हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। इस बार गायत्री जयंती का पर्व 28 मई,2015 (गुरुवार) को है।मां गायत्री को हमारे वेद शास्त्रों में वेदमाता कहा गया है। मां गायत्री की महिला चारों ही वेद गाते हैं, जो फल चारों वेदों के अध्ययन से होता है, वह एक मात्र गायत्री मंत्र के जाप से हो सकता है, इसलिए गायत्री मंत्र की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है।
भगवान मनु कहते हैं कि जो पुरुष प्रतिदिन आलस्य त्याग कर तीन वर्ष तक गायत्री का जप करता है, आकाश की तरह व्यापक परब्रह्य को प्राप्त होता है।
जप तीन प्रकार का होता है-वाचिक, उपांशु एवं मानसिक। इन तीनों यज्ञों में जप उत्तरोत्तर श्रेष्ठ है। जप करने वाला पुरुष आवश्यकतानुसार ऊंचे, नीचे और समान स्वरों में बोले जाने वाले शब्दों का वाणी से सुस्पष्ट उच्चारण करता है, वह वाचिक जप कहलाता है।
जिस जप में मंत्र का उच्चारण बहुत धीरे-धीरे किया जाए, होंठ कुछ-कुछ हिलते रहें और मंत्र का शब्द कुछ-कुछ स्वयं ही सुने, वह जप उपांशु कहलाता है।
पतितपावनी गंगा का महत्व भारतीय समाज में कितना है, इसे में नहीं लिखा जा सकता। पुण्यसलिला, त्रिविधि पापनाशिनी भागीरथी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन इस धराधाम पर अवतरित हुई, इसलिए इस पर्व को गंगा दशहरा कहा जाता है। दस महापातक गंगा का तत्वदर्शन जीवन में उतारने से छूट जाते है, ऐसी मान्यता है। गंगा के सामान ही पवित्रतम हिंदूधर्म का आधारस्तंभ गायत्री महाशक्ति के अवतरण का दिन भी यही पावन तिथि है, इसलिए इसे गायत्री जयंती के रूप में मनाया जाता है। गायत्री को वेदमाता, ज्ञान- गंगोत्री एवं आत्मबल- अधिष्ठात्री कहते है। यह गुरु मंत्र भी है एवं भारतीय धर्म के ज्ञान विज्ञान का स्रोत भी। गायत्री को एक प्रकार से ज्ञान गंगा भी कहा जाता है एवं इस प्रकार गायत्री महाशक्ति एवं गंगा दोनों का अवतरण एक ही दिन क्यों हुआ, यह भलीप्रकार स्पष्ट हो जाता है। भागीरथ ने ताप करके गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारा था, तो विश्वामित्र ने प्रचंड तपसाधना करके गायत्री को देवताओं तक सीमित न रहने देकर सर्वसाधारण के हितार्थाय जगत तक पहुँचाया।
धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।
हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।
गायत्री जयंती की वेला में साधना के परिप्रेक्ष्य में अपनी गुरुसत्ता के जीवनक्रम का अध्ययन करने वाले हम सभी जिज्ञासुओं को उस युग-भगीरथ का गायत्री साधक के रूप में सच्चे ब्राह्मणत्व रूपी उर्वर भूमि में ही गायत्री साधना का बीज पुष्पित-पल्लवित हो वटवृक्ष बन पता है। गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है, मूलमंत्र से जिसने अपनी शैशव अवस्था आरम्भ की थी, उसने जीवनभर जीवन-साधना की ब्राह्मण बनने की। ‘ब्राह्मण’ शब्द आज एक जाति का परिचायक हो गया है। ब्राह्मणवाद, मनुवाद न जाने क्या कहकर उलाहने दिये जाते है परमपूज्य गुरुदेव ने ब्राह्मणत्व को सच्चा अध्यात्म नाम देते हुए कहा की हर कोई गायत्री के महामंत्र के माध्यम से जीवन-साधना द्वारा ब्राह्मणत्व अर्जित कर सकता है। उन्होंने ब्राह्मणत्व को मनुष्यता का सर्वोच्च सोपान कहा।
