केसे करें पहचान भूत-प्रेत बाधा की और केसे करें निदान.????
भूत-प्रेत बाधा निवारण के सरल उपाय…
भूत-प्रेत बाधा : पहचान और निदान……
अक्सर सुनने में आता है कि उसके ऊपर भूत आ गया है या उसको प्रेत ने पकड़ लिया है जिसक कारण उसके घर वाले बहुत परेशान हैं। उसको संभाल ही नहीं पाते हैं। तान्त्रिक, मौलवी या ओझा के पास जाकर भी कुछ नहीं हुआ है। समझ नहीं आता है क्या करें..???
केसे जाने की भूत-प्रेत बाधा है या नहीं..??
आप अपनी या किसी की कुण्डली देखें और यदि ये योग उसमें विद्यमान हैं तो समझ लें कि जातक या जातिका भूत-प्रेत बाधा से परेशान है।
भूत-प्रेत बाधा के योग इस प्रकार हैं-
पहला योग-कुण्डली के पहले भाव में चन्द्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत, पिशाच या गन्दी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती हैं।
दूसरा योग-यदि किसी कुण्डली में शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत-प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते हैं।
तीसरा योग-यदि किसी की कुण्डली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा, प्रेत, पिशाच या भूत बाधा तंग करती है। उक्त योगों में दशा-अर्न्तदशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान है।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है :
”अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलान्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यहम॥
भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है।
भूत पीड़ा :
भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है।
यक्ष पीड़ा :
यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है।
पिशाच पीड़ा :
पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
शाकिनी पीड़ा :
शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है।
प्रेत पीड़ा :
प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।
चुडैल पीड़ा :
चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है।
भूत प्रेत कैसे बनते हैं..??
इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है।
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इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है।
इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
जिस प्रकार चोट लगने पर डाक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है और कुछ सावधानियां वरती जाती हैं।
ऐसा करने से प्रेत बाधा की उग्रता कम हो जाती है। इस लेख में भूत-प्रेत बाधा निवारण के यंत्र-मंत्र आधारित उपायों की जानकारी दी गयी है। लाभ प्राप्त करने के लिए इनका निष्ठापूर्वक पालन करें। जब भी किसी भूत-प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति को देखें तो सर्वप्रथम उसके मनोबल को ऊंचा उठायें।
उदाहरणार्थ यदि वह व्यक्ति मन में कल्पना परक दृश्यों को देखता है तथा जोर-जोर से चिल्लोता है कि वह सामने खड़ी या खड़ा है, वह लाल आंखों से मुझे घूर रही या रहा है, वह मुझे खा जाएगा या जाएगी। हालांकि वह व्यक्ति सच कह रहा है पर आप उसे समझाइए- वह कुछ नहीं है, वह केवल तुम्हारा वहम है। लो, हम उसे भगा देते हैं। उसे भगाने की क्रिया करें।
कोई चाकू, छूरी या कैंची उसके समीप रख दे और उसे बताएं नहीं। देवताओं के चित्र हनुमान दुर्गा या काली का टांग दें। गंगाजल छिड़ककर लोहबान, अगरबत्ती या गूग्गल धूप जला दें। इससे उसका मनोबल ऊंचा होगा। प्रेतात्मा को बुरा भला कदापि न कहें। इससे उसका क्रोध और बढ़ जाएगा।
इसमें कोई बुराई नहीं। घर के बड़े-बुजुर्ग भूत-प्रेत से अनजाने अपराध के लिए क्षमा मांग लें। निराकारी योनियों के चित्र बनाना कठिन होता है। यह मृदु बातों तथा सुस्वादुयुक्त भोगों के हवन से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।
इसके पश्चात आप पीपल के पांच अखंडित स्वच्छ पत्ते लेकर उन पर पांच सुपारी, दो लौंग रख दे तथा गंगाजल में चंदन घिसकर पत्तों पर (रामदूताय हनुमान) दो-दो बार लिख दें। अब उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जला दें। इसके बाद बाधाग्रस्त व्यक्ति को छोड़ देने की प्रार्थना करें।
ऐसा करने से प्रेतबाधा नष्ट हो जाती है। फिर भी अगर लाभ न हो तो नीचे दिए गए कुछ उपाय व टोटके सिद्ध करके काम में लें।
यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आए और थका, घबराया या परेशान सा लगे तो यह उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से ७ लाल मिर्च और एक चम्मच राई के दाने ७ बार घूमाकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें।
यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।
व्यक्ति के बीमार होने की स्थिति में दवा काम नहीं कर रही हो, तो सिरहाने कुछ सिक्के रखे और सबेरे उन सिक्कों को श्मशान में डाल आए।
व्यवसाय बाधित हो, वांछित उन्नति नहीं हो रही हो, तो ७ शनिवार को सिंदूर, चांदी का वर्क, मोतीचूर के पांच लड्डू, चमेली का तेल, मीठा पान, सूखा नारियलऔर लौंग हनुमान जी को अर्पित करें।
किसी काम में मन न लगता हो, उचाट सा रहता हो, तो रविवार को प्रातः भैरव मंदिर में मदिरा अर्पित करें और खाली बोतल को सात बार अपने सरसे उतारकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।
शनिवार को नारियल और बादाम जल में प्रवाहित करें।
अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।
