आइये जाने महिलाओं/स्त्रियों  के गुप्त रोग और उनके इलाज/उपायों को–


योनिदोष (Vagina Disorder)–इस रोग के कारण स्त्रियों की योनि में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जिससे बहुत परेशानी होती है:RAZIA DALVI


परिचय:-इस रोग के कारण स्त्रियों की योनि में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं जिसके कारण स्त्रियों को बहुत अधिक परेशानी होती है। इस रोग के कारण स्त्रियां, पुरुषों के साथ सहवास क्रिया भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाती हैं। इस रोग के कारण कभी-कभी स्त्री बेहोश भी हो जाती है।

स्त्रियों में योनिदोष होने का कारण तथा रोग :-
यह रोग स्त्रियों को गलत तरीके से या दूषित भोजन के कारण होता है इस रोग को सूचिकावक्र योनिरोग कहते हैं।
कई बार बच्चे पैदा करने के बाद बहुत सी स्त्रियों की योनि फैल जाती है जिसे महतायोनि दोष कहते हैं।
कुछ स्त्रियों की योनि से पुरुष-सहवास के समय असाधारण रूप से पानी निकला करता है जिसमें कभी-कभी बदबू भी आती है। प्रसव के बाद दो से तीन महीने के अंदर ही स्त्री यदि पुरुष से सहवास क्रिया करती है तो स्त्रियों के योनि में रोग उत्पन्न हो जाता है जिसे त्रिमुखायोनि दोष कहते हैं।
कुछ स्त्रियों को पुरुषों के साथ सहवास क्रिया करने पर तृप्ति ही नहीं होती है। इस रोग को अत्यानन्दायोनि दोष कहते हैं।
कुछ स्त्रियां सहवास के समय में पुरुषों से पहले ही रस्खलित हो जाती है इस रोग को आनन्दचरणयोनि दोष कहते हैं।
कुछ स्त्रियां सहवास के समय में पुरुष के रस्खलित होने के बहुत देर बाद रस्खलित होती हैं ऐसे रोग को अनिचरणायोनि दोष कहते हैं।

स्त्रियों के इन रोगों को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी स्त्री को कम से कम एक महीने तक फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा उपवास के समय में रोगी स्त्री को प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप कुछ ही दिनों में रोग ठीक हो जाता है।

योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री को उपवास समाप्त करने के बाद सादे तथा पचने वाले भोजन का सेवन करना चाहिए तथा प्रतिदिन घर्षणस्नान, मेहनस्नान, सांस लेने वाले व्यायाम तथा शरीर के अन्य व्यायाम करने चाहिए तथा सुबह के समय में साफ तथा स्वच्छ जगह पर टहलना चाहिए।
योनिदोष से पीड़ित रोगी स्त्री को प्रतिदिन गुनगुने पानी में रूई को भिगोकर, इससे अपनी योनि तथा गर्भाशय को साफ करना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
योनिदोष से सम्बंधित रोग को ठीक करने के लिए धनिये का पानी, जौ का पानी, कच्चे नारियल का पानी कुछ दिनों तक स्त्रियों को पिलाना चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है और मासिकधर्म सही समय पर होने लगता है।
कुछ दिनों तक चुकन्दर का रस कम से कम ..0 मिलीलीटर दिन में दो से तीन बार पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित स्त्रियों को मिर्च-मसाले, दूषित भोजन, अधिक चाय, कॉफी, मैदे के खाद्य पदार्थ, केक, चीनी, तली-भुनी चीज तथा डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।
योनिदोष से संबन्धित रोग को ठीक करने के लिए स्त्री को सुबह के समय में आंवले का रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए।
एक चम्मच तुलसी के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर फिर उसमें एक चुटकी कालीमिर्च मिलाकर इसको दिन में दो बार प्रतिदिन चाटने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
धनिये के बीज को उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
अदरक को पानी में उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग को ठीक हो जाते हैं।
बथुए को उबालकर फिर इसको छानकर इसके पानी को पीने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
तुलसी की जड़ को सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें फिर इस चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर प्रतिदिन दिन में दो बार सेवन करने से स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।

स्त्रियों के योनिदोष से संबन्धित रोगों को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन है जिनको करने से ये रोग तुरंत ठीक हो जाते हैं। 

ये आसन इस प्रकार हैं- अर्धमत्स्येन्द्रासन, शवासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, त्रिकानासन,, बज्रासन, भुजंगासन तथा योगनिद्रा आदि।
योनिदोष से संबन्धित रोगों को ठीक करने के लिए स्त्रियों के पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए तथा स्त्रियों को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद स्त्री को अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए तथा कटिस्नान करना चाहिए फिर इसके बाद स्त्री को अपने कमर पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए और स्त्री को खाली पेट रहना चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित स्त्री को जब योनि में जलन तथा दर्द हो रहा हो उस समय उसे कटिस्नान कराना चाहिए तथा उसके पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए और कमर पर लाल तेल की मालिश करनी चाहिए। फिर उसकी कमर पर गीले कपड़े की पट्टी लपेटनी चाहिए। लेकिन इस उपचार को करते समय स्त्रियों को योगासन नहीं करना चाहिए।

यदि रोगी स्त्री का मासिकस्राव आना बंद हो गया हो तो रोगी स्त्री को सुबह के समय में गर्म पानी से कटिस्नान करना चाहिए तथा रात को सोते समय एक बार फिर से कटिस्नान करना चाहिए। फिर रोगी स्त्री को दूसरे दिन गर्म तथा ठंडे पानी में बारी-बारी से सिट्ज बाथ कम से कम दो बार कराना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कम से कम एक महीने तक करने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
यदि स्त्री को योनि में तेज दर्द है तो रोगी स्त्री को सुबह के समय में गर्म पानी में कटिस्नान और रात को सोने से पहले एक बार गर्म तथा दूसरी बार ठंडे पानी से कटिस्नान करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।

स्त्री को यदि योनि में तेज दर्द हो रहा हो तो अजवायन का पाउडर बनाकर, एक चम्मच पाउडर गर्म दूध में मिलाकर प्रतिदिन दिन अजवायन का पाउडर बनाकर, एक चम्मच पाउडर गर्म दूध में मिलाकर प्रतिदिन दिन में दो बार रोगी स्त्री को सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
तुलसी की पत्तियां सभी प्रकार के मासिकधर्म के रोगों को ठीक कर सकती हैं। इसलिए योनिदोष से संबन्धित रोग से पीड़ित रोगी स्त्री को प्रतिदिन दो चम्मच तुलसी की पत्तियों का रस पीना चाहिए। इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
आधा गिलास अनार का रस प्रतिदिन सुबह के समय में नाश्ते के बाद पीने से योनिदोष से संबन्धित रोग ठीक हो जाते हैं।
एक गिलास गाजर के रस में चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर दो महीने तक पीने से ठीक हो जाता है ।।

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गुप्तांगों के रोग-गुप्तांगों में रोग अधिकतर संक्रमण के कारण होता है: जानिये इसका इलाज


