रवि पुत्र एवं छाया मार्तण्ड श्री शनिदेव
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इस post में शनिदेव के हर पहलू पर चर्चा करने का प्रयास किया गया है, यथा :-
.. शनिदेव (saturn) का वैग्यानिक अथवा धार्मिक आधार.
.. शनि प्रधान व्यक्ति के गुण.
.. शनि की साढे साती और ढैया कैसे और कब प्रारम्भ
होती है.
4. साढे साती का अच्छा या बुरा प्रभाव कब?
5. जन्म राशि से साढे साती के चरणों का फ़ल
6.भिन्न भिन्न राशियों पर शनि के मकर राशि में प्रवेश पर पडने वाले प्रभाव एवं दुष्प्रभाव
7. शनि के दान कब करे और कब न करे
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1. शनि क्या है
* धार्मिक आधार :-
———————— वैदिक ज्योतिष में शनिदेव एक ग्रह है, जिन्हे नवग्रह मण्डल में न्यायाधीश की उपाधि दी गई है, यह जीव को उसके प्रारब्धानुसार कर्म का फ़ल प्रदान करते हैं, एक नेत्र से कुदृष्टि एवं दूसरे नेत्र से सुद्रिष्टि डालते हैं, फ़लित ज्योतिष में शनिदेव प्रकृति में संतुलन व हर एक प्राणी के साथ न्याय करने वाले बताये गये हैं, शनिदेव के अनेक नाम हैं, जैसे :- मन्द, शनैश्चर, रवि तनय, छाया मार्तण्ड आदि, 27 नक्षत्रॊ में पुष्य, अनुराधा एवं उत्तराभाद्रप्रद शनि के नक्षत्र हैं, 12 राशियों में मकर एवं कुम्भ शनिदेव की राशियां हैं, शनिदेव के गुरू भगवान श्री शिव एवं इष्ट श्री कृष्ण हैं, फ़लित ज्योतिष में कहा जाता है (स्थान वृद्धि करो शनि) के आधार पर जिस भाव या जिस स्थान में शनि होते हैं उस भाव की वृद्धि करते हैं अर्थात यदि सम विषम राशियों में उपस्थिति के अनुसार उनकी degree सही है तो जिस भाव में शनि हैं उस भाव से मिलने वाले फ़लो में अन्य ग्रह की तुलना में वृद्धि करते हैं यदि अच्छे भाव में हैं तो अच्छा फ़ल, खराब भाव में हैं तो खराब फ़ल.
*शनि कर्म प्रधान हैं जातक के कर्म यदि अच्छे हैं तो फ़ल यानि लाभ भी अच्छा देंगे यदि कर्म गलत हैं तो उसका फ़ल अर्थात कर्म का लाभ भी खराब ही मिलेगा,
*इसीलिए वैदिक ज्योतिष श्री शनिदेव की 1. यानि मकर राशि और 11 यानि कुम्भ राशि है, कालपुरुष की कुण्डली से (मेष लग्न की पत्रिका बनाकर) यदि देखते हैं तो शनि की एक राशि मकर कर्म स्थान में पडती है और मूलत्रिकोण राशि कुम्भ लाभ भाव में पडती है, तात्पर्य कर्मानुसार लाभ,
*रोगो में शनि, वात रोग, दन्त रोग, नसो नाडियो के रोग, आर्थराइटिस, पैरालिसिस, जीव के शरीर में नीली नसो पर शनिदेव का अधिकार होता है.
