होली कब और केसे मनाएं…..2 में..????
इस वर्ष होली का पावन पर्व 08 मार्च -2012 (गुरुवार) को मनाया जायेगा…
होली एक सामाजिक पर्व है। यह रंगों से भरा रंगीला त्योहार, बच्चे, वृद्ध, जवान, स्त्री-पुरुष सभी के ह्रदय में जोश, उत्साह, खुशी का संचार करने वाला पर्व है। यह एक ऐसा पर्व है जिसे भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में किसी ना किसी रूप में मनाया जाता है। इसके एक दिन पहले वाले सायंकाल के बाद भद्ररहित लग्न में होलिका दहन किया जाता है। इस अवसर पर लकडियां, घास-फूस, गोबर के बुरकलों का बडा सा ढेर लगाकर पूजन करके उसमें आग लगाई जाती है। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते है, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पडा। वैसे होलिकोत्सव को मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित है। कुछ लोग इसको अग्निदेव का पूजन मानते हैं, तो कुछ इसे नवसंम्बवत् को आरंभ तथा बंसतांमन का प्रतीक मानते हैं। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था। अतः इसे मंवादितिथि भी कहते हैं। एक कथा के अनुसार इस पर्व का संबंध प्रहलाद से है। हिरण्यकश्यपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए पर वह मारा नहीं। हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यपु ने इस वरदान का लाभ उठाकर लकडियों के ढेर में आग लगवाई।होली उत्तर भारत के अलावा अन्य प्रदेशों मे भी मनाई जाती है, हाँ थोड़ा बहुत रुप स्वरुप बदल जाता है।
होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकरपारस्परिक प्रेम व सदभाव प्रकट करने का एक अवसर है |अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारोंकी आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को, निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है |यह रंगोत्सव हमारेपूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व कासंचार करता है | होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखदअनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रख जाये तो ये ही रंग दुखद भी जाते हैं | अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है |
होली भारत के प्रमुख चार त्योहारों (दीपावली, रक्षाबंधन, होली और दशहरा) में से एक है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। आवाल वृद्ध, नर- नारी सभी इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं है। इस अवसर पर लकड़ियों तथा कंडों आदि का ढेर लगाकर होलिकापूजन किया जाता है। फिर उसमें आग लगायी जाती है। पूजन के समय मंत्र उच्चारण किया जाता है।होली या होलिका आनन्द एवं उल्लास का ऐसा उत्सव है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। उत्सव मनाने के ढंग में कहीं-कहीं अन्तर पाया जाता है। बंगाल को छोड़कर होलिका दहन सर्वत्र देखा जाता है। बंगाल में फाल्गुन पूर्णिमा पर कृष्ण-प्रतिमा का झूला प्रचलित है किन्तु यह भारत के अधिकांश स्थानों में नहीं दिखाई पड़ता। इस उत्सव की अवधि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न है। इस अवसर पर लोग बाँस या धातु की पिचकारी से रंगीन जल छोड़ते हैं या अबीर-गुलाल लगाते हैं। कहीं-कहीं अश्लील गाने गाये जाते हैं। इसमें जो धार्मिक तत्त्व है वह है बंगाल में कृष्ण-पूजा करना तथा कुछ प्रदेशों में पुरोहित द्वारा होलिका की पूजा करवाना। लोग होलिका दहन के समय परिक्रमा करते हैं, अग्नि में नारियल फेंकते हैं, गेहूँ, जौ आदि के डंठल फेंकते हैं और इनके अधजले अंश का प्रसाद बनाते हैं। कहीं-कहीं लोग हथेली से मुख-स्वर उत्पन्न करते हैं।
दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
हरियाणा मे होली के त्योहार मे भाभियों को इस दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दें।इस दिन भाभियां देवरों को तरह तरह से सताती है और देवर बेचारे चुपचाप झेलते है, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है।शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी के लिये उपहार लाता है इस तरह इस त्योहार को मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति मे यही तो अच्छी बात है, हम प्रकृति को हर रुप मे पूजते है और हमारे यहाँ हर रिश्ते नाते के लिये अलग अलग त्योहार हैं।ऐसा और कहाँ मिलता है।
पंजाब मे भी इस त्योहार की बहुत धूम रहती है। सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री अनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है।कहते है गुरु गोबिन्द सिंह(सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी।तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में सिख शौर्यता के हथियारों का प्रदर्शन और वीरत के करतब दिखाए जाते हैं। इस दिन यहाँ पर अनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है।
पूरे देश मे अलग अलग प्रान्तो(यहाँ प्रदेश पढे) में होली को अलग अलग नामों से जाना जाता है। आइये एक नजर डालते है, होली के विभिन्न रूपों पर :—-
—-बरसाना की लट्ठमार होली
—-हरियाणा की धुलन्डी
—-महाराष्ट्र की रंग पंचमी
—-बंगाल का बसन्तोत्सव
—पंजाब का होला मोहल्ला
—-कोंकण का शिमगो
—तमिलनाडु की कमन पोडिगई
—-बिहार की फागु पूर्णिमा
होलाष्टक —-चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है. होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है. होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जात सकता है. “होलाष्टक” के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है. दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है.होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दुलैण्डी तक रहती है. इसके कारण पूरे नौ दिनों तक प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. वर्ष 2012 में 1 मार्च, 2012 से 8 मार्च, 2012 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है.
