श्री महाशिवरात्रि व्रत (Mahashivratri) .. फरवरी – 20.2, बुधवार —-
श्री महाशिवरात्रि …????
………….क्या है शिव?
शेते तिष्ठïति सर्वं जगत्ï यस्मिन्ï स: शिव: शम्भु: विकाररहित: …।
अर्थात ‘जिसमें सारा जगत्ï शयन करता है, जो विकार रहित हैं वह ‘शिव’ हैं, अथवा जो अमंगल का ह्रïास करते हैं, वे ही सुखमय, मंगलरूप भगवान्ï शिव हैं। जो सारे जगत्ï को अपने अंदर लीन कर लेते हैं वे ही करुणा सागर भगवान्ï शिव हैं। जो भगवान्ï नित्य, सत्य, जगदाधार, विकार रहित, साक्षीस्वरूप हैं, वे ही शिव हैं।’
……………………….क्या है शिवरात्रि?
शिव और शक्ति के पूर्ण समरस होने की रात्रि है।
शिवरात्रि का अर्थ होता है ‘वह रात्रि जो आनन्द देने वाली है और जिसका शिव के नाम के साथ विशेष संबंध है।’ ऐसी रात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की है, जिसमें शिवपूजा, उपवास और जागरण होता है। उक्त फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को शिवपूजा करना एक महाव्रत है। अत: उसका नाम महाशिवरात्रि-व्रत पड़ा।
शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मïा ने इसी दिन रुद्र रूपी शिव को उत्पन्न किया था।
इसी दिन शिव व हिमाचल पुत्री पार्वती का विवाह हुआ था।
शिव-शक्ति का प्रतीक ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव भी इसी दिन हुआ था।
शिव रात्रि व्रत-उपवास का तात्विक अर्थ क्या है?
शास्त्रों के अनुसार जिस कर्म द्वारा भगवान का सान्निध्य होता है वही व्रत है। उपवास क्या है? जीवात्मा का शिव के समीप वास ही ‘उपवास’ कहा जाता है। महाशिव रात्रि के दिन श्रद्घा भाव से जो इस व्रत को संपन्न करता है संपूर्ण का पापों का क्षय होता है। और इस व्रत को लगातार 14 वर्ष करने से शिव लोक की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय क्या और क्या है व्रत की सामग्री?
अखण्ड बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है। जो श्रद्धापूर्वक नम: शिवाय मंत्र जाप करते हुए शिव लिंग पर बेलपत्र अर्पित करता है वह सभी पापों से मुक्त हो शिव के परमधाम में स्थान पाता है। यहाँ तक कि बिल्वपत्र के दर्शन, स्पर्श व वंदना से ही दिन-रात के किये पापों से छुटकारा मिल जाता है।
इसके अलावा भगवन्ï भोलेनाथ को आक-धतूरा विजया भांग आदि भी अति प्रिय हैं।
पत्र, पुष्प, फल अथवा स्वच्छ जल तथा कनेर से भी भगवान्ï शिव की पूजा करके मनुष्य उन्हीं के समान हो जाता है। आक (मदार) का फूल कनेर से दसगुना श्रेष्ठï माना गया है।
आक के फूल से भी दस गुना श्रेष्ठï है धतूरे आदि का फल। नील कमल एक हजार कह्ïलार (कचनार) से भी श्रेष्ठï माना गया है।
महाशिव रात्रि के व्रत की सामग्री है पंचामृत (गंगा जल, दूध, दही, शहद, घी) सुगंधित फूल, शुद्घ वस्त्र, बिल्वपत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन का लेप और ऋतु फल।
शिवरात्रि व्रत करते हुए शिवोपासना से मनुष्य के त्रिविध तापों का शमन हो जाता है, संकटव कष्टï के बादल छंट जाते हैं, कर्मज व्याधियों व ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। इससे अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है, मोक्ष प्राप्ति होती है। इस पर्व पर मनुष्य जिस मनोकामना से जिस रूप में शिव की आराधना करता है वह पूरी होती है और भोले शंकर उसी रूप में प्रसन्न होकर फल भी प्रदान करते हैं।
आप यदि इस महान पर्व पर अपनी राशि के अनुसार शिव उपासना करें तो आपकी जीवन की सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा। आप पर भगवान शिव की अनुकम्पा बरसेगी। भगवान शिव आप पर प्रसन्न हो, कृपा करेंगे। आपके कार्य सिद्ध होंगे। यदि आप पूरे विधि-विधान से पूजा नहीं कर सकते तो मात्र ú नम: शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं तो मनोकामना पूरी होगी। और यदि आप दूध, दही घी, शक्कर, शहद पंचामृत से अभिषेक करें तो बात ही कुछ और है। अभिषेक के उपरांत पर शिवलिंग पर बेलपत्र, मदार के पुष्प, भांग, धतूरे का फल अर्पित करें तो आपके लिए बहुत ही अच्छा रहेगा।
महाशिवरात्रि की व्रत-कथा (Mahashivratri)—–
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’
शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।’
महाशिवरात्रि पूजाविधि
शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुषको महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्न्नान-संध्या आदि कर्मसे निवृत्त होनेपर मस्तकपर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालयमें जाकर शिवलिंगका विधिपूर्वक पूजन एवं शिवको नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात् उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रतका इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।
महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण——
सम्पूर्ण – महाशिवरात्रि पूजा विधि के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर ’समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें। कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करें।
महाशिवरात्रि व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
व्रत का नामः- श्री महाशिवरात्रि
व्रत की तिथिः- चतुदर्शी 14
व्रत का दिनः- बुधवार
व्रत के देवताः-भगवान शिव
व्रत का समयः-प्रातःकाल से रात्रि के चार प्रहर तक
व्रत का विधानःनित्य नैमित्यक क्रिया शौचादि से निवृत्ति के वाद व्रत का संकल्प,पूजन हवन, शिव अभिषेक नमक-चमक से, ब्रह्मचर्य का पालन, अक्रोध, श्रद्धा भक्ति।
पूजा सामग्रीः-सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, पंच फल पंच मेवा, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण रत्न, सोना, चाँदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन आदि।
व्रत व पूजा के मंत्रः- ऊँ नमः शिवाय का जाप या मनन श्रद्धा व ध्यान से।
शिवपुराणके अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत करने वाला पुरुष प्रात:काल स्नान करके, मस्तक पर भस्म अथवा चंदन का तिलक लगाकर, गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिङ्गका विधिपूर्वक पूजन करे। यदि घर में शिवलिङ्गस्थापित हो अथवा नर्मदेश्वरहो, तो उसकी पूजा करे। तत्पश्चात व्रत का संकल्प करें-
शिवरात्रिव्रतंह्येतत्करिष्येऽहंमहाफलम्।निíवघ्नमस्तुमेचात्रत्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
यह कहकर हाथ में संकल्प हेतु लिए जल, चावल, पुष्प आदि को शिवलिङ्गके समक्ष छोड दें। इसके बाद इस प्रकार प्रार्थना करें-
देवदेवमहादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तुते। कर्तुमिच्छाम्यहंदेव शिवरात्रिव्रतंतव॥तवप्रसादाद्देवेशनिíवघ्नेनभवेदिति।कामाद्या:शत्रवोमाम्वैपीडांकुर्वन्तुनैवहि॥
देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूं। देवेश्वर! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम-क्रोध-ईष्र्या आदि शत्रु मुझे पीडा न दें।
यज्ञोपवीत धारण करने वाले दिनभर अधिकाधिक ॐनम: शिवायका तथा स्त्रियां और अन्य पुरुष नम: शिवाय मंत्र का जप करें। महाशिवरात्रि में दिन-रात उपवास करना चाहिए।
महाशिवरात्रि में रातभर जागकर रात्रि के चारों प्रहर में शिवार्चन करने का बडा माहात्म्य है। रुद्राष्टाध्यायीके पाठ तथा रुद्राभिषेक से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। उपवास, रात्रि-जागरण और शिवपूजन से यह व्रत पूर्ण होता है।
अगले दिन प्रात:काल स्नान करके शिवजी की पूजा करें और अंत में इस प्रकार निवेदन करें-
नियमोयो महादेव कृतश्चैवत्वदाज्ञया।विसृज्यतेमयास्वामिन्व्रतंजातमनुत्तमम्॥व्रतेनानेनदेवेश यथाशक्तिकृतेनच।संतुष्टाभव शर्वाद्यकृपांकुरु ममोपरि॥
हे महादेव! आपकी आज्ञा से मैंने जो व्रत ग्रहण किया है, हे स्वामिन्!वह परम उत्तम व्रत अब पूर्ण हो गया है अत:अब मैं उसका पारण करता हूं। हे देवेश्वर! मेरे द्वारा यथाशक्ति किए गए इस व्रत से आप मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।
तदोपरान्त महाशिवरात्रि व्रत का पारण करें अर्थात् भोजन ग्रहण करें। सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में महाशिवरात्रि-व्रत की महिमा का गुण-गान किया गया है।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
व्रत कथा का वाचन करें। मृग व शिकारी की कथा और शिव लिंग के प्रकट होने की कथा तथा शिव पुराण में और भी कथाएँ उपलव्ध है। सुसंस्कारों की जननी वेदगर्भा, जीवन-मृत्यु व ईश्वर की सत्ता का सतत् अनुभव व प्रत्यक्ष दर्शन कराने वाली भारतीय भूमि धन्य है। जो त्रिगुणात्मक (रज, सत, तम) शक्ति ईश्वर की आराधना के माध्यम से व्यक्ति को मनोवांछित फल दे उसे मोक्ष के योग्य बना देती है। ऐसा ही परम कल्याणकारी व्रत महाशिवरात्रि है जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष चतुदर्शी तिथि को श्री महाशिवरात्रि व्रत, दिनक 20 फरवरी, 2012(बुधवार) को भारत सहित विश्व के कई हिस्सों मे ईश्वर की सत्ता मे विश्वास रखने वाले भक्तों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाएगा।देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्री महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं. यह पर्व फाल्गुन कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह शुभ उपवास, 20 फरवरी, श्रवण नक्षत्र, बुधवार के दिन का रहेगा. इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हों, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा,वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं.20 फरवरी, 2012 के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व “उँ नम: शिवाय” का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं. व्रत के दूसरे दिन ब्राह्माणों को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं.यह शिव भक्तों का उत्सव है | इस दिन भक्तगण शिव की पूजा – अर्चना करते हैं | शिवलिंग पर बिल्व पुत्र,पुष्प,अक्षत,फल,प्रसाद कुमकुम मोली आदि पूजन सामग्री चढ़ाई जातीं हैं | रात भर जागरण किया जाता है | भजन कीर्तन करते हैं | शिव को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है | शिव को “नीलकंठ” कहने के पीछे एक कथा है -: समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न निकले थे,उनमें से एक द्रव्य हलाहल (भीषण ज़हर) भी था | उसे कोई भी पीने को तैयार नहीं था | उसकी ऊष्मा से सभी देव-दानव त्रस्त होने लगे | इसलिए शिव नें लोक कल्याणार्थ उस विष का पान किया,जिससे वे “नीलकंठ” कहलाए |एक तरफ शिव दुष्टों का संहार करते हैं ,दूसरी तरफ अपनें भक्तों की रक्षा करते हैं | इनको भालचंद्र भी कहतें हैं ,क्योंकि इनके भाल पर चन्द्रमा है | ऋग्वेद में शिव को त्र्यंबक कहा गया है | देशी भाषा में उन्हें भोला भंडारी भी कहते हैं,क्यूंकि वह थोड़ी सी आराधना से प्रसन्न हो जाते हैं | इनका स्वरुप जितना विचित्र है,उतनी ही विचित्र इनकी महिमा है |
