वास्तु अनुसार कैसा और कहाँ हो घर का प्रवेश द्वार—-
(वास्तु अनुसार सही हो द्वार तो खुशियां आएँगी अपार)—
किसी भी घर में प्रवेश द्वार का विशेष महत्व होता है। प्रवेश द्वार की स्थिति वास्तु सम्मत होती है तो उसमें रहने वालों का स्वास्थ्य, समृद्धि सब कुछ ठीक रहता है और अगर यह गलत हो तो कई परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है। तो क्यों न वास्तु का खयाल रख कर अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाएं।
जिस प्रकार मनुष्य के शारीर में रोग के प्रविष्ट करने का मुख्य मार्ग मुख होता है उसी प्रकार किसी भी प्रकार की समस्या के भवन में प्रवेश का सरल मार्ग भवन का प्रवेश द्वार ही होता है इसलिए इसका वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है।गृह के मुख्य द्वार को शास्त्र में गृहमुख माना गया है। यह परिवार व गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वत्ता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार को हमेशा अन्य द्वारों की अपेक्षा प्रधान, वृहद् व सुसज्जित रखने की प्रथा रही है। पौराणिक भारतीय संस्कृति व परम्परानुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, अशोक, केले के पत्र से या स्वास्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करने की प्रथा है | जो आज के इस अध्युनिक युग के शहरी जीवन में भोग, विलासिता के बीच कही विलुप्त सी हो गई है | मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला होना अनिवार्य है। इसे दहलीज भी कहते हैं। यह भवन में निवास करने वाले सदस्यों में शुभ व उत्तम संस्कार का संगरक्षक व पोषक है |
साधारणतया आम इंसान मकान में दरवाजों की संख्या के बारे में भ्रमित रहता है। क्योंकि वास्तु विषय की लगभग सभी पुस्तकों में दरवाजों की संख्या के बारे में विवरण दिया गया है कि मकान में दरवाजे ., 4, 6, 8, .2, 16, 18, 22 इत्यादि की संख्या में होने चाहिए। जबकि व्यवहारिकता में दरवाजों की संख्या का कोई औचित्य व आधार ही नहीं है। मकान में दरवाजे आवश्यकता के अनुसार, वास्तु द्वारा निर्देशित उच्च स्थान पर लगाने से इससे शुभ फल पाप्त होते हैं। लेकिन इसके विपरीत नीच स्थल पर दरवाजे लगाने से इसके अशुभ परिणाम ही पाप्त होंगे।
उच्च स्थान पर दरवाजे लगाते समय यह भी ध्यान में रखा जाना अत्ति आवश्यक होता है कि मुख्य पवेश द्वार के सामने एक ओर दरवाजा लगाने पर ही यह दरवाजे शुभ फलदायक साबित होंगे। मुख्य द्वार के सामने एक ओर दरवाजा नहीं लगाने की स्थिति में एक खिड़की अवश्य ही लगानी चाहिए। ताकि मुख्य द्वार से आने वाली ऊर्जा मकान में पवेश कर सके। अन्यथा दरवाजे के सामने दरवाजा या खिड़की नहीं होने की स्थिति में यह ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी।
