दीपोत्सव हमारे लिए केवल प्रकाश पर्व ही नहीं है एक ऐसा पावन दिन भी है। जिस दिन अनेक ‘आत्मदीप’ अपनी ज्योति से दुनिया को जगमगाकर महाप्रकाश में विलीन हो गए।
महावीर स्वामी, दयानंद सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ऐसी ही विभूतियों में से हैं। वे शायद उस दीपक के वंशज थे जिसने सूर्य के अभाव में भी अंधकार से लड़ने का बीड़ा उठाया था। वह अपनी मर्यादाएँ जानता था। फिर भी अंधकार की चुनौती उसने स्वीकार की थी।
समय और परिस्थितियों की चुनौती स्वीकार सब नहीं करते। जिन्हें अपनी धरोहर पर अडिग विश्वास होता है उन्हें ऐसी चुनौती स्वीकार करने में समय नहीं लगता। सौभाग्य से हम ऐसी परंपरा के धनी हैं।
अपनी जीवन ज्योति से ही प्रकाश बिखेरने वाले नहीं तो अपना जीवन दीप बुझाकर भी प्रकाश देने वाले श्रेष्ठ नर-वीरों की एक लंबी मालिका है हमारे देश में दीपों की जगमगाहट में, आतिशबाजी के शोरगुल में तथा लक्ष्मी और सरस्वती की आराधना के क्षणों में हम एक क्षण ऐसा भी निकालें जब इन नर-पुंजों का स्मरण हो सके।
श्री महालक्ष्मी यानी विष्णु की शोभा, शक्ति, कांति, श्री! श्री विष्णु की गूढ़ माया शक्ति जब मूर्त होती है तो वह लक्ष्मी रूप में होती है। श्री महालक्ष्मी के मंदिर में उनका वाहन वनराज सिंह होता है, लेकिन साथ होती हैं लक्ष्मी से संबंधित वस्तुएं- कमल, गज, सुवर्ण और बिल्व फल! नैवेद्य में उन्हें खड़ी शकर और दूध जैसे सहज-सुलभ पदार्थ पसंद हैं।
श्री महालक्ष्मी के 8 रूप दो तरह से बताए गए हैं-
(1) धनलक्ष्मी/ धान्य लक्ष्मी/ शौर्य लक्ष्मी/ धैर्य लक्ष्मी/ विद्या लक्ष्मी/विजय लक्ष्मी/ कीर्ति लक्ष्मी/ राज्य लक्ष्मी।
(2) आदिलक्ष्मी/ धन लक्ष्मी/ धान्य लक्ष्मी/ ऐश्वर्य लक्ष्मी/ गज लक्ष्मी/ वीर लक्ष्मी/ विजय लक्ष्मी/ संतान लक्ष्मी।
महाभारत में स्वयं श्री महालक्ष्मी ने बताया है कि मैं कहां-कहां हूँ- ‘मैं प्रयत्न में हूँ, उसके फल में हूं। शांति, प्रेम, दया, सत्य, सामंजस्य, मित्रता, न्याय, नीति, उदारता, पवित्रता और उच्चता- इन सबमें मेरा निवास है।
भक्त पर प्रसन्न होने पर वे धनवर्षा करती हैं। धन यानी केवल पैसा नहीं वरन वस्त्र, भोजन, पेय, धन-धान्य आदि इसके विस्तृत अर्थ में हैं। श्री महालक्ष्मी जो देती हैं, वह इससे भी अधिक बढ़कर चिरस्थायी और जीवनस्पर्शी है।
तभी तो कहते हैं कि अनैतिकता और दांव-पेंच से हासिल धन-दौलत, कामयाबी कब फिसल जाए, पता नहीं। सो इस दीपावली पर श्री महालक्ष्मी का पूजन कर सुख-शांति के आशीर्वाद की कामना करें।
दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधिसे बना है । आवली अर्थात पंक्ति । इस प्रकार दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । भारतवर्षमें मनाए जानेवाले सभी त्यौहारोंमें दीपावलीका सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टिसे अत्यधिक महत्त्व है । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ अर्थात् ‘अंधेरेसे ज्योति अर्थात प्रकाशकी ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है । अपने घरमें सदैव लक्ष्मीका वास रहे, ज्ञानका प्रकाश रहे, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति बडे आनंदसे दीपोत्सव मनाता है । प्रभु श्रीराम चौदह वर्षका वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, उस समय प्रजाने दीपोत्सव मनाया । तबसे आरंभ हुई दीपावली ! इसे उचित पद्धतिसे मनाकर आप सभीका आनंद द्विगुणित हो, यह शुभकामना !
