मित्रों कल शनिवार हें….आप सभी की जानकारी / ज्ञानवर्धन हेतु शनि दोष निवारण हेतु कुछ उपाय/तरीके निम्न हें ध्यान से विधिपूर्वक संपन्न करें—
सभी राशियों के लिये शनि देव को शांत और प्रसन्ना करने के लिए के निम्न .1 उपाय इस प्रकार से है—-
आशा करता हूँ की जिस भाई-बहन की कुंडली में शनिदेव के साढ़े सत्ती या शनि महादशा चल रही हो उनके लिए कल्याणकारी होगी..
उपाय इस प्रकार से है —
ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥,ॐ शनैश्वराय नमः॥
१- शनिवार को हनुमान मन्दिर में पूजा उपासना कर तथा प्रसाद चढायें.
शनि देव को शांत करने के लिए वेदों में प्रायः हनुमान जी की पूजा बताए गई है , अगर इन्शान हनुमान जी की पूजा करे तो शनि अपने आप ही शांत रहता है
२-शनिवार को सरसों के तेल में अपनी छाया देख कर दान करना चाहिए
३ -मध्यमा अंगूली में काले घोडे की नाल का छल्ला धारण करें.
४- घर में पूजा स्थान में पारद शिवलिंग रखें. तथा उसके सामने प्रतिदिन महामृ्त्त्युंजय मंत्र का जाप कर्रें.
५- स्वास्तिक अथवा अन्य मांगलिक चिन्ह घर के मुख्य द्वार पर लगायें.
६- शनि स्तोत्र का प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक जाप करें.
७- काले घोडे की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा अंगुळी में धारण करें.
८ – प्रतिदिन शनि महा मंत्र का जाप करने से घर में सुख शांति रहती है और शनि देव सभी मनोरथ को पूरा करते है मंगलमय वातावरण बना रहता है ,
९- शनिवार के दिन नारियल अथवा बादाम को जल प्रवाह करें.
१०- शनिवार को साबुत उडद किसी भिखारी को दान करें.या पक्षियों को ( कौए ) खाने के लिए डाले ,
११- पीपल के पेड पर जल चढायें.या हनुमान जी को मंगल और शनिवार के दिन सिंदूर चढ़ाएं
दशरथकृत शनि स्तोत्र—-
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥.॥
नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥.॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्चसि विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता:सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥
शनि मंत्र—-
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम: l
सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत: l
नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते l
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकायच l
नमस्ते मंदसंज्ञाय नमस्ते सौरयेविभो l
नमस्ते यमसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते l
प्रसादं कुरु देवेश: दीनस्य प्रणतस्यच ल
शनि स्त्रोत्—–
निलान्जनम समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
सूर्य पुत्रो दीर्घ देहो विशालाक्षः शिवप्रियः।
मन्दचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनिः ॥
कोणस्थ पिंगलो ब्रभू कृष्णो रौद्रो दंतको यमः।
सौरिः शनैश्वरो मन्दः पिप्पालोद्तः संस्तुतः॥
एतानि दशनामानी प्रातः रुत्थाय य पठेतः।
शनैश्वर कृता पिडा न कदाचित भविष्यती॥
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स्वामी विशाल चैतन्य (पंडित दयानन्द शास्त्री )
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