भला मासूम आसुंओं को, सजा क्या देना.!!!!!
—-( पंडित दयानंद शास्त्री “विशाल”)
याद आ जाये गर कभी, तो मुस्करा लेना ,
भला मासूम आसुंओं को, सजा “विशाल” क्या देना |
मुझको मालुम हैं, यूँ ही न भुला पाओगे ,
याद-करके-बीते-लम्हों को, सदा “विशाल” क्या देना |
कभी हँसता कभी रोता हूँ, याद करके तुझे,
कभी तुझको भी ऐसा हो, तो ये जता देना |
तुम मुझसे नहीं मिल पाओगे, मुझको है खबर,
मगर मुझको बुलाना, चाहों तो “विशाल” बता देना |
वक्त एक वो भी था , नज़रों से दूर हम न थे ,
आज तनहा ही कट रहें है दिन, तो “विशाल” क्या कहना |
कभी निकले जो अश्क, करने को दीदार मेरी .
लौट आयेंगे कभी, कहके ये बहला देना |
मेरे अरमां जो कब्र पे, पड़े है साथ मेरे ,
अपने आग़ोश में, आसीर “विशाल” उसे बना देना |
यहाँ हर रोज़ याद में जले हैं दीप “विशाल” ,(बहुत )
एक शमा तू भी, मेरी याद में जला देना |
—-( पंडित दयानंद शास्त्री “विशाल”)