ये ज्योतिषीय योग बनाते हें आपको डॉक्टर/चिकित्सक/DOCTOR —–
जन्म पत्रिका में अनेक प्रकार के योगों का निर्माण ग्रहों की स्थिति अनुसार होता है। ग्रहों से बनने वाले योगों में से कुछ योग ऎसे होते हैं, जो व्यक्ति के चिकित्सक बनने में सहायक होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
कुंडली में आत्मकारक ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित होकर लग्न में हों और उनकी युति पंचमेश से होने पर व्यक्ति को चिकित्सक बनाने में सहायक है।
मेष, सिंह, धनु या वृश्चिक राशि का संबंध दशम भाव से होने पर व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
राहू-केतु बली व शुभ स्थान पर होने से व्यक्ति चिकित्सक बनता है।
दशम भाव या दशमेश से मंगल अथवा केतु का दृष्टि-युति संबंध होने पर शल्य चिकित्सक व्यक्ति बन सकता है।
एकादश भाव आय का, पंचम भाव संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव है। इस एकादश भाव से पंचम भाव पर सूर्य, चंद्र, शुक्र की सप्तम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। वहीं मंगल की दशम भाव से अष्टम एकादश भाव से सप्तम व धन, कुटुंब भाव से चतुर्थ दृष्टि पूर्ण पती है। गुरु धर्म, भाग्य भाव नवम से पंचम भाव पर नवम दृष्टि डालता है तो एकादश भाव से सप्तम लग्न से पंचम दृष्टि पूर्ण पती है। शनि की तृतीय दृष्टि तृतीय भाई, पराक्रम भाव से एकादाश भाव से सप्तम व अष्टम भाव से दशम पूर्ण दृष्टि पड़ती है। यहाँ पर हमारे अनुभव अनुसार राहु-केतु जो छाया ग्रह हैं, उनके बारे में विशेष फल नहीं मिलता न ही इनकी दृष्टि को माना जाता है न ही किसी एकादश भाव पर रहने से पंचम भाव पर कोई असर आता है।
एकादश भाव आय का, पंचम भाव संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव है। इस एकादश भाव से पंचम भाव पर सूर्य, चंद्र, शुक्र की सप्तम पूर्ण दृष्टि पती है। वहीं मंगल की दशम भाव से अष्टम एकादश भाव से सप्तम व धन, कुटुंब भाव से चतुर्थ दृष्टि पूर्ण पती है। गुरु धर्म, भाग्य भाव नवम से पंचम भाव पर नवम दृष्टि डालता है तो एकादश भाव से सप्तम लग्न से पंचम दृष्टि पूर्ण पती है। शनि की तृतीय दृष्टि तृतीय भाई, पराक्रम भाव से एकादाश भाव से
सप्तम व अष्टम भाव से दशम पूर्ण दृष्टि पती है। यहाँ पर हमारे अनुभव अनुसार राहू-केतु जो छाया ग्रह है उनके बारे में विशेष फल नहीं मिलता न ही इनकी दृष्टि को माना जाता है न ही किसी एकादश भाव पर रहने से पंचम भाव पर कोई असर आता है।
सर्वप्रथम सूर्य को लें यहां से यदि पंचम भाव पर सिंह राशि अपनी स्वदृष्टि से देखता है तो भले ही आय में कमी हो, लेकिन विद्या व संतान उत्तम होती है, संतान के बहोने पर लाभ मिलता है। एकादश भाव में कोई ग्रह हो, नीच को छोसभी शुभफल प्राप्त होते हैं। सूर्य की तुला राशि पर दृष्टि संतान व विद्या में कष्टकारी होती है। अतः ऐसे जातकों को सूर्य की आराधना व सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान अपने शरीर से सात या नौ बार उतार कर रविवार को करना चाहिए। इस प्रकार अनिष्ट प्रभाव से बचा जा सकता है। जिन ग्रहों की नीच दृष्टि पउससे संबंधित दान करें।
