इस वर्ष .. नवम्बर, .0.3 (रविवार) को मनाया जायेगा दिपावली(दीवाली/दीपोत्सव) का त्यौहार —–
(DEEPAWALI,DIWALI,DIPAVALI,DIPOTSAV)


श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है. धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आशिर्वाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है.


दीवाली पर लक्ष्‍मी-गणेश पूजन के शुभ मुहूर्त(स्थिर लग्न में करें पूजन)….


विशेष पूजन मुहूर्त —–
कुम्भ लग्न—-समय–दोपहर में 01 बजकर 46  मिनिट से दोपहर 3  बजकर 17  मिनिट तक….
निशीथ काल—-समय–रात्रि में को 11 बजकर 44  मिनिट से रात्रि 12  बजकर 36  मिनिट तक…
प्रदोष काल—समय–शाम को 05  बजकर 40  मिनिट से रात्रि 08  बजकर 16  मिनिट तक…


दीपावली के दिन लक्ष्‍मी पूजन के लिये चार अलग-अलग मुहूर्त यानी लग्‍न होते हैं। 
1-वृष, 2-सिंह, 3-वृश्चिक, 4-कुम्भ लग्‍न। 


वृष लग्न- इस स्थिर लग्न में सभी प्रकार के गृहस्थ, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग, ग्रामीण जन, कृषक, नौकरीपेशा और सभी प्रकार के व्यापारियों को वृष लग्न में पूजन करने ये अद्भुतलाभ की प्राप्ति होती है। 
समय–शाम को 06  बजकर 25  मिनिट से रात्रि 08  बजकर 21  मिनिट तक…


सिंह लग्न- सिंह लग्न का मूलतः तांत्रिक साधना में विशेष महत्व है। इस लग्न में साधु सन्त, सन्यासी, तथा तांत्रिक जन अपनी साधना को सफल करने के लिए मा लक्ष्मी का पूजन करते है। इस काल में श्री यन्त्र और गणेश-लक्ष्मी यन्त्र को बनाने का विधान है। 
समय–रात्रि 12 बजकर 58  मिनिट से रात्रि 03 बजकर 10  मिनिट तक…


वृश्चिक लग्न- इस लग्न में पूजन करने से सद्बुद्धि, विकास, समृद्धि और धन की स्थिरता बनी रहती है। मन्दिरों, अस्पताल, होटल व्यवसाय, विद्यालय आदि में इसी लग्न में पूजन करना शुभ व लाभकारी रहता है। पब्लिक सेक्टर से जुड़े लोगों को इसी लग्न में पूजन करना चाहिए। जैसे-राजनीति से जुड़े लोग, कलाकार, टीवी कलाकार, ऐंकर, बीमा ऐजेन्ट आदि। 


मकर लग्न- इस लग्न में श्री लक्ष्मी पूजन उन लोगों को करना चाहिए जैसे- रोगी, असहाय कर्जदार, या शनि ग्रह से पीडि़त लोगों को इस लग्न में पूजन करने से सर्वबाधा से मुक्ति मिलकर धन व समृद्धि की प्राप्ति होती है। जो लोग व्यवसाय में लगातार घाटा उठा रहें तथा कर्ज से परेशान है। ऐसे लोगों को कुम्भ लग्न में पूजन करने घाटे व कर्ज से मुक्ति मिलती है।


वर्ष 2013 में दिपावली, 3 नवम्बर, रविवार के दिन की रहेगी. इस दिन स्वाती नक्षत्र है, इस दिन प्रीति योग तथा चन्दमा तुला राशि में संचार करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है. रविवार की दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है.


दीवाली भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण पावन पर्व हैं। हर गाँव नगर और प्रांतों में हर जाति एवं धर्म के लोग इस पर्व को मनाते हैं। दीवाली को त्योहार का रूप देने में भारतीय संस्कृति के लोक-व्यवहारों का प्रमुख योग रहा हैं। घरों की सफ़ाई दीवाली के कई दिन पूर्व से की जाती है। गाँवों और क़स्बों में आज भी लोग-बाग स्वयं अपने घरों की सफ़ाई दीवाली से हफ़्तों पहले प्रारंभ करते हैं। घरों की लिपाई और पुताई का प्रचलन आज भी दृष्टिगत होता है। गाँवों में जहाँ कच्चे मकान मिट्टी के बने होते हैं, वहाँ गोबर की लिपाई दीवारों, छतों और फ़र्श पर की जाती हैं। गोबर गंदे वातावरण को दूर कर कीटनाशन गुण रखने वाले पदार्थ हैं। हमारे स्वास्थ्य के लिए भी गोबर की उपयोगिता को वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है।


शहरों में जहाँ मकान पक्के बने होते हैं वहाँ मकानों पर कलई, सफ़ेदी की पुताई अथवा रंगों की सजावट की जाती हैं। चूना भी कीटनाशक पदार्थ हैं। दीवारों और छतों पर चूने की पुताई करके हम अपने घर के वातावरण को स्वच्छ और शुद्ध बनाते हैं। घरों की सफ़ाई में ही निहित हैं और अपने गाँव और शहर की सफ़ाई और नगर की स्वच्छता में ही छिपा हुआ हैं, वहाँ के निवासियों का स्वास्थ्य। इस प्रकार दीवाली के अवसर पर की जाने वाली घरों की सफ़ाई में हमारे नगर प्रांत और देश की स्वच्छता और हमारे स्वास्थ्य की भावना प्रवाहित होती है। इतना ही नहीं एक दूसरे के मकानों की सफ़ाई में हम लोग आपस में सहयोग करते हैं। समाज के कल्याण और दूसरों की भलाई करने के लिए यह सहयोग व्यापक रूप ग्रहण कर लेता हैं, जिसमें हमारी यह भावना अंतर्निहित रहती हैं कि हम दूसरों के स्वास्थ्य और साफ़ रहने की कामना करते हैं।