भगवान शंकर के जन्मदिवस के रूप में मनाए जाने वाला धार्मिक पर्व ‘महाशिवरात्रि’ हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाएगा। मान्यता है कि महाशिवरात्रि का दिन महाशुभ होता है इसलिए इस दिन से विभिन्न शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। इनमें गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ, विभिन्न निर्माण कार्य, पूजा-पाठ आदि कार्य संपन्न किए जाते हैं। ज्ञात हो कि प्रत्येक वर्ष के फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।इस दिन मंदिर में भक्तिभाव से माँगा हुआ वरदान महादेव पूरा करते हैं। महाशिवरात्रि पर अपनी बुराइयों को त्याग कर अच्छाइयों को ग्रहण करने का पर्व माना जाता है। इस पर्व पर शिव की आराधना कर परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। इससे समस्त प्रकार की बाधाओं से छुटकारा मिलता है। भगवान शंकर ने समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष को अपने कंठ में धारण किया था। इसलिए इस दिवस पर भगवान शिव के समक्ष अपने पापों का त्यागकर व मन की बुराइयों को भुलाकर अच्छी सोच विचार को अपनाना चाहिए।कहा जाता कि जब इस धरती पर चारों ओर अज्ञान का अंधकार छा जाता है, तब ऐसी धर्म ग्लानि के समय शिव का दिव्य अवतरण इस धरा पर होता है। वास्तव में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा के दिव्य अवतरण की यादगार है।माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया।इस बार यह पर्व विशेष संयोग के साथ आ रहा है, जिसमें शिव पूजा विशेष फलदायी होगी। महाशिवरात्रि के साथ प्रदोष और श्रवण नक्षत्र का होना शुभ माना जा रहा है। इस बार 2 मार्च को त्रयोदशी तिथि रहेगी, लेकिन रात में चतुदर्शी तिथि आ रही है। इस दिन प्रदोष होने से महत्व और बढ़ गया है। बैद्यनाथ जयंती एवं श्रवण भी रहेगा। इसलिए इसे अच्छा संयोग कहा जा सकता है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त किया जा सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से चतुदर्शी (14) अपने आप में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण तिथि है। इस तिथि के देवता भगवान शिव हैं, जिसका योग 1+4=5 हुआ अर्थात् पूर्णा तिथि बनती है। साथ ही कालपुरुष की कुण्डली में पाँचवाँ भाव प्रेम भक्ति का माना गया है। अर्थात् इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है उसके सभी वांछित कार्य भगवान शिव की कृपा से पूर्ण होते हैं। कृष्ण पक्ष में हरेक चंद्र मास का चौदहवाँ दिन या अमावस्या से एक दिन पूर्व शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक पंचांग वर्ष में होने वाली सभी बारह शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि जो फरवरी-मार्च के महीने में पड़ती है सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस रात्रि में इस ग्रह के उत्तरी गोलार्थ की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है। इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री व पुरुष, भक्ति व निष्ठा के साथ कर सकते हैं। इस व्रत से संबंधित कई जनश्रुतियाँ तथा पुराणों में अनेक प्रसंग हैं। जिसमें प्रमुख रूप से शिवलिंग के प्रकट होने तथा शिकारी व मृग परिवार का संवाद है। निर्धनता व क्षुधा से व्याकुल जीव हिंसा को अपने गले लगा चुके उस शिकारी को दैवयोग से महाशिवरात्रि के दिन खाने को कुछ नहीं मिला तथा सायंकालीन वेला मे सरोवर के निकट बिल्वपत्र में चढ़ कर अपने आखेट की लालसा से रात्रि के चार पहर अर्थात् सुबह तक बिल्वपत्र को तोड़कर अनजाने में नीचे गिराता रहा जो शिवलिंग पर चढ़ते गए। इसके फलस्वरूप उसका हिंसक हृदय पवित्र हुआ और प्रत्येक पहर में हाथ आए उस मृग परिवार को उनके वायदे के अनुसार छोड़ता रहा। किन्तु किए गए वायदे के अनुसार मृग परिवार उस शिकारी के सामने प्रस्तुत हुआ। परिणामस्वरूप उसे व मृग परिवार को वाँछित फल व मोक्ष प्राप्त हुए।
इस दिन व्रती को प्रातःकाल ही नित्यादि स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान शिव की पूजा, अर्चना विविध प्रकार से करना चाहिए। इस पूजा को किसी एक प्रकार से करना चाहिए। जैसे- पंचोपचार (पांच प्रकार) या फिर षोड़शोपचार (16 प्रकार से) या अष्टादशोपचार (18 प्रकार) से करना चाहिए। भगवान शिव से श्रद्धा व विश्वासपूर्वक ‘शुद्ध चित्त’ से प्रार्थना करनी चाहिए, कि—
हे देवों के देव!
हे महादेव!
हे नीलकण्ठ!
हे विश्वनाथ!
हे आदिदेव!
हे उमानाथ!
हे काशीपति!
आपको बारम्बार नमस्कार है। आप मुझे ऐसी कृपा शक्ति दो जिससे मैं दिन के चार और रात्रि के चार पहरों मे आपकी अर्चना कर सकूँ और मुझे क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह पीड़ित न करें, मेरी बुद्धि निर्मल हो मै जीवन को सद्कर्मों, सन्मार्ग में लगाते हुए इस धरा पर चिरस्मृति छोड़ आपकी परम कृपा प्राप्त करूँ।इस व्रत में रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पश्चात् सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भाँग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से शिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा व विश्वासपूर्वक किसी शिवालय में या फिर अपने ही घर में उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए।
यदि अशक्त (किसी कारण या परेशानी) होने पर सम्पूर्ण रात्रि का पूजन न हो सके तो पहले पहर की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इस प्रकार अंतिम पहर की पूजा के साथ ही समुचित ढंग व बड़े आदर के साथ प्रार्थना करते हुए संपन्न करें। तत्पश्चात् स्नान से निवृत्त होकर व्रत खोलना यानी पारण करना चाहिए। इस व्रत में त्रयोदशी विद्धा (युक्त) चतुर्दशी तिथि ली जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव इस ब्रह्माण्ड के संहारक व तमोगुण से युक्त हैं जो महाप्रलय की बेला में तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र से ब्रह्माण्ड को भस्म कर देते हैं। अर्थात् जो काल के भी महाकाल हैं जहाँ पर सभी काल (समय) या मृत्यु ठहर जातें हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति वहीं स्थित या समाप्त हो जाती है। रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे इस पर्व को रात्रि काल में मनाया जाता है। भगवान शंकर का रूप जहाँ प्रलयकाल में संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोलेनाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात् महाशिवरात्रि में श्रद्धा और विश्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा भाग्योदय करता है। इसीलिए इसे परम उत्साह, शक्ति व भक्ति का पर्व कहा जाता है।इसी प्रकार मास शिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदशी युक्त (विद्धा) अर्थात् रात्रि तक रहने वाली चतुर्दशी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदशी व चतुदर्शी का योग बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है। यादि आप मासिक शिवरात्रि व्रत रखना चाह रहें हैं तो इसका शुभारम्भ दीपावली या मार्गशीर्ष मास से करें तो शुभ फलदायी रहता है।
यह एक ऐसा दिन होता है जब प्रकृति व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर ढकेल रही होती है। इसका उपयोग करने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्योहार बनाया है जो पूरी रात मनाया जाता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस त्योहार का मूल मकसद यह निश्चित करना है कि ऊर्जाओं का यह प्राकृतिक चढ़ाव या उमाड़ अपना रास्ता पा सके।वे लोग जो अध्यात्म मार्ग पर हैं उनके लिए महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। योग परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती बल्कि उन्हें आदि गुरु माना जाता है, वे प्रथम गुरु हैं जिनसे ज्ञान की उत्पति हुई थी। कई हजार वर्षों तक ध्यान में रहने के पश्चात एक दिन वे पूर्णतः शांत हो गए, वह दिन महाशिवरात्रि का है। उनके अंदर कोई गति नहीं रह गई और वे पूर्णतः निश्चल हो गए। इसलिए तपस्वी महाशिवरात्रि को निश्चलता के दिन के रूप में मनातें हैं। पौराणिक कथाओं के अलावा योग परंपरा में इस दिन और इस रात को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि महाशिवरात्रि एक तपस्वी व जिज्ञासु के समक्ष कई संभावनाएँ प्रस्तुत करती है। आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा है जहाँ वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, वह सिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है।
इस शिव धर्म या शिव की सेवा के भी पांच रूप है ——
कर्म – लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
तप – चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
जप – शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
ध्यान – शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
ज्ञान – भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
शिव मंत्र जप में न भूलें ये . बातें—–
– मंत्र जप शुरू करने के पहले शिव की मूर्ति या शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाएं और जल की धारा अर्पित करें।
– मंत्र जप उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुंह रखकर करें।
– शिव मंत्रों के जप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए। यह कामनासिद्धि के लिए बहुत ही शुभ और प्रभावी होता है।
शिवोपासनाकी विशेषताएं एवं शास्त्र—-
शिव अर्थात् मंगलमय व कल्याणस्वरूप तत्त्व । शिवजी स्वयंसिद्ध व स्वयंप्रकाशी हैं । वे स्वयं प्रकाशित रहकर विश्वको भी प्रकाशित करते हैं । इसलिए शिवजीको ‘परब्रह्म’ कहा जाता है । शिवजीकी कृपा प्राप्त करने हेतु शिवभक्त महाशिवरात्रिके दिन शिवजीकी श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं । अध्यात्मशास्त्रका अभ्यास कर शिवजीकीr उपासना करनेसे उपासकके भक्तिभावमें अधिक वृद्धि होती है तथा उपासकको उसका अधिकाधिक लाभ होता है । शिवभक्तोंको महाशिवरात्रिका अधिकाधिक लाभ हो, इस हेतु शिवजीकी उपासनाकी विशेषताएं एवं उनका मूलभूत शास्त्र जान लेंगे ।
महाशिवरात्रिका व्रत क्यों करते हैं ?
