वास्तुदोष निवारण के सरल/आसन/सुगम उपाय/टोटके—-

( बिना तोड़फोड़/बिना परिवर्तन किये वास्तु दोष निवारण)—-

वास्तुदोष कम करने के आसान उपाय वास्तुदोषों का निवारण वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार मकान में तोडफ़ोड़ करवाकर किया जा सकता है, लेकिन ऐसा सभी के लिए संभव नहीं होता है। ऐसे में क्या आप जिन्दगी भर छोटे-छोटे वास्तुदोषों के कारण परेशान होते रहेंगे? आप सोच रहे होंगे कि इसका और क्या उपाय हो सकता है। उपाय है, यदि आप नीचे लिखें वास्तु उपाय अपनाएंगे तो आपके घर में वास्तुदोष का प्रभाव कम होने के साथ ही सम्पन्नता और सुख में वृद्धि होने लगेगी। – घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर पत्थर या धातु का एक-एक हाथी रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।

अगर आपके घर के निर्माण हो चुका है एवं आप उसमे कोई रचनात्मक परिवर्तन करने मे सक्षम नहीं हैं लेकिन वास्तु दोष के कारण आपको आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कष्टों का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे में हमारे विद्वानो ने विशद अध्ययन के उपरांत बिना तोड़-फोड़ किए इन दोषों को दूर करने के कुछ उपाय बताए हैं। उन्होंने प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणों, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति आदि के उचित उपयोग की सलाह दी है। यहां वास्तु दोषों के निवारण के निमित्त कुछ उपाय प्रस्तुत हैं जिन्हें अपना कर विभिन्न दिशाओं से जुड़े दोषों को दूर किया जा सकता है।
ईशान दिशा—-
—यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक रूप से बढ़ जाता है।
—-यदि ईशान कटा हो अथवा किसी अन्य कोण की दिशा बढ़ी हो, तो किसी साधु पुरुष अथवा अपने गुरु या बृहस्पति ग्रह या फिर ब्रह्मा जी का कोई चित्र अथवा मूर्ति या कोई अन्य प्रतीक चिह्न ईशान में रखें। गुरु की सेवा करना सर्वोत्तम उपाय है। बृहस्पति ईशान के स्वामी और देवताओं के गुरु हैं। कटे ईशान के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए साधु पुरुषों को बेसन की बनी बर्फी या लड्डुओं का प्रसाद बांटना चाहिए। 
—-यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। यदि यहां जल हो, तो चीनी मिट्टी के एक पात्र में जल और तुलसीदल या फिर गुलदस्ता अथवा एक पात्र में फूलों की पंखुड़ियां और जल रखें। शुभ फल की प्राप्ति के लिए इस जल और फूलों को नित्य प्रति बदलते रहें।
——अपने शयन कक्ष की ईशान दिशा की दीवार पर भोजन की तलाश में उड़ते शुभ पक्षियों का एक सुंदर चित्र लगाएं। कमाने हेतु बाहर निकलने से हिचकने वाले लोगों पर इसका चमत्कारी प्रभाव होता है। यह अकर्मण्य लोगों में नवीन उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है।
—–बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ योगी की मुद्रा में बैठे महादेव शिव का ऐसा फोटो, चित्र अथवा मूर्ति स्थापित करें, जिसमें उनके भाल पर चंद्रमा हो और लंबी जटाओं से गंगा जी निकल रही हों।
—–ईशान में विधिपूर्वक बृहस्पति यंत्र की स्थापना करें।
पूर्व दिशा —-
—-यदि पूर्व की दिशा कटी हो, तो पूर्वी दीवार पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन के पूर्वी क्षेत्र में प्रतीकात्मक वृद्धि होती है। 
—-पूर्व की दिशा के कटे होने की स्थिति में वहां सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य देव की एक तस्वीर, मूर्ति अथवा चिह्न रखें। 
—-सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को जल का अर्य दें। अर्य देते समय गायत्री मंत्र का सात बार जप करें। पुरूष अपने पिता और स्त्री अपने स्वामी की सेवा करें। 