परिचय:-गुप्तांगों में रोग अधिकतर संक्रमण के कारण होता है। वैसे देखा जाए तो गुप्तांगों में कई रोग हो सकते हैं जिनमें मुख्य दो रोग होते हैं जो इस प्रकार हैं-


आतशक (सिफलिश)-इस रोग में स्त्री-पुरुषों के गुप्तांगों (स्त्रियों में योनिद्वार तथा पुरुषों में लिंग) के पास एक छोटी सी फुंसी होकर पक जाती है तथा उसमें मवाद पड़ जाती है। 

इस रोग की दूसरी अवस्था में योनि अंग सूज जाते हैं। शरीर के दूसरे अंगों पर भी लाल चकते, घाव, सूजन तथा फुंसियां हो जाती हैं। 

तीसरी अवस्था में यह त्वचा तथा हडि्डयों के जोड़, हृदय तथा स्नायु संस्थान को प्रभावित कर रोगी को अन्धा, बहरा बना देता है।

इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण संक्रमण होना है जो इस रोग से पीड़ित किसी रोगी के साथ संभोग या चुम्बन करने से फैलता है। इस रोग से पीड़ित रोगी जिन चीजों को इस्तेमाल करता है उस चीजों को यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल करता है तो उसे भी यह रोग हो सकता है।

सुजाक (गिनोरिया)-इस रोग के हो जाने पर रोगी के मूत्रमार्ग में खुजली होना, पेशाब करते हुए बहुत दर्द तथा जलन होना, पेशाब के साथ पीला पदार्थ या मवाद बाहर आना, अण्डकोष में सूजन होना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं।

जब यह रोग स्त्रियों को हो जाता है तो पहले उसकी योनि से पीला स्राव निकलने लगता है तथा जब वह पेशाब करती है तो उस समय बहुत तेज दर्द होता है। उसकी योनि की मांसपेशियां सूज जाती हैं। यह सूजन बढ़ते-बढ़ते गर्भाशय तक पंहुच जाती है। ऐसी अवस्था में यदि स्त्री गर्भवती होती है तो उसका गर्भपात हो सकता है। पहले यह रोग योनि तथा लिंग तक सीमित रहता है और बाद में यह शरीर के अन्य भागों में भी हो जाता है। आतशक में घाव बाहरी होते हैं तथा सुजाक में घाव आंतरिक होते हैं।

गुप्तांग रोगों का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी किसी दूसरे के साथ संभोग से दूर रहना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी-भी अपने वस्त्र तथा अपने द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों को किसी दूसरे व्यक्ति को इस्तेमाल न करने देने चाहिए नहीं तो यह रोग दूसरे व्यक्तियों में भी फैल सकता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना भोजन दूसरों को नहीं खिलाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार करने के लिए सबसे पहले अपने शरीर के खून को शुद्ध करने तथा दूषित विष को शरीर से बाहर करने के लिए
उपवास करना बहुत जरूरी है जो आवश्यकतानुसार 7 से 14 दिन तक किया जा सकता है।गुप्तांगों के रोग से पीड़ित रोगी को रसाहार पदार्थों जैसे- पालक, सफेद पेठे का रस, हरी सब्जियों का रस, तरबूज, खीरा, गाजर, चुकन्दर का रस आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
नारियल का पानी प्रतिदिन पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को इस रोग का उपचार कराने के साथ-साथ अधिक मात्रा में फल, सलाद, अंकुरित चीजें खानी चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को गेहूं के जवारे का रस पीना चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
चौलाई के साग के पत्ते .5-25 ग्राम दिन में 2-. बार खाने से गुप्तांग रोग से पीड़ित रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
आंवले के रस में थोड़ी सी हल्दी तथा शहद मिलाकर सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
गुप्तांगों के रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले पेट को साफ करना चाहिए और पेट को साफ करने के लिए रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करनी चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को नीम की पत्तियों को उबालकर उस पानी से घाव को धोना चाहिए।
इस रोग के कारण हुए घाव तथा सूजन और फुंसी वाले स्थान पर प्रतिदिन मिट्टी की पट्टी रखने से गुप्तांगों के रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग से पीड़ित रोगी को गर्म कटिस्नान प्रतिदिन करने से अधिक लाभ मत है ।।

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श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)–श्वेत प्रदर स्त्रियों को होने वाला एक बहुत ही खतरनाक रोग है-जानिये इसका इलाज


