आइये जाने प्रेम विवाह (अंतर जातीय विवाह ) के ज्योतिषीय और वास्तु सम्मत कारण–


प्रिय पाठकों, आजकल वे कौन से हालात हैं जिनके कारण कोई भी लड़की को घर छोड़ने को मजबूर हो जाती  हैं ?? 


प्रिय पाठकों/मित्रों, 
आइये आज समझने की कोशिश करते हैं की आखिर क्यों कोई लड़की/कन्या घर से भागने को मजबूर हो जाती हैं || मेरे विचार से इसके कुछ कारण निम्न हो सकते हैं–


.. .–अधिक उम्र होना ||
0. .–आत्मनिर्भर या स्वरोजगार होना ||
0. .–उस युवती के आवास/घर/मकान में वास्तु दोष होना अर्थात  वायव्य कोण में निर्मित पानी की टंकी, बोरिंग, सैप्टिक टैंक या कुआं अथवा किसी प्रकार से नीचा भाग होने पर वहां की निवासी लड़की/कन्या घर में कम बाहर अधिक रहती है। यदि कन्या बालिग नहीं है, तो उसे वायव्य दिशा शयनकक्ष में नहीं सुलाना चाहिए। वस्तुतः वायव्य कोण में उच्चाटन की प्रवृति होती है। इसका उद्देश्य वायव्य कोण में सोने वाले जातक को घर से बाहर भेजना होता है। कम उम्र की कन्या जिसकी अभी शादी होनी है, वायव्य दिशा के बेडरूम में सोने पर चंचल हो जाती है। अर्थात् ऐसी कन्या के वायव्य दिशा के कमरे में सोने पर कदम बहक सकते हैं।
04 .–दूसरा अनुभव में मेने यह पाया हैं की जिस घर में मनी प्लांट का पौधा लगा होता हैं उस घर में रहने वाली लडकिया प्रेम/ अन्तर जातीय विवाह करती हैं अथवा घर से भागकर शादी करती हैं।।
05 .– जरुरत से ज्यादा नियंत्रण/कंट्रोल, डांटना-फटकारना..
06 .– उस लड़की/कन्या की कुंडली में मंगल-शुक्र की युति या इनका कोई सम्बन्ध होना, 
07 .–उसकी कुंडली में राहु की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा या चन्द्रमा में राहु-केतु की अंतर्दशा / या इनका किसी प्रकार का सम्बन्ध..
08 .– आजकल की सहशिक्षा, एक साथ नौकरी ,घर से दूर रहकर नौकरी एवं जीवन शैली के आधुनिक पर्यावरण में वे कच्ची उम्र में ही प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़कर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं। 
संभवतया ऐसी स्थिति में रहने वाली लड़कियां अपनी मर्जी से घर से भागकर शादी कर लेती हैं। अनेक घटनाओं में किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों के कदम बहक सकते हैं।
******* उपरोक्त विचार/अनुभव लेखक पंडित दयानन्द शास्त्री के हैं, किसी को आहत करना लेखक का उद्देश्य नहीं हैं/ वैचारिक (ज्योतिषीय/वास्तु सम्मत कारण) मतभेद होना संभावित हैं ||
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आइये अब इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें/ समझने का प्रयास करें-


आजकल वे कौन से हालात हैं जिनके कारण कोई भी लड़की को घर छोड़ने को मजबूर हो जाती  हैं ?? 


ऐसे अधिकांश मामलों में कुछ भी ऊंच नीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरह तरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है || 


जब लड़का और लड़की में परस्पर प्रेम होता है तदनन्तर जब दोनों एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में देखने लगते है और वही प्रेम जब विवाह के रूप में परिणत हो जाता है तो हम उसे प्रेम-विवाह कहते है। विद्वत और प्रेमी समाज ने प्रेम को अपने अपने नजरिये से देखा है। इसलिए प्रेम सभी रूपों में प्रतिष्ठित है यथा  माता और पुत्र का स्नेह, गुरु-शिष्य का प्रेम, देवी देवताओ के प्रति प्रेम, लौकिक व अलौकिक प्रेम, विवाह पूर्व लड़का-लड़की का प्रेम इत्यादि। परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है की क्या सभी प्रेमी अपने प्रेमिका या प्रेमी को पाने में सफल हो सकते है ? इसका उत्तर हाँ और न दोनों में होता है, कोई प्रेमी प्रेमिका को पाने में सफल होता है, तो कोई असफल। 


आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं|| जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं  मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है||


इस का एक मुख्य कारण आज का बदलता परिवेश है|| आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है||


हिन्दू संस्कृति में विवाह को सोलह संस्कारो मे सबसे महत्वपूर्ण माना गया है यही संस्कार आपको सृष्टि के संचालन में सामाजिक रूप से सक्षम बनाता है | यही कारण है , शास्त्रों में चारो पुरुषार्थ अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष की प्राप्ति में विवाह अनिवार्य सामाजिक स्तम्भ है | 


हालाँकि प्राचीन समय में आठ तरह के विवाह प्रचलन में थे लेकिन वर्तमान में दो विवाह मुख्य रूप से चलन में है –


(1) पारंपरिक विवाह -जिसमे माता पिता परिजन की स्वीकृति को महत्व देकर युवक युवती का विवाह किया जाता है जिसमे खासतौर पर परम्परा, मान्यताओं , जाति , गौत्र आदि को मान्यता दी जाति है |
(२) प्रेम विवाह – इस विवाह में युवक युवती अपनी पंसद से विवाह करते है स्वयं की पसंद को ज्यादा महत्व दिया जाता है ऐसे युगल मान्यताओ ,जाति, गौत्र आदि नियम से परे हो सकते है | 
हम आज कुंडली में सफल प्रेम विवाह के योग पर चर्चा करेंगे आखिर किन ज्योतिषीय योगो के कारण प्रेम विवाह के योग बनते है | 


कारक ग्रह – सबसे पहले जानेंगे प्रेम विवाह कराने वाले कारक ग्रह कौन से होते है ??


जन्मकुंडली में मुख्य रूप से चन्द्रमा क्योकि चन्द्रमा मन का कारक माना जाता है | दूसरा कारक ग्रह होता है शुक्र क्योकि शुक्र आकर्षण और सेक्स का कारक ग्रह होता है | तीसरा कारक मंगल है जो साहस का कारक होता है क्योकि परिवार और समाज विमुख होकर विवाह की ताकत मंगल ही देता है साथ ही स्त्री में आकर्षण और काम उत्पत्ति का कारक ग्रह होता है | इन सबके अलावा मुख्य भूमिका में होते है शनि देव क्योकि शनि अन्तर्जातीय विवाह विजातीय विवाह के कारक होते है शनि के साथ राहू जुड़ जाने पर दुसरे धर्म के लोगो से विवाह के कारक बन सकते है |


प्रेम विवाह में भाव भूमिका – 
जन्मकुंडली में प्रेम विवाह के लिए लग्न , पचंम, सप्तम ,एकादश और द्वादश भाव की मुख्य भूमिका होती है | लग्न से जातक के तन ,मन ,सफलता , व्यक्तित्व का पता चलता है वही पंचम भाव शिक्ष के अलावा प्रेम का और सप्तम भाव भाव विवाह का होता है जबकि द्वादश भाव शय्या सुख का होता है | एकादश भाव आपकी मनोकामनाओ की पूर्ति करने वाला होता है अगर आपकी मनोकामना प्रेम विवाह की है तो एकादश भाव ख़ास होता है |


प्रेम विवाह के लिए सबसे महत्वपूर्ण पंचम , सप्तम,एकादश और द्वादश भाव और इनके अधिपति का आपसी संबध दृष्टी , युति ,स्थिति किसी भी प्रकार से हो और शनि का सम्बद्ध जुड़ जाए तो मानिये प्रेम विवाह के योग प्रबल है |
हम ज्योतिषीय गणनाओ ग्रहों के योगायोग के आधार पर प्रेम विवाह और सफल वैवाहिक जीवन का निर्धारण कर सकते है | 


दूसरी खास बात मंगल शुक्र का कुंडली में आपस में जुड़ना , पंचम पंचमेश का सप्तम और सप्तमेश से 
जुड़ना और द्वादश भाव उसके स्वामी का सम्बद्ध प्रेम को चरम पर पहुचाते है | 


