प्रिय पाठकों/मित्रों भक्तों की रक्षा के लिए प्रभु धरती पर अवतरित होते हैं। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान ने नृसिंह अवतार लिया था। सभी विध्नों का नाश करने वाली नृसिंह जयंती का व्रत इस बार (मंगलवार) 09 मई 2017 को नृसिंह जयंती को है। भगवान को अपने भक्त सदा प्रिय लगते हैं तथा जो लोग सच्चे भाव से प्रभु को याद करते हैं उन पर प्रभु की कृपा सदा बनी रहती है तथा भगवान अपने भक्तों के सभी कष्टों का क्षण भर में निवारण कर देते हैं।भगवान विष्णु के दशावतारों में नृसिंह अवतार का प्रमुख स्थान है। नृसिंह जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को व्रत-पर्व के रूप में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है।
प्रिय पाठकों/मित्रों, हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनाई जाती है। तदनुसर इस वर्ष गुरूवार 9 मई 2017 को नृसिंह जयंती मनाई जाएगी। हिन्दू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इस तिथि को भगवान विष्णु जी ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नृसिंह के रूप में अवतरित हुए थे। भगववान नृसिंह ने इस दिन भक्त प्रह्लाद के पिता दैत्य हिरण्यकशिपु का वध कर धर्म तथा भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। अतः इस दिन नृसिंह जयंती मनाई जाती है।
आचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि नृसिंह पुराण के अनुसार इस पर्व को दोपहर के समय पवित्र नदी, सरोवर आदि पर जाकर आंवले के लेप के साथ अति शुभ फलदायक बताया गया है। उल्लिखित है कि मानसिक संकल्प के साथ उस दिन उपवास करना चाहिए। शाम को प्रदोष के बाद वेदी पर कमल बनाकर उस पर नृसिंह व लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर भगवान नृसिंह का पंचोपचार पूजन करना चाहिए। रात में गायन, वादन, नृसिंह पुराण का श्रवण तथा हरिकीर्तन आदि के साथ रात्रि जागरण से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। दूसरे दिन विप्रों को भोजन कराने के बाद पारण का विधान है।
जयंती पर भगवान नृसिंह के दर्शन पूजन औेर व्रत दान से समस्त पापों का शमन होता है। ईश्वरीय कृपा से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। भगवान नृसिंह के उग्र रूप का दर्शन तथा इनके मंत्रों का जप शत्रुओं की पराजय व नौ ग्रहों की शांति का कारक तो है ही, इससे बाधाओं से पार करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। इनका मंत्र ही कष्टों का दमनकारी है।
जानिए भगवान नरसिंह की कथा–
हमारे शास्त्र एवं पुराण प्रभु की महिमा से भरे पड़े हैं। जिनमें बताया गया है कि भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। जब भक्त किसी दुष्ट के सताए जाने पर सच्ची भावना से प्रभु को पुकारते हैं तो भगवान दौड़े चले आते हैं क्योंकि भगवान तो भक्त वत्सल हैं जो सदा ही अपने भक्तों के आधीन रहते हैं। अनादि काल से ही जैसे-जैसे धरती पर दानवों ने देवताओं को तंग किया तथा देवताओं ने आहत होकर अपनी रक्षा करने के लिए प्रभु को पुकारा तो भगवान ने सदा ही किसी न किसी रुप में अवतार लेकर उनकी रक्षा की। अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने और हिरण्यकशिपु के आतंक को समाप्त करने के लिए भगवान ने श्री नृसिंह अवतार लिया। जिस दिन भगवान धरती पर अवतरित हुए उस दिन वैशाख मास की चतुर्दशी थी। इसी कारण यह दिन नृसिंह जयंती के रुप में मनाया जाता है। इस बार (मंगलवार) 09 मई 2017 को नृसिंह जयंती का उपवास है।
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि रहते थे। ऋषि कश्यप के पत्नी का नाम दिति था तथा उनकी दो संतान थी। ऋषि कश्यप ने प्रथम पुत्र का नाम ‘हरिण्याक्ष’ तथा दूसरे पुत्र का नाम ‘हिरण्यकशिपु’ रखा था। परंतु ऋषि के दोनों संतान असुर प्रवृति का था ।
आसुरी प्रवृति होने के कारण भगवान विष्णु जी के वराह रूप ने पृथ्वी की रक्षा हेतु ऋषि कश्यप के पुत्र ‘हरिण्याक्ष का वध कर दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी तथा क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प लिया। हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा जी का कठोर तप किया।
जानिए कैसे करें नरसिंह जयंती का व्रत—
नृसिंह जयंती के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहर्त में उठकर स्नान आदिसे निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए एवम भगवान नृसिंह की पूजा विधि-विधान से करे। इस दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निपटकर भगवान विष्णु जी के नृसिंह रूप की विधिवत धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फलों से पूजा एवं अर्चना करनी चाहिए तथा विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।भगवान नृसिंह की पूजा फल, फूल, धुप, दीप, अगरबत्ती, पंचमेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत एवम पीतांबर से करे। सारा दिन उपवास रखें तथा जल भी ग्रहण न करें। सांयकाल को भगवान नृसिंह जी का दूध, दही, गंगाजल, शहद, चीनी के साथ ही गाय के मक्खन अथवा घी आदि से अभिषेक करने के पश्चात चरणामृत लेकर फलाहार करना चाहिए। नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवम पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने हेतु निम्न मन्त्र का जाप करे —
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥
इन मंत्रो के जाप करने से समस्त प्रकार के दुखो का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंह की कृपा से जीवन में मंगल ही मंगल होता है। भगवान नृसिंह अपने भक्तो की सदैव रक्षा करते है। इस तरह नृसिंह द्वादशी की कथा सम्पन्न हुआ। प्रेम से बोलिए भगवान विष्णु रूप नृसिंह देव की जय।
जानिए क्या है प्रभु का स्वरूप —–
शास्त्रों के अनुसार श्री नृसिंह जी को भगवान विष्णु जी का अवतार माना जाता है तथा इसमें उनका आधा शरीर नर तथा आधा शरीर सिंह के समान है तभी इस रूप को भगवान विष्णु जी के श्री नृसिंह अवतार के रूप में पूजा जाता है।
जानिए क्या है व्रत का पुण्यफल —
व्रत के प्रभाव से जहां जीव की सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है वहीं मनुष्य का तेज और शक्तिबल भी बढ़ता है। जीव को प्रभु की भक्ति भी सहज ही प्राप्त हो जाती है। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए यह व्रत करना अति उत्तम फल दायक है तथा इस दिन जप एवं तप करने से जीव को विशेष फल प्राप्त होता है।
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ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम:।