रात्रिके एक प्रहर शिवजी विश्रांति लेते हैं । इस प्रहरको महाशिवरात्रि कहते हैं । शिवजीके विश्रांतिकालमें शिवतत्त्वका कार्य रुक जाता है, अर्थात् उस कालमें शिवजी ध्यानावस्थासे समाधि-अवस्थामें जाते हैं । शिवजीकीr समाधि-अवस्था अर्थात् शिवजीका अपनी साधना करनेका काल । इस कालमें शिवतत्त्व विश्वके तमोगुणका स्वीकार नहीं करता । अत: विश्वमें तमोगुणकी मात्रा बढ जाती है । हमपर उसका विपरीत परिणाम न हो; इस कारण महाशिवरात्रिका व्रत किया जाता है ।
शिवपूजामें क्या करें तथा क्या न करें ?
श्वेत अक्षत एवं पुष्प चढाएं ! : अक्षतकी ओर निर्गुण ईश्वरीय तत्त्वसे संबंधित उच्च देवताओंकी तरंगें आकर्षित होती हैं; इसलिए अधिकाधिक निर्गुणसे संबंधित शिवजीको उनके श्वेत रंगसे समानता रखनेवाले श्वेत रंगके अक्षत चढाएं । साथ ही, अरघेपर श्वेत पुष्प उदा. निशिगंध, जाही, जूही, मोगरा, उनका डंठल पिंडीकी ओर कर चढाएं ।
उदबत्ती एवं इतर (इत्र) का प्रयोग करें ! : उदबत्ती एवं इतरसे प्रक्षेपित होनेवाली गंधतरंगोंकी ओर देवताओंकी तरंगें शीघ्र आकृष्ट होती हैं; इसलिए शिवपूजामें शिवजीको प्रिय केवडा, चमेली अथवा मेंहदीकी सुगंधकी उदबत्तियों तथा केवडेके इतरका प्रयोग करें ।
हल्दी एवं कुमकुम न चढाएं ! : हल्द एवं कुमकुम उत्पत्तिके प्रतीक हैं; इस कारण लयके देवता शिवजीको ये वस्तुएं न चढाएं ।
महाशिवरात्रिके दिन शिवजीका नामजप क्यों करें ?
देवताकी जयंती या उत्सवकालमें वातावरणमें संबंधित देवताका तत्त्व अधिक मात्रामें कार्यरत रहता है । इसलिए उस दिन संबंधित देवताका नामजप करनेसे उनका तत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण होता है । इस शास्त्रानुसार महाशिवरात्रिपर सामान्य दिनोंकी तुलनामें १००० गुना अधिक कार्यरत शिवतत्त्वका अधिकाधिक लाभ पानेके लिए ‘ॐ नम: शिवाय ।’ नामजप अधिकाधिक तथा भावपूर्ण करें ।
शिवजीको बेल क्यों एवं कैसे चढाएं ?
बिल्वपत्रमें शिवतत्त्व अधिकाधिक आकृष्ट करनेकी क्षमता होनेके कारण शिवजीको बिल्वपत्र चढाते हैं । शिवजीको बेलपत्र (त्रिदलीय) चढाते समय पिंडीपर बिल्वपत्र औंधे रखकर उसका डंठल देवताकीr ओर तथा अग्र भाग अपनी ओर कर चढाएं । शिवपिंडीपर बिल्वपत्र औंधा चढानेसे उससे निर्गुण स्तरके स्पंदन अधिक मात्रामें प्रक्षेपित होते हैं तथा श्रद्धालुको अधिक लाभ होता है । यथासंभव, शिवपिंडीपर कोमल बिल्वपत्र चढाएं ।
शृंगदर्शन कैसे करें ?(नंदीके सींगोंसे शिवलिंगके दर्शन करना)
शिवजीके देवालयमें नंदी तीन पैर मोडकर तथा एक पैर सीधा कर बैठा हुआ होता है । यह इस बातका द्योतक है कि कलियुगमें धर्म एक चतुर्थांश ही रह गया है । शृंगदर्शनके समय नंदीकी दार्इं ओर उसके पीछेके पैरोंके निकट बैठकर अथवा खडे रहकर बायां हाथ नंदीके वृषणपर रखें । दाएं हाथकी तर्जनी (अंगूठेके निकटकी उंगली) एवं अंगूठेको नंदीके दोनों सींगोंपर रखें । दोनों सींगों तथा उनपर रखी दो उंगलियोंके बीचकी रिक्तिसे शिवलिंगके दर्शन करें ।
पिंडीकी अर्धपरिक्रमा क्यों करें ?
पिंडीकी परिक्रमा करते समय अभिषेककी जल प्रणालिका (अरघाके आगे निकले हुए भाग) तक जाएं तथा उसे न लांघे बिना मुडें एवं पुनः प्रणालिकातक विपरीत दिशामें आकर परिक्रमा पूर्ण करें । अरघेके स्रोतेसे शक्ति प्रक्षेपित होनेके कारण उसे बार-बार लांघनेसे सर्वसाधारण श्रद्धालुको उस शक्तिके कारण कष्ट हो सकता है; इसलिए शिवपिंडीकी अर्धपरिक्रमा ही करनी चाहिए । स्वयंभू अथवा घरमें स्थापित लिंगके लिए यह नियम लागू नहीं होता ।
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
शिवाय…ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
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लिंगाष्टकम :—–
ब्रह्ममुरारी-सुरार्चितलिंगम निर्मल-भासित-शोभित-लिंगम
जानमाज-दुख्विनाशक-लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
देवमुनि-प्रवरार्चित लिंगम कामदहम करुनाकरलिंगम
रावणदर्प-विनाशन-लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
सर्वसुगन्धि-सुलेपित्लिंगम- बुद्धिविविर्धन-कारणलिंगम
सिद्ध-सुरा-सुरवन्दितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
कनक-महामणि-भूषितलिंगम-फणिपति-वेष्टित-शोभितलिंगम
दक्षसुयज्ञ-विनाशकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
कुंकुम-चन्दंलेपितलिंगम पंकजहार-शोभितलिंगम
संचित-पाप-विनाशनलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
देवगणार्चित-सेवितलिंगम भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम
दिन्कर्कोती-प्रभाकरलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंग
अष्टदलोपरि वेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भव-कारणलिंगम
अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
सुरगुरु-सुरवर-पुजितलिंगम सुरवनपुष्प-सदार्चितलिंगम
परात्परं परमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ
शिवलोमवाप्नोति शिवेन सह मोदते
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ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।……….
सभी परम स्नेहिल मित्रो को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई ।……..
आशुतोष शशांक शेखर चंद्रमौली चिदंबरा कोटि कोटि प्रणाम शंभो कोटि नमन दिगम्बरा निर्विकार ओंकार अविनाशी तुम्ही देवाधिदेव जगत सर्जक प्रलयकर्ता शिवम सत्यम सुंदरा निरंकार स्वरुप कालेश्वर महाजोगिश्वरा दयानिधि दानिश्वरा जय जटाधारी अभ्यंकरा शूलपाणी त्रिशूल धारी औघडी बाघम्बरी जय महेश त्रिलोचनाय विश्वनाथ विश्वम्भरा नाथ नागेश्वर हरो हर पाप शाप अभिशाप तम महादेव महान भोले सदाशिव शिव शंकरा जगतपति अनुरक्ति भक्ति सदैव तेरे चरण हो छमा हो अपराध सब जय जयति जय जगदिश्वराजन्म जीवन जगत का संताप सब मिटे सभी ओम नम: शिवाय मन जपता रहे पंचाकछरा
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………………………अथ शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्…….
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय ॥ 1 ॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय ।मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय ॥ 2 ॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय ॥ 3 ॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय ॥ 4 ॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय ॥ 5 ॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ 6 ॥..
…………………………ॐ नमः पार्वती पतये…..हर….हर….महादेव………….काटा लाग सके न कंकर……..
बोलो जय जय शिव शंकरनमो पार्वतीपतये हर हर हर महादेऽऽऽऽऽऽऽऽऽव …………………………..
अलख निरंजन नाम तुम्हारा संग मेँ भूतो का टोला…………शिव बम बम बम बम भोला……..”ॐ” नमः शिवाये …………..