आज जब समाज ही नहीं समग्र राजनीति जातिवाद से प्रभावित नजर आती है, तो समाधान इस वैषम्य के निवारण का एक ही है – परमपूज्य गुरुदेव के ब्राह्मणत्व प्रधान तत्वदर्शन का घर-घर विस्तार। न कोई जाति का बंधन हो, न धर्म-सम्प्रदाय का। सभी विश्वमानवता की धुरी में बांधकर यदि सच्चे ब्राह्मण बनने का प्रयास करे, समाज से कम-से-कम लेकर अधिकतम देने की प्रक्रिया सीखे सकें, आदर्श जीवन जी सके, तो सतयुग की वापसी दूर नहीं है। गायत्री साधक के रूप में सामान्य जन को अमृत,पारस,कल्पवृक्ष रूपी लाभ सुनिश्चित रूप से आज भी मिल सकते है, पर उसके लिए पहले ब्राह्मण बनना होगा। गुरुवर के शब्दों में ” ब्राह्मण की पूँजी है- विद्या और तप। अपरिग्रही ही वास्तव में सच्चा ब्राह्मण बनकर गायत्री की समस्त सिद्धियों का स्वामी बन सकता है, जिसे ब्रह्मवर्चस के रूप में प्रतिपादित किया गया है।” सतयुग, ब्राह्मण युग यदि अगले दिनों आना है तो आएगा, यह इसी साधना से, जिसे बड़े सरल बनाकर युगऋषि हमें सूत्र रूप में दे गए एवं अपना जीवन वैसा जीकर चले गए।
तत्त्वदर्शी ऋषियों ने कहा है दुर्लभा सर्वमंत्रेषु गायत्री प्रणवान्विता अर्थात्- प्रणव (ॐ) से युक्त गायत्री सभी मन्त्रों में दुर्लभ है। इसीलिए त्रिपदा गायत्री को उसके शीर्ष पद के साथ ही जपने का विधान इस विज्ञान विशेषज्ञों ने बनाया है। युगऋषि ने लिखा है कि परब्रह्म निराकार, अव्यक्त है। अपनी जिस अलौकिक शक्ति से वह स्वयं को विराट रूप में व्यक्त करता है, वह गायत्री है। इसी शक्ति के सहारे जीव मायाग्रस्त होकर विचरण करता है और इसी के सहारे माया से मुक्त होकर पुनः परमात्मा तक पहुँचता है। गायत्री मंत्र के शीर्ष पद और तीनों चरणों के निर्देशों का अनुगमन- अनुपालन करता हुआ साधक सुखी, समुन्नत जीवन जीता हुआ इष्ट लक्ष्य तक पहुँच सकता है।
गायत्री मंत्र को जगत की आत्मा माने गए साक्षात देवता सूर्य की उपासना के लिए सबसे सरल और फलदायी मंत्र माना गया है. यह मंत्र निरोगी जीवन के साथ-साथ यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य देने वाली होती है। लेकिन इस मंत्र के साथ कई युक्तियां भी जुड़ी है. अगर आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की पवित्रता के साथ जरूरी माना गया है।
वेदमाता मां गायत्री की उपासना 24 देवशक्तियों की भक्ति का फल व कृपा देने वाली भी मानी गई है। इससे सांसारिक जीवन में सुख, सफलता व शांति की चाहत पूरी होती है। खासतौर पर हर सुबह सूर्योदय या ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप ऐसी ही कामनाओं को पूरा करने में बहुत शुभ व असरदार माना गया है।
शीर्ष :- गायत्री मंत्र का शीर्ष है ॐ भूर्भुवः स्व। ॐ को अक्षरब्रह्म, परब्रह्म- परमात्मा का पर्याय कहा गया है। सूत्र है, तत्सवाचकः प्रणवः अर्थात् ॐ परमात्मा का बोधक है। सृष्टि विकास के क्रम में कहा गया है कि ओंकार (ॐ) के रूप में ब्रह्म प्रकट हुआ, उससे तीन व्याहृतियाँ (भूः भुवः स्वः) प्रकट हुईं।
शीर्ष पद का अर्थ हुआ कि वह ॐ रूप परमात्मा तीनों लोकों (भूः, भुवः, स्वः) में व्याप्त है। वह प्राणस्वरूप, दुःखनाशक एवं सुखस्वरूप है।
तीन व्याहृतियाँ ….. क्रमशः गायत्री मंत्र के तीन चरण प्रकट हुए। युगऋषि ने आत्मिक प्रगति के लिए जो तीन क्रम अपनाने को कहे हैं (ईश उपासना, जीवन साधना और लोक आराधना) उनका अनुशासन भी क्रमशः गायत्री के तीन चरणों से प्राप्त होता है।