दीपावली का दिन आने पर घर में खुशी की लहर दौड़ जाती है। बाजार में मिट्टी के दीपों, खिलौनों, खील-बताशों और मिठाई की दुकानों पर भीड़ होती है। दुकानदार, व्यापारी अपने बहीखातों की पूजा करते हैं और कई इसी दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत भी करते हैं।
संध्या के समय घर-आंगन और बाजार जगमगा उठते हैं। पटाखों की गूंज और फुलझड़ियों के रंगीन प्रकाश से चारों ओर खुशी का वातावरण उपस्थित हो जाता है। घर-घर में पकवान बनाए जाते हैं। बच्चों की स्कूल की छुट्टियों से इस त्योहार का मजा दोगुना हो जाता है।
रात्रि में पटाखे चलाए जाते हैं। लगभग पूरी रात पटाखों का शोरगुल बना रहता है। दीपावली की बधाइयों के आदान-प्रदान का सिलसिला चल पड़ता है।दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस बाजारों में चारों तरफ चहल-पहल दिखाई पड़ती है।
बर्तनों की दुकानों पर विशेष साजसज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं।
आयु के बिना धन, यश, वैभव का कोई उपयोग ही नहीं है। अतः सर्वप्रथम आयु वृद्धि एवं आरोग्य प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके पश्चात तेज, बल और पुष्टि की कामना की जाती है। तत्पश्चात धन, ज्ञान व वैभव प्राप्ति की कामना की जाती है। विशेषकर आयु व आरोग्य की वृद्धि के साथ ही अन्य प्रभागों की प्राप्ति हेतु क्रमिक रूप से यह पर्व धन-त्रयोदशी (धन-तेरस), रूप चतुर्दशी (नरक-चौदस), कार्तिक अमावस्या (दीपावली- महालक्ष्मी, कुबेर पूजन), अन्नकूट (गो-पूजन), भाईदूज (यम द्वितीया) के रूप में पाँच दिन तक मनाया जाता है।
दीपोत्सव यानी आनंद का उत्सव, उल्लास का उत्सव, प्रसन्नता का उत्सव, प्रकाश का उत्सव! दीपोत्सव केवल एक उत्सव ही नहीं है, परन्तु उत्सवों का स्नेह सम्मेलन भी है। धनतेरस, नरकचतुर्दशी, दीपावली, नया साल और भैयादूज ये पाँच उत्सव पाँच विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओं को लेकर इस उत्सव में सम्मिलित हुए हैं। सोच-समझकर यदि ये उत्सव मनाए जाएँ तो मानव को समग्र जीवन का सुस्पष्ट दर्शन प्राप्त हो सकता है।
धनतेरस : धनतेरस अर्थात् लक्ष्मीपूजन का दिन। भारतीय संस्कृति ने लक्ष्मी को तुच्छ या त्याज्य मानने की गलती कभी नहीं की है, उसने लक्ष्मी को माँ मानकर उसे पूज्य माना है। वैदिक ऋषि ने तो लक्ष्मी को संबोधन करके श्रीसूक्त गाया है –
ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्॥
‘महालक्ष्मी को मैं जानता हूँ! (जिस) विष्णु पत्नी का ध्यान करता हूँ, वह लक्ष्मी हमारे मन, बुद्धि को प्रेरणा दे।’
‘सुई के छेद से ऊँट निकल सकता है, लेकिन धनवान को स्वर्ग नहीं मिलेगा’ इस ईसाई धर्म के विधान से भारतीय विचारधारा सहमत नहीं है। भारतीय दृष्टि से तो धनवान लोग भगवान के लाडले बेटे हैं, गत जन्म के योगभ्रष्ट जीवात्मा हैं। ‘शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।’
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥
‘हे जातवेदस! मैं सुवर्ण गाय, घोड़े और इष्ट मित्र को प्राप्त कर सकूँ ऐसी अविनाशी लक्ष्मी मुझे तू दे।’
लक्ष्मी चंचल नहीं है अपितु लक्ष्मीवान मानव की मनोवृत्ति चंचल होती है। वित्त एक शक्ति है, उसके सहारे मानव देव भी बन सकता है और दानव भी। लक्ष्मी को केवल भोग प्राप्ति का साधन मानने वाला मानव पतन के गहरे गर्त में गिर जाता है, जबकि लक्ष्मी का मातृवत् पूजन करके उसे प्रभु का प्रसाद मानने वाला मानव स्वयं तो पवित्र बनता ही है, पर सृष्टि को भी पावन करता है। विकृत मार्ग पर व्यय की हुई अलक्ष्मी होती है, स्वार्थ में व्यय की हुई लक्ष्मी वित्त कहलाती है, परार्थे व्यय किया हुआ धनलक्ष्मी और प्रभुकायार्थ जो व्यय की जाती है वह महालक्ष्मी। महालक्ष्मी हाथी पर बैठकर सज-धजकर आती हैं। हाथी औदार्य का प्रतीक है।
