हृदय रोग से बचाता हें गाय माता का दूध—
(निवेदन के साथ ..गाय माता के दूध का महत्व —पूरा लेख ध्यान से पढियेगा)—
भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है। इसे कामधेनु कहा गया है। इसका दूध बच्चों के लिए बेहद पौष्टिक माना गया है और बुद्धि के विकास में कारगर भी।सभी जानवरों में गाय का दूध सबसे ज्यादा फायदेमंद माना गया है। उसमें भी देसी नस्ल की गाय का दूध ही सबसे ज्यादा महत्चपूर्ण है। आखिर देसी नस्ल की गाय में क्या खूबियां होती हैं जो उसके दूध का इतना महत्व होता है। गाय के दूध का महत्व उसमें मौजूद तत्व बढ़ाते हैं।सेहत के लिहाज से गाय का दूध फायदेमंद तो है ही, अब एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि हिमाचल प्रदेश में पली-बढ़ी गाय के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन हृदय की बीमारी, मधुमेह से लड़ने में कारगर और मानसिक विकास में सहायक होता है।गाय और गाय के दूध के बारे जितना कहा जाए उतना ही कम होगा। गाय और उसके दूध के महान गुणों को देखकर ही तो गाय को मां कहकर भगवान के समान सम्मान दिया गया है। भारत और खासकर हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां, देवी और भगवान का दर्जा दिया गया है, जो कि उचित भी है। भारतीय गायों की एक खाशियत ऐसी है जो दुनिया की अन्य प्रजातियों की गायों में नहीं होती। भारतीय नश्ल की गायों के शरीर में एक सूर्य ग्रंथि यानी सन ग्लैंड्स पाई जाती है। इस सूर्य ग्रंथि की ही यह खाशियत है कि यह उसके दूध को बेहद गुणकारी और अमूल्य औषधी के रूप में बदल देती है।
दूध एक अपारदर्शी सफेद द्रव है जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनाया जता है। नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है। साधारणतया दूध में ८५ प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज व वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है। दूध प्रोटीन, कैल्शियम और राइबोफ्लेविन ( विटामिन बी -२) युक्त होता है, इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयोडीन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है। इसके अलावा इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं।[.]
चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में पशुचिकित्सा सूक्ष्मजैविकी विभाग के शोधार्थियों ने बताया, ‘पहाड़ी’ गाय की नस्ल की दूध में ए-2 बीटा प्रोटीन ज्यादा मात्रा में पाया जाता है और यह सेहत के लिए काफी अच्छा है।’ उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा 4. पहाड़ी गायों पर किए जा रहे अध्ययन में यह बात सामने आई है।
लगभग 97 फीसदी मामलों में यह पाया गया कि इन गायों के दूध में ए-2 बीटा प्रोटीन मिलता है जो हृदय की बीमारी, मधुमेह और मानसिक रोग के खिलाफ सुरक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हॉलस्टीन और जर्सी नस्ल की गायों में यह प्रोटीन नहीं पाया जाता।गाय के दूध में प्रति ग्राम ३.१४ मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। आयुर्वेद के अनुसार गाय के ताजा दूध को ही उत्तम माना जाता है। बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर के आयुर्वेद के विभागाध्यक्ष डॉ . मेहर सिंह के अनुसार गाय का दूध भैंस की तुलना में मस्तिष्क के लिए बेहतर होता है।
इन गायों में ए-. जीन पाया जाता है जो इन बीमारियों को मदद पहुंचाता है। ए-1 जीन स्थानीय गायों के दूध में हमेशा मौजूद नहीं होता लेकिन इसे नकारा भी नहीं जा सकता।
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है।इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है।