प्रथम चरण- तत्सवितुर्वरेण्यं :- तत् वह परमात्मा रूपी पुरुष के भेद से परे है; वह सविता (सबका उत्पादक) है, इसलिए सभी के लिए वरण करने योग्य है। माँ के गर्भ में शिशु पलता है तो माँ की प्राणऊर्जा की विभिन्न धाराओं से ही उसके सारे अंग- अवयवों का पोषण और विकास होता है। यही नहीं, माँ के भावों और विचारों के अनुरूप ही बालक के भाव- विचार बनते हैं। पैदा हो जाने पर भी माँ का दूध ही उसके लिए सबसे उपयुक्त आहार सिद्ध होता है।
गायत्री मंत्र की सहज स्वीकारोक्ति अनेक धर्म- संप्रदायों में है। सनातनी और आर्य समाजी तो इसे सर्वश्रेष्ठ मानते ही हैं। वैष्णव सम्प्रदाय में भी अष्टाक्षरी मंत्र (श्रीकृष्णं शरणं मम) के साथ गायत्री मंत्र जप करने की बात कही गई है। स्वामीनारायण सम्प्रदाय की मार्गदर्शिका ‘शिक्षा पत्री’ में भी गायत्री महामंत्र का अनुमोदन किया गया है। संत कबीर ने ‘बीजक’ में परब्रह्म की व्यक्त शक्तिधारा को गायत्री कहा है। सत्साईं बाबा ने भी कहा है कि गायत्री मंत्र इतना प्रभावशाली हो गया है कि किसी को उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने स्वयं गायत्री मंत्र का उच्चारण करके भक्तों से उसे जपने की अपील की है।
उक्त आधार पर यदि प्रचलित गायत्री मंत्र को फैलाया जाये तो बहुत बड़ा कार्यक्षेत्र सामने दिखाई देता है। जिन सम्प्रदायों में गायत्री मंत्र के प्रति सहमति है, उन्हें प्रेरित करके गायत्री साधना में लगाना बहुत कठिन नहीं है। इससे आगे यदि ऊपर वर्णित गायत्री विद्या का प्रकाश डाला जाये तो विश्व के सभी व्यक्तियों को उससे सहमत कराया जा सकता है।
इस्लाम में गायत्री मंत्र जैसा ही महत्त्व सूरह फातेह को दिया गया है। अभी हिंदी और उर्दू में प्रकाशित पुस्तिका युग परिवर्तन इस्लामी दृष्टिकोण में सूरह फातेहा के तीन चरणों को गायत्री मंत्र की तरह जपने का प्रस्ताव किया गया है। उसे विचारशील मुसलमानों ने स्वीकार भी किया है। जरूरत यही है कि कर्मकाण्ड के कलेवर के साथ गायत्री विद्या के प्राण को भी जाग्रत् किया जाये। उपासना, साधना तथा आराधना के स्वरूप को और उन्हें जीवन में गतिशील बनाने के सूत्रों को जन- जन तक पहुँचाया जाये तो उज्ज्वल भविष्य में सब की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।
गायत्री मंत्र का भाव यदि किसी भी भाषा में दुहराया जाये, तो वह भी मंत्र की तरह ही काम करता है। थियोसॉफिकल सोसाइटी की पुस्तक भारत समाज पूजा की भूमिका में दिव्य दृष्टि सम्पन्न पादरी लैडविटर ने उक्त तथ्य को स्पष्ट किया है।
गायत्री जयंती पर्व गायत्री महाविद्या के अवतरण का पर्व है। इसी दिन युगऋषि ने काया त्यागकर स्वयं को वायु और सूर्य की तरह व्यापक बनाने का शुभारंभ किया था। इस पर्व को लक्ष्य करके सभी नैष्ठिक गायत्री साधकों को प्रयास करना चाहिए कि –
गायत्री मंत्र जप आदि कर्मकाण्ड कलेवर को अपनायें, किंतु उसमें गायत्री के प्राण का, गायत्री महाविद्या का भी समावेश करें।
छुट्टियों के दिनों में साधना प्रशिक्षण सत्र चलाये जायें। नये साधकों, नवदीक्षितों के लिए सबके लिए सुलभ उपासना- साधना पुस्तिका को माध्यम बनाया जाये। कुछ विकसित साधकों के लिए जीवन देवता की साधना- आराधना में वर्णित प्रज्ञायोग साधना को आधार बनाया जाये।
– नये क्षेत्रों तथा विभिन्न वर्गों तक गायत्री मंत्र , गायत्री विद्या पहुँचाने तथा उन्हें उसमें प्रवृत्त करने के लिए संकल्प किये जायें तथा तद्नुसार स्वयं का व्यक्तित्व और कौशल विकसित किया जाये, निखारा जाये।