शत्रु बाधा हो या तंत्र मंत्र बाधा,भय हो या अकाल मृत्यु का डर।इस मंत्र के जप करने से शांति हो जाती है।शत्रु निस्तेज होकर भाग जाते है,भूत पिशाच भाग जाते है तथा असाध्य रोग भी ठीक होने लगता है।ये श्रीविष्णु अवतार तथा भक्त वत्सल है।एक लोक प्रसिद्ध कथा है,कि जब आद्य शंकराचार्य कामाख्या गये थे,तो वहाँ का एक प्रसिद्ध तांत्रिक ने उनपर भीषण तंत्र प्रयोग कर दिया,जिसके कारण शंकराचार्य को भगन्दर रोग हो गया।आद्य चाहते तो प्रयोग निष्फल कर सकते थे,परन्तु उन्होनें वेदना सहन किया।परन्तु शंकराचार्य के एक प्रिय शिष्य ने ॐकार नृसिंह मंत्र प्रयोग कर के उस दुष्ट तांत्रिक का तंत्र प्रभाव दूर कर दिया।इसके परिणाम वह तांत्रिक मारा गया और शंकराचार्य स्वस्थ हो गये।इस मंत्र को जपने से अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है।इनका रुप थोड़ा उग्र है,परन्तु भक्त के सारे संकट तत्क्षण दूर कर देते है। गवान नृसिंह बहुत ही उग्र देवता हैं और इनकी उपसना में की गयी कोई भी गलती क्षम्य नही है। इसीलिए इनकी साधना किसी अनुभवी गुरू के सानिध्य में ही करनी चाहिए। अपने गुरूदेव, गणेश जी आदि का ध्यान करने के पश्चात श्री नृसिंह भगवान का धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए…
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*************आत्म-देह रक्षार्थ श्री नरसिंह मंत्र-प्रयोग **************
मंत्र-:—–ॐ नमो महा नरसिंहाय -सिंहाय सिंह-मुखाय विकटाय वज्रदन्त-नखाय माम् रक्ष -रक्ष मम शरीरं नख-शिखा पर्यन्तं रक्ष रक्षां कुरु-कुरु मदीय शरीरं वज्रांगम कुरु-कुरु पर -यन्त्र, पर-मंत्र, पर-तंत्राणां क्षिणु – क्षिणु खड्गादि-धनु -बाण-अग्नि-भुशंडी आदि शस्त्राणां इंद्र-वज्रादि ब्र्ह्मस्त्राणां स्तम्भय -स्तम्भय ,, जलाग्नि-मध्ये रक्ष ,, गृह -मध्ये ,, ग्राम-मध्ये ,,नगर-मध्ये ,, नगर-मध्ये ,, वन-मध्ये ,,रण-मध्ये ,, श्मशान-मध्ये रक्ष-रक्ष ,, राज-द्वारे राज-सभा मध्ये रक्ष रक्षां कुरु-कुरु ,, भूत-प्रेत -पिशाच -देव-दानव-यक्ष-किन्नर-राक्षस , ब्रह्म-राक्षस ,, डाकिनी-शाकिनी-मौन्जियादि अविधं प्रेतानां भस्मं कुरु-कुरु भो: अत्र्यम- गिरो सिंही -सिंहमुखी ज्वलज्ज्वाला जिव्हे कराल -वदने मां रक्ष-रक्ष ,, मम शरीरं वज्रमय कुरु-कुरु दश -दिशां बंध-बंध वज्र-कोटं कुरु-कुरु आत्म-चक्रं भ्रमावर्त सर्वत्रं रक्ष रक्ष सर्वभयं नाशय -नाशय ,, व्याघ्र -सर्प-वराह-चौरदिन बन्धय-बन्धय,, पिशाच-श्वान दूतान्कीलय-कीलय हुम् हुम् फट !!
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*******मृत्य्वष्टकम्************
मृत्य्वष्टकम्
।। मार्कण्डेय उवाच ।।
नारायणं सहस्राक्षं पद्मनाभं पुरातनम् ।
प्रणतोऽस्मि हृषीकेशं किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। १
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षमनन्तमजमव्ययम् ।
केशवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। २
वासुदेवं जगद्योनिं भानुवर्णमतीन्द्रियम् ।
दामोदरं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ३
शङ्खचक्रधरं देवं छन्नरुपिणमव्ययम् (छन्दोरुपिणमव्ययम्) ।
अधोक्षजं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ४
वाराहं वामनं विष्णुं नरसिंहं जनार्दनम् ।
माधवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ५
पुरुषं पुष्करं पुण्यं क्षेमबीजं जगत्पतिम् ।
लोकनाथं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ६
भूतात्मानं महात्मानं जगद्योनिमयोनिजम् (यज्ञयोनिमयोनिजम्) ।
विश्वरुपं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ७
सहस्रशीर्षसं देवं व्यक्ताऽव्यक्तं सनातनम् ।
महायोगं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ८
।।फल-श्रुति।।
इत्युदीरितमाकर्ण्य स्तोत्रं तस्य महात्मनः ।
अपयातस्ततो मृत्युर्विष्णुदूतैश्च पीडितः ।। ९
इत्येन विजितो मृत्युर्मार्कण्डेयेन धीमता ।
प्रसन्ने पुण्डरीकाक्षे नृसिंहं नास्ति दुर्लभम् ।। १०
मृ्त्य्वष्टकमिदं (मृत्युञ्जयमिदं) पुण्यं मृत्युप्रशमनं शुभम् ।
मार्कण्डेयहितार्थाय स्वयं विष्णुरुवाच ह ।। ११
य इदं पठते भक्त्या त्रिकालं नियतः शुचिः ।
नाकाले तस्य मृत्युः स्यान्नरस्याच्युतचेतसः ।। १२
हृत्पद्ममध्ये पुरुषं पुरातनं (पुराणम्) नारायणं शाश्वतमादिदेवम् ।
संचिन्त्य सूर्यादपि राजमानं मृत्युं स योगी जितवांस्तदैव ।। १३
।।श्रीनरसिंह पुराणे अन्तर्गत मार्कण्डेयमृत्युञ्जयो नाम (मृत्य्वष्टकं नाम) स्तोत्र।।
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..भगवान नृसिंह विष्णुजी के सबसे उग्र अवतार माने जाते है। उनके बीज मंत्र के जप से शत्रुओं का नाश होकर कोर्ट-कचहरी के मुकदमे आदि में विजय प्राप्त होती है। इससे शत्रु शमन होकर पराक्रम में बढ़ोतरी होती है तथा आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।
नृसिंह मंत्र से तंत्र मंत्र बाधा, भूत पिशाच भय, अकाल मृत्यु का डर, असाध्य रोग आदि से छुटकारा मिलता है तथा जीवन में शांति की प्राप्ति हो जाती है।इसके लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
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जानिए भगवान नृसिंह का बीज मंत्र।
– ‘श्रौं’/ क्ष्रौं (नृसिंहबीज)—
इस बीज में क्ष् = नृसिंह, र् = ब्रह्म, औ = दिव्यतेजस्वी, एवं बिंदु = दुखहरण है। इस बीज मंत्र का अर्थ है ‘दिव्यतेजस्वी ब्रह्मस्वरूप श्री नृसिंह मेरे दुख दूर करें’।जीवन में सर्वसिद्धि प्राप्ति के लिए 40 दिन में पांच लाख जप पूर्ण करें।
* उपरोक्त मंत्र का प्रतिदिन रात्रि काल में जाप करें।
* मंत्र जप के दौरान नित्य देसी घी का दीपक जलाएं।
* 2 लड्डू, 2 लौंग, 2 मीठे पान और 1 नारियल भगवान नृसिंह को पहले और आखरी दिन भेट चढ़ाएं।
* अगले दिन विष्णु मंदिर में उपरोक्त सामग्री चढ़ा दीजिए।
* अंतिम दिन दशांश हवन करें।
* अगर दशांश हवन संभव ना हो तो पचास हजार मंत्र संख्या और जपे।
अगर आप कई संकटों से घिरे हुए हैं या संकटों का सामना कर रहे हैं, तो भगवान विष्णु या श्री नृसिंह प्रतिमा की पूजा करके संकटमोचन नृसिंह मंत्र का स्मरण करें –
****** संकटमोचन श्री नृसिंह मंत्र *****************
ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
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.******श्री नृसिंह देव स्तवः*******
(गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय)
प्रहलाद ह्रदयाहलादं भक्ता विधाविदारण।
शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ॥१॥
नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने।
हिरन्यकशिपोर्बक्षःर शिलाटंक नखालये ॥२॥
इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह।
बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ॥३॥
तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं।
दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम्।
केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ॥४॥
वागीशायस्य बदने लर्क्ष्मीयस्य च बक्षसि।
यस्यास्ते ह्र्देय संविततं नृसिंहमहं भजे ॥५॥
श्री नृसिंह जय नृसिंह जय जय नृसिंह।
प्रहलादेश जय पदमामुख पदम भृग्ह्र्म ॥६॥
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जानिए नरसिंह देव के नाम—–
१ नरसिंह
२ नरहरि
३ उग्र विर माहा विष्णु
४ हिरण्यकश्यप अरी
तीर्थस्थल
नरसिंह विग्रह के दस (१०) प्रकार
१ उग्र नरसिंह
२ क्रोध नरसिंह
३ मलोल नरसिंह
४ ज्वल नरसिंह
५ वराह नरसिंह
६ भार्गव नरसिंह
७ करन्ज नरसिंह
८ योग नरसिंह
९ लक्ष्मी नरसिंह
१० छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह..
