ये केसा और क्यों हें वैलेंटाइन डे(Valentine Day)…???
प्रेम का पर्व या संस्कारों का अवमूल्यन ????
आइये जरा मिलकर विचार करें/सोचें.
किसी भी समाज अथवा संस्कृति में प्रेम के सभी रूप देखने को मिळते है .
प्रेम ही क्यो , मानवीय भावनाये अपने सभी रूपो में पायी जाती है. भारतीय संस्कृति में अगर निष्काम प्रेम के उदाहरण है ,तो सकाम प्रेम ,घ्रीणा, ईर्ष्या ,लोभ,विश्वासघात इत्यादि के उदाहरण भी काम नही. प्रेम अपने सभी रूपो में अच्छा ही है , न कि केवळ निष्काम रूप
में ही . सभी संतो ने ,चाहे वो किसी भी धर्म या संस्कृति से हो ,प्रेम की
महत्ता को बताया है और प्रेम करने की सलाह भी दी है. आपके ,हमारे माता –
पिता का प्रेम भी निष्काम तो नही ही रहा है . ‘नर और मादा’ मनुष्य का प्रेम भी
ईश्वर का अद्भुत वरदान ही है. वैलेइन्ताइन का प्रेम केवळ सकाम ही नही है .
संस्कृति जन्य धारनाये एवं वर्जनाये उसके स्वरूप को समाज स्वीकृत रूप तक
सीमित रखती है ,जो अलग अलग समाज में अलग अलग हो सकती है.
सांस्कृतिक प्रदूषण तो फ़ैलाया ही जा रहा है।सांस्कृतिक प्रदुषण है इस तरह के त्यौहार… वैसे भी वेलेंटाइन ने व्यभिचार से अपने देश को बचने के लिए विवाह करने पर जोर दिया था… लेकिन उसी वेलेंटाइन के नाम पर आज विश्व व्यभिचार कर रहे हैं…काम प्रेम का एक अंग हो सकता है मगर ये पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में काम को प्रेम का पर्याय बनाने पर आमादा है ..यहाँ प्रेम की शुरुवात और अंत आत्मा से न होकर जिस्म की गोलाइयों तक सिमित हो गया जो कम से कम भारतीय परिवेश में वर्जित है…
वर्तमान महानगरीय परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करने की जो यात्रा शुरू हुई है उसका एक पड़ाव फ़रवरी महीने की १४ तारीख है,हालाँकि प्रेम की अभिव्यक्ति किसी भी प्रकार की हो सकती हैI माँ-बाप,बेटा,भाई,बहन किसी के लिए मगर ये त्यौहार वर्तमान परिवेश में प्रेमी प्रेमिकाओं के त्यौहार के रूप में स्थापित किया गया हैI आज कल के युवा या यूँ कह ले आज कल कूल ड्यूड्स बड़े जोर शोर से इस त्यौहार को मना कर आजादी के बाद भी, अपनी बौधिक और मानसिक गुलामी का परिचय देते मिल जायेंगे Iपिछले १५-२० वर्षों में इस त्यौहार ने भारतीय परिवेश में अपनी जड़े जमाना प्रारम्भ किया और अब इस त्यौहार के विष बेल की आड़ में हमारी युवा पीढ़ी में बचे खुचे हुए भारतीय संस्कारो का अवमूल्यन किया जा रहा हैI इस त्यौहार के सम्बन्ध में कई किवदंतियां प्रचलित है में उनका जिक्र करके उनका विरोध या महिमामंडन कुछ भी नहीं करना चाहूँगा क्यूकी भारतीय परिवेश में ये पूर्णतः निरर्थक विषय हैI
