कहाँ और केसा हो आपका अध्ययन कक्ष (STUDY  ROOM , स्टडी रूम )–????
 
पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार  बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पेरेंट्स हमेशा अच्छी से अच्छी सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं। उनकी इच्छा होती है कि उनका बच्चा जीवन की दौड़ में सबसे आगे रहे , इसलिए वह इस मामले में कोई कसर नहीं छोड़ते। कई बार बच्चों द्वारा कठिन परिश्रम के बाद भी उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता। इससे यह सवाल सहज रूप से उठता है कि आखिर कमी कहां रह गई। 
 
अध्ययन की दृष्टि से पूर्व तथा उत्तर-पूर्व दिशा का कमरा सर्वोत्तम होता है। यदि बच्चा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ने बैठेगा , तो परिणाम बेहतर होंगे। पूर्व दिशा की ओर ध्यान करना अच्छी सोच व ज्ञान का सोत माना जाता है। पढ़ते समय यदि बच्चा उत्तर की ओर मुंह करके बैठे , तो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और पढ़ाई में ध्यान लगता है। 
 
——वर्तमान समय प्रतियोगिता का युग है प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ ही नहीं वरना सर्वश्रेष्ठ चाहिए। ऐसी स्थिति में अभिभावक एवं आम नागरिक के मन में प्रश्न उठता है कि मकान में किस स्थान पर बैठने पर अध्ययन किया जावे तो सर्वश्रेष्ठ सफलता मिले, वास्तु में मकान में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम, पवित्र कोण, ईशान कोण होता है। जहां पर भगवान का निवास रहता है। अत: पढऩे वाले विद्यार्थी को ईशान कोण (उत्तर पूर्व का कोना) की ओर मुंह करके पढऩा चाहिए।
 
अध्ययन कक्ष भवन के पश्चिम-मध्य क्षेत्र में बनाना अतिलाभप्रद है। इस दिशा में बुध, गुरु, चंद्र एवं शुक्र चार ग्रहों से उत्तम प्रभाव प्राप्त होता है। 
 
पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-.90.4.90067 ) के अनुसार इस दिशा के कक्ष में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को बुध ग्रह से बुद्धि वृद्धि, गुरु ग्रह से महत्वाकांक्षा एवं जिज्ञासु ‍विचारों में वृद्धि, चंद्र ग्रह से नवीन विचारों की वृद्धि और शुक्र ग्रह से प्रतिभा वक्तृत्व एवं लेखन कला में निपुणता और धन वृद्धि होती है। 
 
परीक्षा में अगर अच्छे नम्बर लाना चाहते हैं तो जमकर पढ़ाई करने के अलावा कुछ नींम साधारण वास्तु उपाय भी अपनायें——
 
—- पढ़ाई की मेज पर एक प्लास्टिक का पिरामिड तथा ग्लोब रखना चाहिए। ग्लोब को रोज घुमाना चाहिए , इससे दुनिया के प्रति मित्रता का भाव पैदा होता है। 
—-रंग-बिरंगे पेन-पेंसिल का प्रयोग बच्चे के मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करता है। 
—–अध्ययन कक्ष की दीवारों का रंग हल्का पीला , सफेद या किसी भी हल्के रंग का होना चाहिए। बिस्तर या पर्दे के रंग खिलते हुए होने चाहिए। 
—–बुध, गुरू, शुक्र एवं चंद्र चार ग्रहों के प्रभाव वाली पश्चिम-मध्य दिशा में अध्ययन कक्ष का निर्माण करने से  अति लाभदायक सिद्ध होती है।
 
—–अध्ययन कक्ष में टेबिल पूर्व-उत्तर ईशान या पष्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।
 —–अध्ययन कक्ष में शौचालय कदापि नहीं बनाएं।
—– अध्ययन कक्ष में खिड़की या रोशनदान  पूर्व-उत्तर या पश्चिम में होना अति उत्तम माना गया है। दक्षिण में यथा संभव न ही रखें।
 
—-अध्ययन कक्ष में रंग संयोजन सफेद, बादामी, पिंक, आसमानी या हल्का फिरोजी रंग दीवारों पर या टेबल-फर्नीचर पर अच्छा है। काला, गहरा नीला रंग कक्ष में नहीं करना चाहिए।
 
