जन्मकुंडली में चंद्र-सूर्य पर राहु-केतु या शनि का प्रभाव एवं उपाय :-
जन्मकुंडली में यदि चंद्र पर राहु-केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ-ऋण से पीड़ित होता है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है, अतः ऐसे जातक को निरंतर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ-ऋण से मुक्ति के पश्चात् ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है।
जन्म-पत्री में यदि सूर्य पर शनि, राहु, केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ-ऋण की स्थिति मानी जाती है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–.9669.90067) के अनुसार देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता परंतु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति भव्य व शानदार बंगला बना लेता है, अपने व्यावसायिक स्थान का भी विस्तार कर लेता है, किंतु उस जगत स्वामी के स्थान के लिए सबसे अंत में सोचता है या सोचता ही नहीं है जिसकी अनुकंपा से समस्त ऐश्वर्य, वैभव व सकल पदार्थ प्राप्त होता है। उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा, तो व्यक्ति को देव-ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा। नई पीढ़ी की विचारधारा में परिवर्तन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आस्था रही है और न ही लोग भगवान को मानते हैं। फलस्वरूप ईश्वर भी अपनी अदृश्य शक्ति से उन्हें नाना प्रकार के कष्ट प्रदान करते हैं।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार ऋषि-ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है। जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्मे हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित हो जाते हैं। हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं। अतः हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी परेशान करेगा। इसमें कतई संदेह नहीं करना चाहिए। जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं। उनके परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में सामंजस्य व एकरूपता है, संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं, परिवार के सभी लोग परस्पर मिल-जुल कर प्रेम से रहते हैं। अपने सुख-दुख बांटते हैं, अपने अनुभव एक दूसरे को बताते हैं। ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है। दूसरी ओर कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसे मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है। सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार मनुष्य को पितृ ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए। जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्म-हत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है, तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें। आत्म हत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी। वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें।
राहु-सूर्य पिता का दोष,
राहु-चंद्र माता का दोष,
राहु-बृहस्पति दादा का दोष,
राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार इन दोषों के निराकरण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस-किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।
————————————————————————————–
हमारे वेदों में कहा गया हें कि—
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन् ॥ यजु० ३१।१२-१३ ॥
चन्द्रमा का मन से घनिष्ठ सम्बन्ध है. इसीलिए समस्त प्राणियों के लिए मानसिक सुख शान्ति का प्रभाव कारक ग्रह चन्द्रमा माना गया है. चन्द्रमा एक जलीय ग्रह है. चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है. यह वृष राशि में शुभ और वृश्चिक राशि में अशुभ फल देता है
यदि यह अशुभ ग्रहों कि युति में है तो मन में अनेक विध्वंसक विचार जन्म लेते है. यदि शुभ ग्रहों के साथ है तो शुभ विचारों की उत्पत्ति होती है.
चन्द्र ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र का भाग्य रत्न मोती है. चन्द्र ग्रह का रंग श्वेत, चांदी माना गया है.
चन्द्र का शुभ अंक 2, .1, 20 है.
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार जन्म कुंडली में चन्द्रमा यदि अपनी ही राशि में या मित्र, उच्च राशि षड्बली ,शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चन्द्रमा की शुभता में वृद्धि होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा यदि मजबूत एवं बली अवस्था में हो तो व्यक्ति समस्त कार्यों में सफलता पाने वाला तथा मन से प्रसन्न रहने वाला होता है. पद प्राप्ति व पदोन्नति, जलोत्पन्न, तरल व श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है.
चन्द्र का प्रभाव :-
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार यह शरीर में बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग. चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है.
चन्द्रमाँ का दान वस्तु :-
चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन. इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए. जिनकी कुंडली में चन्द्र अशुभ हो ऐसे लोग चंद्र की शुभता लेने के लिए माता, नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान वाली स्त्रियों का आशीर्वाद ले
सभी भावों के अनुसार उपाय —-
प्रथम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- वट बृक्ष की जड़ में पानी डालें.
2:- चारपाई के चारो पायो पर चांदी की कीले लगाऎं
.:-शरीर पर चाँदी धारण करें.
4:-व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
5:-पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएँ,
द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- मकान की नीव में चॉदी दबाएं.
2:- माता का आशीर्वाद लें.
तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—-
1:- चांदी का कडा धारण करें.
2: पानी ,दूध, चावल का दान करे़.
चतुर्थ भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—–
1:- चांदी, चावल व दूध का कारोबार न करें.
2:- माता से चांदी लेकर अपने पास रखे व माता से आशिर्वाद लें.
3:-घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होनें पाए।
पचंम भाव में स्थित चन्दमा के उपाय—-
1:- ब्रह्मचर्य का पालन करें.
2:- बेईमानी और लालच ना करें, झूठ बोलने से परहेज करें.