यह कार्य आसान तो नहीं है, किंतु बहुत कठिन भी नहीं है। जहाँ ऋषि चेतना का समर्थन है तथा साधकों का संकल्पबद्ध पुरुषार्थ है, वहाँ सफलता तो मिलनी ही मिलनी है। जो इसके लिए समुचित संकल्प करने तथा तप साधना अपनाने का साहस दिखायेंगे, वे अवश्य ही नये कीर्तिमान बनायेंगे।
भगवती श्री गायत्री—
भगवती गायत्री आद्याशक्ति प्रकृति के पाँच स्वरूपों में एक मानी गयी हैं। इनका विग्रह तपाये हुए स्वर्ण के समान है। यही वेद माता कहलाती हैं। वास्तव में भगवती गायत्री नित्यसिद्ध परमेश्वरी हैं। किसी समय ये सविता की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं, इसलिये इनका नाम सावित्री पड़ गया।
कहते हैं कि सविता के मुख से इनका प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया। तभी से इनकी ब्रह्माणी संज्ञा हुई।
कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। इन्होंने ही प्राणों का त्राण किया था, इसलिये भी इनका गायत्री नाम प्रसिद्ध हुआ।
उपनिषदों में भी गायत्री और सावित्री की अभिन्नता का वर्णन है- गायत्रीमेव सावित्रीमनुब्रूयात्।
गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। ये द्विजाति मात्र की आराध्या देवी हैं। इन्हें परब्रह्मस्वरूपिणी कहा गया है। वेदों, उपनिषदों और पुराणादि में इनकी विस्तृत महिमा का वर्णन मिलता है।
ब्रह्मस्वरूपा गायत्री—-
इस प्रकार गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- ‘जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है।
गायत्री-मन्त्र ऋक्, यजु, साम, काण्व, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है, किन्तु सर्वत्र एक ही मिलता है। इसमें चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र का मूल स्वरूप इस प्रकार है-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अर्थात् ‘सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध वरण करने योग्य तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।
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आप भी गायत्री मंत्र की शक्ति और शुभ प्रभाव से सफलता चाहते हैं तो बताई जा रही गायत्री मंत्र जप से जुड़ी जरूरी बातों का ध्यान जरूर रखें—-
– गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
– गायत्री मंत्र जप के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ होता है। किंतु यह शाम को भी किए जा सकते हैं।
– गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें। किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें।
– साफ और सूती वस्त्र पहनें।
– कुश या चटाई का आसन बिछाएं। पशु की खाल का आसन निषेध है।
– तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें।
– ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें।
– इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है।
– शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें। बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही एक से अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें।
– गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के असर से ऐसा व्यक्ति भी शुद्ध और सद्गुणी बन जाता है।
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कैसे करें गायत्री उपासना…???
