सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पर विशेष निर्णय – जून ..20–
 
🙏🏻” पुर्वानुमान” – भविष्यवाणी- (सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पर विशेष निर्णय)– ग्रहण प्रभाव से स्वतंत्र भारत सहित सम्पुर्ण विश्व की चराचवर हलचल – (भाग : 04 /0.)
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👉” सूर्य एवं चंद्र”- ग्रहण के तीव्र एवं व्यापक प्रभाव का — भारत सहित चराचर विश्व की सम्पुर्ण प्राकृतिक,आर्थिक राजनेतिक एव्ं सामाजिक व्यवस्था पर व्याप्त दुष्प्रभाव।
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👉 (पूर्वानुमान) — संवत 2077 में होने वाले मुख्य पांच ग्रहण।               (1) :  मांद्य चंद्रग्रहण दिनांक 5 :    06 : 2020                         (2) :  कंकणाकृति/खंडग्रास सूर्यग्रहण दिनांक 21 : 6 : 2020                           (.) :  मांद्य चंद्रग्रहण  दिनांक 5 : 7 : 2020                          (4)  : मांद्य चंद्रग्रहण  दिनांक 30 :  11 :  2020             (5)  : खग्रास /खंडग्रास सूर्यग्रहण दिनांक 14 : 12 : 2020               ——————————————————————-               
👉” श्री राज्यात विक्रमादित्य संवत 2077 शाके संवत 1942  (दिनांक 25:03:2020 से दिनांक 12:03:2021तक आनंद-नामक      “लुप्त-संवत्सर”प्रभावशील रहेगा।)
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(मंदसौर मध्य-प्रदेश से “ज्योतिष-मार्तंण्ड” ऋषिराज व्यास– कटक ओडिशा से ” ज्योतिर्विद्या-वाचस्पति”एस्ट्रो माननीय प्रफुल्ल कुमार जी दास साहब एवं जोधपुर “राजस्थान” से माननीय पंडितअभिषेक जी जोशी साहब के साथ )।
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🙏🏻।विक्रम संवत 2077 —- 👉 आकाशीय कौंसल के दस पदाधिकारी।                         (1) :  राजा ” राष्ट्रपति- राष्ट्राध्यक्ष” – बुध   (2) : मंत्री “प्रधानमंत्री – शासना- ध्यक्ष “चंद्र। (3) : सस्येश “वर्षा ऋतु की फसलों का स्वामी” – बृहस्पति। (4) : धान्येश ” शीतकालीन फसलों का स्वामी –  मंगल।  (5) : मेघेश ” मौसम विभाग वर्षा आदि का स्वामी” – सूर्य । (6) : रसेश ” रसकस का स्वामी गुड़,शक्कर आदि” – शनि।  (7) :  नीरसेश ” व्यापार-व्यवसाय का स्वामी सर्वविधि धातु आदि” – बृहस्पति। (8) : धनेश ” वित्तमंत्री धन-दौलत एवं खजाने का स्वामी – बुध । (9) :  दुर्गेश “गृह एवं रक्षामंत्री-सेनानायक सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा का स्वामी” – सूर्य। (10) : फलेश “फल फूल आदि का स्वामी”- सूर्य।
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👉 नोट- (1) : इस वर्ष दो मांद्य चंद्रग्रहण के मध्य कंकणाकृति सूर्यग्रहण होगा।
(2) : पश्चात पहले मांद्य चंद्रग्रहण होगा उसके बाद खग्रास-खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा।
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👉 ग्रहण दृश्य प्रभाव —
            विक्रम संवत 2077 के अंतर्गत भू-मंडल पर पांच ग्रहण का प्रारूप गणितागत रुप से प्राप्त हो रहा है।इसमें दो सूर्यग्रहण तथा तीन मांद्य चंद्रग्रहण होंगे!अस्तु ,,,