चंद्रमा की स्वदृष्टि पंचम भाव पर पतो जातक शांति नीति वाला, ज्ञानी, सच्चरित्र, गुणी, मान-सम्मान पाने वाला होता है उसे भूमि में गधन मिलता है। ऐसा जातक मिलनसार होता है। अशुभ वृश्चिक राशि को देखता हो तो चंद्र की वस्तु दान करना ही श्रेष्ठ रहेगा। मंगल की शत्रु नीच दृष्टि यदि पंचम भाव पर पती हो तो संतान से कष्ट, विद्या में कमी रहती है। यदि मित्र स्वदृष्टि हो तो संतान आदि में उत्तम लाभ रहता है।
यदि मंगल दशम भाव से स्वदृष्टि वृश्चिक राशि को देखता हो तो वह जातक चिकित्सा क्षेत्र में होता है और सर्जन बनता है। ऐसा जातक यदि फौजदारी में रहे व वकालात करे तो भी लाभ पाता है। मंगल की चतुर्थ दृष्टि पंचम भाव पर उच्च, स्व मित्र दृष्टि के रुप में पतो वह विद्या के क्षेत्र में उत्तम लाभ पाता है। वहीं उसकी संतान भी स्वस्थ, उत्तम, धनी होती है। धन कुटुंब से भी उत्तम लाभ पाता है। मंगल की नीच शत्रु दृष्टि पसे धन, कुटुंब से हानि, विद्या में मन न लगना आदि होता है। बुध की उच्च स्वदृष्टि संतान, विद्या में उत्तम लाभकारी होती है। मित्र दृष्टि हो तो जातक को सभी सुख मिलते हैं। ऐसा जातक चित्रकला, शिल्पकला, लेखक, पत्रकार आदि होता है। व्यापार-व्यवसाय में भी सफल होता है।
गुरु यदि पंचम दृष्टि से देखता हो तो वह जातक ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ, आज्ञाकारी होता है। न्यायाधीश, उच्च प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकता है। वृषभ का गुरु होकर पंचम भाव को देखता हो तो ऐसा जातक कामातुर होता है। नवम भाव से गुरु पंचम भाव पर दृष्टि स्व, उच्च, मित्र रखता हो तो ऐसा जातक विद्वान, ज्ञानी, संतों का सेवक, धर्म-कर्म में पूर्ण आस्थावान होता है तथा उसकी संतान भाग्यशाली होती है। गुरु की एकादश भाव से पूर्ण दृष्टि पती है तो ऐसा योग संतान में बाधक भी बन जाता है व देर से संतान होती है। शत्रु या नीच दृष्टि पती हो तो उसकी स्त्री बांझ भी हो सकती है। संतान अधर्मी, कष्टकारी होती है, लेकिन ऐसा जातक धन से सुखी होता है।
शुक्र की एकादश भाव से स्वदृष्टि विद्या, मनोरंजन के क्षेत्र से, इलेक्ट्रॉनिक, व्यापार से, इंजीनियर में सफलता पाता है। मनोविनोदी कन्या संतति अधिक होती है। ऐसे जातकों के अनेक स्त्रियों से संबंध होते है। मित्रों से लाभ पाने वाला, खर्चीला भी होता है।
शनि की पंचम भाव पर तृतीय भाव से तृतीय स्व, उच्च दृष्टि, मित्र दृष्टि विद्या में, संतान आदि में थोविलंब से लाभ दिलाती है व जातक संतान से दुःखी रहता है। शनि की एकादश भाव से पूर्ण दृष्टि स्व, मित्र पसे राज्यपक्ष से लाभ पाने वाला, वाहनादि से पूर्ण, उत्तम धन पाने वाला रहता है। शनि की दशम दृष्टि अष्टम भाव से पत्नी से सुखी रखती है वहीं संतान भी आज्ञाकारी होती है, लेकिन शत्रु नीच दृष्टि पतो संतान आदि से कष्ट मिलता है।
उपरोक्त ग्रह स्थिति में किसी भी ग्रह कीअशुभ दृष्टि पंचम भाव पर पती हो तो उन ग्रहों से संबंधित दान की वस्तुएँ उसी दिन को अपने शरीर से 9 बार उतारकर उसी रंग के कपमें बांधकर जमीन में गादेने से अशुभ प्रभाव में न्यूनता आ जाती है।
चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता पाने की चाह रखने वालों के शनि और राहु सहायक ग्रह होते हैं। शनि चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश करवाता है। शनि लौह तत्व का कारक है तथा डॉक्टरों का अधिकतम कार्य लोहे से बने औजारों और मशीनों से ही होता है। शनि में साथ यदि राहु की भी सही स्थिति कुंडली में बन जाए तो व्यक्ति डॉक्टर होने के साथ-साथ शल्य चिकित्सक या विशेषज्ञ होता है।
