क्या कहती  हें प्रश्न कुंडली प्रेम विवाह के लिए???

प्यार की मंजिल प्रेमी को पाना होता है. हर प्रेमी की चाहत होती है कि वह जिससे प्यार करता है वही उसका जीवनसाथी बने. लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जिनका प्यार सफल हो पाता है. जिन लोगों के मन में यह भावना उठती हो कि उनका प्यार सफल होग या नहीं वह प्रश्न कुण्डली से अपना सवाल पूछ सकते हैं.

प्रेम विवाह के लिए ग्रह स्थिति—-
कुण्डली में जब प्रेम विवाह के विषय में ग्रह स्थिति का विचार किया जाता है तब पांचवें, सातवें और ग्यारहवे भाव तथा इस भाव के स्वामी की स्थिति को भी देखा जाता है. कुण्डली में गुरू की स्थिति से प्रेम का विचार किया जाता है जबकि शु्क्र से प्रेम विवाह को देखा जाता है. कुण्डली में पंचम भाव अथवा पंचमेश, सप्तम भाव सप्तमेश और लग्न एवं लग्नेश प्रेम विवाह को सफल बनाते हैं. कुण्डली में अगर ये भाव और भाव स्वामी कमजोर अथवा पीड़ित हों तो प्रेम विवाह में बाधाओं का सामना करना होता है.

प्रश्न कुण्डली में प्रेम विवाह की स्थिति देखें —-
प्रश्न कुण्डली जब प्रेम विवाह के विषय मे पूछा जाता है तब कुण्डली में अगर पंचम भाव का स्वामी, सप्तम का स्वामी, एकादश का स्वामी अपनी राशि में बैठा हो तो इसे प्रेम विवाह सफलता पूर्वक होने का सूचक समझना चाहिए . पंचम भाव का स्वामी अगर सप्तमेश के साथ कुण्डली के किसी भाव में बैठा हो और ग्यारहवें भाव का स्वामी इस युति को देखता है तो इसे भी प्रेम विवाह का संकेत कहा जा सकता है. पंचम का स्वामी अगर सातवें घर में बैठा हो और सातवें का स्वामी पंचवें घर में बैठा हो और पांचवें अथवा सातवें घर पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो विशेषकर ग्यारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि हो तो प्रेम विवाह संभावना प्रबल बनती है.

प्रश्न कुण्डली से प्रेम विवाह की कुण्डली का उदाहरण —
प्रवेश और सोनिया साथ काम करते हैं और एक दूसरे को पसंद करते हैं. प्रवेश ने जब अपने घर में सोनिया से शादी की बात की तो घर के लोग ने विरोध जताया. इस स्थिति में प्रवेश को लगने लगा कि उनकी शादी सोनिया से नहीं हो पाएगी. प्रवेश ने .7 मई 2.09 को शाम के 5 बजकर .8 मिनट पर प्रश्न कुण्डली से सवाल किया कि क्या प्रेम विवाह संभव है. प्रश्न की कुण्डली में लग्न तुला आया जिसका स्वामी शुक्र है. राशि है मिथुन जिसका स्वामी है शुक्र. नक्षत्र है पुनर्वसु जिसका स्वामी गुरू है . कुण्डली में प्रेम का कारक गुरू पंचम भाव में बैठा है जो नक्षत्र का भी स्वामी है. लग्नेश शुक्र गुरू की राशि में बैठा है जिससे प्रेम विवाह में काफी विरोध का सामना करना पड़ सकता है. ग्यारहवें भाव में शनि की उपस्थिति सिंह राशि में होना भी कठिनाईयों का संकेत है. फिर भी इस बात की प्रबल संभावना है कि प्रवेश का प्रेम सफल होगा. प्रवेश सोनिया को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि सप्तमेश मंगल बुध के स्वराशि मेष में बैठा है.

