क्या और क्यों हें बाल विवाह एक बड़ी समस्या..????
भारत देश का ये दुर्भाग्य हें की जिन लड़कियों /बच्चियों की गुडियों से खेलने की उम्र अभी गई नहीं। चाकलेट तो दूर लेमन चूस पर भी चहक उठती हैं यह। पर परंपरा कहें या माँ-बाप की उल्टी सोच, ये अभी उस विवाह बंधन में बांध दी गई जिनकी उन्हें समझ नहीं।भारत के लगभग सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रथा बड़े आराम से ,बिना किसी रोकधाम के चलती आ रही हें..
देश में बाल विवाह के खिलाफ भले ही कानून बन गया हो, शादी के लिए वैध उम्र की सीमा भले ही तय कर दी गई हो, लेकिन ये सारे बंधन परिणय सूत्र में बंधने वालों के लिए बेमानी हैं। देश में बाल विवाह अभी भी धड़ल्ले से हो रहे हैं।
तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है |अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है |रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी .8 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है | रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि .2 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं | यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है ,जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं | तीव्र आर्थिक विकास ,बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है ,तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है |क्या बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हों ,वहाँ बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं |
बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज़ से ,बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज़ से भी खतरनाक है |शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है ,हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है |शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं |और फिर कच्ची उम्र में गर्भ धारण के चलते उनकी जन को भी खतरा बना रहता है |
जहां हिन्दू समाज में खासतौर पर राजस्थान और मध्यप्रदेश में अखातीज पर बाल-विवाह धड़ल्ले से होते हैं, वहीं राजस्थान की सीमा से सटे हरियाणा के मेवात जिले में तो हररोज अखातीज (अक्षय तृतीया) होती है।
मुस्लिम सम्प्रदाय बाहुल्य इस इलाके में छोटी उम्र में विवाह का प्रचलन है। जिस उम्र में बच्चों को अपने स्कूल में होना चाहिए या फिर खेल के मैदान में जाकर खेलते हुए होना चाहिए, बेफिक्री उनके चेहरे पर झलकनी चाहिए, उसी उम्र में मां-बाप उन्हें शादी के बंधन में बांध देते हैं। यूनीसेफ द्वारा दुनिया में बच्चों के हालात पर तैयार की गई 2.09 की रिपोर्ट इस बात का साफ संकेत करती है कि अपने देश में बाल विवाह निरोधक कानून का किस तरह व्यापक पैमाने पर उल्लंघन हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की 20 से 24 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले ही हो चुकी है। इनमें से 56 प्रतिशत मामले ग्रामीण इलाकों के हैं। हरियाणा में मेवात जिला अन्य सभी जिलों से आगे खड़ा है। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि दुनिया का 40 प्रतिशत बाल विवाह भारत में होता है। मध्य प्रदेश में यूनीसेफ की प्रमुख, डॉ. तानिया गोल्डनर ने कहा, बाल विवाह बाल अधिकारों का उल्लंघन है। कम उम्र की शादी बच्चों को स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, तथा हिंसा, दुव्र्यवहार व शोषण मुक्ति से वंचित कर देती है और बचपन को निगल जाती है। एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में हर वर्ष 10 से 12 मिलियन नाबालिक लडकियों की शादी कर दी जाती है। ऐसी ही