होलिका पूजन करने के लिये होली से आंठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी खास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है. जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.होलाष्टक मुख्य रुप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है. होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यो का प्रारम्भ होता है. वहीं कुछ कार्य ऎसे भी है जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है. यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है. अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठिक आठ दिन पूर्व शुरु हो जाते है.वर्ष 2012 में होलाष्टक 1 मार्च, अष्टमी तिथि, बृहस्पतिवार, मृ्गशिरा नक्षत्र से शुरु होकर 8 मार्च, 2012, फाल्गुन पूर्णिमा अर्थात बृहस्पतिवार, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र तक रहेगा. इसलिये 1 मार्च से लेकर 19 मार्च के दिनों में कोई भी नया शुभ कार्य नहीं किया जायेगा. इसके अतिरिक्त इस समय में मांगलिक कार्यो पर भी रोक रहेगी.होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है. यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते है. इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है.
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होली पूजन दहन कैसे करें..????
पूर्ण चंद्रमा (फाल्गुनपूर्णिमा) के दिन ही प्रारंभ होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। इसके एक माह पूर्व अर्थात् माघ पूर्णिमा को ‘एरंड’ या गूलर वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है, और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और फाल्गुन पूर्णिमा की रात या सायंकाल इसे जलाया जाता है। परंपरा के अनुसार सभी लोग अलाव के चारों ओर एकत्रित होते हैं। इसी अलाव को होली कहा जाता है। होली की अग्नि में सूखी पत्तियाँ, टहनियाँ, व सूखी लकड़ियाँ डाली जाती हैं, तथा लोग इसी अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का आनन्द लेते हैं।
07 मार्च 2012,बुधवार, पूर्वाफाल्गुणी नक्षत्र में इस वर्ष की होलिका दहन किया जायेगा. प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं. इस दिन भद्रा 08:55 तक ही होने के कारण सूर्यास्त के बाद 07 मार्च, 2012 को गोधूलि बेला में होलिका-दहन किया जा सकता है. इसलिए होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा समय के पश्चात् होली का पूजन किया जाना चाहिए.
भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है,ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है. हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां हैं. वैसे तो समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदलीं, उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है.
होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए—-
अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए.
होलिका डोंडा रोपण—-
बसंत पंचमी के दिन होली डोंडा का रोपण पूजनोपरान्त किया जाता है। यह कृत्य अपराह्न तथा सूर्यास्त के मध्य किया जाता है। इस डोंडा के चारों ओर घास-फूस, ईंधन डालना प्रारम्भ हो जाता है। यह क्रम फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा तक निरन्तर चलता रहता है।
होलिका-दहन के समय का निर्णय—-
यह फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है। इसका मुख्य सम्बन्ध होली के दहन से है। जिस प्रकार श्रावणी को ऋषि-पूजन, विजया-दशमी को देवी-पूजन और दीपावली को लक्ष्मी-पूजन के पश्चात् भोजन किया जाता है, उसी प्रकार होलिका के व्रत वाले उसकी ज्वाला देखकर भोजन करते हैं।
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कब मनाएं होली..??? तिथि निर्णय केसे करें..???