सांस्कृतिक कार्य में उदार हाथ से लक्ष्मी को व्यय करने वाले के पास लक्ष्मी पीढ़ियों तक रहती है। रघुवंश उसका ज्वलंत उदाहरण है। लक्ष्मी एक महान् शक्ति होने के कारण अच्छे लोगों के हाथ में ही रहनी चाहिए, जिससे उसका सुयोग्य उपयोग हो। राजर्षियों के गुणगान करने वाली हमारी संस्कृति तथा कल्पना देने वाले ग्रीक तत्वचिंतक प्लेटो के मन में यही विचार रहे होंगे।
नरक चतुर्दशी, काल चतुर्दशी भी कहलाती है। उसकी भी एक कथा है। प्रागज्योतिषपुर का राजा नरकासुर अपनी शक्ति से शैतान बन गया था। अपनी शक्ति से वह सभी को कष्ट देता था, इतना ही नहीं सौंदर्य का वह शिकारी स्त्रियों को भी परेशान करता था। उसने अपने यहाँ सोलह हजार कन्याओं को बंदी बनाकर रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसका नाश करने का विचार किया। स्त्री उद्धार का यह कार्य होने के कारण सत्यभामा ने नरकासुर का नाश करने का बीड़ा उठाया। भगवान कृष्ण मदद में रहे। चतुर्दशी के दिन नरकासुर का नाश हुआ। उसके कष्ट से मुक्त हुए लोगों ने उत्सव मनाया। अँधेरी रात को, दीप जलाकर उन्होंने उजाला किया। असुर के नाश से आनंदित हुए लोग, नए वस्त्र पहनकर घूमने निकल पड़े।
दिवाली : दिवाली यानी वैश्यों का हिसाब-बही के पूजन का दिन। समग्र वर्ष का लेखा विवरण बनाने का दिन। इस दिन मानव को जीवन का भी लेखा बनाना चाहिए। राग-द्वेष, वैर-जहर, ईर्षा-मत्सर तथा जीवन से कटुता दूर कर नए वर्ष के दिन में प्रेम, श्रद्धा और उत्साह बढ़ाने का ध्यान रखना चाहिए।
नया वर्ष : नया वर्ष बलि प्रतिपदा भी कहलाता है। तेजस्वी वैदिक विचारों की उपेक्षा करके वर्णाश्रम व्यवस्था को उध्वस्त करने वाले बलि का भगवान वामन ने पराभव किया था। उसकी स्मृति में बलि प्रतिपदा का उत्सव मनाया जाता है। बलि दानशूर था, उसके गुणों का स्मरण नए वर्ष के दिन हमें बुरे मानव में भी स्थित शुभत्व को देखने की दृष्टि देता है। कनक और कांता के मोह में अंधा बना हुआ मानव असुर बनता है, इसलिए बलि का पराभव करने वाले भगवान विष्णु ने कनक और कांता की ओर देखने की विशिष्ट दृष्टि देखने वाले दो दिन प्रतिपदा के पास रखकर, तीन दिन का उत्सव मनाने का आदेश किया।
दिवाली के दिन कनक यानी लक्ष्मी की ओर देखने की पूज्य दृष्टि प्राप्त करनी चाहिए और भैयादूज के दिन समस्त स्त्री जाति को माँ या बहन की दृष्टि से देखने की शिक्षा लेनी चाहिए। स्त्री भोग्य नहीं है और त्याज्य भी नहीं है। वह पूज्य है, ऐसी मातृदृष्टि देने वाली संस्कृति ही मानव को विकारों के सामने स्थैर्य टिकाने की शक्ति दे सकती है। मोह यानी अंधकार। दीपोत्सव यानी अज्ञान और मोह के गाढ़े अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर प्रयाण।