दीवाली के अवसर पर घरों में चौंक पूरे जाते हैं। दरवाज़ों पर रंगोली रचाई जाती हैं और आँगन में अल्पना सजाई जाती हैं। घर के मुख्य द्वार पर “शुभ लाभ” लिखना अथवा गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति बनाने की प्रथा आज भी दृष्टिगत होती है। कहीं-कहीं तो घर के मुख्य दरवाज़े पर दोनों ओर रंग-बिरंगे हाथी बनाए जाने की प्रथा भी हैं। हाथी लक्ष्मी का सहचर हैं और गणेश बुद्धि तथा सफलता के देव हैं। दीवाली से ही व्यापारी लोग अपना नया साल शुरू करते हैं। शुरू करने को ही श्री गणेश भी कहा जाता है। अत: लक्ष्मी गणेश और हाथी के चित्र हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में आने वाले वर्ष के लिए सुख, समृद्धि और सफलता की कामना के प्रतीक हैं।


शुभ गणेश का प्रतीक हैं और लाभ लक्ष्मी का। इसलिए दीवाली के दिन लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश की भी पूजा होती हैं। लक्ष्मी सामाजिक समृद्धि का आधार स्तंभ हैं, जिसकी कामना ग़रीब और अमीर सभी करते हैं। लेकिन केवल समृद्धि ही सब कुछ नहीं हैं। लक्ष्मी (धन) के सदुपयोग के लिए बुद्धि और विवेक की आवश्यकता होती हैं। बुद्धि और विवेक के अभाव में धन का दुरुपयोग होने से हमारा नैतिक पतन अवश्यंभावी हैं। हमारे आसपास ऐसे उदाहरण कम नहीं हैं, जहाँ धन की बहुतायत वाले परिवार दुराचरण और अनैतिकता के रास्ते पर चलते-चलते पतन की ओर अभिमुख होते देखे गए हैं। अत: आज के इस पावन पर्व दीवाली के अवसर पर हम लक्ष्मी और गणेश दोनों की पूजा करके सदाचार, विवेकशील और समृद्धिशाली होने की अपनी मनोकामना व्यक्त करते हैं।


दीवाली के दिन घरों पर दीप जलाए जाते हैं और रंग-बिरंगी रोशनी की जाती है। सामाजिक जटिलताओं के कारण दीपावलियों की रोशनी के रूप में और प्रकार में अंतर आ जाता रहा है। हमारी प्रगति की परिचायक विज्ञान के सहारे हम रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों का प्रयोग इस अवसर पर करने लगे हैं। मोमबत्तियों से भी रोशनी की जाती है। मूलरूप मे दीपावली दीपों की रोशनी का उत्सव हैं। मिट्टी के दिये में तेल डालकर रूई की बाती बनाकर दिये जलाए जाने की हमारी लोक परंपरा आज भी अपनी लोक संस्कृति को आलोकित करती है। तेल तरल होता है और वह किसी भी वातावरण में अपने को ढाल लेता है। समाज में परिस्थितियों के अनुकूल समायोजित करने की यह कला से क्यों न सीखे। रूई सफ़ेदी होती है, जो सतोगुण का प्रतीक और निर्मल पावनता का द्योतक है। दीपावलियों की यह ज्योति हमारी आंतरिक प्रसन्नता को व्यक्त करती है।


शादी विवाह के अवसर भी हमारे समाज में रोशनी की जाने की परंपरा है। रंग-बिरंगी रोशनी से आलोकित भवन को देखकर कोई भी व्यक्ति यह सही अनुमान लगा सकता है कि वहाँ खुशियाँ मनाई जा रही है। प्राचीनकाल में जब राजा युद्धस्थल से विजयी होकर वापस लौटते थे तो भी नगर और राज्य में रोशनी की जाकर विजय का स्वागत और प्रसन्नता को आलोकित किया जाता था। राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर भी हम अपने घरों में रोशनी करके स्वतंत्र गणतंत्र के नागरिक होने के गौरव की खुशी प्रकट किए बिना नहीं रहते। अयोध्या के राजा राम द्वारा रावण का वध करने के पश्चात विजयी होकर लौटने पर अयोध्या नगर में खुशी और प्रसन्नता का वातावरण छा गया। इसीलिए दीपों की रोशनी की गई और दीवाली का उत्सव मनाया गया। अस्तु ऐतिहासिक और पौराणिक रूप में भी दीपावलियों हमारी खुशियाँ और प्रसन्नता का प्रतीक है।


दीपावली का यह उज्जवल आलोक अमावस्या के अंधकार को समाप्त-सा करता प्रतीत होता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय के इस पर्व पर हमारी संस्कृति का यह श्लोक “तमसो माँ ज्योर्तिगमय” “हे प्रभु मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल” मुखरित होता है। और हमारे अंतर्ज्ञान को प्रकाशित करता है। आत्मविश्वास और आत्मशक्ति का संचार करने वाला यह श्लोक हमें सुमार्ग की ओर प्रेरित करता है। चलना तो हमें स्वयं ही है। हम ईश्वर से केवल यही प्रार्थना करते हैं कि वह हमें प्रकाश के माध्यम से प्रेरणा देकर सन्मार्ग पर चलने और सद्कार्य करने की शक्ति और क्षमता प्रदान करे। दीपावली के दिन कुमारी कन्याएँ और विवाहित महिलाएँ थाली में जलते हुए दीपों को सजाकर दीपदान करती हुई आज भी गाँव और छोटे क़स्बों में देखी जा सकती हैं। समय के चक्र में हमारी लोक संस्कृति को शहरों में पनपने नहीं दिया है। परंतु वह गाँव में आज भी मौलिक रूप से विद्यमान है।