**वाहन :-
———– श्री शनिदेव के सात वाहन हैं,
1.हाथी, 2.घोडा, 3.हिरण, 4.गधा, 5.कुत्ता, 6.भैंसा, 7.गिद्ध
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वैग्यानिक आधार :-
———————— श्री शनिदेव सूर्य से 6th ग्रह हैं, बृहस्पति के बाद सौरमण्डल के सबसे बड़े ग्रह हैं, यह प्रथ्वी से लगभग 95 गुना बडे हैं, शनि का आंतरिक ढान्चा लोहा, निकल, सिलिकान, और oxygen के एक कोर से बना है, जो धातु hydrogen की एक परत से घिरा हुआ है, तरल hydrogen और तरल helium की एक मध्यवर्ती परत और एक गैस की बाहरी परत है, श्री शनिदेव की एक विषेश वलय (छल्ला) प्रणाली है, जो नौ मुख्य छल्लो से मिलकर बनी है, लगभग 62 चन्द्रमा ग्रह की प्रदिक्षणा करते हैं, जिसमे से 53 आधिकारिक तौर पर नामित हैं
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3. शनि प्रधान व्यक्ति के गुण :-
————————————— बहुधा देखा गया है, शनि प्रधान जातक शुन्य से आरम्भ करता है, और अत्यधिक संघर्ष करते हुए सफ़लता की सीढिया चढता है, एसे व्यक्ति के पास सब कुछ होता है, जैसे सम्पूर्ण परिवार माता पिता पत्नी बच्चे, जो लोगो व समाज को दिखायी देते हैं, पर वास्तविकता में एसा जातक अपने जीवन में बहुत ही अकेला होता है, reserve nature का होता है, क्योंकि शनिदेव दुराचारी, छल कपट बेईमानी के रिश्तो को सामने लाकर, अर्थात दूसते शब्दो में समझे तो, कौन अपना है और कौन स्वार्थ सिद्धि के लिए है समझा कर, व्यक्ति को आत्मग्यानी एवं एकान्तवासी बनाते हुए तथा संसार का ग्यान कराते हुए, सन्मार्ग पर ईश्वर की ओर ले जाते हैं,
शनि प्रधान व्यक्ति को देखा गया है, यदि एसे जातक का कोई सम्मान या अपमान करता है, तो वह उसे सौ गुना सम्मान और अपमान भी देता है, शनि प्रधान जातक जिसे अपना लेता है या जिसे अपना समझता है, उस पर मर मिटने वाला होता है,
शनि वीतरागी ग्रह हैं, जातक के पास सबकुछ होते हुए भी, जातक सन्यासीयो की तरह जीवन जीता है, शनिदेव न्याय कारक ग्रह हैं, अतः जातक न तो अन्याय सहन करता है और न ही किसी पर अन्याय होते हुए देख सकता है, एसे जातक का कोई god father नहीं होता है और न ही वह किसी की ओर से एसी आशा रखता है, जातक स्वयम के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीता है.
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3. शनिदेव की साढे साती और ढैया का प्ररम्भ कब होता है,
** जन्म पत्रिका में चन्द्र स्थित राशि जन्म राशि कहलाती है, जब जन्म राशि से गोचर में शनि द्वादश (12वे) भाव में आते हैं तो साढे साती का दौर प्रारम्भ होता है, यह साढे साती का प्रथम चरण कहलाता है, जब जन्म राशि में शनि गोचर करते हैं तो यह साढे साती का दूसरा चरण होता है और जब जन्म राशि से दूसरे भाव में शनि गोचर करते हैं तो यह दौर तीसरा चरण यानी उतरती हुई साढे साती कहलाती है, इन तीनो राशियों पर शनि ढाई ढाई वर्ष रहते हैं,
** जब जन्म राशि से शनिदेव चतुर्थ एवं अष्टम भाव में गोचर करते हैं तो ढैया का दौर आरम्भ होता है, यह ढाई वर्ष की होती है,
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4.साढे साती का अच्छा या बुरा प्रभाव कब?
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यह एकदम सही है, कि साढे साती के दौर में जातक को कठिनाईयो एवं परेशानियो का सामना करना पड़ता है, परन्तु इसमे भी घबराने की बात नहीं है, शनि न तो किसी से शत्रुता निभाते हैं और न किसी से मित्रता, जैसे न्यायाधीश की द्रिष्टि में न्याय के मंदिर में सब समान होते हैं उसी प्रकार शनिदेव की द्रिष्टि में भी सब समान हैं, जातक के प्रारब्ध के कर्म का लेखाजोखा उनके पास जाता है, उसी के आधार पर कर्म के फ़ल का निर्णय करते हैं, शनि से अच्छा भी कोई नहीं है और शनि से बुरा भी कोई नहीं है,
वैदिक ज्योतिष में यह भी कहा जाता है कि शनि अपनी मित्र राशि एवं अपनी राशि वाले जातको को साढे साती एवं ढैया के दौरान कष्ट नहीं देते हैं, लेकिन कब?