एक भुक्तभोगी यमन की रहने वाली तहानी कहती है, वह जब भी अपने पति को देखती है, उसे घृणा होने लगती है। वह उससे नफरत करती है, पर साथ रहना और जुल्म सहना उसकी विवशता है। यमन, अफगानिस्तान, इथोपिया और ऐसे ही कुछ अन्य देशों में तो युवा या विधुर उम्रदराज व्यक्ति किसी बच्ची का बलात्कार करते है और फिर उससे विवाह करने का दावा ठोंक देते हैं। वहां की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार उनकी शादी भी हो जाती है। भारत की बात करें, तो यहां बालविवाह पर कानूनन रोक है, लेकिन रात के अंधेरे में आज भी हजारों बालविवाह हो रहे हैं।
दरअसल यह कुप्रथा गरीब तथा निरक्षर तबके में जारी है |पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इस लिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी | वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं |जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है |वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है | लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता |बालविवाह एक सामाजिक समस्या है |अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है | सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा |
बाल विवाह के पक्षधरों द्वारा एक तर्क यह भी दिया जाता है कि भले ही विवाह कम उम्र में किया जाता है परन्तु पति पत्नी साथ साथ रहना तो बालिग होने के बाद शुरू करते हैं इसका खण्डन भी राष्ट्रीय सर्वेक्षण का तृतीय चक्र करता है। ऑंकड़े बताते हैं कि भारत में 15-19 वर्ष की महिलाओं में 16 प्रतिशत् या तो मॉ बन चुकी थी या पहली बार गर्भवती थी। इनमें सर्वाधिक भयावह स्थिति झारखण्ड, प6चिमी बंगाल व बिहार की है जहाँ क्रमश275, 25 व 25 प्रतिशत् महिलाये 15-19 वर्ष के मध्य माँ बन चुकी थी या बनने जा रही थी। जबकि इससे विपरीत स्थिति हिमाचल प्रदेश (12. प्रतिशत) गोवा (121 प्रतिशत्)व जम्मू एवं क6मीर (42 प्रतिशत) पाई गई।
यह माना जाता है कि किसी भी कुरीति को दूर करने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है परन्तु ऑकड़ों का वि6लेषण करने से ज्ञात होता है कि केरल राज्य, जहॉ शिक्षा का स्तर सर्वोच्च है, में भी 18 वर्ष से कम उम्र में 154 प्रतिशत महिलाओं की शादी हो चुकी थी व 58 प्रतिशत महिलाये 15-19 वर्ष के मध्य या तो मॉ बन चुकी थी या वे मॉ बनने जा रही थी।
इसका सीधा तात्पर्य है कि यदि इस कुरीति को दूर करना है या बच्चों के सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना है । शिक्षा से अधिक जोर अभिभावकों को जागरूक बनाने पर देना होगा व कड़े कानून बनाकर उनका कड़ाई से पालन करवाना होगा।
अंतरराष्ट्रीय संगठन द एल्डर्स का मानना है कि बाल विवाह के खात्मे के लिए समाज को आगे आना होगा। सिर्फ सरकारी योजनाओं व कानून से इसका खात्मा मुश्किल है। द एल्डर्स के दक्षिण अफ्रीका के अध्यक्ष आर्कबिशप डेसमंड टुटु ने कहा कि बाल विवाह एक पारंपरिक प्रथा है। इसका किसी क्षेत्र विशेष से संबंध नहीं है। यह पूरे विश्व की समस्या है। विश्व का एक तिहाई बाल विवाह भारत में होता है। बिहार में सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं। यहां 69 फीसदी बच्चियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में होती है। राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 47 फीसदी है। मेवात में राष्ट्रीय आंकड़े से कहीं अधिक संख्या में बाल विवाह होते हैं। हालांकि कोई ठोस आंकड़ा तो इस बारे में नहीं है, लेकिन गांवों की परिस्थितियां और यहां के अलग-अलग चर्चा में आए आंकड़े बताते हैं कि तीन चौथाई से ज्यादा की शादी कच्ची उम्र में ही कर दी जाती