१॰ होलिका के दहन में पूर्वविद्धा प्रदोष-व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है।
(प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या पूर्णिमा फाल्गुनी सदा। -नारद,
निशागमे तु पूज्यते होलिका सर्वतोमुखैः – दुर्वासा
सायाह्ने होलिकां कुर्यात् पूर्वाह्णे क्रीडनं गवाम् – निर्णयामृत)
२॰ यदि वह दो दिन प्रदोष-व्यापिनी हो तो दूसरी लेनी चाहिये।
(दिनद्वये प्रदोषे चेत् पूर्णा दाहः परेऽहनि। – स्मृतिसार)
३॰ यदि प्रदोष में भद्रा हो तो उसके मुख की* घड़ी त्यागकर** प्रदोष में दहन करना चाहिए।
(* पूर्णिमायाः पूर्वे भागे चतुर्थप्रहरस्य पञ्चघटीमध्ये भद्राया मुखं ज्ञेयम् । – ज्योतिर्बन्ध
**तस्यो भद्रामुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशामुखे। – पृथ्वीचन्द्रोदय)
४॰ भद्रा में होलिकादहन करने से जनसमूह का नाश होता है। प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा और दिन – इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। कुयोगवश यदि जला दी जाए तो वहाँ के राज्य, नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पातों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।
५॰ यदि पहले दिन प्रदोष के समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा समाप्त होती हो, तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करके सूर्योदय से पहले होलिका-दहन करना चाहिए।
६॰ यदि पहले दिन प्रदोष न हो और हो तो भी रात्रिभर भद्रा रहे (सूर्योदय होने से पहले न उतरे) और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले ही पूर्णिमा समाप्त होती हो तो ऐसे अवसर में पहले दिन भद्रा हो तो भी उसके ‘पुच्छ-भाग’ में होलिका-दहन कर देना चाहिए।
७॰ यदि पहले दिन रात्रिभर भद्रा रहे और दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा का उत्तरार्ध मौजूद भी हो तो भी उस समय यदि चन्द्र-ग्रहण हो तो ऐसे अवसर में पहले दिन भद्रा हो तब भी सूर्यास्त के पीछे होली जला देनी चाहिए।
८॰ यदि दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा हो और भद्रा उससे पहले उतरने वाली हो, किन्तु चन्द्र-ग्रहण हो तो उसके शुद्ध होमे के बाद स्नान करके होलिका-दहन करना चाहिए।
९॰ यदि फाल्गुन दो हों (मल-मास) हो तो शुद्ध मास (दूसरे फाल्गुन) की पूर्णिमा को होलिका-दीपन करना चाहिए।
स्मरण रहे कि जिन स्थानों में माघ शुक्ल पूर्णिमा को ‘होलिका-रोपण’ का कृत्य किया जाता है, वह उसी दिन करना चाहिए; क्योंकि वह भी होली का ही अंग है।
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होलिका पूजन के बाद होलिका दहन —विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है. होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है. इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए. ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है.इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है. तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए. होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है.
होलिका में आहुति देने वाली सामग्रियां—-होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर.
होलिका दहन की पूजा विधि —–
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए.
एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है.
इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है.
होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए. गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है. इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है.
कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है. फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है. रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है. गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है. पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.
सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है. इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है. सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती है. तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता है.सेंक कर लाये गये धान्यों को खाने से निरोगी रहने की मान्यता है.
ऎसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है. तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है.
वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने कीकुप्रथा है | नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं | अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये |आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तताकादौर चल पड़ा है | पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीयसमाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है | जो साधक है, संस्कृति काआदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयमविशेषरूप से होना चाहिये | पुरुष सिर्फ पुरुषोंसे तथास्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें | स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्तिके लोगों कि कुदृष्टि से बच सकें|
होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने त्योहारनहीँ है |यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करनेका, मन की मलिन वासनाओं को जलाने कापवित्र दिन है | अपने दुर्गुणों, व्यस्नों व बुराईओं को जलानेका पर्व है होली …….अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली ………समाज में स्नेह कासंदेश फैलाने का पर्वहै होली……….
आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सदभावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा,सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये | भक्त प्रह्लादजैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आहावन करना चाहिये |
सत्य, शान्ति, प्रेम, दृढ़ताकी विजय होती है इसकी याद दिलाता है आज का दिन | हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरीवृत्ति तथा होलिका रूपी कपटकी पराजयका दिन है होली, यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों कोबदल देने की याद दिलाता है | मानव को भक्त प्रेह्लाद की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने कासंदेश देने वाला पर्व है ‘होली’ !
