क्या होगा भविष्यवाणियों के अनुसार …2 में..???
आज मानव समाज को (मै) शब्द के दोष ने पूर्ण रूप से जकड़ा हुआ है जो की हमारे मन को बाहरी इन्द्रियों से जकड़े हुए हैं. वह अपने आप को इश्वर से भी शक्तिशाली मन रहे है और इश्वर के बनाये हुए नियम और कानून से खुलेआम खिलवाड़ कर रहा है .. जिसका पतन निश्चय है –
जिस तरह जन्म और मृत्यु जीवन का सत्य है , उसी प्रकार आशा और आशंका हमारे मन मस्तिष्क के सत्य हैं। जिस तरह गर्भ में एक नन्हीं सी जान के आते ही नौ महीने हमारे अंदर आशा का संचार होता रहता है , वैसे ही किसी बीमारी या अन्य किसी परिस्थिति में बुरी आशंका भी हमारा पीछा नहीं छोडती। मन मस्तिष्क में आशा के संचार के लिए हमारे सामने उतने बहाने नहीं होते , पर आशंका के लिए हम पुख्ता सबूत तक जुटा लेते हैं। कुछ दिनों से लगातार 2012 दिसम्बर के बारे में विभिन्न स्रोतो से भयावह प्रस्तुतियां की जा रही हैं। इससे भयभीत या फिर जिज्ञासु पाठक एक माह से मुझसे इस विषय पर लिखने को कह रहे हैं , पर दूसरे कार्यो में व्यस्तता की वजह से इतने दिन बाद आज मौका मिला है।
विगत कुछ समय से यह बहस का विषय बन गया है कि क्या 21 या 2. दिसम्बर, 2012 को दुनिया समाप्त हो जायेगी। पृथ्वी की आयु समाप्त हो जायेगी या प्रलय हो जायेगी? इस पर भिन्न-भिन्न मत हैं। अनेक प्रकार के भ्रम हैं। वस्तुत: इस बहस को दो तर्कों के आधार पर हवा दी जा रही है जिनमें एक है माया सभ्यता (ई.पू. 3500-900) का माया कैलेण्डर तथा दूसरा है माइकेल द नास्त्रेदम (1503-1566) की भविष्यवाणी। वैसे इस बहस को सबसे अधिक हवा दी है इण्टरनेट तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने।
हिस्ट्री चैनल ने अपने प्रसारण में कहा कि सूर्य 2012 में अपने मूल पथ से विचलित होकर 300 ऊपर आकाश गंगा के दक्षिण स्थित मृत्यु राशि—डार्क रिफ्ट (काला घेरा) को स्पर्श करेगा और पुन: अपनी मूल राशि में नहीं लौटेगा। इससे सृष्टि विनाश की आशंका है, क्योंकि यह एक अनहोनी घटना होगी। 26 मई, 2009 को इंडिया टीवी ने अपने एक प्रसारण में बताया कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व अमेरिका में रहने वाली माया सभ्यता की एक ऐसी गुफा खोजी गयी है, जिसमें अनेक नरमुण्ड, कंकाल तथा भविष्यवाणी की एक पुस्तक मिली है, जिसके अनुसार 23 दिसंबर 2012 को विश्व में प्रलय हो जाएगी और अधिकांश सभ्यता नष्ट हो जायेगी।
उल्लेख्य है कि दक्षिणी अमेरिका, मैक्सिको आदि में ईसा पूर्व 3500 से ईसा पूर्र्व 900 तक माया सभ्यता का अस्तित्व रहा। इसके एक शासक स्मॉक स्क्वाड्रल के शासन काल में उनके रणनीतिकार टपोरी ने हजारों वर्षों का एक कैलेण्डर बनाया, जिसे माया कैलेण्डर कहा गया। कहते हैं कि इस कैलेण्डर का निर्माण टपोरी ने तब किया जब वह एक अपराध के कारण सुनसान द्वीप मैनान्ली पर निर्वासित कर दिया गया था। वहां उसने 5125 साल के इस कैलेण्डर को बनाया जिसमें 21 दिसंबर, 2012 तक ही अंतिम तिथि है। कहते हैं