—–प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु एक खिड़की होनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं हो, तो उस भाग में सुनहरी या पीली रोशनी देने वाला बल्ब जलाएं। 
—-पूर्व में लाल, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। पूर्वी क्षेत्र में मिट्टी खोदकर जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल उगाएं अथवा पूर्वी बगीचे में लाल गुलाब रोपें। 
—-अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए हंस, तोता, मोर आदि अथवा भोजन की तलाश में अपना घोंसला छोड़ने को तैयार शुभ पक्षियों का चित्र लगाएं। अकर्मण्य और कमाने हेतु बाहर जाने से हिचकने वाले व्यक्तियों के लिए यह जादुई छड़ी के समान काम करता है। 
—-बंदरों को गुड़ और भुने चने खिलाएं। 
—–पूर्व में सूर्य यंत्र की स्थापना विधि विधान पूर्वक करें। 
आग्नेय दिशा—- 
—–यदि आग्नेय कोण पूर्व दिशा में बढ़ा हो, तो इसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं। 
—-शुद्ध बालू और मिट्टी से आग्नेय क्षेत्र के सभी गड्ढे इस प्रकार भर दें कि यह क्षेत्र ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन नैर्ऋत्य से नीचा रहे। 
—–यदि आग्नेय किसी भी प्रकार से कटा हो अथवा पर्याप्त रूप से खुला न हो, तो इस दिशा में लाल रंग का एक दीपक या बल्ब अग्नि देवता के सम्मान में कार्य करते समय कम से कम एक प्रहर (तीन घंटे) तक जलाए रखें। 
—–यदि आग्नेय कटा हो, तो इस दिशा में अग्नि देव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न रखें। गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति रखने से भी उक्त दोष दूर होता है। अग्नि देव की स्तुति में ऋग्वेद में उल्लिखित पवित्र मंत्रों का उच्चारण करें। 
—–आग्नेय कोण में दोष होने पर वहां भोजन में प्रयोग होने वाले फल, सब्जियां (सूर्यमुखी, पालक, तुलसी, गाजर आदि) और अदरक मिर्च, मेथी, हल्दी, पुदीना पत्ता आदि उगाएं अथवा मनीप्लांट लगाएं। 
—–आग्नेय दिशा से आने वाली सूर्य किरणों को रोकने वाले सभी पेड़ों को हटाएं। इस दिशा में ऊंचे पेड़ न लगाएं 
—–आग्नेय का स्वामी ग्रह शुक्र दाम्पत्य संबंधों का कारक है। अतः इस दिशा के दोषों को दूर करने के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आदर भाव रखें। 
—–घर की स्त्रियों को नए रेश्मी परिधान, सौंदर्य प्रसाधन, सामग्री, सजावट के सामान और गहने आदि देकर हमेशा खुश रखें। यह सर्वोत्तम उपाय है। 
—-प्रत्येक शुक्रवार को गाय को गेहूं का आटा, चीनी और दही से बने पेड़े खिलाएं। प्रतिदिन रसोई में बनने वाली पहली रोटी गाय को खिलाएं। दोषयुक्त आग्नेय में गाय-बछड़े की सफेद संगमरमर से बनी मूर्ति या तस्वीर इतनी ऊंचाई पर लगाएं कि वह आसानी से दिखाई दे। 
—–आग्नेय में शुक्र यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। 
दक्षिण दिशा—- 
—–यदि दक्षिणी क्षेत्र बढ़ा हो, तो उसे काटकर शेष क्षेत्र को वर्गाकार या आयताकार बनाएं। कटे भाग का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। 
—–यदि दक्षिण में भवन की ऊंचाई के बराबर या उससे अधिक खुला क्षेत्र हो, तो ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां उगाएं। 
—–इस दिशा में कंक्रीट के बड़े और भारी गमलों में घर में रखने योग्य भारी प्रकृति के पौधे लगाएं। 
—–यमराज अथवा मंगल ग्रह के मंत्रों का पाठ करें। 
——इस दिशा के स्वामी मंगल को प्रसन्न करने के लिए घर के बाहर लाल रंग का प्रयोग करें। दक्षिण दिशा के दोष अग्नि के सावधानीपूर्वक उपयोग और अग्नि तत्व प्रधान लोगों के प्रति उचित आदर भाव से दूर किए जा सकते हैं। 
——इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर हनुमान जी का लाल रंग का चित्र लगाएं। 
—–दक्षिण दिशा में विधिपूर्वक मंगल यंत्र की स्थापना करें। 
नैर्ऋत्य दिशा—- 
—–नैर्ऋत्य दिशा के बढ़े होने से असहनीय परेशानियां पैदा होती हैं। यदि यह क्षेत्र किसी भी प्रकार से बढ़ा हो, तो इसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं। 
—–रॉक गार्डन बनाने अथवा भारी मूर्तियां रखने हेतु नैर्ऋत्य सर्वोत्तम है। यदि यह क्षेत्र नैसर्गिक रूप से ऊंचा या टीलेनुमा हो या इस दिशा में ऊंचे भवन अथवा पर्वत हों, तो इस ऊंची उठी जगह को ज्यों का त्यों छोड़ दें। 
——यदि नैर्ऋत्य दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर अथवा अधिक खुला क्षेत्र हो, तो यहां ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त घर के भीतर कंक्रीट के गमलों में भारी पेड़ पौधे लगाएं। 
——इस दिशा में भूतल पर अथवा ऊंचाई पर पानी का फव्वारा बनाएं। 
——-राहु के मंत्रों का जप स्वयं करें अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं। 
——-श्राद्धकर्म का विधिपूर्वक संपादन कर अपने पूर्वजों की आत्माओं को तुष्ट करें। इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर मृत सदस्यों की एक तस्वीर लगाएं जिस पर पुष्पदम टंगी हों। 
—–मिथ्याचारी, अनैतिक, क्रोधी अथवा समाज विरोधी लोगों से मित्रता न करें। वाणी पर नियंत्रण रखें 
——तांबे, चांदी, सोने अथवा स्टील से निर्मित सिक्के या नाग-नागिन के जोड़े की प्रार्थना कर उसे नैर्ऋत्य दिशा में दबा दें। 
——नैर्ऋत्य दिशा में राहु यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। 
—-
पश्चिम दिशा—– 
——यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो, तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं। 
——-यदि इस दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर या अधिक दूरी तक का क्षेत्र खुला हो, तो वहां ऊंचे वृक्ष या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त इस दिशा में घर के पास बगीचे में लगाए जाने वाले सजावटी पेड़-पौधे जैसे इंडोर पाम, रबड़ प्लांट या अंबे्रला ट्री कंक्रीट के बड़े व भारी गमलों में लगा सकते हैं। 
——-भूतल पर बहते पानी का स्रोत अथवा पानी का फव्वारा भी लगा सकते हैं। 
——-पद्म पुराण में उल्लिखित नील शनि स्तोत्र अथवा शनि के किसी अन्य मंत्र का जप और दिशाधिपति वरुण की प्रार्थना करें। 
——-सूर्यास्त के समय प्रार्थना के अलावा कोई भी अन्य शुभ कार्य न करें। 
——पश्चिम दिशा में शनि यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। 
वायव्य दिशा—- 
——यदि वायव्य दिशा का भाग बढ़ा हुआ हो, तो उसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं अथवा ईशान को बढ़ाएं। 
——यदि यह भाग घटा हो तो वहां मारुतिदेव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न लगाएं। हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति भी लगाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के चंद्र की एक तस्वीर या चित्र भी लगाएं, दोषों से रक्षा होगी। 
——-वायुदेव अथवा चंद्र के मंत्रों का जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें। 
——पूर्णिमा की रात खाने की चीजों पर पहले चांद की किरणों को पड़ने दें और फिर उनका सवेन करें। 
——निर्मित भवन से बाहर खुला स्थान हो, तो वहां ऐसे वृक्ष लगाएं, जिनके मोटे चमचमाते पत्ते वायु में नृत्य करते हों। 
——वायव्य दिशा में बने कमरे में ताजे फूलों का गुलदस्ता रखें। 
——इस दिशा में एक छोटा फव्वारा या एक्वेरियम (मछलीघर) स्थापित करें। 