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होली पूजन व दहन सामग्री—-
होली के 15 दिन पूर्व किसी शुभ दिन गाय के गोबर से सात बड़कूल्ला (गूलरी) बनाई जाती है। तत्पश्चात् अपनी इच्छानुसार उतनी ही गूलरी तथा नारियल आदि बनाए जाते हैं। फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन गोबर की पांच ढाल, एक तलवार, चन्द्रमा, सूरज, नारियल, आधी रोटी, एक होलिका माता तथा एक पाना बनाया जाता है। यदि वर्ष के अंतराल में किसी पुत्र का जन्म हुआ है अथवा पुत्र का विवाह हुआ है तो गोबर की 1. सुपारी भी बनानी चाहिए। होली के दिन उस समय जब भद्रा न हो तो पतली रस्सी में पिरोकर बड़कुल्ला की माला बनाई जाती है। इस माला सहित उपर्युक्त निर्मित समस्त सामग्री शीतला माता के मन्दिर में प्रत्येक पुरुष के नाम से चढ़ा देने चाहिए। मालाओं में ८-८ गूलरी, एक-एक पान के साथ 13 सुपारियों की भी माला बना लेनी चाहिए।
होली पूजन विधि व दहन—–
सर्वप्रथम गोबर का चौका लगा भूमि को शुद्ध किया जाता है तदुपरान्त एक सीधी लकड़ी के चतुर्दिक गूलरी की माला लगा देनी चाहिए। उन मालाओं के आसपास गोबर की ढाल-तलवार तथा अन्य खिलौने गोबर से चौका दी गई भूमि पर सजाकर रखने चाहिए। पूजन के मुहूर्त पर जल, मोली, रोली, फूल, गुलाल तथा गुड़ आदि से पूजन कर गोबर की ढाल-तलवार अपने पास घर में रख लेनी चाहिए। पितर, हनुमानजी, शीतला माता तथा घर के नाम की गूलरियों द्वारा निर्मित चार मालाएँ अलग सुरक्षित रख दें।
होली के पूजन की सामग्री में कच्चे सूत की अड़िया, खड़ी फसल से तोड़कर लाई पके चने की डालियां तथा गेहूँ की बालियाँ होती है। सामूहिक होलिका स्थल पर एक लोटा शुद्ध जल के साथ एन वस्तुओं को ले जाकर पूजन करें। गोबर की गूलरी से निर्मित माला तथा नारियल आदि अर्पण करें तथा होली की परिक्रमा करें। होली जल जाने के पश्चात् होली की परिक्रमा करते हैं तथा सामूहिक होली की अग्नि लाकर घर की होली का दहन करते हैं। यहां अग्नि प्रज्जवलित होते-होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है, क्योंकि इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। स्त्रियां इसको जल का अर्घ्य देकर रोली, अक्षत व पुष्प से पूजती हैं। पुरुष रोली का टीका लगाते हैं। महिलाएँ गीत गाती हैं तथा बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर उनका आशिर्वाद लिया जाता है।
फाग उत्सव—-फाल्गुन के माह रंगभरनी एकादशी से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो दौज तक चलते हैं। दौज को बल्देव (दाऊजी) में हुरंगा होता है। बरसाना, नन्दगांव, जाव, बठैन, जतीपुरा, आन्यौर आदि में भी होली खेली जाती है । यह ब्रज विशेष त्योहार है यों तो पुराणों के अनुसार इसका सम्बन्ध पुराणकथाओं से है और ब्रज में भी होली इसी दिन जलाई जाती है। इसमें यज्ञ रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है। प्रह्लाद की कथा की प्रेरणा इससे मिलती हैं। होली दहन के दिन कोसी के निकट फालैन गांव में प्रह्लाद कुण्ड के पास भक्त प्रह्लाद का मेला लगता है। यहाँ तेज जलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव पण्डा निकलता है।
श्रीकृष्ण राधा और गोपियों–ग्वालों के बीच की होली के रूप में गुलाल, रंग केसर की पिचकारी से ख़ूब खेलते हैं। होली का आरम्भ फाल्गुन शुक्ल 9 बरसाना से होता है। वहां की लठामार होली जग प्रसिद्ध है। दसवीं को ऐसी ही होली नन्दगांव में होती है। इसी के साथ पूरे ब्रज में होली की धूम मचती है। धूलेंड़ी को प्राय: होली पूर्ण हो जाती है, इसके बाद हुरंगे चलते हैं, जिनमें महिलायें रंगों के साथ लाठियों, कोड़ों आदि से पुरुषों को घेरती हैं। यह सब धार्मिक वातावरण होता है।
