केसे रखें ब्रह्म स्थान/स्थल का रखे ध्यान ????

वास्तु प्राकृतिक ऊर्जाओं का सही उपयोग करने की कला हैं । कुछ वास्तु टिप्स अपनाकर अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान, निवास स्थान एवं उद्योग में विपरीत वास्तु होने पर स्वयं उसे ढूंढ़ कर सही कर सकते हैं । ऐसा ही एक सामान्य वास्तु दोष ब्रह्म स्थल से संबंधित अधिकांश स्थानों पर पाया जाता हैं । 
वास्तु शास्त्र में ब्रह्म स्थल का विशेष महत्व हैं जब भी कोई वास्तुशास्त्री किसी भवन का अवलोकन करता हैं तब वह ब्रह्म स्थल का विशेष रूप से ध्यान रखता हैं । यदि भवन निर्माण के समय ब्रह्म स्थल का ध्यान नहीं रखा जाए तो उस भवन में निवास करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य तथा आचरण पर इसका सीधा प्रभाव होता हैं । 

क्या हैं ब्रह्म स्थल:- किसी भी भूखण्ड के मध्य भाग को ब्रह्म स्थान या नाभी स्थल कहां जाता हैं । ब्रह्म स्थान को जानने के लिए किसी भूखण्ड या मकान की लम्बाई को तीन भागों में बाटिए । तत्पश्चात उसकी चोडाई को चार भागों में बांटकर सभी भागों को रेखाओं के माध्यम से इस प्रकार से मिलाए कि वह चैकोर आकार में नजर आने लगें । इस प्रकार कुल नौ वर्ग या आयत बन जावेगें । इनमें से सबसे मध्य वाला भाग ब्रह्म स्थान कहलाता हैं ।
आँगन मकान का केन्द्रीय स्थल होता है। यह ब्रह्म स्थान भी कहलाता है। ब्रह्म स्थान सदैव खुला व साफ रखना चाहिए। पुराने जमाने में ब्रह्म स्थान में चौक, आँगन होता था। गाँवों की बात छोड़ दें, तो शहरों में मकान में आँगन रखने का रिवाज लगभग समाप्त/ख़त्म हो गया है।
वास्तु शास्त्र में मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य में अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान में अधिकाधिक प्रवेश कर सके।
ब्रह्म स्थल के लाभ:- यदि ब्रह्म स्थल खुला रहा तो भवन के सभी कमरो को प्राकृतिक हवा, पानी, धूप आदि आसानी से प्राप्त हो सकेगी और भवन में रहने वाले सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर इसका सीधा प्रभाव होगा । तुलसी का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान हैं अतः भवन के बिल्कुल मध्य में तुलसी लगाने से भवन में बहने वाली हवा शुद्ध होगी क्योकिं तुलसी में औषधीय गुण होते हैं । इसके प्रभाव से भवन में रहने वालों को मानसिक शांति का आभास होगा । तुलसी का पौधा गमले में इस प्रकार लगाएं कि गमले की मिट्टी का संपर्क सीधा नीचे भूखण्ड की मिट्टी से हो अर्थात तुलसी की जड़े नीचे भूमि तक आसानी से विकसित हो सके ।

ब्रह्मस्थल है,आपके घर का मर्म स्थल—
आकाश हमारा पिता है, जो हमें सुरक्षा प्रदान करता है एवं पृथ्वी हमारी माता है जो हमें संरक्षण प्रदान करती है। मानव इन दोनों पालनकर्ता शक्तियों के मध्य में स्थित है एवं उसकी सम्पूर्ण गतिविधियाँ आकाश एवं पृथ्वी की ऊर्जा से पूर्णतया प्रभावित रहती है। अन्तरिक्ष एवं धरती की इस चेतना को उजागर करता है वास्तु। पृथ्वी की चुम्बक हैं। इन दो शक्तिशाली ऊर्जाओं की चेतना का स्पंदन एवं परस्पर सम्बन्ध अत्यन्त विलक्षण है, जो किसी भी स्थान पर निवास या कार्य करने वाले मनुष्य तथा उसके आसपास की जड़ अथवा चेतन वस्तुओं को अदृश्य परन्तु अद्भुत रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु इन पंचतत्वों तथा दसों दिशाओं के कल्याणकारी सूत्र एवं सिद्धान्त ही वास्तु शास्त्र की मूल अवधारणा है। प्रकृति के इन नियमों का पालन मनुष्य किस तरह शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु करके सुखी एवं सम्पन्न रहे, यही वास्तु शास्त्र की नींव है। किसी भी निर्मित अथवा खुले स्थल का केन्द्र बिन्दु उस स्थान का हृदय होता है एवं पायरा विज्ञान की भाषा में इसे पायरा सेन्टर कहते हैं। यह केन्द्र बिन्दु अत्यन्त सूक्ष्म परन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति के पंचतत्वों की ऊर्जा विभिन्न दिशाओं से आकर किसी भी स्थल के केन्द्र विन्दु पर ही एकत्रित होती है एवं वहीं से अपने निर्दिष्ट स्थान को प्रभावित करती है। वास्तु मे यह केन्द्र बिन्दु ब्रह्मस्थान कहलाता है। अत: प्रत्येक स्थान, जहाँ हम निवास अथवा कार्य करते हैं, वहां के ब्रह्मस्थान को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखना परम आवश्यक होता है। पौराणिक दृष्टिकोण से भी देखें तो ब्रह्म स्थान, यानी ब्रह्मा का स्थल। ब्रह्मा के चार सिर हैं और उसी प्रकार किसी भी स्थान का ब्रह्म स्थल मध्य में स्थित रह कर ब्रह्मा की तरह उस स्थान के चतुर्दिक देखता है। किसी भी दिशा के दोषपूर्ण होने पर अगर उस दिशा से प्राप्य ऊर्जा अगर ब्रह्मस्थल तक नहीं पहुंचती हैं तो स्वभावत: ब्रह्मस्थल की लाभकारी दृष्टि से वह दिशा वंचित रह जाती है। फलत: वहाँ नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होकर वहाँ के निवासियों के जीवन को अपने स्वाभावानुसार प्रभावित करके कष्ट एवं दु:ख का कारण न जाती है।