दीपावली मर्यादा, सत्य, कर्म और सदभावना का सन्देश देता है. सबके साथ मिलकर मिठाई खाने से आपसी प्रेम को बढ़ाने का संदेश मिलता है तो  नए कपड़ो में सजे नन्हें-नन्हें बच्चों को देख लगता है काश हम भी बच्चें होते. पटाखों और दीपों की रोशनी में नहाया वातावरण धरती पर आकाश के होने की गवाही देता नजर आता है.


राजस्थान और मालवा में तो दीपदान की प्रथा बड़े शहरों में भी दिखाई देती हैं। दीपदान में ये महिलाएँ आस-पड़ोस में घर-घर जलते हुए दीपक बाँटती फिरती है। दीपदान का यह व्यावहारिक रूप एक परिवार से दूसरे परिवार में चलता हैं। हम अपने इष्ट मित्रों और पारिवारिक संबंधियों के घरों में दीपदान करते हैं। दीपों का आदान-प्रदान होता हैं और उसी क्रम में दूसरे परिवार की महिलाएँ भी हमारे घरों में आलोकित दीप लेकर आती है। जलता हुआ दीपक हमारे स्नेह और सदाचार की कामना प्रतीक है। प्रसन्नता को प्रकट करने वाले आलोकित दीपक को समाज में आपस में बाँटते हुए हम एक दूसरे से अपनी प्रसन्नता, समृद्धि और सहयोग का वितरण समाज में करते हैं। सुख और समृद्धि में ही हमारी खुशी समाहित होती है। प्रसन्नता और समृद्धि के प्रतीक दीपदान में हमारी लोक संस्कृति की लोक कल्याण और लोक सहयोग की कामना प्रकट होती है।


दीवाली के त्योहार रोशनी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. दुनिया भर में, दीवाली उत्सव चरम उत्साह और जोश के साथ भारतीयों द्वारा मनाया जाता है. दिवाली पर सूचना प्रकाश आतिशबाजी और नष्ट पटाखों से दिन पर समारोह भी शामिल है. लोग प्रकाश दीये और लंका से अयोध्या के लिए भगवान राम की वापसी मनाया के लिए मोमबत्ती का उपयोग करें. वे रावण पर भगवान राम की जीत का जश्न मनाने. इसलिए, त्योहार बहुत खुशी लाता है. लोगों को सफेद करने के लिए अपने घरों को धोने और रंगोली, प्रकाश और मोमबत्तियों के साथ इसे सजाने का उपयोग करें. दीवाली के दिन पर, लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. वे, रोशनी, पटाखों के साथ उनके घरों को सजाने मिठाई वितरित और खरीदारी के लिए जाना, नए कपड़े पहनते हैं.

लोग अपने त्योहार के बारे में बहुत उत्साहित हैं और इस तरह वे दीवाली के दिन से पहले एक महीने की तैयारी शुरू. वे सफेद, उनके घरों धो रोशनी, रंगोली साथ इसे सजाने और मिठाई और प्रकाश पटाखे तैयार करते हैं. वे खुद के लिए और भी अपने प्रियजनों के लिए खरीदारी के लिए जाना. वे रिश्ते और दोस्ती के बंधन को मजबूत करने के लिए उपहार और मिठाई दे.


यह दीपोत्सव भगवान विष्णु का गृहस्थ रूप है। यदि गणेश जी का पूजन न किया जाए तो लक्ष्मी जी भी नहीं टिकेंगी। अतः दोनों का पूजन आवश्यक है। इस महोत्सव का ‘पर्वकाल’ धनत्रयोदशी (धनतेरस) से प्रारंभ हो जाता है। इन तीनों दिनों में सूर्यास्त के उपरांत ‘प्रदोषकाल’ में दीपदान अवश्य करना चाहिए। धनतेरस को सायंकाल घर के प्रवेश द्वार के बाहर यमराज के निमि दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। प्रकाश की उपासना सूर्य,  और दीपक के रूप में सदा होती रही है। सूर्य भी प्राणियों को जन्म देने के लिए, उन्हें प्रकाश प्रदान करने के लिए भगवान के दक्षिण नेत्र से प्रकट हुआ। उसने अपने तेज का आधान अग्नि में किया और वह तेज अग्नि से दीपक को मिला। 


दीपक शब्द की  दीप-दीप्तौ नामक धातु से हैं, जिसका अर्थ है चमकना, जलना, ज्योतिर्मय होना, प्रकाशित होना। इसके अतिरिक्त और भी अनेक अर्थ हैं। प्रत्येक संप्रदाय और मजहब में दीपक का महŸव स्वीकारा गया है। लंका विजयोपरांत भी अयोध्या में घी के दीपक जलाये गये थे। इस प्रकार सभी धर्मों की प्रार्थना व उपासनाएं जुड़ी हैं। कार्तिक मास की अमावस्या घनघोर अंधकार से व्याप्त रहती है जिसमें बाधाओं-विघ्नों का आना संभव है। ये विघ्न आधिदैहिक, आधिभौतिक, आधिदैविक हैं। ये विघ्न जीवात्मा को पीड़ित करते हैं। 