यहां तक कैलेण्डर बनाने के पश्चात टपोरी उस द्वीप से किसी तरह पलायन कर गया। प्रसङ्गïवश इस कैलेण्डर में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि इस तिथि के बाद दुनिया समाप्त हो जायेगी अपितु बाद की तिथि की गणना न होने से उस दिन कैलेण्डर की मियाद समाप्त हो रही है। अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार भी इस दिन माया कैलेण्डर की मियाद समाप्त हो रही है, जिसके ठीक बाद एक नया चक्र प्रारम्भ होगा और यही कैलेण्डर पुन: जारी हो जायेगा।
आखिर इस विषय पर विभिन्न विचारकों की क्या दलील है , इसे जानने के लिए मैने 25 नवम्बर को गूगलिंग की , इस विषय पर आठ दस विंडो खुले हुए थे और 12 बजकर पांच मिनट रात्रि मैं इसके अध्ययन में तल्लीन थी कि अचानक हमारे यहां भूकम्प का एक तेज झटका आया , दूसरी मंजिल पर होने के बावजूद मैं हिल गयी। पर झारखंड भूकम्प का क्षेत्र नहीं , पच्चीस पच्चास वर्षों बाद यहां कभी भूकम्प आता हो। मैं तो सोंच में पड गयी , इस प्रकार के लेखों को पढने के कारण शायद मुझे ऐसा भ्रम हुआ हो , पर जब अपने कमरे में पढ रहे मेरे बेटे ने आकर कहा कि वह बेड पर बिल्कुल डोल रहा था , तब ही मुझे तसल्ली हुई। फिर कुछ ही देर में इससे संबंधित जानकारी लेने के बाद मैंने कंप्यूटर बंद कर दिया। किसी समाचार से कोई जानकारी नहीं मिली , पर सुबह बोकारो के सारे लोगों ने पुष्टि की कि वास्तव में रात में भूकम्प आया था।
इन सभी भविष्यवाणियों के चलते आओ हम जानते हैं कि धर्म, विज्ञान और ज्योतिष की धारणा इस संबंध में क्या कहती है।
१-१-२०१२ से २१-१२-२०१२ तक ऐसी कई भविष्यवानियाँ हैं जिन्हें कई विशेषज्ञों के अनुसार साल २०१२ में घटित होनी है आइये डाले उन पर अक नजर .जो यह बताती हैं की अंत समय में, या बदलाव के समय, मनुष्य के पतन होगा; मनुष्य अपने को शक्तिशाली और सम्पूर्ण महसूस करेगा, और दिव्यता को भूल जाएगा (जो हमारे विज्ञानं और राजनीति के साथ हो रहा है.)
१- नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी : नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार नास्त्रेदमस ने प्रलय के बारे में बहुत स्पष्ट लिखा है कि मैं देख रहा हूं कि आग का एक गोला पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है जो धरती से मानव की विलुप्ति का कारण बन सकता है। ऐसा कब होगा इसके बारे में स्पष्ट नहीं, लेकिन ज्यादातर जानकार 2012 को ऐसा होने की घोषणा करते हैं।
ऐसा तब होगा जबकि तृतीय विश्व युद्ध चल रहा होगा तब आकाश से एक उल्का पिंड हिंद महासागर में गिरेगा और समुद्र का सारा पानी धरती पर फैल जाएगा जिसके कारण धरती के अधिकांश राष्ट्र डूब जाएंगे या यह भी हो सकता है कि इस भयानक टक्कर के कारण धरती अपनी धूरी से ही हट जाए और अंधकार में समा जाए। 21 दिसम्बर 2012 … यही वह दिन है , जिसके बारे में भयानक प्राकृतिक आपदा के उपस्थित होने की आशंका बन रही है ।
क्या उस दिन सचमुच महाविनाश तो नहीं ….?
