो सोने पे सुहागे वाला फल समझना चाहिए. 

        4. दशमेश नवांश में जिस राशि मे जाये उसके स्वामी से संबन्ध: —-
        जन्म कुण्डली के दशवें घर का स्वामी नवांश कुण्डली में जिस राशि में जाये उसके स्वामी के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय व उसपर बली ग्रह की दशा/ गोचर उन्नति के मार्ग खोलता है. इन ग्रहों की दशा में व्यक्ति को अपनी मेहनत में कमी न करते हुए अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए. उन्नति के समय में आलस्य व्यक्ति को मिलने वाले शुभ फलों में कमी का कारण बन सकता है. 

        5. गोचर: ——

        उपरोक्त चार नियमों का अपना विशेष महत्व है. लेकिन इच्छित फल पाने के लिये गोचर का सहयोग भी लेना आवश्यक है . कुण्डली में उन्नति के योग हो, पद लग्न पर शुभ प्रभाव हो, दशवे घर व ग्यारहवें घर से जुड़ी दशाएं हो व गुरु शनि का गोचर हो तो व्यक्ति को मिलने वाली उन्नति को कोई नहीं रोक सकता है. शुभ ग्रहों के सही समय का विश्लेषण और उनकी दशा अथवा अर्न्तदशा के आगमन की जांच केवल एक कुशल ज्योतिषी ही कर सकता है।ज्योतिष एक विज्ञान है जो व्यक्ति विशेष के जीवन में घटने वाली घटनाओं का संकेत प्रदान करता है, ताकि इस सूचना से व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन हो और उसके जीवन को सही दिशा मिल सके।अपनी कुंडली के शुभ ग्रहों की पूजा व अर्चना करने से, अशुभ ग्रहों के जाप व दान करने से एवम अशुभ स्थानों में बैठे शुभ ग्रहों के राशि रत्न पहनने से, एक सुखद भविष्य की कल्पना की जा सकती है, ऐसा हमारा विश्वास है।
        सभी चाहते हैं कि उनके व्यापार में उन्नति हो और वे सफलता की सीढिय़ां चढ़ते जाएं। लेकिन व्यापार में भी उतार-चढ़ाव आता रहता है यदि आप चाहते हैं कि आपका व्यापार-व्यवसाय लगातार तरक्की करता रहें तो नीचे लिखा टोटका करने से यह संभव है।

        आजीविका और कैरियर के विषय में दशम भाव को देखा जाता है.दशम भाव अगर खाली है तब दशमेश जिस ग्रह के नवांश में होता है उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है.द्वितीय एवं एकादश भाव में ग्रह अगर मजबूत स्थिति में हो तो वह भी आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार व्यक्ति की कुण्डली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है तो यह आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाओं का दर्शाता है.दशमांश अगर षष्टम, अष्टम द्वादश भाव में हो अथवा कमज़ोर हो तो यह रोजी रोजगार के संदर्भ में कठिनाई पैदा करता है.
        जैमिनी पद्धति के अनुसार व्यक्ति के कारकांश कुण्डली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र होता है तो व्यक्ति राजकीय पक्ष से सम्बन्धित कारोबार करता है अथवा सरकारी विभाग में नौकरी करता है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न स्थान में हो और शुक्र उसे देखता हो तो इस स्थिति में अध्यापन के कार्य में सफलता और कामयाबी मिलती है.कारकांश में चन्द्रमा लग्न में होता है और बुध उसे देखता है तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में कैरियर की बेहतर संभावनाओं को दर्शाता है.कारकांश में मंगल के लग्न स्थान पर होने से व्यक्ति अस्त्र, शस्त्र, रसायन एवं रक्षा विभाग से जुड़कर सफलता की ऊँचाईयों को छूता है.कारकांश लग्न में जिस व्यक्ति के बुध होता  है वह कला अथवा व्यापार को अपनी आजीविका का माध्यम बनता है तो आसानी से सफलता की ओर बढ़ता है.कारकांश में लग्न स्थान पर अगर शनि या केतु है तो इसे सफल व्यापारी होने का संकेत समझना चाहिए.सूर्य और राहु के लग्न में होने पर व्यक्ति रसायनशास्त्री अथवा चिकित्सक हो सकता है.
        ज्योतिष विधान के अनुसार कारकांश से तीसरे, छठे भाव में अगर पाप ग्रह स्थित हैं या उनकी दृष्टि है तो इस स्थिति में कृषि और कृषि सम्बन्धी कारोबार में आजीविका का संकेत मानना चाहिए.कारकांश कुण्डली में चौथे स्थान पर केतु  व्यक्ति मशीनरी का काम में सफल होता है.राहु इस स्थान पर होने से लोहे से कारोबार में कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली में चन्द्रमा अगर लग्न स्थान से पंचम स्थान पर होता है और गुरू एवं शुक्र से दृष्ट या युत होता है तो यह लेखन एवं कला के क्षेत्र में उत्तमता दिलाता है.
        कारकांश में लग्न से पंचम स्थान पर मंगल  होने से व्यक्ति को कोर्ट कचहरी से समबन्धित मामलों कामयाबी मिलती है.कारकांश कुण्डली के सप्तम भाव में स्थित होने से व्यक्ति शिल्पकला में महारत हासिल करता है और इसे अपनी आजीविका बनाता है तो कामयाब भी होता है.करकांश में लग्न से पंचम स्थान पर केतु व्यक्ति को गणित का ज्ञाता बनाता है.

