मां सरस्वती की कृपा से प्राप्त ज्ञान व कला के समावेश से मनुष्य को जीवन में सुख व सौभाग्य प्राप्त होता है। इसलिए वसंत पंचमी के इस पावन अवसर पर विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना की जाती है। शास्त्रों में इस दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजन का भी विधान बताया गया है। मान्यता है कि माघ शुक्ल पंचमी को सबसे पहले श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन किया था, तब से सरस्वती पूजन का प्रचलन वसंत पंचमी के दिन से मनाने की परंपरा चली आ रही है। भगवती सरस्वती सत्वगुण संपन्न है। मन, बुद्धि और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी की वंदना करने से मनुष्य की सारी अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। लेकिन यह पूजा तभी सफल होगा, जब आप पूरे मनोयोग से मां की साधना करें।
हर छात्र की कामना होती है, कि वह परीक्षा में न केवल उत्तीर्ण हो, बल्कि उसे अच्छी सफलता भी मिले। प्रयास तो सभी करते हैं मगर इनमें से कुछ लोग ही सफल होते हैं। कई छात्रों की समस्या होती है कि कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें पाठ याद नहीं रह पाता, वे जबाव भूल जाते हैं। ज्योतिष की मानें तो ऐसे छात्रों की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध निर्बल होता है, जिसके कारण ज्ञान व विद्या की देवी सरस्वती की अनुकंपा उन पर नहीं होती। दरअसल, मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा होता है और जब यह दुर्बल हो या पथभ्रष्ट चंचलता लिए हो, तो मन-मस्तिष्क में स्थिरता या संतुलन ठीक से नहीं रहता। इसी तरह बुध की प्रतिकूल स्थिति से भी व्यक्ति के अंदर तर्क व कुशाग्रता में कमी आती है।
कैसे करें साधना———-
इस दिन प्रातः काल जल्दी उठ जाएं, स्नान तथा दैनिक क्रिया से निवृत होकर पीले वस्त्र धारण करें। पूजा से पूर्व मां सरस्वती जी का चित्र या प्रतिमा पूजा स्थान पर स्थापित करें। फिर मां सरस्वती को पीले फूल चढ़ाएं। विधिवत पूजा करने के बाद अब सामने अगरबत्ती, धूप व दीपक जलाएं। दूध का बना प्रसाद अर्पित करें, फिर १०८ बार सरस्वती मंत्र का जाप करें।
मंत्रः ऊं ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः।
अन्य उपाय——
कहते हैं, सरस्वती की कृपा से महामूर्ख भी कालिदास बन सकता है। अज्ञानी को भी ज्ञान का भंडार प्राप्त हो सकता है। तो फिर विद्या के साधकों को विद्या क्यों नहीं? इसलिए वसंत पंचमी के इस पावन अवसर मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए आप भी प्रयास कर सकते हैं। वाणी देवी के उपासकों को निम्न में से कोई भी एक प्रयोग करने चाहिए। स्मरण शक्ति वृद्धि के लिए नित्य गायत्री यंत्र की पूजा करें, सरस्वती यंत्र को अर्पित किया हुआ पानी एक चम्मच प्रसाद केरूप में रोजाना ग्रहण करें। यंत्र पूजन के बाद एक बार सरस्वती चालीसा का पाठ करें। जिन विद्यार्थियों को भरपूर मेहतन करने पर भी संतोषजनक सफलता नहीं मिल पाती अथवा बार-बार असफलता का मुंह देखना पड़ता है, उन्हें यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए। सरस्वती को धूप-दीप अर्पित कर निम्न में से किसी एक मंत्र का जाप करने से उनकी परम कृपा प्राप्त होती है।
इन मंत्रों को जपें————-
तरुण शकलमिंदो विभ्रती शुभ्र कांति, कुचभरनमितांगी सन्निष्ण्णा सितार्ब्ज।
निज करकमलोद्यल्लेखनी पुस्तक श्रीः, सकल विभव सद्धिर्य पातु वाग्देवता नः।
इसके बाद निम्न मंत्र में से किसी एक मंत्र को बोलते हुए पूजा संपन्न करना चाहिए।
मंत्रः .घंटा शूल हलानि शंख मुसले चक्रम् धनुः सायकं,
हस्ताब्जैर्दधर्ती धनांत विलसच्छभ्तांशुशुभ प्रभाम्।
गौरी देह समुद्रभवां त्रिजगातामाधार भूतां महां,
पूर्वामत्र सरस्वती मनुभजे शुंभादि दैत्यार्दिनीम्।
1ऊं ऐं नमः।
1ऊं हीं श्रीं ऐं वाग्वादिनि भगवती अर्हनमुख निवासिनी सरस्वति मासस्ये प्रकाश कुरु कुरु ऐं नमः।
1ऊं ऐं नमः भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
1ऊं नमः पद्मासने शब्द रूपे ऐं हीं क्लीं वद वद वाग्दादिनि स्वाहा।
साधना का फल——-