    भारतीय भू-भाग पर एक सूर्य ग्रहण तथा दो मांद्य चंद्रग्रहण ही (दृश्य) होंगे। अर्थात् दिखाई देंगे।
👉 सूर्यग्रहण विषयक धर्म- शास्त्रसम्मत निर्णय।–
  “द्विपान्तारे ग्रहण सत्वेsपिदर्शन योग्यत्वायात्र पुण्यकाल:।।”
       अर्थात एक सूर्यग्रहण की विशेष मान्यता नहीं रहेगी। तथा इस ग्रहण विषयक वेध-सूतक, यम-नियम, स्थान दानादि  पुण्य कर्म,जप एव्ं अनुष्ठान हेतु कोई नियम पालन नहीं रहेगा।
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🙏🏻(1) : मांद्य चंद्रग्रहण–
👉 श्री संवत 2077 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तिथि पूर्णिमा नक्षत्र विशाखा दिन शुक्रवार दिनांक 5 : 06 : 2020 को मांद्य चंद्रग्रहण होगा।
 👉ग्रहण का “प्रारंभ ” स्पर्शकाल – रात्रि 23:16 बजे PM  मध्यकाल – रात्रि 24 :55 बजे AM एवं ” समाप्ति” मोक्षकाल- रात्रि 26:34 बजे A M पर होगा। ग्रहण का पर्व काल —  3 घण्टे 18 मिनट।
👉 दृश्य प्रभाव—
    यह चंद्रग्रहण उत्तरी-अमेरिका, दक्षिणी-अमेरिका के पश्चिमी भाग, एव्ं रसिया के पूर्वोत्तर भाग सहित ग्रीनलैंड को छोड़कर भारत सहित संपूर्ण विश्व में दृश्य होगा। इस ग्रहण का धार्मिक-दृष्टि से कोई महत्व नहीं हे।इस कारण इसमें किसी भी प्रकार के यम- नियम सूतक आदि के पालन की आवश्यकता नहीं है।
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🙏🏻(2) : कंकणा-कृति खंडग्रास सूर्यग्रहण—
👉श्री विक्रम संवत 2077 आषाढ़ कृष्ण पक्ष तिथि अमावस्या समाप्ति 12:06 बजे PM  परं प्रतिपदा तिथि नक्षत्र मृगशीर्ष समाप्ति 12:56 बजे PM परं आर्द्रा नक्षत्र दिन रविवार दिनांक 21 : 6 : 2020 को मार्गशीर्ष एवं आर्द्रा नक्षत्र पर मिथुन राशि मंडल पर खण्डग्रास सूर्यग्रहण होगा।
👉ग्रहण का “प्रारंभ” स्पर्शकाल–
10:10 बजे AM मध्यकाल – 11:51 बजे AM “समाप्ति” मोक्षकाल- 13:41बजे PM पर होगा। ग्रहण का पर्वकाल 3 घंटा 31 मिनट।
 👉ग्रहण का सूतक, यम-नियम दिनांक 20 : 6 : 2020 को रात्रि 10:10 बजे प्रारंभ होगा।
👉 यह ग्रहण मार्गशीर्ष एवं आर्द्रा नक्षत्र तथा मिथुन राशि मण्डल पर हो रहा है।अतः इन राशि नक्षत्र वालों को ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिये।अपितु अपने इष्टदेव की आराधना, गुरुमंत्र जाप एवं धार्मिक ग्रंथों का पठन-मनन करना चाहिये।
👉 द्वादश राशियों पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव —–
(1) :  मेष राशि– पराक्रम-वृद्धि, धनलाभ, सहयोग प्राप्ति,भातृसुख मैं वृद्धि, पुरुषार्थ-प्राप्ति, साहस की अधिकता।
(2) : वृषभ राशि– धनहानि , कौटुंबिक-कलह,राजभय,नेत्ररोग
(3) : मिथुन राशि–  मान-प्रतिष्ठा पर आंच आना, सम्मानहानि, दुर्घटना-कारक, अपघात, स्वास्थ्य में नरमी, शारीरिक पीड़ा,।
(4) : कर्क राशि–निरंतर धन हानि, खर्च बेहताशा बढ़ जाना। अप्रत्याशित खर्च उभरकर सामने आना , मस्तिष्क या सिर पर चोट-चपेट, बाहरी संबंधों से परेशानी।
(5) : सिंह राशि– धनलाभ, संग्रहित बैंक बैलेंस में अभिवृद्धि, लोहे मशीनरी भूमि आदि से लाभ, शत्रुहानि, एव्ं सभी क्षेत्रों में सफलता का वातावरण निर्मित हो।