एक कटोरी चावल दान करें और गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित कार्य पूरे होंगे।
इस तरह ये कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहे, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु टोटके या उपाय ही करवाने चाहिए, टोना नहीं।
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भूत-प्रेत बाधाओं, जादू-टोनों आदि के प्रभाव से भले-चंगे लोगों का जीवन भी दुखमय हो जाता है। ज्योतिष तथा शाबर ग्रंथों में इन बाधाओं से मुक्ति के अनेकानेक उपाय उपाय बताए गए हैं।
इस प्रकार की बाधा निवारण करने से पूर्व स्वयं की रक्षा भी आवश्यक हें.इसलिए इन मन्त्रों द्वारा अपनी तथा अपने आसन की सुरक्षा कर व्यवस्थित हो जाएँ…
जब भी हम पूजन आदि धार्मिक कार्य करते हैं वहां आसुरी शक्तियां अवश्य अपना प्रभाव दिखाने का प्रयास करती हैं। उन आसुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए हम मंत्रों का प्रयोग कर सकते हैं। इसे रक्षा विधान कहते हैं। नीचे रक्षा विधान के बारे में संक्षिप्त में लिखा गया है। रक्षा विधान का प्रयोग करने से बुरी शक्तियां धार्मिक कार्य में बाधा नहीं पहुंचाती तथा दूर से ही निकल जाती हैं।
रक्षा विधान- रक्षा विधान का अर्थ है जहाँ हम पूजा कर रहे है वहाँ यदि कोई आसुरी शक्तियाँ, मानसिक विकार आदि हो तो चले जाएं, जिससे पूजा में कोई बाधा उपस्थित न हो। बाएं हाथ में पीली सरसों अथवा चावल लेकर दाहिने हाथ से ढंक दें तथा निम्न मंत्र उच्चारण के पश्चात सभी दिशाओं में उछाल दें।
मंत्र—–
ओम अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:।
ये भूता: बिघ्नकर्तारस्तेनश्यन्तु शिवाज्ञया॥
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभ्भे॥
देह रक्षा मंत्र:—-
ऊँ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा। ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों धाम का यती हनुमन्त रखवाला।
इस मंत्र को किसी भी ग्रहण काल में पूरे समय तक लगातार जप करके सिद्ध कर लें।
किसी दुष्ट व्यक्ति से अहित का डर हो, ग्यारह बार मंत्र पढ़कर शरीर पर फूंक मारे तो आपका शरीर दुश्मन के आक्रमण से हर प्रकार सुरक्षित रहेगा। उल्टी खोपड़ी मरघटिया मसान बांध दें, बाबा भैरो की आन।
इस मंत्र को श्मशान में भैरोजी की पूजा, बलि का भोग देकर सवा लाख मंत्र जपे तथा आवश्यकता के समय चाकू से अपने चारों तरफ घेरा खींचे तो अचूक चैकी बनती है।
इससे किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति साधना में विघ्न नहीं डाल सकती। होली, दीपावली या ग्रहण काल में इस मंत्र को सिद्ध कर लें .1 माला जपकर।
ऊँ नमः श्मशानवासिने भूतादिनां पलायन कुरू-कुरू स्वाहा।
इस मंत्र से 1.8 बार अभिमंत्रित करके लहसुन, हींग को पीसकर इसके अर्क को बाधाग्रस्त रोगी के नाक व आंख में लगायें, भूत तुरंत शरीर छोड़कर चला जाएगा।
बहेड़े के पत्ते या जड़ को घर लाकर धूप, दीप, नैवेद्य और पंचोपचार पूजा के बाद 1 माला यानि 108 बार इस मंत्र से .1 दिन अभिमंत्रित करने से सिद्ध हो जाएगा।
ऊँ नमः सर्वभूताधिपतये ग्रसग्रस शोषय भैरवी चाजायति स्वाहा।’
इस पत्ते को जहां स्थापित किया जाता है, वहां किसी भी प्रकार से भूत प्रेतबाधा व जादू टोने का प्रभाव नहीं पड़ता तथा सिद्ध जड़ को बच्चे या बड़े के गले में ताबीज बनाकर पहनाया जा सकता है।
प्रेतबाधा निवारण भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी तथा पिशाच, मशान आदि तामसी शक्तियों से रक्षा के लिए यह साधना सर्वोत्तम तथा सरल उपाय वाली है।
इसके लिए साधक को चाहिए कि किसी शुभ घड़ी में रविपुष्य योग अथवा शनिवार को) उल्लू लेकर, उसके दाएं डैने के कुछ पंख निकाल लें तथा उल्लू को उड़ा दें। इसके बाद उस पंख को गंगाजल से धोकर स्नानादि करके पूर्वाभिमुख होकर लाल कंबल के आसन पर बैठकर 2100 बार मंत्र पढकर प्रत्येक पंख पर फूंक मारे।
इस प्रकार से अभिमंत्रित करके, जलाकर उन पंखों की राख बना लें ।
मंत्र: ऊँ नमः रूद्राय, नमः कालिकायै, नमः चंचलायै नमः कामाक्ष्यै नमः पक्षिराजाय, नमः लक्ष्मीवाहनाय, भूत-प्रेतादीनां निवारणं कुरू-कुरू ठं ठं ठं स्वाहा।
इस मंत्र से सिद्ध भभूति को कांच के चैड़े पात्र में सुरक्षित रख लें। जब भी किसी स्त्री या पुरुष को ऊपरी बाधा हो, इसे निकालकर चुटकी भर विभूति से 108 बार मंत्र पढ़कर झाड़ देने से जो अला बला हो, वह भाग जाती है।
अधिक शक्तिशाली आत्मा हो तो इसे ताबीज में रखकर पुरुष की दाहिनी भुजा पर, स्त्री की बाई भुजा पर बांधने से दुबारा किसी आत्मा या दुरात्मा का प्रकोप नहीं होता। भूतबाधा से रक्षा हेतु यंत्र इस यंत्र को मंगलवार, या शनिवार की रात 12 बजे पीपल के पेड़ के नीचे लिखे।
यह यंत्र श्मशान की राख में अष्टगंध मिलाकर अनार की कलम से लिखें। स्वच्छ अखंडित भोजपत्र को लिखने से पहले गंगाजल से धोकर सुखा लें, और यंत्र बनाएं।
स्वप्न में भूत दिखाई दे तो यह यंत्र बनाएं। इस यंत्र को केवड़े के रस या आक के दूध से भोजपत्र पर बनाकर फिर जिस स्त्री पुरुष को स्वप्न में भूत दिखते हैं उसके सिरहाने रख दें।
यहां कुछ प्रमुख शाबर मंत्रों का विवरण प्रस्तुत है। ये मंत्र सहज और सरल हैं, जिनके जप अनुष्ठान से उक्त बाधाओं तथा जादू-टोनों के प्रभाव से बचाव हो सकता है।
निम्नलिखित मंत्र को सिद्ध करने के लिए उसका २१ दिनों तक एक माला जप नियमित रूप से करें। हनुमान मंदिर में अगरबत्ती जलाएं। २१ वें दिन मंदिर में एक नारियल और लाल वस्त्र की ध्वजा चढ़ाएं। यह मंत्र भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी नजर दोष, जादू-टोने आदि से बचाव एवं शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है।