है। ऐसे में बचपन तो उससे छीन ही जाता है साथ ही अल्हड़ता और मनमौजी की उम्र में ही लडक़े पर परिवार चलाने का बोझ पड़ जाता है और लडक़ी मां बनने के कागार पर आ जाती है। यह बड़ी विडम्बना है कि इस बारे में बने कानून भी बाल विवाह को रोकने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। बाल विवाह की गलत परम्परा के कारण केवल एक शादी या परिवार ही तबाह नहीं हो रहा है, बल्कि इसके कारण अनेक अन्य समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। शिक्षा का अभाव भी किसी न किसी रूप में इसी से जुड़ा नजर आता है। कुपोषण की समस्या, लड़कियों में खून की कमी, लडक़ों में बढ़ती अपराधिक प्रवृति भी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में इस जड़ से जुड़ी है। ताज्जुब की बात यह है कि समाजसेवी और स्वंयसेवी संगठन इस बारे में बात तो बहुत करते हैं, लेकिन हकीकत में ये संगठन ठोस कदम नहीं उठाते। सरकार ने कानून बना दिया। लेकिन मेवात में लगता है कि यह कानून बना ही टूटने के लिए है। प्रशासन को कोई सपना तो आ नहीं रहा है कि अमुक गांव में बाल विवाह हो रहा है। वह तभी जागता है, जब उसके पास कोई ठोस सूचना पहुंचती है। जब पूरा गांव ही बाल विवाह का पक्षधर हो तब कौन किसकी शिकायत करेगा? निश्चित तौर पर यह स्थिति प्रशासन के लिए चिंता की बात हो सकती है। गांव में तैनात सरकारी कर्मचारी भी अपनी डयूटी बजाते नजर आते हैं।
कानून भी कम लचीला नहीं 1978 में हिन्दू विवाह अधिनियम और बालिववाह अधिनियम में संशोधन किया गया। संशोधित कानून के तहत लडक़ी की उम्र शादी के वक्त 15 से बढ़ाकर 18 साल और लडक़े की उम्र 18 से बढक़र 21 साल कर दी गई। लेकिन दूसरी ओर इससे संबंधित जो जरूरी व्यवस्थाएं अन्य कानूनों में हैं, उन्हें यूं ही छोड़ दिया गया। मसलन हिन्दू विवाह अधिनियम और बाल-विवाह अधिनियम में तो लडक़ी की शादी की उम्र 18 साल कर दी गई, लेकिन भारतीय दंड संहिता को संशोधित नहीं किया गया, जिसकी धारा-375 में पति-पत्नी के रिश्ते की उम्र 15 साल है। इसी तरह धारा- 376 में उल्लेखित है कि 12 साल से ज्यादा और 15 साल से कम उम्र की विवाहित युवती से शारीरिक संबंध रखने वाला पति बलात्कार का आरोपी होगा और उसे दो साल की कैद या जुर्माना हो सकता है, जबकि दूसरी ओर साधारण बलात्कार के मुकदमों में अधिकतम सजा आजीवन कारावास और न्यूनतम 7 साल की कैद का प्रावधान है। इस तरह परस्पर विरोधी बातें स्पष्ट दिखाई देती हैं।
हिन्दू विवाह अधिनियम में एक और विसंगति है- 18 साल से कम उम्र की लडक़ी के साथ विवाह वर्जित है और ऐसा करने वाले व्यक्ति को 15 दिन की कैद या सजा या 100 रुपए का जुर्माना हो सकता है। लेकिन जो मुकदमे आज तक निर्णीत हुए हैं, उनमें देखा गया है कि इस तरह के विवाह भले ही दंडनीय अपराध हैं लेकिन अवैध नहीं हैं। सवाल उठता है कि जब विवाह अवैध नहीं है, तो सजा क्यों? इतना ही नहीं, हिन्दू विवाह अधिनियम और बाल-विवाह अधिनियम की और भी विसंगतियां हैं। प्रावधान यह है कि अगर किसी लडक़ी का 15 साल से पहले विवाह रचा दिया गया तो वह लडक़ी 15 साल की होने के बाद मगर 18 वर्ष से पहले इस विवाह को अस्वीकृत कर सकती है। यानी कानून खुद मान रहा है कि 15 साल से कम उम्र की लडक़ी की शादी उसके घरवाले कर सकते हैं। अमीना प्रकरण को ही लें तो 15 साल की होने के बाद वह तलाक ले सकती है। पहले तो वह 15 साल की होने का इंतजार करे, उसके बाद अदालतों के चक्कर लगाए। सवाल उठता है कि इतनी उम्र में लडक़ी के पास मुकदमे के खर्च के लिए पैसा कहां से आएगा? यह भी उस स्थिति में जब उसके घरवाले उसके विरुद्ध थे और घर वाले चाहते हैं कि यह शादी कायम रहे। अब वह अपने बलबूते पर तलाक लेना चाहती है तो कैसे ले?