(6) : कन्या राशि — नवीन कार्य व्यवसाय की प्राप्ति, मान-प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि, उच्च प्रतिष्ठित लोगों से मेलजोल बढ़ना,राज्यपक्ष से लाभ, कार्य व्यवसाय का विस्तार एवं सभी क्षेत्रों में लाभदायक वातावरण निर्मित हो।
(7) : तुला राशि- सम्मानहानि मान-प्रतिष्ठा पर आना अनर्गल झूठे आरोप लगना, राज्य कर्मचारियों से विरोध,धर्म में मन नहीं लगना, पिता से वैचारिक मतभेद एवं विरोध का वातावरण बना रहे,राजकीय एव्ं प्रशासनिक परेशानी उभर कर सामने आये, वाद-विवाद मुकदमें बाजी का भी प्रसंग निर्मित हो।
(8) : वृश्चिक राशि — स्वास्थ-कष्ट की अधिकता, सीने संबंधित रोग, निरंतर धनहानि, जेलयात्रा, चोरी आदि से हानि, मार्ग में बंधन, पारिवारिक विभाजन, वाद-विवाद, राजभय, जमानतीय बंधन।
(9) :  धनु राशि– जीवनसाथी को मृत्यु तुल्य कष्ट, दुष्चरित्र स्त्रियों से संपर्क वृद्धि, वाद-विवाद          दिनचर्या अस्त-व्यस्त, देनदारीयो में अभिवृद्धि, प्रतिद्वंद्विता का सामना, कर्जदारि का बढ़ना एवं पेट या गुदा संबंधित रोग।
 (10) : मकर राशि- राजकीय बाद-विवादों में विजय, शत्रुपक्ष पर दबाव,कर्जदारि से राहत,बेंक  बैलेंस में अभिवृद्धि,कोई आर्थिक योजना क्रियान्वित हो, शासकीय ऋणभार का लाभ प्राप्त हो। सभी क्षेत्रों में सुखदायक वातावरण बना रहे।
(11) :  कुंभ राशि — चिंताप्रद, मन में कई प्रकार के विचार आना, बुद्धि में भ्रम, निर्णय न ले पाना, कोई न्यायायिक अथवा प्रशासनिक परेशानी उभरकर सामने आय, अनर्गल झूठे आरोप लगना, मस्तिष्क में भारीपन, संतान को पीड़ा।
(12) : मीन राशि-विध्वंस कारक, पारिवारिक कलह, पेतृक-संपदा का विभाजन,वाहन दुर्घटना, माता को मृत्यु तुल्य कष्ट, स्वयं को सीने संबंधित कष्ट, शीतरोग, तेज वायरल बुखार,धनहानि कारोबार चौपट होना।
👉 ग्रहण का दृश्य प्रभाव–
        यह ग्रहण संपूर्ण भारतीय भू-भाग सहित बांग्लादेश, म्यांमार श्रीलंका, मंगोलिया, थाईलैंड, मलेशिया,उत्तर-कोरिया, जापान, नेपाल, पाकिस्तान, इराक,ईरान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया दक्षिणी-रूस,अफ्रीका आदि में खंडग्रास रूप में दृश्य होगा।
👉 वही यह सूर्यग्रहण अफ्रीका के कुछ क्षेत्र यमन-ओमान,सूडान, दक्षिणी-पाकिस्तान,दक्षिणी-चीन का कुछ भू-भाग,दक्षिणी-यूरोप,तिब्बत, हिंद-महासागर,सम्पुर्ण एशिया            पेसिफिक-महासागर,तथा ताइवान मैं कंकणा-कृति के रूप में दृश्य होगा।
👉भारत में यह सूर्यग्रहण पोखरी उखीमठ,अगस्तमुनि,चोपता, मयाली,गन्साली, झेलम, टिहरी, नई-टिहरी,चंबा, देहरादून, जगधारी, यमुनानगर, शरीफगढ़, कुरुक्षेत्र,थानेसर,नंदादेवी,जातन, नेशनलपार्क,अनूपगढ़ ,चमौली,          श्री-विजयनगर,अमरपुरा, सूरतगढ़,रंगमहल,मेहरवाला, सिलवालाखुर्द, द्रोणागिरी, जोशीमठ,पीपलकोटी,रुद्रनाथ, गोपेश्वर आदि स्थानों सहित हिमाचल-प्रदेश, उत्तरांचल, राजस्थान,हरियाणा,मध्य-प्रदेश, चीनी-सीमांत क्षेत्र मे कंकणा- कृति के रूप में दृश्य होगा।
👉 ग्रहण के यम-नियम प्रभार —
