यात्रा आदि में शुभ एवं अशुभ मुहूर्त विचार ——
यात्रा तो सभी करते हैं, कभी सफलता तो कभी असफलता हाथ लगती है। यात्रा कभी इतनी सुखद होती है कि दौड़-धूप भरी जिंदगी की सभी थकान दूर हो जाती है। कभी यात्रियों को दुर्घटना के कारण जान भी गंवानी पड़ जाती है। आखिर क्या है इसका रहस्य? शायद सही मुहूर्त का चुनाव।
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–.) के अनुसार समय का अभाव होने के कारण लोग प्रायः मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं। मुहूर्त की तब याद आती है जब यात्रा निरर्थक, निष्फल एवं नुकसान दायक साबित होती है। तब व्यक्ति इस बात को सोचने को मजबूर हो जाता है कि काश मैंने अपनी यात्रा शुभ मुहूर्त में प्रारंभ की होती तो होने वाली हानि, मानसिक या शारीरिक कष्ट यात्रा में न सहने पड़ते। यदि हम यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व मुहूर्त का विचार करते हुए अपनी योजना को बनाएं तो बहुत मुमकिन है कि यात्रा एवं प्रवास के दौरान मानसिक तथा शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिल जाए तथा हमारी यात्रा के उद्देश्य में सफलता प्राप्त हो।
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–.90.4.90067) के अनुसार यात्रा कभी इतनी सुखद होती है कि दौड़-धूप भरी जिंदगी की सभी थकान दूर हो जाती है। कभी यात्रियों को दुर्घटना के कारण जान भी गंवानी पड़ जाती है। आखिर क्या है इसका रहस्य? शायद सही मुहूर्त का चुनाव। समय का अभाव होने के कारण लोग प्रायः मुहूर्त के महत्व को भूल जाते हैं। मुहूर्त की तब याद आती है जब यात्रा निरर्थक, निष्फल एवं नुकसान दायक साबित होती है। तब व्यक्ति इस बात को सोचने को मजबूर हो जाता है कि काश मैंने अपनी यात्रा शुभ मुहूर्त में प्रारंभ की होती तो होने वाली हानि, या शारीरिक कष्ट यात्रा में न सहने पड़ते। यदि हम यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व मुहूर्त का विचार करते हुए अपनी योजना को बनाएं तो बहुत मुमकिन है कि यात्रा कष्ट से मुक्ति मिल जाए ।
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार यात्रा मुहूर्त के लिए दिषाशूल, नक्षत्रशूल, योगिनी, भद्रा, चंद्रबल, ताराबल, नक्षत्रशुद्धि आदि का विचार किया जाता है। किसी भी यात्रा मुहूर्त को निकालने के लिए सर्वप्रथम तिथिशुद्धि का विचार किया जाता है। तिथिशुद्धि: यात्रा के लिए निम्न तिथियां शुभ मानी जाती हैं। किसी भी पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी एवं केवल कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथियां। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि इन तिथियों में भद्रादोष नहीं होना चाहिए। अर्थात इन तिथियों में यदि विष्टि करण होगा तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा। नक्षत्र शुद्धि: तिथि शुद्धि करने के पश्चात ली गई तिथियों का नक्षत्र विचार किया जाता है। यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित हैं: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा एवं रेवती नक्षत्र उत्तम माने गए हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में यात्रा की जाती है। अर्थात सभी दिशाओं में यात्रा करना जिन नक्षत्रों में शुभ होता है, वे निम्नलिखित हैं – अश्विनी, पुष्य, अनुराधा और हस्त। अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो यात्रा के लिए मध्यम श्रेणी के माने जाते हैं। वे निम्नलिखित हैं: रोहिणी, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्ताराषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, मूल एवं शतभिषा।