सज्जनों एवं स्वजनों “शिव जी ” आप सबका एवं समस्त विश्व को अपने आशीर्वाद से समस्त दुखो को दूर कर चारो दिशाओं में खुशियों को भर दे .==
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—–महाशिवरात्रि: संतान प्राप्ति का अचूक उपाय—-
भगवान शंकर के समान अन्य कोई देव नहीं है। भक्त से प्रसन्न होने पर वे उसकी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। महाशिवरात्रि पर किए गए विशेष उपाय से शिव और भी प्रसन्न होते हैं। जिन दंपत्तियों के यहां संतान नहीं है वे यदि महाशिवरात्रि के दिन नीचे लिखे तरीके से भगवान शिव की पूजा करें तो उन्हें शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होगी।
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से ग्यारह शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिवमहिम्नस्त्रोत से जलाभिषेक करना चाहिए। इस प्रकार ग्यारह बार जलाभिषेक किया जाएगा। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह प्रयोग शिवरात्रि से आरंभ करते हुए 21 अथवा 41 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भगौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे महाशिवरात्रि या अन्य किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।यह उपाय करने पर आप देखेंगे कि शीघ्र ही आपके यहां बच्चे की किलकारियां गूजेंगी।
—-महाशिवरात्रि: रोगों से छुटकारा दिलाता है यह उपाय—-
भगवान शंकर अपने भक्तों को सभी सुख प्रदान करते हैं। यहां तक कि वे मरणासन्न भक्त को भी नया जीवन प्रदान कर सकते हैं। शिव हर प्रकार से अपने भक्तों आरोग्य प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि भगवान शिव की प्रमुख रात्रि है। इस दिन रोग निवारण के लिए किए गए उपाय बेहद लाभकारी होते हैं। यदि आप किसी पुराने रोग से पीडि़त हैं और काफी उपचार करवाने के बाद भी कुछ फर्क नहीं पड़ रहा है तो इसके निवारण के लिए महाशिवरात्रि पर नीचे लिखा उपाय करें। शीघ्र ही आपकी बीमारी दूर हो जाएगी।
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग का दूध एवं काले तिल से युक्त जल द्वारा अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के पात्र का उपयोग करें। अभिषेक 108 बार करें। अभिषेक करते समय ऊँ जूं स: मंत्र का जप करते रहें।इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। महाशिवरात्रि के बाद इस संकल्प का पालन करें तथा अभिषेक करते समय भी इसी मंत्र का जप करें। भगवान शिव की कृपा से आप शीघ्र ही आप रोग मुक्त हो जाएंगे।
—-महाशिवरात्रि: शीघ्र विवाह के लिए टोटके—कई बार जन्म कुंडली के कुछ दोषों या अन्य किसी कारण से विवाह की उम्र हो जाने के बाद भी विवाह नहीं हो पाता। यह समस्या किसी के भी साथ हो सकती है। यदि महाशिवरात्रि के महापर्व पर कुछ उपाय किया जाए तो इस परेशानी का निदान संभव है-
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करें तथा निम्नलिखित स्तुति का ग्यारह बार पाठ करें-
ऐं ह्ी श्रीं। नमोनेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमो, नम: क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नम:। नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमो, नम: स्र्वस्मै ते तदिदमिति शर्वाय च नम:। श्रीं ह्ी ऐं।।
महाशिवरात्रि के बाद भी प्रतिदिन भगवान शिव के समक्ष उक्त स्तुति का ग्यारह बार पाठ करें। शीघ्र ही आपकी विवाह संबंधी समस्या दूर हो जाएगी।
—–महाशिवरात्रि पर शिव लिंग व मंदिर में शिव को गाय के कच्चे दूध से स्नान कराने पर विद्या प्राप्त होती है। गन्ने के रस से स्नान करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है एवं शुद्घ जल से स्नान कराने पर सभी इच्छाएँ पूरी होती है। भगवान शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दूध, फूल औल फल चढ़ाना चाहिए।
—–शिवरात्रि के दिन उपवास करने से मन की मुराद पूरी होती है। युवतियों को मन के अनुरूप वर की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शंकर का जन्मदिन माना जाता है। इसलिए रात्रि जागरण का नियम है। इससे मनोकानाएँ पूर्ण होती है।
—-धन लाभ के लिए इस दिशा में करें शिव मंत्र जप—–अगर आप शिव को इष्ट मानकर शिव भक्ति से कारोबार में धन लाभ और परिवार में आर्थिक समृद्धि की चाहत रखते हैं, तो यहां बताई जा रही शिव मंत्र जप की कुछ विशेष बातें। जिनका पालन कर आप भी धन की कामना पूरी कर सकते हैं।
– उत्तर दिशा में मुंह करके किया गया मंत्र जप मन को शांति देने वाला होता है।
– दक्षिण दिशा में किया जाने वाला शिव मंत्र जप तंत्र प्रयोगों और अभिचार कर्म के लिए बहुत ही अचूक माना जाता है।
– पूर्व मे दिशा में किया गया शिव मंत्र जप वशीकरण के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है।
– पश्चिम दिशा में किया जाना शिव मंत्र जप अपार धन लाभ देता है।
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——यदि आपके जीवन में आपको कारोबारी, पारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या है या आपको किसी प्रकार की मानसिक समस्या है अथवा कोई तनाव है या किसी भी कार्यक्षेत्र में बाधा या रुकावट है तो द्वादश राशियों के लोग किस तरह भगवान भोलेनाथ की पूजा करें कि धन की बरसात हो।
मेष राशि:-मेष राशि वाले लोग शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर पूजा करते समय लाल चंदन से शं लिखें और फिर उसी लाल चंदन से 108 बेलपत्र पर ú शं लिखें ú शंकराय नम: का जाप करते हुए इन बेलपत्रों को शिवलिंग पर अर्पित करें और जल में कच्चा दूध और लाल चंदन मिला कर शिव का अभिषेक करें।
अभिषेक के बाद इस मंत्र ú शम्भवे नम: मंत्र की तीन माला का जाप करें।
वृष राशि:- वृषभ राशि के जातक-जातिकाओं को अपने कार्य में सफलता के लिए शिवलिंग पर सफेद चंदन से ú तत्पश्चात बेलपत्र के ऊपर सफेद चंदन से ú लिखें। जल से हर-हर महादेव का जाप करते हुए जलाभिषेक करें। पुन: सफेद चंदन से भगवान शिव के त्रिपुण्ड बनाएं और हरसिंगार का इत्र लगायें। इस प्रकार का अभिषेक करने से आपकी जीवन की सारी समस्याओं का निवारण होगा। व्यापार वृद्धि होगी। स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा और परिवार में सुख-शांति रहेगी।
अभिषेक के बाद इस ú शशिशेखराय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।
मिथुन राशि:-मिथुन राशि वाले महाशिवरात्रि में शिवलिंग पर शहद में केसर घोल कर शिवलिंग पर तिलक करें और ú शूलपाणये नम: मंत्र का जाप करते हुए शहद से अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं का निवारण हो जाएगा। शहद से स्नान कराते समय ú नम: शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ú नम: इस मंत्र का भी जाप करें तो और अधिक अनुकूलता प्राप्त होगी। परिवार, व्यापार और स्वास्थ्य में लाभ होगा।अभिषेक के बाद इस ú विष्णु वल्लभाय नम: मंत्र की पांच माला का जाप करें।
कर्क राशि:-कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। चंद्रमा भगवान शिवजी के मस्तिष्क पर शोभित है और उनका प्रिय अलंकार भी है। कर्क राशि वालों को जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या में आयें तो उन्हें समस्या से मुक्ति पाने के लिये महाशिवरात्रि में शिवलिंग को जल में दूध, दही, गंगाजल व मिश्री मिलाकर ú चंद्रमौलीश्वर नम: इस मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से उनके पास कभी भी समस्या नहीं आएगी।अभिषेक के बाद इस ú विरूपाक्षाय नम:। मंत्र की तीन माला का जाप करें।
सिंह राशि:- सिंह राशि का राशि अधिपति सूर्य है। जो कि अपूर्व तेज प्रभाव का मालिक है। यही कारण है कि सिंह राशि वाले लोग हमेशा नेतृत्व में आगे रहते हैं। यदि सिंह राशि के लोग कारोबार, परिवार, राजनीति या स्वास्थ्य को लेकर परेशान हैं तो उन्हें महाशिवरात्रि में शिवलिंग को शुद्ध घी से ú महेश्वराय नम:मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद इस ú जटाधराय नम:। मंत्र की पांच माला का जाप करें।
कन्या राशि:- कन्या राशि राशि वाले लोग महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर दूध, घी और शहद से पाशुपत स्तोत्र या ú कालकालाय नम: मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करें तो उत्तम फलों की प्राप्ति होगी। यदि यह पूजा प्रत्येक सोमवार को जारी रखें तो जीवन में कभी भी समस्या नहीं आएगी। अभिषेक के उपरांत इस मंत्र की पांच माला जाप करें।अभिषेक के बाद इस ú गंगाधराय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।
तुला राशि:- तुला राशि वाले लोगों को पंचाक्षरी मंत्र या ú भीमाय नम: मंत्र का जाप करते हुए दही और गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे उनके जीवन की संपूर्ण कारोबारी समस्याओं का निवारण होगा।अभिषेक के उपरांत इस ú विश्वेश्वराय नम: मंत्र की दो माला जाप करें।
वृश्चिक राशि:- वृश्चिक राशि वाले लोग महाशिवरात्रि के दिन जल में दूध एवं शहद मिलाकर शिव गायत्री का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद लाल चंदन से तिलक करें और लाल चंदन से 108 बेलपत्र पर ú नम: शिवाय लिख कर बेलपत्र भगवान शिव को अर्पित करें।अभिषेक के बाद इस ú वीरभद्राय नम: मंत्र की एक माला का जाप करें।
धनु राशि:- धनु राशि वाले लोगों को महा शिव रात्रि के दिन शिवलिंग पर कच्चे दूध में केशर, गुड़ व हल्दी मिलाकर ú नम: शिवाय ú ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: ú नम: शिवाय। मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद केशर व हल्दी से तिलक करें और पीले पुष्प अर्पित करें। इस पूजन से कभी आर्थिक समस्या आड़े नहीं आती। जातक को सदैव संकटों से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
अभिषेक के बाद इस ú प्रज्ञापतये नम:। मंत्र की एक माला का जाप करें।
मकर राशि:- मकर राशि वाले लोगों को महाशिवरात्रि के दिन नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं, छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामी शनैश्चरं। मंत्र का जाप करते हुए सरसों के तेल से शिवलिंग पर तैलाभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सारी समस्यों का निवारण होगा।अभिषेक के बाद इस ú शितिकण्ठाय नम:। मंत्र की तीन माला का जाप करें।
कुंभ राशि:- कुंभ राशि वाले लोगों को महाशिवरात्रि में घी, शहद, शक्कर और बादाम के तेल से महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करें।उसके बाद पुन: जल स्नान कराने के बाद केसर से तिलक करें और 108 बार ú शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करते हुए तेल सरसों के ते से पुन: अभिषेक करना चाहिए।अभिषेक के बाद इस ú नीललोहिताय नम:। मंत्र की एक माला का जाप करें।
मीन राशि:- मीन राशि वालों को शिवरात्रि पर शिवलिंग को कच्चे दूध में केशर व तीर्थजल मिलाकर स्नान कराना चाहिये। स्नान के बाद केशर व हल्दी से तिलक करें। पीले पुष्प व नागकेशर के साथ केशर के रेशे अर्पित करें। स्नान कराते समय ú नमो शिवाय गुरु देवाय नम: ú का जाप करना चाहिये।अभिषेक के बाद इस ú मृत्युंजाय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।
श्री महाशिवरात्रि …????
………….क्या है शिव?
शेते तिष्ठïति सर्वं जगत्ï यस्मिन्ï स: शिव: शम्भु: विकाररहित: …।
अर्थात ‘जिसमें सारा जगत्ï शयन करता है, जो विकार रहित हैं वह ‘शिव’ हैं, अथवा जो अमंगल का ह्रïास करते हैं, वे ही सुखमय, मंगलरूप भगवान्ï शिव हैं। जो सारे जगत्ï को अपने अंदर लीन कर लेते हैं वे ही करुणा सागर भगवान्ï शिव हैं। जो भगवान्ï नित्य, सत्य, जगदाधार, विकार रहित, साक्षीस्वरूप हैं, वे ही शिव हैं।’
……………………….क्या है शिवरात्रि?
