मंत्र आपका मित्र है—
साथ गुरू मंत्र तुम एक दोस्त देता है. एक मित्र प्रकाश और निर्वाह के लिए सूर्य के चारों ओर घूमने पृथ्वी की तरह होना चाहिए. प्रकाश अंधकार dispels और लोगों को शांति मिल जाए. तुम भी दुनिया पर ले सकते हैं लेकिन आप अपने खुद के बच्चों से हार रहे हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आप दोस्त बन गए हैं अपने बच्चों को. और अधिक ध्यान में एकाग्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण अपने खुद के आचरण का अवलोकन है, यह सच पूजा है. एक मंत्र एक या शब्दों के शब्द श्रृंखला है. कौन फर्म के उद्देश्य से एक आदमी हो जाता है. तुम तुम मंदिरों में जाने के लिए देवताओं के सामने भीख माँगती हूँ. वह उन्हें दे, क्योंकि तुम अपने आप को खो दिया है सकते हैं शक्ति नहीं माद्दा वरशिप?. शक्ति है कि आप एक के लिए एक अच्छा इंसान होना स्थिति में डालता है पूजा. आपके आचरण में संतुलित रहें. असंतुलन तुम्हारे लिए अच्छा है कि नहीं, यह आपके परिवार के लिए. तुम एक और एक ग्यारह हो जाते हैं, दो नहीं के बराबर होती है एक से अधिक एक चाहिए.
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हिन्दू धर्म शास्त्रों में मन को स्वच्छ, ऊर्जावान और मजबूत बनाए रखने के लिए ही देव उपासना व कर्म बेहतर उपाय माने गये हैं। देव मर्यादा, कर्म की पवित्रता और सार्थक फल के लिए
इनको करने के लिए स्थान विशेष का महत्व बताया गया है। जानते हैं शिव पुराण में बताए देवकर्म करने के लिए श्रेष्ठ स्थान –
– सबसे पहले अपना घर में पवित्रता के साथ किया गया कर्म शास्त्रोक्त फल देते हैं।
– गोशाला में किया गया कर्म घर से भी दस गुना फलदायी।
– किसी पवित्र सरोवर के किनारे गोशाला से दस गुना पुण्य देता है।
– तुलसी, बिल्वपत्र या पीपल वृक्ष की जड़ के समीप देव कर्म जलाशय से दस गुना अधिक शुभ फल देते हैं।
– इन वृक्षों के तले किए देव कर्म से अधिक फल मंदिर में किए देवकर्म देते हैं।
– मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं
– तीर्थ भूमि से भी अधिक शुभ किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं।
– नदियों में भी सप्तगंगा तीर्थ यानी सात नदियों गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा के किनारे किया देव कर्म अधिक शुभ फलदायी हैं।
– इनसे अधिक समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है।
– वहीं सबसे ज्यादा शुभ और पुण्यदायी फल पर्वत शिखर पर किए देवकर्मों का मिलता है। इस संदर्भ में रावण द्वारा किए गए तप से पाई शिव कृपा उल्लेखनीय है।
इन सब स्थानों के बाद शिवपुराण में मन की पावन बनाने का छुपा संदेश देते हुए लिखा गया है कि जहां मन लग जाए वहीं देवकर्मों क लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है। …..
– गोशाला में किया गया कर्म घर से भी दस गुना फलदायी।
– किसी पवित्र सरोवर के किनारे गोशाला से दस गुना पुण्य देता है।
– तुलसी, बिल्वपत्र या पीपल वृक्ष की जड़ के समीप देव कर्म जलाशय से दस गुना अधिक शुभ फल देते हैं।
– इन वृक्षों के तले किए देव कर्म से अधिक फल मंदिर में किए देवकर्म देते हैं।
– मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं
– तीर्थ भूमि से भी अधिक शुभ किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं।
– नदियों में भी सप्तगंगा तीर्थ यानी सात नदियों गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा के किनारे किया देव कर्म अधिक शुभ फलदायी हैं।
– इनसे अधिक समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है।
– वहीं सबसे ज्यादा शुभ और पुण्यदायी फल पर्वत शिखर पर किए देवकर्मों का मिलता है। इस संदर्भ में रावण द्वारा किए गए तप से पाई शिव कृपा उल्लेखनीय है।
इन सब स्थानों के बाद शिवपुराण में मन की पावन बनाने का छुपा संदेश देते हुए लिखा गया है कि जहां मन लग जाए वहीं देवकर्मों क लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है। …..
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रोजगार प्राप्ति के टोटके/उपाय ——
मंगलवार को अथवा रात्रिकाल में निम्नलिखित मन्त्र का अकीक की माला से ..8 बार जप करें । इसके बाद नित्य इसी मन्त्र का स्नान करने के बाद 11 बार जप करें । इसके प्रभाव से अतिशीघ्र ही आपको मनोनुकूल रोजगार की प्राप्ति होगी ।
यह मन्त्र माँ भवानी को प्रसन्न करता है, अतः जप के दौरान अपने सम्मुख उनका चित्र भी रखें ।
” ॐ हर त्रिपुरहर भवानी बाला
राजा मोहिनी सर्व शत्रु ।
विंध्यवासिनी मम चिन्तित फलं
देहि देहि भुवनेश्वरी स्वाहा ।।”………………………………
यह मन्त्र माँ भवानी को प्रसन्न करता है, अतः जप के दौरान अपने सम्मुख उनका चित्र भी रखें ।
” ॐ हर त्रिपुरहर भवानी बाला
राजा मोहिनी सर्व शत्रु ।
विंध्यवासिनी मम चिन्तित फलं
देहि देहि भुवनेश्वरी स्वाहा ।।”………………………………