जाने और समझें कि आग्नेय याने SE में ही किचिन (रसोईघर) क्यों बनानी चाहिए ?
उत्तर: किसी भी घर की सबसे महत्वपूर्ण जगह होती है रसोईघर। कहते हैं कि अगर रसोईघर में सकारात्मक वातावरण रहे तो उसका असर पूरे घर की खुशहाली पर होता है। किचन में स्वच्छता रहे और चीजों की व्यवस्था रहे तो कष्टों और क्लेश से परिवार दूर रहता है।
वास्तुशास्त्र में भवन निर्माण में रसोईघर को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है’. इस कक्ष के निर्माण के लिए आग्नेयकोण अर्थात् पूरब और दक्षिण के मध्य भाग को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है. इन दिशाओं के बारे में विवरण चित्रांकन द्वारा विगत अंक में दिया जा चुका है।
आग्नेय कोण शास्त्रों के अनुसार धन-धान्य रूपी लक्ष्मी का स्थान है. अतः उस दिशा में लाल रंग के तेजोमय प्रकाश का प्रक्षेपित होना गृह निर्माता या उस भवन में निवास करने वालों के लिए शुभदायक माना जाता है, इसीलिए इस दिशा में चूल्हे में चौबीस घंटे अखंड अग्नि या दीपक जलाए रखने की प्राचीन भारतीय परंपरा रही है. इससे वास्तु संबंधी त्रुटियों एवं दोषों का परिमार्जन हो जाता है और निवासकर्त्ता सुख-शान्तिमय जीवन व्यतीत करते हैं.
कहा जा चुका है कि भवन के दक्षिण-पूरब दिशा अर्थात् आग्नेयकोण में किचन यानी रसोईघर तथा पश्चिम दिशा में ‘डाइनिंग हाल’ अर्थात् भोजनकक्ष का निर्माण करना चाहिए. इससे एक ओर जहाँ स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सदस्यों का मन-मस्तिष्क संतुलित रहता है और वे स्वस्थ बने रहते हैं तथा प्रगति करते हैं।
इस संदर्भ में वास्तुविद्या विशारदों ने कहा भी है-
“पाकशाला अग्निकोणे स्यात्सुस्वादुभोजनाप्तये”
अर्थात् दक्षिण-पूर्व दिशा में रसोईघर बनाने से स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है. मनमाने ढंग से रसोई घर जिस-तिस दिशा में निर्मित करा लेने से शारीरिक-मानसिक परेशानियों, आर्थिक संकटों एवं पारिवारिक कलह-क्लेशों का सामना करना पड़ता है।
साथ मे दिया गया चित्र दर्षाता है कि सूर्य का प्रकाश केवल एक इकाई नहीं है, वरन वह इंद्रधनुष के सात रंगों का मिश्रित रूप है जो कि (UV) अल्ट्रा वायलेट से लेकर IR याने इंफा रेड किरणों तक फैला हुआ है। इनमें से हर रंग की किरणों की अपनी अलग वेवलेंथ और फ्रीक्विएंसी है तथा इनका मानव शरीर पर प्रभाव भी अलग अलग है। धरीर के सातों चक्रों पर भी इनका प्रभाव है।
UV किरणें भी तीन प्रकार की होती हैं UV a, UV b, तथा UV c! सुबह के समय जब UV की तीव्रता कम होती है तब ये बैक्टीरियास को समाप्त कर देती है।
अतः यदि SE में किचिन हुआ और गृहणी पूर्व मुखी हो कर भोजन बनाती है तो पूरा भोजन बैक्टीरिया रहित होजाता है। गृहणी स्वयम भी स्वस्थ रहती है और पूरे परिवार को भी स्वस्थ रखती है।
इसी समय पूर्व से आने वाली माइल्ड (IR) इंफा रेड किरणें घर के वातावरण को एक सौम्य ऊष्मा से भर देती हैं क्यों कि इनकी प्रकृति ही ऊष्मा देने की होती है। इनके इसी प्रभाव का उपयोग कमर सेंकने वाली इंफा रेड लाइट में होता है।
यही कारण है कि वास्तु शास्त्र में आग्नेय SE में किचिन रखने का नियम बनाया गया है। साथ ही पूर्व मुखी घर श्रेष्ठ माने गए।
