नाड़ी दोष में नहीं होने चाहिए विवाह कुंडली ही नहीं, रक्त परीक्षण भी जरूरी
नौ नक्षत्रों की एक नाड़ी होती है। जो इस प्रकार है—
आद्य नाड़ी: अश्विनी, आद्राü, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाप्रपद।
मध्य नाड़ी: भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तराभाद्रपद
अन्त्य नाड़ी: कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।
ऐसी लोकचर्चा है कि वर कन्या की नाड़ी एक हो तो पारिवारिक जीवन में अनेक बाधाएं आती हैं और संबंधों के टूटने की आशंका या भय मन में व्याप्त रहता है. कहते हैं कि यह दोष हो तो संतान प्राप्ति में विलंब या कष्ट होता है, पति-पत्नी में परस्पर ईर्ष्या रहती है और दोनों में परस्पर वैचारिक मतभेद रहता है. नब्बे प्रतिशत लोगों का एक नाड़ी होने पर ब्लड ग्रुप समान और आर एच फैक्टर अलग होता है यानि एक का पॉजिटिव तो दूसरे का ऋण होता है. हो सकता है इसलिए भी संतान प्राप्ति में विलंब या कष्ट होता है.
नाड़ी तीन हैं-आदि, मध्य और अन्त्य. ये तीनों क्रमश: ब्रह्मा विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करती हैं.
यही नाड़ी मानव शरीर की संचरना की जीवनगति को आगे बढ़ाने का मूलाधार है. सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी और ब्रह्म नाड़ी जिसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा के नाम से भी जानते हैं.
कालपुरुष की कुंडली की संरचना बारह राशियों, बारह भावों, सत्ताइस नक्षत्रों तथा सूर्यादि नवग्रहों पर निर्भर है. मानव शरीर में नाड़ी का स्थान सहस्रार चक्र के मार्ग पर होता है. इड़ा, पिंगला, और सुसुम्णा हमारे मन मस्तिष्क और सोच का प्रतिनिधित्व करती है. यही सोच और वंशवृद्धि का द्योतक नाड़ी हमारे दांपत्य जीवन का आधार स्तंभ है.
यदि एक नक्षत्र के एक ही चरण में वर कन्या का जन्म हुआ हो तो नाड़ी दोष का परिहार संभव नहीं है. देवर्षि नारद ने भी कहा है-वरकन्या की नाड़ी एक ही हो तो वह विवाह वर्जनीय है. भले ही उसमें सारे गुण हों, क्योंकि ऐसा करने से तो पति-पत्नी के स्वास्थ्य और जीवन के लिए संकट की आशंका उत्पन्न हो जाती है.
गण-
यदि पुरुष व महिला में थैलीसीमिया माइनर रूप में है तो भविष्य में उनकी होने वाली संतान मेजर थैलीसीमिया से पीड़ित होगी। वहीं यदि पुरुष में थैलीसीमिया मेजर है तो पैदा होने वाली बेटी माइनर थैलीसीमिया से ग्रसित होगी। वहीं बेटे में थैलीसीमिया मेजर होगा, इसलिए कपल्स को विवाह पूर्व थैलीसीमिया की जाँच भी आवश्यक रूप से करानी चाहिए। इसके लिए इलेक्ट्रॉफोरोसिस टेस्ट होता है, जिससे थैलीसीमिया के बारे में पता चलता है।
एचआईवी, थैलीसीमिया, हैपेटाइटिस, कलर ब्लाइंडनेस, एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस आदि की शिकायत महिला व पुरुषों में होने पर उनके आनुवांशिक कारक पैदा होने वाले बच्चों में चले जाते हैं, जो कि वंशानुगत होने के कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना प्रभाव डालते हैं। इसके लिए चिकित्सकीय परामर्श लेना बहुत जरूरी है।
यदि हमें अपने भविष्य की बेल को हरा-भरा रखना है तो किसी जैनेटिक विशेषज्ञ से परामर्श लेकर इन बीमारियों की जाँच करा लेना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में वर-कन्या की यदि नाड़ी एक ही है तो भविष्य में संतानोत्पत्ति में बाधा हो सकती है। नाड़ी आदि, मध्य व अंत तीन प्रकार की होती है, इसलिए समाज में लोग नाड़ी दोष को बहुत मानते हैं, साथ ही संगोत्रीय विवाह भी हमारे हिंदू रीति-रिवाजों में नहीं होता। इसमें वर, कन्या व दोनों के मामा का गोत्र स्पष्ट रूप से मिलाया जाता है, ताकि आगे कोई परेशानी न आए। संगोत्रीय विवाह को कराने के लिए कर्मकांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है।
इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है। वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।
नाड़ी दोष हो तो महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इससे दांपत्य जीवन में आ रहे सारे दोष समाप्त हो जाते हैं.