परिचय:-श्वेत प्रदर स्त्रियों को होने वाला एक बहुत ही खतरनाक रोग है। इस रोग से पीड़ित स्त्रियों में ल्यूकोरिया या सफेद पानी आने की शिकायत बहुत मिलती है। यह रोग किसी भी उम्र की स्त्री को हो सकता है। कई बार जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई होती है उनको यह रोग होने पर वह शर्म या दूसरे कारणों से बिना जांच और इलाज कराए इस रोग को अंदर ही अंदर पालती रहती है जिसकी वजह से यह रोग स्त्रियों में और अधिक बढ़ जाता है।
श्वेतप्रदर रोग का लक्षण:
-इस रोग से पीड़ित स्त्रियों का योनिमार्ग हमेशा थोड़ा बहुत गीला रहता है और यौन उत्तेजना के समय तो ये गीलापन और बढ़ जाता है। स्त्रियों के योनि से सफेद, पीला या फिर मिश्रित रंग का पानी आने के कारण योनि में या योनि के आसपास खुजली हो सकती है। स्त्रियों के गर्भकाल के समय, मासिकधर्म से ठीक पहले या मासिकधर्म बंद होने के बाद यह रोग हो सकता है। स्त्रियों के शरीर में डिम्ब डिम्बाशय से निकलकर डिम्ब-नलिका से होते हुए गर्भाशय की तरफ बढ़ते रहते हैं और पुरुष शुक्राणु के न मिलने के कारण समाप्त हो जाते हैं। इस डिम्ब-निस्कासन और डिम्ब-विर्सजन की अवधि में भी यह गीलापन बढ़ जाता है। इस स्राव को श्वेतप्रदर नहीं कहा जाता और न ही इसके लिए किसी चिंता या चिकित्सा की जरूरत है।
सामान्य श्वेतप्रदर रोग स्त्रियों में बहुत ज्यादा पोषण की कमी और ताकत से ज्यादा थकाने वाले काम करने के कारण होता है। लेकिन कई बार यह रोग दिमागी परेशानी से भी हो सकता है। मधुमेह और लगातार खांसी या दमा रोग होने के कारण भी श्वेतप्रदर हो सकता है। पोषण की कमी न हो तो इस सामान्य श्वेतप्रदर में कमर दर्द की शिकायत नहीं होती, न योनिप्रदेश पर खुजली की, न ही बदबूदार पानी की, चिपचिपा या ज्यादा गाढ़ा होता है। इस रोग के कारण मासिक धर्म बीच-बीच में बंद या कम होकर आ सकता है। लेकिन रोग की गम्भीरता न होने पर भी भोजन और जीवन में सुधार करके डाक्टर से पूछकर टॉनिक आदि लेकर इनसे बचने की कोशिश करें ताकि कमजोरी ज्यादा न बढ़ें और जल्दी इन्फैक्शन न हो। इस रोग से पीड़ित रोगी के हाथ, पैर, कमर, सिर में दर्द, पेशाब में जलन, पेट के निचले भाग में भारीपन, कब्ज, कमजोरी, घबराहट, काम में मन न लगना तथा चलने-फिरने में अधिक थकावट हो जाना आदि समस्या हो जाती है। इस रोग के कारण स्त्रियों का स्वास्थ्य तथा सौन्दर्य नष्ट हो जाता है।
श्वेतप्रदर रोग होने का कारण:-श्वेतप्रदर खुद में एक रोग न होकर दूसरे रोगों के होने कारण होता है।
श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग होने का सबसे प्रमुख कारण पोषण की कमी, शरीर में खून की कमी होने या भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाने के कारण होता है।
-स्त्रियों के शरीर में विटामिन, कैल्शियम की कमी हो जाने के कारण भी श्वेतप्रदर का रोग हो सकता है।
-श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग ज्यादा चिंता, थकान वाले काम करने के कारण भी हो सकता है।
-बहुत अधिक संभोग क्रिया करने के कारण भी श्वेतप्रदर रोग हो सकता है।
-जब स्त्रियां जल्दी-जल्दी मां बनती हैं या फिर बार-बार गर्भपात करवाती हैं तब भी यह रोग उन्हें हो सकता है।
-श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) बच्चेदानी के मुंह पर घाव होने, यौन रोग, सुजाक (गिनोरिया) रोग होने के कारण भी हो सकता है।
-शरीर में बहुत ज्यादा दूषित द्रव के जमा हो जाने के कारण भी स्त्रियों को श्वेतप्रदर रोग हो सकता है।
-कब्ज बनने, योनि की ठीक से सफाई न करने, रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धित रोग होने, शरीर का वजन कम होने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
-अन्त:स्रावी ग्रंथियों से सम्बन्धित कोई रोग हो जाने के कारण भी श्वेतप्रदर का रोग हो सकता है।
-अधिक चाय, कॉफी, चीनी, नमक, रिफाइंड तेल तथा मसालेदार पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी श्वेतप्रदर का रोग हो सकता है ll
श्वेतप्रदर रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-स्त्रियों के श्वेतप्रदर रोग को ठीक करने के लिए गर्म पानी में नींबू का रस मिलाकर पीकर उपवास रखने तथा इसके बाद फलों के रस का सेवन करने तथा 1 सप्ताह तक बिना पके भोजन का सेवन करने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित स्त्रियों को लोहयुक्त पदार्थ तथा कैल्शियम युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
-ताजे आंवले का रस रोजाना सुबह तथा शाम पीने से श्वेतप्रदर रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
-काले चनों को भूनकर पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी स्त्री को बहुत अधिक फायदा होता है।
-श्वेतप्रदर रोग से पीड़ित स्त्री को दिन में कई बार नींबू के रस को पानी में मिलाकर पीना चाहिए लेकिन इस रोग से पीड़ित स्त्री को खटाई से परहेज करना चाहिए।
-श्वेतप्रदर रोग को ठीक करने के लिए 50 ग्राम भिंडी को लंबी-लंबी काटकर 300 मिलीलीटर पानी में 25 मिनट तक उबालें और फिर इसे छानकर पी लें। कुछ -दिनों तक नियमित रूप से ऐसा करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
तुलसी को पीसकर 1 गिलास पानी में मिलाकर फिर इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर रोग ठीक हो जाता है।
-तुलसी की पत्तियों का रस चावल के मांड के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
-प्रतिदिन दूब को पीसकर उसका रस निकालकर या गेहूं के जवारे का रस निकालकर पीने से श्वेतप्रदर रोग ठीक हो जाता है।
-सुबह के समय में खाली पेट 3 दिन तक चावल का धोवन पीने से 2 घंटे लगातार 3 से 7 दिन तक चावल का ताजा मांड पीना ज्यादा लाभकारी होता है।
–पीपल वृक्ष के फलों को दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुराना से पुराना प्रदर रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
-नीम के गुनगुने पानी या फिटकरी के पानी में रूई को भिगोकर इस रूई को योनि के अंदर कुछ समय के लिए रखने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
-एक मुलायम कपड़े की 5-6 तह करके पट्टी बनाकर पानी में इसे भिगोकर और निचोड़कर योनिद्वार पर रख लें। ऐसा प्रतिदिन करने से श्वेतप्रदर का रोग कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
-स्त्रियों के इस रोग को ठीक करने के लिए मिट्टी की गीली पट्टी को पेट पर रखना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। सुबह के –समय में गर्म ठंडा कटिस्नान करने, शाम के समय में मेहनस्नान करने और धूपस्नान करके सूखा घर्षण करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
-स्त्रियों को मासिकधर्म के समय में पेट पर मिट्टी की पट्टी करने तथा उपचार के बाद आराम करने और फिर अपनी चिंता, भय और मानसिक तनाव को दूर करने से श्वेतप्रदर का रोग ठीक हो जाता है। इस रोग से पीड़ित स्त्री को अपनी कमर पर रात को सोते समय गीली चादर लपेटने से लाभ मिलता है।
-श्वेतप्रदर रोग को ठीक करने के लिए सूर्यतप्त हरे रंग की बोतल के पानी को पीना चाहिए। इसके अलावा इस पानी में रूई को भिगोकर प्रतिदिन योनि में रखने से यह रोग ठीक हो जाता है।
-स्त्रियों के श्वेतप्रदर रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की यौगिक क्रियाएं तथा आसन हैं जो इस प्रकार हैं- उज्जायी, भस्त्रिका, मूलबन्ध, नाड़ीशोधन, उडि्डयान बंध, प्राणायाम, सर्वांगासन, हलासन, पदमासन, भुजंगासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन आदि।
-इस रोग को ठीक करने के लिए प्रतिदिन स्त्रियों को अपने हाथ की कलाईयों के दोनों तरफ दबाव देना चाहिए। अपने टखनों के नीचे दोनों पैरों पर दबाव देने से भी यह रोग ठीक हो जाता है ।।
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ल्यूकोरिया : सफेद पानी आना-महिलाओं को होने वाला एक रोग है से बचाव और इलाज


