आइये  जाने देव गुरु वृहस्पति की भूमिका..व्यवसाय…केरियर  में …..
 
वृहस्पति को देवगुरु माना गया है. यह एक स्वाभाविक शुभ ग्रह है. और इसके अस्सी प्रतिशत फल सदा शुभ ही होते है. किन्तु जब यह अशुभ स्थिति में निर्बल होकर कुंडली में बैठता है तों इसका परिणाम अत्यंत अशुभ होता है.
 
यदि यह विषुवत रेखा एवं सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी के जिस गोलार्द्ध के लिये वृहत्कोण .5. अंश से 180 के मध्य बनाता है. अर्थात पृथ्वी के दूसरे गोलार्द्ध में धरती के एक ध्रुव तथा भूमध्य विन्दु के साथ समबाहु त्रिभुज बनाता है तों पृथ्वी के दूसरी तरफ जिस हिस्से से वृहत्कोण बना रहा होता है, वहां भयंकर हिमपात, महामारी, क्षयरोग एवं अतिसार (Diarrhea) का प्रकोप बढ़ जाता है. यदि यह धरती के मध्य विन्दु से किसी ध्रुव के साथ समकोण त्रिभुज बनाता है तों दूसरी तरफ विषमबाहु त्रिभुज के शीर्ष पर बनने वाले विन्दु के इर्द गिर्द वाले भूखंड भूकंप, उग्र बाढ़प्रकोप एवं बादल फटने के परिणाम स्वरुप भयंकर हानि का सामना करते है. किन्तु यदि दोनों तरफ समकोण त्रिभुज बनाते है तों शीर्ष विन्दु के इर्द गिर्द वाले भूखंड पुरानी हानियों का भरपाइ कर अत्यंत सुखी एवं संपन्न हो जाते है.
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार गुरु इस सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. इसकी परिधि दो भागो में लम्बी एवं सिरे पर गोल है. इसका बहुत सारा हिस्सा पुरो भाग बर्फीली चादर से ढका होने के बावजूद भी इसके अग्र एवं पश्च भाग सामान्य तापक्रम वाले है. लगभग आधुनिक विज्ञान भी यही मानता है. 
 
अथर्ववेद क़ी ऋचा भी गूढ़ अर्थो में यही बताती है-
 
“””जीवाश्म द्युतिः गल्भान्शु शम्यते नः भू भव प्रतिवरो.”””
 
जीव अर्थात वृहस्पति क़ी अद्वितीय शिक्षा कण कण कर वरण अर्थात धारण करें जो धीरे धीरे गल्भ अर्थात जम कर भू अर्थात धरती के समान गंभीर बन जाती है. बर्फ भी जब गिरती है तों रूई के फाहे के समान होती है. किन्तु थोड़ी देर बाद जम कर पत्थर के सदृश हो जाती है. और शिक्षा के रूप में अति शीतल एवं सुख दायिनी होती है. तथा जीव के विविध ताप- दैहिक, दैविक एवं भौतिक का शमन करती है.
 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–090.4.90067 ) के अनुसार अध्यापन व्यवसाय जानने के लिए जो ग्रह ज्यादा उत्तरदायी है वह है गुरु ग्रह (वृहस्पति)। इसके अलावा चंद्रमा, बुध भी सहायक ग्रहों के रूप में इस व्यवसाय के प्रति लोगों को आकृष्ट करते हैं। राशिगत आधार पर देखा जाय तो जन्मकुण्डली में लग्न, पंचम, दशम या एकादश भाव में गुरु या बुध की राशियां हों तो उनके प्रभाव से जातक अध्यापन के प्रति रुचि रखता है। उसे जब भी अवसर मिलता है वह अध्यापक के रूप में कार्य करने लगता है। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार प्राचीन कल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होता था |विद्यार्थी किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में विभिन्न प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते थे |इसके  अतिरिक्त उसे शस्त्र सञ्चालन एवं विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता था |किन्तु वर्तमान समय में यह सभी प्रशिक्षण गौण हो गए हैं |शिक्षा की महत्ता बढ़ने व् प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व् समझने लगते ही माता -पिता शिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं |कुछ वर्षों बाद सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि कौन सा विषय पढ़ायें ,जिससे उनके बच्चे का भविष्य सुखमय हो ?
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार आइये जानते हैं अच्छी शिक्षा के योग —–
{१}-द्वितीयेश या वृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हों |
{२}-पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो |
{३}-पंचमेश की पंचम भाव में वृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो ?
{४}-बृहस्पति ,शुक्र और बुध में से कोई भी केंद्र या त्रिकोण में हो ?
 