गाय का दूध शिशुओं को एलर्जी से बचाता है——
शर्मा ने बताया कि विभाग द्वारा 43 पहाड़ी गायों पर किए जा रहे अध्ययन में यह बात सामने आई है।शर्मा ने कहा कि 97 फीसदी मामलों में यह पाया गया कि इन गायों के दूध में ए2 बीटा प्रोटीन मिलता है जो हृदय की बीमारी, मधुमेह और मानसिक रोग के खिलाफ सुरक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।उन्होंने कहा कि हॉलस्टीन और जर्सी नस्ल की गायों में यह प्रोटीन नहीं पाया जाता। इन गायों में ए1 जीन पाया जाता है जो इन बीमारियों को मदद पहुंचाता है।
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आइये जाने देसी गायों के बारे में—-
क्या हें ए1ए2 दूध विज्ञान :—
(सुबोध कुमार email:subodh1934@gmail.com)
आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टि के आदि काल में, भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भूखंड उत्पन्न हुवा था ..इसे भारतीय परम्परा मे जम्बुद्वीप नाम दिया जाता है. सभी स्तन धारी भूमी पर पैरों से चलने वाले प्राणी दोपाए, चौपाए जिन्हें वैज्ञानिक भाशा मे अ‍ॅग्युलेट मेमल ungulate mammal के नाम से जाना जाता है, वे इसी जम्बू द्वीप पर उत्पन्न हुवे थे.इस प्रकार सृष्टि में सब से प्रथम मनुष्य और गौ का इसी जम्बुद्वीप भूखंड पर उत्पन्न होना माना जाता है.
इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय है. इसी मूल भारतीय गाय का लगभग 8.00 साल पहले, भारत जैसे गर्म क्षेत्रों से योरुप के ठंडे क्षेत्रों के लिए पलायन हुवा माना जाता है.
जीव विज्ञान के अनुसार भारतीय गायों के 209 तत्व के डीएनए DNA में 67 पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन Proline पाया जाता है. इन गौओं के ठंडे यूरोपीय देशों को पलायन में भारतीय गाय के डीएनए में प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीन Histidine के साथ उत्परिवर्तित हो गया. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में म्युटेशन Mutation कहते हैं.
(Ref Ng-Kwai-Hang KF,Grosclaude F.2002.:Genetic polymorphism of milk proteins . In:PF Fox and McSweeney PLH (eds),Advanced Dairy Chemistry,737-814, Kluwer Academic/Plenum Publishers, New York)
(देखें-Kwai-रुको KF, Grosclaude F.2002:. दूध प्रोटीन की जेनेटिक बहुरूपता. में: पीएफ फॉक्स और McSweeney PLH सम्पादित लेख “ उन्नत डेयरी रसायन विज्ञान ,737-814, Kluwer शैक्षणिक / सर्वागीण सभा प्रकाशक, न्यूयॉर्क)
1. मूल गाय के दूध में Proline अपने स्थान 67 पर बहुत दृढता से आग्रह पूर्वक अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीन Isoleucine से जुडा रहता है. परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती. इस स्थिति में यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीर की पाचन कृया में आसानी से टूट कर बिखर जाता है. इस प्रक्रिया से एक 7 एमीनोएसिड का छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूप से मानव शरीर में अपना अलग आस्तित्व बना लेता है. इस 7 एमीनोएसिड के प्रोटीन को बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है.
2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवार का मादक तत्व है. जो बहुत शक्तिशाली Oxidant ऑक्सीकरण एजेंट के रूप में मानव स्वास्थ्य पर अपनी श्रेणी के दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है. जिस दूध में यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूध को वैज्ञानिको ने ए1 दूध का नाम दिया है. यह दूध उन विदेशी गौओं में पाया गया है जिन के डीएन मे 67 स्थान पर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है.