         यह सूर्यग्रहण गर्भवती महिलाये ,धर्मगुरुओ, साधु-सन्यासी,धार्मिकनेता, उद्योगपति,राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, ग्रहमंत्री, मुख्यमंत्री, सहित मंत्रियों हेतु,नवविवाहित वर-वधु,कन्या,  विवाह-योग्य वर-कन्या तथापि  महिलाओं के लिये ग्रहण प्रतिकूल रहेगा। परिणामत: इन सभी को ग्रहण दर्शन योग्य नहीं है।अतः “ग्रहण-दृश्य” नहीं देखना चाहिये।
👉 ग्रहण फल एवं प्रभाव —  (1) : वार विचार – यह सूर्यग्रहण रविवार को हो रहा है।परिणामत:   वर्षों में अवरोध उत्पन्न करेगा। किन्ही दो राष्ट्रों के मध्य युद्ध-भय का वातावरण निर्मित हो। तरल- पेट्रोलियम,घी-तेलआदि के भावों में अभिवृद्धि एवं महंगाई दर बड़े। वहीं यह ग्रहण रविवार को होने के कारण तथा इसकी कंगन के  समान आकृति होने से इसे चूड़ामणि सूर्यग्रहण की संज्ञा दी गई है।
(2) : मास विचार– यह ग्रहण आषाढ़ मास में होने के कारण चीन,पुलिंद, कश्मीर, कंधार, देशों के लिए विध्वंस एवं दुर्भिक्ष का कारक है। कुप,वापी,नदी-प्रवाह के जल से आजीविका करने वाले माली एवं बागवानों का नाश हो।अत्यधिक वर्षा से फल-फूल की खेती या नष्ट हो जाये।
(3) :  तिथि प्रभाव – अमावस्या तिथि के गंडांत में ग्रहण सर्वत्र अशांति प्रजा में महामारी।आदि अशुभ फल घटित हो। राजाओं में परस्पर युद्ध वैचारिक मतभेद एवं छत्र भंग हो।
(4) :अयन प्रभाव-  दक्षिणायन में ग्रहण होने से शुद्र एवं वैश्य संप्रदाय को पीड़ा,गाय-भैंस, हाथी आदि पशुओं का नाश हो।
(5) :  नक्षत्र प्रभाव- आर्द्रा नक्षत्र में ग्रहण होने से चोर-डकैत, ठग भेदिया-जासुस, मुखबिर,तंत्र-मंत्र करने वाले, न्यायाधीश,ग्राम-प्रधान, सरपंच,परस्त्री-गमन करने वाले, नाचगान से आजीविका प्राप्त करने वाले,मेडिकल-व्यवसायी एवं डॉक्टरों को पीड़ा हो।
(6) : ग्रहण मंडल प्रभाव- यह ग्रहण वायु मंडल के नक्षत्र में होने से प्रचनण्ड वायुवेग,गर्महवा तथा दक्षिण दिशा के निवासियों को अत्यधिक कष्ट हो।                                   (7) : ग्रहण राशि का प्रभाव — यह ग्रहण मिथुन राशि पर हुआ हैं। इस कारण राष्ट्राध्यक्ष एवं राजमान्य नागरिको तथा यमुना नदी के तट पर बसे हुए व्यक्तियों को विशेष पीड़ा हो।
(8) : ग्रहण खांश प्रभाव– यह ग्रहण तृतीय खांश मे हो रहा है। परिणामत: मलेच्छ,शूद्र,मंत्री, प्रधानमंत्रीआदि के लिये समय विशेष कष्ट का रहे। मध्यप्रदेश सत्तारुढ़ प्रमुख को भारी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़े। सत्ता परिवर्तन के साथ ही वर्तमान सत्तारुढ़ प्रमुख को पद  च्युति का सामना करना पड़े। मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की प्रबल संभावना व्याप्त है।
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🙏🏻ग्रहण ग्रहयोग एवं लग्न प्रभाव——-                         👉दिनांक 21 : 6 : 2020 को सूर्यग्रहण का ” स्पर्श एवं मध्य ” सिंह लग्न में तथा ” मोक्ष ” कन्या लग्न में होगा।