वास्तुशास्त्र के अनुसार रसोईघर | Kitchen आग्नेय अर्थात दक्षिण-पूर्व दिशा ( South-East ) में ही होना चाहिए। इस दिशा का स्वामी अग्नि ( आग ) है तथा इस दिशा का स्वामी ग्रह शुक्र होता है। आग्नेय कोण में अग्नि का वास होने से रसोईघर तथा सभी अग्नि कार्य के लिए यह दिशा निर्धारित किया गया है। यदि आपका किचन इस स्थान पर तो सकारत्मक ऊर्जा ( Positive Energy ) का प्रवाह घर के सभी सदस्यों को मिलता है।
नोट:– उपर्युक्त बताये गए नियम के अनुसार अपने रसोई का वास्तु विचार करे रसोईघर बनाये। यदि किसी कारणवश आप अग्निकोण में रसोईघर नहीं बना सकते तो आप जिस भी स्थान में रसोईघर बनाये है उसी स्थान विशेष पर अग्निकोण का चयन करके नियमानुसार सभी समान को स्थापित कर देना चाहिए।
यथा –
यदि वायव्य कोण में आपका रसोईघर है तो उस कक्ष के अग्नि कोण दक्षिण पूर्व दिशा में स्लैब बनाकर पूर्वी दीवार के पास गैस चूल्हा रखना चाहिए। इससे बनाने वाली का मुख भी पूर्व दिशा मे हो जाएगा जो कि वास्तु के अनुसार होगा। इसी प्रकार अन्य सामान को रखना चाहिए।
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.) नैत्रत्य SW में मकान मालिक का बेड रूम(मास्टर बेड रूम) क्यों?
उत्तर: पृथ्वी अपनी धुरी याने एक्सिस पर 2..5° झुकी हुई है। इस कारण पृथ्वी का N ईशान की आर है। इसका दूसरा प्रभाव ये है कि सूर्य का प्रकाश दोपहर .2 बजे से शाम 4.3. बजे तक हमारे घरों की दक्षिण दीवार पर पड़ता है।
NE याने ईशान से आने वाली धनात्मक ऊर्जा(कॉस्मिक ऊर्जा) घर में सीधे SW याने नैत्रत्य की ओर जाती है।
हम सभी जानते ओर समझते हैं कि वास्तु का लक्ष्य धनात्मक ऊर्जा को घर के अंदर रोकना तथा दक्षिण पश्चिम से आने वाली ऋणात्मक ऊर्जा को घर के बाहर ही रोक देना है। इसीलिए NE को नीचा, खुला व खिड़कियों और दरवाजे से युक्त बनाने के, तथा दक्षिण पश्चिम की दीवारें ऊंची, मोटी तथा खिड़कियों से रहित बनाने के निर्देश वास्तु में दिए गए हैं।
अब जब हम इस तरह घर बनाते हैं तो SW के बेड रूम में धनात्मक ऊर्जा इकट्ठा होगी जिसका लाभ निश्चित ही मकान मालिक को मिलना चाहिए इस लिए यह उसका मास्टर बेड रूम वास्तु सम्मत होता है। दूसरा यह भूमि का क्षेत्र माना गया है जो कि मकान मालिक के जीवन में स्थायित्व लाने तथा घर में उसे कमांडिंग पोजीशन दिलाता है।
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समझें UV और IR किरणों के नेगेटिव प्रभाव को —
अल्ट्रा विलेट किरणें विशेष कर UVb किरणें, दोपहर को, जब तीव्र होतीं है तो ये मानव शरीर पर ‘कैंसर’ पैदा करती हैं ।
और इंफा रेड किरणें, जब दोपहर को, तीव्र होती हैं तो अतिशय ऊष्मा प्रदान करती हैं। आप देखेंगे कि दोनों ही किरणों को ऋणात्मक प्रभाव दोपहर को हमारे घरों पर पड़ेंगे जब कि सूर्य दक्षिण की दीवार को गर्म कर रहा होता है। इसी लिए ‘ओज़ोन होल’ भी दक्षिण ध्रुव के ऊपर बना है। जो कि UV किरणों के प्रभाव से पृथ्वी पर हर तरह के जीवन को समाप्त कर सकता है। शायद इसीलिए हमारे ऋषि मुनियों ने दक्षिण को मृत्यु के देवता यम का स्थान बताया है। यह बहुत लंबा विषय है और इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता हैं।