क्यों मिलवाएं विवाह पूर्व आपकी जन्म कुंडली????
हिंदू वैदिक संस्कृति में विवाह से पूर्व जन्म कुंडली मिलान की शास्त्रीय परंपरा है, लेकिन आपने बिना जन्म कुंडली मिलाए ही गंधर्व विवाह [प्रेम-विवाह] कर लिया है तो घबराएं या डरें नहीं, बल्कि यह मान लें कि ईश्वरीय शक्ति द्वारा आपका ग्रह मिलान हो चुका है।हिन्दू संस्कृति में विवाह को सर्वश्रेष्ठ संस्कार बताया गया है। क्योंकि इस संस्कार के द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की सिद्धि प्राप्त करता है। विवाहोपरांत ही मनुष्य देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण से मुक्त होता है।
समाज में दो प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं- पहला परंपरागत विवाह [प्राचीन ब्रह्मधा विवाह] और दूसरा अपरंपरागत विवाह [प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह]।
परंपरागत विवाह माता-पिता की इच्छा अनुसार संपन्न होता है, जबकि प्रेम विवाह में लड़के और लड़की की इच्छा और रूचि महत्वपूर्ण होती है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य, स्वतंत्र विचारों, पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण अधिकतर अभिभावक चिंतित रहते हैं कि कहीं उनका लड़का या लड़की प्रेम विवाह तो नहीं कर लेगाक् विवाह पश्चात उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा या नहींक् ऎसे कई प्रश्न माता-पिता के लिए तनाव का कारण बन सकते हैं। क्योंकि परंपरागत विवाह में जन्म कुंडली मिलने के बाद ही विवाह किया जाता है, जबकि प्रेम विवाह में जरूरी नहीं कि कुंडली मिलान किया जाए। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अधिकतर के पास जन्म कुंडली होती नहीं है। कई बार छिपकर भी प्रेम विवाह हो जाता है। विवाह होने के पश्चात जब माता-पिता को पता चलता है तो वह चिंतित हो उठते हैं क्या इनका दाम्पत्य जीवन सुखी और स्थायी रहेगा।
माता-पिता इस तरह की चिंता नहीं करें, बल्कि यह सोचें कि इनकी कुंडली या ग्रह तो स्वयं ईश्वर ने ही मिला दिए हैं, तभी तो इनका विवाह हुआ है।
ज्योतिषशास्त्र के अंतर्गत प्रेम विवाह में पंचम भाव से व्यक्ति के संकल्प, विकल्प इच्छा, मैत्री, साहस, भावना और योजना-सामथ्र्य आदि का ज्ञान होता है। सप्तम भाव से विवाह, दाम्पत्य सुख का विचार करते हैं। एकादश भाव इच्छापूर्ति और द्वितीय भाव पारिवारिक सुख-संतोष को प्रकट करता है।
इस संदर्भ में पुरूष के लिए शुक्र और स्त्री के लिए मंगल का विश्लेषण आवश्यक है। शुक्र प्रणय और आकर्षण का प्रेरक है। इससे सौंदर्य, भावनाएं, विलासिता का भी ज्ञान होता है। पंचम भाव स्थित शुक्र जातक को प्रणय की उद्दाम अनुभूतियों से ओत-प्रोत करता है। मंगल साहस का कारक है। मंगल जितना प्रभुत्वशाली होगा, जातक उसी अनुपात में साहसी और धैर्यशील होगा। यदि व्यक्ति मंगल कमजोर हो तो जातक प्रेमानुभूति को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। वह दुविधा, संशय और हिचकिचाहट में रहता है।चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। चंद्रमा का मानसिक स्थिति, स्वभाव, इच्छा, भावना आदि पर प्रभुत्व है। प्रेम मन से किया जाता है। इसलिए चंद्र की स्थिति भी प्रेम विवाह में अनुकूलता प्रदान करती है।शुक्र आकर्षण का कारक है। यदि शुक्र जातक के प्रबल होता है तो प्रेम विवाह हो जाता है और यदि शुक्र कमजोर होता है तो विवाह नहीं हो पाता है।

मनुष्य  के जीवन का मुख्य लक्ष्य चार बातों पर निर्भर रहता है – धर्म, अर्थ, काम और अंत में  मोक्ष. विवाह मनुष्य के जीवन की सबसे महत्व पूर्ण घटना होती है, जिसके  बाद वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है. इसी आश्रम में वह पुण्य के सारे काम कर सकता है. बच्चों  के उत्पन्न होने से पित्र ऋण उतारा जाता है.

