इस वर्ष पितृ पक्ष और नवरात्र के बीच में अधिकमास पड़ने के कारण दोनों में एक महीने का अंतर होगा। आश्विन मास में अधिकमास (मलमास) लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब .9 वर्षों बाद बन रहा है। इस वर्ष ..20 (विक्रम संवत्सर 2077) में अधिमास की दो तिथियां कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तथा शुक्ल पक्ष की तृतीया का क्षय 18 अक्टूबर को है। इस कारण 17 सितंबर को श्राद्ध पक्ष के एक माह बाद 17 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र आरंभ होगा। श्राद्धपक्ष की सर्व पितृ अमावस्या के अगले दिन नवरात्र शुरू हो जाते हैं, लेकिन अमावस्या व नवरात्र के बीच पूरे एक माह का अंतर होगा।
इस वर्ष . सितंबर 2020 अर्थात कृष्ण पक्ष एकम से आश्विन माह शुरू होगा, जो 31 अक्टूबर 2020तक रहेगा। इस अवधि में 18 सितंबर को अधिकमास के रूप में प्रथम आश्विन की शुरु होकर 16 अक्तूबर तक चलेगा।। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। इसे अधिकमास की संज्ञा भी दी गई है। नव संवत्सर 2077 में इस बार तीन साल बाद एक माह अधिकमास का भी होगा। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। संवत्सर के अनुसार इसमें 12 की बजाए 13 महीने होंगे। यह संयोग हर तीन साल में एक बार बनता है। आश्विन माह 3 सितंबर से 31 अक्टूबर 2020 तक रहेगा। यानी इसकी अवधि करीब दो माह रहेगी। इन दो माह में बीच की अवधि वाला एक माह का समय अधिमास रहेगा।
पितृमोक्ष अमावस्या के बाद 18 सितंबर 2020 से 16 अक्टूबर 2020 तक पुरुषोत्तम मास रहेगा। इस कारण 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि पर्व शुरू होगा। वहीं पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार 13वां माह पुरुषोत्तम मास रहेगा, लेकिन इसके कारण विवाह मुहूर्त में कोई बाधा नहीं रहेगी। भारत वैदिक पंचांगनुसार हर वर्ष पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ होता रहा है। पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है, लेकिन इस वर्ष ऐसा नहीं होगा। इस बार पितृ पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। चतुर्मास जो हमेशा चार माह का होता है, इस बार पांच माह का होगा।
उज्जैन के ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि अधिकमास पूरे वर्ष में किसी भी माह के बाद या पहले आ सकता है। इस बार अधिकमास अश्विन मास के बाद आ रहा है। यानी इस वर्ष दो अश्विन मास होंगे। ये मास पितृ पक्ष के बाद प्रारंभ होगा और 30 दिनों तक रहेगा।
हर बार पितृ पक्ष के बाद नवरात्र प्रारंभ होते हैं परंतु इस बार अधिकमास आने के कारण नवरात्र देर से शुरू होंगे। ऐसा 19 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है। पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि कुछ विद्वानों का यह भी कहना है की ये संयोग 165 वर्षों के बन रहा है। पुरुषोत्तम मास के बाद जितने भी त्यौहार आएंगे वे 10 से 15 दिन या इससे कुछ अधिक विलंब से आएंगे। दीपावली इस बार 14 नवंबर 2020 को होगी और देवउठनी एकादशी 25 नवंबर 2020 को मनेगी।
जानिए क्या और कब होता है पुरुषोत्तम माह / अधिकमास
पं. दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है। वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है।
इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
क्या होता है अधिकमास
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि हमारे सभी व्रत, आस्था मेले, मुहूर्त ग्रहों पर आधारित होते हैं। सूर्य चंद्र के द्वारा हिंदी माह का निर्माण होता है। 30 तिथियों का माह होता है, जिसमें 15 दिनों बाद अमावस्या और 15 दिनों बाद बाद पूर्णिमा होती है। इन माह में पूरे वर्ष ये तिथियां घटती बढ़ती रहती हैं।
तीन वर्षों के उपरांत ये घटी-बढ़ी तिथियां एक पूरे माह का निर्माण करती हैं। विशेष ये होता है की इस माह में संक्रांति नहीं होती। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
नाम पुरुषोत्तम मास ही क्यों हैं ??
अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है।
पं. दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार मान्यता के मुताबिक भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मास पुरुषोत्तम मास बन गया।
जानिए अधिकमास में क्या करें
आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है
अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं।
पुरुषोत्तम मास में यह विशेष मंत्र देगा अक्षय पुण्य फल
मंत्र : गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।
अधिक मास में इनका करें दान : पक्ष के अनुसार…
कृष्ण पक्ष का दान
- घी से भरा चांदी का दीपक
- सोना या कांसे का पात्र
- कच्चे चने
- खारेक
- गुड़, तुवर दाल
- लाल चंदन
- कर्पूर, केवड़े की अगरबत्ती
- केसर
- कस्तूरी
- गोरोचन
- शंख
- गरूड़ घंटी
- मोती या मोती की माला
- हीरा या पन्ना का नग
शुक्ल पक्ष का दान
- माल पुआ
- खीर भरा पात्र
- दही
- सूती वस्त्र
- रेशमी वस्त्र
- ऊनी वस्त्र
- घी
- तिल गुड़
- चावल
- गेहूं
- दूध
- कच्ची खिचड़ी
- शक्कर व शहद
- तांबे का पात्र
- चांदी का नन्दीगण।
मांगलिक कार्यों के लिए करना होगा इंतजार
क्योंकि पितृ पक्ष में कोई मुहूर्त नहीं होता है। अधिकमास में भी कोई मुहूर्त नहीं होगा। जो लोग नवरात्रि में नई दुकान, घर, वाहन या कोई भी नया कार्य प्रारंभ करने की सोच रहे हैं। उन्हें अभी और इंतजार करना होगा।
तीन बार बना था ऐसा संयोग
सबसे पहले वर्ष 1942 में ऐसा संयोग बना था। इसके बाद वर्ष 1982 और फिर वर्ष 2001 में भी दो अश्विन मास आए थे। इस अश्विन मास के दो महीने होंगे। अश्विन माह 3 सितंबर से 31 अक्तूबर तक रहेगा। यानी इसकी अवधि दो माह रहेगी। इन दो माह में बीच की अवधि वाला एक माह का समय अधिकमास रहेगा। पितृमोक्ष अमावस्या के बाद 18 सितंबर से 16 अक्तूबर तक पुरुषोत्तम मास रहेगा। इस कारण 17 अक्तूबर से शारदीय नवरात्रि पर्व शुरू होगा।