माता-पिता (समर्पण..एक भाव भरा)——-
-(समर्पित —कविता –माता-पिता को)
–पंडित दयानन्द शास्त्री””अंजाना””
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ना जाने क्यों,आपकी याद में निकल आये आंसू,
की थी रात भर कोशिश, मगर रुक नहीं पाए,
कर्जा आपके प्यार एवं आशीर्वाद का चुकाया नहीं जा सकता,
बहा कर आंसू दो अपने, सोच शायद ये घट जाये,
इनायत की जो आपने, भुलाया नहीं उसको जा सकता,
माँ,आपके दूध का कर्जा, उतरा नहीं कभी नहीं जा सकता,
माता हो या पिता की जयकार, में आपको सादर शीश नवाता हूँ,
जो कुछ भी में आज हूँ,आपकी कृपा एवं आशीर्वाद से ही हूँ,
आपका अपना —
—-पंडित दयानन्द शास्त्री””अंजाना””
—.(. —राजस्थान )

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