आरम्भ में जब दूध को बीसीएम7 के कारण बडे स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंड के सारे डेरी उद्योग के दूध का परीक्षण आरम्भ हुवा. सारे डेरी दूध पर करे जाने वाले प्रथम अनुसंधान मे जो दूध मिला वह बीसीएम7 से दूषित पाया गया. इसी लिए यह सारा दूध ए1 कह्लाया
तदुपरांत ऐसे दूध की खोज आरम्भ हुई जिस मे यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो. इस दूसरे अनुसंधान अभियान में जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया. सुखद बात यह है कि विश्व की मूल गाय की प्रजाति के दूध मे, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला,
इसी लिए देसी गाय का दूध ए2 प्रकार का दूध पाया जाता है.
देसी गाय के दूध मे यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते. भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है. आज यदि भारतवर्ष का डेरी उद्योग हमारी देसी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापार में सब से बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है.
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देसी गाय की पहचान—–
आज के वैज्ञानिक युग में , यह भी महत्व का विषय है कि देसी गाय की पहचान प्रामाणिक तौर पर हो सके.साधारण बोल चाल मे जिन गौओं में कुकुभ , गल कम्बल छोटा होता है उन्हे देसी नही माना जात, और सब को जर्सी कह दिया जाता है.
प्रामाणिक रूप से यह जानने के लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गाय की प्रजाति की हैं गौ का डीएनए जांचा जाता है. इस परीक्षण के लिए गाय की पूंछ के बाल के एक टुकडे से ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं . यह अत्याधुनिक विज्ञान के अनुसन्धान का विषय है.
पाठकों की जान कारी के लिए भारत सरकार से इस अनुसंधान के लिए आर्थिक सहयोग के प्रोत्साहन से भारतवर्ष के वैज्ञानिक इस विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं और निकट भविष्य में वैज्ञानिक रूप से देसी गाय की पहचान सम्भव हो सकेगी. इस महत्वपूर्ण अनुसंधान का कार्य दिल्ली स्थित महाऋषि दयानंद गोसम्वर्द्धन केंद्र की पहल और भागीदारी पर और कुछ भारतीय वैज्ञानिकों के निजी उत्साह से आरम्भ हो सका है.
ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव—-
जन्म के समय बालक के शरीर मे blood brain barrier नही होता . माता के स्तन पान कराने के बाद तीन चार वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लडब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है .इसी लिए जन्मोपरांत माता के पोषन और स्तन पान द्वारा शिषु को मिलने वाले पोषण का, बचपन ही मे नही, बडे हो जाने पर भविष्य मे मस्तिष्क के रोग और शरीर की रोग निरोधक क्षमता ,स्वास्थ्य, और व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यधिक महत्व बताया जाता है .
बाल्य काल के रोग—–
आजकल भारत वर्ष ही में नही सारे विश्व मे , जन्मोपरान्त बच्चों में जो Autism बोध अक्षमता और Diabetes type1 मधुमेह जैसे रोग बढ रहे हैं उन का स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है.
वयस्क समाज के रोग –—
मानव शरीर के सभी metabolic degenerative disease शरीर के स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप high blood pressure हृदय रोग Ischemic Heart Disease तथा मधुमेह Diabetes का प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है.यही नही बुढापे के मांसिक रोग भी बचपन में ए1 दूध का प्रभाव के रूप मे भी देखे जा रहे हैं.
दुनिया भर में डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में ” अच्छा दूध अर्थात् BCM7 मुक्त ए2 दूध “ के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रही हैं. वैज्ञानिक शोध इस विषय पर भी किया जा रहा है कि किस प्रकार अधिक ए2 दूध देने वाली गौओं की प्रजातियां विकसित की जा सकें.