3:-11 सोमवार नियमित रूप से 9 कन्यावों को खीर का प्रसाद दें।
4:- सोमवार को सफेद कपडे में चावल, मिशरी बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें.
छटे भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- श्मशान में पानी की टंकी या हैण्डपम्प लगवाएं.
2:- चांदी का चोकोर टुकडा़ अपने पास रखें.
3:- रात के समय दूध ना पीयें.
4:- माता -सास की सेवा करें.
सप्तम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- पानी और दूध का व्यापार न करें.
2:- माता को दुख ना पहुचाये.
अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1) श्मशान के नल से पानी लाकर घर मे रखें.
2) छल-कपट से परहेज करें.
3) बडे़-बूढो का आशीर्वाद लेते रहें.
4) श्राद्ध पर्व मनाते रहे.
5) कुएं के उपर मकान न बनाएं.
6) मन्दिर में चने की दाल चढायें.
7) व्यभिचार से दूर रहे.
नवम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- धर्म स्थान में दूध और चावल का दान करे
2:- मन्दिर में दर्शन हेतु जाएं.
3:-बुजुर्ग स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- रात के समय दूध का सेवन न करें.
2:- मुफ्त में दवाई बांटें.
3:- समुद्र, वर्षा या नदी का पानी घर में रखें.
एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- भैरव मन्दिर में दूध चढायें.
2:- सोने की सलाई गरम करके उसको दूध में ठण्डा करके उस दूध को पियें.
3:- दूध का दान करें.
द्वादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- वर्षा का पानी घर में रखें.
2:- धर्म स्थान या मन्दिर में नियमित सर झुकाए .
=================================================
क्या न करें ….???
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को रात्रि में दूध नहीं पीना चाहिए. सफ़ेद वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.
जब चन्द्र की दशा में अशुभ फल प्राप्त हो तो चन्द्रमा के मन्त्रों का जाप करे या जाप कराये :-
चन्द्रमाँ का बीज मंत्र है :—-
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: (जप संख्या 11000)
चन्द्रमाँ का वैदिक मंत्र है :—–
” ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम । भाशिनं भवतया भाम्भार्मुकुट्भुशणम।। ”
अधिक जानकारी के लिए जन्पत्रिका के साथ मिले या संपर्क करे :-
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067)
जन्मकुंडली में यदि चंद्र पर राहु-केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ-ऋण से पीड़ित होता है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है, अतः ऐसे जातक को निरंतर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ-ऋण से मुक्ति के पश्चात् ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है।
जन्म-पत्री में यदि सूर्य पर शनि, राहु, केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ-ऋण की स्थिति मानी जाती है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–.9669.90067) के अनुसार देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता परंतु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति भव्य व शानदार बंगला बना लेता है, अपने व्यावसायिक स्थान का भी विस्तार कर लेता है, किंतु उस जगत स्वामी के स्थान के लिए सबसे अंत में सोचता है या सोचता ही नहीं है जिसकी अनुकंपा से समस्त ऐश्वर्य, वैभव व सकल पदार्थ प्राप्त होता है। उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा, तो व्यक्ति को देव-ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा। नई पीढ़ी की विचारधारा में परिवर्तन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आस्था रही है और न ही लोग भगवान को मानते हैं। फलस्वरूप ईश्वर भी अपनी अदृश्य शक्ति से उन्हें नाना प्रकार के कष्ट प्रदान करते हैं।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार ऋषि-ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है। जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्मे हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित हो जाते हैं। हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं। अतः हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी परेशान करेगा। इसमें कतई संदेह नहीं करना चाहिए। जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं। उनके परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में सामंजस्य व एकरूपता है, संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं, परिवार के सभी लोग परस्पर मिल-जुल कर प्रेम से रहते हैं। अपने सुख-दुख बांटते हैं, अपने अनुभव एक दूसरे को बताते हैं। ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान-प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार यदि संतान अपंग, मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का संपूर्ण जीवन उसी पर केंद्रित हो जाता है। दूसरी ओर कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसे मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है। सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार मनुष्य को पितृ ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए। जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्म-हत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है, तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें। आत्म हत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी। वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें।
राहु-सूर्य पिता का दोष,
राहु-चंद्र माता का दोष,
राहु-बृहस्पति दादा का दोष,
राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार इन दोषों के निराकरण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस-किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।
————————————————————————————–
हमारे वेदों में कहा गया हें कि—
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन् ॥ यजु० ३१।१२-१३ ॥
चन्द्रमा का मन से घनिष्ठ सम्बन्ध है. इसीलिए समस्त प्राणियों के लिए मानसिक सुख शान्ति का प्रभाव कारक ग्रह चन्द्रमा माना गया है. चन्द्रमा एक जलीय ग्रह है. चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है. यह वृष राशि में शुभ और वृश्चिक राशि में अशुभ फल देता है
यदि यह अशुभ ग्रहों कि युति में है तो मन में अनेक विध्वंसक विचार जन्म लेते है. यदि शुभ ग्रहों के साथ है तो शुभ विचारों की उत्पत्ति होती है.
