मेरे ब्लॉग के पाठकों,सभी सदस्य मित्रों व सभी देश वासियो को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाये !
भारतीय गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप सभी को ढेरों शुभकामनाये….HAPPY REPUBLIC DAY….
३१ राज्य , १६१८ भाषाएँ, ६ धर्म , ६४०० जातियां , २९ प्रमुख त्यौहार ,
और देश ……सिर्फ एक मेरा भारत |
मुझे अपने भारतीय होने पे गर्व है |
दोस्तों , गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर आप सभी को विशेष शुभकामनाये. जयादा कुछ कहना नहीं चाहूँगा कि कहने से कुछ होता नहीं क्यूँ कुछ करना परता है . क्यूँ बिना किये कुछ होता नहीं है. अगर सिर्फ सोचने और बोलने से काम चल जाता है तो हमारे देश में बोलने वाले और सोचने वाले कि कमी नहीं . सारा देश ही आज अमीर और धनवान होता. खुशिया गली में दोड़ती और दुःख किनारे में सोती . लेकिन मेरा मन्ना कुछ और है. यहाँ जो कुछ भी होता होता है . बिना किये नहीं होता हिया . इसलिए आप से आग्रह है कि कम से कम अब तो जागिये. कब तक सोते रहिएगा. आज जो इस देश का हाल है . उनमे से सभी लोग तो अपने समाज से आये हुए लोगों ने किया है …उसको तो सुधारों…….नहीं तो एक समय ऐसा आएगा जब हमारे पास ना सुधरने का और नहीं सुधारने का मौका मिलेगा. जय हिंद !
हार्दिक और विशेष शुभकामनाये.
जी देश वासियों आज ही के दिन सन .95. मैं भारत राष्ट्र का संविधान लागू हुआ था.
संविधान की प्रस्तावना:
” हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में
आज तारीख .6 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार ग्यारह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
तिरंगे का ग़लत इस्तेमाल न करें!
तिरंगे का ग़लत इस्तेमाल न करें!
भारत का राष्ट्रीय ध्वज भारतवासियों के लिए आशा और अभिलाषा का परिचायक है। यह हमारे राष्ट्र के लिए गर्व का प्रतीक है। पिछले छह दशकों में अनेकों लागों ने इसके सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का न्योछावर किया है।
भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।
भारतीय राष्‍ट्रीय ध्वज का इतिहास—–
आइए राष्ट्रीय ध्वज के रोचक इतिहास पर एक नज़र डालें। यह किन-किन परिवर्तनों से गुजरा, इसका एक लंबा इतिहास है। इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई।
ये हमारे सबसे पहले राष्‍ट्रीय ध्‍वज का चित्र है। 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकाता में फहराया गया था। इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
यह है दूसरा ध्‍वज! इसे पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
यह है तीसरा ध्‍वज! यह 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया।
इस चौथे ध्वज को आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। इसका प्रयोग अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में विजयवाड़ा में किया गया। भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा गांधी जी के सुझाव पर इसमें डाला गया था।
यह पांचवां ध्‍वज वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ। वर्ष 19.1 में तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे स्वतंत्र भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया।
ध्‍वज के रंग——
भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है। इसका व्‍यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
राष्ट्रीय ध्वज का रंग तथा अशोक चक्र के महत्व को डॉ. एस. राधाकृष्णन ने संविधान सभा में प्रतिपादित किया था जिसे सर्वसम्मति से राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अंगीकार किया गया।
“सबसे ऊपर केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। यह रंग निस्वार्थ त्याग को दर्शाता है।
“मध्य में सफेद रंग सत्य की राह पर चलने के लिए हमारे उचित आचरण का मार्गदर्शन करता है। यह शांति और सत्‍य का प्रतीक है।
“हरा रंग पादप जीवन के साथ हमारे संबंध को दर्शाता है, जिसपर अन्य सभी जीवन निर्भर है। हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
