क्यों रखें शुभ कार्यों में रखें मुहूर्त की विशेष सावधानी—-( MUHURAT   AND ITS BENIFITS )—


भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त का बहुत महत्व है। जो हमें किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले बहुत सारी सावधानियां बरतने की सलाह भी देता है। मुहूर्त के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है, जिसके अनुसार रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार सम्बन्धी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए. शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए. रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं सन्धि नहीं करनी चाहिए. दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन .. आये उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए. नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए. कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए. जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जुड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए. मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं, और बारहवीं राशि पर जब चन्द्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए. देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए. बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है. नये वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चन्द्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो.

ठीक उसी प्रकार कार्य विशेष के लिए अलग अलग शुभ मुहूर्त होता है. प्राचीन काल में यज्ञादि कार्यों के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता था परंतु जैसे जैसे मुहूर्त की उपयोगिता और विलक्षणता से हम मनुष्य परिचित होते गये इसकी उपयोगिता दैनिक जीवन में बढ़ती चली गयी. मुहूर्त में विश्वास रखने वाले व्यक्ति कोई भी कदम उठाने से पहले मुहूर्त का विचार जरूर करते हैं.
मनुष्य जीवन में एक कोई भी शुभ कार्य (यात्रा ,मुंडन ,जनेऊ ,बिद्या प्राप्ति या विवाह )करना हो तो प्राय: हम पंडितों के पास मुहूर्त बिचारवाने के लिए निकल पड़ते है !हमें पंडित जो भी गलत या सही बताएं ,उस पर हम आँख मूंदकर क्रियान्वयन शुरू कर देते हैं !आज हम आपको  इस सूत्र में मुहूर्त के उपयोग और महत्त्व पर प्रकाश डालेंगे और आशा करते हैं कि इस मंच का आप लोगों को यह एक अद्वितीय तोहफा के रूप में स्वीकार होगा !
वार और तिथि से बनने वाला योग – सिद्धयोग
अगर योग अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहलाता है। यहां हम दिन और तिथि के मिलने से बनने वाले सिद्ध योग की बात करते हैं जो शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
सिद्ध योग का निर्माण किस प्रकार होता है सबसे पहले इसे जानते हैं—-
1. अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है।
..भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो यह सिद्धयोग का निर्माण करती है।
3.जया तिथि यानी तृतीय, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।
4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि के नाम से जाना जाता है अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।
5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन उपस्थित होने से भी सिद्ध योग बनता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।

मुहूर्त के अंतर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है। जो निम्नानुसार है—-

– रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार संबंधी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए।

– शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए।

– रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं संधि नहीं करनी चाहिए। दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आए उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए।

– नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

– देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए।

– बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है।

– नए वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चंद्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो।

– कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए।

– जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जु़ड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए।

– मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए।

– असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चंद्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।


हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की 

शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-


1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)

3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)


4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।



भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-

1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)

2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)

3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)

4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)

इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।

शपथ ग्रहण करने का मुहुर्त —-

प्राचीन काल में राज हुआ करते थे। राजगद्दी पर बैठने से पहले राजाओं का राज्याभिषेक होता था, राजा इस अवसर पर जनता की देखभाल अपने पुत्र के समान करने की सौगंध लेते थे, व राष्ट्रहित में कोई भी निर्णय लेने का वादा करते थे।
आज राजतंत्र समाप्त हो चला है और प्रजातंत्र स्थापित हो गया है !

ऐसे में राजा भले ही न रहे परन्तु शपथ की प्रथा आज भी कायम है। आज चुनाव के पश्चात लोक सभा, विधान सभा, राज्य सभा के सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं. इनकी तरह सम्पूर्ण शासनतंत्र में कई ऐसे पद होते हैं जिनके लिये पद और गोपनियता की शपथ लेनी होती है। पद की शपथ लेना बहुत ही शुभ कार्य है, इस शुभ कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम रहता है


“कला संगीत के लिए मुहुर्त विचार”—–

संगीत हो नृत्य या अभिनय हो अगर आप इसमें सफलता की इच्छा रखते हैं तो इसकी उपासना करनी होती है। भारतीय दर्शन में इन कलाओं को ईश्वर का आशीर्वाद माना जाता है जो बहुत ही भाग्यशाली व्यक्तियों को प्राप्त होता है ।