 👉  यह सूर्यग्रहण चतुर्थग्रही योग में होगा। ग्रहण प्रभावी लग्न में शुभ ग्रह-बुध, गुरु, शुक्र, एवं क्रूर ग्रह शनि वक्री हे। बृहस्पति अपनी परं अतिचार गति तथा नीच राशि में है।ग्रहण मोक्ष लग्न अनुसार दशमभाव में( सूर्य,चंद्र, बुध,राहु )की युति प्रतिकूल एवं राज-विद्रोह की कारक है। कन्या लग्न पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि एवं बृहस्पति वक्र गति से पंचम दृष्टि प्रभावशील हे।परिणामत: अशांति रक्तपात, हिंसा,आगजनी एव्ं रेल वाहन तथा विमान-दुर्घटनाओं में वृद्धि होगी। पत्रकार, व्याख्याकार,सम्पादक, लेखक, धर्मगुरुओं,राज्य-कर्मचारियों, शासक-प्रशासक वर्ग, कलाकार  संगीतकार, एवं पुलिस-प्रशासन हेतु पीड़ादायक रहेगा। राजविग्रह, राष्ट्राध्यक्षो एव्ं राजनेताओ में परस्पर विरोध।पाकिस्तान के लिये यह ग्रहण विध्वंस कारक रहते हानि,शोक एवं भुखमरी का कारक बनेगा,भारत के लिये यह ग्रहण सत्ताप्रधान को अति कष्टकारक नैतिक एवं माननीय पतन के साथ अपमान सूचक।
 पुलिंद, विंध्याचल क्षेत्र के निवासियों एवं राजमान्य नागरिकों एवं राज्याध्यक्षो के लिये यह ग्रहण विनाश का कारण बनेगा। अस्मत और त्रिपुर क्षेत्र में धान्य की उपज अच्छी होगी। शेष क्षेत्र में खेतीयों की हानि होगी।
👉 ग्रहण स्वामी प्रभाव- ग्रहण-स्वामी कुबेर होने से धनिकवर्ग पर विशेष प्रभाव रहेगा। परिणामत: कई धनकुबेर शिखर से सीधे सड़क पर आ जाये। स्वतंत्र भारत को इस वर्ष आर्थिक-बदहाली के साथ दीवालीयेपन का सामना करना पड़ेगा। खजाने में अर्थाभाव रहेगा कई बैंकिंग व्यवस्थाये चरमरा जायेगी। कुछ बैंके डूब जायेगी आर्थिक नीति विफल रहेगी। लूटपाट,चोरी,डकैती और हत्याये दिनदहाड़े होगी। खनन एवं भू माफियाओं सहित दबंगों के आगे शासन-प्रशासन नतमस्तक रहेगा। कई वरिष्ठ राजनेता एवं मंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार में लिप्त रहेंगे।वर्तमान केंद्र सरकार पूंजीपतियों की कठपुतली बनकर मात्र एक शोषण का कारक बन जायेगी। किसानों के लिये सरकार की नीति विफल रहेगी।वही किसानों के लिये यह वर्ष कष्ट कारक एवं चिंतानीय रहेगा।
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🙏🏻 विभिन्न राज्यों एवं नगरों में ग्रहण स्पर्श-मध्य एवं मोक्ष का समय–
👉 दिल्ली-प्रदेश : नई-दिल्ली
10:19 -12:02 -13:49= 3:30
👉 हरियाणा : कुरुक्षेत्र
10:20-12:02-13 :48= 3:28
👉 उत्तर-प्रदेश
वाराणसी “काशी”
10:30 -12:18 -14:05= 3:45
 हरिद्वार
10:23-12:04 -13:52 = 3:29
 प्रयागराज
10:29 -12:16- 14:02= 3:33
👉 राजस्थान
 जोधपुर
10:09- 11:47-13:36= 3:27
 बांसवाड़ा
10:10 -11:49 -13:40 =3:30
 चित्तौड़गढ़
10:10 -11:52 -13:40= 3:30
👉 मध्य-प्रदेश
भोपाल
10:14 -11:58 -13:47 =3:33
 उज्जैन
10:11 -11:52 -13:42=3:31
 इंदौर
10:10 – 11:52 -13:42=3:32
 रतलाम
10:10 -11:50 -13:41=3:31
 झाबुआ
10:09 -11:51 -13:42=3:33
 मंदसौर
10:09 – 11:51 -13:39=3:30
 नीमच
10:10 -11:51 -13:40=3:30
धार
10:10 -11:52 -13:42=3:32
 खंडवा खरगोन
10:09 -11:51 -13:42=3:33
👉 महाराष्ट्र
 नासिक
10:04 -11:42 -13:32=3:28  
👉 ओड़िशा
( जगन्नाथपुरी,कटक, भुवनेश्वर सहित निकटवर्ती क्षेत्र एवं समुद्री तटवर्तीय क्षेत्र )
” भुवनेश्वर “
 ग्रहण-स्पर्श – 10:38:10
 ग्रहण-मध्य – 12:25:59
 ग्रहण-मोक्ष – 14:09:30
 पर्वकालावधि- 3:31:19
