“” जय जय श्री कृष्ण.””….

आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी(SHRI KRUSHN JANMASHTMI)…2 की हार्दिक शुभ मंगल कामनाएं….

शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होने के बाद मनुष्य का भाग्य चमक जाता है। इंसान के जीवन की सभी समस्याएं नष्ट हो जाती हैं और अच्छा समय प्रारंभ हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी (शुक्रवार, 10 अगस्त 2012) का दिन श्रेष्ठ है। जन्माष्टमी के दिन भगवान कन्हैया का जन्म हुआ था अत: इस दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करना चाहिए। 

जन्माष्टमी का व्रत रखने का उचित समय 9 अगस्त को 11 बजकर 12 मिनट बताया। भाद्र पक्ष कृष्णा अष्टमी (जन्माष्टमी) पक्ष का समापन 10 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 4. मिनट पर होगा, इसके बाद दोपहर 1 बजकर 44 मिनट से नवमी शुरू हो जायेगी। इसलिए इस दिन व्रत रखना शुभ नहीं। बताया कि हमारे शास्त्रों ऋग्वेद, यर्जुवेद से भविष्य पुराण, श्री पुराण से धर्म सिन्धु तक में स्पष्ट कहा गया है कि भाद्र पक्ष की कृष्ण पक्ष की अष्टमी में श्रीकृष्ण जी का जन्म मध्य रात्रि को 12 बजे हुआ था इसलिए नौ अगस्त को ही उनका जन्मदिन है। 

वेद-पुराणों द्वारा प्रतिपादित ज्योतिष शास्त्र में पूरे नव ग्रह श्रीकृष्ण के इर्द-गिर्द ही घूमते नजर आते हैं। पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि शनि, राहु व केतु जैसे महाकू्रर ग्रह श्रीकृष्ण के भक्तों को कष्ट पहुंचाना तो दूर, वे कृष्ण भक्तों को देख तक भी नहीं सकते। श्रीकृष्ण कारागृह में जन्म से लेकर धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र के युद्ध तक सारे जीवन में नवग्रहों के प्रभाव को मानव जीवन में स्थापित करते दिखते हैं। श्रीकृष्ण का भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र मे जन्में थे।

यह रोहिणी चंद्रमा का नक्षत्र है। जिस व्यक्ति का भी जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ है, उन्हें अनिवार्य रूप से श्रीकृष्ण की आराधना करनी ही चाहिए। साथ ही जन्म नक्षत्र पाया ‘सोना’ होने से सोने के पाए में जन्म लेने वाले सभी जातकों को श्रीकृष्ण की नियमित पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 

जिन लोगों का जन्म अमावस्या के आसपास हुआ हो या जिनकी जन्मपत्री में चंद्रमा क्षीण हो या अन्य किसी ग्रह से पीडित हो, उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए क्योंकि पाराशर मुनि ने श्रीकृष्ण को चंद्र का अवतार ही माना है-चंद्रस्य यदुनायक:। 

चंद्रमा के कमजोर होने से होने वाले सारे अरिष्ट श्रीकृष्ण के पूजन-अर्चन से खुद ब खुद ही दूर हो जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण मानव मात्र के लिए परम साधन-सिद्धिप्रदाता हैं। 

सारे शास्त्र श्रीकृष्ण को ही गुरुओं का गुरू कहते हैं-‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरूम्।’ श्रीकृष्ण महादेवता तो हैं ही, साथ ही वे योगीश्वर, कर्मयोग के प्रवर्तक और संसार के सबसे बडे ज्ञानसंग्रह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के उपदेशक भी हैं।  

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार श्रीकृष्ण सृष्टि के उत्पादक, नियामक और संहारक हैं। शास्त्रों की यह प्रबल मान्यता है कि श्रीकृष्ण ही संसार के हरेक जीव को ‘शेषी’ रूप से धारण करते हैं। भाद्रपद की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर इस दिन को खासा महत्व प्रदान किया है।

जगद्गुरू रामानंदाचार्य ने अपने ग्रंथ ‘वैष्णवमताब्जभास्कर’ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का निर्णय करते हुए लिखा है कि सिंह राशि में सूर्य के होने पर भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र से युक्त अर्द्धरात्रि में चंद्रोदय होने पर श्रीकृष्ण माता देवकी से प्रकट हुए। ऎसी पवित्र श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उल्लास-पूर्वक व्रतोत्सव, उपवास, श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना और रात्रि में जागरण करने का महाफल है। इस दिन श्रीकृष्ण की कथा सुनने और कहने मात्र से ही कई जन्मों के संचित पापों का नाश हो जाता है।

आइये जाने की कैसे करेंआपकी राशि अनुसार बताया जा रहा है कि भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा -????

मेष: इस राशि के लोगों को गंगाजल से राधा-कृष्ण का अभिषेक करना चाहिए। दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं और ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। दोपहर के समय माखन-मिश्री से हवन करें।
वृषभ: पंचामृत से अभिषेक करें। पंजीरी और ऋतुफल का भोग लगाएं। श्रीराधाकृष्ण शरणम् मम मंत्र का जाप करें। कमल गट्टे से हवन करें।
मिथुन: दूध से अभिषेक करें। पंचमेवा के साथ केले का भोग लगाएं। श्रीराधायै स्वाहा मंत्र का जाप करें। पंचमेवा से हवन करें।
कर्क: घी से अभिषेक करें। केसर की वर्फी का भोग लगाएं। श्रीराधावल्लभाय नम: मंत्र का जाप करें। कमल पुष्पों से हवन करें।
सिंह: गंगाजल में शहद मिलाकर अभिषेक करें। पंचामृत और गुलाब जामुन का भोग लगाएं। ऊं विष्णवे नम: मंत्र का जाप करें। माखन-मिश्री से हवन करें।
कन्या: दूध में घी मिलाकर अभिषेक करें। पिस्ता या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। ह्रीं श्रीं राधायै स्वाहा मंत्र का जाप करें। लौंग, इलायची और मिश्री से हवन करें।
तुला: दूध में शकर मिलाकर अभिषेक करें। माखन-मिश्री का भोग लगाएं। लीं कृष्ण लीं मंत्र का जाप करें। माखन-मिश्री से हवन करें।
वृश्चिक: पंचामृत से अभिषेक करें। पंचमेवा का भोग लगाएं। श्रीवृंदावनेश्वरी राधायै नम: मंत्र का जाप करें। पंचमेवा में कमल गट्टे मिलाकर हवन करें।
धनु: शहद से अभिषेक करें। ऋतुफल का भोग लगाएं। ऊं नमो नारायणाय मंत्र का जाप करें। हवन सामग्री में इत्र मिलाकर हवन करें।
मकर: गंगाजल से अभिषेक करें।  मावे की वर्फी का भोग लगाएं। ऊं  लीं गोपीजनवल्लभाय नम: मंत्र का जाप करें। हवन सामग्री में शहद मिलाकर हवन करें।
कुंभ: पंचामृत से अभिषेक करें। ऋतुफल का भोग लगाएं। इत्र अर्पित करें। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। हवन सामग्री में सफेद तिल मिलाकर हवन करें।
मीन: पंचामृत में तुलसी पत्र मिलाकर अभिषेक करें। पंचमेवा और गुलाब जामुन का भोग लगाएं। ऊं लीं गोकुलनाथाय नम: मंत्र का जाप करें। पंचमेवा या कमल पुष्पों से हवन  करें।

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