मंत्र : क्क हनुमान पहलवान, बरस-बारह का जवान, हाथ में लड्डू, मुंह में पान। खेल-खेल कर लंका के चौगान। अंजनी का पूत, राम का दूत। छिण में कीलौं, नौ खंड का भूत। जाग-जाग हनुमान हुङ्काला, ताती लोहा लङ्काला। शीश जटा डग डेंरू उमर गाजे, वृज की कोटडी वृज का ताला। आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चम्पे न सीव। अजरा, झरे, भरमा भरे। ईंघट पिंड की रक्षा, राजा रामचंद्र जी, लक्ष्मण, कुंवर हनुमान करें।
किसी बुरी आत्मा के प्रभाव अथवा किसी ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप संतान सुख में बाधा से मुक्ति हेतु श्री बटुक का उतारा करना चाहिए।
यह क्रिया निम्नलिखित विधि से रविवार, सोमवार, मंगलवार तीन दिन लगातार करें।
विधि : उतारे के स्थान पर एक पात्र में सरसों के तेल में बने उड़द के ११ बड़े, उड़द की दाल भरी ११ कचौड़ियां, ७ प्रकार की मिठाइयां, लाल फूल, सिंदूर, ४ बत्तियों का दीपक, 1 नींबू और 1 कुल्हर जल रखें। सिंदूर को चार बत्तियों वाले दीपक के तेल में डालें। फिर फूल, कचौड़ी, बड़े, मिठाइयां सभी सामग्री एक पत्तल पर रखें तथा मन ही मन यह कहें कि ”यह भोग हम श्री बटुक भैरव जी को दे रहे हैं, वे अपने भूत- प्रेतादिकों को खिला दें और संकट ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर जो बुरी आत्मा या ग्रहों की कुदृष्टि है, उसका शमन कर दें।” समस्त सामग्री को पीड़ित व्यक्ति के सिर के ऊपर ७ बार उतारा करके किसी चौराहे पर रखवा दें। सामग्री रखवाकर लौट आएं। ध्यान रहे, लौटते समय पीछे न देखें। उतारा परिवार के सदस्य करें। यह क्रिया यदि अपने लिए करनी हो, तो स्वयं करें।
कृत्या निवारण के लिए एक नींबू को चार टुकड़ों में चीरें। चारों टुकड़ों पर ४-४ बार निम्नलिखित मंत्र पढ़कर उन्हें चारों कोनों में फेंक दें।
मंत्र : आई की, माई की, आकाश की, परेवा पाताल की। परेवा तेरे पग कुनकुन। सेवा समसेर जादू गीर समसेर की भेजी। ताके पद को बढ़ कर, कुरु-कुरु स्वाहा।
राई, लाल चंदन, राल, जटामंसी, कपूर, खांड, गुग्गुल और सफेद चंदन का चूरा क्रमानुसार दो गुना लें और सबको मिलाकर अच्छी तरह कूट लें। फिर उस मिश्रण में इतना गोघृत मिलाएं कि पूरी सामग्री अच्छी तरह मिश्रित हो जाए। इस सामग्री से प्रेत बाधा से ग्रस्त घर में धूनी दें, प्रेत बाधा, क्लेशादि दूर होंगे और परिवार में शांति और सुख का वातावरण उत्पन्न होगा। व्यापार स्थल पर यह सामग्री धूनी के रूप में प्रयोग करें, व्यापार में उन्नति होगी।
कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं मंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें—–
मंत्र : क्क ह्रांक ह्रींक क्लींक व्यक ह्योंक हेः।
भूत छुड़ाने का मंत्र : भूत छुड़ाने के भी अनेकानेक शाबर मंत्र हैं, जिनमें एक इस प्रकार है।
तेल नीर, तेल पसार चौरासी सहस्र डाकिनीर छेल, एते लरेभार मुइ तेल पडियादेय अमुकार (नाम) अंगे अमुकार (नाम) भार आडदन शूले यक्ष्या-यक्षिणी, दैत्या-दैत्यानी, भूता-भूतिनी, दानव-दानिवी, नीशा चौरा शुचि-मुखा गारुड तलनम वार भाषइ, लाडि भोजाइ आमि पिशाचि अमुकार (नाम) अंगेया, काल जटार माथा खा ह्रीं फट स्वाहा। सिद्धि गुरुर चरण राडिर कालिकार आज्ञा।
विधि : ऊपर वर्णित मंत्र को पहले किसी सिद्ध मुहूर्त में १०,००० बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर सरसों तेल को २१ बार अभिमंत्रित कर भूत बाधाग्रस्त व्यक्ति पर छिड़कें, तो भूत उतर जाता है।
जादू-टोना निवारण—–
निम्नलिखित मंत्र को किसी सिद्ध मुहूर्त में १००८ बार सिद्ध करके प्रयोग के समय उसका जप करते हुए मोर पंख से पीड़ित व्यक्ति को सात बार झाड़ें।
मंत्र : क्क नमो आदेश गुरु को। लूना चमारीज गत की बिजुरी, मोती हेल चमके। अमुक के पिंड में डमान करे विडमान करे, तो उस लण्डी के ऊपर पारो। दुहाई तुरंत सुलेमान पैगंबर की फिरे, मेरी भकित, गुरु की शकित। फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा।
कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं यंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें।
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नजर दोष, टोना व प्रेत बाधा निवारक प्रयोग—-
शुभ नक्षत्र में अनार की कलम और केसर व लाल चंदन से यह यंत्र लिखें।
यंत्र लिखते समय मंत्र क्रम से पढ़ें जैसे पहली लाइन के पहले खाने में ६ लिखें तो पढ़ें ‘सत्ती पत्ती शारदा’। फिर दूसरे खाने में १२ लिखें तो पढ़ें ‘बारह बरस कुवारी’। इसी प्रकार ९ लिखने पर ‘ऐ को माई परमेश्वरी’, १४ लिखने पर ‘चौदह भुवन निवास’, २ पर ‘दोई पक्खी निर्मली’, १३ पर ‘तेरह देवी देश’, ८ पर ‘अष्टभुजा परमेश्वरी’, ११ पर ‘ग्यारह रुद्र सैनी’, १६ पर ‘सोलह कला संपूर्ण’, ३ पर ‘त्रा नयन भरपूर’, १० पर ‘दसे द्वार निर्मली’, ५ ‘पंच करे कल्याण’, ९ पर ‘नव दुर्गा’, ६ पर ‘षट् दर्शनी’, १५ पर ‘पंद्रह तिथि जान’ और ४ लिखने पर ‘चाऊ कूठ प्रधान’। इस तरह यंत्र निर्माण करके पीड़ित के गले में बांध दें, नजर दोष, टोने, प्रेत बाधा आदि से मुक्ति मिलेगी।
भूत प्रेत बाधा नाशक मन्त्र—–
भूत-प्रेत बाधा निवारक हनुमत मन्त्र इस प्रकार हैं :-
ऊँ ऐं हीं श्रीं हीं हूं हैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्ष्य महामारेश्रवर रूद्रावतार हुं फट स्वाहा।