प्रवेश द्वार भवन का अहम भाग होता है। कहते हैं कि आरंभ अच्छा तो अंत अच्छा। जिस तरह भवन निर्माण से पूर्व भूमि का पूजन किया जाता है, उसी तरह भवन की चौखट अर्थात द्वार प्रतिस्थापना के समय भी पूजा की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। मतलब यह कि भवन निर्माण में प्रवेश द्वार का विशेष महत्व होता है। प्रवेश द्वार अगर वास्तु नियमों के अनुसार बनाया जाए तो वह उस घर में निवास करने वालों के लिए खुशियों को आमंत्रित करता है। यही नहीं, प्रवेश द्वार से हमें भवन के आंतरिक सौष्ठव और साज-सज्जा का अंदाजा भी हो जाता है।
मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला होना अनिवार्य है। इसे दहलीज भी कहते हैं। यह भवन में निवास करने वाले सदस्यों में शुभ व उत्तम संस्कार का संगरक्षक व पोषक है | पुरानी मान्यता के अनुसार ऐसे भवन जिनमे चौखट या दहलीज न हो उसे बड़ा अशुभ संकेत मानते थे, मान्यता है की माँ लक्ष्मी ऐसे घर में प्रवेश ही नहीं करती जहाँ प्रवेश द्वार पर चौखट न हो और ऐसे घर के सदस्य संस्कारहीन हो जाते है | इसकी दूसरी अनिवार्यता यह है की इससे भवन में गंदगी भी कम प्रवेश कर पाती है तथा नकारात्मक उर्जाओ या किसी शत्रु द्वारा किया गया कोई भी नीच कर्म भी भवन में प्रवेश नहीं कर पाता | चौखट अथवा दहलीज पुरातनकाल से ही हमारे संस्कार व जीवनशैली का एक प्रमुख अंग रही है |
मुख्य द्वार के सामने कुआं, चोराहा, तालाब गटर दूसरे के माकन का कोना या सीडियां, बड़ा वृक्ष या स्तम्भ अच्छा नही होता द्वार के सामने गाय, बकरी या कोई जानवर बांधना भी अच्छा नही होता। द्वार के सामनेगाय, बकरी या कोई जानवर बांधना भी अच्छा नही होता वहां कोई खूंटा न गडावें मुख्य द्वार के सामनेयदि बड़ा वृक्ष हो जिसकी छाया मकान पर प्रात: ९ बजे से ३ बजे तक पड़ती हो तो भी अच्छा नही होतामंदिर या मंदिर के ध्वज की छाया भी ठीक नही मानी जाती।
मकान के चारों तरफ वास्तु के सिद्धांत के अनुपात में खुली जगह छोड़ने का तात्पर्य भी यही है कि दरवाजों के माध्यम से इन ऊर्जा शक्तियों का मकान में निर्विघ्न पवेश हो सके। आमने-सामने दो दरवाजे ही रखने से अभीपाय यह है कि आमने-सामने दो से ज्यादा दरवाजे होने पर मकान में पवेश होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्ति में न्यूनता आती है। चित्र संख्या 1 में निर्देशित उच्च (शुभ) तथा चित्र संख्या 2 में निर्देशित नीच (अशुभ) स्थान पर
दरवाजे लगाने से पाप्त होने वाले परिणाम :-
दिशा | श्रेणी | परिणाम |
---|---|---|
पूर्व | उच्च | शुभ, उच्च विचार |
पूर्व-ईशान | उच्च | सर्वश्रेष्ठ, शुभ व सौभाग्यदायक |
पूर्व-आग्नेय | नीच | वैचारिक मतभेद, चोरी, पुत्रों के लिये कष्टकारी |
पश्चिम-वायव्य | उच्च | शुभदायक |
पश्चिम-नैऋत | नीच | आर्थिक स्थिति तथा घर के मुखिया के लिये अशुभ |
उत्तर-ईशान | उच्च | आर्थिक फलदायक, श्रेष्ठ |
उत्तर-वायव्य | नीच | धन हानि, चंचल स्वभाव, तनाव में वृद्धि |
दक्षिण-आग्नेय | उच्च | अर्थ लाभ, स्वास्थदायक |