   ☝(ओडिशा हेतु निर्देश-इस सूर्यग्रहण का सूतक पूर्व दिन शनिवार रात्रि 10:38:10 बजे से परिवर्तित अगले दिन रविवार को ग्रहण मोक्षकाल समय दोपहर14: 9:30 तक मान्य रहेगा।)
 
         नोट–कुछ राज्यों के प्रमुख तीर्थस्थल एव्ं नगरों का सूर्यग्रहण का स्पर्शादि पर्वकाल समयभारतीय स्टैंडर्ड टाइम में दिया गया है।
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🙏🏻 ग्रहण विषयक नियम पालन- बालक वृद्ध रोगी हेतु नियम पालन आवश्यक नहीं है।कदाचित इन्हें दोष नहीं लगता।
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    चंद्रग्रहण के बाद सूर्यग्रहण  तथा सूर्यग्रहण के बाद चंद्रग्रहण होना पूर्णतया प्रतिकूलताप्रद वातावरण निर्मित हो सूर्यग्रहण समय शनि सहित कुल 4 ग्रह वक्री हैं। परिणामत: भारत-पाकिस्तान,अमेरिका-उत्तर कोरिया, तथा पाकिस्तान- अफगानिस्तान के मध्य युद्धभय का वातावरण निर्मित हो।सेना, पुलिस-प्रशासन तथा ग्रह एवं रक्षा विभाग में हलचल एवं सैनिकों की हानि हो अणु-परमाणु एवं हाइड्रोजन बमो के परीक्षण से संसार-वासी भय-ग्रस्त रहे। कहीं-कहीं दुर्भिक्ष-विध्वंस सहित महामारी का भय व्याप्त हो। मध्यप्रदेश एव्ं महाराष्ट्र एव्ं केन्द्र में सत्तादल प्रमुख विनाश एवं विध्वंस के कगार पर रहे। धनी संपन्न राष्ट्र अमेरिका एव्ं भारत को आर्थिक बदहाली का सामना करना पड़े।बेरोजगारी एवं खाद्यान्न की समस्या उभरकर सामने आये।धर्मगुरुओं पर अत्याचार एवं वरिष्ठ राजनेताओं की प्रतिष्ठा पर आंच। किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का अवसान भी संभावित।
      “राजगृहे व्यापारे च सुखशांति भर्वतु।।”
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 यह सूर्यग्रहण रविवार को होने से चूड़ामणि योग प्रतिपादित हुआ है। परिणामत:इस योग में स्नान, दान,जप,हवन,अनुष्ठान,करना कोटीगुना फल प्रदान करता है।
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🙏🏻👉ग्रहण काल में रजस्वला स्त्री बोस आदि विचार–
     अत्र च — “स्नाने नेमित्तिके प्राप्ते नारी यदि रजस्वला।पात्रान्त स्नान्ं कृत्वा व्रत्ं चरेत्ं ।।”
     अर्थात्—
                भार्गवार्चन-दीपिका के “सूर्योदय-निबंध ” में लिखा है कि– ग्रहण में रजस्वला स्त्री को होम जब आदि का दोष नहीं है। ग्रस्त में तीर्थ से जल निकालकर पृथक स्नान करें। इसमें यदि ग्रहण में नैमित्तिक स्नान की प्राप्ति हो और स्त्री रजस्वला हो तो पात्र में धरे जल से स्नान करने के उपरांत व्रत करें।
 ( निर्णयसिंधु: प्रथम परिच्छेद: 1 पृष्ठ 96 )
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🙏🏻👉स्पर्श मध्य एवं मोक्ष से तृप्ति—
      1 ग्रहण के स्पर्श समय देवता और पितर तृप्त होते हैं।मध्यकाल  में मनुष्य और मोक्षकाल में राक्षस प्राप्त होते हैं। यह वृद्धवशिष्ट का कथन है ।।
   ( निर्णयसिंधु: प्रथम-परिच्छेद 1
पृष्ठ 94 )
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  🙏🏻(3) : मांद्य चंद्रग्रहण—-
            श्री विक्रम संवत 2077 आषाढ़ शुक्ल पक्ष तिथि पूर्णिमा  नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा दिन रविवार दिनांक 5 : 07 : 2020 को मांद्य चंद्रग्रहण होगा।