उक्त मंत्र को श्रद्वा, विश्वास के साथ जप कर मन्त्र से अभिमनित्रत जल पीडि़त जातक या जातिका को पिलाने या छींटे मारने से इस प्रकार की बाधा से मुकित मिलती है।
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कौन बनता है भूत, कैसे रहें भूतों से सुरक्षित..???
जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।
आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।
भूतों के प्रकार : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
84 लाख योनियां : पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।
प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।
पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्*भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।
अतृप्त आत्माएं बनती है भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू*त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।
यम नाम की वायु : वेद अनुसार मृत्युकाल में ‘यम’ नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।
जन्म मरण का चक्र : जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु*षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।
भूत की भावना : भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।
भूत की स्थिति : ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।
भूत की ताकत : भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं।
कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं।
इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं।
ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।
अच्छी और बुरी आत्मा : वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गयाहै। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं।
अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है।
जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।
कौन बनता है भूत का शिकार : धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं।
इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं।
जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।
हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेकों उपाय बताए गए हैं—-
पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लाकेट पहने, सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्य को पवि*त्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।
घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।
प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती।———————————————————————-कुंडली से पितृ दोष का मूल रहस्य:-ज्योतिष में पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। तभी तो हमारे धर्मशास्त्र सकारात्मक कर्मों को महत्व देते हैं। यदि हमारे कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है। यदि हम इस जन्म में पिता की हत्या पिता का अपमान बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर हमारी कुंडली में पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं।
कैसे जानें कि कुंडली में पितृ या प्रेतदोष?
कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि राहु व केतु माने गए हैं। अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है। सामान्यतः यह देखा जाता है कि सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुंटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुम्ब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते। सूर्य व मंगल की राहु से युति अत्यन्त विषम स्थिति पैदा कर देती है क्योंकि राहु एक पृथकताकारी ग्रह है तथा सूर्य व मंगल को उनके कारकों से पृथक कर देता है।
सूर्यकृत पितृदोष निवारण
1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन घर में विध विधान से सूर्ययंत्र स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।
2. निम्न मंत्र का एक माला नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ऊं आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।
.. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं गुड घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन सूर्य स्तोत्र का पाठ भी करें।
4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि विधान से धारण कर लें।
5. पांच मुख रूद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगो के नामों का स्मरण करें।
6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।
7. रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुउ़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।
8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।
9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।
मंगलकृत पितृदोष निवारण:
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र पूर्ण विधि विधान से स्थापित करें । जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।
2. नित्य प्रातःकाल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।
3. निम्य एक माला जप निम्न मंत्र का करें। ऊं अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।
4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोएं।
5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वनज का मूंगा सोने या तांबे में विधि विधान से धारण करें।