इस तरह के सैकड़ों विरोधाभास हमारे कानूनों में हैं। जब हमारी विधायिका ही इस तरह के कानून बनाती है तो न्यायपालिका भी क्या करेगी? उसकी अपनी सीमाएं भी तो हैं जिन्हें लांघना मुमकिन नहीं। बहुचर्चित सुधा गोयल हत्याकांड के अपराधी, अगर दिल्ली में रहकर सजा के बावजूद जेल से बच सकते हैं तो फिर अचर्चित दूरदराज के इलाकों में तो कुछ भी हो सकता है। (एआईआर-1986 सुप्रीम कोर्ट 250) और क्या ऐसा सिर्फ इसी मामले में हुआ होगा? हो सकता है और बहुत से मामलों में अपराधी फाइलें गायब करवा जेल से बाहर हों? दहेज हत्याओं के मामले में अभी तक एक भी सजा-ए-मौत नहीं, क्यों? मथुरा से लेकर भंवरी बाई और सुधा गोयल से लेकर रूप कंवर सती कांड तक की न्याय-यात्रा में हजारों-हजार ऐसे मुकदमे, आंकड़े, तर्क-कुतर्क, जाल-जंजाल और सुलगते सवाल समाज के सामने आज भी मुंह बाए खड़े हैं। अन्याय, शोषण और हिंसा की शिकार स्त्रियों के लिए घर-परिवार की दहलीज से अदालत के दरवाजे के बीच बहुत लम्बी-चौड़ी गहरी खाई है, जिसे पार कर पाना बेहद दुसाध्य काम है। स्वतंत्रता की हीरक जयंती की तैयारियों के शोर में �बेबस औरतों और भूखे बच्चों की चीख कौन सुनेगा? कात्यायनी के शब्दों में- �हमें तो डर है/कहीं लोग हमारी मदद के बिना ही/ न्याय पा लेने की/कोशिश न करने लगें।� अदालत के बाहर अंधेरे में खड़ी आधी दुनिया के साथ न्याय का फैसला कब तक सुरक्षित रहेगा या रखा जाएगा? कब, कौन, कहां, कैसे सुनेगा इनके दर्दांे की दलील और न्याय की अपील? क्या कहते हैं न्यायाधीश राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष एवं न्यायाधीश दलीपसिंह का कहना है कि बाल विवाह रोकथाम के लिए जिला, तालुका स्तर, पंचायत समिति एवं ग्राम पंचायत क्षेत्रों में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के संबंधित प्रावधानों की जानकारी आमजन को दी जाएगी। इसके अलावा विधिक साक्षरता शिविरों में न्यायिक अधिकारी पीडित प्रतिकर स्कीम 2011 तथा पीसीपीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों की जानकारी भी दी जाए। गत वर्ष के प्रयासों से बाल विवाह पर नियंत्रण में काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई।
सरकार ने उपखण्ड अधिकारी को संबंधित अधिनियम में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी घोषित किया है। तालुका स्तर पर प्रत्येक ग्राम की एक-एक प्रशासनिक समिति गठित की जाएगी। आहत प्रतिकर योजना 2011 की सीआरपीसी की धारा 357 ए में इस बारे में प्रावधान किया गया है। पीडित या उसके वारिस द्वारा जिला न्यायाधीश के समक्ष आवेदन करने पर 60 दिन में मुआवजा प्राप्त होगा।
क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी पुलिस ने बाल विवाह करवाने में सहयोगी रिश्तेदारों के विरूद्ध भी कार्रवाई का प्रावधान करने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि केवल मां-बाप ही नहीं बल्कि अन्य रिश्तेदारों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी व्यक्ति इस प्रकार के मामलों में शामिल होने से बचे। उनका मानना है कि रिश्तेदारों को धारा 120बी में लिया जा सकता है। आखिर रिश्तेदारों को पता तो होता ही है कि यह बाल विवाह है और लडक़े तथा लडक़ी की उम्र शादी के योग्य नहीं है।
प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री धनवन्तरी ने कहा था कि बाल-विवाहित पति-पत्नी स्वस्थ एवं दीर्घायु सन्तान को जन्म नहीं दे पाते|कच्ची उम्र में माँ बनने वाली ये बालिकाएं न तो परिवार नियोजन के प्रति सजग होती हैं और न ही नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण में दक्ष | कुल मिलाकर बाल विवाह का दुष्परिणाम व्यक्ति ,परिवार को ही नहीं बल्कि समाज और देश को भी भोगना पड़ता है | जनसंख्या में वृद्धि होती है जिससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है
आखिर बालविवाह क्यों ?????
बालविवाह का सीधा संबंध बालक-बालिका पर असमय जिम्मेदारी लादने से शुरु होता है और बाद में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर जा ठहरता है। बालविवाह बच्चों को उनके बचपन से भी वंचित कर देता हैं । आखिर क्यों किये जाते हैं बाल विवाह । बालविवाह के पक्षधर इस संबंध में तर्क देते हैं कि
बड़ी होने पर लड़की की सुरक्षा कौन करेगा ? बालिकाओें की सुरक्षा एक गंभीर मामला है।
कम उम्र में चूंकि लड़का भी कम पढ़ा लिखा होगा तो वर पक्ष की दहेज संबंधी मांग भी कम रहेगी।
छोटी उम्र में चयन के विकल्प (वर तथा परिवार) खुले होते हैं।
लड़की तो बोझ होती है जितनी जल्दी यह जिम्मेदारी खत्म हो सके उतना ही अच्छा है।
यदि बड़ी होकर लड़की ने कोई गलत कदम उठा लिया (स्वयं वर ढूंढ लिया) तो समाज को कौन समझायेगा ?