अतः विघ्न विनाशक स्वरूप गणेश की आवश्यकता हुई। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश इन पांच तत्वों से दीपक की दिव्यता प्रकाशित हुई है और ये ही पांचतत्व सृष्टि के उपादान-कारण भी हैं। इनमें प्रकाश होने से ही आत्मतेज की अनुभूति होती है। तेल से भरे हुए इन दीपकों के प्रकाश से तेल (स्नेह) की गंध से विषैले कीटाणुओं का नाश होता है, वातावरण में शुद्धता व पवित्रता उत्पन्न होती है तथा चमक-दमक से स्फूर्ति और प्रसन्नता मिलती है। सभी के लिए इन दीपकों का अर्चन, वंदन और पूजन करने की छूट है। दीपावली का यह महोत्सव एक नवीन जीवंतता का भी श्रीगणेश करता है।


असल में इन पांच दिनों में धन की भी पांच रुपों में पूजा की जाती है। धन के यह रुप हैं पहले दिन स्वास्थ्य, दूसरे दिन शरीर, तीसरे दिन धन, समृद्धि रुपी लक्ष्मी, चौथे दिन गो धन, पांचवे दिन भाई-बहन के रिश्तों का धन। धन के साथ इन दिनों खुशहाल जीवन के लिए यम पूजा और दीपदान भी किया जाता है।


उमंग, उल्लास और ऊर्जा को भारत के कोने-कोने में पहुचांने में यहां के विविध त्यौहारों का अहम स्थान है. वर्ष की शुरुआत में ही खिचड़ी से लेकर अंत तक क्रिसमस मनाने वाले इस देश में ऐसे कई त्यौहार आते हैं जो एकता के परिचायक भी बनते हैं. इन्हीं में से एक है कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्यौहार दिपावली. भारत में हिन्दुओं के इस सबसे खास त्यौहार को सभी धर्मों के लोग समान हर्षोल्लास से मनाते है. दीपावली  को असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है.


यह हर धर्म के लोगों ने देश भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है. त्योहार यह जो धर्म या आप को सदस्य बनने के लिए दुनिया का हिस्सा है जो परेशान नहीं करता है कि इतना सुंदर और रहस्यपूर्ण है. हर कोई अपने उत्सव में शामिल हो जाता है और अपनी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो जाता है. लोग मिठाई, कपड़े, आतिशबाजी और मिठाई के लिए परिवार की खरीदारी के लिए जाने के रूप में यह त्योहार भी वाणिज्यिक वार्षिक उपभोक्ता होड़ में से एक बन गया है. इस दिवाली के त्योहार की खूबसूरती और पहेली है.


पांच दिनों के लिए मनाया जाता है, जो दिवाली त्योहार के बारे में जानकारी. यह अमावस्या कहा जाता है अंधेरी रात है जो कार्तिक महीने के पन्द्रहवें दिन, पर मनाया जाता है. दो दिन दीवाली के त्योहार से पहले, धनतेरस त्योहार धन्वन्तरि त्रयोदशी के साथ शुरू होता है, जो मनाया जाता है. हिंदुओं कैलेंडर के अनुसार, यह कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की 13 वीं चांद्र दिन है. इस दिन नए बर्तन खरीद के लिए अपनी एक परंपरा. दीवाली के त्योहार से एक दिन पहले, छोटी दीवाली मनाई जाती है. छोटी दीवाली भी नरक चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है. तीसरे दिन, यानी, दीवाली के दिन लोगों को आशीर्वाद पाने के लिए भगवान गणेश के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घरों में धन और समृद्धि है. दीवाली के अगले दिन, पड़वा या गोवर्धन पूजा मनाया जाता है. लोग उसकी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत धारण करके भारी बारिश से लोगों की रक्षा की है जो भगवान गोवर्धन की पूजा. पांचवें दिन, भाई दूज या भैया दूज मनाया जाता है. इस दिन बहन और भाई के रिश्ते को मनाता है.


दीपदान के इस पावन पर्व पर दीपावली के त्योहार में छिपी अपनी लोक संस्कृति को हम चिरस्थायी बना सकें। ऐसा सोचने समझने और करने की आवश्यकता है। लोक संस्कृति की रक्षा का दायित्व सरकार और समाज दोनों का है परंतु इस क्षेत्र में सरकार उतना महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकती जितना हमारा समाज कर सकता है। क्या हम यह आशा कर सकते हैं कि दीपदान की यह परंपरा गाँवों और क़स्बों से बाहर निकलकर बड़े शहरों में आए और स्नेह और सद्भाव का वातावरण बनाने में सहायक हो। दीपदान के पर्व पर कुछ तो ऐसा कार्य करें – शुभकामनाएँ और खुशियाँ आपस में बाँटे और सहयोग की इस भावना में निष्ठा को सम्मिलित करें। औपचारिकता के धुँध को चीर कर सच्ची भावना से हम अपनी अपने परिवार और समाज की और फिर देश और विश्व की सुख समृद्धि की कामना करते रहें। आओ, दीपदान के इस लोक पर्व पर हम सद्भावना के साथ आपसी मैत्री सहयोग और भाईचारे की भावना की त्रिवेणी में अवगाहन करें।