6. तीनमुखी रूद्राख धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।
8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।
9. जब भी अवसर मिले रक्तदान अवश्य करें।
10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।
11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें।
विशेष:- हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य मंगल राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सांय काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उतार कर तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।
2. अष्टमुखी रूद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है अवश्य लाभ मिलेगा।
3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।
4. सफाईकर्मी को दान दक्षिणा दे दिया करें।
उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
भूतप्रेत निवारण के लिए हनुमानजी की भक्ति श्रीराम भक्त हनुमान को केसरीनन्दन पवनसुत अंजनीपुत्र आदि नामों से पुकारा जाता है। हनुमान जी आठ तरह की सिद्धियों और नौ तरह की निधियों के दाता हैं। हनुमान जी के प्रत्येक पाठ इतने चमत्कारी हैं कि उनके मात्र एक बार स्मरण से ही व्यक्ति मुसीबत से पार हो जाता है। चाहे वह चालीसा हो सुन्दरकांड हो कवच हो या स्तोत्र हो इनमें से किसी का भी पाठ कर लेने से बाधाओं में धंसा हुआ व्यक्ति जैसे तुरंत ही भवसागर तर जाता है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान मंदिर पर भक्तों का आकर्षण इस बात का परिचायक है कि प्रभु श्री राम के साथ हनुमान भी सभी के हृदय में विराजे हैं।
किसी भी प्रकार की बाधा हो चाहे व्यक्ति आर्थिक संकट से ग्रस्त हो या भूतपिशाच जैसे ऊपरी बाधाओं से परेशान तथा मारण सम्मोहन उच्चाटन आदि से ग्रस्त व्यक्ति को हनुमान आराधना से बहुत ही अच्छा लाभ मिलता है। यदि कोर्ट कचहरी लड़ाई मुकदमों से ग्रस्त व्यक्ति भी हनुमान जी की शरण में आएं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है।
हनुमान साधना के नियम—–
शास्त्रों में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन व्रत करने से और इसी दिन हनुमान पाठ जप अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से त्वरित फल प्राप्त होता है। 1. हनुमान-साधना में लाल चीजों का प्रयोग अधिक हो।2. जप पाठ अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से पूर्व किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी से आज्ञा मांग लेनी चाहिए।3. जातक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन का प्रयोग करते हुए हनुमान साधना प्रारंभ कर लेनी चाहिए व जप मूंगे की माला से भी कर सकते हैं।4. साधना के दौरान ब्रहमचर्य का पालन आहार विहार पर नियंत्रण रखना चाहिए।
कुछ अन्य टिप्स—–
1. बच्चों को महीने या दो महीने में हनुमान मंदिर ले जाकर झाड़ा लगवाना चाहिए जिससे बच्चों पर नजर दोष भूत प्रेत का दबाव न रहे।2. हनुमान जी के चरणों के सिंदूर को चांदी के ताबीज में बंधवाकर गले में धारण करने से भी भूत प्रेत व टोने टोटके आदि का भय समाप्त होता है।3. प्रतिदिन अपडाउन करने वाले पैसेन्जर को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए ताकि दुर्घटना से उनकी रक्षा हो सके।4. साक्षात्कार देने से पूर्व विद्यार्थियों को बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए जिससे इन्टरव्यू में सफलता प्राप्त होती है।5. फैक्ट्री या व्यवसाय स्थान आदि पर भूत प्रेतों का साया न पड़े इसके लिए इन्हें अपने अपने प्रतिष्ठानों के ऊपर हनुमान ध्वज (झंडा) लगा देना चाहिए। यह ध्वज लाल कलर का हो।6. बुरी आत्माओं का प्रवेश हमारे घर में ना हो, इसके लिए द्वार पर सिंदूर से राम-राम लिखकर 7 बिंदु लगा दें जिससे हमारा घर सुरक्षित रहे।
मानस हवन….
मानस हवन में हम चाहें तो सुन्दरकाण्ड के सभी दोाहों से हवन कर सकते हैं। इस हवन में कोई भी गलती रहने पर अंत में चालीसा का पाठ कर लेना चाहिए। इस हवन के प्रभाव से ऊपरी बाधाओं का शमन होता है।1. घर में हनुमान यंत्र की स्थापना करने से भी हमारा घर सुरक्षित रहता है।2. मकान के आस पास श्मशान हो या कोई खंडहर भवन हो तो ऐसे में हमारे मकान के ऊपर हमें हनुमत ध्वज की स्थापना कर देनी चाहिए और ध्वज पर हनुमत यंत्र सिंदूर से बना लें या बना बनाया खरीद कर लगा दें ।
क्या है जीवन और मृत्यु का शाश्वत रहस्य?
जीवन जितना सत्य है उतनी ही मृत्यु भी और उतना ही सत्य है मृत्युके बाद का जीवन। भारतीय चिन्तन धरा के मूल स्रोतों जेसे वेद उपनिषद् महाभारत आदि में इस विषय पर बड़ी ही विस्तृत चर्चा की गई है। मनुष्य मृत्युपरान्त आंक्षाओं के पीछे भागता रहता है और मृत्यु के बाद इन्हीं अधूरी इच्छाओं के कारण वह प्रेतयोनि को प्राप्त होता है।
मानव की मृत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर का इस पार्थिव शरीर से अलगाव हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूक्ष्त शरीर निराश्रय नहीं रह सकता-
‘न तिष्ठति निराश्रयं लिंड्गम’
अतः अगला स्थूल शरीर प्राप्त करने तक वह सूक्ष्म शरीर अपनी वासनाओं के अनुसार प्रेत शरीर को ग्रहण कर लेता है । इन्हीं प्रेत शरीरों द्वारा यदा कदा मनुष्य को आवेशित कर लेने के कारण विकट परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और यही घटना प्रेतबाधा के नाम से जानी जाती है। ऐसा नहीं है कि केवल प्रेतात्माओं के द्वारा ही मनुष्यों को कष्ट पहुंचाया जाता है।