दिवाली यानी दीपोत्सव। बाहर तो दीप जलाते हैं, परन्तु सही दीप तो दिल में प्रकट करना चाहिए। दिल में यदि अँधेरा हो तो बाहर प्रकट हुए हजारों दीप निरर्थक बन जाते हैं। दीपक ज्ञान का प्रतीक है। दिल में दीपक जलाना अर्थात् निश्चित समझदारी से दिवाली का उत्सव मनाना। धनतेरस के दिन वित्त अनर्थ न मानकर जीवन को सार्थक बनाने की शक्ति मानकर महालक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। नरक चतुर्दशी के दिन जीवन में नरक निर्माण करने वाले आलस, प्रमोद, अस्वच्छता, अनिष्टता आदि नरकासुरों को मारना चाहिए। दिवाली के दिन ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय!’ मंत्र की साधना करते-करते जीवन पथ प्रकाशित करना चाहिए, जीवन की बही का लेखा विवरण बनाते समय जमा में ईशकृपा रहे, इसलिए प्रभु कार्य के प्रकाश से जीवन को भर देना चाहिए।
* चंदन
* कपूर
* केसर
* यज्ञोपवीत 5
* कुंकु
* चावल
* अबीर
* गुलाल, अभ्रक
* हल्दी
* सौभाग्य द्रव्य- (मेहँदी * चूड़ी, काजल, पायजेब,बिछुड़ी आदि आभूषण)
* नाड़ा
* रुई
* रोली, सिंदूर
* सुपारी, पान के पत्ते
* पुष्पमाला, कमलगट्टे
* धनिया खड़ा
* सप्तमृत्तिका
* सप्तधान्य
* कुशा व दूर्वा
* पंच मेवा
* गंगाजल
* शहद (मधु)
* शकर
* घृत (शुद्ध घी)
* दही
* दूध
* ऋतुफल (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
* नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)
* इलायची (छोटी)
* लौंग
* मौली
* इत्र की शीशी
* तुलसी दल
* सिंहासन (चौकी, आसन)
* पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)
* औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि)
* लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)
* गणेशजी की मूर्ति
* सरस्वती का चित्र
* चाँदी का सिक्का
* लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
* सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
* लाल कपड़ा (आधा मीटर)
* पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
* दीपक
* बड़े दीपक के लिए तेल
* ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
* श्रीफल (नारियल)
* धान्य (चावल, गेहूँ)
* लेखनी (कलम)
* बही-खाता, स्याही की दवात
* तुला (तराजू)
* पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
* एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,
* खड़ा धनिया व दूर्वा आदि
* खील-बताशे
* अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र
सोलह दीप प्रज्ज्वलित करें :— लक्ष्मी पूजन के समय सोलह दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। माता लक्ष्मी से पूर्व दीप पूजन करें। पश्चात इन दीपों को घर के द्वार, रसोई, बाथरूम, पंडेरी (जहां जल पात्र रखे जाते हैं), छत, घर के देव स्थान तथा मंदिर में रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त श्रद्घा व सामर्थ्य अनुसार दीपक लगाए जा सकते हैं।
पति के पूर्व जागती है पत्नी :— दीपावली पर माता लक्ष्मी का पूजन धर्म व संस्कृति के साथ भारतीय परंपरा के महत्व को भी प्रतिपादित करता है। भारतीय परंपरा में पति से पूर्व पत्नी जागती है तथा घर की साफ-सफाई कर पति को जगाती है।
उसी अनुक्रम में दिवाली को देखा जा सकता है। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन होता है अर्थात माता लक्ष्मी पहले जाग जाती है। दिवाली से ग्यारह दिन पश्चात देवउठनी एकादशी आती है। धर्म शास्त्र की मान्यता अनुसार उस दिन भगवान श्री विष्णु जागते हैं।
पवित्रकरण :—-
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
ॐ अ-पवित्र-ह पवित्रो वा सर्व-अवस्थाम् गतोअपि वा ।
य-ह स्मरेत् पुण्डरी-काक्षम् स बाह्य-अभ्यंतरह शुचि-हि ॥
पुन-ह पुण्डरी-काक्षम् पुन-ह पुण्डरी-काक्षम्, पुन-ह पुण्डरी-काक्षम् ।
आसन :—
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वम् विष्णु-ना घृता ।