दिशाशूल ज्ञानार्थ चक्रम
सोम शनिचर पूरब ना चालू। मंगल बुध उत्तरदिसिकाल।।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाय। हानि होय पथ सुख नहिं पाय।।
गुरौ दक्खिन करे पयाना, फिर नहीं समझो ताको आना।।
अर्थ: सोमवार एवं शनिवार को पूरब दिशा में तथा मंगल एवं बुधवार को उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिये। रविवार एवं शुक्रवार को पश्चिम दिशा में यात्रा करना सर्वदा हानिकारक है। गुरूवार के दिन तो दक्षिण दिशा में यात्रा करना अशुभ है। ये दिशाशुल कहलाते है।
नोट:
दिशाशूल में यदि यात्रा करना आवयकता ही हो तो निम्नाकिंत वस्तु खाने से यात्रा शुभ होती है।- यदि चन्द्रवास मेष, सिंह, धनु राशि के पूर्व में हो तो ’’धनलाभ’’
- यदि चन्द्रवास वृष, कन्या, मकर राशि के दक्षिण में हो तो ’’सुख सम्पत्ति’’
- यदि चन्द्रवास मिथुन, तुला, कुम्भ राशि के पश्चिम में हो तो ’’मरण तुल्य कष्ट’’
- यदि चन्द्रवास कर्क, वृश्चिक, मीन राशि के उत्तर में हो तो ’’धन हानि’’
- यदि चन्द्रवास मेष, सिंह, धनु राशि के पूर्व में हो तो ’’धनलाभ’’
- यदि चन्द्रवास वृष, कन्या, मकर राशि के दक्षिण में हो तो ’’सुख सम्पत्ति’’
- यदि चन्द्रवास मिथुन, तुला, कुम्भ राशि के पश्चिम में हो तो ’’मरण तुल्य कष्ट’’
- यदि चन्द्रवास कर्क, वृश्चिक, मीन राशि के उत्तर में हो तो ’’धन हानि’’
वार | रवि | सोम | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
वस्तु | घी | दूध | गुड़ | पुष्प | दही | घी | तिल |
यात्रा में शुभ मुहूर्त
शुभ तिथि-द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी पूर्णिमा। शुभ नक्षत्र-अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, घनिष्ठा, रेवती।
शुभ तिथि-द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी पूर्णिमा। शुभ नक्षत्र-अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, घनिष्ठा, रेवती।
अग्निवास
- वर्तमान तिथि में . जोड़ना पुन: जो वार उस दिन हो उसकी संख्या जोड़ना।
- रविवार की संख्या 1 है यही से सभी वारों की संख्या प्रारम्भ होगी।
- कुल योग में 4 का भाग देना, शून्य व तीन शेष रहे तो अग्नि का वास पृथ्वी में होता है, इसमें हवन करने पर कार्य की सिद्धि होती है।
चौघड़िया मुहूर्त
यदि शीघ्रता में कोई भी यात्रा का मुहूर्त अथवा शुभ कार्य का मुहूर्त नहीं बन रहा हो तो चौघड़िया मुहूर्त का उपयोग करना चाहिए।
यदि शीघ्रता में कोई भी यात्रा का मुहूर्त अथवा शुभ कार्य का मुहूर्त नहीं बन रहा हो तो चौघड़िया मुहूर्त का उपयोग करना चाहिए।
मुहूर्त जानने की विधि
चौघड़िया मुहूर्त का समय दिन व रात के आठ-आठ हिस्से का होता है। जब दिन रात बराबर 12-12 घंटे के होते है। तब एक चौघड़िया मुहूर्त डेढ़ घटे का होता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक के मान को उस दिन का दिनमान तथा सूर्यास्त से सूर्योदय तक के मान को रात्रिमान कहा जाता है। आपको जिस दिन यात्रा करनी है। उस दिन का दिनमान पंचांग से लीजिये, उसमें क्रमश: जोड़ते हुए उस दिन के आठों चौघड़िया मूहुर्त ज्ञात कीजिये, अब आठों चौघड़िया में कौन सा मुहूर्त शुभ है। यह चक्र से ज्ञात कीजिये। रात्रि के चौघड़िया जानने के लिए भी रात्रिमान के आधार पर यही प्रक्रिया है।
दिन का चौघड़िया सूर्योदय से सूर्यास्त
वार | पहला | दूसरा | तीसरा | चौथा | पाँचवा | छठा | सातवाँ | आठवाँ |
रवि | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग |
सोम | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत |
मंगल | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग |
बुध् | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ |
गुरु | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ |
शुक्र | चर | लाभ | अमृत | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर |
शनि | काल | शुभ | रोग | उद्वेग | चर | लाभ | अमृत | काल |
रात्रि का चौघड़िया सूर्यास्त से सूर्योदय तक
वार | पहला | दूसरा | तीसरा | चौथा | पाँचवा | छठा | सातवाँ | आठवाँ |
रवि | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ |
सोम | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर |
मंगल | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल |
बुध् | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग |
गुरु | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत |
शुक्र | रोग | काल | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग |
शनि | लाभ | उद्वेग | शुभ | अमृत | चर | रोग | काल | लाभ |
भद्रा | करण |
1- पृथ्वी भद्रा – कुम्भ, मीन, कर्क, सिंह
2 स्वर्ग भद्रा – मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक 3- पाताल भद्रा – कन्या, धनु, तुला, मकर |
1- बव 2- बालव 3- कौलव 4- तैतिल 5- गर
6- वाणिज 7- विष्टि 8- शकुनी 9- चतुष्पद 10- नाग 11- किंस्तुघ्न |
कैसे निकालें यात्रा मुहूर्त?
1 चौघड़िया विचार,2 राहुकाल विचार,3 तिथिशुद्धि विचार,4 शुभ। होरा विचार,5 चंद्रबल विचार,6 नक्षत्र शुद्धि विचार,7 लग्न विचार,8 चंद्रदिशा विचार,9 नक्षत्रशूल विचार,10 योगिनी वास का विचार का विचार किया जाता है।
1 चौघड़िया विचार——
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार नक्षत्र शुद्धि करने के उपरांत शुद्ध तिथियों के दिन चौघड़िया विचार किया जाता है। एक चौघड़िया का समय चार घटी होता है अर्थात डेढ़ घंटे का समय होता है। इस शुभ चौघड़िया के दौरान यात्रा करना शुभ फलदायक एवं यात्रा सुखद होती है। कुल आठ चौघड़िया में से चार चौघड़िया शुभ होती हैं जिनके नाम हैं- अमृत, चर, लाभ एवं
2 राहुकाल विचार—–
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार दिशा शूल के समान राहु काल के वास का विचार किया जाता है। विशेष वार को विशेष दिशा में राहु काल का वास माना जाता है। यह निम्न प्रकार है: जिस दिशा में राहुकाल का वास होता है, उस दिशा में यात्रा करना अशुभ माना जाता है अर्थात यात्रा के समय राहुकाल सम्मुख नहीं होना चाहिए।
3 तिथिशुद्धि विचार—–
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार यात्रा के लिए निम्न तिथियां शुभ मानी जाती हैं। किसी भी पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, त्रयोदशी एवं केवल कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथियां। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि इन तिथियों में भद्रादोष नहीं होना चाहिए। अर्थात इन तिथियों में यदि विष्टि करण होगा तो वह समय यात्रा के लिए शुभ नहीं होगा।
4 शुभ होरा विचार——-
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार शुभ चौघड़िया के उपरांत शुभ ग्रह की होरा का विचार भी किया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं, शुभ ग्रह चार होते हैं- चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र। इन ग्रहों की होरा में यात्रा करना श्रेष्ठ माना जाता है।
5 चंद्रबल विचार——–