ल्यूकोरिया या लिकोरिया महिलाओं को होने वाला एक रोग है, जिसे श्वेत प्रदर भी कहते हैं। ल्यूकोरिया से ग्रस्त औरत की योनि से बहुत ज्यादा मात्रा में सफेद बदबूदार पानी निकलता है, जिसे वेजाइनल डिस्चार्ज कहते हैं। इसकी वजह से शरीर में काफी कमजोरी आने लगती है। वैसे तो यह रोग आम होता है, जिसे आप बीमारी नहीं कह सकते।
यह एक तरह से यूट्रैस और योनि इंफैक्शन या प्रजनन अंगों में सूजन की निशानी है जो अन्य कई रोगों को न्योता जरूर देता है।भारतीय महिलाएं इस समस्या की आम शिकार होती हैं। किसी दूसरे को बताने में हिचकिचाहट के चलते वह इस समस्या को छिपा लेती हैं या नॉर्मल बात समझ कर शुरुआत में ही ध्यान नहीं देतीं जो बाद में बढ़ जाती है।
इस प्रॉब्लम के बढऩे से योनि या गर्भाशयग्रीवा से श्लेष्मा (बलगम) निकलने लगता हैं जो शरीर को कमजोर करने लगता है।
प्रदर रोग (सफ़ेद पानी ) निकलने से जुडी समस्याएं (Problem caused due to whitedischarge)

1. यौन क्रियाओं से फैलने वाली बीमारी से।
2. कूल्हे में जलन व दर्द होना।
3. हॉर्मोन की समस्याएं।
4. योनि में संक्रमण।
5. गर्भाशय का कैंसर।
6. गर्भाशय का संक्रमण।
7.वैसे यह इंफैक्शन प्राइवेट पार्ट की सफाई न रखने से होती है।
8.इसके अलावा ज्यादा उपवास,
9.अश्लील बात-चीत व उतेजक कल्पनायें करनें से।
10.रोगग्रस्त पुरुष से संबंध बनाने,
11.इंटरकोर्स के बाद योनि को साफ न करना,
12.अंडरग्रामैंट गंदे व रोज न बदलने,
13.यूरीन के बाद योनि को पानी से न धोने से
14. या बार-बार गर्भपात करवाना से
15.सफेद पानी का एक और कारण प्रोटिस्ट है जोकि एक सूक्ष्म जीवों का समूह है।
16. कभी सुजाक – निकरस – आतशक की बीमारी से भी।
17. खून की कमी ठंडी और तर गिजांए ज्यादा लेना।
प्रदर रोग के लक्षण (Symptoms of the disease)–
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कुछ महिलाओं में ये द्रव्य बिना किसी लक्षण या परेशानी के निकलता है। पर ऐसी कई महिलाएं हैं जिनको सफ़ेद द्रव्य निकलने के साथ कब्ज़, लालपन, पेट में दर्द, कूल्हे में दर्द तथा खुजली जैसी समस्याएं पेश आती हैं।-
सफेद रंग का द्व्य निकलना सामान्य माना जाता ह परन्तु अगर द्व्य का रंग इनमें से कोई है तो वो नुकसानदायक है। 

1. भूरापन लिए हुए सफ़ेद
2. जंग लगे हुए रंग का
3. हरापन
4. पीलापन
5. भूरापन लिया हुआ सफेद पानी तो महिलाओं के लिए काफी समस्या की बात है और यह डॉक्टर को दिखाने का सही समय है। गाढ़ा सफ़ेद द्रव्य निकलना तथा साथ में खुजली योनि में संक्रमण के मुख्य कारण होते है।
यह आमतौर पर योनि में फंगस या खमीर जमने की वजह से होता है। मधुमेह के शिकार रोगियों द्वारालिए जाने वाला एंटीबायोटिक भी इस गाढ़े सफ़ेद रंग के द्रव्य का ज़िम्मेदार हो सकता है। हरे और पीले रंग का बदबूदार द्रव्य भी महिलाओं के लिए काफी खतरनाक होता है।
इसे डॉक्टरी भाषा में ट्राइकोमोनिएसिस कहते हैं जो कि एकतरह का यौन संक्रामक रोग है।

*शरीर पर असर-हाथों-पैरों और कमर में दर्द-पिंडलियों में खिचाव
*योनि वाली जगह पर खुजली व बदबू आना।
शरीर में कमजोरी और थकान -सुस्ती पडऩा, चिड़चिड़ापन,
शरीर में सूजन या भारीपन-चक्कर आना
*घरेलू उपचार से पाएं राहत-इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सबसे जरूरी कामहै साफ-सफाई। योनि को साफ पानी से धोएं। आप उसे फिटकरी के पानी से भी साफ कर सकते हैं। फिटकरी एक श्रेष्ठ जीवाणु नाशक औषधि है
* योनि की अंदरूनी सफाई के लिए पिचकारी से धोएं (डूश लेना)।
मूत्र त्याग के पश्चात अच्छी तरह से सम्पूर्ण अंग को साबुन से धोएं।
लिकोरिया की परेशानी होने पर मीठी चीजों से परहेज करें। जैसे- पेस्ट्री, कस्टर्ड, आइसक्रीम औरपुडिंग के रूप से शक्करयुक्त खाद्य पदार्थ। यहव समस्या को और बढ़ाते हैं।
श्वेत प्रदर (सफेद पानी/लिकोरिया) से बचाव–
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*.योनि को बोरिक एसिड या फिटकरी युक्त पानी सेधोये ,इसके प्रयोग से सब रोगाणु मर जाते है।
*.बार बार गर्भपात न करवाना पड़े , इसके लिए परिवार नियोजन युक्ति अपनाये।
*.सहवास के दौरान कंडोम का प्रयोग करे ताकि साथी संपर्क से रोगाणु आप में प्रवेश न कर पाए।
*.मूत्र और सहवास के बाद योनि को हर बार साफ़ करे।
*.रोग हो जाने पर शर्म को त्याग कर डॉक्टर से संपर्क करे अन्यथा गंभीर परिणाम हो सकते है।
ल्यूकोरिया का यूनानी ईलाज (Treatment)–
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नुस्खें :- ( Formule)
मुफरदात अदवीया (Single Medicine):-
(1) मोचरस 25gm – ढाक का गोंद 25gm – इन्दरजौ ( मीठा) 12gm – असगन्द 12gm – माजू जलाया हुआ 3gm – शक्कर 75gm इन सब दवाओ का बारीक पाउण्ड़र बनाकर एक एक चम्मच सुबह शाम दूध के साथ लें।
(2) बबूल की ताजा फली 30gm – इमली के बीज 30gm – सिंघाडा़ सूखा 30gm – सदफ सोख्त ( जलाई हुई सीप) 30gm इन सब दवाओ का बारीक पाउण्ड़र बनाकर एक एक चम्मच सुबह शाम दूध के साथ लें।
(3) कुंदुर ,गुल पिस्ता ,सुपारी का फूल, कलमी तज , रूमी मस्तगी, सफेद इलाइची, वंशलोचन,सालममिक्षी, सफेद मुसली ,संगजराहत, चुनिया गोंद , छोटी राई , पठानी लोध हर एक अदवीया 7-7 माशा ले इन सब अदवीया का सफुफ बनाकर 8-8 gm सुबह शाम दूध के साथ ले।
मुरक्कबाद अदवीया ( Compound Medicine):-
नस्खाँ नम्बर (1):- (1)माजून सुपारी पाक 7gm सोते समय ले।(2) सिरप मस्तुरीन 10-10ml सुबह शाम दूध के साथ लें। (3) कुर्स सेलानोल 2-2 टेबलेट सुबह शाम ले।(4) मरहम दाखिलयून इस मरहम को 5gm लेकर इसे रूई के साथ योनी में रखे। तकरीबन 20 दिन तक रोज
नस्खाँ नम्बर (2) :- (1) माजून मौचरस 7gm रात को ले।(2) सिरप मैन्सोरैक्स 10-10ml सुबह शाम ले।(3) कुर्स कलई 2-2 टेबलेट सुबह शाम ले। (4) शर्बत इकसीरे खास 7-7 ml सुबह शाम पानी के साथ ले।(5) महबोल:- 2 गोली योनि के अन्दर एक दायें और एक बायें 5 दिन तक रखें। और फिर 2 दिन छोड़कर फिर 5 दिन रखें ऐसा तकरीबन एक महिने तक करें
नस्खाँ नम्बर (3) :- (1) माजून मुक्कवी रहम 7gm रात को लें।(2) सिरप निस्वानी 10-10 ml सुबह शाम ले।(3) हब्बे मरवारीद 2-2 टेबलेट सुबह शाम ले।
(4) शर्बत इकसीरे खास 7-7 ml सुबह शाम पानी के साथ ले।(5) फरजीन :- इसे मासिक आने के पश्चात पाक साफ होकर रात को सोते समय 2 बत्ती योनि के अन्दर गहराई में रखे। इसे तकरीबन एक महिने तक इस्तेमाल करें।
नस्खाँ नम्बर (4) :- (1) माजून सुहाग सोठ 7gm रात को सोते समय लें।(2) शर्बत फौलाद 7-7ml सुबह शाम ले। (3) कुर्स मुसल्लस 2-2 टेबलेट सुबह शाम ले।(4) कुर्स बैजाए मुर्ग 2-2 टेबलेट सुबह शाम ले। (5) मरहम हिकनोलीन इस मरहम को योनि में दिन में दो बार इस्तेमाल करें।
परहेंज :- खटटी – बादी और मसालेदार गिजा से परहेंज करें
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इन यूनानी नुस्खों को तकरीबन 45 दिन तक इस्तेमाल करें।
इन यूनानी नुस्खों से 80% मरीजो का ल्यूकोरिया ठीक हुआ ह हम अल्ला तआला से दुआ करते ह इन्नसा अल्ला आपको भी शिफा हो । आमीन
यूनानी व आयुर्वेदिक पैथी अपनाइये ओर सुवस्थ रहिये ।
-मोलाना हकीम सैफुलला ता िलब कासमी मेरठी
ता िलब दवाखाना ईदगाह रोड गुलावठी बुलनद श हर यूपी भारत
Phone 9897440400
What’s App9058315004

