आइये जाने की श्राद्ध क्या हें..??? श्राद्ध कब,क्यों एवं केसे करें..???
श्राद्ध चंद्रिका में कर्म पुराण के माध्यम से वर्णन है कि श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याण कर वस्तु है ही नहीं इसलिए समझदार मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध का अनुष्ठान करना चाहिए। स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में कहा गया है कि श्राद्ध की कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं जाती, अतएव श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
“श्राद्धकल्पता” अनुसार पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा एवं आस्तिकतापूर्वक पदार्थ-त्याग का दूसरा नाम ही श्राद्ध है.
“श्राद्धविवेक” का कहना है कि वेदोक्त पात्रालम्भनपूर्वक पित्रादिकों के उद्देश्य से द्रव्यत्यागात्मक कर्म ही श्राद्ध है—-श्राद्धं नाम वेदबोधित पात्रालम्भनपूर्वक प्रमीत पित्रादिदेवतोद्देश्यको द्रव्यत्यागविशेष: !
” गौडीय श्राद्धप्रकाश” अनुसार भी देश-काल-पात्र पितरों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक हविष्याण,तिल,कुशा तथा जल आदि का त्याग-दान श्राद्ध है—देशकालपात्रेषु पित्रयुद्देश्येन हविस्तिलदर्भमन्त्र श्रद्धादिभिर्दानं श्राद्दम !
वृहत्पराशर में श्राद्ध की अवधि में मांस भक्षण और मैथुन कार्य आदि का निषेध किया गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार श्राद्ध के सात्विक अन्न व फलों से पितरों की तृप्ति करनी चाहिए। शंखस्मृति, मत्स्य पुराण में कदम्ब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, करवीर, लाल तथा काले रंग के सभी फूल एवं उग्र गंध वाले सभी फूल वर्जित किए गए हैं।
इसके साथ ही श्राद्ध में कमल, मालती, जूही, चम्पा और सभी सुगंधित श्वेत पुष्प तथा तुलसी व भृंगराज प्रयोज्य बताए गए हैं। श्राद्ध चंद्रिका में केले के पत्ते का भोजन के उपयोग में वर्जित किया गया है। पत्तल से काम लिया जा सकता है, परंतु भोजन के सर्वाधिक उपयुक्त सोने, चांदी, कांसे और तांबे के पात्र बताए गए हैं।
श्राद्ध भोजन ग्रहण करने वालों के लिए रेशमी वस्त्र, कम्बल, ऊन, काष्ठ, तृण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ कहे गए हैं। काष्ठ आसनों में भी कदम्ब, जामुन, आम, मौलसिरी एवं वरुण के आसन श्रेष्ठ बताए गए हैं परंतु इनके निर्माण में लोहे की कोई कील नहीं होनी चाहिए। जिन आसनों का श्राद्ध में निषेध किया गया है उनमें पलाश, वट, पीपल, गूलर, महुआ आदि के आसन हैं।
श्राद्ध भोजन करने वालों में उनकी प्रज्ञा, शील एवं पवित्रता देखकर उन्हें आमंत्रित करने का विधान है। अपने इष्ट मित्रों तथा गोत्र वालों को खिलाकर संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। श्राद्ध में चोर, पतित, नास्तिक, मूर्ख, मांस विक्रेता, व्यापारी, नौकर, शुल्क लेकर शिक्षण कार्य करने वाले, अंधे, धूर्त लोगों को नहीं आमंत्रित किया जाना चाहिए (मनुस्मृति, मत्स्य पुराण और वायु पुराण)। श्राद्ध में तर्पण को दायें हाथ से करना चाहिए। तिल तर्पण खुले हाथ से होना चाहिए। तिल को हाथ, रोओं में तथा हस्तबुल में नहीं लगे रहना चाहिए।
फिर श्राद्धकर्ता को अपने बंधु-बांधवों के साथ श्राद्धान्न का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार विधिवत श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होकर धन और वंश की वृद्धि का आर्शीवाद देते हैं।
नरक में हो तो नरक से मुक्त हो और स्वर्ग में हो तो वहां उसको विषय-सुख मिले-इसलिए भी श्राद्ध होता है। जीव जहां भी होगा वहां उसके पास भगवान श्राद्ध का सुख भेज देंगे। यदि वह भगवान से मिल गया होगा या मुक्त हो गया होगा तो श्राद्ध का जो फल है, वह श्राद्ध करने वाले के पास लौटकर आ जाएगा और उसको मिल जाएगा। इसलिए वह जो श्रद्धा-संपाद्य, श्रद्धा के द्वारा सम्पन्न होने वाला कर्म है, इसको कर लेना ही अच्छा रहता है।
इसलिए मरने के बाद आत्मा रहती है, यह विश्वास श्राद्ध से प्राप्त होता है। अपने पिता के जीवन-काल में यदि कोई अवज्ञा हुई हो तो उसका परिमार्जन हो जाता है। परलोक है, कर्म का फल मिलता है-ये सब बातें श्राद्ध करना चाहिए और अगर दूसरा कोई करने वाला न हो या उसके करने पर विश्वास न हो, तो स्वयं कर लेना चाहिए।
श्राद्ध गांव में या नगर में भी होता है, नदी तट पर भी होता है और तीर्थ में भी होता है। अत: यदि कोई आपका श्राद्ध करने वाला हो, और उस पर आपका विश्वास हो तो बहुत बढ़िया है। उस पर श्राद्ध का भार छोड़ दीजिए। मरने वाले जीव के लिए श्राद्ध आवश्यक है।
श्राद्ध न करने से हानि:–
जो लोग यह समझकर कि पितर हैं ही कहाँ—श्राद्ध नही करता, पितर-लोग लाचार होकर उसका रक्तपान करते हैं. जो उचित तिथि पर जल से अथवा भोजा इत्यादि से भी श्राद्ध नहीं करता,पितर उसे श्राप देकर अपने लोक को लौट जाते हैं. मार्कण्डेयपुराण का कहना है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता,वहाँ वीर,निरोगी,शतायु पुरूष नहीं जन्म लेते. जहाँ श्राद्ध नहीं होता, वहाँ वास्तविक कल्याण नहीं होता.
