ईद मिलादुन्नबी..
आज (रविवार, .4 जनवरी,.0.5 को) इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब के जन्मदिन ईद मिलादुन्नबी के मौके पर सभी को मुबारकबाद तथा शुभकामनाएं
हज़रत मोहम्मद साहब ने पूरी दुनिया में प्यार-मोहब्बत, इंसानियत और दूसरों के प्रति मान-सम्मान और गरीबों के प्रति हमदर्दी रखने का पैगाम दिया…कुदरत हमें बार-बार सर्वधर्म समभाव कायम रखने का अवसर देती है। हम पैगम्बर साहब के बताए गए रास्ते पर चलकर समाज के कमजोर, पिछड़े, और जरूरतमंदों की मदद करने तथा आपसी सद्भाव को और अधिक मजबूत बनाने के लिए आगे आएं…
Eid...
Eid...01
Eid...02
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक उनका जन्म रबीउल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को हुआ था। हालांकि पैगम्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस्लाम के इतिहास में सबसे अहम दिन है। फिर भी न तो पैगम्बर साहब ने और न ही उनकी अगली पीढ़ी ने इस दिन को सेलिब्रेट किया। दरअसल, वे सादगी पंसद थे। उन्होंने कभी इस बात पर जोर नहीं दिया कि किसी की पैदाइश पर जश्न जैसा माहौल हो या फिर किसी के इंतकाल पर मातम मनाया जाए।यह संयोग है कि उनकी आमद इस्लामी हिजरी सन के रबी उल महीने की 12 तारीख को हुई थी और उन्होंने 12 तारीख को ही दुनिया से पर्दा लिया था। उन्होंने बताया कि बारह वफात उनके रूखसती का दिवस है और 12 रबी उल अव्वल उत्सव का दिन है, इसलिए बारह वफात नहीं मना कर ईद मीलादुन्नबी मनाई जाती है। ईद मीलादुन्नबी पर हर जगह जुलूस निकालने की परंपरा है।
मिलादुन्नबी को मनाने की शुरुआत मिस्र में 11वीं सदी में हुई। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इसे मनाना शुरू किया। पैगम्बर के रुखसत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्यौहार की शक्ल दी। इस अवसर पर पैगम्बर के जन्म को याद किया जाता है और उनका शुक्रिया अदा किया जाता है कि वे तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे।
ईद-ए-मीलाद यानी ईदों से बड़ी ईद के दिन, तमाम उलेमा और शायर कसीदा-अल-बुरदा शरीफ पढ़ते हैं। अरब के सूफी बूसीरी, जो 1.वीं सदी में हुए, उन्हीं की नज्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फजीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसी दिन पैगम्बर साहब रुखसत हुए थे। भारत के कुछ हिस्सों में इस मौके को लोग बारावफात के तौर पर मनाते हैं।
अपनी रुखसत से पहले पैगम्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है इंतकाल। इसीलिए पैगम्बर साहब के रुखसत होने के दिन को बारावफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मजाहबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वारा मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शो पर चलने की सलाह देते हैं। इस दिन उनके पैगाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है। एकेश्वरवाद की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है और पाक और बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। ईद-ए-मिलादुन्नबी को हालांकि बड़े पैमाने पर सेलिब्रेट नहीं किया जाता है फिर भी मोहम्मद साहब के पैगाम को जानने और उस पर अमल करने के लिए इसे खास दिन माना जाता है। लोग इस दिन इबादत करते हैं।
हिन्दुस्तान में भी मिलादुन्नबी उत्साह से मनाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के हजरत बल में बड़ा जलसा होता है। सुबह की नमाज (फज्र) के बाद उनकी मुबारक चीजों का मुजाहरा किया जाता है। पूरी रात दुआ मांगी जाती है जिसमें हजारों लोग शरीक होते हैं। ऐसा ही कुछ नजारा दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन दरगाह, अजमेर-ए-शरीफ के हजरत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर होता है। इसके अलावा लखनऊ में बारावफात के दिन सुन्नी मुसलमान मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद और दूसरी मस्जिदों में इस दिन लोग दुआएं मांगते हैं।

1 COMMENT

    • जे शिवशक्ति….
      आप सभी का कल्याण हो, इसी कामना के साथ
      आपका…
      डाक्टर पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (ज्योतिष,वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ),
      मोनिधाम (मोनतीर्थ), गंगा घाट,
      संदीपनी आश्रम के निकट, मंगलनाथ मार्ग,
      उज्जैन (मध्यप्रदेश) -465.06
      mob.–09669.90067..m.p.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here