विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्| रूपंदेहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषोजहि||
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब.–09024.90067) के अनुसार नवरात्र माता की उपासना करने का विशेष समय होता है। इन नौ दिनों में सभी तन-मन से माता की आराधना करते हैं। इस त्योहार की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। अगर आप भी माता की आराधना कर आपकी मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो नीचे लिखे गए तरीके से माता की स्थापना करें-
घट स्थापना :-
घट स्थापना व पूजा प्रारंभ :—-
इस वर्ष शारदीय नवरात्रों की शुरुआत 16 अक्टूबर से मंगलवार के दिन मंगल के ही नक्षत्र चित्रा से हो रही है। चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना करना अशुभ माना जाता है। अत सुबह स्वाति नक्षत्र में कलश की स्थापना करे जो की छह बजकर 45 मिनट पर शुरू हो जाएगा। वैसे कलश लाभ की चौघडि़या व अभिजीत मुहूर्त में स्थापना करना चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार स्थिर लग्न में किए हुए कार्य पूर्ण होते है, शुभ फल देने वाले होते है। साथ ही किए हुए कार्य का प्रभाव भी स्थायी होता है। इसलिए शुभ कार्यों को करने से पहलें स्थिर लग्न का विचार किया जाता।घट स्थापना का शुभ समय: —स्थिर लग्न – सुबह 9.18 बजे से 11.07 बजे तक
राहुकाल- प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक रहेगा।(16 अक्तूबर,2012 को मंगलवार)
मूर्ति या तस्वीर स्थापना:- माँ दुगा की मूर्ती या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र(अपनी सुविधानुसार) के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली अक्षत(बिना टूटा हुआ चावल), धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
आसन:- लाल अथवा सफेद आसन पूरब की ओर बैठकर नवरात्रि करने वाले विशेष को पूजा, मंत्र जप, हवन एवं अनुष्ठान करना चाहिए।
कुलदेवी का पूजन:- हर परिवार में मान्यता अनुसार जो भी कुलदेवी है उनका श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा अर्चना करना चाहिए।