शिव और शक्ति के पूर्ण समरस होने की रात्रि है।
शिवरात्रि का अर्थ होता है ‘वह रात्रि जो आनन्द देने वाली है और जिसका शिव के नाम के साथ विशेष संबंध है।’ ऐसी रात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की है, जिसमें शिवपूजा, उपवास और जागरण होता है। उक्त फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को शिवपूजा करना एक महाव्रत है। अत: उसका नाम महाशिवरात्रि-व्रत पड़ा।
शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मïा ने इसी दिन रुद्र रूपी शिव को उत्पन्न किया था।
इसी दिन शिव व हिमाचल पुत्री पार्वती का विवाह हुआ था।
शिव-शक्ति का प्रतीक ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव भी इसी दिन हुआ था।
शिव रात्रि व्रत-उपवास का तात्विक अर्थ क्या है?
शास्त्रों के अनुसार जिस कर्म द्वारा भगवान का सान्निध्य होता है वही व्रत है। उपवास क्या है? जीवात्मा का शिव के समीप वास ही ‘उपवास’ कहा जाता है। महाशिव रात्रि के दिन श्रद्घा भाव से जो इस व्रत को संपन्न करता है संपूर्ण का पापों का क्षय होता है। और इस व्रत को लगातार 14 वर्ष करने से शिव लोक की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय क्या और क्या है व्रत की सामग्री?
अखण्ड बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है। जो श्रद्धापूर्वक नम: शिवाय मंत्र जाप करते हुए शिव लिंग पर बेलपत्र अर्पित करता है वह सभी पापों से मुक्त हो शिव के परमधाम में स्थान पाता है। यहाँ तक कि बिल्वपत्र के दर्शन, स्पर्श व वंदना से ही दिन-रात के किये पापों से छुटकारा मिल जाता है।
इसके अलावा भगवन्ï भोलेनाथ को आक-धतूरा विजया भांग आदि भी अति प्रिय हैं।
पत्र, पुष्प, फल अथवा स्वच्छ जल तथा कनेर से भी भगवान्ï शिव की पूजा करके मनुष्य उन्हीं के समान हो जाता है। आक (मदार) का फूल कनेर से दसगुना श्रेष्ठï माना गया है।
आक के फूल से भी दस गुना श्रेष्ठï है धतूरे आदि का फल। नील कमल एक हजार कह्ïलार (कचनार) से भी श्रेष्ठï माना गया है।
महाशिव रात्रि के व्रत की सामग्री है पंचामृत (गंगा जल, दूध, दही, शहद, घी) सुगंधित फूल, शुद्घ वस्त्र, बिल्वपत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, चंदन का लेप और ऋतु फल।
शिवरात्रि व्रत करते हुए शिवोपासना से मनुष्य के त्रिविध तापों का शमन हो जाता है, संकटव कष्टï के बादल छंट जाते हैं, कर्मज व्याधियों व ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। इससे अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है, मोक्ष प्राप्ति होती है। इस पर्व पर मनुष्य जिस मनोकामना से जिस रूप में शिव की आराधना करता है वह पूरी होती है और भोले शंकर उसी रूप में प्रसन्न होकर फल भी प्रदान करते हैं।
आप यदि इस महान पर्व पर अपनी राशि के अनुसार शिव उपासना करें तो आपकी जीवन की सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा। आप पर भगवान शिव की अनुकम्पा बरसेगी। भगवान शिव आप पर प्रसन्न हो, कृपा करेंगे। आपके कार्य सिद्ध होंगे। यदि आप पूरे विधि-विधान से पूजा नहीं कर सकते तो मात्र ú नम: शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं तो मनोकामना पूरी होगी। और यदि आप दूध, दही घी, शक्कर, शहद पंचामृत से अभिषेक करें तो बात ही कुछ और है। अभिषेक के उपरांत पर शिवलिंग पर बेलपत्र, मदार के पुष्प, भांग, धतूरे का फल अर्पित करें तो आपके लिए बहुत ही अच्छा रहेगा।
महाशिवरात्रि की व्रत-कथा (Mahashivratri)—–
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’
शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।’
महाशिवरात्रि पूजाविधि
शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुषको महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्न्नान-संध्या आदि कर्मसे निवृत्त होनेपर मस्तकपर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालयमें जाकर शिवलिंगका विधिपूर्वक पूजन एवं शिवको नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात् उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रतका इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।
महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण——
सम्पूर्ण – महाशिवरात्रि पूजा विधि के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर ’समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें। कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करें।
महाशिवरात्रि व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
व्रत का नामः- श्री महाशिवरात्रि
व्रत की तिथिः- चतुदर्शी 14
व्रत का दिनः- बुधवार
व्रत के देवताः-भगवान शिव
व्रत का समयः-प्रातःकाल से रात्रि के चार प्रहर तक
व्रत का विधानःनित्य नैमित्यक क्रिया शौचादि से निवृत्ति के वाद व्रत का संकल्प,पूजन हवन, शिव अभिषेक नमक-चमक से, ब्रह्मचर्य का पालन, अक्रोध, श्रद्धा भक्ति।
पूजा सामग्रीः-सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, भाँग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, पंच फल पंच मेवा, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण रत्न, सोना, चाँदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन आदि।
व्रत व पूजा के मंत्रः- ऊँ नमः शिवाय का जाप या मनन श्रद्धा व ध्यान से।
शिवपुराणके अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत करने वाला पुरुष प्रात:काल स्नान करके, मस्तक पर भस्म अथवा चंदन का तिलक लगाकर, गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाकर शिवलिङ्गका विधिपूर्वक पूजन करे। यदि घर में शिवलिङ्गस्थापित हो अथवा नर्मदेश्वरहो, तो उसकी पूजा करे। तत्पश्चात व्रत का संकल्प करें-
शिवरात्रिव्रतंह्येतत्करिष्येऽहंमहाफलम्।निíवघ्नमस्तुमेचात्रत्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
यह कहकर हाथ में संकल्प हेतु लिए जल, चावल, पुष्प आदि को शिवलिङ्गके समक्ष छोड दें। इसके बाद इस प्रकार प्रार्थना करें-
देवदेवमहादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तुते। कर्तुमिच्छाम्यहंदेव शिवरात्रिव्रतंतव॥तवप्रसादाद्देवेशनिíवघ्नेनभवेदिति।कामाद्या:शत्रवोमाम्वैपीडांकुर्वन्तुनैवहि॥
देवदेव! महादेव! नीलकण्ठ! आपको नमस्कार है। मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूं। देवेश्वर! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न-बाधा के पूर्ण हो और काम-क्रोध-ईष्र्या आदि शत्रु मुझे पीडा न दें।
यज्ञोपवीत धारण करने वाले दिनभर अधिकाधिक ॐनम: शिवायका तथा स्त्रियां और अन्य पुरुष नम: शिवाय मंत्र का जप करें। महाशिवरात्रि में दिन-रात उपवास करना चाहिए।
महाशिवरात्रि में रातभर जागकर रात्रि के चारों प्रहर में शिवार्चन करने का बडा माहात्म्य है। रुद्राष्टाध्यायीके पाठ तथा रुद्राभिषेक से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। उपवास, रात्रि-जागरण और शिवपूजन से यह व्रत पूर्ण होता है।
अगले दिन प्रात:काल स्नान करके शिवजी की पूजा करें और अंत में इस प्रकार निवेदन करें-
नियमोयो महादेव कृतश्चैवत्वदाज्ञया।विसृज्यतेमयास्वामिन्व्रतंजातमनुत्तमम्॥व्रतेनानेनदेवेश यथाशक्तिकृतेनच।संतुष्टाभव शर्वाद्यकृपांकुरु ममोपरि॥
हे महादेव! आपकी आज्ञा से मैंने जो व्रत ग्रहण किया है, हे स्वामिन्!वह परम उत्तम व्रत अब पूर्ण हो गया है अत:अब मैं उसका पारण करता हूं। हे देवेश्वर! मेरे द्वारा यथाशक्ति किए गए इस व्रत से आप मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।
तदोपरान्त महाशिवरात्रि व्रत का पारण करें अर्थात् भोजन ग्रहण करें। सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में महाशिवरात्रि-व्रत की महिमा का गुण-गान किया गया है।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
व्रत कथा का वाचन करें। मृग व शिकारी की कथा और शिव लिंग के प्रकट होने की कथा तथा शिव पुराण में और भी कथाएँ उपलव्ध है। सुसंस्कारों की जननी वेदगर्भा, जीवन-मृत्यु व ईश्वर की सत्ता का सतत् अनुभव व प्रत्यक्ष दर्शन कराने वाली भारतीय भूमि धन्य है। जो त्रिगुणात्मक (रज, सत, तम) शक्ति ईश्वर की आराधना के माध्यम से व्यक्ति को मनोवांछित फल दे उसे मोक्ष के योग्य बना देती है। ऐसा ही परम कल्याणकारी व्रत महाशिवरात्रि है जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष चतुदर्शी तिथि को श्री महाशिवरात्रि व्रत, दिनक 20 फरवरी, 2012(बुधवार) को भारत सहित विश्व के कई हिस्सों मे ईश्वर की सत्ता मे विश्वास रखने वाले भक्तों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाएगा।देवों के देव भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिये श्री महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं. यह पर्व फाल्गुन कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है. वर्ष 2012 में यह शुभ उपवास, 20 फरवरी, श्रवण नक्षत्र, बुधवार के दिन का रहेगा. इस दिन का व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हों, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा,वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं.20 फरवरी, 2012 के दिन विधिपूर्वक व्रत रखने पर तथा शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व “उँ नम: शिवाय” का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं. व्रत के दूसरे दिन ब्राह्माणों को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके संतुष्ट किया जाता हैं.यह शिव भक्तों का उत्सव है | इस दिन भक्तगण शिव की पूजा – अर्चना करते हैं | शिवलिंग पर बिल्व पुत्र,पुष्प,अक्षत,फल,प्रसाद कुमकुम मोली आदि पूजन सामग्री चढ़ाई जातीं हैं | रात भर जागरण किया जाता है | भजन कीर्तन करते हैं | शिव को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है | शिव को “नीलकंठ” कहने के पीछे एक कथा है -: समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न निकले थे,उनमें से एक द्रव्य हलाहल (भीषण ज़हर) भी था | उसे कोई भी पीने को तैयार नहीं था | उसकी ऊष्मा से सभी देव-दानव त्रस्त होने लगे | इसलिए शिव नें लोक कल्याणार्थ उस विष का पान किया,जिससे वे “नीलकंठ” कहलाए |एक तरफ शिव दुष्टों का संहार करते हैं ,दूसरी तरफ अपनें भक्तों की रक्षा करते हैं | इनको भालचंद्र भी कहतें हैं ,क्योंकि इनके भाल पर चन्द्रमा है | ऋग्वेद में शिव को त्र्यंबक कहा गया है | देशी भाषा में उन्हें भोला भंडारी भी कहते हैं,क्यूंकि वह थोड़ी सी आराधना से प्रसन्न हो जाते हैं | इनका स्वरुप जितना विचित्र है,उतनी ही विचित्र इनकी महिमा है |