कभी कभी विभिन्न देव योनियां जैसे देव यक्ष किन्नर गंधर्व नागादि भी कुपित होकर कष्टकारक हो जाते हैं। व्यक्ति के शरीर के तापमान में अत्यधिक वृद्धि उन्माद की अवस्था शरीर के वनज में अधिक वृद्धि या कमी आदि अनेक ऐसे संकेत हैं जिनसे ऊपरी बाधा का प्रकोप प्रकट हो जाता है।
क्यों?:- एक बात तो स्पष्ट ही है कि दुर्बल रोगी कात आत्मबल से हीन तथा कमजोर इच्छाशक्ति वाले लोगों पर यह ऊपरी बाधा प्रभाव अधिक होता हुआ देखा गया है। कभी कभी दुष्ट तान्त्रों द्वारा भी धन के लालच में आकर निकृष्ट प्रेतात्माओं द्वारा मनुष्य को प्रेतबाधा से पीड़ित करने का दुष्कर्म किया जाता है। तीर्थ स्थलों तथा सिद्ध पीठों पर अपवित्र आचरण के कारण भी वहां उपस्थिति दिव्यात्माएं क्रोधित होकर कभी कभी कष्ट पहुंचाने लगती हैं।
कब?:- प्रेतात्माओं का आवेश विशेष रूप से दोपहर सांयकाल तथा मध्यरात्रि के समय होता है। निर्जन स्थान श्मशान लम्बे समय से खाली पड़े घर आदि भी प्रेतों के वासस्थान माने गए हैं इसलिए यहां आने से बचें। स्त्रियों को बाल खुले रखने से बचना चाहिए विशेष रूप से सांयकाल में। छोटे बच्चों के अकेले रहने पर भी प्रेतों का आवेश हो जाता है।
ऊपरी बाधा निवारण:- जहां तक ऊपरी बाधा के निवारण का प्रश्न है हनुमान जी की उपासना इस समस्या से मुक्ति के लिए अत्यन्त श्रेष्ठ मानी गई है । प्रसद्धि ही है – ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवै। महावीर जब नाम सुनावै।’
भूत प्रेत पिशाच आदि निकृष्ट अशरीरी आत्माओं से मुक्ति के उपायों पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं इनसे संबंधति मंत्रों का एक बड़ा भाग हनुमान जी को ही समर्पित है। ऊपरी बाधा दूर करने वाले शाबर मन्त्रों से लेकर वैदिक मंत्रों में हनुमान जी का नाम बार बार आता है। वैसे तो हनुमान जी के कई रूपों का वर्णन तंत्रशास्त्र में मिलता है जैसे एक मुखी हनुमान पंचमुख हनुमान सप्तमुखी हनुमान तथा एकादशमुखी हनुमान। परन्तु ऊपरी बाधा निवारण की दृष्टि से पंचमुखी हनुमान की उपासना चमत्कारिक और शीघ्रफलदायक मानी गई है। पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप में वानर सिंह गरूड वराह तथा अश्व मुख सम्मिलित हैं और इनसे ये पांचों मुख तंत्रशास्त्र की समस्त क्रियाओं यथा मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण आदि के साथ साथ सभी प्रकार की ऊपरी बाधा होने की शंका होने पर पंचमुखी हनुमान यन्त्र तथा पंचमुखी हनुमान लॉकेट को प्राणप्रतिष्ठित कर धारण करने से समस्या से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है।
प्राणप्रतिष्ठा:- पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र यंत्र तथा लॉकेट का पंचोपचार पूजन करें तथा इसके बाद समुचित विधि द्वारा उपरोक्त सामग्री को प्राणप्रतिष्ठित कर लें।
प्राणप्रतिष्ठित यंत्र को पूजन स्थान पर रखें तथा लॉकेट को धारण करें। उपरोक्त अनुष्ठान को किसी भी मंगलवार के दिन किया जा सकता है। उपरोक्त विधि अपने चमत्कारपूर्ण
प्रभाव तथा अचूकता के लिए तंत्रशास्त्र में दीर्घकाल से प्रतिष्ठित है। श्रद्धापूर्वक किया गया उपरोक्त अनुष्ठान हर प्रकार की ऊपरी बाधा से मुक्ति प्रदान करता है।
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बालारिष्ट एवं भूत-प्रेत बाधाओं का पारस्परिक संबंध:-
जन्म कुंडली में लग्न भाव, आयु भाव अथवा मारक भाव पर यदि पाप प्रभाव होता है तो जातक का स्वास्थ्य प्राय निर्बल रहता है अथवा उसे दीर्घायु की प्राप्ति नहीं होती है। साथ ही चन्द्रम, लग्नेश तथा अष्टमेश का अस्त होना, पीड़ित होना अथवा निर्बल होना भी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि जातक अस्वस्थ रहेगा या उसकी कुंडली में अल्पायु योग है। ठीक इसी प्रकार चंद्रमा लग्न, लग्नेश अष्टमेश पर पाप प्रभाव इन ग्रहों की पाप ग्रहों के साथ युति अथवा कुंडली में कहीं कहीं पर चंद्र की राहु-केतु के साथ युति यह दर्शाती है कि जातक पर भूत-प्रेत का प्रकोप हो सकता है। मुख्यतः चंद्र केतु की युति यदि लग्न में हो तथा मंचमेश और नवमेश भी राहु के साथ सप्तम भाव में है तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि जातक ऊपरी हवा इत्यादि से ग्रस्त होगा। फलतः उसके शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, स्वास्थ्य तथा आयु पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा।
उपर्युक्त ग्रह योगों से प्रभावित कुंडली वाले जातक प्रायः मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहते हैं। उन्हें नींद भी ठीक से नहीं आती है। एक अनजाना भय प्रति क्षण सताता रहता है तथा कभी कभी तो वे आत्महत्या करने की स्थिति तक पहुंच जाते हैं।
जो ग्रह भाव तथा भावेश बालारिष्ट का कारण होते हैं, लगभग उन्हीं ग्रहों पर पाप प्रभाव भावेशों का पीड़ित, अस्त अथवा निर्बल होना इस बात का भी स्पष्ट संकेत करता है कि जातक की कुंडली में भूत-प्रेत बाधा योग भी है। अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि बालाश्रिष्ट तथा भूत प्रेत बाधा का पारस्परिक संबंध अवश्य होता है।
ऊपरी हवा और प्रेत बाधा के लक्षण प्रत्येक रोग के समान ही प्रेत बाधा भी अकारण नहीं होती। वस्तुतः ये आंतरिक और बाहय कारण जीवन में अनेक रूपों में व्यक्त होते हैं और समुचित जयोतिषीय योगों द्वारा व्यक्ति के प्रेत बाधा से ग्रस्त होने के बारे में जाना जा सकता है।
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प्रेतभूत और पिशाच आदि के निवास स्थल और अरिष्टयोग…..