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डेरी उद्योग की भूमिका—–
मुख्य रूप से यह हानिकारक ए1 दूध होल्स्टिन फ्रीज़ियन प्रजाति की गाय मे ही मिलता है, यह भैंस जैसी दीखने वाली, अधिक दूध देने के कारण सारे डेरी उद्योग की पसन्दीदा गाय है. होल्स्टीन फ्रीज़ियन दूध के ही कारण लगभग सारे विश्व मे डेरी का दूध ए1 पाया गया . विश्व के सारे डेरी उद्योग और राजनेताओं की आज यही कठिनाइ है कि अपने सारे ए1 दूध को एक दम कैसे अच्छे ए2 दूध मे परिवर्तित करें. आज विश्व का सारा डेरी उद्योग भविष्य मे केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गौओं की प्रजाति मे नस्ल सुधार के नये कार्य क्रम चला रहा है. विश्व बाज़ार मे भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसी लिए बहुत मांग भी हो गयी है. साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभ की भी बहुत मांग बढ गयी है.
सब से पहले यह अनुसंधान न्यूज़ीलेंड के वैज्ञानिकों ने किया था.परन्तु वहां के डेरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्न होने पर, 2007 मे Devil in the Milk-illness, health and politics A1 and A2 Milk” नाम की पुस्तक Keith Woodford कीथ वुड्फोर्ड द्वारा न्यूज़ीलेंड मे प्रकाशित हुई. उपरुल्लेखित पुस्तक में विस्तार से लगभग 30 वर्षों के विश्व भर के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकडो के आधार पर यह सिद्ध किया जा सका है कि बीसीएम7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विष तुल्य है.
इन पंक्तियों के लेखक ने भारतवर्ष मे 2007 में ही इस पुस्तक को न्युज़ीलेंड से मंगा कर भारत सरकार और डेरी उद्योग के शीर्षस्थ अधिकारियों का इस विषय पर ध्यान आकर्षित कर के देसी गाय के महत्व की ओर वैज्ञानिक आधार पर प्रचार और ध्यानाकर्षण का एक अभियान चला रखा है.परन्तु अभी भारत सरकार ने इस विषय को गम्भीरता से नही लिया है.
डेरी उद्योग और भारत सरकार के गोपशु पालन विभाग के अधिकारी व्यक्तिगत स्तर पर तो इस विषय को समझने लगे हैं परंतु भारतवर्ष की और डेरी उद्योग की नीतियों में बदलाव के लिए जिस नेतृत्व की आवश्यकता होती है उस के लिए तथ्यों के अतिरिक्त सशक्त जनजागरण भी आवश्यक होता है. इस के लिए जन साधारण को इन तथ्यों के बारे मे अवगत कराना भारत वर्ष के हर देश प्रेमी गोभक्त का दायित्व बन जाता है.
विश्व मंगल गो ग्रामयात्रा इसी जन चेतना जागृति का शुभारम्भ है.
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देसी गाय से विश्वोद्धार—-
भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है. सरकार की स्वास्थ्य सम्बंदि नीतियां भी इस विषय पर केंद्रित नहीं हैं.
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है. भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं .
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.
छोटे ग़रीब किसनों की कम दूध देने वाली देसी गाय के दूध का विश्व में जो आर्थिक महत्व हो सकता है उस की ओर हम ने कई बार भारत सरकार का ध्यान दिलाने के प्रयास किये हैं. परन्तु दुख इस बात का है कि गाय की कोई भी बात कहो तो उस मे सम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे कितना भी देश के लिए आर्थिक और समाजिक स्वास्थ्य के महत्व का विषय हो.