कुछ ख़ास योग जिसमे प्रेम विवाह की सम्भावना बनती है —


• लड़की की कुंडली के जिस राशि में मंगल होता है उस राशि के जिस लड़के का शुक्र बैठा हो , वह लड़की उस लड़के की तरफ शीघ्र आकर्षित हो सकती है | जैसे लड़की की कुंडली में मेष राशि में मंगल बैठा हो और जिस लड़के का शुक्र मेष राशी में बैठा हो तो दोंनो में सहज आकर्षण होगा |
• पंचम और सप्तम भाव के स्वामी का आपस में एक दुसरे के घर में बैठना चूँकि पंचम प्रेम और सप्तम विवाह का घर है अत: प्रेम +विवाह के प्रबल योग बन जाते है |
• शुक्र , मंगल , राहू , शनि का चन्द्र पर प्रभाव डाल रहै हो तो जातक के मन में प्रेम भाव जाग्रत करते है | साथ ही अगर 5,7,12 और 2 भावो प्रभावित करे तो प्रेम विवाह का योग बनता है |
• लग्नेश ,पंचमेश , सप्तमेश ,नवमेश आपस में राशी परिवर्तन करे या सम्बन्ध बनाये तो प्रेम विवाह के योग बनते है |
• शनि के जुड़ने से अंतरजातीय विवाह होता है | राहू के जुड़ने से भाग कर विवाह करते है |
कुंडली में ऐसे योग होने के बावजूद अगर गुरु का सम्बन्ध और दृष्टि होती है तो प्रेम विवाह भंग हो सकता है ऐसी स्थिति में घर वालो के सहयोग राजी मर्जी से ही विवाह हो सकता है ||


ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की युति भी प्रेम को विवाह की परिणिति तक लेजाने में मददगार होती है।जब किसी लड़का और लड़की के बीच प्रेम होता है तो वे साथ साथ जीवन बीताने की ख्वाहिश रखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। कोई प्रेमी अपनी मंजिल पाने में सफल होता है यानी उनकी शादी उसी से होती है जिसे वे चाहते हैं और कुछ इसमे नाकामयाब होते हैं। ज्योतिषशास्त्री इसके लिए ग्रह योग को जिम्मेवार मानते हैं। देखते हैं ग्रह योग  कुण्डली में क्या कहते हैं।


ज्योतिषशास्त्र में शुक्र ग्रहष् को प्रेम का कारक माना गया है ।कुण्डली में लग्नए पंचमए सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी स्वभाव का होता है। प्रेम होना अलग बात है और प्रेम का विवाह में परिणत होना अलग बात है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।


ऐसा नहीं है कि केवल इन्हीं स्थितियो मे प्रेम विवाह हो सकता है। अगर आपकी कुण्डली में यह स्थिति नहीं बन रही है तो कोई बात नहीं है हो सकता है कि किसी अन्य स्थिति के होने से आपका प्रेम सफल हो और आप अपने प्रेमी को अपने जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करें। पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है ।शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।


यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.


आज लड़के लड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए  जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.


मातापिता की बड़ी भूल—-


ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.


जरूरी है सहयोगात्मक रवैया—-


माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है.


मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा ||


आज प्रेम विवाह या परिवार द्वारा आयोजित किए जानेवाले विवाह में कोई अंतर नहीं रह गया है। यदि युवा किसी से प्रेम भी करते हैं तो भले ही कुछ दिन इंतजार करना पडे , पर अपने अपने अभिभावकों को विश्‍वास में ले ही लेते हैं और आखिर में उनकी रजामंदी से प्रेम विवाह को अभिभावक के पसंदीदा विवाह में बदल ही दिया जाता है। सारे नाते रिश्‍तेदारों के मध्‍य उत्‍सवी माहौल में न सिर्फ उनका विवाह ही करवाया जाता है , वरन् उनके प्रेम का कोई गलत अर्थ न लगाते हुए उनके चुनाव की प्रशंसा भी की जाती है। यदि परिवारवालों की पसंद के अनुसार भी विवाह हो रहा हो , तो भी विवाह पूर्व युवकों और युवतियों को एक दूसरे से मिलने और एक दूसरे को समझने की पूरी स्‍वतंत्रता मिल ही जाती है।


किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें। ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं। 


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रेम विवाह से संबंधित तीन ग्रह होते हैं। यह तीन ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र हैं। इन तीनों ग्रहों के कारण व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर यह तीनों ग्रह एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो वह व्यक्ति प्रेम विवाह निश्चित करता है।


—यदि शुक्र, सूर्य और बुध तीनों ग्रह एक ही क्रम में अलग-अलग भावों में हो तो प्रेम होता है परंतु इनका विवाह नहीं हो पाता।
—सूर्य, बुध और सूर्य इन ग्रहों में से कोई दो युति करते हो और एक अन्य ग्रह भाव में स्थित हो जाए तो बहुत मुश्किल से प्रेम विवाह होता है।
—सूर्य, बुध सप्तम स्थान में हो तो अपने से बड़ी उम्र का प्रेमी मिलता है।
—शुक्र बलवान होने पर कई साथी मिलते हैं परतुं अन्य दो ग्रह सूर्य-बुध के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपना प्रेम नहीं मिलता।


प्रेम विवाह करने वाले लडके व लडकियों को एक-दुसरे को समझने के अधिक अवसर प्राप्त होते है. इसके फलस्वरुप दोनों एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव व पसन्द-नापसन्द को अधिक कुशलता से समझ पाते है. प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू भावनाओ व स्नेह की प्रगाढ डोर से बंधे होते है. ऎसे में जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी दोनों का साथ बना रहता है.पर कभी-कभी प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू के विवाह के बाद की स्थिति इसके विपरीत होती है. इस स्थिति में दोनों का प्रेम विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत होता है. 


जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।


शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। नवमांश कुण्डली जन्म कुण्डली का शरीर माना जाता है अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना 100 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है। 


राहु अगर लग्न में स्थित है तोनवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है। 


प्रेम विवाह के लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल परिणाम मिलता है। पर कभी.कभी प्रेम विवाह करने वाले वर.वधू के विवाह के बाद की स्थिति इसके विपरीत होती हैण् इस स्थिति में दोनों का प्रेम विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत होता हैण् आईये देखे कि कुण्डली के कौन से योग प्रेम विवाह की संभावनाएं बनाते हैं ||


राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं —-
—–जब राहु लग्न में हों परन्तु सप्तम भाव पर गुरु की दृ्ष्टि हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावनाए बनती हैण् राहु का संबन्ध विवाह भाव से होने पर व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने का सोचता हैण् राहु को स्वभाव से संस्कृ्ति व लीक से हटकर कार्य करने की प्रवृ्ति  का माना जाता है।


—–जब जन्म कुण्डली में मंगल का शनि अथवा राहु से संबन्ध या युति हो रही हों तब भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती हैण् कुण्डली के सभी ग्रहों में इन तीन ग्रहों को सबसे अधिक अशुभ व पापी ग्रह माना गया हैण् इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब विवाह भावए भावेश से संबन्ध बनाता है तो व्यक्ति के अपने परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करने की संभावनाएं बनती है। 

—–जिस व्यक्ति की कुण्डली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहु की दृ्ष्टि होए उसके प्रेम विवाह करने की सम्भावनाएं बनती है। जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है।


—-जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है.
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प्रेम विवाह के ज्योतिषीय सिद्धांत या नियम—


जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथए पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है ।
इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।  प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह होने के योग बनते है।
  
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक.दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है।
जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है।


कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे होंए अथवा एक.दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।  
जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक .दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।


—-जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब विवाह का भाव बली होता हैण् तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है।


—-पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युतिए स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है।् जब सप्तमेश की दृ्ष्टिए युतिए स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हों तोए प्रेम विवाह होता है।


—-द्वादश भाव में लग्नेशए सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा होए तो प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है।  
——जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर वह मंगलए सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते है तो प्रेम विवाह हो सकता है।
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प्रेम विवाह हेतु निर्धारित भाव एवं ग्रह—