चिकित्सा शिक्षा में बेहतर परिणाम कैसेयदि जातक की कुंडली में शनि कर्म, पराक्रम सप्तम आय स्थान में स्थित हो तो विद्यार्थी का रुझान फिजिक्स, कैमेस्ट्री, बॉयोलॉजी की तरफ होता है। यदि इन्हीं घरों में शनि उच्च का स्वग्रही या मित्र राशि में हो तो डॉक्टरी पेशे में उसको विशेष दक्षता प्राप्त होती है। शनि कमजोर हो तो थोड़ी सी अधिक मेहनत कर बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
सूर्य का प्रभाव—-
सर्वप्रथम सूर्य को लें यहाँ से यदि पंचम भाव पर सिंह राशि अपनी स्वदृष्टि से देखता है तो भले ही आय में कमी हो, लेकिन विद्या व संतान उत्तम होती है, संतान के बहोने पर लाभ मिलता है। एकादश भाव में कोई ग्रह हो, नीच को छोसभी शुभफल प्राप्त होते हैं। सूर्य की तुला राशि पर दृष्टि संतान व विद्या में कष्टकारी होती है। अतः ऐसे जातकों को सूर्य की आराधना व सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान अपने शरीर से सात या नौ बार उतारकर रविवार को करना चाहिए। इस प्रकार अनिष्ट प्रभाव से बचा जा सकता है। जिन ग्रहों की नीच दृष्टि पड़े, उससे संबंधित दान करें।
चंद्रमा का प्रभाव—-
चंद्रमा की स्वदृष्टि पंचम भाव पर पड़े तो जातक शांति नीति वाला, ज्ञानी, सद्‍चरित्र, गुणी, मान-सम्मान पाने वाला होता है उसे भूमि में गड़ा धन मिलता है। ऐसा जातक मिलनसार होता है। अशुभ वृश्चिक राशि को देखता हो तो चंद्र की वस्तु दान करना ही श्रेष्ठ रहेगा। मंगल की शत्रु नीच दृष्टि यदि पंचम भाव पर पती हो तो संतान से कष्ट, विद्या में कमी रहती है। यदि मित्र स्वदृष्टि हो तो संतान आदि में उत्तम लाभ रहता है।
लग्न, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में सूर्य, चंद्रमा अथवा गुरू के साथ मंगल की युति जातक को डॉक्टर बनाने में सहायक है।
यदि लग्न में मंगल स्वराशि अथवा उच्च राशि का हो, सूर्य पंचम भाव से संबंध बनाए, तो ऎसे योग वाला सर्जरी में निपुण होता है।
कुंडली में सूर्य, मंगल और गुरू सहित केतु भी बली होकर लग्न, पंचम और दशम भाव से संबंध बनाए, तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता पाता है।
यदि जन्मकुंडली में कर्क राशि और मंगल दोनों बलवान हों तथा लग्न एवं दशम भाव से मंगल और राहू का संबंध किसी भी रूप में हो, तो जातक चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। ऊपर बताए गए सामान्य योग हैं। पूर्ण जानकारी के लिए ज्योतिषी को कुंडली दिखाएं…
शनि-राहु बनाएंगे डॉक्टर !
चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता पाने की चाह रखने वालों के शनि और राहु सहायक ग्रह होते हैं। शनि चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश करवाता है। शनि लौह तत्व का कारक है तथा डॉक्टरों का अधिकतम कार्य लोहे से बने औजारों और मशीनों से ही होता है। शनि में साथ यदि राहु की भी सही स्थिति कुंडली में बन जाए तो व्यक्ति डॉक्टर होने के साथ-साथ शल्य चिकित्सक या विशेषज्ञ होता है।

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