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.…हिन्दू धर्म पंचाग का वैशाख माह विष्णु भक्ति का शुभ काल माना गया है। भगवान विष्णु का स्वरूप शांत, सौम्य व आनंदमयी माना गया है। किंतु विष्णु अवतार से जुडे पौराणिक प्रसंग साफ करते हैं कि धर्म रक्षा और धर्म आचरण की सीख देने के लिए लिए युग और काल के मुताबिक भगवान विष्णु अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट हुए।
इसी कड़ी में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पुण्य घड़ी मानी जाती है। भगवान नृसिंह की उपासना भक्त प्रहलाद की तरह ही सारे संकटों, मुश्किलों, दु:खों और मुसीबतों से बचाकर मनचाहे सुखों को देने वाली मानी गई है।
अगर आप भी संकट में घिरे हों या सामना कर रहे हैं, तो संकटमोचन के लिए इस नृसिंह मंत्र का स्मरण भगवान विष्णु या नृसिंह प्रतिमा की पूजा कर जरूर करें –
– भगवान नृसिंह सुबह व शाम के बीच की घड़ी में प्रकट हुए। इसलिए प्रदोष काल यानी सुबह-शाम के मिलन के क्षणों में ही गंध, चंदन, फूल व नैवेद्य चढ़ाकर नीचे लिखा नृसिंह मंत्र मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना के साथ बोलें व धूप, दीप से आरती कर प्रसाद ग्रहण करें –
ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
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…..भगवान विष्णु लक्ष्मीपति और श्रीपति भी पुकारे जाते हैं। मंगलकारी, ऐश्वर्यसंपन्न और शान्तिस्वरूप देवता भगवान विष्णु की भक्ति जगत के लिए सुखदायी है। धार्मिक मान्यता है कि विष्णु की प्रसन्नता से देवी लक्ष्मी कृपा भी बरसने लगती है।
यही कारण है कि देवी उपासना के विशेष दिन शुक्रवार को भगवान विष्णु की उपासना का महत्व है। इसी कड़ी में आज शुक्रवार के साथ विष्णु अवतार भगवान नृसिंह की जयंती का विशेष योग बना है। जिसमें एक विशेष मंत्र से लक्ष्मी और भगवान नृसिंह का ध्यान सुख-समृद्धि, शक्ति और वैभव पाने की कामना को शीघ्र पूरा करने वाला माना गया है।
जानिए, यह आसान लक्ष्मी-नृसिंह मंत्र व पूजा विधि –
– सुबह स्नान के बाद देवालय में भगवान नृसिंह व मां लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराकर सुंदर वस्त्र व गहने पहनाएं।
– भगवान नृसिंह को केसर चन्दन, पीले सुगंधित फूल, पीताम्बरी रेशमी वस्त्र, इत्र, यज्ञोपवीत अर्पित करें। इसी तरह माता लक्ष्मी को लाल पूजा सामग्रियां चढ़ावें। नैवेद्य, धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे लक्ष्मी-नृसिंह मंत्र का आसन पर बैठकर कम से कम 108 बार सुख-शांति, समृद्धि की कामना से स्मरण करें –
ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम:।
– इस मंत्र जप के बाद भगवान नृसिंह व मां लक्ष्मी की आरती कर उनको स्नान कराया जल चरणामृत के रूप में ग्रहण करें।
…भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें
मंत्र-
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |
तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||
पांच माला के जाप से आप पर भगवान नरसिंह की कृपा होगी
इस महा मंत्र के जाप से क्रूर ग्रहों का ताप शांत होता है
कालसर्प दोष, मंगल, राहु ,शनि, केतु का बुरा प्रभाव नहीं हो पाटा
एक माला सुबह नित्य करने से शत्रु शक्तिहीन हो जाते हैं
संध्या के समय एक माला जाप करने से कवच की तरह आपकी सदा रक्षा होती है
यज्ञ करने से भगवान् नरसिंह शीघ्र प्रसन्न होते हैं .
मंत्र-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय
मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है
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2)ऋण मोचक नरसिंह मंत्र
है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें
भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें
पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें
मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें
हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:
रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
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.)शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र
यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें
चौमुखे तीन दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः
रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है
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4)यश रक्षक मंत्र
यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजन करें
कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात तरह के अनाज दान में दें
हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें
मंत्र-ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष
संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है
5)नरसिंह बीज मंत्र
यदि आप पूरे विधि विधान से भगवान नरसिंह जी का पूजन नहीं कर सकते तो आपको चलते फिरते मानसिक रूप से लघु मंत्र का जाप करना चाहिए
लघु मंत्र के जाप से भी मनोरथ पूरण होते हैं
मंत्र-ॐ नृम नृम नृम नरसिंहाय नमः ।
भगवान नरसिंह को मोर पंख चढाने से कालसर्प दोष दूर होता है
भगवान नरसिंह को दही अर्पित करने से मुकद्दमों में विजय मिलती है
भगवान नरसिंह को नाग केसर अर्पित करने से धन लाभ मिलता है
भगवान नरसिंह को बर्फीला पानी अर्पित करने से शत्रु पस्त होते हैं
भगवान नरसिंह को मक्की का आटा चढाने से रूठा व्यक्ति मान जाता है
भगवान नरसिंह को लोहे की कील चढाने से बुरे ग्रह टलते हैं
भगवान नरसिंह को चाँदी और मोती चढाने से रुका धन मिलता है
भगवान नरसिंह को भगवा ध्वज चढाने से रुके कार्य में प्रगति होती है
भगवान नरसिंह को चन्दन का लेप देने से रोगमुक्ति होती है..
9……******अथ नृसिंह कवच******
विधि –
नृसिंह कवच और महाकली कवच, हनुमत कवच, का मंगलवार, गुरुवार, शनिवार से पाठ शुरु करें, जो भी कार्य हो उसका संकल्प कर नित्य एक – २ पाठ करें जब आपका मनवांछित कार्य पूर्ण हो जावे तब नरसिंह भैरव के लिए सवासेर का रोट और माता के लिए सवासेर की कडाही करें !!
ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा ! ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते ! ॐ नमः कालाय काल द्रष्टाय कराल वदनाय च !! ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !! ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय ! ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रु ह्रु ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा ! ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा ! ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा !! ॐ आं ह्रीं क्षौ क्रौं ह्रुं फट्, ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा !! ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा !! ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा !! ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्थन्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः !!
ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट् ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान अमुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय !! ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा !! ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् !! रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम् !! ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने !! ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम् !! नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम् !! इति नृसिंह कवच !! ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच सम्पूर्णम !!