अध्यापन में कॅरियर बनाने के लिए जो भाव उत्तरदायी हैं उनमें लग्न, तृतीय, पंचम, दशम व एकादश प्रमुख हैं। जब इन भावों और भावेशों का संबंध गुरु ग्रह से होता है तो जातक अध्यापन अथवा शिक्षा व्यवसाय से जुड़ता है। षष्ठम भाव में स्थित गुरु ग्रह भी अध्यापन से जोड़ता है। दशमेश अथवा दशम भाव में स्थित ग्रह का नवांशेश यदि गुरु ग्रह है तो जातक अध्यापन पेशे को अपनाता है। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार कॅरियर निर्माण के समय यदि गुरु की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यंजतर दशा चल रही हो तो जातक शिक्षक आदि प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होता है और उसका कॅरियर अध्यापक के रूप में बन जाता है। जातक स्कूल का अध्यापक बनेगा या कालेज का प्रोफेसर यह जन्मपत्रिका में बनने वाले राजयोगों और ग्रह की उच्चादि राशिगत स्थिति पर निर्भर करता है। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार यदि जातक की जन्मपत्रिका में केन्द्रेश और त्रिकोणेश के मध्य युति या परस्पर दृष्टि का संबंध बन रहा है तो जातक कालेज का शिक्षक बनता है। व्यक्ति किस विषय का शिक्षक होगा, यह लग्न, तृतीय, पंचम, दशम व एकादश भाव में स्थित ग्रहों अथवा इन भावों के स्वामियों से संबंध बनाने वाले ग्रहों पर मुख्य रूप से निर्भर करता है। 
 
यदि सूर्य संबंध बना रहा है तो प्रशासनिक, राजनीतिक विषय, धातु विज्ञान, गणित, भौतिक शास्त्र, इंजीनियरिंग, कृषि विज्ञान का अध्यापक होगा। 
 
चंद्रमा से संबंध बनने पर साहित्य, गृह विज्ञान, रसायन विज्ञान, पशुपालन, डेयरी विज्ञान, सौन्दर्य शास्त्र, चिकित्सा विज्ञान, पर्यटन शास्त्र, नौकायन, जलशास्त्र, नर्सिंग, नक्शा बनाने के शास्त्र का अध्यापक होगा। 
 
मंगल से संबंध बनने पर भूगोल, खान, खनिज विज्ञान, धातु विज्ञान, रसायन विज्ञान, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, पुलिस, सेना से संबंधित विषय, पेट्रोलियम, पर्वतारोहण, साहसपूर्ण कार्यों से संबंधित विषयों का अध्यापक होगा। 
 
बुध से संबंध बनने पर वाणिज्य एवं प्रबंधक संकाय से संबंधित विषय, अर्थशास्त्र, बैंकिंग, सांख्यिकी, गणित, ज्योतिष, पत्रकारिता, प्रकाशन से संबंधित विषय, पुस्तकालय, वेद, शिक्षा शास्त्र, व्याकरण का अध्यापक होगा। 
 
गुरु से संबंध बनने पर शिक्षा शास्त्र, ज्योतिष, धर्मशास्त्र, पौरोहित्य, वेद, स्मृति, विधि शास्त्र, दर्शन, तर्कशास्त्र, वेदान्त आदि अध्यापक होगा। 
 
शुक्र से संबंध बनने पर कला, नृत्य, संगीत, नाट्य शास्त्र, साहित्य, फिल्म, टेलीविजन उद्योग से संबंधित विषयों का अध्यापक होगा। 
 
शनि से संबंध बनने पर इतिहास, पुरातत्व, पुराण, दर्शन, स्मृति, विदेशी भाषाओं, एन्थ्रोपोलाजी व इंजीनियरिंग से संबंधित विषयों का अध्यापक होगा। 
 
राहु से संबंध बनने पर ज्योतिष, धर्मशास्त्र, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, परामनोविज्ञान, रहस्यमय एवं प्राचीन विषयों का अध्यापक होगा। 
 
केतु से संबंध बनने पर कला व चिकित्सा से संबंधित विषयों का अध्यापक होगा। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार कई बार कॅरियर निर्माण के समय शिक्षण व्यवसाय में जाने योग्य दशाओं के अभाव में जातक दूसरे व्यवसाय की ओर मुड़ जाता है परन्तु उसकी अभिरुचि सदैव शिक्षण की ओर रहती है और अवसर प्राप्त होने पर अध्यापन की ओर प्रवृत्त हो जाता है। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार गुरु भारी और धीमा ग्रह है। यह शुभ और पीत वर्ण है। गुरु प्रभावित जातक धीर गंभीर बने रहते हैं और समाज में अच्‍छी प्रतिष्‍ठा हासिल करते हैं। ऐसे जातकों का डील-डौल भी बड़ा होता है। जब ऐसे जातक भरी सभा में पहुंचते हैं जहां बैठने के लिए भी जगह नहीं होती, वहां सभा में कुछ लोग खिसककर या हटकर इनके लिए जगह बना देते हैं। गंभीर सौम्‍यता इन जातकों का प्रमुख गुण है।
 