होली या होलिका आनन्द एवं उल्लास का ऐसा उत्सव है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। उत्सव मनाने के ढंग में कहीं-कहीं अन्तर पाया जाता है। बंगाल को छोड़कर होलिका दहन सर्वत्र देखा जाता है। बंगाल में फाल्गुन पूर्णिमा पर कृष्ण-प्रतिमा का झूला प्रचलित है किन्तु यह भारत के अधिकांश स्थानों में नहीं दिखाई पड़ता। इस उत्सव की अवधि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न है। इस अवसर पर लोग बाँस या धातु की पिचकारी से रंगीन जल छोड़ते हैं या अबीर-गुलाल लगाते हैं। कहीं-कहीं अश्लील गाने गाये जाते हैं। इसमें जो धार्मिक तत्त्व है वह है बंगाल में कृष्ण-पूजा करना तथा कुछ प्रदेशों में पुरोहित द्वारा होलिका की पूजा करवाना। लोग होलिका दहन के समय परिक्रमा करते हैं, अग्नि में नारियल फेंकते हैं, गेहूँ, जौ आदि के डंठल फेंकते हैं और इनके अधजले अंश का प्रसाद बनाते हैं। कहीं-कहीं लोग हथेली से मुख-स्वर उत्पन्न करते हैं।
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होलिका दहन पर ग्रह अनुकूलन के उपाय—-
होलिका दहन के शुभ मुहूर्त क ा निर्धारण भारतीय ज्योतिष शास्त्र द्वारा किया जाता है। होलिका दहन के समय हम किस दिशा में खड़े होकर कौन सी समिधा डालें इस बात की जानकारी रखें और इसी आधार पर होली पूजन करें तो नवग्रह अनुकूलन में बहुत ही सफलता प्राप्त होगी। द्वादश राशियों को किस दिशा, किस समिधा और किस पुष्प से एवं किस मिठाई को बांटना चाहिए इसकी जानकारी मैं यहाँ दे रहा हूँ। यह विशुध्द रूप से अथर्ववेद पर आधारित विशेषण है। इस विधि से पूजा करने पर जीवन में सुख-शांति अवश्य आएगी। वेदों तथा शास्त्रों में होलिका दहन से जुड़े विभिन्न तथ्यों पर विस्तृत चर्चा की गई है। जिनमें अथर्ववेद में नक्षत्रों के वर्णन के साथ ही प्रार्थना भी की गई है कि पूर्वा एवं उत्तराफाल्गुनी दोनों नक्षत्र मेंरे लिए सुखकारी हों। ध्यान देना होगा कि ज्योतिष शास्त्र अनंत तक से जुड़े विभिन्न पहलुओं की जानकारी देता है। इसी शास्त्र के मौलिक नियमों को ध्यान में रखते हुए हम धन-धान्य की वृद्धि तथा परिवार के कल्याण के लिए अपनी राशि के अनुसार होलिका दहन के समय उपस्थित रहकर खड़े होने का स्थान चुन सकते हैं। फिर होलिका की तीन परिक्रमा कर व मिष्ठान वितरित कर इस उत्सव को ज्यादा सुखकारी बना सकते हैं। ध्यान रखना होगा कि सपरिवार शामिल होते समय परिवार के मुखिया की राशि को मान्यता दी जाती है। मेष:- इस राशि के जातक होलिका दहन के स्थल पर खैर या नीम की समिधा और लाल पुष्प व अक्षत लेकर होलिका की परिक्रमा करें और पूर्व (East) अथवा दक्षिण-पूर्व (South East)दिशा में खड़े होकर हाथ की सामग्री को होलिका में डाल दें तथा होलिका दहन के बाद गाजर का हल्वा वितरित करें।
वृषभ:- इस राशि के जातक गूलर की समिधा और मोगरे के फूल व अक्षत को हाथ में लेकर होलिका की परिक्रमा करने के बाद दक्षिण-पूर्व (South East) दिशा में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें तथा होलिका दहन के बाद दूध-मावे से बने मिष्ठान्न बांटें।
मिथुन:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय अपामार्ग की समिधा और विभिन्न रंगों के पुष्प, अक्षत हाथ में लेकर होलिका की परिक्रमा करें एवं पश्चिम (West)अथवा दक्षिण-पश्चिम (South West)दिशा में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद मूंग दाल का हल्वा बांटे।
कर्क:- इस राशि के जातक पलाश की समिधा और श्वेत पुष्प व अक्षत के साथ होलिका की परिक्रमा करें एवं उत्तर (North) अथवा उत्तर-पश्चिम (North West)दिशा में खडे होकर सारी सामग्री होलिका में डाल दें। होलिका दहन के बाद चावल से निर्मित मिष्ठान्न बांटे।
सिंह:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय आक व खेजरी शमी की समिधा और गुलाब के पुष्प व अक्षत हाथ में लेकर होलिका की परिक्रमा करें तथा पूर्व-दक्षिण (South East) में खड़े होकर सारी सामग्री होलिका में डालें। होलिका दहन के बाद केसर युक्त मिष्ठान्न वितरित करें।
कन्या:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय अपामार्ग की समिधा तथा पीले फूल व पत्तों समेत अक्षत लेकर परिक्रमा करें तथा दक्षिण दिशा (South)में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद मूंग से बने पिस्ता युक्त मिष्ठान्न लोगों में बांटें।