जब शनि योगकारक होके केन्द्र अथवा त्रिकोण भावो में हो, शुभ ग्रह बुध, शुक्र एवं गुरू से द्रिष्ट हो, तथा नवमान्श कुण्डली में भी उनकी स्थिति सही हो, तो समझ लीजिये साढे साती और ढैया एवं महादशा का दौर आप को कष्ट नहीं, अपितु पुराने चले आरहे कष्टो से बा इज़्ज़त बरी करने अर्थात कष्टो से मुक्ति प्रदान करने आरहे हैं, और नये आयाम देने आरहे हैं.
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5. जन्म राशि से साढे साती के चरणों का फ़ल :-
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**साढे साती का प्रथम चरण :-
————————————- साढे साती के प्रथम चरण के दौर में *शनि* मस्तक पर रहते हैं, अतः जन्म पत्रिका में शनि यदि अच्छी स्थिति में नहीं हैं, क्रूर ग्रहो से युत या द्रिष्ट हैं, तो मुकद्दमे सम्बन्धी मामलो में परेशानी उठानी पड सकती है, परिवारी जनो से मतभेद उत्पन्न होंगे, आप के व्यय में बढ़ोत्तरी होगी, यदि पत्रिका में चन्द्रमा षष्ठेश हैं, युति या द्रिष्टि या किसी भी तरह से राहू के प्रभाव में हैं तो दिमागी परेशानी, ब्रैन हैमरेज, हस्पताल सम्बन्धी खर्चे करायेन्गे,
यदि *शनिदेव * जन्म पत्रिका में अच्छी स्थिति में हैं, शुभ ग्रहो से युत या द्रिष्ट हैं या अपनी उच्च मूलत्रिकोण राशि अथवा नवमान्श कुण्डली में भी अच्छी स्थिति में हैं, तो विदेश यात्राओ पर व्यय, मुकद्दमे सम्बन्धी निस्तारण करायेन्गे, प्रसिद्धि देने वाले होंगे, शत्रुओं का नाश एवं ऋण का नाश करने वाले होंगे.
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*साढे साती के द्वितीय चरण का फ़ल :-
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साढे साती के द्वितीय चरण के दौर में शनि हृदय (वक्षस्थल) पर होते हैं, यदि पत्रिका में अचानक झटका देने वाला राहू चतुर्थ भाव में हो और शनि की षष्ठेश के साथ युति हो, चतुर्थ भाव का स्वामी 6.8.एवं 12, हो तो, हृदय रोग एवं हृदयाघात की सम्भावना बनाते हैं, छाती में infection, breast cancer, भूमि सम्बन्धी विवाद, आदि विवाद दे सकते हैं, married life में problem दे सकते हैं, partner से अलगाव करा सकते हैं,
यदि पत्रिका में और नवमान्श कुण्डली में अच्छी स्थिति में है तो यह फ़ल नहीं मिलेंगे,
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*साढे साती के तृतीय चरण का फ़ल :-
——————————————— अपने गोचर काल के तृतीय चरण में **शनि ** पैरों पर रहते हैं, एसे ही यदि जन्म पत्रिका में क्रूर ग्रहो से युत या द्रिष्ट हो या रोगेश के साथ हो तो, पैरों की समस्या, घुटनो मे परेशानी, पैरो का सुन्न होना, पैरों में चोट, गैन्गरीन, गुप्त शत्रुओ से हानि, चली आरही अच्छी sources of income में अचानक व्यवधान, आदि करा सकते हैं, माँ को भी पीडा पहुन्चा सकते हैं
यदि जन्म पत्रिका में अच्छी स्थिति में हैं,, तो आप के धन में वृद्धि करेंगे, पुराने चले आरहे कर्ज़ो से मुक्ति दिलायेन्गे, परिवार में आप के विवाद खत्म होंगे, लेकिन वाणी पर नियंत्रण रखना आवश्यक होगा,
शनि की ढैया :-
—————— जन्म राशि से जब शनि चतुर्थ और अष्टम गोचर करते हैं तो जातक को ढैया का दौर आरम्भ होता है, ढैया अर्थात ढाई वर्ष का गोचर, जन्म पत्रिका के बारीकी से विवेचन के बाद ढैया का शुभ और अशुभ फ़ल बताना चाहिए,
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