ज्योतिषशास्त्र में सभी विषयों के लिए निश्चित भाव निर्धारित किया गया है लग्न, पंचम, सप्तम, नवम,  एकादश, तथा द्वादश भाव को प्रेम-विवाह का कारक भाव माना गया है यथा —


लग्न भाव      —   जातक स्वयं।
पंचम भाव     —   प्रेम या प्यार का स्थान।
सप्तम भाव     —   विवाह का भाव।
नवम भाव     —   भाग्य स्थान।
एकादश भाव —    लाभ स्थान।
द्वादश भाव    —   शय्या सुख का स्थान।
वहीं सभी ग्रहो को भी विशेष कारकत्व प्रदान किया गया है। यथा “शुक्र ग्रह” को प्रेम तथा विवाह का कारक माना गया है। स्त्री की कुंडली में “ मंगल ग्रह “ प्रेम का कारक माना गया है।
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विवाह होने के कुछ योग निम्नानुसार हैं- 


(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए। 
(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में, 
(3) लग्न,चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में, 
(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेशकी संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर। 
(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए, 
(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में, 
(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए। 
(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो,उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में। 
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प्रेम विवाह के अन्य योग—–
1) जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथ, पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है.
2) इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है |
3) प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह होने के योग बनते है. 
4) अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है.
5) जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है. 
6) कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे हों, अथवा एक-दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है. 
7) जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक -दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
8) जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब विवाह का भाव बली होता है. तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है.
9) पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युति, स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है.
10) जब सप्तमेश की दृ्ष्टि, युति, स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हों तो, प्रेम विवाह होता है.
11) द्वादश भाव में लग्नेश, सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा हो, तो प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है. 
12) जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर वह मंगल, सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते है. तो प्रेम विवाह हो सकता है.
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जानिए उन वास्तुदोष को जिनके कारण करती है लड़कियां घर से भाग कर शादी !!!!


वास्तु विज्ञान के अनुसार सोने के तरीके और बिस्तर का प्रभाव भी हमारे ऊपर होता है। आपका बिछावन और सोने का अंदाज सही नहीं है तो कैरियर और धन संबंधी समस्याओं को लेकर भी परेशानी बनी रहती है। बिस्तर का प्रभाव दांपत्य जीवन और विवाह पर भी होता है। इससे विवाह में बाधा भी आती है। इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए वास्तु विज्ञान में कुछ उपाय बताए गये हैं। 


** यह स्थिति तब पैदा होती है जब उस लड़की के घर के वायव्य कोण में निर्मित पानी की टंकी, बोरिंग, सैप्टिक टैंक या कुआं अथवा किसी प्रकार से नीचा होने पर बेटी घर में कम बाहर अधिक रहती है।


प्रायः देखा गया है कि ऐसी स्थिति में रहने वाली लड़कियां अपनी मर्जी से घर से भागकर शादी कर लेती हैं। अगर घर का वास्तु ठीक नहीं है, तो किशोरावस्था में लड़के-लड़कियों के कदम बहक सकते हैं।


वर्तमान सहशिक्षा एवं जीवन शैली के आधुनिक पर्यावरण में वे कच्ची उम्र में ही प्यार-मोहब्बत के चक्कर में पड़कर अपना जीवन तबाह कर लेते हैं।


*** दूसरा अनुभव में मेने यह पाया हैं की जिस घर में मनी प्लांट का पौधा लगा होता हैं उस घर में रहने वाली लडकिया प्रेम/ अन्तर जातीय विवाह करती हैं अथवा घर से भागकर शादी करती हैं।।


*****यदि आपके घर में बेटी के साथ ऐसी कोई समस्या है,तो उसकी कुंडली किसी योग्य और अनुभवी ज्योतिषि से विश्लेषण करवा कर उचित उपाय करे।


*****बेटी को फटकारने के बजाय घर के वास्तु दोषों पर ध्यान दीजिए। उन वास्तु दोषों को दूर करने के उपाय कीजिए। समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।