त्वम् च धारय माम् देवि पवित्रम् कुरु च-आसनम् ॥
आचमन :—
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें-
ॐ केशवाय नम-ह स्वाहा,
ॐ नारायणाय नम-ह स्वाहा,
ॐ माधवाय नम-ह स्वाहा ।
यह बोलकर हाथ धो लें—-
ॐ गोविन्दाय नम-ह हस्तम् प्रक्षाल-यामि ।
दीपक :—-
दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-
दीप देवि महादेवि शुभम् भवतु मे सदा ।
यावत्-पूजा-समाप्ति-हि स्याता-वत् प्रज्वल सु-स्थिरा-हा ॥
(पूजन कर प्रणाम करें)
निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥
द्-यौ-हौ शांति-हि अन्-तरिक्ष-गुम् शान्-ति-हि पृथिवी शान्-ति-हि-आप-ह ।
शान्-ति-हि ओष-धय-ह शान्-ति-हि वनस्-पतय-ह शान्-ति-हि-विश्वे-देवा-हा
शान्-ति-हि ब्रह्म शान्-ति-हि सर्व(गुम्) शान्-ति-हि शान्-ति-हि एव शान्-ति-हि सा
मा शान्-ति-हि। यतो यत-ह समिहसे ततो नो अभयम् कुरु ।
शम्-न्न-ह कुरु प्रजाभ्यो अभयम् न-ह पशुभ्य-ह। सु-शान्-ति-हि-भवतु॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्-महा-गण-अधिपतये नम-ह ॥
(नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर रखें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)
संकल्प :—-
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-
हरिॐ तत्सत् अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायाम् मम महालक्ष्मी-प्रीत्यर्थम् यथासंभव द्रव्यै-है यथाशक्ति उपचार द्वारा मम् अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम् च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानाम् पूजनम् च करिष्ये।
(जल छोड़ दें।)
श्रीगणेश-अंबिका पूजन—-
हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं श्रीअंबिका का ध्यान करें-
नए वर्ष के दिन पुराना वैर भूलकर शत्रु का भी शुभचिंतन करना चाहिए। नया वर्ष यानी शुभ संकल्प का दिन। भैयादूज के दिन स्त्री की ओर देखने की भद्र दृष्टि प्राप्त करनी चाहिए और भाई के स्नेह से समस्त स्त्री जाति को बहन के रूप में स्वीकार करना चाहिए। ऐसी सुंदर समझ देने वाला ज्ञान दीपक यदि दिल में हो तो हमारा जीवन सदैव दीपोत्सवी बना रहेगा।
इस तरह धन त्रयोदशी से यम द्वितीया तक का पर्व-काल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाला है। यह पर्व-काल भारतीय संस्कृति में अनेक वर्षों से अनवरत रूप से चला आ रहा है। दीपावली-पर्व की विशेषता यह है कि इसमें देवताओं के पूजन, अर्चन, हवन आदि-आदि के लिए जाति-वर्ण, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, बालक, क्षेत्रीयता आदि का कोई भेद ही नहीं है। समस्त मानव जाति अपने आत्म कल्याणार्थ, मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु इस पर्व को अपने-अपने ढंग से न केवल मनाते हैं बल्कि अपनी प्रसन्नता व खुशियों को समाज के अन्य अंगों के साथ मिल-जुलकर बाँटते हैं।
दीपावली के दिन पूजा के लिए मां लक्ष्मी किस प्रकार स्थापित करना है? यह ध्यान रखने वाली बात है। मां लक्ष्मी की चौकी विधि-विधान से सजाई जानी चाहिए।
03—स्थाई लक्ष्मी के लिए ये 10 चीजें जरूरी हैं, क्योंकि…—-
दीपावली-पूजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं एवं मांगलिक लक्ष्मी चिह्न सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांति और उल्लास लाने वाले माने जाते हैं इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