भगवान शंकर के जन्मदिवस के रूप में मनाए जाने वाला धार्मिक पर्व ‘महाशिवरात्रि’ हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाएगा। मान्यता है कि महाशिवरात्रि का दिन महाशुभ होता है इसलिए इस दिन से विभिन्न शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। इनमें गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ, विभिन्न निर्माण कार्य, पूजा-पाठ आदि कार्य संपन्न किए जाते हैं। ज्ञात हो कि प्रत्येक वर्ष के फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।इस दिन मंदिर में भक्तिभाव से माँगा हुआ वरदान महादेव पूरा करते हैं। महाशिवरात्रि पर अपनी बुराइयों को त्याग कर अच्छाइयों को ग्रहण करने का पर्व माना जाता है। इस पर्व पर शिव की आराधना कर परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है। इससे समस्त प्रकार की बाधाओं से छुटकारा मिलता है। भगवान शंकर ने समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष को अपने कंठ में धारण किया था। इसलिए इस दिवस पर भगवान शिव के समक्ष अपने पापों का त्यागकर व मन की बुराइयों को भुलाकर अच्छी सोच विचार को अपनाना चाहिए।कहा जाता कि जब इस धरती पर चारों ओर अज्ञान का अंधकार छा जाता है, तब ऐसी धर्म ग्लानि के समय शिव का दिव्य अवतरण इस धरा पर होता है। वास्तव में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा के दिव्य अवतरण की यादगार है।माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया।इस बार यह पर्व विशेष संयोग के साथ आ रहा है, जिसमें शिव पूजा विशेष फलदायी होगी। महाशिवरात्रि के साथ प्रदोष और श्रवण नक्षत्र का होना शुभ माना जा रहा है। इस बार 2 मार्च को त्रयोदशी तिथि रहेगी, लेकिन रात में चतुदर्शी तिथि आ रही है। इस दिन प्रदोष होने से महत्व और बढ़ गया है। बैद्यनाथ जयंती एवं श्रवण भी रहेगा। इसलिए इसे अच्छा संयोग कहा जा सकता है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त किया जा सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से चतुदर्शी (14) अपने आप में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण तिथि है। इस तिथि के देवता भगवान शिव हैं, जिसका योग 1+4=5 हुआ अर्थात् पूर्णा तिथि बनती है। साथ ही कालपुरुष की कुण्डली में पाँचवाँ भाव प्रेम भक्ति का माना गया है। अर्थात् इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है उसके सभी वांछित कार्य भगवान शिव की कृपा से पूर्ण होते हैं। कृष्ण पक्ष में हरेक चंद्र मास का चौदहवाँ दिन या अमावस्या से एक दिन पूर्व शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक पंचांग वर्ष में होने वाली सभी बारह शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि जो फरवरी-मार्च के महीने में पड़ती है सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस रात्रि में इस ग्रह के उत्तरी गोलार्थ की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है। इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री व पुरुष, भक्ति व निष्ठा के साथ कर सकते हैं। इस व्रत से संबंधित कई जनश्रुतियाँ तथा पुराणों में अनेक प्रसंग हैं। जिसमें प्रमुख रूप से शिवलिंग के प्रकट होने तथा शिकारी व मृग परिवार का संवाद है। निर्धनता व क्षुधा से व्याकुल जीव हिंसा को अपने गले लगा चुके उस शिकारी को दैवयोग से महाशिवरात्रि के दिन खाने को कुछ नहीं मिला तथा सायंकालीन वेला मे सरोवर के निकट बिल्वपत्र में चढ़ कर अपने आखेट की लालसा से रात्रि के चार पहर अर्थात् सुबह तक बिल्वपत्र को तोड़कर अनजाने में नीचे गिराता रहा जो शिवलिंग पर चढ़ते गए। इसके फलस्वरूप उसका हिंसक हृदय पवित्र हुआ और प्रत्येक पहर में हाथ आए उस मृग परिवार को उनके वायदे के अनुसार छोड़ता रहा। किन्तु किए गए वायदे के अनुसार मृग परिवार उस शिकारी के सामने प्रस्तुत हुआ। परिणामस्वरूप उसे व मृग परिवार को वाँछित फल व मोक्ष प्राप्त हुए।
इस दिन व्रती को प्रातःकाल ही नित्यादि स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान शिव की पूजा, अर्चना विविध प्रकार से करना चाहिए। इस पूजा को किसी एक प्रकार से करना चाहिए। जैसे- पंचोपचार (पांच प्रकार) या फिर षोड़शोपचार (16 प्रकार से) या अष्टादशोपचार (18 प्रकार) से करना चाहिए। भगवान शिव से श्रद्धा व विश्वासपूर्वक ‘शुद्ध चित्त’ से प्रार्थना करनी चाहिए, कि—
हे देवों के देव!
हे महादेव!
हे नीलकण्ठ!
हे विश्वनाथ!
हे आदिदेव!
हे उमानाथ!
हे काशीपति!
आपको बारम्बार नमस्कार है। आप मुझे ऐसी कृपा शक्ति दो जिससे मैं दिन के चार और रात्रि के चार पहरों मे आपकी अर्चना कर सकूँ और मुझे क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह पीड़ित न करें, मेरी बुद्धि निर्मल हो मै जीवन को सद्कर्मों, सन्मार्ग में लगाते हुए इस धरा पर चिरस्मृति छोड़ आपकी परम कृपा प्राप्त करूँ।इस व्रत में रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पश्चात् सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भाँग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से शिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा व विश्वासपूर्वक किसी शिवालय में या फिर अपने ही घर में उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए।
यदि अशक्त (किसी कारण या परेशानी) होने पर सम्पूर्ण रात्रि का पूजन न हो सके तो पहले पहर की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इस प्रकार अंतिम पहर की पूजा के साथ ही समुचित ढंग व बड़े आदर के साथ प्रार्थना करते हुए संपन्न करें। तत्पश्चात् स्नान से निवृत्त होकर व्रत खोलना यानी पारण करना चाहिए। इस व्रत में त्रयोदशी विद्धा (युक्त) चतुर्दशी तिथि ली जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव इस ब्रह्माण्ड के संहारक व तमोगुण से युक्त हैं जो महाप्रलय की बेला में तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र से ब्रह्माण्ड को भस्म कर देते हैं। अर्थात् जो काल के भी महाकाल हैं जहाँ पर सभी काल (समय) या मृत्यु ठहर जातें हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति वहीं स्थित या समाप्त हो जाती है। रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे इस पर्व को रात्रि काल में मनाया जाता है। भगवान शंकर का रूप जहाँ प्रलयकाल में संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोलेनाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात् महाशिवरात्रि में श्रद्धा और विश्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा भाग्योदय करता है। इसीलिए इसे परम उत्साह, शक्ति व भक्ति का पर्व कहा जाता है।इसी प्रकार मास शिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदशी युक्त (विद्धा) अर्थात् रात्रि तक रहने वाली चतुर्दशी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदशी व चतुदर्शी का योग बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है। यादि आप मासिक शिवरात्रि व्रत रखना चाह रहें हैं तो इसका शुभारम्भ दीपावली या मार्गशीर्ष मास से करें तो शुभ फलदायी रहता है।
यह एक ऐसा दिन होता है जब प्रकृति व्यक्ति को उसके आध्यात्मिक शिखर की ओर ढकेल रही होती है। इसका उपयोग करने के लिए इस परंपरा में हमने एक खास त्योहार बनाया है जो पूरी रात मनाया जाता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस त्योहार का मूल मकसद यह निश्चित करना है कि ऊर्जाओं का यह प्राकृतिक चढ़ाव या उमाड़ अपना रास्ता पा सके।वे लोग जो अध्यात्म मार्ग पर हैं उनके लिए महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। योग परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती बल्कि उन्हें आदि गुरु माना जाता है, वे प्रथम गुरु हैं जिनसे ज्ञान की उत्पति हुई थी। कई हजार वर्षों तक ध्यान में रहने के पश्चात एक दिन वे पूर्णतः शांत हो गए, वह दिन महाशिवरात्रि का है। उनके अंदर कोई गति नहीं रह गई और वे पूर्णतः निश्चल हो गए। इसलिए तपस्वी महाशिवरात्रि को निश्चलता के दिन के रूप में मनातें हैं। पौराणिक कथाओं के अलावा योग परंपरा में इस दिन और इस रात को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि महाशिवरात्रि एक तपस्वी व जिज्ञासु के समक्ष कई संभावनाएँ प्रस्तुत करती है। आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा है जहाँ वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, वह सिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है।
इस शिव धर्म या शिव की सेवा के भी पांच रूप है ——
कर्म – लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
तप – चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
जप – शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
ध्यान – शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
ज्ञान – भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
शिव मंत्र जप में न भूलें ये . बातें—–
– मंत्र जप शुरू करने के पहले शिव की मूर्ति या शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाएं और जल की धारा अर्पित करें।
– मंत्र जप उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुंह रखकर करें।
– शिव मंत्रों के जप रुद्राक्ष माला से करना चाहिए। यह कामनासिद्धि के लिए बहुत ही शुभ और प्रभावी होता है।
शिवोपासनाकी विशेषताएं एवं शास्त्र—-
शिव अर्थात् मंगलमय व कल्याणस्वरूप तत्त्व । शिवजी स्वयंसिद्ध व स्वयंप्रकाशी हैं । वे स्वयं प्रकाशित रहकर विश्वको भी प्रकाशित करते हैं । इसलिए शिवजीको ‘परब्रह्म’ कहा जाता है । शिवजीकी कृपा प्राप्त करने हेतु शिवभक्त महाशिवरात्रिके दिन शिवजीकी श्रद्धापूर्वक उपासना करते हैं । अध्यात्मशास्त्रका अभ्यास कर शिवजीकीr उपासना करनेसे उपासकके भक्तिभावमें अधिक वृद्धि होती है तथा उपासकको उसका अधिकाधिक लाभ होता है । शिवभक्तोंको महाशिवरात्रिका अधिकाधिक लाभ हो, इस हेतु शिवजीकी उपासनाकी विशेषताएं एवं उनका मूलभूत शास्त्र जान लेंगे ।
महाशिवरात्रिका व्रत क्यों करते हैं ?