तुला:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय गूलर की समिधा और श्वेत व सुगंधित पुष्प व अक्षत लेकर होलिका की परिक्रमा करें तथा पश्चिम दिशा (West)में खडे होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद नारियल से बने मिष्ठान्न वितरित करें।
वृश्चिक:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय खैर या नीम की समिधा के साथ लाल एवं सफेद अक्षत लेकर होलिका की परिक्रमा करें तथा उत्तर दिशा (North) में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद छुहारे युक्त मिष्ठान्न का वितरण करें।
धनु:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय पीपल की समिधा और पीले कनेर के पुष्पयुक्त अक्षत लेकर परिक्रमा करें तथा पूर्व (East)अथवा ईशान दिशा (North East)में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद चने के बेसन से बने मिष्ठान्न लोगों को वितरित करें।
मकर:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय शमी या कपास दण्ड की समिधा और काले या नीले पुष्पयुक्त अक्षत से होलिका की परिक्रमा करें तथा दक्षिण (South) अथवा पश्चिम (West)में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद उड़द से बने मिष्ठान्न बांटे।
कुंभ:- होलिका दहन के समय इस राशि के जातक शमी अथवा जामुन की समिधा और हल्के नीले एवं लौंग पुष्पयुक्त अक्षत हाथ में लेकर होलिका की परिक्रमा करें तथा पश्चिम दिशा (West) में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के बाद सिंघाड़े से बने मिष्ठान्न का वितरण करें।
मीन:- इस राशि के जातक होलिका दहन के समय पीपल की समिधा और पीले एवं सफेद पुष्पयुक्त अक्षत लेकर होलिका में परिक्रमा करें और ईशान (North East)अथवा उत्तर दिशा (North)में खड़े होकर होलिका में सारी सामग्री डाल दें। होलिका दहन के समय केले का वितरण करें।
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होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं। इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्रायः सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है, पर दक्षिण भारत में उतना लोकप्रिय न होने की वज़ह से इस दिन सरकारी संस्थानों में अवकाश नहीं रहता ।
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होली पर स्वाहा करें विघ्न-बाधाएँ—–
(होली पर किये जाने वाले टोटके-उपाय)—
— होली की रात होलिका दहन में से जलती हुई लकड़ी घर पर लाकर नवग्रहों की लकड़ियों एवं गाय के गोबर से बने उपलों की होली प्रज्ज्वलित करनी चाहिए। उसमें घर के प्रत्येक सदस्य को देसी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता चढ़ाना चाहिए तथा सभि को उस होलिका की ग्यारह परिक्रमा करते समय जौ के दाने उसमें डालते रहें। सर्वार्थ-सिद्धि-योग के दिन होली की इस राख को बहते जल में प्रवाहित कर दें। सभी ग्रहों का शुभ फल प्राप्त होगा।
—-होली की रात को हनुमानजी को चोला चढ़ाकर आरती करें तथा चना एवं गुड़ का प्रसाद बांटें। ऐसा करने से शीघ्र ही नौकरी मिल जाती है।
—होली की रात को ऊँ महालक्ष्म्यै नम: मंत्र का ग्यारह हजार बार जप करने से बेरोजगारी दूर होती है तथा व्यापार में लाभ होता है।
—-होली की रात को अनार या सेमर का बांदा लाकर प्रभावित व्यक्ति को दाएं बाजू पर बांधने से भूत-प्रेत बाधा दूर होती है।
— होली की रात को आम का बांदा लाकर घर में रखने से घर परिवार में क्लेश नही होता तथा शांति रहती है।
—-गोमती चक्र की पूजा—-होली, दिवाली और नव रात्रों आदिपर गोमती चक्र की विशेष पूजा होती है। सर्वसिद्धि योग, अमृत योग और रविपुष्य योग आदि विभिन्न मुहूर्तों पर गोमती चक्र की पूजा बहुत फलदायक होती है। धन लाभ के लिए ११ गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें तथा उनके सामने ॐ श्रींनमः का जाप करें।
—-होली पर अथवा ग्रहण काल में साधक को चाहिए कि गोमती चक्र अपने सामने रखे लें और उस पर निम्न मन्त्र की 11 माला फेरें :-
मन्त्रः- “ॐ वं आरोग्यानिकरी रोगानशेषा नमः”
