जानिए कोनसे ग्रह देते हैं जोड़ों का दर्द  एवम साथ ही जानिए दर्द को ठीक करने के ज्योतिषीय उपाय…
 
अक्सर हम देखते हैं की जोड़ों के दर्द से पीड़ित लोगों को दैनिक काम-काज करने में बहुत समस्या आती है। जिन रोगों में यह दर्द, लक्षण, रूप मिलता है इनमें से एक है संधिगत वात। जोड़ों के इस विकार में वायु ही मुख्य कारण होता है। 
 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार आयुर्वेद में हड्डी और जोड़ों में वायु का निवास होता है। वायु के असंतुलन से जोड़ भी प्रभावित होते हैं। अतः वायु गड़बड़ा जाने से जोड़ों में दर्द होता है। क्योंकि गठिया रोग जोड़ों से संबंधित है इसलिए जोड़ों की रचना को भी समझ लेना उचित होगा। 
 
गठिया में जोड़ों की रचना में विकृति पैदा होती है। हड्डियों के बीच का जोड़ एक झिल्ली से बनी थैली में रहता है, जिसे सायनोवियल कोष या आर्टीक्युलेट कोष कहते हैं। जोड़ों की छोटी रचनाएं इसी कोष में रहती हैं। हड्डियों के बीच की क्रिया ठीक तरह से हो तथा हड्डियों के बीच घर्षण न हो, इसलिए जोड़ों में हड्डियों के किनारे लचीले और नर्म होते हैं। यहां पर एक प्रकार की नर्म हड्डियां रहती हैं, जिन्हें कार्टीलेज या आर्टीक्युलेट कहते हैं, जो हड्डियों को रगड़ खाने से बचाती है। पूरे जोड़ को घेरे हुए एक पतली झिल्ली होती है जिसके कारण जोड़ की बनावट ठीक रहती है। इस झिल्ली से पारदर्शी, चिकना तरल पदार्थ उत्पन्न होता है, जिसे सायनोवियल तरल कहते हैं। संपूर्ण सायनोवियल कोष में यह तरल भरा रहता है। किसी भी बाह्य चोट से जोड़ को बचाने का काम यह तरल करता है। इस तरल के रहते जोड़ अपना काम ठीक ढंग से करता है। 
 
गठिया रोग का एक कारण शरीर में अधिक मात्रा में यूरिक एसिड का होना माना गया है। जब गुर्दों द्वारा यह कम मात्रा में विसर्जित होता है या मूत्र त्यागने की क्षमता कम हो जाती है तो मोनो सोडियम -बाइयूरेट -क्रिस्टल जोड़ों के उत्तकों में जमा होकर तेज उत्तेजना एवं प्रदाह उत्पन्न करने लगता है। तब प्रभावित भाग में रक्त संचार असहनीय दर्द पैदा कर देता है। गठिया रोगियों का वजन अक्सर ज्यादा होता है और ये देखने में स्वस्थ एवं प्रायः मांसाहारी और खाने-पीने के शौकीन होते हैं। 
 
भारी और तैलीय भोजन, मांस, मक्खन, घी और तेज-मसाले, शारीरिक एवं मानसिक कार्य न करना, क्रोध, चिंता, शराब का सेवन, पुरानी कब्ज आदि कारणों से जोड़ों में मोनो-सोडियम बाइयूरेट जमा होने से असहनीय पीड़ा होती है जिससे मानव गठिया रोग से पीड़ित हो जाता है।
जन्म कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही घुटनो के दर्द, कमर दर्द, गर्दन के दर्द, रीढ़ की हड्डी की समस्या, कोहनी और कंधो के जॉइंट्स में दर्द के जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
 