6- घर पर हमेशा बैठी हुई लक्ष्मी की और व्यापारिक स्थल पर खड़ी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
चने की दाल लक्ष्मी पर छिडक देनी चाहिए। दाल को महालक्ष्मी
के पूजन के बाद एकत्रित कर पीपल में विसर्जित कर दें।
15. धन तेरस के दिन हल्दी और चावल पीसकर उसके घोल
से घर के प्रवेश द्वार पर ऊँ बना दें।
16. दीपावली को लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में
शंख और डमरू बजाना चाहिए। इससे दरिद्रता घर से बाहर जाती
है, लक्ष्मी घर में आती हैं।
17. दीपावली की रात्रि में थोड़ी साबुत फिटकरी लेकर उसे
दुकान में घुमायें, फिर किसी भी चैराहे पर जाकर उसको उत्तर
दिशा की तरफ फेंक दें, दुकान में ग्राहकी बढेगी तथा धन लाभ में
वृद्धि होगी।
18. छोटी दीपावली की सुबह गजराज को गन्ने या कुछ मीठी
वस्तु अपने हाथ से खिलाये तो आर्थिक लाभ होगा।
19. छोटी दीपावली को प्रातःकाल स्थान करने के बाद सबसे
पहले लक्ष्मी विष्णु की प्रतिमा अथवा फोटो को कमलगटट्े की
माला और पीले पुष्प अर्पित करें, धन लाभ होगा।
20. दीपावली के पूजन से पहले आप किसी भी गरीब सुहागिन
स्त्री को अपनी पत्नी के द्वारा सुहाग सामग्री अवश्य दिलवायें,
साम्रगी में इत्र अवश्य होना चाहिए।
21. दीपावली की रात्रि में कुबेर यंत्र को पंचामृत से स्नान
कराकर रोली कुमकुम, केशर, लाल चंदन के साथ घिसकर तिलक
करें। शुद्ध घी के इक्कीस दीपक जलाकर रूद्वाक्ष की माला से
22.निम्न मंत्र का जाप करें तो धन लाभ अवश्य होगा–
“ॐ महालक्ष्म्ये च विद्महे विष्णु पत्न्ये च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात”
दीपावली की रात्रि अभिमंत्रित सम्पूर्ण महालक्ष्मी यंत्र को
पंच गव्य से शुद्धकर नागकेशर अर्पित करें व मूंगे की माला से
निम्न मंत्र का 21 माला जाप करें। इस उपाय से आपके व्यवसाय
में गति आयेगी।
23. यह लक्ष्मी गायत्री मंत्र है। यह सम्पति कारक तो है ही,
व्यापार में भी विशेष रूप से वृद्धि करता है। इस मंत्र का जाप
स्फिटिक की माला से करें।
24. एक नवीन पीले वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक
सिक्का, तांबे का टुकड़ा या सिक्का, चावल रखकर पोटली बना
लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप दीप से पूजन
करके सिद्ध कर लें, फिर तिजौरी में कहीं भी रख दें।
25.नारियल को चमकीले लाल वस्त्र में लपेटकर घर में
रखने से धन की वृद्धि होती है। व्यापार पर रखने से व्यापार में वृद्धि
होती है। जिस घर में एकांक्षी नारियल होता है, वहाँ स्वयं लक्ष्मी
वास करती हैं। रोग, शोक, दुःख, कष्ट, विपत्ति, दारिद्रय नष्ट होता
है एंव मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश प्राप्त होता है। व्यापार दिनो दिन
बढता है।
26. रात्रि 10 बजे के पश्चात् सब कार्यों से निवृत्त होकर, उत्तर
दिशा की और मुख करके पीले आसन पर बैठ जाएं अपने सामने
नौ तेल के दीपक जला लें। यह दीपक साधनाकाल तक जलते
रहने चाहिएं। दीपक के सामने एक लाल चावल की ढेरी बनाएं,
उस पर श्री यंत्र रखें। उनका भी कुंकुम, धूप, दीप से पूजन करें
और उसके पश्चात् सामने किसी प्लेट पर स्वास्तिक बनाकर पूजन करें।
27..रात्रि 10 बजे के पश्चात्, अपने सामने चैकी पर एक पानी
से भरा हुआ कलश रखें, उसमें शुद्ध केसर से स्वास्तिक का चिन्ह
बनाकर उसमें पानी भर दें, उसके पश्चात् चावल, भरके रख दें,
उसके ऊपर श्री यंत्र स्थापित कर दें, कुंकुम अक्षत से पूजन करें
और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए कामना करें।