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गाय का पहला दूध हमें स्वाइन फ्लू से बचाएगा—-
अब हमें स्वाइन फ्लू से बचाने ‘गौ माता’ आ रही हैं। जी हां, एक तरफ दुनिया एच1एन1 वायरस से जूझ रही है तो दूसरी तरफ देश की मिल्क कैपिटल के तौर पर मशहूर आणंद में गाय का दूध अपनी तमाम खूबियों की बदौलत इसका मुकाबला करने को तैयार हो रहा है।
अमूल लगभग 50 दशकों से देश को ‘अटर्री, बटर्ली, डिलिशस’ मिल्क प्रॉडक्ट बेच रहा है। पर अब अमूल ने अब इस घातक वायरस के खिलाफ मोर्चाबंदी करने के लिए मुंबई की एक कंपनी से हाथ मिलाया है। यह कंपनी हाल ही में बच्चों को जन्म देने वाली गायों का पहला दूध इकट्ठा कर रही है। गौरतलब है कि यह दूध नवजात बछड़ों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। अमूल का विचार एक ऐसा ओरल स्प्रे बनाने का है जो इंसानों के इम्यून सिस्टम को एचआईवी और एच1एन1 वायरसों से बचा सके।
यह दूध अमूल के मिल्क कोऑपरेटिव से इकट्ठा किया जा रहा है। इसे नाम दिया गया है रिसेप्टर। इसकी मार्किटिंग गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्किटिंग फेडरेशन करेगी। रिसेप्टर को मुंबई के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर स्थित आठ काउंटरों से बेचा जा रहा है। ओरल स्पे पर रिसर्च करने वाली बायोमिक्स नेटवर्क लिमिटेड के चेयरमैन डॉ. पवन सहारन का कहना है कि जन्म देने के बाद दिए गए पहले दूध को कोलस्ट्रम कहते हैं। हम पहले नैनो फिल्टरेशन से इसमें से फैट अलग कर लेते हैं। इसके बाद मिले नैनो पार्टिकल्स को हमने राधा-108 नाम दिया है।
भारत और अमेरिका में इसका पेटेंट करा लिया गया है। इसे मुंह में स्प्रे किया जाएगा जहां से यह सीधे दिल के रास्ते पूरे शरीर में पंप हो जाएगा। इसके क्लिनिकल ट्रायल यूएस, नाइजीरिया और भारत में किया गया है। एड्स के मरीजों में भी इससे काफी सुधार हुआ है, फ्लू के मरीजों को भी इससे फायदा पहुंचा है।
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गाय के दूध से नवजातों में नहीं होती है एलर्जी—
एक अध्ययन से पता चला है कि जिन शिशुओं को जन्म के बाद से 15 दिन तक उनकी मां गाय का दूध पिलाती हैं उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
गाय का दूध बच्चों को भविष्य में होने वाली गंभीर एलर्जी से सुरक्षित करता है।तेल अवीव विश्वविद्यालय में हुए इस अध्ययन ने पहले की सभी धारणाओं को बदल दिया है। पहले माना जाता था कि कि जन्म के तुरंत बाद शिशुओं को कुछ महीने तक गाय का दूध नहीं देना चाहिए।अध्ययनकर्ता यित्झाक काट्ज का कहना है, जो महिलाएं अपने शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद गाय का दूध देना शुरू कर देती हैं वे अपने बच्चों को एलर्जी से पूरी तरह बचा लेती हैं।इस अध्ययन के लिए अध्ययनकर्ताओं ने 13,019 शिशुओं के खाने-पीने की आदतों के इतिहास का अध्ययन किया।जिन शिशुओं को जन्म के 15 दिन के अंदर ही गाय के दूध में मिलने वाला प्रोटीन दिया जाने लगा था वे गायों के दूध के प्रोटीन से होने वाली एलर्जी (सीएमए) से पूरी तरह सुरक्षित थे।ये बच्चे उन शिशुओं से ज्यादा सुरक्षित थे जिन्हें जन्म के 15 दिन बाद से गाय का दूध देना शुरू किया गया।
गाय के दूध में मौजूद प्रोटीन से होने वाली एलर्जी (सीएमए) बच्चों के लिए बहुत खतरनाक होती है। इससे उनकी त्वचा पर चकत्ते हो सकते हैं, उन्हें श्वसन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और यहां तक कि उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए यदि जन्म के शुरुआती दिनों में गाय का दूध देना शुरू कर दिया जाए तो वह टीकाकरण जैसा काम करता है।
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दूध और विटामिन डी————–
विटामिन क्या होता है ?