दक्षिण-नैऋत | नीच | आर्थिक विनाशक, गृहणी की स्थिति कष्टपद |
दक्षिण एवं पश्चिम | उच्च | शुभफलदायक |
उत्तर | उच्च | सुखदायक |
अगर आप भी अपने घर में खुशियों को आमंत्रित करना चाहते हैं तो प्रवेश द्वार को वास्तु सम्मत अवश्य बनाएं। वास्तु के अनुसार प्रवेश द्वार कैसा होना चाहिए, आज के लेख में इसी संबंध में दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। ये दिशा-निर्देश नि:संदेह आपका मार्गदर्शन करेगा। उल्लेखनीय है कि जो दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं, वे पूर्णत: तर्कसंगत हैं और उनका वैज्ञानिक आधार है।वास्तु अनुसार ऐसा हो आपका प्रवेश द्वार—–
—–किसी भी भवन में दो प्रवेश द्वार होने चाहिए। एक बड़ा प्रवेश द्वार वाहन के लिए और दूसरा छोटा निजी प्रयोग के लिए।
—–प्रवेश द्वार मकान के एकदम कोने में न बनाएं।
—–मकान के भीतर तक जाने का मार्ग मुख्य द्वार से सीधा जुड़ा होना चाहिए।
—–दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार न बनाएं।
—–मुख्य द्वार को कलश, नारियल, पुष्प, अशोक व केले के पत्र से या स्वास्तिक आदि से सुसज्जित रखने का प्रयास करे जिससे यह अन्य द्वारो से भिन्न व विशेष दिखे |
– —-मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला होना अनिवार्य है। जिससे घर में संस्कार बने रहते है और माँ लक्ष्मी भी ऐसे ही घर में प्रवेश करती है|
– —-घर के सदस्यों व गृह लक्ष्मी की ज़िम्मेदारी है की सूर्योदय उपरांत ही मुख्य द्वार को साफ़ सुथरा व सुसज्जित रखे |
—–मकान के ठीक सामने विशाल दरख्त न हो तो बेहतर। विशाल दरख्त से पड़ने वाली छाया मकान में निवास करने वाले सदस्यों पर शुभ प्रभाव नहीं डालती।
—–मुख्य द्वार के सामने कोई गड्ढा अथवा सीधा मार्ग न हो।
– —-यदि आपका मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर अथवा पूर्व में है तो इसे हरे व पीले, गुलाबी रंग से रंगवाना शुभ होगा यदि यह दक्षिण है तो लाल और पश्चिम है तो हल्का नीला, भूरा, सफ़ेद रंग प्रयोग कर सकते है यह वास्तु सम्मत है |
– —-प्रातः मुख्य द्वार खोल कर सर्वप्रथम दहलीज पर जल छिड़कना चाहिए जिससे रात में वहां एकत्रित हुई दूषित ऊर्जा दूर हो जाएं तथा गृह में प्रवेश ना पाए और लक्ष्मी आने का मार्ग प्रशस्त हो |
—–खुला कुआं मुख्य द्वार के सामने न हो।
—–कचरा घर, जर्जर पड़ी इमारत या ऐसी कोई दयनीय चीज मकान के सामने नहीं होनी चाहिए।
—–प्रमुख प्रवेश द्वार अत्यंत सुशोभित होना चाहिए.इससे प्रतिष्ठा बडती है.
—-प्रमुख द्वार अन्य दरवाजों से ऊँचा और बड़ा होना चाहिए.
—-तोरण बंधने से देवी देवता सारे कार्य निर्विध्न रूप से सम्पन्न कराकर मंगल प्रदान करते हैं.
—-कम्पौंड वाल के पूर्व और उत्तर की तरफ में गेट होने से सम्रद्धि और ऐश्वर्य मिलता है.
—–द्वार जंहा तक हो अंदर की ओर ही खुलने चाहिए.बाहर खुलने से हर कार्य में बाधा आती है.
—–घर का कोई भी द्वार धरातल से निचा न हो.