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रजोनिवृति (Menopause)-स्त्री को 6 महीने तक मासिकधर्म न आये तो यह मान लेना चाहिए कि उसे रजोनिवृति हो गई है-जानिये इसका इलाज

परिचय:-यह अधिकतर उन स्त्रियों को होता है जिनकी उम्र 45 से 50 वर्ष होती है। इसमें स्त्रियों का मासिकधर्म आना बंद हो जाता है। इसे ही रजोनिवृति कहते हैं। यदि किसी स्त्री को 6 महीने तक मासिकधर्म न आये तो यह मान लेना चाहिए कि उसे रजोनिवृति हो गई है। यदि 6 महीने बीत जाने पर फिर से मासिकधर्म हो जाये तो इसे रजोनिवृत्योन्तर रक्तस्राव (योनि से खून का निकलना) होना कहते हैं। रजोनिवृति के समय शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं जिनके लक्षणों से अक्सर स्त्रियां परेशान और भयभीत हो जाती हैं।
इस रोग से पीड़ित कुछ स्त्रियों को ऐसा भी लगने लगता है कि रजोनिवृति (मासिकधर्म बंद होना) होने के कारण उनके बुढापे का आरम्भ और सौंदर्य का अंत होना शुरू हो गया है लेकिन ये सभी प्रकार की शंकाएं गलत हैं।
रजोनिवृति रोग तीन प्रकार का होता है–
-पहला रजोनिवृति रोग वह है जिसमें स्त्री स्वस्थ तो होती है लेकिन बिना किसी परेशानी के उसका मासिकधर्म अचानक बंद हो जाता है व स्त्री को इस बात का पता भी नहीं चलता है।
-दूसरा रजोनिवृति रोग वह है जिसमें स्त्री का मासिकधर्म धीरे-धीरे कम होकर बंद हो जाता है।
-तीसरा रजोनिवृति रोग वह है जिसमें स्त्री का मासिकधर्म आने का चक्र अनियमित हो जाता है और मासिकधर्म के 2 चक्रों के बीच का अंतर बढ़ जाता है।
स्त्रियों को रजोनिवृति रोग होने का लक्षण:-जब रजोनिवृति (मासिकधर्म बंद होना) रोग किसी स्त्री को हो जाता है तो उस स्त्री को गर्मी अधिक लगने लगती है तथा उसके शरीर से पसीना निकलने लगता है।
-इस रोग से पीड़ित स्त्री को नींद पूरी नहीं आती है तथा मानसिक अवसाद हो जाता है।
-रोगी स्त्री के हृदय की धड़कन बढ़ जाती है तथा उसके हाथ-पैरों पर चीटियां सी रेंगने तथा सुई सी चुभन महसूस होती है।
-रोगी स्त्री के सिर में दर्द, कान में अजीब-अजीब सी आवाजें आना, जोड़ों में दर्द, कमर में दर्द तथा चिड़चिडा़पन हो जाता है।
-रजोनिवृति रोग से पीड़ित स्त्रियों की अत:स्रावी ग्रंथियां प्रभावित हो जाती हैं जिस कारण से उसकी आवाज भारी हो जाती है।
-रजोनिवृति रोग से पीड़ित स्त्रियों की दाढ़ी-मूंछ उगने लगती हैं तथा स्त्री को मोटापा रोग हो जाता है।
-पीड़ित स्त्री के बाल झड़ने लगते हैं तथा उसकी त्वचा रूखी हो जाती है और उसे थकावट भी होने लगती है।
-रजोनिवृति रोग से पीड़ित स्त्री का दिमाग कमजोर हो जाता है तथा उसमें मानसिक एकाग्रता की कमी हो जाती है।
रजोनिवृति रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-जब स्त्री को रजोनिवृति रोग हो जाता है तो उसे अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि स्त्री अपने खान-पान तथा दिनचर्या पर विशेष ध्यान देती है तो उसका स्वास्थ्य सही हो जाता है तथा रजोनिवृति हो जाने के बाद भी उसका स्वास्थ्य और सौंदर्य बना रहता है। अपनी सेहत पर अच्छी तरह से ध्यान देने से स्त्रियां कभी-कभी तो पहले से भी ज्यादा अच्छी तथा आकर्षक लगती हैं।
रजोनिवृति रोग होने के समय स्त्रियों की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्थिति बड़ी नाजुक होती है। इसलिए परिवार के सदस्यों को तथा खासतौर से पति को पत्नी के साथ सहानुभूति पूर्ण और सहयोगात्मक व्यवहार करना चाहिए।
रजोनिवृति के समय में स्त्रियों की देखभाल सही तरीके से न हुई हो तो उसे गर्भाशय से सम्बंधित रोग हो सकते हैं या फिर स्त्रियों को मानसिक रोग भी हो सकते हैं।
-रजोनिवृति रोग होने के लक्षण अधिक होना इस बात को बताते हैं कि रोगी स्त्री के शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव्य) बहुत अधिक है। इसलिए रोगी स्त्री को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।
-इस रोग से पीड़ित स्त्री को विटामिन `सी´, `डी´, `ई´ तथा कैल्शियम प्रधान भोजन करना चाहिए जिसमें फल, अंकुरित अन्न, सब्जियां, गिरी तथा मेवा अधिक मात्रा में हो। इसके अलावा रोगी स्त्री को फलों का रस अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। चुकन्दर का रस पीना भी बहुत अधिक लाभदायक होता है लेकिन इसे थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए।
-रजोनिवृति रोग से पीड़ित स्त्री को दूध में तिल मिलाकर प्रतिदिन पीने से रोगी स्त्री को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
-रोगी स्त्री को दूषित भोजन, मैदा, मिर्च-मसाले तथा चीनी से बनी चीजों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
-एक गिलास गाय के दूध में एक चम्मच गाजर के बीज डालकर और उबालकर प्रतिदिन पीने से रजोनिवृति रोग ठीक हो जाता है।
-यदि रोगी स्त्री के पेट में कब्ज बन रही हो तो उसे अपने पेट पर मिट्टी की गीली पट्टी का लेप करना चाहिए तथा इसके बाद एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए।
-सुबह के समय में स्त्रियों को सैर के लिए जाना चाहिए तथा कई प्रकार के व्यायाम भी करने चाहिए जैसे तैरना, साईकिल चलाना, घुड़सवारी आदि।
रजोनिवृति रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के योगासन तथा योगक्रियाएं हैं जिनको करने से यह रोग ठीक हो जाता है।
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देसी वियाग्रा ‘मूसली’ के फ़ायदों को जानकर हैरान रह जाएंगे!


विशेष। सफेद मूसली एक शक्‍तिवर्धक जड़ी बूटी है जो कि ज्‍यादातर यौन क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रयोग की जाती है। मगर ऐसा नहीं है कि इसका केवल एक ही काम हो, यह अन्‍य औषधीय गुणों से भी भरी हुई होती है। विश्‍व बाजार में इसकी बहुत मांग बढ़ी है। ताजा सफेद मूसली करीब १५०० से दो हजार रुपए किलो तक बिकती है।
आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा में इसका प्रयोग भरपूर होता है। मूसली में फिनोल, फ्रंक्‍टैंस, स्‍टेरायडल सैपोनिन्‍स, एसिटीलेटेड मननांस और प्रोटीन जैसे रासायनिक यौगिक होते हैं। अगर सफेद मूसली सुखा कर इसका चूर्ण दूध के साथ खाया जाए तो एक महीने के अंदर ही फायदा दिखना शुरु हो जाता है।
यह शरीर की थकान मिटा कर ताकत बढ़ाने के लिये भी फायदेमंद है। यही नहीं यह पेशाब में जलन, गठिया, कैंसर, मधुमेह, एंटी-एजिंग दवा, स्‍तनपान करवाने वाली माताओं में ब्रेस्‍ट मिल्‍क बढ़ाने के लिये और यहां तक कि बॉडी बिल्‍डिंग सप्‍पलीमेंट के रूप में भी प्रयोग की जाती है।
यह कैसे काम करती है? 
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सफेद मूसली में ऐसे रसायन होते हैं जो शरीर पर असर करते हैं। रिसर्च दृारा पता किया है कि मूसली में एंटी-इन्फ्लैमटोरी जैसे गुण हैं जो यौन क्षमता को बढा सकती है। आइये जानते हैं सफेद मूसली के अन्‍य फायदों के बारे में –
पेशाब में जलन
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सफेद मूसली की जड़ों के चूर्ण के साथ इलायची मिला कर दूध उबाल कर रोगी को दिन में दो बार पीने को दें।
पथरी
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इंद्रायण की सूखी जड़ का चूर्ण और सफेद मूसली की जड़ों का चूर्ण बनाएं। फिर रोज सुबह मरीज़ को एक गिलास पानी में इन दोनों चूर्णों की एक एक ग्राम खुराख मिला कर सात दिनों तक पिलाएं। इसेस पथरी गल कर बाहर निकल जाएगी।
बदन दर्द और थकान
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सफेद मूसली की जड़ों का चूर्ण बना कर रोजाना सेवन करें, इससे शरीर में शक्‍ति आएगी और आपका मूड भी अच्‍छा बनेगा। यह शरीर में खून के संचालन को तेज करती है जिससे शरीर एक्‍टिव बना रहता है।
टेस्टोस्टेरोन लेवल बढाए
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टेस्‍टोस्‍टेरान एक मेल हार्मोन होता है जो सेक्‍स क्षमता से संबन्‍धित होता है। मूसली टेस्‍टोस्‍टेरोन लेवल को बढ़ा कर यौन इच्‍छा की कमी को पूरी करती है।
महिलाओं के लिये
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यह महिलाओं में यौन इच्‍छा में आई कमी को भी बढ़ाता है और योनि का सूखापन भी खतम करता है।
बांझपन
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बांझपन के लिये यह बहुत अच्‍छा है क्‍योंकि इससे स्‍पर्म काउंट, वीर्य की मात्रा बढ़ती है और बांझपन दूर होता है।
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बालों का सफेद हो जाना एक प्रकार का रोग है:जानिये बचाव के तरीक़े:RAZIA DALVI