मंदबुद्धि लोगों के लिए गायत्री महाशक्ति का सरस्वती तत्व अधिक हितकर सिद्घ होता है। बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता एवं अस्वस्थता दूर करने के लिए सरस्वती साधना की विशेष उपयोगिता है। मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित अनिद्रा, सिर दर्द्, तनाव, जुकाम जैसे रोगों में गायत्री के इस अंश-सरस्वती साधना का लाभ मिलता है। कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निणर्य न कर सकना, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से भी मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग, असमर्थ जैसा बना रहता है और मूर्ख कहलाता है। उस अभाव को दूर करने के लिए सरस्वती साधना एक उपयोगी आध्यात्मिक उपचार है। चूंकि सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है । जहां वीणा संगीत की, पुस्तक विचारणा की अभिव्यक्त् िहै, वहीं मयूर वाहन कला की।
सरस्वती वंदना————-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्तावृता,
या वीणावरदंडमंडितकरा या श्वूतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभितिभिर्देवैःसदावंदिता,
सामांपातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
इस तरह मनोयोग से की गई साधना का फल अवश्य मिलता है। मां सरस्वती अपने उपासकों पर स्नेह जरूर लुटाती है।
इन विनाशकारी शक्तियों को काबू में करने और उन्हें संरचनात्मक कार्यों की लगाने में देवी सरस्वती ही मदद करती हैं। जब पढ़ाई में मन नहीं लगता हो या बार-बार असफलता हाथ लगती हो, तो ऐसे छात्रों को अच्छी सफलता के लिए देवी सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। लेकिन एक बात हमेशा याद रखें कि कि भगवान भी उन्हीं बच्चों की मदद करते हैं, जो बच्चे मेहनत करते हैं।
कैसे करें आराधना—-
सरस्वती आराधना बहुत आसान है, इसे किसी भी गुरुवार से प्रारंभ व पूर्ण कर सकते हैं। समय मिल सके तो शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह करना लाभकारी होगा और चैत्र माह की शुक्ल पंचमी में तो यह साधना अत्यंत फलदायी होती है। वैसे अगर संभव हो तो छात्रों को ही इस पूजा को संपन्न करनी चाहिए, अगर बच्चे के पास वक्त न हो, तो मां को यह साधना करनी चाहिए। साधना करने के लिए सामग्री के रूप में, महासरस्वती का यंत्र या देवी सरस्वती का चित्र, आठ छोटे नारियल, सफेद चंदन, अक्षत, सफेद फूल, सुगंधित धूप व अगरबत्ती व घी का दीपक। आराधना के समय पीले वस्त्र ही पहनें।
पूजा की विधि—–
पूजा का एक समय निश्चित कर लें। फिर निश्चित दिन को सुबह में स्नान इत्यादि करने के बाद पूजा प्रारंभ करें। तांबे या स्टील की थाली में कुमकुम से गणेशजी का आवाहन करके स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। इस चिह्न के ऊपर, मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। सामने आठ नारियल रखें। अब चित्र या यंत्र के ऊपर बारी-बारी से चंदन, पुष्प व अक्षत भेंट करें। और फिर धूप-दीप जलाकर देवी का आवाहन करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक या तुलसी की माला पर सरस्वती मंत्र की शांत मन से पांच बार माला फेरें।
मंत्र है-ऊं सरस्वत्यै नमः ॥
अंत में क्षमा याचना के साथ सभी सामग्री ज्यों की त्यों वहीं रहने दें। दिन में अपनी पढ़ाई करें, सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व सभी सामग्री को नदी, तालाब या किसी जलाशय में विसर्जित कर दें। निष्ठापूर्वक की गई पूजा से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं और अष्ट शक्तियों के साथ आपकी सहायता करेंगी।
कुछ अचूक मंत्र———–
वैसे विद्या प्राप्ति व परीक्षा में सफलता के कुछ अचूक मंत्र और भी हैं। नियमित जाप से मन में एकाग्रता आती है और पढ़ाई में मन लगने लगता है। रोजाना स्नान करने के बाद शुद्ध आसान पर बैठकर भगवान राम का चित्र स्थापित करें। उन्हें चंदन लगाकर निम्न मंत्र का 1.8 बार जाप करें।
इन मन्त्रों का करें जाप —
जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।
कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥
मोरि सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥
या फिर इस मंत्र का जप करें—–
गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई॥
निम्न उपाय को करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।