ज्योतिषशास्त्री मानते हैं कि जैसे आप किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहुर्त देखते हैं उसी प्रकार आपको कला संगीत एवं अभिनय के क्षेत्र में कदम बढ़ाने से पहले मुहुर्त का विचार जरूर करना चाहिए। जानें कि नृत्य, संगीत एवं कला के क्षेत्र में किस मुहुर्त में प्रयास करें ताकि आपको अपने प्रयास में सफलता प्राप्त हो।

जब आप संगीत, नृत्य या अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने जा रहे उस समय देख लें कि नक्षत्र मृगशिरा, रेवती, अनुराधा , हस्त , पुष्य , पूर्वाफाल्गुनी, ज्येष्ठा , और उत्तराषाढ़ा, हो क्योंकि यह नक्षत्र संगीत, नृत्य व अभिनय सीखने के लिए अति उत्तम माने गये हैं।


ट्यूबबेल लगाने या टैंक खोदने का मुहुर्त —-
धर्मग्रंथो में बताया गया है कि जल के देवता वरूण (Varuna) हैं। वरूण देव की कृपा से जल की प्राप्ति होती है। कई बार देखा जाता है कि ट्यूबबेल लगाने के बाद उससे पानी नहीं आता है या बहुत सीमित मात्रा में आता है जिससे उस ट्यूबबेल को उखाड़ कर फिर से लगाना पड़ता है या तालाब में भरपूर पानी नहीं आता है अथवा पानी कसैला होता है। 

इस तरह की स्थिति का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए मुहूर्त का विचार करके ट्यूबबेल या तालाब खोदना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ट्यूबबेल या तालाब खोदने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ होता है और यह मुहुर्त किस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है इस विषय पर चर्चा करें।

1.नक्षत्र विचार —-

ट्यूबबेल या टैंक खोदने के लिए उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्रपद , रोहिणी अनुराधा, घनिष्ठा, हस्त शतभिषा मघा, पूर्वाषाढा , रेवती ,मृगशिरा और पुष्य नक्षत्र को शुभ माना गया है। इन नक्षत्रों में से किसी में भी जल के लिए ज़मीन खोदना उत्तम रहता है।

2.लग्न विचार —

ज्योतषशास्त्री बताते है कि ट्यूबबेल लगाने या तालाब खोदने के लिए लग्न की स्थिति भी देखनी चाहिए । जिस दिन आप आप यह कार्य करने जा रहे हैं उस दिन अगर लग्न बलवान हो, बुध या बृहस्पति लग्न में स्थित हो या शुक्र दशम भाव में हो और चन्द्रमा कर्क वृश्चिक या मीन राशि में हो तो खुदाई करने के लिए उत्तम योग होता है।

3.तिथि विचार —-

चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी ये रिक्ता तिथि कहे जाते हें अत: इन तिथियों को छोड़कर किसी भी तिथि में ट्यूबबेल लगाया जा सकता है और तालाब खुदवाया जा सकता है।


समझौता करने का मुहुर्त—-

कहते हैं कि लकड़ी को जितना काटा जाता है वह उतना ही पतली होती जाती है और बातों को जितना काटा जाय वह उतना ही मोटा होता जाता है। कहावत का तात्पर्य है कि लड़ाई झगड़े से कुछ हासिल नहीं होता है जितना ही बातों को बढ़ाएंगे मनमुटाव उतना ही बढ़ता जाएगा। मनमुटाव व संधर्ष को समाप्त करने का एक आसान से तरीका है समझौता । 

ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि समझौता करने से पहले मुहुर्त का विचार अवश्य करना चाहिए। मुहुर्त का विचार करके अगर आप समझौता करते है तो समझौता परस्पर मित्रता को बढ़ाता है व लम्बे समय तक कायम रहता है इसलिए समझौता करने से पहले आपको मुहुर्त का आंकलन अवश्य कर लेना चाहिए । समझौता के लिए कौन सा मुहुर्त अच्छा होता है और मुहुर्त का आंकलन कैसे करना चाहिए आइये इसे देखें।