—–मुख्य द्वार के ठीक सामने किसी भी तरह का कोई खम्भा न हो। मुख्य द्वार के संबंध में वास्तु शास्त्र के विद्वानों के विभिन्न मत हैं किंतु व्यावहारिक दृष्टि से मुख्य द्वार ऐसे स्थान पर रखा जाना चाहिए, जहां से पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सके व परिवार के लिए सुविधाजनक हो।
—–घर का प्रवेश द्वार सूना होने पर सुख-समृद्घि में कमी आती है। अतः प्रवेश द्वार पर स्वास्तिक अथवा ॐ की आकृति लगायें। अगर प्रवेश द्वार के सामने की दीवार भी खाली हो तो उस पर गणेश जी की नृत्य करती हुई तस्वीर लगाएं।
– —-मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों तरफ (अगल बगल) व ऊपर रोली, कुमकुम, हल्दी, केसर आदि घोलकर स्वास्तिक व ओमकार (ॐ ) का शुभ चिन्ह बनाएं।
—– मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर अपने सामर्थानुसार रंगोली बनाना या बनवाना शुभ होता है जो माँ लक्ष्मी को आकृष्ट करता है व नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश को रोकता है।
—–यदि आपका काम एकाग्रता का है और लम्बे समय तक बैठना प़डता है तो पश्चिम दिशा आपकी बहुत मदद कर सकती है। वास्तु में द्वार योजना के अनुसार पूर्व मध्य का द्वार “रवि” नामक देवता का है, जो क्रोध बढ़ाते हैं। जिस घर या व्यापारिक संस्थान में “रवि” नाम का द्वार होता है वहां क्रोध बहुत अधिक मिलता है अत: यदि बहुत अधिक क्रोध आता है तो प्रयास करने के बाद भी नियंत्रित न हो रहा हो तो वास्तु के इन महत्वूर्ण नियमों को अवश्य देखा जाना चाहिए। क्रोध को न तो कमजोरी को छुपाने का अस्त्र बनाना चाहिए, न ही शक्ति प्रदर्शन का माध्यम। इसे तो तुरूप के इक्के की तरह ही प्रयोग करना चाहिए यानि जब कोई और रास्ता न बचा हो।
—-जानिए मुख्य प्रवेश द्वार के प्रभाव——
—–मुख्य द्वार अगर उत्तर या पूर्व दिशा में स्थित है तो यह आपके लिए समृद्घि और शोहरत लेकर आता है।
—–प्रवेश द्वार अगर पूर्व व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको खुशियां व संपन्नता प्रदान करता है।
—-यदि प्रवेश द्वार उत्तर व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको समृद्घि तो प्रदान करता ही है, यह भी देखा गया है कि यह स्थिति भवन में रहने वाले किसी सदस्य का रुझान अध्यात्म में बढ़ा देती है।
—–भवन का मुख्य द्वार अगर पूर्व दिशा में है तो यह बहुमुखी विकास व समृद्घि प्रदान करता है।
—-वास्तु कहता है कि अगर आपके भवन का प्रवेश द्वार केवल पश्चिम दिशा में है तो यह आपके व्यापार में लाभ तो देगा, मगर यह लाभ अस्थायी होगा।
—–किसी भी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम में प्रवेश द्वार बनाने से बचें। इस दिशा में प्रवेश द्वार होने का मतलब है परेशानियों को आमंत्रण देना।
—-अगर हो दोष—–
—-ऊपर दिए गए दिशा-निर्देश निश्चित रूप से आपको लाभान्वित करेंगे, लेकिन प्रश्न यह है कि जिन भवनों के प्रवेश द्वार उपयरुक्त दिशा-निर्देशों के अनुसार नहीं बने हैं तो ऐसे द्वार को शुभ फलदायी कैसे बनाया जा सकता है। यह प्रश्न उस वक्त और जटिल हो जाता है, जब मकान में तोड़-फोड़ कर प्रवेश द्वार को अन्यत्र स्थानांतरित करना संभव न हो। ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं है।
——पश्विम दिशा में द्वार दोष उत्पन्न होने पर रविवार को सूर्योदय से पूर्व दरवाजे के सम्मुख नारियल के साथ कुछ सिक्के रखकर दबा दें। किसी लाल कपड़े में बांध कर लटका दें। सूर्य के मंत्र से हवन करें। द्वार दोष दूर होगा।
——–पूर्व दिशा में घर का दरवाजा है तो जातक को ऋणी बना देता है, तो सोमवार को रुद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को हवन करें। रुद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे।
———दक्षिण दिशा में घर कर प्रमुख द्वार शुभ नहीं हैं तथा इसके कारण घर में लगातार परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो बुधवार या गुरुवार को नींबु या सात कौडिय़ां धागे में बांधकर लटका देना चाहिए।
——-वास्तु के अनुसार उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है। यदि द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूले की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।
—–वास्तुशास्त्र तोड़-फोड़ का शास्त्र नहीं है। पूर्व निर्मित प्रवेश द्वार को वास्तु सम्मत बनाने के लिए या उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वास्तु में अनेक उपायों की व्यवस्था भी है।वास्तु यंत्र ,रत्न..वैदिक वास्तु पूजा द्वारा भी इन दोषों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती हें…
——किसी भी कुशल वास्तु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में इन उपायों को अपना कर प्रवेश द्वार को खुशियों का द्वार बनाया जा सकता है।