10……भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णुु ने नरसिंह अवतार धारण किया था। कलयुग मे नृसिंह भगवान की उपासना सभी कष्टों से मुक्ति के लिए की जाती है। इनकी साधना से शत्रु द्वारा किया गया अभिचारिक प्रयोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। इनके साधक का कोई बाल भी बाका नही कर सकता एवं भूत, प्रेत, पिशाच आदि सभी इनके भक्तों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
भगवान नृसिंह बहुत ही उग्र देवता हैं और इनकी उपसना में की गयी कोई भी गलती क्षम्य नही है। इसीलिए इनकी साधना किसी अनुभवी गुरू के सानिध्य में ही करनी चाहिए।
अपने गुरूदेव, गणेश जी आदि का ध्यान करने के पश्चात श्री नृसिंह भगवान का धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए
श्री नृसिंह गायत्री मंत्र
ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नोनृसिंह प्रचोदयात् ।
उपरोक्त मंत्र का की संख्या में जप करे। उसके पश्चात होम, तर्पण, मार्जन एवं ब्राह्मण भोज का आयोजन करना चहिए। मंत्र सिद्ध होने के पश्चात इसका काम्य प्रयोग किया जा सकता है।
11..…नृसिंह गायत्री मंत्र – शत्रु को हराने, बहादुरी, भय व दहशत दूर करने, पुरुषार्थी बनने व किसी भी आक्रमण से बचने के लिए नृसिंह गायत्री असरदार साबित होता है-
ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमहि, तन्नो नृसिंह प्रचोदयात्।
12…….********नृसिंह मन्त्र ********
ॐ नमो भगवते नरसिंहाय।
अतुल वीर पराक्रमाय।
घोर रौद्र महिषासुर रुपाये।
त्रिलोक्य डम्बराय।
रौद्र क्षेत्र पालाय।
ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं।
क्रमितताडय ताडय।
मोहय मोहय द्रभि द्रभि।
क्षोभय क्षोभय आभि आभि।
साधय साधय ह्रीं ह्रदय।
आशक्तये प्रीती ललाटे बन्ध।
यही ह्रदये स्तम्भय स्तम्भय।
किलि किलि ईं ह्रीं डाकिनीं।
प्रच्छादय प्रच्छादय शाकिनीं।
प्रच्छादय प्रच्छादय भूतं।
प्रच्छादय प्रच्छादय अभुति अदुति स्वाहा।
राक्षसं प्रच्छादय प्रच्छादय।
ब्रह्म राक्षसं प्रच्छादय प्रच्छादय।
आकाशं प्रच्छादय प्रच्छादय।
सिंहिंनी पुत्रम प्रच्छादय प्रच्छादय।
ऐते डाकिनी ग्रहं साधय साधय।
शाकिनी ग्रहं साधय साधय।
अनेन मन्त्रेण
डाकिनी शाकिनी भूत् प्रेत पिशाचादि।
एकाहिक द्वाहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पन्चमिक।
वातिक पैत्तिक श्लेशमिक।
सन्निपात केसरी।
डाकिनी ग्रहादि।
मुञ्च मुञ्च स्वाहा।
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।
फुरो मन्त्र ईशवरोवाचा।
13..…***********||श्रीहरि:||***********
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अग्निपुराण
अध्याय – २२
पूजा के अधिकार की सिद्धि के लिये सामान्यत: स्नान-विधि
नारदजी बोले – विप्रवरो ! पूजन आदि क्रियाओं के लिये पहले स्नान-विधिका वर्णन करता हूँ | पहले नृसिंह-सम्बन्धी बीज या मंत्रसे मृत्तिका हाथ में लें |
नृसिंह मंत्र इसप्रकार है –
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् |
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ||
उसे दो भागों में विभक्त कर एक भागके द्वारा (नाभिसे लेकर पैरोंतक लेपन करे, फिर दुसरे भागके द्वारा) अपने अन्य सब अंगों में लेपन कर मल-स्नान सम्पन्न करे | तदनन्तर शुद्ध स्नान के लिये जलमें डुबकी लगाकर आचमन करे | ‘नृसिंह’- मंत्रसे न्यास करके आत्मरक्षा करे | इसके बाद (तंत्रोक्त रीतिसे) विधि-स्नान करे – [सोमशम्भु की कर्मकाण्ड क्रमावली के अनुसार मिट्टी के एक भाग को नाभि से लेकर पैरोंतक लगावे और दुसरे भाग को शेष सारे शरीर में | इसके बाद दोनों हाथों से आँख, कान, नाक बंद करके जलमें डुबकी लगावे | फिर मन-ही-मन कालाग्रिके समान तेजस्वी अस्त्र का स्मरण करते हुए जलसे बाहर निकले | इसतरह मलस्नान एवं संध्योपासन सम्पन्न करके (तंत्रोक्त रीतिसे) विधि-स्नान करना चाहिये (द्रष्टव्य श्लोक- ९,१०, तथा ११) |]
और प्राणायामादि पूर्वक ह्रदय में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस अष्टाक्षर – मंत्रसे हाथ में मिट्टी लेकर उसके तीन भाग करे | फिर नृसिंह-मंत्र के जपपूर्वक (उन तीनों भागों से तीन बार) दिग्बन्ध [प्रत्येक दिशामें वहाँ के विघ्नकारक भूतों को भगाने की भावनासे उक्त मृत्तिका को बिखेरना ‘दिग्बन्ध’ कहलाता हैं | ] करें | इसके बाद ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ इस वासुदेव-मंत्र का जप करके संकल्पपूर्वक तीर्थ-जल का स्पर्श करे | फिर वेद आदि के मंत्रो से अपने शरीर का और आराध्यदेव की प्रतिमा या ध्यानकल्पित विग्रह का मार्जन करे | इसके बाद अघमर्षण-मंत्र का जपकर वस्त्र पहनकर आगे का कार्य करे |
पहले अंगन्यास कर मार्जन-मन्त्रों से मार्जन करें | इसके बाद हाथमें जल लेकर नारायण-मंत्रसे प्राण-संयम करके जल को नासिकासे लगाकर सूँघे | फिर भगवान का ध्यान करते हुए जल का परित्याग कर दे | इसके बाद अर्घ्य देकर (‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय |’ इस) द्वादशाक्षर-मंत्र का जप करें | फिर अन्य देवता आदि का भक्तिपूर्वक तर्पण करे | योगपीठ आदि के क्रम से दिक्पालतक के मन्त्रों और देवताओं का, ऋषियों का , पितरों का, मनुष्यों का तथा स्थावरपर्यंत सम्पूर्ण भूतों का तर्पण करके आचमन करें | फिर अंगन्यास करके अपने ह्रदय में मंर्त्रों का उपसंहार कर पूजन-मंदिर में प्रवेश करें | इसीप्रकार अन्य पूजाओं में भी मूल आदि मन्त्रोंसे स्नान-कार्य सम्पन्न करें ||१-९||
इसप्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘पूजा के लिये सामान्यत: स्नान-विधि का वर्णन’ नामक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ||२२||
– ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
14……****** ||नरसिंह कवच ||**************
||अथ श्री नृसिंहकवचस्तोत्रम् ||
नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा |
सर्वरक्षकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् ||१||
सर्व सम्पत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम् |
ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितम् ||२||
विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिन्दुसमप्रभम् |
लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गम् विभूतिभिरुपाश्रितम् ||३||
चतुर्भुजं कोमलाङ्गं स्वर्णकुण्डलशोभितम् |
सरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितम् ||४||
तप्त काञ्चनसंकाशं पीतनिर्मलवाससम् |
इन्द्रादिसुरमौलिष्ठः स्फुरन्माणिक्यदीप्तिभिः ||५||
विरजितपदद्वन्द्वम् च शङ्खचक्रादिहेतिभिः |
गरुत्मत्मा च विनयात् स्तूयमानम् मुदान्वितम् ||६||
स्व हृत्कमलसंवासं कृत्वा तु कवचं पठेत् |
नृसिंहो मे शिरः पातु लोकरक्षार्थसम्भवः ||७||
सर्वगेऽपि स्तम्भवासः फलं मे रक्षतु ध्वनिम् |
नृसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचनः ||८||