मेरे मन में एक बड़ा सामान्य सा प्रश्न उठता है की प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए हम एक खास दिन ही क्यों चुने??जहाँ तक प्रेम के प्रदर्शन की बात है हमारे धर्म में प्रेम की अभिव्यक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है मीरा और राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम I मगर महिमामंडन वैलेंटाइन डे का?कई बुद्धिजीवी(या यूँ कह ले अंग्रेजों के बौधिक गुलाम) अक्सर ये कुतर्क करते दिखते हैं की इसे आप प्रेमी प्रेमिका के त्यौहार तक सीमित न करे, मेरी बेटी मुझे वैलेंटाइन की शुभकामनायें देती है,और पश्चिम में फादर डे,मदर डे भी मनाया जाता है I
मेरा ऐसे बौधिक गुलाम लोगो से प्रश्न है की,अगर पश्चिम में मानसिक और बौधिक रूप से इतना प्रेम भरा पड़ा है की, वहां से प्रेम का त्यौहार, हमे उस धरती पर आयात करना पड़ रहा है जहाँ निष्काम प्रेम में सर्वस्व समर्पण की प्रतिमूर्ति मीराबाई पैदा हुई, तो पश्चिम में ओल्ड एज होम सबसे ज्यादा क्यों हैं?? क्यों पश्चिम का निष्कपट प्रेम वहां होने वाले विवाह के रिश्तों को कुछ सालो से ज्यादा आगे नहीं चला पाता.उस प्रेम की मर्यादा और शक्ति तब कहा होती है ,जब तक बच्चा अपना होश संभालता है ,तब तक उसके माता पिता कई बार बदल चुके होते हैं और जवानी से पहले ही वो प्रेम से परे एकाकी जीवन व्यतीत करता है इ
ये कुछ विचारणीय प्रश्न है उन लोगो के लिए जो पाश्चात्य सभ्यता की गुलामी में अपनी सर्वोच्चता का अनुभव करते हैं I
ये कैसी प्रेम की अनुभूति है जब पिता पुत्र से कहता है की तुम्हारा कार्ड मिला थैंक्यू सो मच..और फिर वो एक दूसरे से सालो तक मिलने की जरुरत नहीं समझते I ये कौन से प्रेम की अभिव्यक्ति है जब प्रेमी प्रेमिका विवाह के समय अपने तलाक की तारीख भी निश्चित कर लेते हैं,और यही विचारधारा हम वैलेंटाइन डे:फादर डे मदर डे के रूप में आयात करके अपने कर्णधारो को दे रहे हैंI
मैं किसी धर्म या स्थान विशेष की मान्यताओं के खिलाफ नहीं कह रहा मगर मान्यताएं वही होती है जो सामाजिक परिवेश में संयोज्य हो I आप इस वैलेंटाइन वाले प्रेम की अभिव्यक्ति सायंकाल किसी भी महानगर के पार्क में एकांत की जगहों पर देख सकते हैंI
क्या ये वासनामुक्त निश्चल प्रेम की अभिव्यक्ति है?? या ये वासना की अभिव्यक्ति हमारे परिवेश में संयोज्य है? शायद नहीं,तो इस त्यौहार का इतना महिमामंडन क्यों?? मेरे विचार से भारतीय परिवेश में प्रेम की प्रथम सीढ़ी वासना को बनाने में इस त्यौहार का भी एक योगदान होता जा रहा है I आंकड़े बताते हैं की वैलेंटाइन डे के दिन परिवार नियोजन के साधनों की बिक्री बढ़ जाती हैI क्या इसी वीभत्स कामुक नग्न प्रदर्शन को आप वैलेंटाइन मनाने वाले बुद्धिजीवी प्रेम कहते हैं?
इस अभिव्यक्ति में बाजारीकरण का भी बहुत हद तक योगदान है कुछ वर्षो तक १-२ दिन पहले शुरू होने वाली भेडचाल वैलेंटाइन वीक से होते हुए वैलेंटाइन मंथ तक पहुच गयी है. मतलब साफ़ है इस नग्न नाच के नाम पर उल जलूल उत्पादों को भारतीय बाज़ार में भेजनाIटेड्डी बियर, ग्रीटिंग कार्ड से होते हुए,भारत में वैलेंटाइन का पवित्र प्यार कहाँ तक पहुच गया है नीचे एक विज्ञापन से आप समझ सकते हैं??