रात्रिके एक प्रहर शिवजी विश्रांति लेते हैं । इस प्रहरको महाशिवरात्रि कहते हैं । शिवजीके विश्रांतिकालमें शिवतत्त्वका कार्य रुक जाता है, अर्थात् उस कालमें शिवजी ध्यानावस्थासे समाधि-अवस्थामें जाते हैं । शिवजीकीr समाधि-अवस्था अर्थात् शिवजीका अपनी साधना करनेका काल । इस कालमें शिवतत्त्व विश्वके तमोगुणका स्वीकार नहीं करता । अत: विश्वमें तमोगुणकी मात्रा बढ जाती है । हमपर उसका विपरीत परिणाम न हो; इस कारण महाशिवरात्रिका व्रत किया जाता है ।
शिवपूजामें क्या करें तथा क्या न करें ?
श्वेत अक्षत एवं पुष्प चढाएं ! : अक्षतकी ओर निर्गुण ईश्वरीय तत्त्वसे संबंधित उच्च देवताओंकी तरंगें आकर्षित होती हैं; इसलिए अधिकाधिक निर्गुणसे संबंधित शिवजीको उनके श्वेत रंगसे समानता रखनेवाले श्वेत रंगके अक्षत चढाएं । साथ ही, अरघेपर श्वेत पुष्प उदा. निशिगंध, जाही, जूही, मोगरा, उनका डंठल पिंडीकी ओर कर चढाएं ।
उदबत्ती एवं इतर (इत्र) का प्रयोग करें ! : उदबत्ती एवं इतरसे प्रक्षेपित होनेवाली गंधतरंगोंकी ओर देवताओंकी तरंगें शीघ्र आकृष्ट होती हैं; इसलिए शिवपूजामें शिवजीको प्रिय केवडा, चमेली अथवा मेंहदीकी सुगंधकी उदबत्तियों तथा केवडेके इतरका प्रयोग करें ।
हल्दी एवं कुमकुम न चढाएं ! : हल्द एवं कुमकुम उत्पत्तिके प्रतीक हैं; इस कारण लयके देवता शिवजीको ये वस्तुएं न चढाएं ।
महाशिवरात्रिके दिन शिवजीका नामजप क्यों करें ?
देवताकी जयंती या उत्सवकालमें वातावरणमें संबंधित देवताका तत्त्व अधिक मात्रामें कार्यरत रहता है । इसलिए उस दिन संबंधित देवताका नामजप करनेसे उनका तत्त्व अधिक मात्रामें ग्रहण होता है । इस शास्त्रानुसार महाशिवरात्रिपर सामान्य दिनोंकी तुलनामें १००० गुना अधिक कार्यरत शिवतत्त्वका अधिकाधिक लाभ पानेके लिए ‘ॐ नम: शिवाय ।’ नामजप अधिकाधिक तथा भावपूर्ण करें ।
शिवजीको बेल क्यों एवं कैसे चढाएं ?
बिल्वपत्रमें शिवतत्त्व अधिकाधिक आकृष्ट करनेकी क्षमता होनेके कारण शिवजीको बिल्वपत्र चढाते हैं । शिवजीको बेलपत्र (त्रिदलीय) चढाते समय पिंडीपर बिल्वपत्र औंधे रखकर उसका डंठल देवताकीr ओर तथा अग्र भाग अपनी ओर कर चढाएं । शिवपिंडीपर बिल्वपत्र औंधा चढानेसे उससे निर्गुण स्तरके स्पंदन अधिक मात्रामें प्रक्षेपित होते हैं तथा श्रद्धालुको अधिक लाभ होता है । यथासंभव, शिवपिंडीपर कोमल बिल्वपत्र चढाएं ।
शृंगदर्शन कैसे करें ?(नंदीके सींगोंसे शिवलिंगके दर्शन करना)
शिवजीके देवालयमें नंदी तीन पैर मोडकर तथा एक पैर सीधा कर बैठा हुआ होता है । यह इस बातका द्योतक है कि कलियुगमें धर्म एक चतुर्थांश ही रह गया है । शृंगदर्शनके समय नंदीकी दार्इं ओर उसके पीछेके पैरोंके निकट बैठकर अथवा खडे रहकर बायां हाथ नंदीके वृषणपर रखें । दाएं हाथकी तर्जनी (अंगूठेके निकटकी उंगली) एवं अंगूठेको नंदीके दोनों सींगोंपर रखें । दोनों सींगों तथा उनपर रखी दो उंगलियोंके बीचकी रिक्तिसे शिवलिंगके दर्शन करें ।
पिंडीकी अर्धपरिक्रमा क्यों करें ?
पिंडीकी परिक्रमा करते समय अभिषेककी जल प्रणालिका (अरघाके आगे निकले हुए भाग) तक जाएं तथा उसे न लांघे बिना मुडें एवं पुनः प्रणालिकातक विपरीत दिशामें आकर परिक्रमा पूर्ण करें । अरघेके स्रोतेसे शक्ति प्रक्षेपित होनेके कारण उसे बार-बार लांघनेसे सर्वसाधारण श्रद्धालुको उस शक्तिके कारण कष्ट हो सकता है; इसलिए शिवपिंडीकी अर्धपरिक्रमा ही करनी चाहिए । स्वयंभू अथवा घरमें स्थापित लिंगके लिए यह नियम लागू नहीं होता ।
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
शिवाय…ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
ॐ नमः शिवाय..”ॐ नमः शिवाय”
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि – वर्धनम |उर्वारुकमिव बन्धनाय म्र्त्योर -मुक्षीय मामृतात ||”ॐ नमः शिवाय”ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः शिवाय..ॐ नमः
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लिंगाष्टकम :—–
ब्रह्ममुरारी-सुरार्चितलिंगम निर्मल-भासित-शोभित-लिंगम
जानमाज-दुख्विनाशक-लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
देवमुनि-प्रवरार्चित लिंगम कामदहम करुनाकरलिंगम
रावणदर्प-विनाशन-लिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
सर्वसुगन्धि-सुलेपित्लिंगम- बुद्धिविविर्धन-कारणलिंगम
सिद्ध-सुरा-सुरवन्दितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
कनक-महामणि-भूषितलिंगम-फणिपति-वेष्टित-शोभितलिंगम
दक्षसुयज्ञ-विनाशकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
कुंकुम-चन्दंलेपितलिंगम पंकजहार-शोभितलिंगम
संचित-पाप-विनाशनलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
देवगणार्चित-सेवितलिंगम भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम
दिन्कर्कोती-प्रभाकरलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंग
अष्टदलोपरि वेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भव-कारणलिंगम
अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
सुरगुरु-सुरवर-पुजितलिंगम सुरवनपुष्प-सदार्चितलिंगम
परात्परं परमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ
शिवलोमवाप्नोति शिवेन सह मोदते
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ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।……….
सभी परम स्नेहिल मित्रो को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई ।……..
आशुतोष शशांक शेखर चंद्रमौली चिदंबरा कोटि कोटि प्रणाम शंभो कोटि नमन दिगम्बरा निर्विकार ओंकार अविनाशी तुम्ही देवाधिदेव जगत सर्जक प्रलयकर्ता शिवम सत्यम सुंदरा निरंकार स्वरुप कालेश्वर महाजोगिश्वरा दयानिधि दानिश्वरा जय जटाधारी अभ्यंकरा शूलपाणी त्रिशूल धारी औघडी बाघम्बरी जय महेश त्रिलोचनाय विश्वनाथ विश्वम्भरा नाथ नागेश्वर हरो हर पाप शाप अभिशाप तम महादेव महान भोले सदाशिव शिव शंकरा जगतपति अनुरक्ति भक्ति सदैव तेरे चरण हो छमा हो अपराध सब जय जयति जय जगदिश्वराजन्म जीवन जगत का संताप सब मिटे सभी ओम नम: शिवाय मन जपता रहे पंचाकछरा
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………………………अथ शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्…….
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय ॥ 1 ॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय ।मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय ॥ 2 ॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय ॥ 3 ॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय ॥ 4 ॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय ॥ 5 ॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ 6 ॥..
…………………………ॐ नमः पार्वती पतये…..हर….हर….महादेव………….काटा लाग सके न कंकर……..
बोलो जय जय शिव शंकरनमो पार्वतीपतये हर हर हर महादेऽऽऽऽऽऽऽऽऽव …………………………..
अलख निरंजन नाम तुम्हारा संग मेँ भूतो का टोला…………शिव बम बम बम बम भोला……..”ॐ” नमः शिवाये …………..