ब्रह्म स्थल में क्या ना करें:- ब्रह्म स्थल पर सेप्टिक टेंक , भूमिगत पानी की टंकी, बोरिंग, खंभा, सीढ़ी, बिम, छज्जा, आदि का निर्माण ना करें । ब्रह्म स्थान में गन्दी, नई-पुरानी, छोटी या बड़ी वस्तु नहीं होनी चाहिए । भारतीय परम्परा में धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष नामक चार पुरूषार्थ हैं । भूखण्ड का ब्रह्म स्थल इन्ही पुरूषार्थो की प्राप्ति के लिए होता हैं । ब्रह्म स्थल निर्दोष होना चाहिए वहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होना चाहिए ।
वास्तु का यह सिद्धांत सर्व- विदित है कि किसी भी हालत में मकान के ब्रह्म-स्थल पर अग्नि का प्रवेश निषेध है। क्योंकि ब्रह्म-स्थल पर अग्नि का प्रवेश होने के कारण धन-हानि होने के साथ ही परिवार के सदस्य आपस में एक-दूसरे से मुँह फेर लेते हैं। कार्यस्थल का ब्रह्म स्थान (केन्द्र स्थान) हमेशा खाली रखना चाहिए. ब्रह्म स्थान में कोई खंबा, स्तंभ, कील आदि नहीं लगाना चाहिए.
ब्रह्म स्थल के दोष कैसे करे दूर:- ब्रह्म स्थल पर सत्संग हरिकीर्तन, हरिभजन, आदि से दूर हो जाता हैं। ब्रह्म स्थल की निष्काम भाव से पूजा करें, ईश्वर की उपासना करें कुछ मांगे नहीं । ब्रह्म स्थल के नौ चैखानों के ऊपर एक-एक पिरामिड लगाने से यह दोष कम हो जाता हैं । भागवत गीता का नियमित पाठ, गुरूनानक की वाणियों के पाठ अथवा कुरान की आयतों के नियमित पाठ से यह दोष कम होता हैं। इस स्थान पर नियमित रूप से रामायण पाठ, कुरान या बाईबील पढ़ने से इस समस्या का निदान होता हैं। ब्रह्म स्थान ठिक कर लेने से ईशान कोण का दोष स्वतः ठिक हो जाता हैं।

ब्रह्मस्थल/स्थान दोष का असर/दुष्प्रभाव—-
इस तरह की व्यवस्था होने पर घर में रहने वाले प्राणी बहुत कम बीमार होते हैं। वे हमेशा सुखी रहते हैं, स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। आँगन किस प्रकार होना चाहिए- यह मध्य में ऊँचा और चारों ओर से नीचा हो। अगर यह मध्य में नीचा व चारों ओर से ऊँचा है, तो यह आपके लिए नुकसान देह है। आपकी सम्पत्ति नष्ट हो सकती है। परिवार में विपदा बढ़ेगी।

आँगन के फला फल को दूसरे तरीके से भी जाना जा सकता है। वास्तु के अनुसार आँगन की लंबाई और चौड़ाई के योग को 8 से गुणा करके 9 से भाग देने पर शेष का नाम व फल इस प्रकार जानें:-

शेष का नाम फल
,, . ,, तस्कर ,, चोट भय
,, . ,, भोगी ,, ऐश्वर्य
,, . ,, विलक्षण ,, बौद्धिक विकास
,, 4 ,, दाता ,, धर्म-कर्म में वृद्धि
,, 5 ,, नृपति ,, राज-सम्मान
,, 6 ,, नपुंसक ,, स्त्री-पुत्रादि की हानि
,, 7 ,, धनद ,, धन का आगमन
,, 8 ,, दरिद्र ,, धन नाश
,, 9 ,, भयदाता ,, चोरी, शत्रुभय।

अतः सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु आपके सपनों का महल इस प्रकार बनाएं कि ब्रह्म स्थल का दोष न रहें । ब्रह्म स्थान वास्तु शास्त्र के साथ-साथ आध्यात्म और दर्शन से संबंध रखता है। 

Pt. Dayananda Shastri,
(Editor- Vinayak Vastu Times )
(R.N.I. No.:- RAJHIN/2.08/25671)
Vinayak vastu Astro Shodha Sansthan,
Near Old Power House, Kasera Bazar,
JHALRAPATAN CITY (RAJ.) 326023 INDIA

..-.

पंडित दयानंद शास्त्री,
इन्डियन एस्ट्रो वास्तु सेण्टर,
6226/1, गली नंबर-4, अग्रवाल पेठे वाले के पास में,
इस्ट रोहताश नगर ,
शाहदरा, दिल्ली-110032

Mob.-.

E-Maii:-
—vastushastri08@gmail.com;
—vastushastri08hotmail.com;
—dayanandashastri@yahoo.com;
—vastushastri08@rediffmail.com;

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here