स्मृतं मे पातु नृहरिः मुनिवार्यस्तुतिप्रियः |
नासं मे सिंहनाशस्तु मुखं लक्ष्मीमुखप्रियः ||९||
सर्व विद्याधिपः पातु नृसिंहो रसनं मम |
वक्त्रं पात्विन्दुवदनं सदा प्रह्लादवन्दितः ||१०||
नृसिंहः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ भूभृदनन्तकृत् |
दिव्यास्त्रशोभितभुजः नृसिंहः पातु मे भुजौ ||११||
करौ मे देववरदो नृसिंहः पातु सर्वतः |
हृदयं योगि साध्यश्च निवासं पातु मे हरिः ||१२||
मध्यं पातु हिरण्याक्ष वक्षःकुक्षिविदारणः |
नाभिं मे पातु नृहरिः स्वनाभिब्रह्मसंस्तुतः ||१३||
ब्रह्माण्ड कोटयः कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिम् |
गुह्यं मे पातु गुह्यानां मन्त्राणां गुह्यरूपदृक् ||१४||
ऊरू मनोभवः पातु जानुनी नररूपदृक् |
जङ्घे पातु धराभर हर्ता योऽसौ नृकेशरी ||१५||
सुर राज्यप्रदः पातु पादौ मे नृहरीश्वरः |
सहस्रशीर्षापुरुषः पातु मे सर्वशस्तनुम् ||१६||
महोग्रः पूर्वतः पातु महावीराग्रजोऽग्नितः |
महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वलस्तु नैरृतः ||१७||
पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुखः |
नृसिंहः पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रहः ||१८||
ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमङ्गलदायकः |
संसारभयतः पातु मृत्योर्मृत्युर्नृकेशई ||१९||
इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमण्डितम् |
भक्तिमान् यः पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ||२०||
पुत्रवान् धनवान् लोके दीर्घायुरुपजायते |
कामयते यं यं कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम् ||२१||
सर्वत्र जयमाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् |
भूम्यन्तरीक्षदिव्यानां ग्रहाणां विनिवारणम् ||२२||
वृश्चिकोरगसम्भूत विषापहरणं परम् |
ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणम् ||२३||
भुजेवा तलपात्रे वा कवचं लिखितं शुभम् |
करमूले धृतं येन सिध्येयुः कर्मसिद्धयः ||२४||
देवासुर मनुष्येषु स्वं स्वमेव जयं लभेत् |
एकसन्ध्यं त्रिसन्ध्यं वा यः पठेन्नियतो नरः ||२५||
सर्व मङ्गलमाङ्गल्यं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति |
द्वात्रिंशतिसहस्राणि पठेत् शुद्धात्मनां नृणाम् ||२६||
कवचस्यास्य मन्त्रस्य मन्त्रसिद्धिः प्रजायते |
अनेन मन्त्रराजेन कृत्वा भस्माभिर्मन्त्रानाम् ||२७||
तिलकं विन्यसेद्यस्तु तस्य ग्रहभयं हरेत् |
त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्याभिमन्त्र्य च ||२८||
प्रसयेद् यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत् |
तस्य रोगः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः ||२९||
गर्जन्तं गार्जयन्तं निजभुजपतलं स्फोटयन्तं हतन्तं
रूप्यन्तं तापयन्तं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयन्तं क्षिपन्तम् |
क्रन्दन्तं रोषयन्तं दिशि दिशि सततं संहरन्तं भरन्तं
वीक्षन्तं पूर्णयन्तं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ||३०||
||इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंहकवचं सम्पूर्णम् ||
15…… ******॥ नारसिंहसरस्वतीय-अष्टकं॥ ********
॥ इंदुकोटितेज-करुणासिंधु-भक्तवत्सलम् । नंदनात्रिसूनुदत्त, इंदिराक्ष-श्रीगुरुम् ।
गंधमाल्यअक्षतादिवृंददेववंदितम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥१॥
मोहपाशअंधकारछायदूरभास्करम् । आयताक्ष, पाहि श्रियावल्लभेशनायकम् ।
सेव्यभक्तवृंदवरद, भूयो भूयो नमाम्यहम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥२॥
चित्तजादिवर्गषट्कमत्तवारणांकुशम् । तत्त्वसारशोभितात्मदत्त-श्रियावल्लभम् ।
उत्तमावतार-भूतकर्तृ-भक्तवत्सलम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥३॥
व्योमवायुतेज-आपभूमिकर्तृमीश्वरम् । कामक्रोधमोहरहितसोमसूर्यलोचनम् ।
कामितार्थदातृभक्तकामधेनु-श्रीगुरुम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥४॥
पुंडरीक-आयताक्ष, कुंडलेंदुतेजसम् । चंडुदुरितखंडनार्थ – दंडधारि-श्रीगुरुम् ।
मंडलीकमौलि-मार्तंडभासिताननं । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥५॥
वेदशास्त्रस्तुत्यपाद, आदिमूर्तिश्रीगुरुम् । नादबिंदुकलातीत-कल्पपादसेव्ययम् ।
सेव्यभक्तवृंदवरद, भूयो भूयो नमाम्यहम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥६॥
अष्टयोगतत्त्वनिष्ठ, तुष्टज्ञानवारिधिम । कृष्णावेणितीरवासपंचनदीसंगमम् ।
कष्टदैन्यदूरिभक्ततुष्टकाम्यदायकम् । वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम् ॥७॥
नारसिंहसरस्वती-नामअष्टमौक्तिकम् । हारकृत्यशारदेन गंगाधर आत्मजम् ।
धारणीकदेवदीक्षगुरुमूर्तितोषितम् । परमात्मानंदश्रियापुत्रपौत्रदायकम् ॥८॥
नारसिंहसरस्वतीय-अष्टकं च यः पठेत् । घोरसंसारसिंधुतारणाख्यसाधनम् ।
सारज्ञानदीर्घआयुरारोग्यादिसंपदम् । चारुवर्गकाम्यलाभ, वारंवारं यज्जपेत ॥९॥
कंडेनिंदु भक्तजनराभाग्यनिधियभूमंडलदोळगेनारसिंहसरस्वतीया ॥२॥कंडेनिंदुउंडेनिंदुवारिजादोळपादवाराजाकमळांदोळदंतध्यानिसी ॥३॥सुखसुवाजनारुगळा । भोरगेलान्नेकामिफळफळा । नित्यसकळाहूवा । धीनारसिंहसरस्वतीवरानना ॥४॥वाक्यकरुणानेनसुवा । जगदोळगदंडकमंडलुधराशी । सगुणानेनीशीसुजनरिगे । वगादुनीवासश्रीगुरुयतिवरान्न ॥५॥धारगेगाणगापुरडोलकेलाशीहरी । दासिसोनुनादयाकरुणादली । वरावीतुंगमुनाहोरावनुअनुबिना ।नारसिंहसरस्वतीगुरुचरणवन्न ॥६॥राजगखंडीकंडीनेननमा । इंदुकडेनेनमा । मंडलादोळगेयती कुलराये । चंद्रमन्ना ॥७॥तत्त्वबोधायाउपनिषदतत्त्वचरित नाव्यक्तवादपरब्रह्ममूर्तियनायना । शेषशयनापरवेशकायना । लेशकृपयनीवनेवभवासौपालकाना ॥८॥गंधपरिमळादिशोभितानंदासरसाछंदालयोगेंद्रेगोपीवृंदवल्लभना ॥९॥करीयनीयानांपापगुरु । नवरसगुसायन्नीं । नरसिंहसरस्वत्यन्ना । नादपुरुषवादना ॥१०॥
16….*******|| श्री नृसिंह स्तवः ||*************
प्रहलाद ह्रदयाहलादं भक्ता विधाविदारण ।
शरदिन्दु रुचि बन्दे पारिन्द् बदनं हरि ॥१॥
नमस्ते नृसिंहाय प्रहलादाहलाद-दायिने ।
हिरन्यकशिपोर्बक्षः शिलाटंक नखालये ॥२॥
इतो नृसिंहो परतोनृसिंहो, यतो-यतो यामिततो नृसिंह ।
बर्हिनृसिंहो ह्र्दये नृसिंहो, नृसिंह मादि शरणं प्रपधे ॥३॥
तव करकमलवरे नखम् अद् भुत श्रृग्ङं ।
दलित हिरण्यकशिपुतनुभृग्ङंम् ।
केशव धृत नरहरिरुप, जय जगदीश हरे ॥४॥
वागीशायस्य बदने लर्क्ष्मीयस्य च बक्षसि ।
यस्यास्ते ह्र्देय संविततं नृसिंहमहं भजे ॥५॥
श्री नृसिंह जय नृसिंह जय जय नृसिंह ।
प्रहलादेश जय पदमामुख पदम भृग्ह्र्म ॥६॥
17……*****||अथ श्री नृसिंहकवचस्तोत्रम् ||********
नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा |
सर्वरक्षकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् ||१||
सर्व सम्पत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम् |
ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितम् ||२||
विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिन्दुसमप्रभम् |
लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गम् विभूतिभिरुपाश्रितम् ||३||
चतुर्भुजं कोमलाङ्गं स्वर्णकुण्डलशोभितम् |
सरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितम् ||४||
तप्त काञ्चनसंकाशं पीतनिर्मलवाससम् |
इन्द्रादिसुरमौलिष्ठः स्फुरन्माणिक्यदीप्तिभिः ||५||
विरजितपदद्वन्द्वम् च शङ्खचक्रादिहेतिभिः |
गरुत्मत्मा च विनयात् स्तूयमानम् मुदान्वितम् ||६||
स्व हृत्कमलसंवासं कृत्वा तु कवचं पठेत् |
नृसिंहो मे शिरः पातु लोकरक्षार्थसम्भवः ||७||
सर्वगेऽपि स्तम्भवासः फलं मे रक्षतु ध्वनिम् |
नृसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचनः ||८||
स्मृतं मे पातु नृहरिः मुनिवार्यस्तुतिप्रियः |
नासं मे सिंहनाशस्तु मुखं लक्ष्मीमुखप्रियः ||९||
सर्व विद्याधिपः पातु नृसिंहो रसनं मम |
वक्त्रं पात्विन्दुवदनं सदा प्रह्लादवन्दितः ||१०||
नृसिंहः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ भूभृदनन्तकृत् |
दिव्यास्त्रशोभितभुजः नृसिंहः पातु मे भुजौ ||११||
करौ मे देववरदो नृसिंहः पातु सर्वतः |
हृदयं योगि साध्यश्च निवासं पातु मे हरिः ||१२||
मध्यं पातु हिरण्याक्ष वक्षःकुक्षिविदारणः |
नाभिं मे पातु नृहरिः स्वनाभिब्रह्मसंस्तुतः ||१३||
ब्रह्माण्ड कोटयः कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिम् |
गुह्यं मे पातु गुह्यानां मन्त्राणां गुह्यरूपदृक् ||१४||
ऊरू मनोभवः पातु जानुनी नररूपदृक् |
जङ्घे पातु धराभर हर्ता योऽसौ नृकेशरी ||१५||
सुर राज्यप्रदः पातु पादौ मे नृहरीश्वरः |
सहस्रशीर्षापुरुषः पातु मे सर्वशस्तनुम् ||१६||
महोग्रः पूर्वतः पातु महावीराग्रजोऽग्नितः |
महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वलस्तु नैरृतः ||१७||
पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुखः |
नृसिंहः पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रहः ||१८||
ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमङ्गलदायकः |
संसारभयतः पातु मृत्योर्मृत्युर्नृकेशई ||१९||
इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमण्डितम् |
भक्तिमान् यः पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ||२०||
पुत्रवान् धनवान् लोके दीर्घायुरुपजायते |
कामयते यं यं कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम् ||२१||
सर्वत्र जयमाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् |
भूम्यन्तरीक्षदिव्यानां ग्रहाणां विनिवारणम् ||२२||
वृश्चिकोरगसम्भूत विषापहरणं परम् |
ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणम् ||२३||
भुजेवा तलपात्रे वा कवचं लिखितं शुभम् |
करमूले धृतं येन सिध्येयुः कर्मसिद्धयः ||२४||
देवासुर मनुष्येषु स्वं स्वमेव जयं लभेत् |
एकसन्ध्यं त्रिसन्ध्यं वा यः पठेन्नियतो नरः ||२५||
सर्व मङ्गलमाङ्गल्यं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति |
द्वात्रिंशतिसहस्राणि पठेत् शुद्धात्मनां नृणाम् ||२६||
कवचस्यास्य मन्त्रस्य मन्त्रसिद्धिः प्रजायते |
अनेन मन्त्रराजेन कृत्वा भस्माभिर्मन्त्रानाम् ||२७||
तिलकं विन्यसेद्यस्तु तस्य ग्रहभयं हरेत् |
त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्याभिमन्त्र्य च ||२८||
प्रसयेद् यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत् |
तस्य रोगः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः ||२९||
गर्जन्तं गार्जयन्तं निजभुजपतलं स्फोटयन्तं हतन्तं
रूप्यन्तं तापयन्तं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयन्तं क्षिपन्तम् |
क्रन्दन्तं रोषयन्तं दिशि दिशि सततं संहरन्तं भरन्तं
वीक्षन्तं पूर्णयन्तं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ||३०||
||इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंहकवचं सम्पूर्णम् ||
18……********।।लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्रम्।।*********
श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिरंजितपुण्यमूर्ते।
योगीश शाश्वतशरण्यभवाब्धिपोतलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम॥1॥
ब्रम्हेन्द्र-रुद्र-मरुदर्क-किरीट-कोटि-संघट्टितांघ्रि-कमलामलकान्तिकान्त।
लक्ष्मीलसत्कुचसरोरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्॥2॥
संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्र-भीकर-मृगप्रवरार्दितस्य।
आर्तस्य मत्सर-निदाघ-निपीडितस्यलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्॥3॥
संसारकूप-मतिघोरमगाधमूलं सम्प्राप्य दुःखशत-सर्पसमाकुलस्य।
दीनस्य देव कृपणापदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्॥4॥
संसार-सागर विशाल-करालकाल-नक्रग्रहग्रसन-निग्रह-विग्रहस्य।
व्यग्रस्य रागदसनोर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्॥5॥
संसारवृक्ष-भवबीजमनन्तकर्म-शाखाशतं करणपत्रमनंगपुष्पम्।
आरुह्य दुःखफलित पततो दयालो लक्ष्मीनृसिंहम देहिकरावलम्बम्॥6॥
संसारसर्पघनवक्त्र-भयोग्रतीव्र-दंष्ट्राकरालविषदग्ध-विनष्टमूर्ते।
नागारिवाहन-सुधाब्धिनिवास-शौरे लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्॥7॥
संसारदावदहनातुर-भीकरोरु-ज्वालावलीभिरतिदग्धतनुरुहस्य।
त्वत्पादपद्म-सरसीशरणागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्॥8॥
संसारजालपतितस्य जगन्निवास सर्वेन्द्रियार्थ-बडिशार्थझषोपमस्य।
प्रत्खण्डित-प्रचुरतालुक-मस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्॥9॥
सारभी-करकरीन्द्रकलाभिघात-निष्पिष्टमर्मवपुषः सकलार्तिनाश।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्यलक्ष्मीनृसिंहमम देहि करावलम्बम्॥10॥
अन्धस्य मे हृतविवेकमहाधनस्य चौरेः प्रभो बलि भिरिन्द्रियनामधेयै।
मोहान्धकूपकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्॥11॥
लक्ष्मीपते कमलनाथ सुरेश विष्णो वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।
ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम्॥12॥
यन्माययोर्जितवपुःप्रचुरप्रवाहमग्नाथमत्र निबहोरुकरावलम्बम्।
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुवतेत स्तोत्र कृतं सुखकरं भुवि शंकरेण॥13॥
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्याकृतं लक्ष्मीनृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
19……****।।श्री लक्ष्मी नृसिंह सर्वसिद्धिकर ऋणमोचन स्तोत्र।।**********
देवकार्य सिध्यर्थं सभस्तंभं समुद् भवम।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।1।।
लक्ष्म्यालिन्गितं वामांगं, भक्ताम्ना वरदायकं।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।2।।
अन्त्रांलादरं शंखं, गदाचक्रयुध धरम्।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।3।।
स्मरणात् सर्व पापघ्नं वरदं मनोवाञ्छितं।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।4।।