वैसे तो हमारे स्वास्थ से जुडी कोई भी समस्या जीवन की गति को धीमा कर ही देती है पर जोड़ो के दर्द या जॉइंट्स पेन की समस्या हमारे जीवन में एक बोझ की तरह होती है जिससे जीवन ठहर सा जाता है घुटनो के दर्द की समस्या बहुत से लोगो के जीवन में एक बड़ी बाधा बनी रहती है तो बहुत से लोग कमर दर्द के कारण कितनी ही समस्याओं का सामना करते हैं तो आइये जानते हैं ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से की कौन कौन से ग्रहयोग व्यक्ति को जोड़ो के दर्द की समस्या देते हैं –
“ज्योतिष की चिकित्सीय शाखा हमारे स्वास्थ और शारीरिक गतिविधियों को समझने तथा उनके निदान में अपनी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ज्योतिष में “शनि” को हड्डियों के जोड़ या जॉइंट्स का कारक माना गया है हमारे शरीर में हड्डियों का नियंत्रक ग्रह तो सूर्य है पर हड्डियों के जोड़ों की स्थिति को “शनि” नियंत्रित करता है अतः हमारे शरीर में हड्डियों के जोड़ या जॉइंट्स की मजबूत या कमजोर स्थिति हमारी कुंडली में स्थित ‘शनि” के बल पर निर्भर करती है कुंडली में शनि पीड़ित स्थिति में होने पर व्यक्ति अक्सर जॉइंट्स पेन या जोड़ो के दर्द से परेशान रहता है और कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही घुटनो के दर्द, कमर दर्द, गर्दन के दर्द, रीढ़ की हड्डी की समस्या, कोहनी और कंधो के जॉइंट्स में दर्द के जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली का “दसवा भाव” घुटनो का प्रतिनिधित्व करता है छटा भाव कमर का प्रतिनिधित्व करता है, तीसरा भाव कन्धों का प्रतिनिधित्व करता है और सूर्य को हड्डियों और केल्सियम का कारक माना गया है अतः इन सबकी भी यहाँ सहायक भूमिका है। 
 
ज्योतिषीय दृष्टिकोण काल पुरूष की कुंडली में दशम भाव और मकर राशि महत्वपूर्ण जोड़ों का नेतृत्व करती है जैसे ‘घुटने’। इसलिए दशम भाव एवं मकर राशि के दूषित प्रभावों में रहने से रोग उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त शनि, शुक्र और मंगल ग्रह एवं लग्न यदि किसी कुंडली में निर्बल और दुष्प्रभावों में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है।  पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया यदि किसी की कुंडली में शनि, शुक्र, मंगल, दशम भाव, दशमेश, लग्न, लग्नेश यदि दुष्प्रभावों में रहते हैं तो संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के अशुभ रहने से गठिया रोग होता है।
 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की जोड़ो के दर्द की समस्या में मुख्य भूमिका “शनि” की ही होती है क्योंकि शनि को हड्डियों के जोड़ो का नैसर्गिक कारक माना गया है और शनि हमारे शरीर में उपस्थित हड्डियों के सभी जॉइंट्स का प्रतिनिधित्व करता है। अतः कुंडली में शनि पीड़ित होने पर ही व्यक्ति को दीर्घकालीन या निरन्तर जोड़ी के दर्द की समस्या बनी रहती है।”
 
.. यदि शनि कुंडली में छटे या आठवे भाव में हो तो ऐसे में व्यक्ति को घुटनो, कमर आदि के जोड़ो के दर्द की समस्याएं होती हैं।
.. शनि यदि नीच राशि (मेष) में हो तो भी व्यक्ति जोड़ो के दर्द से समस्याग्रस्त रहता है।
.. शनि का केतु और मंगल के योग से पीड़ित होना भी जॉइंट्स पेन की समस्या देता है।
4. शनि यदि सूर्य से पूर्णअस्त हो तो भी जोड़ो के दर्द की समस्या रहती है।
5. शनि का अष्टमेश या षष्टेश के साथ होना भी जॉइंट्स पेन की समस्या देता है।
6. यदि कुंडली के दशम भाव में कोई पाप योग बन रहा हो या दशम भाव में कोई पाप ग्रह नीच राशि में हो तो भी घुटनो के दर्द की समस्या रहती है।
7. छटे भाव में पाप योग बनना कमर दर्द की समस्या देता है।
8. यदि कुंडली में शनि पीड़ित स्थिति में हो तो शनि की दशा में भी जॉइंट्स पेन की समस्या बनी रहती है।
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समझें विभिन्न जन्म लग्नों के अनुसार जोड़ो के दर्द या गठिया रोग को–
 
मेष लग्न: जब लग्नेश मंगल शनि से युक्त दशम भाव में हो और शुक्र पंचम या षष्ठ में सूर्य से अस्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग हो सकता है।
 
 वृषभ लग्न: शुक्र षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त हो और शनि से दृष्ट हो, मंगल राहु से युक्त होकर दशम भाव में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग हो सकता है। 
 
मिथुन लग्न: लग्नेश बुध षष्ठ या अष्टम भाव में हो और अस्त हो, मंगल दशम भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो, शनि द्वादश भाव में चंद्र से युक्त होकर स्थित या दृष्टि रखता हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है। 
 
कर्क लग्न: चंद्र शनि से युक्त होकर षष्ठ भाव में हो, मंगल लग्न में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो, बुध दशम भाव में शुक्र से युक्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है।
 
 सिंह लग्न: शनि दशम भाव में चंद्र से युक्त हो, लग्नेश सूर्य, राहु से युक्त होकर तृतीय या षष्ठ भाव में हो, शुक्र अस्त हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। 
 