भारतीय समाज में आमतौर पर उस विवाह को मान्यता दी जाती है, जिसमें माता -पिता और समाज के बड़े बुजुर्गों की सहमति होती हो. प्रेम विवाह के लिए भी समाज और कानून  की मान्यता अति आवश्यक है , वर्ना उस नवविवाहित जोड़े को अनेकों संघर्षों से गुजरना पड़ता है, भारतीय समाज में कानूनन विवाह की आयु लड़की के लिए १८ वर्ष और लड़के के लिए २१ वर्ष अनिवार्य है , हालाँकि  आर्थिक ,शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े कुछ इलाकों में अभी भी निर्धारित आयु से कम में भी विवाह करा  दिए जाते हैं. विवाह योग्य कन्या के लिए माता -पिता सुयोग्य वर की तलाश का कार्य किसी अनुभवी और विद्वान् ज्योतिषी को सौपते हैं. विद्वान् ज्योतिषी  वर-वधु के संतुलित, सफल और समरस रिश्ते के लिए कुंडली मिलान करता है. यही कारण है की भारतीय समाज में सफल, अक्षुण और मधुर वैवाहिक जीवन रहा  है. प्रेम विवाह में भी अवश्य गुण मिलान कर लेने चाहिए, यदि ज़रुरत हो तो आवश्यक उपाय भी करा  लेनी चाहिए.  पाप गृहों क़ी शांति अवश्य करा लेना चाहिए
————————————————–
इन योग के कारण होता हें प्रेम विवाह–
प्रेम विवाह योग और गृह – नक्षत्रो के परिणामस्वरूप होता है | ज्योतिष के अनुसार कुंडली के विशिष्ट भावो ग्रहों की स्थिति प्रेम विवाह की कारक और सफलता तय करती है | स्त्री की कुंडली में मंगल रक्त कारक होने के कारण वैवाहिक विषयो में प्रमुख भूमिका निभाता है | वही पुरुष की कुंडली में शुक्र प्रेम , विलासिता और लग्न और लग्नेश , सप्तम और सप्तमेश , पंचम और पंचमेश , नवं और नवमेश , द्वादश और द्वादशेश के साथ चन्द्रमा , शुक्र और मंगल गृह भी विशेष दखल रखते है | लग्न की बात करे , तो यह जातक के स्वभाव को अभिव्यक्त करते है | शुक्र , सप्तमेश , चन्द्रमा आदि लग्न में हो , तो प्रेम और प्रेम विवाह की समभावना बनती है , लेकिन यह नीच व् अस्त नहीं होने चाहिए | पंचम को प्रेम का नैसर्गिक भाव माना जाता है | यह जातक की चाह , संतान , संस्कार का प्रतिनिधित्व करता है | चन्द्रमा , शुक्र , मंगल की पंचम भाव में स्थिति या उस पर द्रष्टि , प्रेम विवाह की सम्भावनाये बनती है | जीवन साथी का विषय सप्तम भाव से देखा जाता है | लग्नेश , शुक्र , मंगल , पंचमेश , सप्तम भाव में हो तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है | द्वादश भाव जातक के भोग – विलास को बताता है | शुक्र ग्रह सुन्दरता और प्रेम का देवता माना गया है | पुरुष की कुंडली में यह पत्नी और प्रेमिका का प्रतिनिधित्व करता है | यदि कुंडली में शुक्र बलि हो तो जातक में प्रेम , सुन्दरता और शालीनता पर्याप्त होती है | जब इसका सम्बन्ध लग्न , सप्तम , पंचम से हो तो प्रेम आकर्षण की पूर्ण संभावना होती है | चन्द्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह माना जाता है | जब उसकी उपस्थिति लग्न , पंचम , सप्तम भाव में हो तो जातक में प्रेम की प्रबल आकांक्षा होती है | मंगल का पंचम , सप्तम , लग्न भाव के स्वामी के साथ स्थित होना , प्रेम तथा प्रेम विवाह की संभावनाए पैदा करता है | भावेश को भी प्रेम विवाह के योग के लिए देखना जरुरी है | यदि स्त्री का पंचमेश पुरुष के लग्न , पंचम , सप्तम भाव या उसके स्वामियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करे , तो उनमे आपस में आकर्षण होता है | वह स्त्री सामने वाले पुरुष की और आकर्षित होती है | इसी प्रकार यदि पुरुष का पंचमेश स्त्री के लग्न , पंचम , सप्तम भाव और उसके स्वामी के साथ सम्बन्ध स्थापित करे तो वह पुरुष उस स्त्री की और आकर्षित होता है | यदि दोनों की आपस में यह स्थिति हो तो उनको मिलाने से कोई नहीं रोक सकता है | इसी प्रकार लग्न , सूर्य , चन्द्रमा , मंगल , शुक्र और गुरु एक दुसरे से कैन्द्र त्रिकोण ग्याहरवे हो तो स्त्री पुरुष में आपस में प्रबल आकर्षण होता है |

विवाह को  पूर्ण सुखी  बनाने के लिए कुंडली मिलान के लिए निम्न लिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:—

१-लड़के का विवाह आयु के विषम वर्षों में हो और लड़की का सम में.

२-दोनों कुण्डलियाँ  सही हैं या नहीं देख लेना चाहिए.