वस्तुतः ये वैलेंटाइन डे प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन न होकर हमारे परिवेश में बाजारीकरण और अतृप्त लैंगिक इच्छाओं की पाशविक पूर्ति का एक त्यौहार बन गया है,जिसे महिमामंडित करके गांवों के स्वाभिमानी भारत को पश्चिम के गुलामो का इंडिया बनाने का कुत्षित प्रयास चल रहा हैIउमीद है की युवा पीढ़ी वैलेंटाइन डे के इतिहास में उलझने की बजाय गुलाम भारत के आजाद भारतीय विवेकानंद के इतिहास को देखेगी,जिन्होंने पश्चिम के आधिपत्य के दिनों में भी अपनी संस्कृति और धर्म का ध्वजारोहण शिकागो में किया..
किसी भी धर्म अथवा संस्कृति के लिये विरोध , विष वमन, नीचा दिखाना
हमारी संकुचित विचारधारा अथवा निहित स्वार्थ का पारिचायक तो हो सकता है
परंतु हमारी संस्कृति का हिस्सा नही . नयी पीढी के लिये अच्छे उदाहरणो की
जरूरत है..आगे बढ़ने के चक्कर में बाजार के हाथों का खिलौना बन रहे हैं हम लोग।
वेसे भी हमारी पुरातन संस्कृति में ( वेद,पुराण एवं अन्य धार्मिक ग्रंथो में इससे बेहतर “वसंत उत्सव/मदनोत्सव का वर्णन किया गया हें…ये पश्चिम वाले क्या करेंगे हमारा मुकाबला..और तो और इस बात की शिक्षा देने के लिए हमारे धार्मिक स्थलों( मंदिरों) पर भी इस बात को दर्शाया गया हें?? नहीं क्या..??
आइये जरा मिलकर विचार करें/सोचें…क्या यही हें हमारी आदर्श भारयीय सांस्कृतिक धरोहर/व्यवस्था..???
“”शुभम भवतु””कल्याण हो…
पंडित दयानंद शास्त्री

1 COMMENT

  1. વૈલેંટાઇન ડે કયો ન મનાએ? એ ભારત કે ખ્રિસ્તીઓ કા ત્યોહાર હૈ . જિસ દેશને કામસુત્ર વિશ્વકો દિયા ઉસકે લોગ એ બર્દાશ કયો ન કર સકતે ?
    ભારત મેં સબ દેવતાઓ કી પૂજા કી જાતી હૈ લેકિન કામદેવ કી પૂજા નહીં કી જાતી, કયો ? વેલેનટાઈન દિન કા નયા નામ કામાદેવાધિન દિન રખકે ત્યોહાર મનાના ચાહીએ .
    http://en.wikipedia.org/wiki/Valentine's_Day
    http://en.wikipedia.org/wiki/Khajuraho

    • consultation fee—
      for kundali—…0/-
      for vastu 5100/- ( 1000 squre feet)
      for palm reading/ hastrekha–1500/-
      ———————————————–
      (A )MY BANK a/c. No. FOR- PUNJAB NATIONAL BANK- 4190000100154180 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH NO.-
      ======================================
      (B )MY BANK a/c. No. FOR- BANK OF BARODA- a/c. NO. IS- .9960100003683 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH NO.-
      ============================================= (c) MY BANK a/c. No. FOR- STATE BANK OF BIKANER & JAIPUR;/ BRANCH-JHALRAPATAN (RA.). IS- 61048420801/; BRANCH NO.-
      ===============================================
      कैसा होगा आपका जीवन साथी? घर कब तक बनेगा? नौकरी कब लगेगी? संतान प्राप्ति कब तक?, प्रेम विवाह होगा या नहीं?वास्तु परिक्षण , वास्तु एवं ज्योतिषीय सामग्री जैसे रत्न, यन्त्र के साथ साथ हस्तरेखा परामर्श सेवाएं भी उपलब्ध हें.