विवाह चाहे कम उम्र में करते हैं पर विदा तो लड़की को समझदार होने के बाद ही करेंगें।
लड़की दूसरे घर में जल्दी सामंजस्यता बिठा लेती है।
इन सब कारणों से बाल विवाह हमारे समाज में अभी तक किये जाते रहे हैं व इन तर्कों के आगे इन बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व शैक्षणिक विकास कहीं गौण हो जाता है। दरअसल में यह समस्या एक जटिल रुप धारण किये हुये हैं । गरीबी और अशिक्षा भी इसका एक प्रमुख कारण है। इस कुरीति के पीछे कई और कुरीतियां भी हैं जैसे दहेज प्रथा। दहेज प्रथा के कारण भी लोग जल्दी शादी कर देते हैं क्योंकि इस समय तक वर की अपनी इच्छायें सामने नहीं आती हैं और शादी सस्ते में निपट जाती है।
बाल विवाह के दुष्परिणाम
कम उम्र में शादी होने से बच्चे के न सिर्फ सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन होता है वरन् अच्छा स्वास्थ्य, पोषण व शिक्षा पाने का अधिकार का भी हनन होता है। इसके अलावा जो दिक्कतें उन्हें आती हैं उनमें प्रमुख है। बाल विवाह के कारण बालिकायें कम उम्र में असुरक्षित यौन चक्र में सम्मिलित हो जाती है क्योंकि यह तो सिर्फ शादी तक ही कहा जाता है कि शादी जल्दी कर देते हैं विदा बाद में करेंगें या करवायेंगें। परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही लड़की के परिवार पर जोर दिया जाने लगता है कि लड़की की विदा जल्दी की जायें । अत: जिस तरह कच्ची मटकी में पानी ठहर नहीं पाता है व न ही मटकी ही साबुत रह पाती है । उसी तरह कम उम्र में यौन संबंधों के तात्पर्य है अपरिपक्व शरीर में बालिका द्वारा गर्भधारण करना। परिणामत: भ्रूण का पूर्ण रूप से विकसित न हो पाना न ही माता के शरीर का विकसित हो पाना। कुछ और परिणामों में गर्भपात, कम वजन के बच्चे का जन्म, बच्चों में कुपोषण, माता में कुपोषण, खून की कमी होना, मातृ मृत्यु, माता में प्रजनन मार्ग संक्रमणयौन संचरित बीमारियॉएचआईवी संक्रमण की संभावना में वृद्धि होना आदि। अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि 15 वर्ष की उम्र में माँ बनने से मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में माँ बनने से पांच गुना अधिक होती है।
बाल विवाह में कहां है प्रदेश ??
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के तृतीय चक्र के आंकड़ों (2005-06) की मानें तो हम पाते हैं कि भारत में 474 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 साल के पूर्व हो गया था। प्रदेश के स्तर पर जायें तो बाल विवाका सर्वाधिक प्रचलन बिहार (690 प्रतिशत), राजस्थान (652 प्रतिशत) तथा झारखण्ड (632 प्रतिशत) में पाया गया। मध्यप्रदेश बालविवाह के संदर्भ में 573 प्रतिशत के साथ चौथे स्थान पर है। बालविवाह का सबसे कम प्रचलन गोवा (121 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश (123 प्रतिशत) व मणिपुर में (129 प्रतिशत) में पाया गया।

1 COMMENT

  1. Kisi v haalat me hame baal bibah rokna hai, agar aise hi baal bihal hota rha to hamara country ouron country se aage badhne k bajaye or pichhe ho jayega. Kahi v baal bibah ho rha hai to use roko or mujhe call kro mai crime reporter Aarti, co. no. 8.7.79.148.

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  2. Kisi v haalat me hame baal bibah rokna hai, agar aise hi baal bihal hota rha to hamara country ouron country se aage badhne k bajaye or pichhe ho jayega. Kahi v baal bibah ho rha hai to use roko or mujhe call kro mai crime reporter Aarti, co. no. 8.7.79.148.

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