दीपोत्सव पर धन साधना संदेश देती है कि हमारी परंपरा में धन को लक्ष्मी माना गया है। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल माना जाता है। चंचलता धन का भी स्वभाव होती है। वह चलता रहता है। धन ऊर्जावान होता है जो जीवन के लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होता है। इसी तरह जीवन में भी गति आवश्यक है।
हम सदा सक्रिय रहें, ऊर्जा से भरे रहें। निरंतर आगे बढऩे से ही व्यक्ति का विकास होता है। किंतु जीवन में बढ़ते रहने के लिए यह भी जरूरी है कि हम निरोग रहें। इसके लिए मेहनत और आत्म-अनुशासन अहम है। इससे हम तनावों से दूर स्वस्थ रहकर लंबी उम्र प्राप्त करेंगे। पुरुषार्थ, स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन भी धन है जिनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
इसी तरह माना जाता है कि इन दिनों शाम के वक्त यम को दीपदान और भोग अर्पित करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। इसमें संकेत है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन की रक्षा के दो उपाय हो सकते हैं- पहला ज्ञान, विद्या या शिक्षा से कुशल, दक्ष, योग्य बनें और दूसरा शरीर को अच्छी खुराक मिले, तन पुष्ट रहे। यहां दीपदान प्रकाश यानि ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है और भोग उचित खुराक का। पहला उपाय व्यक्ति को अकाल मृत्यु यानि पतन से बचाता है एवं दूसरा उपाय शरीर की अकाल मृत्यु से रक्षा करता है।




इस दीपावली की रात्रि में करें इन धनदायक टोने-टोटके एवं उपायों को…..


तन्त्र शास्त्र मे दीपावली की रात्रि का बहुत ही सूक्ष्म विभाजन किया गया है। उन्होंने दीपावली की रात्रि को चार पहरों मे विभाजित किया हैं। उनके अनुसार विशेष पूजा कार्य करने अथवा विशिष्ट साधनाएं सम्पत्र करने एवं अलग-अलग तरह के प्रयोगों को संपन्न करने का प्रावधान रखा है। इन चारो प्रहरों को उन्होंने अलग-अलग नाम भी प्रदान किए हैं। इनमे द्वितीय,तृतीय और चतुर्थ पहर का उपयोग विभित्र तरह के तान्त्रिको द्वारा टोने-टोटकों के लिए किया जाता हैं।दीपावली की रात्रि को विभित्र प्रकार की कामनाओं की पूर्ति एवं अपने ईस्टों की शांति के लिए सैकड़ों प्रकार के टोने-टोटको की क्रियाऐं सम्पत्र की जाती हैं। लेकिन इस प्रकार के कर्म करने वालो को कुछ विशेष बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। जैसे कि कोई भी ऐसा टोना-टोटका उन्हे नहांr करना चाहिए, जो दूसरो कर अनिष्ट करे, दूसरो पर बुरा प्रभाव डाले अथवा भयाक्रान्त करें। इससे समाज मे भय का वातावरण तो निर्मित होता ही हे, वैमनस्य का भाव भी फैलता है। टोटको का प्रयोग निजी कार्यो एवं शुद्ध भाव के आधार पर ही करना चाहिए। तीसरे टोना-टोटका करते वक्त ऐसी किसी भी वस्तु या सामग्री का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जो दूसरे के लिए घृणास्पद या कष्ट कारक हो।


जनकल्याण हेतु दीपावली पर संपन्न  किये  जाने वाले कुछ उपयोगी टोटको उल्लेख कर रहा हू:-


01 –सालभर मिलता है रहेगा पैसा, ऐसे स्थापित करें मां लक्ष्मी की चौकी—-
दीपावली के दिन पूजा के लिए मां लक्ष्मी किस प्रकार स्थापित करना है? यह ध्यान रखने वाली बात है। मां लक्ष्मी की चौकी विधि-विधान से सजाई जानी चाहिए।


चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है। अब दो बड़े दीपक रखें। एक घी व दूसरे में तेल का दीपक लगाएं। एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें एवं दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।


02 —लक्ष्मी की कृपा के लिए कैसे सजाएं छोटी चौकी?????


दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के समय एक चौकी पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। इसकी जानकारी पूर्व में प्रकाशित की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त एक छोटी चौकी भी बनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस चौकी को विधि-विधान से सजाना चाहिए। इस छोटी चौकी को इस प्रकार सजाएं-


मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां तीन लाइनों में बनाएं। इसे आप चित्र में (1) चिन्ह से देख सकते हैं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। यह सोलह ढेरियां मातृका (2) की प्रतीक है। जैसा कि चित्र में चिन्ह (2) पर दिखाया गया है। नवग्रह व सोलह मातृका के बीच में स्वस्तिक (3) का चिन्ह बनाएं। इसके बीच में सुपारी (4) रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें। लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिन्ह (5) बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल (6) बनाएं। एक चावल की ढेरी (7) लगाएं जो कि ब्रह्माजी की प्रतीक है। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं (8) जो मातृक की प्रतीक है। सबसे ऊपर ऊँ (9) का चिन्ह बनाएं। इन सबके अतिरिक्त कलम, दवात, बहीखाते एवं सिक्कों की थैली भी रखें।


इस प्रकार मां लक्ष्मी की चौकी सजाने पर भक्त को साल भर पैसों की कोई कमी नहीं रहती है।


०3—स्थाई लक्ष्मी के लिए ये 10 चीजें जरूरी हैं, क्योंकि…—-


दीपावली-पूजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं एवं मांगलिक लक्ष्मी चिह्न सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांति और उल्लास लाने वाले माने जाते हैं इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-


वंदनवार-आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वीद्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।


स्वास्तिक-लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्न केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।


कौड़ी-लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।


लच्छा-यह मांगलिक चिह्नï संगठन की शक्ति का प्रतीक है, जिसे पूजा के समय कलाई पर बांधा जाता है।