इस प्रकार जब 11 मालाएँ सम्पन्न हो जायें तब साधक को वह गोमती चक्र सावधानी-पूर्वक अपने पास रखना चाहिये । इस सिद्ध गोमती चक्र का प्रभाव तीन वर्ष रहता है ।
इसका प्रयोग किसी भी बिमारी के लिये किया जा सकता है । एक ताँबे के पात्र में यह सिद्ध गोमती चक्र स्थापन कर जल से भर कर उपरोक्त मन्त्र का 21 बार उच्चारण करें, तत्पश्चात् गोमती चक्र को निकाल कर तथा वह जल रोगी को पीने के लिये दें ।
गोमती चक्र के कुछ अन्य उपयोग निम्न प्रकार हैं-
— यदि इस गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर में सुख-शान्ति बनी रहती है ।
— यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।
—-यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें, तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।
—-व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे से निकले, तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है ।
—– प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से प्रार्थना करें । निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।
—-होली पर दरिद्रता मिटाने का उपाय—धन के अभाव में जीवन बेकार ही लगता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो धन प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करते हैं लेकिन फिर भी लक्ष्मी उनके पास ठहरती नहीं है। ऐसे लोग सदैव धन के अभाव के कारण परेशानी में ही जीवन व्यतीत करते हैं। होली के अवसर पर यदि नीचे लिखा प्रयोग किया जाए तो दरिद्रता हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है तथा व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती।सामग्री- 7 कौडिय़ां, 1 लघु शंख
टोटका—–सात कौडिय़ां व एक लघु शंख को मसूर की दाल की ढेरी पर स्थापित कर पूर्व दिशा में मुंह रख कर बैठ जाएं। अब मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप करें। पांच माला जप होने पर समस्त सामग्री को किसी निर्जन स्थान पर गड्ढा खोदकर दबा दें। आपकी गरीबी दूर हो जाएगी।
मंत्र—-ऊँ गं गणपतये नम:।
—-यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है
—-मुकदमा जीतने के लिये – होली की आग लाकर उसके कोयले से स्याही बनाकर लोहे की सलाई से मुकदमा नम्बर और शत्रु पक्ष का नाम सात कागजों पर लिख कर पुन: होली की अग्नि के पास जायें और सात परिक्रमा करें, हर परिक्रमा पर एक कागज़ होली की आग में डाल दें
—=राहू शांति के लिए होली के दिन क्या करें===
—– एक नारियल का गोला लेकर उसमे अलसी का तेल भरकर..उसी में थोडा सा गुड डाले..फिर उस नारियल के गोले को राहू से ग्रस्त व्यक्ति अपने शारीर के अंगो से sparsh करवाकर जलती हुई होलिका में डाल देवे.aagami पुरे वर्ष भर राहू से परेशानी की संभावना नहीं अहेगी…२.–अलसी के तेल में सेबफल को भिगोकर …उसमे राहू ग्रस्त व्यक्ति ..अपनी उम्र/ आयु अनुसार उतने ही लॉन्ग लगायें..फिर उस सेबफल को हाथ में लेकर जलती हिई होली की चार परिक्रमा लगायें..और इष्ट देवता का नाम स्मरण करते हुए.राहू मुक्ति की प्रार्थना करते हरे उसी जलती हुई होली में डाल देवे…
—–यदि आप किसी से पैसा मांग rahe हे और वह देने में aana कानी करता हे तो होली के दिन निम्न उपाय करें—-
—-आप ग्यारह गोमती चक्र हाथ में लेकर जलती हुई होलिका की ग्यारह बार परिक्रमा करते हुए धन प्राप्ति की प्रार्थना करे..फिर एक सफ़ेद कागज पर उस व्यक्ति का नाम लाल चन्दन से लिखें जिससे पैसा लेना हे ..लाल चन्दन से नाम लिखाकर उस सफ़ेद कागज को ग्यारह गोमती चक्र के साथ में कही गड्डा खोदकर सारी सामग्री सारी गड्डे me दबा देवे…इस प्रयोग से धन प्राप्ति की संभावना बढ़ जाएगी…
—-यदि आपको koyi अज्ञात / अंजान भय रहता हो..बिना किसी कारण के तो निम्न उपाय करें होली के दिन–
एक सुखा जटा वाला नारियल लेवें..दो लॉन्ग..और काले तिल एवं पिली सरसों ..उपरोक्त सारी सामग्री एक साथ लेकर..उसे सात बार/ दफा अपने सर के ऊपर उतार कर जलती होलिका में डाल देने से अज्ञात भय/ दर समाप्त हो जटा हे..