—-शिक्षा का स्तर—-
 
–ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार जन्मकुंडली  का पंचम भाव बुद्धि ,ज्ञान ,कल्पना ,अतीन्द्रिय ज्ञान,रचनात्मक कार्य ,याददास्त व् पूर्वजन्म के संचित कर्म को दर्शाता है | यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है ||
 
—–शिक्षा किस प्रकार की होगी —–
 
—ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार जन्मकुंडली का चतुर्थभाव मन का भाव है |यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी |जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे ,आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि,अस्त राशि ,शत्रु राशि में बैठा हो व् करक ग्रह {चंद्रमा } पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता है ||
 
—–शिक्षा का उपयोग —-
 
-ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार जन्मकुंडली का द्वितीय भाव -वाणी ,धन ,संचय ,व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्शाता है कि शिक्षा आपने ग्रहण कि है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं |यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो जातक शिक्षा का उपयोग नहीं करता है |
 
  जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए ,इस हेतु हम मूलतः निम्न चार पाठ्यक्रम{ विषय } को ले सकते हैं –गणित ,जिव विज्ञानं ,कला और वाणिज्य —– 
 
   {१}-गणित —गणित के करक ग्रह बुध का सम्बन्ध यदि जातक के लग्न ,लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है ||
 {२}-शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनायें तो जातक -मशीनरी कार्य में दशा होता है ||
—जीव विज्ञानं -सूर्य का जल राशिस्थ होना ,छठे एवं दशम भाव /भावेश के बीच सम्बन्ध ,सूर्य एवं मंगल का सम्बन्ध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढाई के करक होते हैं 
—कला ——पंचम /पंचमेश एवं करक गुरु ग्रह का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का करक होता है | इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढाई प[उरी करवाने में सक्षम होती है ||
–वाणिज्य –लग्न /लग्नेश का सम्बन्ध बुध के साथ -साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलता पूर्वक करता है ||
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार पुरुष कुण्‍डली में जहां शुक्र सांसारिकता और दैहिक सुख के लिए देखा जाता है वहीं स्‍त्री जातक के लिए गुरु महत्‍वपूर्ण है। स्‍त्री जातक के लिए उसके पति का प्रगति करना सौभाग्‍य का प्रतीक माना जाता है। जिस स्‍त्री जातक की कुण्‍डली में वृहस्‍पति शुभ स्‍थान और शुभ प्रभाव में होता है, उसे सामाजिक मान प्रतिष्‍ठा और सांसारिक सुख सहजता से मिलते हैं। 
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार वृहस्‍पति खराब होने पर स्‍त्री जातक को अपमान और उपेक्षा झेलनी पड़ सकती है। ऐसे में अधिकांश स्‍त्री जातकों को गुरु का रत्‍न पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है। पुखराज रत्‍न सोने की अंगूठी में पहनने से गुरु का प्रभाव बढ़ जाता है। जिन जातकों के गुरु मारक अथवा बाधकस्‍थानाधिपति होता है, उनके अलावा सभी स्‍त्री जातकों को बेधड़क पुखराज पहनाया जा सकता है।
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार ऐसे ही अन्य पितृदोषों में मंगल-राहू युति है जो लग्न अथवा सप्तम में बन जाए तो मनुष्य के वैवाहिक जीवन को छिन्न-भिन्न कर देती है। शनि-राहू युति अनेक बाल विधवाओं की जन्म-पत्री में देखने को मिल जाती है। ऐसे ही कुछ अन्य योगों में दरिद्रयोग, जड़योग, मूकयोग, नेत्रनाश योग, अंधयोग, दुर्मुख योग, विषयोग, अपुत्र योग, अनापठ्ययोग, सर्पश्राप योग, पितृश्राप योग, मातृश्राप योग, भातृश्राप योग, प्रेतश्राप योग आदि है जिनके जड़कारण बुजुर्गों एवं पितरों का अनादर ही है। 