सिहंनादेनाहतं, दारिद्र्यं बंद मोचनं।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।5।।
प्रल्हाद वरदं श्रीशं, धनः कोषः परिपुर्तये।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।6।।
क्रूरग्रह पीडा नाशं, कुरुते मंगलं शुभम्।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।7।।
वेदवेदांगं यद्न्येशं, रुद्र ब्रम्हादि वंदितम्।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।8।।
व्याधी दुखं परिहारं, समूल शत्रु निखं दनम्।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।9।।
विद्या विजय दायकं, पुत्र पोत्रादि वर्धनम्।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।10।।
भुक्ति मुक्ति प्रदायकं, सर्व सिद्धिकर नृणां।
श्री नृसिंह महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ।।11।।
उर्ग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तम् सर्वतोमुखं।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्य मृत्युं नमाम्यहम।।
य: पठेत् इंद् नित्यं संकट मुक्तये।
अरुणि विजयी नित्यं, धनं शीघ्रं माप्नुयात्।।
।।श्री शंकराचार्य विरचित सर्वसिद्धिकर ऋणमोचन स्तोत्र संपूर्णं।।
20..…***** ऋणविमोचन नृसिंह स्तोत्रम् ||**********
देवता कार्यसिध्यर्थं सभास्तम्भसमुद्भवम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गं भक्तानामवरदायकम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
आन्त्रमालाधरं शङ्खचक्राब्जायुधधारिणम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
स्मरणात्सर्वपापघ्नं कद्रुजं विषनाशनम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
सिंहनादेन महता दिग्दन्तिभयनाशनम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
प्रह्लादवरदं श्रीशं दैत्येश्वरविदारिणम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
क्रूरग्रहपीड़िताणां भक्तानाम् अभयप्रदम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
वेद्वेदान्त यज्ञेशं ब्रह्मरुद्रादिवंदितम्
श्रीनृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये
य इदं पठते नित्यं ऋणमोचनसंज्ञितम्
अनृणीजायते सद्यो धनं शीघ्रमवाप्नुयात्
||इति श्रीनृसिंहपुराणे ऋणमोचनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
21….. नृसिंह कवचम
नृसिंह कवचम वक्ष्येऽ प्रह्लादनोदितं पुरा । सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनं ॥
सर्वसंपत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम । ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितं॥
विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिंदुसमप्रभं । लक्ष्म्यालिंगितवामांगम विभूतिभिरुपाश्रितं ॥
चतुर्भुजं कोमलांगम स्वर्णकुण्डलशोभितं । ऊरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितं ॥
तप्तकांचनसंकाशं पीतनिर्मलवासनं । इंद्रादिसुरमौलिस्थस्फुरन्माणिक्यदीप्तिभि: ॥
विराजितपदद्वंद्वं शंखचक्रादिहेतिभि:। गरुत्मता च विनयात स्तूयमानं मुदान्वितं ॥
स्वहृतकमलसंवासम कृत्वा तु कवचम पठेत
नृसिंहो मे शिर: पातु लोकरक्षात्मसंभव:।
सर्वगोऽपि स्तंभवास: फालं मे रक्षतु ध्वनन । नरसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचन: ॥
शृती मे पातु नरहरिर्मुनिवर्यस्तुतिप्रिय: । नासां मे सिंहनासास्तु मुखं लक्ष्मिमुखप्रिय: ॥
सर्वविद्याधिप: पातु नृसिंहो रसनां मम । वक्त्रं पात्विंदुवदन: सदा प्रह्लादवंदित:॥
नृसिंह: पातु मे कण्ठं स्कंधौ भूभरणांतकृत । दिव्यास्त्रशोभितभुजो नृसिंह: पातु मे भुजौ ॥
करौ मे देववरदो नृसिंह: पातु सर्वत: । हृदयं योगिसाध्यश्च निवासं पातु मे हरि: ॥
मध्यं पातु हिरण्याक्षवक्ष:कुक्षिविदारण: । नाभिं मे पातु नृहरि: स्वनाभिब्रह्मसंस्तुत: ॥
ब्रह्माण्डकोटय: कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिं । गुह्यं मे पातु गुह्यानां मंत्राणां गुह्यरुपधृत ॥
ऊरु मनोभव: पातु जानुनी नररूपधृत । जंघे पातु धराभारहर्ता योऽसौ नृकेसरी ॥
सुरराज्यप्रद: पातु पादौ मे नृहरीश्वर: । सहस्रशीर्षा पुरुष: पातु मे सर्वशस्तनुं ॥
महोग्र: पूर्वत: पातु महावीराग्रजोऽग्नित:। महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वालस्तु निर्रुतौ ॥
पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुख: । नृसिंह: पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रह: ॥
ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमंगलदायक: । संसारभयद: पातु मृत्यूर्मृत्युर्नृकेसरी ॥
इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमंडितं । भक्तिमान्य: पठेन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥
पुत्रवान धनवान लोके दीर्घायुर्उपजायते । यंयं कामयते कामं तंतं प्रप्नोत्यसंशयं॥
सर्वत्र जयवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत । भुम्यंतरिक्षदिवानां ग्रहाणां विनिवारणं ॥
वृश्चिकोरगसंभूतविषापहरणं परं । ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणं ॥
भूर्जे वा तालपत्रे वा कवचं लिखितं शुभं । करमूले धृतं येन सिद्ध्येयु: कर्मसिद्धय: ॥
देवासुरमनुष्येशु स्वं स्वमेव जयं लभेत । एकसंध्यं त्रिसंध्यं वा य: पठेन्नियतो नर: ॥
सर्वमंगलमांगल्यंभुक्तिं मुक्तिं च विंदति ।
द्वात्रिंशतिसहस्राणि पाठाच्छुद्धात्मभिर्नृभि: । कवचस्यास्य मंत्रस्य मंत्रसिद्धि: प्रजायते ॥
आनेन मंत्रराजेन कृत्वा भस्माभिमंत्रणम । तिलकं बिभृयाद्यस्तु तस्य गृहभयं हरेत ॥
त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्यभिमंत्र्य च । प्राशयेद्यं नरं मंत्रं नृसिंहध्यानमाचरेत ।
तस्य रोगा: प्रणश्यंति ये च स्यु: कुक्षिसंभवा: ॥
किमत्र बहुनोक्तेन नृसिंहसदृशो भवेत । मनसा चिंतितं यस्तु स तच्चाऽप्नोत्यसंशयं ॥
गर्जंतं गर्जयंतं निजभुजपटलं स्फोटयंतं हरंतं दीप्यंतं तापयंतं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयंतं रसंतं ।
कृंदंतं रोषयंतं दिशिदिशि सततं संभरंतं हरंतं । विक्षंतं घूर्णयंतं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ॥
॥इति प्रह्लादप्रोक्तं नरसिंहकवचं संपूर्णंम ॥
22…..*** Ugranrsimha Stuti******
व्याधूतकेसरसटाविकरालवक्त्रं
हस्ताग्रविस्फुरितशङ्खगदासिचक्रम् |
आविष्कृतं सपदि येन नृसिंहरूपं
नारायणं तमपि विश्वसृजं नमामि ||
चञ्चच्चण्डनखाग्रभेदविहलद्दैत्येन्द्रवक्षः क्षर-
द्रक्ताभ्यक्तसुपाटलोद्भटसदासंभ्रान्तभीमाननः |
तिर्यक्कण्ठकठोरघोषघटनासर्वाङ्गखर्वीभव-
द्दिङ्मातङ्गनिरीक्षितो विजयते वैकुण्ठकण्ठीरवः ||
दैत्यानामधिपे नखाङ्कुरकुटीकोणप्रविष्टात्मनि
स्फारीभूतकरालकेसरसटासङ्घातघोराकृतेः |
सक्रोधं च सविस्मयं च सगुरुव्रीडं च सान्तः स्मितं
क्रीडाकेसरिणो हरेर्विजयते तत्कालमालोकितम् ||
सुरासुरशिरोरत्नकान्तिविच्छुरिताङ्घ्रये |
नमस्त्रिभुवनेशाय हरये सिंहरूपिणे ||
23…. सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥.