सज्जनों एवं स्वजनों “शिव जी ” आप सबका एवं समस्त विश्व को अपने आशीर्वाद से समस्त दुखो को दूर कर चारो दिशाओं में खुशियों को भर दे .==
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—–महाशिवरात्रि: संतान प्राप्ति का अचूक उपाय—-
भगवान शंकर के समान अन्य कोई देव नहीं है। भक्त से प्रसन्न होने पर वे उसकी हर मनोकामना पूरी कर देते हैं। महाशिवरात्रि पर किए गए विशेष उपाय से शिव और भी प्रसन्न होते हैं। जिन दंपत्तियों के यहां संतान नहीं है वे यदि महाशिवरात्रि के दिन नीचे लिखे तरीके से भगवान शिव की पूजा करें तो उन्हें शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होगी।
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान शिव का पूजन करें। इसके पश्चात गेहूं के आटे से ग्यारह शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिवमहिम्नस्त्रोत से जलाभिषेक करना चाहिए। इस प्रकार ग्यारह बार जलाभिषेक किया जाएगा। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। यह प्रयोग शिवरात्रि से आरंभ करते हुए 21 अथवा 41 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भगौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे महाशिवरात्रि या अन्य किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।यह उपाय करने पर आप देखेंगे कि शीघ्र ही आपके यहां बच्चे की किलकारियां गूजेंगी।
—-महाशिवरात्रि: रोगों से छुटकारा दिलाता है यह उपाय—-
भगवान शंकर अपने भक्तों को सभी सुख प्रदान करते हैं। यहां तक कि वे मरणासन्न भक्त को भी नया जीवन प्रदान कर सकते हैं। शिव हर प्रकार से अपने भक्तों आरोग्य प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि भगवान शिव की प्रमुख रात्रि है। इस दिन रोग निवारण के लिए किए गए उपाय बेहद लाभकारी होते हैं। यदि आप किसी पुराने रोग से पीडि़त हैं और काफी उपचार करवाने के बाद भी कुछ फर्क नहीं पड़ रहा है तो इसके निवारण के लिए महाशिवरात्रि पर नीचे लिखा उपाय करें। शीघ्र ही आपकी बीमारी दूर हो जाएगी।
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग का दूध एवं काले तिल से युक्त जल द्वारा अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के पात्र का उपयोग करें। अभिषेक 108 बार करें। अभिषेक करते समय ऊँ जूं स: मंत्र का जप करते रहें।इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। महाशिवरात्रि के बाद इस संकल्प का पालन करें तथा अभिषेक करते समय भी इसी मंत्र का जप करें। भगवान शिव की कृपा से आप शीघ्र ही आप रोग मुक्त हो जाएंगे।
—-महाशिवरात्रि: शीघ्र विवाह के लिए टोटके—कई बार जन्म कुंडली के कुछ दोषों या अन्य किसी कारण से विवाह की उम्र हो जाने के बाद भी विवाह नहीं हो पाता। यह समस्या किसी के भी साथ हो सकती है। यदि महाशिवरात्रि के महापर्व पर कुछ उपाय किया जाए तो इस परेशानी का निदान संभव है-
उपाय—-महाशिवरात्रि के दिन गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करें तथा निम्नलिखित स्तुति का ग्यारह बार पाठ करें-
ऐं ह्ी श्रीं। नमोनेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमो, नम: क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नम:। नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमो, नम: स्र्वस्मै ते तदिदमिति शर्वाय च नम:। श्रीं ह्ी ऐं।।
महाशिवरात्रि के बाद भी प्रतिदिन भगवान शिव के समक्ष उक्त स्तुति का ग्यारह बार पाठ करें। शीघ्र ही आपकी विवाह संबंधी समस्या दूर हो जाएगी।
—–महाशिवरात्रि पर शिव लिंग व मंदिर में शिव को गाय के कच्चे दूध से स्नान कराने पर विद्या प्राप्त होती है। गन्ने के रस से स्नान करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है एवं शुद्घ जल से स्नान कराने पर सभी इच्छाएँ पूरी होती है। भगवान शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दूध, फूल औल फल चढ़ाना चाहिए।
—–शिवरात्रि के दिन उपवास करने से मन की मुराद पूरी होती है। युवतियों को मन के अनुरूप वर की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शंकर का जन्मदिन माना जाता है। इसलिए रात्रि जागरण का नियम है। इससे मनोकानाएँ पूर्ण होती है।
—-धन लाभ के लिए इस दिशा में करें शिव मंत्र जप—–अगर आप शिव को इष्ट मानकर शिव भक्ति से कारोबार में धन लाभ और परिवार में आर्थिक समृद्धि की चाहत रखते हैं, तो यहां बताई जा रही शिव मंत्र जप की कुछ विशेष बातें। जिनका पालन कर आप भी धन की कामना पूरी कर सकते हैं।
– उत्तर दिशा में मुंह करके किया गया मंत्र जप मन को शांति देने वाला होता है।
– दक्षिण दिशा में किया जाने वाला शिव मंत्र जप तंत्र प्रयोगों और अभिचार कर्म के लिए बहुत ही अचूक माना जाता है।
– पूर्व मे दिशा में किया गया शिव मंत्र जप वशीकरण के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है।
– पश्चिम दिशा में किया जाना शिव मंत्र जप अपार धन लाभ देता है।
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——यदि आपके जीवन में आपको कारोबारी, पारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या है या आपको किसी प्रकार की मानसिक समस्या है अथवा कोई तनाव है या किसी भी कार्यक्षेत्र में बाधा या रुकावट है तो द्वादश राशियों के लोग किस तरह भगवान भोलेनाथ की पूजा करें कि धन की बरसात हो।
मेष राशि:-मेष राशि वाले लोग शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर पूजा करते समय लाल चंदन से शं लिखें और फिर उसी लाल चंदन से 108 बेलपत्र पर ú शं लिखें ú शंकराय नम: का जाप करते हुए इन बेलपत्रों को शिवलिंग पर अर्पित करें और जल में कच्चा दूध और लाल चंदन मिला कर शिव का अभिषेक करें।
अभिषेक के बाद इस मंत्र ú शम्भवे नम: मंत्र की तीन माला का जाप करें।
वृष राशि:- वृषभ राशि के जातक-जातिकाओं को अपने कार्य में सफलता के लिए शिवलिंग पर सफेद चंदन से ú तत्पश्चात बेलपत्र के ऊपर सफेद चंदन से ú लिखें। जल से हर-हर महादेव का जाप करते हुए जलाभिषेक करें। पुन: सफेद चंदन से भगवान शिव के त्रिपुण्ड बनाएं और हरसिंगार का इत्र लगायें। इस प्रकार का अभिषेक करने से आपकी जीवन की सारी समस्याओं का निवारण होगा। व्यापार वृद्धि होगी। स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा और परिवार में सुख-शांति रहेगी।
अभिषेक के बाद इस ú शशिशेखराय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।
मिथुन राशि:-मिथुन राशि वाले महाशिवरात्रि में शिवलिंग पर शहद में केसर घोल कर शिवलिंग पर तिलक करें और ú शूलपाणये नम: मंत्र का जाप करते हुए शहद से अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं का निवारण हो जाएगा। शहद से स्नान कराते समय ú नम: शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ú नम: इस मंत्र का भी जाप करें तो और अधिक अनुकूलता प्राप्त होगी। परिवार, व्यापार और स्वास्थ्य में लाभ होगा।अभिषेक के बाद इस ú विष्णु वल्लभाय नम: मंत्र की पांच माला का जाप करें।
कर्क राशि:-कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। चंद्रमा भगवान शिवजी के मस्तिष्क पर शोभित है और उनका प्रिय अलंकार भी है। कर्क राशि वालों को जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या में आयें तो उन्हें समस्या से मुक्ति पाने के लिये महाशिवरात्रि में शिवलिंग को जल में दूध, दही, गंगाजल व मिश्री मिलाकर ú चंद्रमौलीश्वर नम: इस मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से उनके पास कभी भी समस्या नहीं आएगी।अभिषेक के बाद इस ú विरूपाक्षाय नम:। मंत्र की तीन माला का जाप करें।
सिंह राशि:- सिंह राशि का राशि अधिपति सूर्य है। जो कि अपूर्व तेज प्रभाव का मालिक है। यही कारण है कि सिंह राशि वाले लोग हमेशा नेतृत्व में आगे रहते हैं। यदि सिंह राशि के लोग कारोबार, परिवार, राजनीति या स्वास्थ्य को लेकर परेशान हैं तो उन्हें महाशिवरात्रि में शिवलिंग को शुद्ध घी से ú महेश्वराय नम:मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद इस ú जटाधराय नम:। मंत्र की पांच माला का जाप करें।
कन्या राशि:- कन्या राशि राशि वाले लोग महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर दूध, घी और शहद से पाशुपत स्तोत्र या ú कालकालाय नम: मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करें तो उत्तम फलों की प्राप्ति होगी। यदि यह पूजा प्रत्येक सोमवार को जारी रखें तो जीवन में कभी भी समस्या नहीं आएगी। अभिषेक के उपरांत इस मंत्र की पांच माला जाप करें।अभिषेक के बाद इस ú गंगाधराय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।
तुला राशि:- तुला राशि वाले लोगों को पंचाक्षरी मंत्र या ú भीमाय नम: मंत्र का जाप करते हुए दही और गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे उनके जीवन की संपूर्ण कारोबारी समस्याओं का निवारण होगा।अभिषेक के उपरांत इस ú विश्वेश्वराय नम: मंत्र की दो माला जाप करें।
वृश्चिक राशि:- वृश्चिक राशि वाले लोग महाशिवरात्रि के दिन जल में दूध एवं शहद मिलाकर शिव गायत्री का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद लाल चंदन से तिलक करें और लाल चंदन से 108 बेलपत्र पर ú नम: शिवाय लिख कर बेलपत्र भगवान शिव को अर्पित करें।अभिषेक के बाद इस ú वीरभद्राय नम: मंत्र की एक माला का जाप करें।
धनु राशि:- धनु राशि वाले लोगों को महा शिव रात्रि के दिन शिवलिंग पर कच्चे दूध में केशर, गुड़ व हल्दी मिलाकर ú नम: शिवाय ú ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: ú नम: शिवाय। मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के बाद केशर व हल्दी से तिलक करें और पीले पुष्प अर्पित करें। इस पूजन से कभी आर्थिक समस्या आड़े नहीं आती। जातक को सदैव संकटों से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
अभिषेक के बाद इस ú प्रज्ञापतये नम:। मंत्र की एक माला का जाप करें।
मकर राशि:- मकर राशि वाले लोगों को महाशिवरात्रि के दिन नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं, छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामी शनैश्चरं। मंत्र का जाप करते हुए सरसों के तेल से शिवलिंग पर तैलाभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सारी समस्यों का निवारण होगा।अभिषेक के बाद इस ú शितिकण्ठाय नम:। मंत्र की तीन माला का जाप करें।
कुंभ राशि:- कुंभ राशि वाले लोगों को महाशिवरात्रि में घी, शहद, शक्कर और बादाम के तेल से महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक करें।उसके बाद पुन: जल स्नान कराने के बाद केसर से तिलक करें और 108 बार ú शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करते हुए तेल सरसों के ते से पुन: अभिषेक करना चाहिए।अभिषेक के बाद इस ú नीललोहिताय नम:। मंत्र की एक माला का जाप करें।
मीन राशि:- मीन राशि वालों को शिवरात्रि पर शिवलिंग को कच्चे दूध में केशर व तीर्थजल मिलाकर स्नान कराना चाहिये। स्नान के बाद केशर व हल्दी से तिलक करें। पीले पुष्प व नागकेशर के साथ केशर के रेशे अर्पित करें। स्नान कराते समय ú नमो शिवाय गुरु देवाय नम: ú का जाप करना चाहिये।अभिषेक के बाद इस ú मृत्युंजाय नम:। मंत्र की दो माला का जाप करें।