        —–व्यापर में उन्नति का अचूक टोटका—-शनिवार का दिन छोड़कर किसी भी दूसरे दिन एक पीपल का पत्ता लेकर गंगाजल से धोकर उस पर केसर से तीन बार ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय नम: लिखकर पत्ते को पूजा स्थल पर रख लें। इसकी रोज पूजा करें व धूप-दीप दिखाएं। 21 दिन बाद यह पत्ता ले जाकर अपने व्यापार-व्यवसाय स्थल या ऑफिस में किसी ऐसी जगह रखें जहां किसी की नजर इस पर न पड़े। आपका व्यवसाय लगातार उन्नति करने लगेगा।

        —-इस उपाय से व्यापार में उन्नति होगी —–श्याम तुलसी के पौधा के पास उगे हुए घास को गुरूवार के दिन लेकर पीले वस्त्र में बांध दें। इसके बाद इस वस्त्र पर सिंदूर लगाएं और लक्ष्मी माता का ध्यान करके इसे व्यापार स्थल पर रख दें। व्यापार में उन्नति के लिए गुरूवार के दिन केले की जड़ को पीले वस्त्र में लपेटकर व्यापार स्थल में रखना भी लाभप्रद होता है।
        —-गल्ले या तिजोरी में कुबेर यंत्र अवश्य रखें जिससे कि आपके व्यापार-व्यवसाय में उन्नति होती रहे। 
        —-व्यवसाय में घटा होने लगा है तो इस संकट से निकलने के लिए शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार के दिन तांबे के बर्तन में ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र की स्थापना करें। इस यंत्र को गंगा जल से स्नान कराएं और सिंदूर लगाएं। लाल फूलों से इस यंत्र की पूजा करें। इससे जाती लक्ष्मी ठहर जाएगी। इससे व्यापार में होने वाला नुकसान रूक जाएगा लेकिन व्यापार में उन्नति के लिए लगातार 11 दिनों तक ‘ओम वं व्यापारं वर्धय शिवाय नमः’ का 11 बार जप करें। बारहवें दिन ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र को नदी में विसर्जित दें।
        ——यदि आप अपना स्थानांतरण किसी इच्छित स्थान पर कराना चाहते हैं तो सोते समय अपना सिरहाना दक्षिण की ओर रखें। तांबे के दो पात्र लें। एक में जल के साथ बिल्वपत्र व गुड तथा दूसरे में जल व 21 मिर्च के दाने डालकर सूर्यदेव को अर्पित करें और इच्छित स्थान के लिए प्रार्थना करें।
        ——

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