भूत-प्रेतों का निवास नीचे दिए गए कुछ वृक्षों एवं स्थानों पर माना गया है। इन वृक्षों के नीचे एवं स्थानों पर किसी प्रकार की तेज खुशबू का प्रयोग एवं गंदगी नहीं करनी चाहिए, नहीं तो भूत-प्रेत का असर हो जाने की संभावना रहती है।
पीपल वृक्ष:- शास्त्रों में इस वृक्ष पर देवताओं एवं भूत प्रेत दोनों का निवास माना गया है। इसी कारण हर प्रकार के कष्ट एवं दुख को दूर करने हेतु इसकी पूजा अर्चना करने का विधान है।
मौलसिरी:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेतों का निवास माना गया है।
कीकर वृक्ष:- इस वृक्ष पर भी भूत-प्रेत रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने इस वृक्ष में रोज पानी डालकर इस वृक्ष पर रहने वाले प्रेत को प्रसन्न कर उसकी मदद से
हनुमान जी के दर्शन प्राप्त कर प्रभु श्रीराम से मिलने का सूत्र पाया था। यह भूत प्राणियों को लाभ पहुंचाने वाली श्रेणी का था।
शमशान या कब्रिस्तान:- इन स्थानों पर भी भूत-प्रेत निवास करते है।
भूत-प्रेत से सावधानी:- जल में भूत-प्रेतों का निवास होता है, इसलिए किसी भी स्त्री पुरुष को नदी तालाब में चाहे वह कितने ही निर्जन स्थान में क्यों न हों निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए क्योंकि भूतप्रेत गंदगी से रुष्ट होकर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। कुएं में भी किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी चाहिए क्योंकि कुंए में भी विशेष प्रकार के जिन्न रहते हैं जो कि रुष्ट होने पर व्यक्ति को बहुत कष्ट देते हैं।
शमशान या कब्रिस्तान में भी कभी कुछ नहीं खाना चाहिए और न ही वहां पर कोई मिठाई या सफेद व्यंजन या शक्कर या बूरा लेकर जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी भूत प्रेत बहुत जल्दी आकर्षित होते हैं। ऐसे स्थानों में रात में कोई तीव्र खुशबू लेकर भी नहीं जाना चाहिए तथा मलमूल त्याग भी नहीं करना चाहिए। किसी भी अनजान व्यक्ति से या विशेष रूप से दी गई इलायची, सेब, केला, लौंग आदि नहीं खानी चाहिए क्योंकि यह भूतप्रेत से प्रभावित करने के विशेष साधन माने गए हैं।
केसे करें भूत-प्रेत से बचाव..????
यदि अनुभव हो कि भूत प्रेत का असर है तो घर में नियमित रूप से सुन्दरकाण्ड या हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा सूर्य देव को जल चढ़ाएं। 1. यदि किसी मनुष्य पर भूतप्रेत का असर अनुभव हो, तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पत्ती जलाएं।2. मंगल या शनिवार को एक समूचा नींबू लेकर भूत प्रेत ग्रसित व्यक्ति के सिर से पैर तक 7 बार उतारकर घर से बाहर आकर उसके चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में फेंक दें। यह ध्यान रहे कि जिस चाकू से नींबू काटा है उसे भी फेंक देना चाहिए।
कतिपय ज्योतिषीय योग:-कुंडली में बनने वाले कुछ प्रेत अरिष्ट योग इस प्रकार हैं:-
1. सूर्य अथवा चन्द्र यदि तृतीय भाव में पापी ग्रहों के साथ हैं तो बच्चा बीमार रहेगा अथवा कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो जाती है।2. यदि चंद्र अष्टम भाव के स्वामी के साथ केंद्रस्थ है तथा अष्टम भाव में भी पापी ग्रह हैं तो शीघ्र मृत्यु होती है।3. यदि चंद्र से सप्तम भाव में मंगल एवं शनि हैं तथा राहु लग्नस्थ है तो जन्म के कुछ दिनों के अन्दर ही मृत्यु हो जाती है।
इस प्रकार कुंडली में अनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग यह हैं:-
ज्योतिष में बालारिष्ट संबंधी कुछ योगों का वर्णन मिलता है। उसी प्रकार कुंडली में भूत प्रेत बाधा से संबंधित योगों का समावेश भी है जिनमें आश्चर्यजनक रूप से समानता है।
वस्तुतः ये दोनों प्रकार की बाधाओं के पारस्परिक संबंध को ही दर्शाता है। आइये जानें, इस बारे में विस्तार से। ज्योतिष में स्वास्थ्य एवं आयु का विचार करने के लिए मुख्यतः लग्न, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव को देखा जाता है।
लग्न व्यक्ति का व्यक्तित्व, शरीर एवं स्वास्थ्य है। षष्ठ भाव रोग का कारक होने के कारण स्वास्थ्य से संबंधित है तथा अष्टम भाव को मुख्यतः आयु भाव माना जाता है।
इसी प्रकार (भावात् भावम्) के अनुसार तृतीय भाव अष्टम (आयु भाव) से अष्टम होने के कारण आयु भाव माना जाता है। द्वितीय तथा सप्तम भाव मारक भाव होने के कारण जातक की आयु से प्रत्यक्ष रूप से पूर्ण संबंध रखते हैं।
कतिपय बालारिष्ट योग: कुंडली में बनने वाले कुछ बालारिष्ट योग इस प्रकार हैं- सूर्य अथवा चंद्र यदि तृतीय भाव में पापी ग्रहों के साथ हैं तो बच्चा बीमार रहेगा अथवा कुछ समय पश्चात् उसकी मृत्यु हो जाती है।
यदि चंद्र अष्टम भाव के स्वामी के साथ केन्द्रस्थ है तथा अष्टम भाव में भी पापी ग्रह हैं तो शीघ्र मृत्यु होती है। यदि चंद्र से सप्तम भाव में मंगल एवं शनि हैं तथा राहु लग्नस्थ है तो जन्म के कुछ दिनों के अंदर ही मृत्यु हो जाती है। यदि लग्न कुंडली के 2, 4, 8, 12 भावों में पापी ग्रह हैं तो शिशु की अल्पायु होती है।
यदि सभी ग्रह निर्बल हैं तथा 3, 6, 9, 12 भावों में स्थित हैं तो बालारिष्ट योग बनता है।
यदि लग्नेश नीच राशिगत अष्टम भाव में है अथवा अस्त होकर अष्टम भाव में स्थित हैं तो भी जीवन संशयात्मक स्थिति में रहता है।
यदि लग्न से कई पापी ग्रहों का संबंध बनता हो अथवा लग्नेश, चंद्र लग्नेश तथा नवमांश लग्न सभी पीड़ित अथवा पाप प्रभाव में हैं तो जीवन काल कुछ दिनों का ही होता है। लग्नेश यदि सप्तम भाव में राहु के साथ स्थित है, तो भी यह आयु के लिए शुभ संकेत नहीं है।
यदि पापी ग्रह (राहु-केतु) अष्टम भाव में हो, जबकि लग्नेश केंद्र में पापी ग्रहों के साथ हो तथा उन पर कोई भी शुभ प्रभाव न हो, तो बालारिष्ट योग बनता है तथा अधिकतम आयु सात वर्ष ही होती है।