विटामिन वे तत्व हैं जिन के अभाव मे दैनिक जीवन मे हम शरीर द्वारा सब काम ठीक से नही कर पाएंगे. इस लिए यह आवश्यक हो जाता है कि दैनिक आहार से हमे संतुलित मात्रा मे ये सब पदार्थ उपलब्ध हों.विटामिनो को घुलनशीलता के आधार पर, दो श्रेणी में बांटा जाता पानी में घुलनशील जैसे विटामिन बी सी इत्यादि और वसा में घुलनशील जैसे ए, डी, ई, के होर्मोन क्या होता है ?
होर्मोन वे जैविक रसायनिक संदेश वाहक तत्व हैं जिन का निर्माण शरीर के अंदर ही विभिन्न ग्रन्थियों और कोशिकाओं में होता है . होर्मोन रक्त द्वारा उन गंतव्य कोशिकाओं पर पहुंचाए जाते हैं जहां से उस होर्मोन की मांग आई थी. अपने गंतव्य स्थान पर आगमन के बाद होर्मोन तुरंत शरीर की संरचना के कार्य मे युक्त हो जाते हैं.
विटामिन डी क्या है????`
रसायनिक दृष्टि विटामिन डी दो प्रकार के होते हैं डी2 Ergocalciferol एर्गोकेल्सीफिरोल और डी3 Cholecalciferol कोलेकेसिफिरोल
प्राकृतिक रूप से शरीर मे विटामिन डी3 होता है. जो कोलेस्ट्रोल अथवा 7 डिहाइड्रोकोलेस्ट्रोल से मानव अथवा उच्च जाति के पशुओं के शरीर मे ही सूर्य की किरणों के प्रभाव से बनता है.
जो लोग घरों के अंदर अधिक रहते हैं उन के लिए अपेक्षित मात्रा मे विटामिन डी सुसंस्कृत् आहार आवश्यक हो जाता है . अमेरिका जैसे ठण्डे देश में लोग सूर्य का सेवन कम कर पाते हैं.इस के परिणाम स्वरूप वहां बच्चों में रिकेट (एक पोलिओ जैसा रोग) बहुत पाया जाता था. वैज्ञानिक अनुसंधान से यह पता चला कि यह रोग सूर्य की किरणो से कम सम्पर्क के कारण होता है. इसी लिए पिछली शताब्दी के आरम्भ मे शरीरिक पौष्टिकता और जनता के स्वास्थ्य के हित में अधिकारित तौर पर डी3 को विटामिन का दर्जा दिया गया है. और 1940 से ही अमेरिका मे गाय के डेरी दूध मे अतिरिक्त विटामिन डी को मिलाने के लिए कानून् बनाया गया . जिस के परिणाम स्वरूप अमेरिका मे बच्चों मे Rickets सुखंडीग्रस्त (रिकेट ग्रस्त) बच्चो की सन्ख्या मे 85% तक की कमी देखी गई.
विटामिन डी का महत्व—-
बिना विटामिन डी के कैल्शियम जैसे खमनिज पदार्थ मानव शरीर कू पाचन द्वारा अह्हर से उपलब्ध नही होते. कैल्शियम मानव शरीर मे पाए जाने वाले खनिज पदार्थो मं 70% होता है, क्योंकि सारा अस्थि पंजर कैल्शियम से बना होता है.
मानव शरीर की हड्डियां, मुख्य रूप से विटामिन डी के ही द्वारा कैल्शियम के सुपाचन से स्वस्थ और मज़बूत बनती हैं. इसी से लिए कैल्शियम की गोली के साथ विटामिन डी अवश्य मिला कर देते हैं. हड्डियों के कमज़ोरी से रजनिवृक्त postmenopausal महिलाओं को अस्थि रोग अधिक होते हैं.