*****यदि कन्या बालिग नहीं है, तो उसे वायव्य दिशा शयनकक्ष में नहीं सुलाना चाहिए। वस्तुतः वायव्य कोण में उच्चाटन की प्रवृति होती है। इसका उद्देश्य वायव्य कोण में सोने वाले जातक को घर से बाहर भेजना होता है।
कम उम्र की कन्या जिसकी अभी शादी होनी है, वायव्य दिशा के बेडरूम में सोने पर चंचल हो जाती है। अर्थात् ऐसी कन्या के वायव्य दिशा के कमरे में सोने पर कदम बहक सकते हैं।उचित सलाह और उपाय से आप अपनी बेटी का भविष्य सवार सकते है।


ऐसे लगाएं बेड-—-
वास्तु विज्ञान के अनुसार लड़के और लड़कियों के लिए बेड लगाने की दिशा अलग अलग है। लड़कियों के लिए वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम दिशा शुभ होती है जबकि लड़कों के लिए पूर्व और पूर्वोत्तर दिशा शुभ रहती है। बेड लगाते समय यह भी ध्यान रखें कि बेड किसी भी दीवार से सटा हुआ नहीं हो।


बेड के नीचे कुछ न रखें—
बेड की साफ सफाई जितनी जरूरी है उतनी ही जरूरी है बेड के नीचे की सफाई। इसलिए अगर बेड के नीचे सामान रखने की आदत है तो इसे बदल दीजिए। बेड के नीचे रखे हुए सामनों से नकारात्मक उर्जा का संचार होता है जो विवाह में बाधक होता है। अगर बॉक्स वाले पलंग पर सोते हैं तो निश्चित ही बॉक्स में काफी सामान रखते होंगे।


इससे भी नकारात्मक उर्जा का संचार होता है। इस नकरात्मक उर्जा को दूर करने के लिए पलंग के चारों पायों के नीचे तांबे का एक स्प्रिंग अथवा एक बाउल में नमक भर कर रखें।


बेड के बाईं ओर सोएं—-
बेड पर हमेशा बायीं ओर सोएं। यह सिर्फ वास्तुशास्त्र ही नहीं बल्कि लंदन के एक होटल प्रीमियर इन द्वारा किये गये एक सर्वे रिपोर्ट में भी कहा गया है कि बांयी ओर सोने वाले व्यक्ति का मूड अधिक अच्छा रहता है। उनके अंदर सकारात्मक सोच रहती है और वह अधिक एक्टिव रहते हैं।


ऐसे युवक / युवती जो विवाह योग्य है और विवाह में अड़चने आ रही ही तो वैसे  युवक-युवतियों को घर में उस कमरे में रहना चाहिए जो उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है  ।  उनका कमरा और  दरवाजा का रंग गुलाबी, हल्का पीला, सफेद(चमकीला) करवाएं जाय ।  यदि  कुंडली में मंगल दोष की उपस्तिथि के कारण विवाह में विलंब होना सिद्ध हो  रहा हो तो उनके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना ही उत्तम होगा।  ऐसे युवक/ युवती जिस पलंग पर सोते हों उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए। 


नैरित्य कोण उपस्तिथ दोष विवाह में अवरोध और  वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न करता है.  यदि  नैरित्य कोण में रसोई या  शौच   का कार्य हो,  नैरित्य कोण दूषित हो जता है.  इसके अलावा यदि इस कोण में  सेप्टिक टेंक हो,  अंडर  ग्राउंड पानी की टंकी हो, .कुआं हो,  बोर हो, मुख्य प्रवेश द्वार हो तो भी वास्तु दोष उत्त्पन्न होता है.  अतः विवाह सम्बन्धी बातों की नियमितता के लिए यह आवश्यक है की इन तथ्यों की ओरे भी ध्यान दिया जाय.  


विवाहोपरांत यदि संतान सम्बन्धी बातों को लेकर परेशानी पैदा हो रही हो तो इशान कोण के वास्तु को शुद्ध करें.  देखें कही इशान कोण में कोई ऊँचा और भारी  निर्माण कार्य जैसे सीढ़ी आदि तो नहीं है या यह  कोण  कहीं बंद तो नहीं है.  इस कोण में  सेप्टिक टेंक,  शौचालय ,  किचन,  ओवर हेड टेंक  आदि की उपस्तिथि वास्तु दोष करक है.   


शुभम् भवतु।। कल्याण हो।।
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