      भारतीय मानक स्टैंडर्ड समय अनुसार चंद्रग्रहण का स्पर्श प्रातः 8:35 बजे एवं मोक्ष दिन में 11:22 बजे होगा।
👉  दृश्य प्रभाव–
                 यह चंद्रग्रहण भारत ऑस्ट्रेलिया,ईरान,इराक, रूस, चीन, मंगोलिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार,नेपाल एवं श्रीलंका को छोड़कर संपूर्ण विश्व में दृश्य होगा। इस चंद्रग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। इस चंद्रग्रहण में किसी भी प्रकार का यम-नियम,सूतक आदि मान्य नहीं होगा।
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🙏🏻(4) :  मांद्य चंद्रग्रहण—
       श्री विक्रम संवत 2077 कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा दिन सोमवार नक्षत्र रोहिणी दिनांक 30:11:2020 को मांद्य चंद्रग्रहण होगा।
        भारतीय स्टैंडर्ड समय अनुसार चंद्र ग्रहण का स्पर्श दोपहर 13:02:00 बजे मोक्ष दिन में 17:23:00 बजे होगा। पर्व काल अवधि 4:23:00,,।
 👉 दृश्य प्रभाव–
        यह चंद्रग्रहण भारत में कारगिल,उत्तरकाशी,पुरोला लैंसडाउन,बरेली,अंबेडकरनगर (मह), कानपुर,चित्रकूट,रीवा, श्रीकाकुलम सहित इन नगरों से पूर्व के सभी नगरों में दृश्य होगा। परंतु पश्चिमी-दक्षिणी भारत, अफ्रीका,ऑस्ट्रेलिया,अंटार्कटिका आदि में यह ग्रहण दृश्य नहीं होगा। इस कारण इस ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। वहीं इस चंद्रग्रहण में किसी भी प्रकार का यम-नियम सूतक आदि मान्य नहीं होगा।
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🙏🏻(5) : खग्रास/ खण्डग्रास सूर्य ग्रहण–
       श्री संवत 2077 मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तिथि अमावस्या दिन सोमवार नक्षत्र ज्येष्ठा परं विशाखा  दिनांक 14:12:2020 को खग्रास खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा।
        भारतीय स्टैंडर्ड समय अनुसार इस सूर्यग्रहण का स्पर्श शाम 19:54 बजे एवं मोक्ष रात्रि 24:23 बजे होगा।पर्वकाल अवधि 4:28:59,,।
             यह सूर्यग्रहण दक्षिणी- अमेरिका मे एवं ब्राजील के दक्षिण भाग में , साउथ-अफ्रीका के दक्षिणी किनारे पर, तथा अंटार्कटिका महाद्वीप के उत्तरी किनारे पर ही दृश्य होगा। भारत में यह ग्रहण दृश्य नहीं होगा।इस कारण इस सूर्यग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है।अत: इस सूर्यग्रहण में किसी भी प्रकार का यम-नियम,सूतक आदि मान्य नहीं होगा।
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👉 रात्रि में सूर्यग्रहण और दिन में चंद्रग्रहण पर विशेष निर्णय–
    ” सूर्यग्रहो यद रात्रौ दिवा चंद्रग्रहस्तथा। तत्र स्नान्ं न कुर्वीत दद्याद्दान्ं च न  कचित्ं ।। ” इति षटत्रिशन्मतात्ं ।।
  अर्थात्—
        षटत्रिशत्ं का मत है– जब सूर्यग्रहण रात में तथा चंद्रग्रहण दिन में हो तो स्नान और दान नहीं करें।
   ( निर्णयसिंधु का प्रथम परिच्छेद– अथ सूर्यग्रहणे दीक्षा विचार: -पृष्ठ क्रमांक 15 / 113 )
————————————‐————————-                            🙏🏻 ग्रहण समय पवित्र-जल निर्णय–