३-दोनों कुंडलियों क़ी अलग-२ स्वतंत्र रूप से भी जांच कर लेनी चाहिए .मसलन:
(क) होने वाली पत्नी जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता दिलाने वाली हो  (धर्म,अर्थ,काम ,मोक्ष).
(ख) दोनों के स्वभाव में लचीलापन, सहिस्नुता, विश्वास, सत्य वादिता, क्षमा शीलता, किसी भी स्थिति में एक दूसरे के साथ निर्वाह करने क़ी क्षमता .एक दूसरे का आदर और सम्मान ,धन धान्य,  आयु  ,संतति ,आदि के बारे में बिचार कर लेना चाहिए …
—————————————————
सामान्य विवाह हेतु कुंडली मिलान -अष्टकूट गुण मिलान—

कुंडली मिलान एक बहुत कठिन और जटिल कार्य है इसमें ज्योतिषी को बहुत समय लगाना पड़ता है. दोनों की  कुंडलियों के मिलान के लिए इन आठ बातों का ध्यान रखा जाता है:

१. वर्ण 
२. वश्य 
३. तारा 
४ योनी 
५. गृह मैत्री 
६-गण
७. भकूट 
८. नाडी 

इन आठों के कुल ३६ गुण होते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य दो कुंडलियों की जाँच कर यह पता लगाना की लड़का और लड़की एक दूसरे के लिए उपयुक्त  हैं या नहीं. इसके अनुसार:—

३६ में से २७ गुण मिलते हों तो उत्तम
२५ हैं तो अच्छा 
और कम से कम १८ भी मिलते हैं तो विवाह हो सकता है यदि बाकी और बातें ठीक हैं तो.

इन आठ बिन्दुओं को जन्म नक्षत्र से देखा जाता है.

१. वर्ण  मिलान: —-

३६ में से १ पॉइंट मिलता है, यदि दोनों में सही है. यह दोनों के अध्यात्मिक विकास के लिए देखा जाता है. लड़की का वर्ण लड़के के वर्ण से नीचे का ही होना चाहिए वर्ना पति के लिए अशुभ और जानलेवा भी हो सकता है.

२. वश्य-मिलान: —

३६ में से २ गुण प्राप्त होते है लड़के की राशि ऐसी हो की लड़की को वश में रखे,तो अच्छा मिलान कहलाता  है.
 
३. तारा मिलान: —

३६ में से ३ पॉइंट. दोनों एक दूसरे के लिए कितने शुभ और अशुभ हैं.

४. योनि मिलान: —

३६ में से ४ गुण , यौन संबंधों के लिए ,देखा जाता है जो कि सुखी   वैवाहिक जीवन का आधार है.

५. ग्रह  मैत्री मिलान: —-

३६ में से ५, दोनों के स्वभाव, रुचियाँ, विचारधारा में कितना मेल हैं यह चन्द्र राशि  पर आधारित होता है. ग्रह-मैत्री  का विवाह के लिए बड़ा महत्व है.

६. गण- मैत्री मिलान: —

३६ में से ६ पॉइंट, जनम- कुंडली में चन्द्र- नक्षत्र के आधार पर  गणना की जाती है. यह क्षत्रियों  के लिए विशेष  रूप से अनिवार्य  विन्दु है. देव, मनुष्य और राक्षस तीन गण, ठीक से मैच नहीं होने से गृहस्थ जीवन में झगडे और रिश्ते में  तालमेल का अभाव रहता  है. 

७. भकूट मिलान:—-

३६ में से ७ पॉइंट, दोनों की कुंडली में चन्द्रमा  की एक दूसरे से स्थिति  कहाँ पर है देखा  जाता है. इससे दोनों का एक दूसरे पर विश्वास,स्वास्थ्य, खुशियाँ धन धान्य, और आयु ,आदि  की  गणना की जाती है.

८. नाडी -मिलान: —-

३६ में से ८  पॉइंट्स, सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है कुंडली मिलान के लिए. तीन नाड़ियाँ, चन्द्र नक्षत्रों के आधार पर  वर्गीकरण (आदि, मध्य और अन्त्य). शारीरिक शक्ति, स्वभाव, स्वास्थ्य, इससे जाँचा जाता है. कहा जाता है कि वर -वधु की एक ही नाडी होने से संतानोत्पत्ति में परेशानी होती है.

इन ८ गुणों के अलावा भी कई और तरीकों से भी कुंडलियों कि जांच कि जाती है जैसे कि:

१. कुंडली में  मांगलिक- दोष  होना ,यदि है तो निवारण हो सकता है या नहीं ? 
२. लड़की क़ी कुंडली में बृहस्पति क़ी क्या स्थिति है. लड़के क़ी कुंडली में शुक्र क़ी  स्थिति.
३. चन्द्र , सूर्य क़ी स्थिति.
४. कोई अन्य दोष तो नहीं?
५. वेध.
६. इसके अलावा कई तरीके से और गहरे में जा कर कुंडलियों का अध्ययन किया जाता है , और इस तरह से सर्वश्रेष्ठ
   मिलान वाली कुंडलियों को स्वीकृति मिल जाती है  और उपयुक्त मुहूर्त देख कर विवाह संपन कराया जाता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here