चन्द्र ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र का भाग्य रत्न मोती है. चन्द्र ग्रह का रंग श्वेत, चांदी माना गया है.
चन्द्र का शुभ अंक 2, .1, 20 है.
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार जन्म कुंडली में चन्द्रमा यदि अपनी ही राशि में या मित्र, उच्च राशि षड्बली ,शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चन्द्रमा की शुभता में वृद्धि होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा यदि मजबूत एवं बली अवस्था में हो तो व्यक्ति समस्त कार्यों में सफलता पाने वाला तथा मन से प्रसन्न रहने वाला होता है. पद प्राप्ति व पदोन्नति, जलोत्पन्न, तरल व श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है.
चन्द्र का प्रभाव :-
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार यह शरीर में बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग. चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है.
चन्द्रमाँ का दान वस्तु :-
चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन. इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए. जिनकी कुंडली में चन्द्र अशुभ हो ऐसे लोग चंद्र की शुभता लेने के लिए माता, नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान वाली स्त्रियों का आशीर्वाद ले
सभी भावों के अनुसार उपाय —-
प्रथम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- वट बृक्ष की जड़ में पानी डालें.
2:- चारपाई के चारो पायो पर चांदी की कीले लगाऎं
.:-शरीर पर चाँदी धारण करें.
4:-व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
5:-पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएँ,
द्वितीय भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- मकान की नीव में चॉदी दबाएं.
2:- माता का आशीर्वाद लें.
तृतीय भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—-
1:- चांदी का कडा धारण करें.
2: पानी ,दूध, चावल का दान करे़.
चतुर्थ भाव में स्थित चन्द्रमा का उपाय—–
1:- चांदी, चावल व दूध का कारोबार न करें.
2:- माता से चांदी लेकर अपने पास रखे व माता से आशिर्वाद लें.
3:-घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होनें पाए।
पचंम भाव में स्थित चन्दमा के उपाय—-
1:- ब्रह्मचर्य का पालन करें.
2:- बेईमानी और लालच ना करें, झूठ बोलने से परहेज करें.
3:-11 सोमवार नियमित रूप से 9 कन्यावों को खीर का प्रसाद दें।
4:- सोमवार को सफेद कपडे में चावल, मिशरी बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें.
छटे भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- श्मशान में पानी की टंकी या हैण्डपम्प लगवाएं.
2:- चांदी का चोकोर टुकडा़ अपने पास रखें.
3:- रात के समय दूध ना पीयें.
4:- माता -सास की सेवा करें.
सप्तम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- पानी और दूध का व्यापार न करें.
2:- माता को दुख ना पहुचाये.
अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1) श्मशान के नल से पानी लाकर घर मे रखें.
2) छल-कपट से परहेज करें.
3) बडे़-बूढो का आशीर्वाद लेते रहें.
4) श्राद्ध पर्व मनाते रहे.
5) कुएं के उपर मकान न बनाएं.
6) मन्दिर में चने की दाल चढायें.
7) व्यभिचार से दूर रहे.
नवम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—
1:- धर्म स्थान में दूध और चावल का दान करे
2:- मन्दिर में दर्शन हेतु जाएं.
3:-बुजुर्ग स्त्रियों से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
दशम भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- रात के समय दूध का सेवन न करें.
2:- मुफ्त में दवाई बांटें.
3:- समुद्र, वर्षा या नदी का पानी घर में रखें.
एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- भैरव मन्दिर में दूध चढायें.
2:- सोने की सलाई गरम करके उसको दूध में ठण्डा करके उस दूध को पियें.
3:- दूध का दान करें.
द्वादश भाव में स्थित चन्द्रमा के उपाय—-
1:- वर्षा का पानी घर में रखें.
2:- धर्म स्थान या मन्दिर में नियमित सर झुकाए .
=================================================
क्या न करें ….???
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067) के अनुसार ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को रात्रि में दूध नहीं पीना चाहिए. सफ़ेद वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.
जब चन्द्र की दशा में अशुभ फल प्राप्त हो तो चन्द्रमा के मन्त्रों का जाप करे या जाप कराये :-
चन्द्रमाँ का बीज मंत्र है :—-
ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: (जप संख्या 11000)
चन्द्रमाँ का वैदिक मंत्र है :—–
” ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम । भाशिनं भवतया भाम्भार्मुकुट्भुशणम।। ”
अधिक जानकारी के लिए जन्पत्रिका के साथ मिले या संपर्क करे :-
वास्तुविद एवं ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (मोब .–09669290067)