श्राद्ध में महत्व के साथ पदार्थ :–
गंगाजल, दूध,शहद, कुशा,सूती कपडा, दौहित्र और तिल–ये कुल सात श्राद्ध में बहुत ही महत्व के प्रयोजनीय हैं.
इनके अतिरिक्त श्राद्धकर्म में तुलसी की भी विशाल महिमा कही गई है. तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न होकर, पूर्णत: तृप्ति को प्राप्त कर इस लोक से विष्णुलोक की ओर गमन कर जाते हैं.
श्राद्धकर्ता के लिए वर्ज्य सात वस्तुएं:–
पान खाना, उपवास, स्त्रीसंभोग,औषध,दातुन करना और पराये अन्न का सेवन करना—ये सात वस्तुएं श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं. यदि भूल से इनमें से किसी वस्तु का प्रयोग हो भी जाए तो प्रायश्चित कर 108 बार गायत्री मन्त्र का जाप अवश्य कर लेना चाहिए.
इसके अतिरिक्त श्राद्ध में ताँबें के बर्तनों का बहुत महत्व है. लोहे/स्टील के बर्तनों का श्राद्ध में कदापि उपयोग नहीं करना चाहिए. रसोई बनाते अर्थात खाना बनाने में भी इनका उपयोग नहीं किया जाता. केवल काटने या धोने इत्यादि के लिए इन्हे प्रयोग में लाया जा सकता है.
श्राद्ध में प्रशस्त अन्न:-
फलादि, काले उडद,तिल,जौं,श्यामक चावल, गेहूँ, दूध के बने सभी पदार्थ, शहद, चीनी,कपूर, आँवला, अंगूर, कटहल, गुड, नारियल, नींबूं, अखरोट इत्यादि पदार्थ प्रशस्त कहे गये हैं. अत: इनका अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए.
श्राद्ध में निषिद्ध अन्न:-
चना, मसूर, सत्तू, मूली, जीरा, कचनार, काला नमक, लौकी, बडी सरसों, सरसों का शाक, खीरा, और कोई भी बासी, गला-सडा,कच्चा, अपवित्र फल या अन्न निषिद्ध है.
श्राद्ध में पाठय प्रसंग :-
श्राद्धकाल में पुरूषसूक्त,श्रीसूक्त,सौपर्णाख्यान, श्रीभागवतगीता, ऎन्द्रसूक्त,सोमसूक्त,सप्तार्चिस्तव,मधुमती अथवा अन्य किसी पुराणादि का पठन-श्रवण अवश्य करना चाहिए.
• मध्याह्न में कुश के आसन पर स्वयं बैठें और ब्राह्मण को बिठाऐं। एक थाली में गौं, कुत्ता और कौवे के भोजन रखें। दूसरी थाली में पितरों के लिये भोजन रखें। इन दोनों थाली में भोजन समान ही रहेगा। सबसे पहले एक-एक करके गौ, कुत्ता और कौवे के लिए अंशदान करें और उसक बाद अपने पितरों का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का तीन बार जाप करें।
“”ॐ देवाभ्य: पितृभ्यश्च
महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वधायै स्वाहायै
नित्यमेव भवन्तु ते।।””
• यदि उक्त विधि को करना आपके लिए संभव न हो, वो जलपात्र में काले तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण कर सकते है।
• यदि घर में कोई भोजन बनाने वाला न हो, तो फलों और मिष्ठान का दान कर सकते हैं।
जानिए की क्या दान करने से क्या फल मिलता है,श्राद्ध में ?
तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न है तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतति लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
चाँदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चाँदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
अनाज का दान- अन्नदान में गेंहू, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।