गैस की प्रोब्लम/परेशानी का कारण इन ग्रहों का यह योग बनताहैं…(पेटदर्द/कब्ज/गैस)..
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प्राचीन चिकित्सा शास्त्र के ग्रंथों में कहा गया है कि प्रत्येक बीमारी की जड़ पेट ही होता है। पेट के रोगों की शुरुआत कब्ज से होती है। इस कब्ज का यदि समय रहते उपचार न हो, तो व्यक्ति अल्सर, गैस डाइबिटीज या बवासीर से ग्रस्त हो सकता है।पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की महिलाओं में गर्भ संबंधी बीमारियां भी पेट की गड़बड़ी के कारण पैदा होती हैं। पेट का कैंसर आनुवंशिक या अत्यधिक शराब, सिगरेट अथवा अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन से हो सकता है। किसी भी जातक की जन्म कुंडली में सभी नौ ग्रह अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार किसी ना किसी रोग की सूचना देते हैं, परंतु दो या दो से अधिक ग्रहों कि युति अपना अलग प्रभाव प्रकट करती है। यह युति रोगों को और जटिल बना देती है। यहां कुंडली में ग्रहों के कुछ ऐसे ही योग हैं जिनसे योग से रोग के लक्षण स्पष्ट होते हैं।
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कुंभ लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति हमेशा एसिडिटी, बदहजमी और पेट में तनाव से परेशान रहता है।
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कुंडली के बारहवें भाव में सिंह राशि में केतु और शनि हो तो बवासीर की समस्या या गुदा रोग हो सकता है।
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अगर बृहस्पति सप्तम या अष्टम भाव में हो तो पीठ तथा पैरो में दर्द रहता है।
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कुंडली में जब सूर्य घर एक में हो, सूर्य-मंगल एक साथ हों अथवा सूर्य-शनि एक साथ या फिर सूर्य-शनि और मंगल एक साथ हों तो ऐसे व्यक्ति को क्रोध बहुत अधिक आता है।।
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मंगल-शनि का योग भी गैस की परेशानी देता है। शनि के एक घर में हों तो भी गैस की दिक्कत होती है।
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बुध पर शनि के दुष्प्रभाव से आंतों की बीमारियां हो सकती हैं। शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता हैं। जब शुक्र शनि द्वारा पीड़ित हो तो जातक को धातु संबंधी रोग हो सकते हैं। जब कुंडली में शुक्र पेट का कारक होता है तो पेट की बीमारियां शनि के प्रभाव से होती हैं।
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आठवे भाव में बुध सूर्य के साथ मकर राशि के होते हैं तो मूत्र से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। जैसे किडनी में स्टोन या इन्फेक्शन होता है।
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कर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनि चंद्र से युति करता है तो लिवर को रोग हो सकते हैं।
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सप्तम भाव में शनि मंगल से युति करे और लग्रस्थ राहु बुध पर दृष्टि डालता है तो डायरिया हो सकता है।
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मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में उदर में दर्द होता है।पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति प्लीहा रोग कारक बनाती है।
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सिंह राशि में शनि चंद्र की युति या षष्ठम या द्वादश भाव में शनि मंगल से युति करता है या अष्टम भाव में शनि और लग्र में चंद्र हो और शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो पेट के रोग होते हैं।
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जब जन्म कुंडली के लग्न में राहु और सप्तम स्थान में केतु हो तो व्यक्ति को लिवर में इन्फेक्शन हो सकता है।
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द्वितीय भाव में शनि होने पर डायरिया हो सकता है। इस रोग में पेट की गैस अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से मल रूप में बाहर निकल जाता हैं।
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किसी कुंडली में यदि बुध-मंगल एक साथ हों तो ऐसे व्यक्ति को खून से जुड़ा रोग होता है। साथ ही जब मंगल के कारण बुध ज्यादा खराब हो तो यह ब्लड प्रेशर की परेशानी देता है।
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मंगल-बुध दोनों के बहुत अधिक खराब होने की स्थिति में तो पागलपन की बीमारी हो जाती है। ग्रहों का यह योग लीवर से जुड़े रोग भी देता है।
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सूर्य-शुक्र एक साथ हों तो शरीर में जोश की कमी हो जाती है। यह व्यक्ति में यौन क्षमता कम कर देती है। जीवनसाथी के शरीर में भी अंदरूनी बीमारी हो जाती है।
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ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि कल पुरुष की जन्म कुंडली में छठा घर बीमारी का घर माना जाता है। यदि नीच का चंद्र या मंगल छठे घर में हो या उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति के गैस, अपेंडिक्स आदि से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। उसे भूख अधिक या कम लग सकती है। इसके अतिरिक्त उसकी पाचन शक्ति कमजोर हो सकती है। यदि लग्न में चंद्र या मंगल अथवा दोनों नीच के हों और उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो, व्यक्ति को गैस, हर्नियां पेट में दर्द और कीड़े की संभावना रहती है। लग्न कुंडली में आठवां भाव मौत का या आयु का भाव माना जाता है। इस भाव में यदि मंगल या चंद्र नीच का हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो व्यक्ति को पेट के रोगों से मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकता है और उससे मुक्ति के लिए आपरेशन की जरूरत पड़ सकती है।
यदि नीच का गुरु लग्न में भाव 6 या 8 में हो तो व्यक्ति के मोटापा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है जो पेट के लिए भयावह रूप ले सकता है।
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इन उपायों से होगा लाभ–
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रात को दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पीना चाहिए।
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एक चुटकी छोटी हर्र गर्म पानी में मिलाकर पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
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जीरा तथा सेंधा नमक पीसकर गर्म पानी के साथ खाने से भूख में कमी, पेट फूलने, दस्त, कब्ज और खट्टी डकारों से मुक्ति मिलती है।
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एक गिलास गर्म पानी में दो चम्मच शहद और एक नींबू का रस डालकर पीने से अधिक चर्बी व मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है।
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एक गिलास पानी में पांच ग्राम फिटकरी घोलकर पीने से हैजे में लाभ होता है।
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रात को सोने के पहले दूध में मुनक्का उबालकर पीने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
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यदि समय रहते किसी योग्य हस्त रेखा विशेषज्ञ अथवा ज्योतिषी से सलाह लेकर उक्त उपाय किए जाएं, तो पेट के रोगों से रक्षा हो सकती है।