तिलक-पूजन के समय तिलक लगाया जाता है ताकि मस्तिष्क में बुद्धि, ज्ञान और शांति का प्रसार हो।


पान-चावल-ये भी दीप पर्व के शुभ-मांगलिक चिह्नï हैं। पान घर की शुद्धि करता है तथा चावल घर में कोई काला दाग नहीं लगने देता।


बताशे या गुड़-ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्न हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़-बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।


ईख-लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।


ज्वार का पोखरा-दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।


रंगोली- लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्न कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती है।


04 –दीपावली- धन प्राप्ति के लिए अचूक लक्ष्मी मंत्र—


यदि आप महालक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो यहां एक अचूक मंत्र दिया जा रहा है, जो कि देवी लक्ष्मी को अति प्रिय है। धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी कृपा प्राप्त करना अति आवश्यक है। महालक्ष्मी की प्रसन्नता के बिना कोई भी धन प्राप्त नहीं कर सकता। दीपावली पर इस मंत्र का जप विधि-विधान से करें, वर्षभर आपको धन की कोई कमी नहीं होगी।


महालक्ष्मी मंत्र—-


ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।


जप विधि—


– इस मंत्र को दीपावली की रात कुंकुम या अष्टगंध से थाली पर लिखें।


– महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के बाद इस मंत्र के 1800 या जितना आप कर सकें जप करें।


– इसके प्रभाव से आपको वर्षभर अपार धन-दौलत प्राप्त होगी। ध्यान रहे मंत्र जप के दौरान पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें। मंत्र के संबंध में कोई शंका मन में ना लाएं अन्यथा मंत्र निष्फल हो जाएगा।


05 —जानें कैसी सजावट बना देगी अमीर—


अगर आप सिर्फ दिवाली के ही दिन वास्तु के अनुसार सजावट कर लें तो भी आप पर धनलक्ष्मी खुश हो जाएगी।


– दीपावली के दिन सुबह घर के बाहर उत्तर दिशा में रंगोली बनानी चाहिए।


– वास्तु के अनुसार घर में पौछा लगाते समय नमक मिला कर पोंछा लगाएं।


– घर के परदें पिंक कलर के होने चाहिए।


– घर के डायनिंग हॉल में कांच के बाउल में पानी भर कर उसमें लाल फूल रखें।


– घर में दीपक लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि दीपक में थोड़े चावल और कुंकु डाल कर रखें।


– घर के जिस कमरे में तिजोरी हो उस कमरे में लाल फूल बिछा कर रखें।


– तिजोरी वाले कमरे में पीले और पिंक रंग के परदें रखना चाहिए।


– दीपावली के दिन सुबह-शाम गुग्गल की धूप दें।


– घर की सजावट में पीले फूलों का उपयोग करें।


06 —आपके घर में रहेगी लक्ष्मी, जब दीपावली पर करेंगे यह उपाय—-


हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार दीपावली के दिन विधि-विधान से यदि लक्ष्मीजी की पूजा की जाए तो वे अति प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा यदि दीपावली के शुभ अवसर पर नीचे लिखे साधारण उपाय किए जाएं तो और भी श्रेष्ठ रहता है और घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास हो जाता है। यह उपाय इस प्रकार हैं-


1- दीपावली के दिन पीपल को प्रणाम करके एक पत्ता तोड़ लाएं और इसे पूजा स्थान पर रखें। इसके बाद जब शनिवार आए तो वह पत्ता पुन: पीपल को अर्पित कर दें और दूसरा पत्ता ले आएं। यह प्रक्रिया हर शनिवार को करें। इससे घर में लक्ष्मी की स्थाई निवास रहेगा और शनिदेव की प्रसन्न होंगे।


2- दीपावली पर मां लक्ष्मी को घर में बनी खीर या सफेद मिठाई को भोग लगाएं तो शुभ फल प्राप्त होता है।


3- दीपावली की रात 21 लाल हकीक पत्थर अपने धन स्थान(तिजोरी, लॉकर, अलमारी) पर से ऊसारकर घर के मध्य(ब्रह्म स्थान) पर गाढ़ दें।


4- दीपावली के दिन घर के पश्चिम में खुले स्थान पर पितरों के नाम से चौदह दीपक लगाएं।


07 —दीपावली की रात टोने-टोटके के लिए विशेष शुभ होती है, ऐसा तंत्र शास्त्र में लिखा है। किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान दीपावली की रात को किए गए टोटके से संभव है। अपनी समस्या के समाधान के लिए दीपावली की रात नीचे लिखे टोटके करें-


1- दीपावली की रात लक्ष्मी पूजन के साथ एकाक्षी नारियल की स्थापना कर उसकी पूजन-उपासना करें। इससे धन लाभ होता है साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।


2- दूध से बने नैवेद्य मां लक्ष्मी को अति प्रिय हैं। इसलिए उन्हें दूध से निर्मित मिष्ठान जैसे- खीर, रबड़ी आदि का भोग लगाएं। इससे मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।


3- दुर्भाग्य के नाश के लिए दीपावली की रात में एक बिजोरा नींबू लेकर मध्यरात्रि के समय किसी चौराहे पर जाएं और वहां उस नींबू को चार भाग में काटकर चारों रास्तों पर फेंक दें।


4- दीपावली की रात लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ काली हल्दी का भी पूजन करें और यह काली हल्दी अपने धन स्थान(लॉकर, तिजोरी) आदि में रखें। इससे धन लाभ होगा।


