मेरे जज्बात/ख़यालात..(संग्रह)—-
जो तेरे दिल पर चढे
ओर कभी ना उतरे
मे वो गीत हूं , जो तेरे लबो से जुदा ना हो
ख्वाब, इबादत, हवा कि तरह … चांद, बुंद, शमा कि तरह
मेरे मिटने का सवाल नहीं..
क्यूंकि
मैं तो मोहब्बत हूँ …..
मैं साहिल पे लिखी हुई इबादत नहीं जो लहरों से मिट जाती है
मैं बारिश कि बरसती बूंद नहीं जो बरस कर थम जाती है
मैं ख्वाब नहीं, जिसे देखा और भुला दिया
मैं चांद भी नहीं, जो रात के बाद ढल गया
मैं हवा का वो झोंका भी नहीं, के आया और गुजर गया
मैं तो वो अहसास हूं , जो तुझमे लहू बनकर गरदिश करे
मैं वो रंग हू
मैं बारिश कि बरसती बूंद नहीं जो बरस कर थम जाती है
मैं ख्वाब नहीं, जिसे देखा और भुला दिया
मैं चांद भी नहीं, जो रात के बाद ढल गया
मैं हवा का वो झोंका भी नहीं, के आया और गुजर गया
मैं तो वो अहसास हूं , जो तुझमे लहू बनकर गरदिश करे
मैं वो रंग हू
जो तेरे दिल पर चढे
ओर कभी ना उतरे
मे वो गीत हूं , जो तेरे लबो से जुदा ना हो
ख्वाब, इबादत, हवा कि तरह … चांद, बुंद, शमा कि तरह
मेरे मिटने का सवाल नहीं..
क्यूंकि
मैं तो मोहब्बत हूँ …..
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खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।
एक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।
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दिल से तस्वीर मिटायी न गयी।
याद तेरी थी भुलायी न गयी।।
ज़ीनते-गुफ़्तगू होती जो बात,
बात कुछ थी के चलायी न गयी।
खोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
वह खुशी हमसे तो पायी न गयी।
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
दिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।
याद तेरी थी भुलायी न गयी।।
ज़ीनते-गुफ़्तगू होती जो बात,
बात कुछ थी के चलायी न गयी।
खोजता रह गया ता’उम्र जिसे,
वह खुशी हमसे तो पायी न गयी।
खा लिया मैंने बादे-ज़िन्दाँ भी,
कस्म गोया तेरी खायी न गयी।
नज़्रे-आतिशे-तग़ाफ़ुले-जाना
दिल की दुनिया थी, बचायी न गयी।
बढ़के पल्लू को थाम लेने की,
रस्म ग़ाफ़िल से निभायी न गयी।।