कन्या लग्न: शनि लग्न में राहु या केतु से युक्त हो, लग्नेश बुध षष्ठ या अष्टम भाव में अस्त हो, मंगल दशम भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। 
 
तुला लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर चंद्र से दृष्ट या युक्त होकर जल राशि में हो, शनि षष्ठ भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अस्त हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। 
 
वृश्चिक लग्न: बुध लग्नस्थ होकर राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, शनि षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक को संबंधित रोग देता है। 
 
धनु लग्न: लग्नेश गुरु अष्टम या द्वादश भाव में चंद्र से युक्त हो, शनि वक्री होकर दशम भाव में या दशम भाव पर दृष्टि, मंगल, शुक्र अस्त हो तो जातक को गठिया रोग देते हैं। 
 
मकर लग्न: गुरु राहु से युक्त होकर दशम भाव में हो, लग्नेश शनि वक्री हो, सूर्य लग्न में हो, शुक्र अस्त हो, मंगल दशम भाव में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग होता है। 
 
कुंभ लग्न: मंगल दशम भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य लग्न में या अष्टम भाव में गुरु से युक्त हो, शनि वक्री हो तो जातक को जोड़ों का दर्द देता है। 
 
मीन लग्न: गुरु तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, शुक्र-शनि दशम भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र अस्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देते हैं। उपरोक्त सभी योगों का प्रभाव अपनी संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के दुष्प्रभावों के कारण होता है। इसके उपरांत जातक रोग रहित हो जाता है।
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पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में ग्रह स्थिति भिन्न होने के कारण व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपाय भी भिन्न होते हैं ।
आयुर्वेद के अनुसार वात दोष होने से गठिया रोग उत्पन्न होता है जिसमें यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है। शनि ग्रह वात प्रकृति का है और रोग को धीरे-धीरे बढ़ाता है। शुक्र ग्रह वात-कफ प्रकृति का है। यह शरीर में हार्मोन को संतुलित रखता है। इसलिए इसके दूषित हो आयुर्वेदिक उपचार सरसों के तेल में अजवायन और लहसुन जलाकर तेल मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। काले तिलों को पीस कर बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर बकरी के दूध से सेवन करने से आराम मिलता है। मजीठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, बच, नीम की छाल, दारू हल्दी, गिलोय का काढ़ा बना कर पीने से गठिया में आराम मिलता है। बड़ी इलायची, तेजपत्ता, दाल चीनी, शतावर, गंगरेन, पुनर्नका, असगंध, पीपर, रास्ना, सोंठ, गोखरू, विधारा, तज निशीथ, इन सबको गिलोय रस में घोट कर गोली बनाकर बकरी के दूध के साथ दो-दो गोली सुबह शाम सेवन करने से आराम मिलता है। असगंध के पत्ते में चुपड़कर गर्म कर के दर्द के स्थान पर बांधने से आराम होता है। दशमूल काढ़ा या दशमूलारिष्ट की चार-चार चम्मच दिन में दो-तीन बार थोड़ा सा पानी मिलाकर लेने से गठिया दर्द में आराम मिलता है। अश्वगंधा चूर्ण एक ग्राम, शृंग भस्म 5.0 मि. ग्राम और वृद्ध वात चिंतामणि रस 65 मि. ग्राम, तीनों को मिलाकर तीन बार दूध या शहद के साथ सेवन करें। लहसुन को दूध में उबालकर, खीर बना कर खाने से गठिया रोग ठीक होता है। सौंठ, अखरोट और काले तिल, अनुपात 1ः2ः4 में पीसकर, सुबह-शाम गरम पानी से 15 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है। जाने से हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं जिससे शरीर विकृत होने लगता है। मंगल ग्रह पित्त प्रकृति का है जो रक्त के लाल कणों का कारक है इसलिए ग्रह के दूषित होने से रक्त में विकार उत्पन्न होता है और जोड़ों को शुष्क कर देता है। जोड़ों में तरल पदार्थ की मात्रा को इतना कम कर देता है कि उठते-बैठते जोड़ों से आवाज आने लगती है और जोड़ विकृत हो जाते हैं।
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इन उपाय से होगा जोड़ों के दर्द में लाभ–
1. ॐ शम शनैश्चराय नमः का नियमित जाप करें।
2. शनिवार को मन्दिर में पीपल पर सरसो के तेल का दिया जलाएं।
3. शनिवार को संध्याकाल में सरसो के तेल का परांठा कुत्ते को खिलाएं।
4. किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श के बाद शनि का कोई रत्न भी धारण कर सकते हैं पर किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह के बिना शनि का कोई भी रत्न ना पहने।
5. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।

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