1.नक्षत्र विचार:—-

भारतीय ज्योतिष पद्धति के अनुसार समझौता करने के लिए पुष्य, अनुराधा और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र अनुकूल होते हैं । जब आप समझौता करने की योजना बनाएं तो ध्यान रखें कि जिस दिन आप समझौता करने जा रहे हैं उस दिन उपरोक्त नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र वर्तमान हो।

2.वार विचार:—-

सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार समझौता करने के लिए शुभ माने गये हैं । जिस दिन आप समझौता करने जा रहे हैं उस दिन इन चारों वारों में से काई वार हो यह जरूर देख लें।

3.तिथि विचार:—-

समझौता करने के लिए जब आप पहल करें तब नक्षत्र, वार का विचार करने के पश्चात तिथि का आंकलन भी करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार समझौता के लिए अष्टमी और द्वादशी तिथि बहुत ही शुभ होती है अत: इस तिथि के रहते समझौता करना चाहिए।

4.लग्न विचार:—-

समझौता करने के लिए लग्न क्या कहता है यह भी देखना चाहिए। उपरोक्त स्थिति हो और लग्न भी शुभ हो तो समझौता करने के लिए पहल की जा सकती है। लग्न पर अगर शुक्र की दृष्टि हो तो यह और भी उत्तम स्थिति मानी जाती है। 


दुकान खोलने का मुहुर्त—– 

जो भी व्यक्ति दुकान खोलते हैं उनकी आशा यही रहती है कि उनकी दुकान खूब चले। परंतु हर व्यक्ति की यह आश पूर्ण नहीं हो पाती है। दुकान खोलने वालों में कई ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें किन्ही कारणों से अपनी दुकान कुछ महीनों में बंद कर देनी पड़ती है !
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि अगर आप दुकान खोलते समय मुहुर्त का विचार नहीं करें और अशुभ मुहुर्त में दुकान खोलें तो इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं। 

जब आप दुकान खोलने का विचार मन में लाएं उस समय सबसे पहले मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार करलें । मुहुर्त जब शुभ हो तभी आप दुकान खोलने की सोचें अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें। आइये अब देखें कि दुकान खोलने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ है और इस संदर्भ में मुहुर्त किस प्रकार देखना चाहिए।

1.नक्षत्र विचार——

दुकान खोलने के लिए जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है।

दुकान खोलने के लिए सभी स्थिर नक्षत्र जैसे उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी तथा सभी सौम्य नक्षत्र जैसे मृगशिरा, रेवती चित्रा,अनुराधा व लघु नक्षत्र जैसे हस्त, अश्विनी,पुष्य और अभिजीत नक्षत्रों को दुकान खोलने के लिए शुभ माना जाता है।

2.लग्न विचार— 

नक्षत्र विचार करने के बाद आप लग्न से विचार करें। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार जिस समय आप दुकान खोलने जा रहे हैं उस समय मुहुर्त का लग्न बलवान होना चाहिए। लग्न में चन्द्र-शुक्र हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति मानी जाती है। लग्न की शुभता का विचार करने के लिए देखें कि लग्न से द्वितीय, दशम एवं एकादश भाव में शुभ ग्रह हो तथा अष्टम व द्वादश भाव में कोई अशुभ ग्रह ना हों।

3.तिथि विचार —

दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकालें उस समय उपरोक्त सभी विषयों पर विचार करने के साथ ही तिथि का भी विचार करना चाहिए। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ हैं परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) अपवाद स्वरूप हैं अत: इन तिथियो में दुकान नहीं खोलना चाहिए.

4.वार विचार —-

आप दुकान खोलने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि मंगलवार को दुकान नहीं खोलें । मंगल के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते हैं।

5.निषेध —–

जिस दिन गोचरवश चन्द्रमा जन्म के समय जिस राशि में था उस राशि से चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में उपस्थित हो तथा तृतीय भाव, पंचम भाव एवं सप्तम भाव में तारा हो एवं भद्रा या अन्य अशुभ योग हो तो दुकान नहीं खोलना चाहिए!