5- धन-समृद्धि के लिए दीपावली की रात में केसर से रंगी नौ कौडिय़ों की भी पूजा करें। पूजन के पश्चात इन कौडिय़ों को पीले कपड़े में बांधकर पूजास्थल पर रखें। ये कौडिय़ां अपने व्यापार स्थल पर रखने से व्यापार में वृद्धि होती है।
6- घर पर हमेशा बैठी हुई लक्ष्मी की और व्यापारिक स्थल पर खड़ी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।


7- इस दिन श्रीयंत्र को स्थापित कर गन्ने के रस और अनार के रस से अभिषेक करके लक्ष्मी मंत्रों का जप करें।


8- लक्ष्मीजी को गन्ना, अनार, सीताफल अवश्य चढ़ाएं।


9- इस दिन पूजा स्थल में एकाक्षी नारियल की स्थापना करें। यह साक्षात लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती हो, वहां लक्ष्मी का स्थाई वास होता है।


10- दीपावली के दिन प्रात:काल सात अनार और नौ सीताफल दान करें।


11- दीपावली के दिन गन्ने के पेड़ की जड़ को लाकर लाल कपड़े में बांधकर लाल चंदन लगाकर धन स्थान पर रखें। इससे धन में वृद्धि होगी।


12 — दीपावली की रात्रि को पीपल के पत्ते पर दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करें। इससे आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है।


13- दीपावली की रात्रि में हात्थाजोड़ी को सिंदूर में भरकर तिजोरी में रखने से धन वृद्धि होती है।


-ऐसा देखने मे आया है कि जिन स्त्रियो के संतान नहीं होती अथवा जन्म लेने से पहले ही पेट मे मर जाती है, वह स्त्रियां माँ बनने की इच्छा के लिए कई तरह के टोने-टोटको का सहारा लेती है। ऐसे निःसंतान स्त्रियां जिनके घरो मे स्त्रियो छोटे बच्चे रहते है, उन घरो के बाहर अथवा मुख्य दरवाजे की देहलीज पर, दीपावली अथवा दशहरा की रात्रि के बाद से गुंथी हुई आटे की लोई बना कर रखना शुरू कर देती है। अगर ऐसी वेऔलाद स्त्रियां इस टोटके की जगह गाय के बच्चे को गुड़ खिलाऐं एवं गाय के स्थान के पास घी का दीपक जलाऐं, तो भी उनकी इच्छा पूरी हो सकती है।


-कई बार नि:सन्तान स्त्रियो बच्चो की पाने की चाह मे असा-पड़ोंसी के छोटे बच्चो को अपने घर बुलाकर उन बच्चो के सिर के बाल काट लेती है अथवा धोखे से बच्चे वाली स्त्रियो के बाल काट कर उन पर कई तरह के प्रयोग सम्पत्र करती है। अगर ऐसी स्त्रियां अनाथालयो मे जाकर खाना खिलायें तथा पीपल के वृक्ष के नीचे एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक घी का दीपक जलाकर रखती रहें, तो उनकीइच्छा पूरी हो सकती हैं।


-बहुत सी नि:सन्तान स्त्रियां बच्चो की चाह में दूसरो के छोटे बच्चों को धोेखे से अपने घर बुलाकर उन्हे कोई सफेद चीज जैसे कि दही-दूध, खीर आदि खिला देती है। सह एक ऐसा टोटका माना जाता है कि अपने ऊपर की बुरी आत्मा बला को दूसरे, के सिर चढ़ा देना, कोई चीज खिलाना बुरी बात नहांr, परंतु खिलाने के पीछे उद्देश्य नेक हो, तो ही ठीक होता है।
-अपनी बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए भी लोग नाना प्रकार के टोने-टोटको करते है। इसके लिए वह बीमार व्यक्ति के हाथ से काला कपड़ा अथवा उड़द दाल या फिर हरी-सब्जियां दान करवाते हैं। बीमार व्यक्ति के हाथ का स्पर्र्श करवा कर तेल दान करते है, कांसे के बर्तन का दान करते है, गुड़दान कर दूसरो को देते हैं अथवा गाय आदि को खिला देते हैं।


-कुछ लोगों को दूसरों के घर से रात्रि के समय दही मांग कर अपने घर लाने की आदत रहती है। यह भी एक टोटका है। इसके पीछे यही विश्वास काम करता है कि दही की जाक निरन्तर दही जमाती रहती है, ठीक वैसे ही मांगा हुआ दही भी घर मे निरन्तर वृद्वि करता है। दही मांगने की यह आदत भारत मे ही नहीं अनेक यूरोपियन देशो मे भी खूब लोकप्रिय है।


-पशुओ के बीमार पड़ने अथवा कम दूध देने पर भी कई तरह से टोने-टोटके किए जाते है इसके लिए पशु बाधने का खूंटा तक बदल दिया जाता है।


-घर मे सुख,समृद्धि एवं धन का संचय बढ़ाने के लिए भी कई तरह के टोटके किए जाते है। दीपावली के को ग्यारह गोमती चक्र लाकर, सिन्दूर के साथ लाल वस्त्र में बांध कर रखने से घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।


-पंच लक्ष्मी चक्र और दो अकीक पत्थरों को धूप देकर घर के बाहर चौखट पर छिपा कर रख देने से धन-संपदा की वृद्धि होने लग जाती है।
-कच्ची मिट्टी के धड़े मे थोड़ी सी जौ, पांच सिक्के और भेरव मुठिया रखकर अगर किसी चौराहे पर रख दिया जाए, तो उससे गृह क्लेश की शांति तो हो जाती है, साथ ही धन आगमन के भी नये-नये स्त्रोत खुलते जाते हैं।