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार यात्रा के दिन चंद्रमा का शुभ राशि में होना भी आवश्यक है। अर्थात जिस व्यक्ति को यात्रा करनी है उसकी जन्म राशि ज्ञात होनी चाहिए। जातक की जन्म राशि से यात्रा करने वाले दिन चंद्रमा की राशि 4, 8, 12 नहीं होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में गोचर का चंद्रमा जातक की जन्म राशि से चैथे, आठवें, बारहवें भाव में नहीं होना चाहिए। ताराबल विचार: उपर्युक्त प्रकार से शुद्ध तिथि के दिन के नक्षत्र की संख्या जातक के जन्म नक्षत्र से गिनें । इस संख्या को 9 से भाग दें तथा शेष संख्या यदि 3, 5, 7 हो तो वह दिन यात्रा के लिए अशुभ माना जाता है, क्योंकि इन दिनों जातक के लिए ताराबल क्षीण होगा।
6 नक्षत्र शुद्धि विचार—–
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार तिथि शुद्धि करने के पश्चात ली गई तिथियों का नक्षत्र विचार किया जाता है। यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र निम्नलिखित हैं: अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा एवं रेवती नक्षत्र उत्तम माने गए हैं। इनके अतिरिक्त कुछ नक्षत्रों में सभी दिशाओं में यात्रा की जाती है। अर्थात सभी दिशाओं में यात्रा करना जिन नक्षत्रों में शुभ होता है, वे निम्नलिखित हैं – अश्विनी, पुष्य, अनुराधा और हस्त। अंत में कुछ नक्षत्र ऐसे हैं जो यात्रा के लिए मध्यम श्रेणी के माने जाते हैं। वे निम्नलिखित हैं: रोहिणी, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, उत्ताराषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, मूल एवं शतभिषा।
7 लग्न विचार——-
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार उपरोक्त शुद्धियों के पश्चात जबकि यात्रा का दिन निश्चित किया जा चुका है, उसके उपरांत किस शुभ लग्न में यात्रा करनी चाहिए यह जानना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसके लिए हमें यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि कभी भी कुंभ लग्न में या कुंभ के नवांश में यात्रा नहीं करनी है। लग्न शुद्धि इस प्रकार करनी चाहिए कि 1, 4, 5, 7, 10वें भावों में शुभ ग्रह हों तथा लग्न से 3, 6, 10 एवं 11वें भाव में पाप ग्रह स्थित हों। यदि चंद्रमा लग्न से 1, 6, 8 या 12वें भाव में स्थित होगा तो वह लग्न अशुभ होगा। यह चंद्रमा पापग्रह से युक्त होगा तो भी अशुभ माना जाएगा। लग्न शुद्धि इस प्रकार करनी चाहिए कि शनि 10वें, शुक्र 7वें, गुरु 8वें, और बुध 12वें भाव में स्थित हो सकें। किसी विशेष वार को विशेष दिशा में यात्रा करने से माना जाता है। वार एवं दिशा के अनुसार दिशाशूल संलग्न सारणी से देखा जा सकता है।
8 चंद्रदिशा विचार——-
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार कोटा से मुंबई यात्रा करते समय सम्मुख दक्षिण दिशा होती है एवं दाहिने पश्चिम दिशा होती है। चंद्र दिशा विचार के अनुसार यात्रा के समय चंद्रमा सम्मुख या दाहिने होना चाहिए। हम उन तारीखों को ही ग्रहण करेंगे जब चंद्रमा दक्षिण या पश्चिम में होगा। दक्षिण दिशा में चंद्रमा तब होता है जब वह वृष, कन्या या मकर राशि में और पश्चिम में चंद्रमा तब होता है जब वह मिथुन, तुला और कुंभ राशि में हो। इस प्रकार चंद्र दिशा विचार के अनुसार हम देखेंगे कि यात्रा के समय चंद्रमा उपरोक्त राशियों में स्थित हो।
9 नक्षत्रशूल विचार——-