दग्ध योग—–
जिस तरह वार और तिथि के संयोग से योग का निर्माण होता है उसी प्रकार वार और नक्षत्र का संयोग होने पर योग का निर्माण होता है। 

नक्षत्रों की संख्या 27 हैं इन नक्षत्रों का जिस वार के साथ संयोग होता है उसी प्रकार उनका शुभ अथवा अशुभ प्रभाव हमारे ऊपर होता है।

नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनने वाले योगों के क्रम में सबसे पहले हम अशुभ दग्ध योग की बात करें। आपने वार और तिथि से बनने वाले योग को देखा होगा तो आपको पता होगा कि तिथि और वार के संयोग से भी दग्ध योग बनता है। नक्षत्र और तिथि से बनने वाला दग्ध योग और तिथि से बनने वाला दग्ध योग अलग अलग है परंतु परिणाम में दोनों ही सगे सम्बन्धी यानी समान हैं।

आइये अब नक्षत्र एवं वार के मिलन से बनने वाले दग्ध योग पर एक नज़र डालें—-

1.रविवार के दिन जब भरणी नामक नक्षत्र पड़ता है तब यह योग बनता है।

2. चित्रा नक्षत्र जब सोमवार के दिन पड़ता तब वह दिन दग्ध योग के प्रभाव में माना जाता है।

3.उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग जब मंगलवार से होता है तो इस योग का प्रादुर्भाव होता है।

4.बुधवार के दिन जब घनिष्ठा नक्षत्र आये तो यह अशुभ संयोग होता है क्योंकि इससे दग्ध योग बनता है।

5.बृहस्पतिवार के दिन जब उ.फा. नक्षत्र हो तो वह दिन भी शुभ कार्य के लिए वर्जित होता है, कारण यह है कि इस स्थिति में भी दग्ध नामक अशुभ योग बनता है।

6.ज्येष्ठा नाम नक्षत्र जब गोचरवश शुक्रवार के दिन पड़ता है तो उस दिन को शुभ कार्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इस स्थिति में दग्ध नामक अशुभ योग बनता है।

7.शनिवार के साथ अगर गोचरवश रेवती नक्षत्र का संयोग होता है तो इनके फल के रूप में इस योग का जन्म होता है।

इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य सहित यात्रा नहीं करने की सलाह दी जाती है। यात्रा के सम्बन्ध में यह योग बहुत ही अशुभ माना जाता है।


यमघण्ट योग —

नक्षत्र एवं वार के संयोग से बनने वाला एक अन्य अशुभ योग है यमघण्ट योग !आइये देखें कि यह योग कैसे बनता है।

1. रविवार के दिन के साथ जब मघा नक्षत्र का संयोग होता है तो इसके फल के रूप में यमघण्ट नामक अशुभ योग बनता है।

2.सोमवार के दिन साथ जब विशाखा नक्षत्र का मिलाप होता है तो अशुभ यह योग जन्म लेता है।

3.आर्द्रा नक्षत्र जब गोचरवश मंगल के साथ संयोग करता है तब इस स्थिति में यमघण्ट नामक योग बनता है।

4.बुधवार और मूल नक्षत्र जब मिलता है तब भी यह अशुभ योग बनता है।

5.कृतिका नक्षत्र जब बृहस्पतिवार को पड़ता है तो उस दिन को शुभ काम के लिए वर्जित माना जाता है क्योंकि इन स्थितियों में यमघण्ट नामक योग बनता है।

6.जिस शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र पड़ता वह शुक्रवार इस योग के प्रभाव में रहता है।

7.गोचरवश जब शनिवार हस्त नक्षत्र में पड़ता है तो उस दिन को मांगलिक कार्य के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि नक्षत्र और वार के संयोग से यमघण्ट नामक अशुभ योग बनता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस योग में यात्रा सहित कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए.

पंचक शास्त्रीय विचार 

ज्योतिष के प्रसिद्ध शास्त्र “राजमार्त्तण्ड” के अनुसार ईंधन एकत्र करने, चारपाई बनाने, छत बनवाने, दक्षिण दिशा की यात्रा करने में घनिष्टा नक्षत्र में इनमें से कोई काम करने पर अग्नि का भय रहता है. शतभिषा नक्षत्र में कलह, पूर्वा भाद्रपद में रोग, उतरा भाद्रपद में जुर्माना, रेवती में धन हानि होती है !