—-यदि आप का दाम्पत्य जीवन किसी कारणवश अच्छा नहीं हे तो —–होली के दिन सात गोमती चक्र लेकर अपने दाम्पत्य सुख की कामना करते हुए एक -एक गोमती चक्र जलती हुई होलिका दे डालते जाये ….apne इष्ट देवता से प्रार्थना भी करते रहें ..मन ही मन में… आपकी समस्या दूर होने की संभावना बढ़ जाएगी…
—-होली के अवसर किए गए तंत्र प्रयोग शीघ्र ही लाभ देते हैं। यदि आपके व्यापार-व्यवसाय में नुकसान हो रहा है तो नीचे लिखा तंत्र प्रयोग करने से व्यापार में वृद्धि होने लगेगी। यह प्रयोग होली खेलते हैं उस दिन सुबह-सुबह करना चाहिए।
उपाय—- बिल्ली की नाल को किसी लाल कपड़े में गेहूं के आसन पर स्थापित करें और सिंदूर का तिलक करें अब मूंगे की माल से नीचे मंत्र का जप करें। 21 माला जप होने पर इसे पोटली रूप में बांधकर दुकान में जहां ग्राहकों की नजर पड़ती रहे ऐसे स्थान पर टांग दें। आश्चर्यजनक रूप से व्यापार में वृद्धि होने लगेगी।
मंत्र- ऊँ श्रीं श्रीं श्रीं परम सिद्धि व्यापार वृद्धि नम:।
—–होली में जिस ग्रह से आप परेशान हो उससे संबंधित वस्तु होलिका में विशेष मुहूर्थ पर डालने पर लाभ होता है
—-* मोर पंख को अगर ताबीज में भर के बच्चे के गले में डाल दें, तो उसे भूत-प्रेत और जादू-टोने की पीड़ा नहीं रहती।
* घर के बीच में एक चौकोर टुकड़ा साफ कर के उसमे कामदेव का पूजन करें |
* होली के दिन दाम्पत्य भाव से अवश्य रहें |
* होली के दिन मन में किसी के प्रति शत्रुता का भाव न रखें, इससे साल भर आप शत्रुओं पर विजयी होते रहेंगे |
* घर आने वाले मेहमानों को सौंफ और मिश्री जरुर खिलायें, इससे प्रेम भाव बढ़ता है |
* होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।
* होली के अवसर पर एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपडे में लपेट कर दुकान में या व्यापार पर स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें. उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी।
—–धनहानी से बचाव के लिये—-
* होली के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल छिडकें और उस पर द्विमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धनहानि से बचाव की कामना करें। जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें। यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि से बचाव होगा।
——दुर्घटना से बचाव के लिये—–
* होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।
* होली के दिन प्रातः उठते ही किसी ऐसे व्यक्ति से कोई वास्तु न लें, जिससे आप द्वेष रखते हों।
* सिर ढक कर रखें, किसी को भी अपना पहना वस्त्र या रूमाल नहीं दें। इसके अतिरिक्त इस दिन शत्रु या विरोधी से पान, इलायची, लौंग आदि न लें। ये सारे उपाय सावधानी पूर्वक करें, दुर्घटना से बचाव होगा।

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