1980 के दशक के बाद केंसर, डायाबिटीज़ , थयरायड और त्वचा के रोग जैसे सोरिअसिस भी विटामिन डी से जोड कर देखे जा रहे हैं.भैंस के दूध मे यद्यपि कैल्शियम तो बहुत होत है परंतु विटामिन डी बहुत कम होता है. इस लिए भैंस के दूध से विटामिन डी की कमी के सारे रोग बढते हैं.. यही गाय के दूध का स्वास्थ्य के लिए महत्व है.
विटामिन डी की व्यक्तिगत आवश्यकता—–
मानव सभ्यता के विकास के साथ घरों में अंदर रहने के साथ कपडे पहन कर रहना मानव की त्वचा पर सूर्य की किरणों के सीधे सम्पर्क को कम करते हैं. इस प्रकार साधारण रूप से प्राकृतिक विटामिन डी की कमी मानव शरीर मे आहार के द्वारा पूरी करने की आवश्यकता बनती है.
अमेरिका मे ऐसा बताया जाता है कि साधारण रूप से संतुलित आहार के साथ साथ. हाथ मुख इत्यादि शरीर के नंगे भाग को मात्र 10 मिनट प्रति दिन सूर्य के दर्शन शरीर भी विटामिन डी द्वारा शरीर की आवश्यकता के लिए पर्याप्त है. ( भारतीय परम्परा मे दैनिक सूर्य नमस्कार का यही महत्व देखा जा सकता है )
मानव शरीर के लिए विटामिन डी के मुख्य स्रोत—-
सूर्य के दर्शन के अतिरिक्त, समुद्र की मछलियों मे विटामिन डी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. परंतु शाकाहारियों के लिए, गाय का दूध और उस के बने पदार्थ ही विटामिन डी का एक मात्र स्रोत हैं.
कृत्रिम विटामिन का उत्पादन
दूध मे विटामिन डी बढाने के लिए कृत्रिम विटामिन डी बनाने की आवश्यकता हुई. विदेशों में गाय के आहार और दूध दोनों मे अतिरिक्त विटामिन डी मिलाया जाता है.
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एथलीटों का प्रदर्शन होगा गाय के दूध से बेहतर —-
अब वैज्ञानिक इससे एथलीटों के प्रदर्शन में सुधार की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह एथलीटों में ‘लीकी गट सिंड्रोम’ जैसी बीमारी को दूर कर सकता है, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित नहीं होगा। बछड़े को जन्म देने के कुछ दिन बाद गाय जो दूध देती है, उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कीटाणुओं से लड़ने में सक्षम प्रोटीन के विकास की प्रचुर संभावना होती है।
‘लीकी गट’ की शिकायत एथलीटों में अधिक पाई है। इसमें आंतों से वे तत्व निकल जाते हैं, जो खून में विषैले पदार्थो को जाने से रोकते हैं। ऐसे में डायरिया की शिकायत भी हो सकती है। अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी-गैस्ट्रोएंटेस्टिनल एंड लिवर फिजियोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यह सब अंतत: शरीर के अंदरूनी हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर सकता है।
बार्ट्स एंड द लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड डेंटिसरी के प्रोफेसर रे प्लेफोर्ड के अनुसार, “लीकी गट के कारण एथलीटों द्वारा अधिक शारीरिक श्रम की स्थिति में उनका प्रदर्शन गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है।”
प्लेफोर्ड की टीम ने एथलीटों से 20 मिनट तक सामान्य कसरत से 80 प्रतिशत अधिक शारीरिक श्रम करने को कहा। कसरत के बाद वैज्ञानिकों ने मूत्र और उनके शारीरिक तापमान के जरिये उनमें ‘लीकी गट’ की शिकायत का अध्ययन किया।
उनमें ‘लीकी गट’ 250 प्रतिशत तक बढ़ा पाया गया। लेकिन जिन लोगों को अभ्यास से दो सप्ताह पहले जल्द ही बछड़े को जन्म देने वाली गाय का दूध दिया गया, उनमें ‘लीकी गट’ 80 प्रतिशत तक कम पाया गया।

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