परिचय:-वैसे देखा जाए तो बढ़ती उम्र के साथ-साथ बालों का सफेद होना आम बात है, लेकिन समय से पहले बालों का सफेद हो जाना एक प्रकार का रोग है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके बाल दिनों दिन सफेद होने लगते हैं। बालों का सफेद होना एक चिंता का विषय है और विशेषकर महिलाओं के लिए। यदि बाल समय से पहले सफेद हो जाते हैं तो व्यक्ति की चेहरे की सुन्दरता अच्छी नहीं लगती है। इसलिए बालों के सफेद होने पर इसका इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है।
बालों के सफेद होने का कारण:-
1-असंतुलित भोजन तथा भोजन में विटामिन `बी´, लोहतत्व, तांबा और आयोडीन की कमी होने के कारण बाल सफेद हो जाते हैं।
2-मानसिक चिंता करने के कारण भी बाल सफेद होने लगते हैं।
3.-सिर की सही तरीके से सफाई न करने के कारण भी व्यक्ति के बाल सफेद होने लगते हैं।
4-कई प्रकार के रोग जैसे- साईनस, पुरानी कब्ज, रक्त का सही संचारण न होना आदि के कारण बाल सफेद हो सकते हैं।
5-रसायनयुक्त शैम्पू, साबुन, तेलों का उपयोग करने के कारण भी बाल सफेद हो सकते हैं।
6-अच्छी या पूरी नींद न लेने के कारण भी बाल सफेद हो सकते हैं।
7-बालों को सही तरीके से पोषण न मिलने के कारण भी ये सफेद हो जाते हैं।
8-अधिक क्रोध, चिंता और श्रम करने पर उत्पन्न हुई गर्मी और पित्त सिर की नाड़ियों तक पहुंचकर बालों को रूखा-सूखा तथा सफेद कर देती हैं।
9-अनियमित खान-पान तथा दूषित आचार-विचार के कारण भी बाल सफेद हो जाते हैं।
बालों के सफेद होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
1-इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को संतुलित भोजन, फल, सलाद, अकुंरित भोजन, हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
2-रोगी को गाजर, पालक, आंवले का रस अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
3-रोगी व्यक्ति को काले तिल तथा सोयाबीन का दूध पीना चाहिए।
4. इस रोग से बचने के लिए व्यक्ति को बादाम तथा अखरोट का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए।
5-गाय का घी खाने में प्रयोग करने से व्यक्ति के बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं तथा सफेद बालों की समस्या भी दूर हो जाती है।
6-आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को आपस में मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रख दें। सुबह के समय इसको मसलकर लेप बना लें फिर इसके बाद 15 मिनट तक इसे बालों में लगाएं। इस प्रकार से उपचार सप्ताह में 2 बार करने से बाल सफेद होना बंद होकर कुदरती काले हो जाते हैं।
7- गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एकसाथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। फिर इस लेप को अपने बालों पर सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए लगाएं। ऐसा करने से सफेद बाल काले होने लगते हैं।
8-चुकन्दर के पत्तों का लगभग 80 मिलीलीटर रस सरसों के 150 मिलीलीटर तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। फिर जब पत्तों का रस सूख जाए, तो आग पर से उतार लें। फिर इसे ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं और समय से पहले सफेद नहीं होते हैं। इससे बालों की कई प्रकार की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
9-बादाम के तेल तथा आंवले के रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इस तेल से रात को सोते समय सिर की मालिश करने से बाल सफेद होना बंद हो जाते हैं।
10-रात के समय तुलसी के पत्तों को पीसकर और इसमें आंवले का चूर्ण मिलाकर पानी में भिगोने के लिए रख दें। सुबह के समय में इस पानी को छानकर इससे सिर को धो लें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में सफेद बाल काले हो जाते हैं।
11-आंवले के चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर बालों में लगाने से बाल काले, घने तथा मजबूत हो जाते हैं।
12-बाल सफेद होने पर सूर्यतप्त आसमानी तेल से सिर की मालिश करने से बाल सफेद होना बंद हो जाते हैं।
13-बालों को सफेद होने से रोकने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को मानसिक दबाव तथा चिंता को दूर करना चाहिए और फिर इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।
14-कई प्रकार के योगासन (सर्वांगासन, मत्स्यासन, शवासन तथा योगनिद्रा) प्रतिदिन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसके बाल सफेद होना रुक जाते हैं।
15-भोजन करने के बाद खोपड़ी को खुजलाते हुए कंघी करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
बालों को झड़ने तथा सफेद होने से बचाने के लिए कुछ चमत्कारी बालों का तेल बनाने का तरीका-
1-सबसे पहले एक लोहे का बर्तन ले लें। इसके बाद इसमें 1 लीटर नारियल का तेल, 100 ग्राम आंवला, रीठा, शिकाकाई पाउडर, 1 बड़ा चम्मच मेंहदी, 2 चम्मच रत्नजोत पाउडर को एकसाथ मिलाकर सूर्य की रोशनी में कम से कम एक सप्ताह तक रखें। फिर इसके बाद इसे धीमी आग पर उबालें तथा उबलने के बाद इसको छानकर इसमें नींबू का रस तथा कपूर मिलाकर बोतल में भर कर रख दें। इसके बाद प्रतिदिन इस तेल को बालों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लम्बे घने और काले हो जाते हैं।
2-आधा किलो सूखे आंवले को कूटकर साफ कर लें तथा इसके बाद मुलैठी को कूटकर आपस में मिला लें। फिर इसमें आठ गुना पानी मिलाकर किसी बर्तन में इसे फूलने के लिए छोड़ दें। फिर सुबह के समय में इसे धीमी आग पर उबालने के लिए रख दें। इस मिश्रण को तब तक गर्म करना चाहिए, जब तक कि इसका पानी आधा न रह जाए। फिर इसे आग पर से उतार लें और इसे अच्छी तरह से मिलाकर छान लें। इसके बाद फिर से इस मिश्रण को तेल में मिलाकर आग पर गर्म करें तथा इसे तब तक गर्म करें जब तक कि इसका सारा पानी जल न जाये। इसके बाद इसे आग से उतार लें और इसमें इच्छानुसर सुगन्ध तथा रंग मिलाकर किसी बोतल में भर लें। इसके बाद प्रतिदिन इस तेल को बालों पर लगाएं। इस तेल को लगाने से सिर का दर्द, बालों का सफेद होना, बालों का झड़ना रुक जाता है तथा रोज इसके उपयोग से बाल लम्बे, घने तथा काले हो जाते हैं। इस तेल से सिर की खुश्की भी दूर हो जाती है।
3-250 ग्राम घिया (लौकी) को लेकर अच्छी तरह से पीस लें और फिर इसे महीन कपड़े से छानकर
–इसका सारा पानी बाहर निकाल लें। इसके बाद इसमें 250 मिलीलीटर नारियल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब तक तेल थोड़ा गर्म न हो जाए तब तक इसमें लौकी का निकाला हुआ पानी धीरे-धीरे डालते रहें और इसे उबलने दें। जब सारा पानी जल जाए तब इसको आग पर से उतार लें। इस तेल को ठंडा करके बोतल में भर दीजिए।
–इस तेल को प्रतिदिन बालों पर लगाने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं। इस तेल के उपयोग से सिर को ठंडक मिलती है। इस तेल को रोजाना इस्तेमाल करने से व्यक्ति की याद्दाश्त तेज होती है। पैर के तलवों में जलन होने पर इस तेल से पैर के तलवों की मालिश करने से बहुत आराम मिलता है। इस प्रकार से रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करने से रोगी के बालों से सम्बन्धित सारे रोग ठीक हो जाते है ।।

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‘अपरस’ एक प्रकार का चर्मरोग है जो संक्रामक होता है यह रोग सर्दियों के मौसम मे होता है:RAZIA DALVI


परिचय:-अपरस एक प्रकार का चर्मरोग है जो संक्रामक होता है। यह रोग सर्दियों के मौसम मे होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। इस रोग का प्रभाव व्यक्तियों की कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों तथा कंधों पर होता है।
अपरस रोग होने पर लक्षण:– जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी हो जाता है और फिर उस पर सफेद खुरंट जम जाते हैं। जब ये खुरंट छूटते हैं तो त्वचा से रक्त निकलने लगता हैं।

अपरस रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए।
अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिंकाई करके गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है।
रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नींबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए।
अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए।
रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोग ठीक हो सकता है ।।


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स्वप्नदोष:इस रोग को जल्दी ही ठीक कराना चाहिए नहीं तो रोगी के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है-जानिये इलाज


परिचय:-यह रोग एक प्रकार का पुरुषों का रोग है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रात में या जब व्यक्ति सो रहा होता है उस समय उसके लिंग में उत्तेजना होकर वीर्यपात हो जाता है। यदि स्वप्नदोष रोग के कारण महीने में 3 से 4 बार वीर्यपात हो जाता है तो रोगी के सिर में दर्द तथा बदन में सुस्ती नहीं होती है। लेकिन जब वीर्यपात इससे अधिक बार रात के समय में हो जाता है तो रोगी व्यक्ति का शरीर कमजोर होने लगता है। इस रोग को जल्दी ही ठीक कराना चाहिए नहीं तो रोगी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है तथा इसके कारण शरीर में और भी कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
स्वप्नदोष होने का कारण:-इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में विजातीय द्रव्य (दूषित द्रव) का जमा हो जाना होता है, जब यह दूषित द्रव शरीर के स्नायुजाल में रोग उत्पन्न करता है तो यह रोग हो जाता है।
जो व्यक्ति सेक्स के बारे में अधिक सोचता है तथा अनुचित ढंग से सैक्स क्रिया करता है उसे यह रोग हो जाता है।
कुछ व्यक्ति दिन के समय में सैक्स के बारे में अधिक सोचते हैं तथा सैक्स की अनुचित क्रिया करते हैं जिसके कारण उन्हें सैक्स के बारे में सपने आते हैं जिसके कारण रात को सोते समय उनमें अधिक उत्तेजना हो जाती है और उन व्यक्तियों का वीर्यपात हो जाता है।
शरीर में अधिक कमजोरी आने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
हस्तमैथुन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।


स्वप्नदोष रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। इसके बाद इस रोग को इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए।
स्वप्नदोष रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को 24 घण्टे तक उपवास रखना चाहिए तथा उपवास रखने के समय में कागजी नींबू के रस को पानी में मिलाकर पीना चाहिए। इसके बाद दो से तीन दिनों तक फलों का रस पीना चाहिए। उपवास रखने के समय में सुबह तथा शाम को रोगी व्यक्ति को एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप शरीर का दूषित जल शरीर के बाहर हो जाता है और स्वप्नदोष रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में गाय का दूध पीना चाहिए। फल का सेवन करना चाहिए तथा शाम के समय में उबली हुई साग-सब्जियां और सलाद का सेवन करना चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को यदि पेट में कब्ज बन रहा हो तो कब्ज को ठीक करने के लिए व्यक्ति को एनिमा क्रिया करनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप स्वप्नदोष रोग ठीक हो जाता है।
स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को चोकरयुक्त आटे की रोटी का सेवन करना चाहिए तथा एक दो प्रकार की उबली हुई साग-सब्जियां और सलाद का सेवन करना चाहिए।
स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में शौच करना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेड़ू तथा जननेन्द्रिय पर मिट्टी की गीली पट्टी 45 मिनट तक लगानी चाहिए, इसके बाद कम से कम 10 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद दोपहर के समय में अपने रीढ़ पर कपडे़ की गीली पट्टी 30 मिनट के लिए रखना चाहिए। फिर रोगी को दूसरे दिन 10 मिनट तक मेहनस्नान करना चाहिए। इस प्रकार कुछ दिनों तक उपचार करने से स्वप्नदोष रोग ठीक हो जाता है ।।

स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में शौच करना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेड़ू तथा जननेन्द्रिय पर मिट्टी की गीली पट्टी 45 मिनट तक लगानी चाहिए, इसके बाद कम से कम 10 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद दोपहर के समय में अपने रीढ़ पर कपडे़ की गीली पट्टी 30 मिनट के लिए रखना चाहिए। फिर रोगी को दूसरे दिन 10 मिनट तक मेहनस्नान करना चाहिए। इस प्रकार कुछ दिनों तक उपचार करने से स्वप्नदोष रोग ठीक हो जाता है।


रोगी व्यक्ति को सैक्स के प्रति सारी अनुचित क्रिया छोड़ देनी चाहिए और इसके बारे में अधिक नहीं सोचना चाहिए। फिर इसके बाद अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को रात के समय में अपने कमर पर गीली पट्टी करनी चाहिए तथा पेडू पर मिट्टी की पट्टी करनी चाहिए।
यदि रोगी व्यक्ति को हस्तमैथुन करने की आदत पड़ गई हो तो उसे यह क्रिया जल्दी ही छोड़ देनी चाहिए और फिर अपना उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए तभी यह रोग ठीक हो सकता है।
स्वप्नदोष रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी या हल्के नीले रंग की कांच की बोतल के सूर्यतप्त जल को कम से कम 28 मिलीलीटर की मात्रा प्रतिदिन सेवन करना चाहिए तथा रात के समय में सोने से पहले हल्के नीले रंग की बोतल के सूर्यतप्त तेल की मालिश अपने मेरुदंड के निचले हिस्से पर तथा हृदय पर कम से कम पांच मिनट तक करना चाहिए।


रोगी व्यक्ति को अंडकोष तथा जननेन्द्रियों को पांच मिनट तक किसी ठंडे पानी से भरे हुए बर्तन में रखना चाहिए तथा फिर पानी से इसे निकालकर पोंछ लें और पैरों को घुटनों तक, बांहों को कोहनियों तक, गले के पिछले भाग को तथा नाभि को ठंडे पानी से अच्छी तरह धोकर तौलिये से पोछना चाहिए। इसके बाद एक गिलास गरम पानी में आधा कागजी नींबू का रस निचोड़कर-पीकर दाहिनी करवट लेट जाना चाहिए। रात के समय में यदि नींद खुल जाए तो ठंडे पानी से भीगे तौलिये से पूरे शरीर को पोछना चाहिए और इसके बाद दुबारा सो जाना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए तथा कम से कम पांच मिनट तक गर्दन के पीछे तथा रीढ़ पर ठंडे पानी की धार गिरने देना चाहिए।
स्वप्नदोष रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को सुबह तथा शाम को सर्वांगासन, शीर्षासन, अंगूठापादासन, धनुरासन तथा सर्पासन करना चाहिए और दिन में दो से तीन बार गहरे सांस का व्यायाम करना चाहिए। यह क्रिया यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन करें तो उसका स्वप्नदोष रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है ।

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