पंचक समय में अन्य वर्जित कार्य 

पंचक नक्षत्र समयावधि में लकडी तोडना, तिनके तोडना, दक्षिण दिशा की यात्रा, प्रेतादि- शान्ति कार्य, स्तम्भारोपन, तृ्ण, ताम्बा, पीतल, लकडी आदि का संचय , दुकान, पद ग्रहण व पद का त्याग करना शुभ नहीं होता है ! इसके अलावा मकान की छत, चारपाई, चटाई आदि बुनना त्याज्य होता है! विशेष परिस्थितियों में ये कार्य करने आवश्यक हो तो किसी योग्य विद्वान पंडित से पंचक शान्ति करवाने का विधान है!

दोष निवारण संभव 

ऋषि गर्ग ने कहा है कि शुभ या अशुभ जो भी कार्य पंचकों में किया जाता है, वह पांच गुणा करना पडता है! इसलिये अगर किसी व्यक्ति की मृ्त्यु पंचक अवधि में हो जाती है !तो शव के साथ चार या पांच अन्य पुतले आटे या कुशा से बनाकर अर्थी पर रख दिये जाते है! इन पांचों का भी शव की भांति पूर्ण विधि-विधान से अन्तिम संस्कार किया जाता है! और पंचक दोषों का शांति विधान किया जाता है।

पर किसी कारणवश इन कार्यो को करना पड़ता है तो नक्षत्र स्थिति के अनुसार पंचक दोष निवारण उपाय बताए गए हैं।
यदि पंचक काल में कार्य करना जरूरी है तो धनिष्ठा नक्षत्र के अंत की, शतभिषा नक्षत्र के मध्य की, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के आदि की, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र की पांच घड़ी के समय को छोड़कर शेष समय में कार्य किए जा सकते हैं। रेवती नक्षत्र का पूरा समय अशुभ माना जाता है।

पंचक निषेध काल 

इस तरह पंचक नक्षत्रों में सभी कार्य निषिद्ध नहीं होते। मुहूर्त ग्रन्थों के अनुसार विवाह, मुण्डन, गृहारम्भ, गृ्ह प्रवेश, वधू- प्रवेश, उपनयन आदि में इस समय का विचार नहीं किया जाता है ! इसके अलावा रक्षा -बन्धन, भैय्या दूज आदि पर्वों में भी पंचक नक्षत्रों का निषेध के बारे में नहीं सोचा जाता है !और इसके साथ-साथ व्यावसायिक एवं आर्थिक गतिविधियां संपन्न की जा सकती हैं।


भद्रा योग (विष्टी करण)

भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। 
शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है।
इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया।
किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
पंचक (तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण) की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है।

तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं.
इस तरह एक तिथि के दो करण होते हैं.
कुल 11 करण माने गए हैं जिनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर करण और शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न अचर करण होते हैं.
विष्टि करण को ही भद्रा भी कहा जाता है.
कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं
कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.
तिथि के पूर्वार्ध में (कृष्णपक्ष की 7:14 और शुक्लपक्ष की 8:15 तिथि) दिन की भद्रा कहलाती है. तिथि के उत्तरार्ध की (कृष्णपक्ष की 3:1. और शुक्लपक्ष की 4:11) की भद्रा रात्री की भद्रा कहलाती है.

यदि दिन की भद्रा रात्री के समय और रात्री की भद्रा दिन के समय आ जाए तो उसे शुभ माना जाता है.
भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित, रक्षाबंधन या कोई भी नया काम शुरू करना वर्जित माना गया है.

लेकिन भद्राकाल में ऑपरेशन करना, मुकदमा करना, किसी वस्तु का कटना, यज्ञ करना, वाहन खरीदना स्त्री प्रसंग संबंधी कर्म शुभ माने गए हैं.
सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी,
शनिवार की भद्रा वृश्चिकी,
गुरुवार की भद्रा पुण्यैवती,
रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कहलाती है.
शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है!

मुहूर्त सार —–जीवन में मुहूर्त के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता है. किसी व्यक्ति की सफलता, असफलता और जीवन स्तर में परिवर्तन के संदर्भ में मुहूर्त की महत्ता को अलग नहीं किया जा सकता है! हमारे जीवन से जुड़े 16 संस्कारों एवं दैनिक कार्यकलापों के संदर्भ में भी मुहूर्त की बड़ी मान्यता है जिसे हमें स्वीकार करना होगा!

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