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार दिशाशूल के समान नक्षत्रशूल का भी विचार किया जाता है। दिशाशूल में विशेष दिशा के लिए विशेष वार का होना अशुभ माना जाता है जबकि नक्षत्रशूल में विशेष दिशा के लिए विशिष्ट नक्षत्रों का होना अशुभ माना जाता है। नक्षत्र शूल का विचार निम्न सारणी से जाना जा सकता है। जिस दिशा में यात्रा करनी हो उस दिशा में नक्षत्रशूल विचार भी कर लेना आवश्यक है।
10 योगिनी वास का विचार——
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार यात्रा करते समय योगिनी का वास किस दिशा में है, उसका ज्ञान होना भी आवश्यक है। यात्रा के समय योगिनी का सम्मुख या दाहिने होना अशुभ माना जाता है। योगिनीवास का विचार तिथि एवं दिशा के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
यात्रा में दिशा विचार सप्ताह के दिनों अनुसार —-
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार निम्न दिश एवं दिनों का ध्यान रखकर यात्रा करनी चाहिए…
पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.–09024390067) के अनुसार निम्न दिश एवं दिनों का ध्यान रखकर यात्रा करनी चाहिए…
रविवार –
शुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर ,आग्नेय (दक्षिण-पूर्व )
अशुभ दिशाएं – पश्चिम , वायव्य (उत्तर-पश्चिम )
शुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर ,आग्नेय (दक्षिण-पूर्व )
अशुभ दिशाएं – पश्चिम , वायव्य (उत्तर-पश्चिम )
सोमवार –
शुभ दिशाएं — पश्चिम , दक्षिण , वायव्य
अशुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर , आग्नेय
शुभ दिशाएं — पश्चिम , दक्षिण , वायव्य
अशुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर , आग्नेय
मंगलवार –
शुभ दिशाएं — दक्षिण-पूर्व
अशुभ दिशाएं — उत्तर , पश्चिम , वायव्य
शुभ दिशाएं — दक्षिण-पूर्व
अशुभ दिशाएं — उत्तर , पश्चिम , वायव्य
बुधवार –
शुभ दिशाएं — दक्षिण ,पूर्व , नैर्रित्य (दक्षिण-पश्चिम)
अशुभ दिशाएं – उत्तर , पश्चिम ,ईशान (पूर्व-उत्तर)
शुभ दिशाएं — दक्षिण ,पूर्व , नैर्रित्य (दक्षिण-पश्चिम)
अशुभ दिशाएं – उत्तर , पश्चिम ,ईशान (पूर्व-उत्तर)
गुरूवार –
शुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर , ईशान
अशुभ दिशाएं – दक्षिण , पूर्व , नैर्रित्य
शुक्रवार –
शुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर , ईशान
अशुभ दिशाएं – पश्चिम , दक्षिण , नैर्रित्य
शुभ दिशाएं — पूर्व , उत्तर , ईशान
अशुभ दिशाएं – पश्चिम , दक्षिण , नैर्रित्य
शनिवार –
शुभ दिशाएं — पश्चिम , दक्षिण , नैर्रित्य
अशुभ दिशाएं – पूर्व , उत्तर , ईशान
शुभ दिशाएं — पश्चिम , दक्षिण , नैर्रित्य
अशुभ दिशाएं – पूर्व , उत्तर , ईशान
——–उपरोक्त दिनों में शुभ दिशाओं का ही चयन करना चाहिए , परन्तु यदि किसी कारण से यात्रा के दिन इनमें से शुभ दिशा का चयन नहीं कर पा रहें हो तथा आपको उस दिन यात्रा करना अनिवार्य ही हो तो किसी नजदीकी ज्योतिषी से संपर्क कर शुभ होरा का पता कर ही यात्रा करें और इसके साथ साथ निम्न बातों पर भी अमल कर(उपाय या टोटके करके) बेझिझक यात्रा करें –
— रविवार को दलिया एवं घी खाकर ,
— सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर ,
— मंगलवार को गुड खाकर ,
— बुधवार को धनिया या तिल खाकर ,
— गुरूवार को दही खाकर ,
— शुक्रवार को जौ खाकर या दूध पीकर और
— शनिवार को अदरख या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है ।
— सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर ,
— मंगलवार को गुड खाकर ,
— बुधवार को धनिया या तिल खाकर ,
— गुरूवार को दही खाकर ,
— शुक्रवार को जौ खाकर या दूध पीकर और
— शनिवार को अदरख या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है ।