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार पितृदोषों की सृष्टि का यही अहम् कारण है। अगर हम श्राद्ध का तात्पर्य अर्थ समझे तो अनेक पितृदोषों का स्वत: शमन हो जाएगा। यह पितृदोष पीढी दर पीढी देखने को मिल जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन पितृदोषों की खुली व्याख्या है। जन्मांग में मंगल-राहू, शनि-राहू, सूर्य-शनि, चन्द्र-राहू युतियां पितृदोषों को स्पष्ट इंगित करती है। चन्द्र-राहु युति तो मनुष्य को आत्म-हत्या तक की ओर धकेल देती है।  ज्योतिष में अन्य अनेक पितृदोषों का उल्लेख है यथा ‘कालसर्पयोग’ जो सभी ग्रहों के राहू एवं केतु के मध्य आने से बनता है। यह योग पूर्व जन्म में बुजुर्गों एवं सज्जनों को सताने से ही बनता है। एवं इस योग का जातक तमाम योग्यताओं के मध्य ताउम्र स्वयं को अपूर्ण अथवा अनुपलब्ध पाता है।
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार बुजुर्गों की सेवा से ‘वृहस्पति’ भी बली बनता है जो अकेले अनेक दुर्योगों को ध्वस्त करने की ताकत रखता है। अनुकूल वृहस्पति अपनी उपस्थिति एवं दृष्टि दोनों से अमृत बरसाते हैं। श्राद्ध अवसर है इन दुर्योगों को मिटाने का लेकिन यह मिटेंगे तभी जब हम पहले तो श्राद्ध का सही अर्थ समझें एवं तत्पशचात् उसका उचित निदान करें। निर्णय आपको लेना है क्योंकि कल्याण भी आप ही का होना है।
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार एक बात अवश्य ध्यातव्य है कि गुरु शुभ है तों बहुत ठीक है. किन्तु यदि अशुह हुआ तों इसका कोई भी ग्रह परिहार नहीं कर सकता. क्योकि बहुत सारे ग्रह एक दूसरे के दोष को शांत करते है. किन्तु गुरु के दोष को कोई नहीं शांत कर सकता है. सिवाय कृत्रिम उपाय के. यथा-पूजा-पाठ एवं मन्त्र-यंत्र के.
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार कुंडली में लग्न में वृहस्पति अत्यंत शुभ माना गया है. किन्तु यदि यह गुरु लग्न में सिंह राशि में शनि के साथ या तुला राशि में मंगल के साथ, सूर्य के साथ कुम्भ में या वृश्चिक राशि में राहू के साथ स्थित हो तों इस गुरु के सदा ही अशुभ परिणाम होगें. यदि कोई अन्य ग्रह उच्च या स्वक्षेत्री न हो. यहाँ तक कि यदि गुरु लग्न में अपने उच्च कर्क, अपने घर धनु या मीन का ही क्यों न हो और इस प्रकार महापुरुष योग ही क्यों न बना रहा हो, तथा सूर्य के साथ हो और सब ग्रह राहू एवं केतु के मध्य हो तों यह व्यक्ति सदा ही दुखी रहेगा. या यदि राहू या केतु के मध्य न भी हो किनती कोई ग्रह या भाव वर्गोत्तम न हो तों भी समस्त जीवन संघर्ष में व्यतीत होता है. वंश डूब जाता है. या यदि संतति हुई भी तों वह कुल मर्यादा के प्रतिकूल और विजातीय संसर्ग करने वाली होगी. यद्यपि इसके अनेक उदाहरण दिये जा सकते है. किन्तु नेहरु परिवार के प्रत्येक सदस्य क़ी कुंडली देखी जा सकती है- यथा पण्डित जवाहर लाल नेहरु, पण्डित विजया लक्ष्मी, इंदिरा गांधी, कमला नेहरु आदि. इन सबका जन्म लग्न कर्क है. और इसमें गुरु बहुत ही प्रशस्त माना जाता है. जवाहर लाल नेहरु क़ी कुंडली में गुरु छठे है. परिणाम विश्व विदित है.
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार ध्यान रहे, यदि कुंडली में गुरु उच्च का होकर लग्न में वर्गोत्तम हो, तथा भले नवें भाग्य भाव में राहू एवं शनि हो, वह व्यक्ति प्रचंड विद्वान, उद्भट विचारक एवं ऊर्ध्वानिष्ठ तपस्वी होता है. किन्तु वह विवाह नहीं करता है. और आजीवन ब्रह्मचारी ही रहता है.
 
ज्योतिषाचार्य  पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–09024390067 ) के अनुसार यही नहीं, गुरु उच्च का होकर लग्न में, शनि उच्च का होकर चौथे, मंगल उच्च का होकर सातवें हो तों तीन तीन महापुरुष योग कुंडली में बनते है. इस अवस्था में ऐसे व्यक्तो को लक्ष्मीपति, यशस्वी, बहुत बड़ा प्रसिद्ध एवं मान मर्यादा वाला होना चाहिए. किन्तु यदि सूर्य भी चौथे हो, राहू सातवें तथा बुध दशवें हो तों वह व्यक्ति सदा अस्वस्थ, दरिद्र एवं दुखी रहता है. आप इसे कुंडली में स्वयं देख सकते है.
 
शास्त्र तों इसे प्रमाणित करते ही है. व्यवहार में भी इसे देखा गया है. ऐसा कहा जाता है कि महाराजा हरिश्चंद्र क़ी कुंडली में यह योग था. किन्तु लग्न वर्गोत्तम थी.

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