इस प्रकार कुंडली में बनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग ये हैं: यदि कुंडली में चंद्रमा अथवा लग्न, लग्नेश पर राहु-केतु का प्रभाव है तो उस जातक पर ऊपरी हवा जादू-टोने इत्यादि का असर अति शीघ्र होता है। यदि कुंडली के प्रथम भाव में चंद्रमा के साथ राहु अथवा केतु है और पंचम एवं नवम् भाव पर पाप प्रभाव है अथवा चंद्रमा अधिष्ठित राशि का स्वामी भी राहु-केतु के साथ स्थित है, तो ऐसा जातक भूत-बाधा का शिकार हो सकता है।
पंचम भाव को ज्योतिष में पूर्व जन्म, आत्माओं से संपर्क, पूर्व जन्म के शुभ-अशुभ कर्म तथा नवम भाव भाग्य भाव होने के साथ-साथ इस जन्म में हमारे पूर्व जन्म के कर्म फलों के भोग को दर्शाता है।
अतः स्पष्ट है कि इन भावों पर पाप प्रभाव जातक के भाग्य व स्वास्थ्य के साथ उसके मानसिक एवं बौद्धिक विकास को प्रभावित करेगा।
कुंडली में सप्तम भाव में अथवा अष्टम भाव में क्रूर ग्रह राहु-केतु, मंगल, शनि पीड़ित अवस्था में हैं तो ऐसा जातक भूत-प्रेत जादू-टोने तथा ऊपरी हवा आदि जैसी परेशानियों से अति शीघ्र प्रभावित होता है।
1. यदि कुंडली में चंद्रमा अथवा लग्न लग्नेश पर राहु केतु का प्रभाव है तो उस जातक पर ऊपरी हवा जादू टोने इत्यादि का असर अति शीघ्र होता है।
2. कुंडली में सप्तम भाव में अथवा अष्टम भाव में क्रूर ग्रह राहु केतु मंगल शनि पीड़ित अवस्था में हैं तो ऐसा जातक भूत प्रेत जादू टोने तथा ऊपरी हवा आदि जैसी परेशानियां से अति शीघ्र प्रभावित होता है।
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भूत-प्रेत आदि से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कैसे करें?
1. ऐसे व्यक्ति के शरीर या कपड़ों से गंध आती है।
2. ऐसा व्यक्ति स्वभाव में चिड़चिड़ा हो जाता है।
3. ऐसे व्यक्ति की आंखें लाल रहती हैं व चेहरा भी लाल दिखाई देता है।
4. ऐसे व्यक्ति सिरदर्द व पेट दर्द की शिकायत अक्सर करता ही रहता है।
5. ऐसा व्यक्ति झुककर या पैर घसीट कर चलता है।
6. कंधों में भारीपन महसूस करता है।
7. कभी कभी पैरों में दर्द की शिकायत भी करता है।
8. बुरे स्वप्न उसका पीछा नहीं छोड़ते।
9. जिस घर या परिवार में भूत प्रेतों का साया होता है वहां शांति का वातावरण नहीं होता। घर में कोई न कोई सदस्य सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। अकेले रहने पर घर में डार लगता है बार-बार ऐसा लगता है कि घर के ही किसी सदस्य ने आवाज देकर पुकारा है जबकि वह सदस्य घर पर होता ही नहीं? इसे छलावा कहते हैं।
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भूत प्रेत कौन हैं..???
अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भअकती रहती है, जब तक कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही भूत व प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती है।
भुत बाधा से बचने हेतु क्या करें, क्या न करें..????
1. किसी निर्जन एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिस पर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।2. किसी नदी तालाब कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मल-मूत्र त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को प्रदूषित करने स जल के देवता वरुण रूष्ट हो सकते हैं।3. घर के आसपास पीपल का वृक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि पीपल पर प्रेतों का वास होता है।4. सूर्य की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।5. गूलर मौलसरी, शीशम, मेहंदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। रात के अंधेरे में इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबुदार पौधों के पास जाना चाहिए।6. सेब एकमात्र ऐसा फल है जिस पर प्रेतक्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी अनजाने का दिया सेब नहीं खाना चाहिए।7. कहीं भी झरना, तालाब, नदी अथवा तीर्थों में पूर्णतया निर्वस्त्र होकर या नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए।8. अगर प्रेतबाधा की आशंका हो तो.घर में प्राणप्रतिष्ठा की बजरंगबलि हनुमान की सुसज्जित प्रतिमा और हनुमान चालीसा रखनी चाहिए।9. प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।10. प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं।11. सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य देना प्रेतवाधा से मुक्ति देता है।12. घर में ऊंट की सूखी लीद की धूनी देकर भी प्रेत बाधा दूर हो जाती है।13. घर में गुग्गल धूप की धूनी देने से प्रेतबाधा नहीं होती है।14. नीम के सूखे पत्तों का धुआं संध्या के समय घर में देना उत्तम होता है।
क्या करें कि भूत प्रेतों का असर न हो पाए:-
1. अपनी आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें।
2. अपने इष्ट देवी देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।
3. हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें।
4. जिस घर में प्रतिदिन सुन्दरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता।
5. घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं।
6. मां महाकाली की उपासना करें।
7. सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें।
8. संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें।
9. रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरू से अनुमति अवश्य लें।
10. रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छुएं।
11. यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें।
12. प्रातःकाल स्नान व पूजा के प्श्चात ही कुछ ग्रहण करें।
13. ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो।
14. कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात ही किसी निर्णय पर पहुंचे।
15. किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु, संत, फकीर, पंडित आदि का अपमान न करें।
16. अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें।
17. हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें।