जानिए की कैसे और किस शुभ घड़ी में करें श्रावण मास में भगवान शिव का पूजन—
भगवान शिव की भक्ति का प्रमुख माह श्रावण .. जुलाई 20.6 से प्रारंभ होने जा रहा है। पूरे माह भर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का दौर जारी रहेगा। सभी शिव मंदिरों में श्रावण मास के अंतर्गत विशेष तैयारियां की गई हैं। चारों ओर श्रद्धालुओं द्वारा ‘बम-बम भोले और ॐ नम: शिवाय’ की गूंज सुनाई देगी। शिवालयों में श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ नजर आएंगी। धार्मिक पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शिवजी को एक बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है।
एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। साथ ही शिव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म, भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय होने के कारण यह सभी चीजों खास तौर पर अर्पित की जाती है। इसके साथ ही श्रावण मास शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं मंत्र जाप करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश होता है।
वैसे इस बार श्रावण 20 जुलाई 2016 (बुधवार) से प्रारंभ होगा और 18 अगस्त 2016 (गुरुवार) तक चलेगा || श्रावण का यह महीना भक्तों को अमोघ फल देने वाला है। माना जाता है कि भगवान शिव के त्रिशूल की एक नोक पर काशी विश्वनाथ की पूरी नगरी का भार है। उसमें श्रावण मास अपना विशेष महत्व रखता है।इस दफा 02 अगस्त 2016 (मंगलवार) को हरियाली अमावस्या,मंगला गोरी व्रत,पितृ कार्य अमवस्या भी आएगी || 05 अगस्त 2016 (शुक्रवार) को हरियाली तीज भी मनाई जाएगी ||
ध्यान रखें—
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस वर्ष श्रावण संक्रांति में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे|| श्रावण संक्रान्ति का समय 16 जुलाई 2016, शनिवार के दिन, अनुराधा नक्षत्र कालीन समय पर आरंभ होगी. श्रावण संक्रांति का पुण्य काल प्रात: सूर्योदय से सांय 16:.9 तक रहेगा और श्रावण मास में 21 जुलाई 2016 के दिन 27:42 से प्रारम्भ होगें तथा ये 26 जुलाई 11:06 तक रहेगें. इन पांच दिनों में शुभ कार्य करने से बचना चाहिए ||
इस दौरान खास तौर पर महिलाएं श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास रखकर पति की लंबी आयु की प्रार्थना भोलेनाथ से करती हैं। खास कर सभी व्रतों में सोलह सोमवार का व्रत श्रेष्ठ माना जाता है।
श्रावण शिव का अत्यंत प्रिय मास है। इस मास में शिव की भक्ति करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनके पूजन के लिए अलग-अलग विधान भी है। भक्त जैसे चाहे उनका अपनी कामनाओं के लिए उनका पूजन कर सकता है। इस मास में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए || इसके साथ ही इस मास में “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है|| इस मास के प्रत्येक मंगलवार को श्री मंगलागौरी का व्रत, पूजानादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों को विवाह, संतान व सौभाग्य में वृ्द्धि होती है |
शवे भक्ति:शिवे भक्ति:शिवे भक्तिर्भवे भवे ।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरंण मम्।।
उच्चारण में अत्यंत सरल शिव शब्द अति मधुर है। शिव शब्द की उत्पत्ति वश कान्तौ धातु से हुई हैं। जिसका तात्पर्य है जिसको सब चाहें वह शिव हैं ओर सब चाहते हैं आंनद को अर्थात शिव का अर्थ हुआ आंनद।
इस व्रत को वैशाख, श्रावण मास, कार्तिक मास और माघ मास में किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। इस व्रत की समाप्ति पर सत्रहवें सोमवार को सोलह दंपति को भोजन व किसी वस्तु का दान उपहार देकर उद्यापन किया जाता है।
सम्पूर्ण विश्व में शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्श न को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिर और घर में स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। हिन्दू धर्म परंपराओं में प्रदोष काल यानी दिन-रात के मिलन की घड़ी में भगवान शिव की पूजा व उपासना बहुत शुभ फलदायी मानी गई है।
– शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करें। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरूर चढ़ावें। स्नान के बाद भगवान शंकर के साथ-साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल चढ़ाएं। इससे संपन्नता आती है। सावन के महीने में बैंगन नहीं खाना चाहिए। बैंगन को अशुद्ध माना गया है इसलिए द्वादशी, चतुर्दशी के दिन और कार्तिक मास में भी इसे खाने की मनाही है।
– शिव जी की अराधना सुबह में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– शाम में शिव साधना पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए।
– अगर आप रात्रि में शिव उपासना करते हैं तो आपका मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
श्रावण मास में भगवान शिव का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जैसे जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुश और जल से शांति, गन्ने के रस से लक्ष्मी, मधु व घी से धन की प्राप्ति, दूध से संतान सुख, जल की धारा और बेलपत्र से मन की शांति, एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से वंश वृद्धि एवं मृत्युंजय मंत्रों के जाप से रोगों से मुक्ति और स्वस्थ एवं सुखी जीवन की प्राप्ति होती है।
पण्डित “विशाल”दयानन्द शास्त्री के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ऊं नम: शिवाय’ का नियमित जाप, तन-मन को शुद्ध करता है। विधि व सच्चें मन से की गई उपासना कभी व्यर्थ नहीं जाती और शिव जी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं।।।
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सावन महीने के पहले सोमवार पर समूचा देश आज शिवमय होने जा रहा है। देश के शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। सुरक्षा के मद्देनजर शासन-प्रशासन की तरफ से विशेष व्यवस्था की गई है। देश भर के मंदिरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। सावन महीने के प्रथम सोमवार पर राज्य के सभी शिव मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। श्रद्धालुओं ने मंदिरों के अलावा अपने घरों में भी पूजा-अर्चना के लिए विशेष तैयारियां की हैं।
मंदिरों के आस पास पूजा सामग्री जैसे धतूरा, बेल-पत्र, फूल-माला और प्रसाद आदि की दुकानें सज गईं हैं। काशी (वाराणसी), इलाहाबाद, मथुरा, अयोध्या सहित पूरे देश में सावन के प्रथम सोमवार को लेकर भक्तों में खासा उत्साह है। देश के मंदिरों में सोमवार तड़के से ही भक्तों का ताता लगा हुआ है। ओम नम: शिवाय के जाप के साथ श्रद्धालु महादेव का दर्शन और अभिषेक कर रहे हैं।
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“सावन/श्रावण माह का महत्व”—
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पांचवा महीना जो ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है, श्रावण माह कहलाता है । इसे वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है क्यों कि इस समय भारत में काफ़ी वर्षा होती है । सावन का महीना रिमझिम फुहारों और हरियाली से मन को आनंदित कर देता है। इसी महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है भारत में रक्षाबंधन के त्योहार के रूप में।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार हमारे शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है|| श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है|| श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है|| इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है|| धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है. इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है||शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में दूध का सेवन अच्छा नही होता है। यही कारण है कि सावन में भगवान शिव का दूध से अभिषेक करने की बात कही गई है। इससे वात संबंधी दोष से बचाव होता है।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार सभी हिंदी माह/मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है उसी प्रकार श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है|| यह माह आशाओं की पुर्ति का समय होता है जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेडों को सहती उई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम दिखाता है ओर सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है|| यूं तो परिवार में कलह को कभी भी अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन सावन के महीने में जीवनसाथी के साथ वाद-विवाद और अपश्ब्दों का प्रयोग हानिकारक होता है। इन दिनों शिव पार्वती की पूजा से दांपत्य जीवन में प्रेम और तालमेल बढ़ता है इसलिए किसी बात से मन मुटाव की आशंका होने पर शिव पार्वती की पूजा करनी चाहिए और प्रेम एवं सामंजस्य के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षा बंधन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। हमारे त्योहारों की यही विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसा श्रावण यह हिंदी कैलेंडर में पांचवे स्थान पर आता हैं। यह वर्षा ऋतू में प्रारंभ होता हैं । शिव जिनको श्रावण का देवता कहा जाता हैं उन्हें इस माह में भिन्न- भिन्न तरीकों से पूजा जाता हैं। पुरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं शिव उपासना, व्रत, पवित्र नदियों में स्नान एवम शिव अभिषेक का महत्व हैं। विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं । कई महिलायें पूरा सावन महीना सूर्योदय के पूर्व स्नान कर उपवास रखती हैं। कुवारी कन्या अच्छे वर के लिए इस माह में उपवास एवम शिव की पूजा करती हैं । विवाहित स्त्री पति के लिए मंगल कामना करती हैं। भारत देश में पुरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता हैं।
पवित्र माह:-
हिन्दू परिवारों में सावन को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण महीने के तौर पर देखा जाता है । इसकी महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सावन के माह में मांसाहार पूरी तरह त्याज्य होता है और शाकाहार को ही उपयुक्त माना गया है । इसके अलावा मदिरा पान भी निषेध माना गया है ।
लेकिन ऐसा क्या है जो सावन के माह को इतना विशिष्ट बनाता है ?
हरियाली तीज:-
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसा श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। यह मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती महिला गौरी शंकर की पूजा करती है।
श्रावण/ सावन सोमवार व्रत का महत्व:—
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसा सोमवार का स्वामी भगवान शिव को माना जाता हैं। पुरे वर्ष में सोमवार को शिव भक्ति के लिए उत्तम माना जाता हैं। अत : शिव प्रिय होने के कारण श्रावण के सोमवार का महत्व अधिक बढ़ जाता हैं। श्रावण में पाँच अथवा चार सोमवार आते हैं जिनमे पूर्ण व्रत रखा जाता हैं । संध्या काल में पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता हैं। शिव जी की पूजा का समय प्रदोषकाल में की जाती हैं।
यह महीना बारिशों का होता है, जिससे कि पानी का जल स्तर बढ़ जाता है। मूसलाधार बारिश नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए शिव पर जल चढ़ाकर उन्हें शांत किया जाता है । महाराष्ट्र में जल स्तर को सामान्य रखने की एक अनोखी प्रथा विद्यमान है। वे सावन के महीने में समुद्र में जाकर नारियल अर्पण करते हैं ताकि किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंच पाए।
काँवर यात्रा :-
श्रावण में काँवर यात्रा का बहुत अधिक महत्व हैं। इसमें लोग भगवा वस्त्र धारण करके पवित्र नदियों के जल को एक काँवर में बाँधकर पैदल चलकर शिवलिंग पर उस जल को चढ़ाते हैं। काँवर एक बाँस का बना होता हैं जिसमे दोनों तरफ छोटी सी मटकी होती हैं जिसमे जल भरा होता हैं और उस बाँस को फूलों एवम घुन्घुरों से सजाया जाता हैं। साथ ही “बोल बम” का नारा लिए कई काँवर यात्री श्रृद्धा पूर्वक पद यात्रा कर पवित्र जल को शिवलिंग पर अर्पण करते हैं। यह कार्य पुरुषों द्वारा किया जाता हैं। अतः श्रावण का यह महीना स्त्री एवम पुरुषों दोनों के द्वारा अपने- अपने तरीकों द्वारा मनाया जाता हैं। भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी माना जाता है।
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जानिए क्यों करें जलाभिषेक के साथ पूजन–
भगवान शिव इसी माह में अपनी अनेक लीलाएं रचते हैं. इस महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है. पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर श्रावण माह का स्वरुप प्रकाशित होता है. श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक कराते हैं. शिवलिंग का रुद्राभिषेक भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इन दिनों शिवलिंग पर गंगा जल द्वारा अभिषेक करने से भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं.
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसा शिवलिंग का अभिषेक महाफलदायी माना गया है. इन दिनों अनेक प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है. जैसे कि जल से वर्षा और शितलता कि प्राप्ति होती है. दूग्धा अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान कि प्राप्ति होती है. ईख के रस से धन संपदा की प्राप्ति होती है. कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है. दधि से पशु धन की प्राप्ति होती है ओर शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
सावन/श्रावण महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक का महत्व—
इस श्रावण मास में शिव भक्त ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है. शिव का श्रावण में जलाभिषेक के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवों ओर राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन समय समुद्र में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्राथना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया.
जिससे उनका कंठ नीला हो गया समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल के पान से भगवान शिव भी तपन को सहा अत: मान्यता है कि वह समय श्रावण मास का समय था और उस तपन को शांत करने हेतु देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं||
पार्थिव पूजन का लाभ व महात्यम—
शिवोपासना में पार्थिव पूजा का भी विशेष महत्व होने के साथ-साथ शिव की मानस पूजा का भी महत्व है। इस साल श्रावण मास में चार ही सोमवार पड़ेंगे। तेरह अगस्त को श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के साथ इस पुण्य पवित्र मॉस का समपान हो जायेगा।
इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर कुछ विशेष वास्तु अर्पित की जाती है जिसे शिवामुट्ठी कहते है। जिसमें प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी, दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी, तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी, चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और यदि जिस मॉस में पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं और यदि पांच सोमवार न हो तो आखरी सोमवार को दो मुट्ठी भोग अर्पित करते है।
श्रावण माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। शिव पूजा में शिवलिंग पर रुद्राक्ष अर्पित करने का भी विशेष फल व महत्त्व है क्यूंकि रुद्राक्ष शिव नयन जल से प्रगट हुआ इसी कारण शिव को अति प्रिय है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए महादेव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भाँग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है।
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लिंग पूजन क्यूँ करते है…?
देह से कर्म-कर्म से देह-ये ही बंधन है, शिव भक्ति इस बंधन से मुक्ति का साधन है, जीव आत्मा तीन शरीरो से जकड़ी है स्थूल शरीर- कर्म हेतु, सूक्ष्म शरीर- भोग हेतु, कारण शरीर -आत्मा के उपभोग हेतु, लिंग पूजन समस्त बंधन से मुक्ति में परम सहायक है तथा स्वयंभू लिंग की अपनी महिमा है और शास्त्रों में पार्थिव पूजन परम सिद्धि प्रद बताया गया है|
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श्रावण/सावन महीने में दिन अनुसार शिव पूजा का फल-
रविवार- पाप नाशक
सोमवार- धन लाभ
मंगलवार- स्वस्थ्य लाभ, रोग निवारण
बुधवार- पुत्र प्राप्ति
गुरूवार- आयु कारक
शुक्रवार- इन्द्रिय सुख
शनिवार- सर्व सुखकारी
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जानिए सावन/श्रावण माह में शिव पूजा हेतु शास्त्रोक्त उत्तम स्थान—
तुलसी, पीपल व वट वृक्ष के समीप
नदी, सरोवर का तट, पर्वत की चोटी, सागर तीर
मंदिर, आश्रम, तीर्थ अथवा धार्मिक स्थल, पावन धाम, गुरु की शरण में ||
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जानिए श्रावण/सावन महीने में शिव पूजा व पुष्प का प्रभाव/महत्त्व—
बिल्वपत्र- जन्म जन्मान्तर के पापो से मुक्ति (पूर्व जन्म के पाप आदि)
कमल- मुक्ति, धन, शांति प्रदायक
कुशा- मुक्ति प्रदायक
दूर्वा- आयु प्रदायक
धतूरा- पुत्र सुख प्रदायक
आक- प्रताप वृद्धि
कनेर- रोग निवारक
श्रंघार पुष्प- संपदा वर्धक
शमी पत्र- पाप नाशक
शिव अभिषेक व पूजा में प्रयुक्त द्रव्य विशेष के फल-
मधु- सिद्धि प्रद
दुग्ध से- समृद्धि दायक
कुषा जल- रोग नाशक
ईख रस- मंगल कारक
गंगा जल- सर्व सिद्धि दायक
ऋतू फल के रस- धन लाभ
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शिव आराधना के मंत्र व अनुष्ठान—
|| नमोस्तुते शंकरशांतिमूर्ति | नमोस्तुते चन्द्रकलावत्स ||
|| नमोस्तुते कारण कारणाय | नमोस्तुते कर्भ वर्जिताय ||
अथवा
|| ॐ नमस्तुते देवेशाय नमस्कृताय भूत भव्य महादेवाय हरित पिंगल लोचनाय ||
अथवा
|| ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः ||
अथवा
|| ॐ दक्षिणा मूर्ति शिवाय नमः ||
अथवा
|| ॐ दारिद्र्य दुःख दहनाय नम: शिवाय ||
अथवा
|| वृषवाहनः शिव शंकराय नमो नमः | ओजस्तेजो सर्वशासकः शिव शंकराय नमो नमः ||
श्रावण मास में शिव की उपासना करते समय पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ और ‘महामृत्युंजय’ आदि मंत्र जप बहुत महत्व्यपूर्ण माना गया है। इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। समस्त उपद्रवों की शांति तथा अभीष्ट फल प्राप्ति के निमित्त रूद्राभिषेक आदि यज्ञ-अनुष्ठानचमत्कारी प्रभाव देते है। श्री रामचरित मानस, शिवपुराण, शिवलीलामृत, शिव कवच, शिव चालीसा, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव पंचाक्षर स्त्रोत, महामृत्युंजय मंत्र का पाठ एवं जाप श्रावण मॉस में विशेष फल कहा गया है|
श्रावण मॉस में राम कथा-
आपने यह अनुभव किया होगा की श्रावण मॉस में श्री रामचरित मानस की कथा व पाठ जगह जगह होते है इसका कारण यह है के स्वयं श्री महादेव ने माँ पार्वती से कहा –
|| उमा कहू में अनुभव अपना | सत हरी भजन जगत सब सपना ||
तो इस कारण श्रावण मॉस में भक्तगण शिव मंदिर में शिव जो को मानस का पाठ सुनाते है और इसका मॉस परायण सविधि अनुष्ठान करते है|
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जानिए वर्ष 2016 के श्रावण/सावन महीने में आने वाले मुख्य पर्व-त्यौहार–
कामिका एकादशी 2016, 30 जुलाई—–