      ज्योतिष समबन्धी समस्या, वार्ता, समाधान या परामर्श के लिये मिले अथवा संपर्क करें :-
      प. दयानंद शास्त्री,
      मोब.—-..,
      ..No.-.(RAJ.),

    • consultation fee—
      for kundali—…0/-
      for vastu 5100/- ( 1000 squre feet)
      for palm reading/ hastrekha–1500/-
      ———————————————–
      (A )MY BANK a/c. No. FOR- PUNJAB NATIONAL BANK- 4190000100154180 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH NO.-
      ======================================
      (B )MY BANK a/c. No. FOR- BANK OF BARODA- a/c. NO. IS- .9960100003683 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH NO.-
      ============================================= (c) MY BANK a/c. No. FOR- STATE BANK OF BIKANER & JAIPUR;/ BRANCH-JHALRAPATAN (RA.). IS- 61048420801/; BRANCH NO.-
      ===============================================
      कैसा होगा आपका जीवन साथी? घर कब तक बनेगा? नौकरी कब लगेगी? संतान प्राप्ति कब तक?, प्रेम विवाह होगा या नहीं?वास्तु परिक्षण , वास्तु एवं ज्योतिषीय सामग्री जैसे रत्न, यन्त्र के साथ साथ हस्तरेखा परामर्श सेवाएं भी उपलब्ध हें.
      ज्योतिष समबन्धी समस्या, वार्ता, समाधान या परामर्श के लिये मिले अथवा संपर्क करें :-
      प. दयानंद शास्त्री,
      मोब.—-..,
      ..No.-.(RAJ.),
      “आओ भरले इन रंगो को हम सब ही के जीवन मे, खुशियो को सतरंगी करले हम सब के ही जीवन मे, फ़ेंक उदासी झूमो गाओ हर चेहरा इन्द्रधनुषी हो जाये, मुस्कानो की फ़सल उगादे हम सब के ही जीवन मे,
      u can call me–09024390067(rajasthan)…(uttarakhand.)..mob.– 09711060179(delhi)…..waiting.
      मक्की की रोटी नींबू का अचार
      सूरज की किरणें खुशियों की बहार
      चांद की चांदनी अपनॊं का प्यार
      मुबारक हो आपको होली का त्यौहार।
      एक ऐसा त्यौहार जिसमें मानो दुनिया की समस्त उदासी , हताशा ,निराशा ,,रंगों की अद्भुत छटा में आनंद में परिवर्तित हो जाती है ……….गरीब अमीर …सुंदर असुंदर ..छोटे बड़े ..ऊँचे नीचे ..सब भेदभाव होली रंगों से सराबोर होकर एक हो जाते हैं …..मानो सब पर एक दीवानगी सी छा जाती है ..हमें गर्व है की हमने उस देश में जन्म लिया है जहां होली जैसा त्यौहार मनाया जाता है ….हमें गर्व है की हमने दुनिया के महानतम हिंदू धर्म में जन्म लिया है ..जिसमें स्वयं परमात्मा —कृष्ण रूप से प्रगट होकर पावन धरा पर आनंद की वो धारा बहा देते हैं की हजारों वर्ष बीत जाने पर भी जो कृष्ण के प्रेम में रंग जाता है वो स्वयं आनंद का सिंधु बन जाता है ……..होली पर यूँ तो सब और रंगों की बहार दिखाई देते है लेकिन आनंद की इस पावन धरा पर कुछ लोग बहुत ही दुर्भाग्य शाली हैं ..हम तो अपने नटखट कान्हा की अद्भुत लीलाओं में मगन हैं ….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here