—–अध्ययन कक्ष का प्रवेश द्वार पूर्व-उत्तर, मध्य या पष्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व नैऋत्य या उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।
 
—-कक्ष में पुस्तके रखने की अलमारी या रैक उत्तर दिशा की दीवार से लगी होना चाहिए।
 
—–अध्ययन कक्ष मेंपानी रखने की जगह, मंदिर, एवं घड़ी उत्तर या पूर्व दिशा में उपयुक्त होती है।
 
—-अध्ययन कक्ष मेंकक्ष की ढाल पूर्व या उत्तर दिशा में रखें तथा अनुपयोगी चीजों को कक्ष में न रखें।
 
—अध्ययन कक्ष में टेबिल गोलाकार या अंडाकार की जगह आयताकार हो।
 
—-अध्ययन कक्ष में टेबिल के टाप का रंग सफेद दूधिया हो। प्लेन ग्लास रखा जाये। टेबिल पर अध्ययन करते समय आवश्यक पुस्तक ही रखें।
 
—-अध्ययन कक्ष में बंद घड़ी, टूटे-फूटे बेकार पेन, धारदार चाकू, हथियार व औजार न रखें।
 
—-अध्ययन कक्ष में कम्प्यूटर टेबिल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें, ईशान में कदापि न रखे।
 ——पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार पढऩे वाले विद्यार्थी को ईशान कोण (उत्तर पूर्व का कोना) की ओर मुंह करके पढऩा चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो, प्रथम पूर्व या द्वितीय उत्तर या तृतीय पश्चिम मुंह करके पढऩा चाहिए। दक्षिण मुंह करके पढऩा ठीक नहीं है। साथ अपने अध्ययन कक्ष में सरस्वति, श्री गणेश अथवा अपने आराध्य देव या ऐसी वस्तुऐ, चित्र हो जो पढ़ाई से संबंधित हो एवं प्रेरक हो लगाना चाहिए। नकारात्मक चित्रांकन वाली तस्वीर, फिल्मी तस्वीर, प्रेम प्रदर्शित तस्वीर नहीं लगाना चाहिए।अध्ययन कक्ष में पुस्तके नैऋत्य दिशा में रखें अथवा दक्षिण पश्चिम में रख सकते हैं। उत्तर पूर्व हल्का (कम वजनी) हो। अध्ययन कक्ष का रंग हल्के पीले या हल्के रंग, सफेद रंग का हो तो उत्तम रहेगा। गहरे रंगों का उपयोग वर्जित है। 
 
——पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार अध्ययन कक्ष में दिखाई देता कांच (दर्पण) नहीं रखना चाहिए। अध्ययन कक्ष में पूर्व-उत्तर की ओर खिड़की अथवा हवादार हो तो अति उत्तम रहता है। इस प्रकार के कक्ष की छत यदि पिरामिड वाली हो तो सर्वश्रेष्ठ परिणाम देने वाली होती है। ऐसा विधार्थी विलक्षण प्रतिभा का धनी होता है।अध्ययन करते समय अपने आस-पास का वातावरण शुद्ध हो, धीमी-धीमी सुगंध वाला वातावरण हो, दुर्गंध कदापि न हो। साथ ही टेबल पर आवश्यक सामग्री ही हो। अनावश्यक सामग्री को तुरंत हटा देवें।
 
—— यदि जलपान, नाश्ता भी किया हो तो झूठे पात्र, बर्तन, प्लेट आदि को तुरंत हटा देना चाहिए। 
——पढऩे का समय ब्रह्म मुहूर्त, प्रात:काल, सूर्योदय से पूर्व अर्थात् प्रात: 4.30 से प्रथम प्रहर प्रात: .0 बजे तक उत्तम रहता है। अधिक देर रात पढऩा उचित नहीं है
—–अध्ययन कक्ष के मंदिर में सुबह-शाम चंदन की अगरबत्तियां लगाना न भूलें।
—-अक्सर छात्रों की मेज के ऊपर रैक बनी होती है , जो बेहद हानिकारक होती है। इससे सिर पर बोझ महसूस होता है। 
—–पढ़ाई की मेज पर पानी से भरा गिलास जरूर रखना चाहिए। पानी वातावरण की सारी निषेधात्मक तरंगों को सोख लेता है। 
 