——अपनी मां का यथासंभव आदर करें, सुबह उठकर उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें और शुभ अवसरों पर उन्हें खीर खिलाएं। 
——प्रतिदिन सुबह, खासकर सोमवार को, गंगाजल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और शिव चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें। 
—–वायव्य दिशा में प्राण-प्रतिष्ठित मारुति यंत्र एवं चंद्र यंत्र की स्थापना करें। 
उत्तर दिशा—- 
——यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो, तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा लगाएं। 
——यदि उत्तर का भाग घटा हो, तो इस दिशा में देवी लक्ष्मी अथवा चंद्र का फोटो, मूर्ति अथवा कोई संकेत चिह्न लगाएं। लक्ष्मी देवी चित्र में कमलासन पर विराजमान हों और स्वर्ण मुद्राएं गिरा रही हों। 
——विद्यार्थियों और संन्यासियों को उनके उपयुक्त अध्ययन सामग्री का दान देकर सहायता करें। उत्तर दिशा के स्वामी बुध से अध्ययन सामग्री का विचार किया जाता है। 
——दिशा में हल्के हरे रंग का पेंट करवाएं। 
——उत्तर क्षेत्र की उत्तरी दीवार पर तोतों का चित्र लगाएं। यह पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए जादू का काम करता है। 
——-इस दिशा में बुध यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। इसके अतिरिक्त कुबेर यंत्र अथवा लक्ष्मी यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित करें। 
——-इस तरह ऊपर वर्णित ये सारे उपाय सहज व सरल हैं जिन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय किया जा सकता है।
——–अगर आपके घर का वास्तु सही है तो निम्नलिखित लाभ दृष्टिगोचर होने चाहिए —-

—-भवन में रहने से धर्मलाभ होना चाहिए तथा उस भवन में रहने वाले प्राणी को अध्यात्मिक एवं आत्मिक सुख की अनुभूति होनी चाहिए। 
—-दैविक एवं भौतिक उपसर्गों से मुक्ति मिलनी चाहिए। 
—–समाज में मान-सम्मान बढ़ना चाहिए। 
—–परिवार के दूसरे सदस्य भी सुखषांति का अनुभव करें तो समझना चाहिए की उस भवन की वास्तु गृहस्वामी केे अनुरूप है। 
—–गृहस्वामी के व्यवसाय में उन्नति हो, उसके धन धान्य में वृद्धि हो। 
—–यदि गृह स्वामी कर्जदार है और उसका कर्ज धीरे धीरे कम होना आरम्भ हो गया है तो इसे भी शुभ संकेत माना जाता है। 
—–गृहस्वामी की आय के साधनों में वृद्धि हो। 
—–यदि परिवार के सदस्य गृहस्वामी की आज्ञा में रहने लगें तो यह भी यही दर्षाता है कि भवन की वास्तु गृहस्वामी के अनुकूल है। 
—–परिवार के सदस्य यदि अध्यात्मिक एंव आत्मिक उन्नति करने लगें और मोक्षमार्ग का रास्ता प्रषस्त हो तो इसमें ही वास्तुषास्त्र की सार्थकता है। 
—--घर वास्तु अनुरूप न होने के कारण कुटुम्बजनों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो निम्न रूप से है—–
—–परिवार में झगड़ा व कलह आरंम्भ हो जाता है। 
—-व्यय व्यर्थ ही बढ़ जाता है। 
—–आमदनी में कमी हो जाती है। 
—–गृह स्वामी आर्थिक रूप से निर्बल हो जाए तो समझें उस घर की वास्तु अनुकूल नहीं है। 
—–कोर्ट केस हो जाए व्यक्ति को मानसिक तनाव रहे तो समझें की घर में वास्तु दोष है। 
—–गृहस्वामी का सम्मान समाज में कम होने लगें। 
—–सन्तति का नाष हो या फिर उसके बच्चे व कुटुम्बजन उसकी आज्ञा का पालन न करें तो समझें की घर में वास्तुदोष है। 
—–परिवार में अकाल मृत्यु भी वास्तुदोष की सूचक है। 
—–अक्समात् परिवार के सदस्यों को कोई रोग घेर ले तो समझें की भवन की वास्तु अनुकूल नहीं। यदि लगे की घर में कुछ भी उपरोक्त में से घट रहा है तो समझ लेना चाहिए की भवन में वास्तुदोष है और उसके निवारण हेतु यथा सम्भव वास्तुदोष निवारण के उपाय करने चाहिएँ।

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