गायत्री की उपासना तीनों कालों में की जाती है, प्रात: मध्याह्न और सायं। तीनों कालों के लिये इनका पृथक्-पृथक् ध्यान है।
प्रात:काल ये सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान रहती है। उस समय इनके शरीर का रंग लाल रहता है। ये अपने दो हाथों में क्रमश: अक्षसूत्र और कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है।
मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। इनके चारों हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभा पाते हैं। इनका वाहन गरूड है। गायत्री का यह स्वरूप वैष्णवी शक्ति का परिचायक है। इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं। इसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
सायं काल में गायत्री की अवस्था वृद्धा मानी गयी है। इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है। ये अपने चारों हाथों में क्रमश: त्रिशूल, डमरू, पाश और पात्र धारण करती हैं। यह रुद्र शक्ति की परिचायिका हैं इसका वर्णन सामवेद में प्राप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इसके जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
हम नित्य गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। लेकिन उसका पूरा अर्थ नहीं जानते। गायत्री मंत्र की महिमा अपार हैं। गायत्री, संहिता के अनुसार, गायत्री मंत्र में कुल 24 अक्षर हैं। ये चौबीस अक्षर इस प्रकार हैं- 1। तत् 2। स .। वि 4। तु 5। र्व 6। रे 7। णि 8। यं 9। भ 10। गौं 11। दे 12। व 13। स्य 14। धी 15। म 16। हि 17। धि 18। यो 19। यो 20। न: 21। प्र 22। चो 23। द 24। यात् वृहदारण्यक के अनुसार हम उक्त शब्दावली का भाव इस प्रकार समझते हैं।
तत्सवितुर्वरेण्यं: अर्थात् मधुर वायु चलें, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियां हमारे लिए मंगलमय हों। भूलोक हमें सुख प्रदान करें।
भर्गो देवस्य धीमहि:अर्थात् रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारण हों। पृथ्वी की रज हमारे लिए मंगलमय हो।
धियो यो न: प्रचोदयात्: अर्थात् वनस्पतियां हमारे लिए रसमयी हों। सूर्य हमारे लिए सुखप्रद हो, उसकी रश्मियां हमारे लिए कल्याणकारी हों। सब हमारे लिए सुखप्रद हों। मैं सबके लिए मधुर बन जाऊं। गायत्री मंत्र का अगर हम शाब्दिक अर्थ निकालें तो, उसके भाव इस प्रकार निकलते हैं-तत् वह अनंत परमात्मा, सवितु:-सबको उत्पन्न् करने वाला, वरेण्यम्:-ग्रहण करने योग्य या तृतीय के लायक, भर्गों-सब पापों का नाश करने वाला, देवस्य:-प्रकाश और आनंद देने वाले दिव्य रूप ऐसे परमात्मा का, धीमहि:-हम सब ध्यान करते हैं, धिय:-बुद्धियों को, य:-वह परमात्मा, न:-हमारी, प्रचोदयात्:-धर्म, काम, मोक्ष में प्रेरणा करके, संसार से हटकर अपने स्वरूप में लगाए और शुद्ध बुद्धि प्रदान करे।
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इस प्रकार गायत्री मंत्र के जप से यह लाभ प्राप्त होते हैं—
उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।
विद्यार्थीयों के लिए—-
गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।
दरिद्रता के नाश के लिए—-
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।
संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए…
किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए—
यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।
विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो—
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।
यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो—-
यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।
यदि कोई व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।
रोग निवारण के लिए किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए।
गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।