लेकिन हमारे अनुभवानुसार कन्या की यदि राशि एक ही हो, नक्षत्र एक ही हो, चरण भी एक ही हो तो ऐसे नाड़ी दोष से युक्त वर-कन्या को विवाह वर्जित कहना चाहिए. वरना दोनों को कष्ट या परस्पर वियोग का कष्ट झेलना पड़ सकता है. दोनों का नक्षत्र पाद चरण कभी भी एक नहीं होना चाहिए. नाड़ी दोष विचार में बड़ी सूक्ष्मता और गंभीरता की आवश्यकता है और कुण्डली मिलान में नाड़ी दोष को हल्के नहीं लेना चाहिए.
ज्योतिषाचार्यों ने भी अपना वैज्ञानिक पक्ष रखते हुए कहा कि विवाह के लिए वर-कन्या यदि एक ही रक्त समूह के होंगे तो संतानोत्पत्ति में बाधा आ सकती है। कर्मकांडों में नाड़ी दोषों वाले विवाह को सर्वथा वर्जित माना गया है।
चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर पॉजिटिव हो व लड़की का आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्त परीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है।
निम्न परिस्थितियों में नाड़ी दोष परिहार स्वत: ही हो जाता है। अत: समान नाड़ी होने पर भी विवाह शुभ होता है।
– एक ही नक्षत्र हो परंतु चरण भिन्न हों उदाहरण वर-ईश्वर (कृतिका द्वितीय), वधू उमा (कृतिका तृतीया) दोनों की अंत्य नाड़ी है। परंतु कृतिका नक्षत्र के चरण भिन्नता के कारण शुभ है।
– एक नक्षत्र हो परंतु राशि भिन्न हो जैसे वर अनिल- कृतिका- प्रथम (मेष) तथा वधू इमरती- कृतिका- द्वितीय (वृष राशि)। दोनों की अन्त्य नाड़ी है परंतु राशि भिन्नता के कारण शुभ है।
– एक राशि हो परंतु नक्षत्र भिन्न हों। यह निम्न नक्षत्रों में होगा।
आद्य नाड़ी: वर- आद्राü (मिथुन), वधू- पुनर्वसु, प्रथम, तृतीय, तृतीय चरण (मिथुन)
वर- उत्तरा फाल्गुनी (कन्या)- वधू- हस्त (कन्या राशि)
वर- शतभिषा (कुंभ)- वधू- पूर्वाभाद्रपद प्रथम, द्वितीय,
तृतीय (कुंभ)—-
अन्त्य नाड़ी: वर- कृतिका- प्रथम, तृतीय, चतुर्थ (वृष)- वधू- रोहिणी (वृष) वर- स्वाति (तुला)- वधू-विशाखा- प्रथम, द्वितीय, तृतीय (तुला) वर- उत्तराषाढ़ा- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ (मकर)- वधू-
श्रवण (मकर) —-
उक्त परिहारों में यह ध्यान रखें कि वधू की जन्म राशि, नक्षत्र तथा नक्षत्र चरण, वर की राशि, नक्षत्र व चरण से पहले नहीं होने चाहिए। अन्यथा नाड़ी दोष परिहार होते हुए भी शुभ नहीं होगा। उदाहरण देखें-
वर- कृतिका- प्रथम (मेष), वधू- कृतिका द्वितीय (वृष राशि)-
शुभ वर- कृतिका- द्वितीय (वृष), वधू-कृतिका- प्रथम
(मेष राशि)- अशुभ
पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा (Pranpratishta)तथा महामृत्युञ्जय (Mrtunjai)
जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
कुण्डली और गुण मिलान—-
उपरोक्त बातों की जांच पड़ताल करने के बाद वर और वधू की कुण्डली मिलान (Birth Chart Matching) कराना चाहिए.कुण्डली मिलान करते समय जन्म कुण्डली की सत्यता पर भी ध्यान देना चाहिए.मेलापक में 36 गुणों में से कम से कम 18 गुण मिलना शुभ होता है.मेलपाक में 18 गुण होने पर इस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गण मैत्री और नाड़ी दोष नहीं हो.वर वधू की राशि का मिलान भी करना चाहिए.राशि मिलान के अनुसार वर और कन्या क्रमश: अग्नि एवं वायु तत्व तथा भूमि एवं जल तत्व के होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बना रहता है.
मेलापक में राशि विचार —-
वर और कन्या की राशियों के बीच तालमेल का वैवाहिक जीवन पर काफी असर होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है.ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो.
वर और कन्या की राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है.अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
कुण्डली में दोष विचार—-
विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग , व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.