   ”  सर्वं गंगासम्ं तोय्ं ग्रहणे नात्रसंशय:। “
 अर्थात्–
         ग्रहण के समय सभी प्रकार का जल गंगाजल के समान पवित्र होता है।
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🙏🏻 ग्रहण मोक्ष उपरांत स्नान निर्णय–
          ग्रहण मोक्षकाल के बाद रोगी एवं वृद्ध को छोड़कर गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिये। ग्रहण में गंगादि, महानदियों, सरोवर, सागर आदि में स्नान करना चाहिये।
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🙏🏻 ग्रहण श्राद्ध कर्म का महत्व–
     “उपाकर्मणि तद्दिनभिन्न परं तत्र तन्निषेधादित्युक्त्ं प्राक “—  (निर्णय सिंधु: पृष्ठ – 249)
अर्थात्–
       ग्रहण-काल एव्ं सूतक-काल में श्राद्धकर्म करने का बड़ा महत्व है। केवल भोजन आदि का सर्वदा निषेध है।अतःसुखा अन्न्ं “आमान्न” से श्राद्धकर्म किया जा सकता है।श्रावण पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण हो तो उस दिन श्रावणी (उपाकर्म) वर्जित है।कुछ आचार्यो एवं विद्वानों का मत है कि- ग्रहण के सूतक-काल में देव प्रतिमा आदि स्पर्श करना वर्जित है।किंतु प्रतिमाओं का दर्शन किया जा सकता है। केवल ग्रहण-काल में ही प्रतिमाओं का दर्शन सर्वथा वर्जित है।
———————————————————–                     🙏🏻🙏🏻विशेष निर्णय — विक्रम संवत 2077 शक 1942 का वार फल का विचार करते समय वारेश ( वत्सराधिपति ) मंगल नही हो सकता ? कारण कि- दिनांक 24 : 03 : 2020  चैत्र कृष्ण अमावस्या समाप्ति 14: 58 बजे दोपहर Pm दिन मंगलवार को नवीन “आनंद-नामक” लुप्त-संवत्सर का आरंभ नही माना जा सकता। 
     👉 इस विषय के सकारात्मक स्पष्टीकरण को लेकर धर्मशास्त्र सम्मत एवं ज्योतिष- शास्त्र सम्मत यह निर्णय प्रतिपादित है कि-
                     ब्रह्माजी ने सूर्योदय व्यापीनि प्रतिपदा के समय ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। इसलिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय से ही नवीन संवत्सर का आरंभ होता है। वही ” उदयात उदयं वार: ” का वचन देखते हुए सूर्योदय के समय जो वार होगा वही वारेश होता है। किंतु अगर प्रतिपदा क्षय- तिथि हो तो चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या  के समाप्ति काल के साथ ही नवीन ” संवत्सर ” आरंभ होता है। और उस दिन जो वार होता हे अर्थात वारेश होता है। वही वर्ष का राजा माना जाता है। तथा प्रतिपदा अहोरात्र होने से पहले दिन का वारेश होता है। (उर्वरित प्रतिपदा के दुसरे दिन का वारेश नही होता ) , हम संवत्सर आरंभ के दिन पंचांग का पूजन करते 
समय ” वत्सराधिपति ” का पूजन भी प्राय: करते है।अब विचारणीय है कि वत्सराधिपति पूर्व दिन का कैसे हो सकता है ? कारण कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि क्षय  नहीं है। ऐसी स्थिति में विक्रम संवत 2077 शक 1942 का वारेश अर्थात राजा ( राष्ट्राध्यक्ष ) बुध ही होगा। दिनांक 25 मार्च 2020 से दिनांक 12 मार्च 2021 तक विक्रम संवत 2077 प्रभावी रहेगा अत: राजा बुध ही रहेगा मंगल नहीं।🙏🏻🙏🏻

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