-दीपावली की रात्रि को अगर एक लाल रंग के वस्त्र मे पांच पीली कौड़ी बांघ कर एवं उन्हे लौवान की घुप दिखाकर, अगले दिन बतासे के साथ किसी कुऐं मे डाल दिया जाए, तो परिवार मे चल रही कई असाध्य बीमारियां शीघ्र ही दूर हो जाती हैं।


-जिन कन्याओं का विवाह किसी कारण से सम्पत्र नहांr हो पा रहा हो, अगर वह दीपावली के अवसर पर मौल श्री की जड़ को घर लाकर व लाल रेशमी वस्त्र में बांघ कर उसे भी लक्ष्मी-गणेश पूजन के समय चौकी पर रख दें तथा पूजनोपरान्त उसे घर की मुख्य चौखट पर बांध दें तो तीन महीने के भीतर ही घर में वह मांगलिक कार्य सम्पत्र हो जाता है।


-सूवर के दांत को लुवांन की गंध देकर होली, दीपावली के अवसर पर गले या कमर मे गांध दिया जाएं, तो स्त्रियों की बंध्यत्व सम्बन्धी समस्या का निदान हो जाता है। सूअर का दांत बच्चो को दूसरों की बुरी नजर से बचाये रखने मे भी मददगार रहता है।


-जिन स्त्रियों की प्रथम संतान पुत्र के रूप मे हो, अगर वह, प्रसव के साथ बाहर आनेवाली नाल को सुखाकर तिजोरी या अलमारी आदि मे संभाल कर रख लें, तो उस घर मे निरन्तर धन-धान्य की वृद्वि होती है। इस नाल को प्रत्येक दीपावली के दिन घुप दिखाना जरूरी होता है।
-मोर के सिर पर जो कलगी होती है। अगर उसे काट कर सुलेमानी अकीक के साथ एवं गूगल धूपदेकर अपने पास रख लिया जाय तो वह व्यक्ति सबका चेहता बन जाता है। उस व्यक्ति मे ऐसी कुछ आकर्षण शक्ति विकसित हो जाती हे कि, जो भी उस व्यक्ति के सम्पर्क मे आता है, वह उसी का बन कर रह जाता है। इस मोर की कलगी एवं सुलेमानी अकीक को भी प्रत्येक होली,दीपावली के किद गूगल धूप देना जरूरी होता है।


-दीपावली के दिन से लेकर अगले सात दिन तक अशोक वृक्ष के सात-सात पत्तो लेकर नियम अनुसार बहते हुऐ पानी मे प्रवाहित करते रहने से दाम्पत्य कलह का अन्त हो जाता है और पति-पत्नि के मध्य पुन: प्रेम अंकूर फूटने लगता है।


-दीपावली के रात्रि को अपने दोनो हाथो की मुट्ठी मे काली राई भरकर किसी सुनसान स्थान पर चले जाऐं। फिर वहां पूर्व की ओर मुहं करके अपने दाहिने हाथ की राई को अपने बांयी और तथा बांये हाथ की राई को दाहिने और फेंक दें तथा वापिस अपने घर चलें आयें। उस स्थान को पीछे मुड़कर न देखें। घर आकर मुख्य दरवाजे के बाहर सरसों के तेल वाला दो मुखी मिट्ठी का दीपक जला कर रख दें। इस टोटकों को सम्पत्र करने से कर्जदारों की मुसीबत से बचाव हो जाता है। उगाही करने वाले लोग परेशान करना छोड़ देते हैं तथा व्यक्ति की बात मानने लग जाते हैं।


-दीपावली के दिन प्रात:काल सबसे पहले किसी जरूरत मंद स्त्री को खाद्य वस्तुऐं, जैसे दूध, दही, शक्कर, आटा, तेल आदि दान करने एवं उसके पष्चात अपनी दिन चर्या शुरू करने से व्यापारिक रूकावटें स्वत: ही दूर होती चली जाती हैं तथा व्यापार मे नित-नूतन वृद्धि होती चली जाती है। इस टोटके की सबसे मुख्य बात तसे यह हे कि दान देने वाला तो निराहार होना चाहिए साथ ही, जिस स्त्री को सामान देना है, वह भी निराहार हो। घर वापिस आने तक बीच मे कोई व्यक्ति टोके नहांr।


-अगर दिपावली की रात्रि से शुरू करके, जिस दिन दिवाली रहती है, उसी वार को निरन्तर नौ बार तक इस प्रयोग को सम्पत्र कर लिया जाए, तो निष्चित गृह क्लेश शान्ति हो जाती है। इस प्रयोग के दौरान दिपावली के दिन से एक मुट्ठी गुड, एक मुट्ठी नमक,एक मुट्ठी गेहुँ, और तीन तांबे के सिक्के, को, एक सफेद रंग के वस्त्र मे रख बांधकर अपने घर के किसी कोने मे छिपाकर रख दिया जाए, टोर पांच दिन के उपरान्त उस पोटली को चलते हुऐ पानी मे प्रवाहित करवा दिया जाए, तो निश्चिता ही ऐसा नौ बार तक करने से पूर्ण शान्ति स्थापित हो जाती है। घर की लड़ाई झगड़ा समाप्त होकर प्रेम का भाव उत्पत्र होता चला जाता है।


-जन-सामान्य मे इसी प्रकार के सैकड़ों टोने-टोटके प्रचलित है, जिसका उपयोग आप सभी लोग भी कर सकते है।

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