“सफेद रंग के बीच में अशोक चक्र न्याय और धर्म के चक्र का द्योतक है। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। सत्य, धर्म या गुण उनका सिद्धांत होना चाहिए जो इस झंडे के नीचे काम करते हैं। अशोक चक्र गति को भी प्रदर्शित करता है। चलना ही जीवन है और रुक जाना मौत के समान। भारत में और अधिक बदलाव नहीं बल्कि आगे बढ़ने की आवश्यकता है। यह चक्र एक शांतिपूर्ण परिवर्तन के गतिवाद का प्रतिनिधित्व करता है।”
ध्‍वज संहिता——
राष्ट्रीय ध्वज के प्रति व्यापक अनुराग, सम्मान तथा ईमानदारी होनी चाहिए। सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए अ-सांविधिक अनुदेशों के अलावा राष्ट्रीय ध्वज का प्रदर्शन इम्ब्लेम एंड नेम्स (प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 1950 (1950 का क्रम सं.12) तथा प्रिवेंशन ऑफ इनसल्ट्स टु नैशनल ऑनर एक्ट, 1971 (1971 का क्रम सं.69) के प्रावधानों के अंतर्गत शासित है। 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्‍वज संहिता में संशोधन किया गया।
राष्ट्र ध्वज तिरंगा हमारे देश की प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौक़े पर राष्ट्रीय ध्वज का उदारता पूर्वक प्रयोग (liberal use) देखने को मिलता है। आजकल एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि उक्त अवसर पर काग़ज़ या प्लास्टिक का तिरंगा झंडा बेचा जाता है, जो सही नहीं है। राष्ट्रीय गर्व की भावना के साथ लोग काफी उत्साह से इन झंडों को ख़रीदते हैं, लेकिन दूसरे ही दिन हम इन झंडों को सड़को पर पांव तले रौंदे जाते देखते हैं या किसी कूड़ेदान में या अन्यत्र फेंका हुआ पाते हैं। इस संदर्भ में यह ध्यान देने वाली बात है कि लोग यह भूल जाते हैं कि ऐसा कर वे राष्ट्रध्वज का अपमान कर रहे होते हैं। अकसरहां ये झंडे कूड़े-कचड़े के साथ जला दिए जाते हैं। यह हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि तिरंगे का सही और वैभवशाली तरीक़े से इस्तेमाल किया जाए।
यदि आप गणतंत्र दिवस के मौक़े पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बना रहें हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि इस पवित्र राष्ट्रीय ध्वज के प्रति किसी प्रकार का असम्मान आपको मुश्किल में डाल सकता है। प्रत्येक नागरिक इसकी गरिमा को बरकरार रखने के लिए संविधान से बंधा हुआ है।
१. हमें राष्ट्रीय ध्वज को एक ऊंचाई पर उचित तरीक़े से फहराना चाहिए।
२. छोटे बच्चों को तिरंगे को खिलौने की तरह इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए।
३. प्लास्टिक के झंडे न तो ख़रीदें और न ही इस्तेमाल करें।
४. काग़ज़ के झंडे को शर्ट के पॉकेट आदि पर पिन से लगा कर इस्तेमाल न करें।
५. इसका हमेशा ध्यान रखें कि झंडे पर कोई शिकन न आए।
६. तिरंगे को बैनर/पताका या सजावट के रूप में इस्तेमाल न करें।
७. इस बात का ख्याल रखें की राष्ट्र ध्वज कुचल या फट न जाए।
८. तिरंगे को कभी जमीन पर गिरने न दें।
९. कपड़ों के टुकड़ों को जोड़ कर तिरंगे का रूप देने की कोशिश मत करें।
१०. इस ध्‍वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्‍त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
११. जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक फहराया जाना चाहिए।
१२. इस ध्‍वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्‍पर्श नहीं कराया जाना चाहिए।
१३. इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
१४. किसी अन्‍य ध्‍वज या ध्‍वज पट्ट को हमारे ध्‍वज से ऊंचे स्‍थान पर लगाया नहीं जा सकता है।
१५. तिरंगे ध्‍वज को वंदनवार, ध्‍वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
यह हमेशा ध्यान रखें कि भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज भारत के नागरिकों की आशाएं और आकांक्षाएं दर्शाता है। यह हमारे राष्‍ट्रीय गर्व का प्रतीक है। पिछले छह दशकों से अधिक समय से सशस्‍त्र सेना बलों के सदस्‍यों सहित अनेक नागरिकों ने तिरंगे की पूरी शान को बनाए रखने के लिए निरंतर अपने जीवन न्‍यौछावर किए हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री
ज्योतिष व वास्तु सलाहकार ( गोल्ड मेडलिस्ट )
संपादक-विनायक वास्तु टाईम्स

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here