********** दिग्बन्धन ****************
मन्त्र से जल, सरसों या पीले चावलों को ( अपने चारों ओर ) छोड़ें –
मन्त्र – ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः ।
दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥
पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।
उत्तरे श्री पति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥
ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु ।
अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु ॥
अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ।
अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ॥
ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ।
अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।
24………*****-: नरसिंह स्तोत्र :-*********
उदयरवि सहस्रद्योतितं रूक्षवीक्षं प्रळय जलधिनादं कल्पकृद्वह्नि वक्त्रम् |
सुरपतिरिपु वक्षश्छेद रक्तोक्षिताङ्गं प्रणतभयहरं तं नारसिंहं नमामि ||
प्रळयरवि कराळाकार रुक्चक्रवालं विरळय दुरुरोची रोचिताशांतराल |
प्रतिभयतम कोपात्त्युत्कटोच्चाट्टहासिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१||
सरस रभसपादा पातभाराभिराव प्रचकितचल सप्तद्वन्द्व लोकस्तुतस्त्त्वम् |
रिपुरुधिर निषेकेणैव शोणाङ्घ्रिशालिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||२||
तव घनघनघोषो घोरमाघ्राय जङ्घा परिघ मलघु मूरु व्याजतेजो गिरिञ्च |
घनविघटतमागाद्दैत्य जङ्घालसङ्घो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||३||
कटकि कटकराजद्धाट्ट काग्र्यस्थलाभा प्रकट पट तटित्ते सत्कटिस्थातिपट्वी |
कटुक कटुक दुष्टाटोप दृष्टिप्रमुष्टौ दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||४||
प्रखर नखर वज्रोत्खात रोक्षारिवक्षः शिखरि शिखर रक्त्यराक्तसंदोह देह |
सुवलिभ शुभ कुक्षे भद्र गंभीरनाभे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||५||
स्फुरयति तव साक्षात्सैव नक्षत्रमाला क्षपित दितिज वक्षो व्याप्तनक्षत्रमागर्म् |
अरिदरधर जान्वासक्त हस्तद्वयाहो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||६||
कटुविकट सटौघोद्घट्टनाद्भ्रष्टभूयो घनपटल विशालाकाश लब्धावकाशम् |
करपरिघ विमदर् प्रोद्यमं ध्यायतस्ते दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||७||
हठलुठ दल घिष्टोत्कण्ठदष्टोष्ठ विद्युत् सटशठ कठिनोरः पीठभित्सुष्ठुनिष्ठाम् |
पठतिनुतव कण्ठाधिष्ठ घोरांत्रमाला दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||८||
हृत बहुमिहि राभासह्यसंहाररंहो हुतवह बहुहेति ह्रेपिकानंत हेति |
अहित विहित मोहं संवहन् सैंहमास्यम् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||९||
गुरुगुरुगिरिराजत्कंदरांतगर्तेव दिनमणि मणिशृङ्गे वंतवह्निप्रदीप्ते |
दधदति कटुदंष्प्रे भीषणोज्जिह्व वक्त्रे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१०||
अधरित विबुधाब्धि ध्यानधैयर्ं विदीध्य द्विविध विबुधधी श्रद्धापितेंद्रारिनाशम् |
विदधदति कटाहोद्घट्टनेद्धाट्टहासं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||११||
त्रिभुवन तृणमात्र त्राण तृष्णंतु नेत्र त्रयमति लघिताचिर्विर्ष्ट पाविष्टपादम् |
नवतर रवि ताम्रं धारयन् रूक्षवीक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१२||
भ्रमद भिभव भूभृद्भूरिभूभारसद्भिद् भिदनभिनव विदभ्रू विभ्र मादभ्र शुभ्र |
ऋभुभव भय भेत्तभार्सि भो भो विभाभिदर्ह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१३||
श्रवण खचित चञ्चत्कुण्ड लोच्चण्डगण्ड भ्रुकुटि कटुललाट श्रेष्ठनासारुणोष्ठ |
वरद सुरद राजत्केसरोत्सारि तारे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१४||
प्रविकच कचराजद्रत्न कोटीरशालिन् गलगत गलदुस्रोदार रत्नाङ्गदाढ्य |
कनक कटक काञ्ची शिञ्जिनी मुद्रिकावन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१५||
अरिदरमसि खेटौ बाणचापे गदां सन्मुसलमपि दधानः पाशवयार्ंकुशौ च |
करयुगल धृतान्त्रस्रग्विभिन्नारिवक्षो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१६||
चट चट चट दूरं मोहय भ्रामयारिन् कडि कडि कडि कायं ज्वारय स्फोटयस्व |
जहि जहि जहि वेगं शात्रवं सानुबंधं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१७||
विधिभव विबुधेश भ्रामकाग्नि स्फुलिङ्ग प्रसवि विकट दंष्प्रोज्जिह्ववक्त्र त्रिनेत्र |
कल कल कलकामं पाहिमां तेसुभक्तं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१८||
कुरु कुरु करुणां तां साङ्कुरां दैत्यपूते दिश दिश विशदांमे शाश्वतीं देवदृष्टिम् |
जय जय जय मुर्तेऽनार्त जेतव्य पक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१९||
स्तुतिरिहमहितघ्नी सेवितानारसिंही तनुरिवपरिशांता मालिनी साऽभितोऽलम् |
तदखिल गुरुमाग्र्य श्रीधरूपालसद्भिः सुनिय मनय कृत्यैः सद्गुणैर्नित्ययुक्ताः ||२०||
लिकुच तिलकसूनुः सद्धितार्थानुसारी नरहरि नुतिमेतां शत्रुसंहार हेतुम् |
अकृत सकल पापध्वंसिनीं यः पठेत्तां व्रजति नृहरिलोकं कामलोभाद्यसक्तः ||२१||
इति श्री नरसिंह स्तुतिः संपूणर्म्..
25…… यह मायापुर इस्कॉन मे नरसिंह देव का मन्दिर हे। यह मन्दिर नदिया जिला , पश्चिम बंगाल में स्थित है।
नरसिंह नर + सिंह (“मानव-सिंह”) को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।
जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे
वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो
विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्
“हे’ क्रुद्ध एवं शूरवीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है. हे’नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्षा आत्मसमर्पण करता हूँ”||