——छात्र का बेड दक्षिण-पश्चिम/उत्तर पश्चिम कोने में होना चाहिये। सोते समय छात्र का बेड दक्षिण पूर्व दिशा में हो।यह आवश्यक है कि छात्र का बेड बिल्कुल कमरे के दरवाजे के सामने न हो।
—–अध्ययन कक्ष में केवल ध्यान, अध्यात्म वाचन, चर्चा एवं अध्ययन ही करना चाहिए। गपशप, भोग-विलास की चर्चा एवं अश्लील हरकतें नहीं करना चाहिए। 
 
—–अध्ययन कक्ष में जूते-चप्पल, मोजे पहनकर प्रवेश नहीं करना चाहिए।
 
—–अध्ययन कक्ष में प्रकाश की व्यवस्था दो तरफ से होनी चाहिए , क्योंकि दो दिशाओं से होकर आने वाली रोशनी करियर के कई मार्ग खोलती है। 
—-अध्ययन कक्ष में वस्तुओं का ढेर नहीं लगाना चाहिए। जिन वस्तुओं का काम न हो , उन्हें फेंकना बेहतर है। 
—–कुछ अच्छे पोस्टर या महापुरुषों द्वारा कहे गए नीति वचन अध्ययन कक्ष के वातावरण को बेहतर बनाते हैं। 
 
—–पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार पढ़ाई में मन की एकाग्रता हेतु सरल, चमत्कारी टिप्स अपने अध्ययन कक्ष में मां सरस्वती का छोटा सा चित्र लगाएं व पढ़ने के लिए बैठने से पूर्व उसके समक्ष कपूर का दीपक जलाएं अथवा तीन अगरबत्ती हाथ जोड़ कर जलाएं, प्रार्थना करें व पढ़ाई शुरू करें। एक थाली में केसर में गंगाजल मिलाकर बनी स्याही से स्वास्तिक चिह्न बनाएं। उस पर नैवेद्य चढ़ाएं। सामने शुद्ध घी का दीपक जला कर रखें। ऊपर वर्णित किसी स्तोत्र (संस्कृत अथवा हिंदी) से मां सरस्वती की स्तुति करें। इसके बाद थाली में जल मिलाकर गिलास में डालकर पी लें। ऐसा करने से शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण उन्नति होती है। अध्ययन कक्ष के द्वार के बाहर अधिक प्रकाश देने वाला बल्ब लगाएं उसे शाम होते ही जल दें। विद्यार्थी अपनी मेज पर ग्लोब रखें और दिन में तीन बार उसे घुमाएं। 
 
पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार परीक्षाओं से पांच दिन पूर्व से बच्चों को मीठा दही नियमित रूप से दें। उसमें समय परिवर्तन करें। यदि एक दिन सुबह 8 बजे दही दिया है तो अगले दिन 9 बजे, उसके अगले दिन 10 बजे, उसके अगले दिन 11 बजे दें। इस क्रिया को दोहराते रहें और प्रतिदिन एक घंटा बढ़ाते रहें। 
पढ़ते समय विद्यार्थी का मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिए। पश्चिम की ठोस दीवार की ओर पीठ करके बैठना चाहिए। 
कंप्यूटर आग्नेय कोण में (दक्षिण-पूर्व) तथा पुस्तकों की अल्मारी नैरित्य  कोण (दक्षिण-पश्चिम) में रखें। अल्मारी खुली न रखें। उस पर दरवाजा न हो तो परदा अवश्य लगाएं। 
 
एक क्रिस्टल बाल अथवा क्रिस्टल का श्रीयंत्र लाकर अपने अध्ययन कक्ष में रख लें। यह नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है। 
 
पंडित  दयानंद शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार विद्यार्थी सुबह उठते ही ‘‘ ॐ ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः’’ का 21 बार जाप करें। 
 
जो बच्चे पढ़ते समय शीघ्र सोने लगते हैं, अथवा मन भटकने के कारण अध्ययन नहीं कर पाते उनके अध्ययन कक्ष में हरे रंग के परदे लगाएं। जिन बच्चों की स्मरण शक्ति कमजोर हो, उन्हें तुलसी के 11 पत्तों का रस मिश्री के साथ नियमित रूप से दें।
 
इन सब सूक्ष्म लेकिन अति महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखने से आपकी अध्ययन क्षमता का लाभ तो मिलेगा ही साथ ही व्यक्त्वि विकास में मददगार भी सिद्ध होगा।

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