कामिक एकादशी के दिन श्री हरि का पूजन करना चाहिए. पितरों का उद्वार करने के लिये इस व्रत को सबसे अधिक उतम कहा गया है. कामिका एकाद्शी का व्रत रखने के साथ जो जन रात्रिं में विष्णु स्तोत्रों का पाठ करता है, उसके कष्टों में कमी होती है. लालमणि, मोती, दूर्वा और मूंगे आदि से भगवान विष्णु की पूजा करना हितकारी रहता है||
श्री विष्णु को तुलसी की पूजा अतिप्रिय है. इसलिये जब विष्णु का पूजन तुलसी से किया जाता है तो वे शीघ्र प्रसन्न होते है. एकादशी तिथि को दिन रात में दीपदान करने से कई यज्ञों के समान फल मिलता है. कामिका एकादशी का व्रत कर श्री हरि का पूजन करने से पाप रुपी संसार से मुक्ति मिलती है||
प्रदोष व्रत 2016, 31 जुलाई —-
प्रदोष व्रत कृ्ष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष कि त्रयोदशी अर्थात दोनों पक्षों की तेरहवीं तिथि को रखा जाता है. इस व्रत को भगवान शिव के लिये किया जाता है. प्रदोष व्रत व श्रावण मास दोनों इस तिथि में होने के कारण इस व्रत की शुभता इस माह में बढ जाती है. श्रावण मास में विशेष रुप से शिव का पूजन किया जाता है, तथा प्रदोष व्रत भी भगवान शिव का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिये किया जाता है. इस दिन उपावस कर पूरे दिन भगवान भोलेनाथ का स्मरण करना चाहिए. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में इस उपवास का समापन होता है||
हरियाली तीज / सिंघारा तीज 2016, 5 अगस्त —–
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तीया तिथि का दिन हरियाली तीज या सिंघारा तीज के नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार विशेष रुप से नवविवाहित व विवाहित महिलाओं के द्वारा किया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हरियाली तीज को शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है||
इस प्रकार यह पर्व आस्था ओर प्राकृ्तिक सौन्दर्य और चारों ओर हरियाली छाने से मन में उठने वाली उंमग का है. इस दिन बारिश होने पर इस त्यौहार की छटा ओर भी बढ जाती है. इस दिन झूले डाल कर लोकगीतों गायन और नाच के इस त्यौहार को मनाया जाता है. व विशेष रुप से माता- पार्वती की पूजा की जाती है||
नाग-पंचमी 2016, 7 अगस्त —
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसा प्रत्येक वर्ष की श्रावण मास, शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है. इस मास में नाग देव की पूजा करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है. विधिपूर्वक विधि-विधान से इस दिन उपवास रख नागों की प्रतिमा या चित्र का पूजन करना शुभ रहता है. इस दिन घर की दहलीज को गोबर से लीप कर शुद्ध कर दुर्वा, दूध ओर कुशा सहित पूजा की जाती है. इस प्रकार पूजन करने से सर्पो का भय नहीं रहता||
पवित्रा एकाद्शी 2016, 14 अगस्त —-
श्रावण मास में 14 अगस्त के दिन एकादशी तिथि रहेगी. यह एकादशी पवित्रा नाम से रहेगी. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिये एकादशी का उपवास किया जाता है||
श्रावणी पूर्णिमा, रक्षा बन्धन 2016, 18 अगस्त —
भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व रक्षा बन्धन, वर्ष 2016 में 18 अगस्त के दिन मनाया जायेगा. इस पर्व के दिन बहने अपने भाईयों कि कलाई पर राखी बांधती है, तथा भाई अपनी बहनों को उपहार व रक्षा का वचन देते है. प्राचीन काल से ही यह पर्व भावनात्मक बंधन व बहन के प्रति एक भाई की जिम्मेदारियों का स्मरण कराने का दिन है. रक्षा- बंधन के दिन भद्रा समय के बाद राखी बांधी जाती है ||
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