२- 2012 में दुनिया में महाविनाश होने के माया कैलेण्डर का डर क्या होगा…? माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है।
3- नासा की चेतावनी : नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि 2012 में धरती पर भयानक तबाही आने वाली है। वैज्ञानिकों ने पिछले साल अगस्त में सूरज में कुछ अजीबोगरीब हलचल देखी। नासा के उपग्रहों से रिकॉर्ड करने के बाद वैज्ञानिकों ने आग के बादलों से धरती पर भयानक तबाही की चेतावनी दी। नासा मानता है कि आग की ये लपटें सूरज की सतह पर हो रहे चुंबकीय विस्फोटों की वजह से पैदा हुए लावे का ये तूफान धरती की तरफ रुख कर चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये तूफान कभी भी धरती से टकरा सकता है।
४-हिन्दू धर्म : प्रलय के संबंध में हिंदू धर्म की धारणा मूल रूप से वेदों से प्रेरित है। प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना। प्रलय चार प्रकार की होती है- नित्य, नैमित्तिक, द्विपार्थ और प्राकृत। प्राकृत ही महाप्रलय है, जो कल्प के अंत में होगी। एक कल्प में कई युग होते हैं। यह युग के अंत में प्राकृत प्रलय को छोड़कर कोई सी भी प्रलय होती है। हिन्दू धर्म मानता है कि जो जन्मा है वह मरेगा। सभी की उम्र निश्चित है फिर चाहे वह सूर्य हो या अन्य ग्रह।
5-ईसाई धर्म : बाइबिल के जानकारों का मानना है कि प्रभु यीशु का पुन: अवतरण होने वाला है, लेकिन इसके पहले दुनिया का खतम होना तय है और वह दिन बहुत ही निकट है। बस कुछ लोग ही बच जाएंगे। इस दिन प्रभु न्याय करेगा। कुछ ईसाई जानकारों के अनुसार प्रलय 2012 के आसपास ही कही गई है। बाइबिल का वर्षों तक अध्ययन करने के बाद हेराल्ड कैंपिन ने कहा है कि प्रलय का दिन 21 मई 2011 है।
6- इस्लाम : इस्लाम में भी प्रलय का दिन माना जाता है, जिसे कयामत कहा गया है। इसके अनुसार अल्लाह एक दिन संसार को समाप्त कर देगा। यह दिन कब आएगा यह केवल अल्लाह ही जानता है। इस्लाम के अनुसार शारीरिक रूप से सभी मरे हुए लोग उस दिन जी उठेंगे और उस दिन हर मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिया जाएगा। इस्लाम के अनुसार प्रलय के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी।
दिसम्बर 2012 … यही वह दिन है , जिसके बारे में भयानक प्राकृतिक आपदा के उपस्थित होने की आशंका बन रही है । आखिर क्या कह रहे हैं , उस दिन के ग्रह नक्षत्र । यह जानने के लिए मैने अपने सॉफ्टवेयर में विवरण डाला , पर परिणाम देखकर चौंक पडी , जिन ग्रहों को आसमान के 360 डिग्री में रहना चाहिए था , वे 500 डिग्री तक में दिख रहे थे। ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के अनुसार जिन ग्रहों की जिन शक्तियों के पूर्ण मार्क्स 100 दिए जाने थे , वे 200 यहां तक कि 400 दिखा रहे थे। यह किस चक्कर में पड गयी मैं , मैं तो एक बार फिर से भयभीत हो गयी , क्या उस दिन सचमुच कुछ उल्टा होनेवाला तो नहीं । पर जब प्रोग्राम के अंदर देखने की चेष्टा की , तो समझ में आया कि ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ के सिद्धांतों पर आधारित इस सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग मैने 2010 तक के लिए ही की थी और 2012 के दिसम्बर की गणना की वजह से यह परेशानी आ रही थी।
अब इतनी जल्दी सॉफ्टवेयर को ठीक कर पाना संभव न था , आलेख को लिखने की हडबडी भी थी , मैन्युली काम करना ही पडेगा , फार्मूले को किसी डायरी से ढूंढकर उतना गणना करना आसान तो न था , पर संयोग अच्छा था कि पिताजी बोकारो आए हुए थे , उनकी अपनी शोध , अपना फार्मूला , अपने नियम , उन्होने फटाफट सारे ग्रहों की सब गणना कर डाली। बस उसके बाद उन्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं थी। उनके सिद्धांतों के आधार पर हर क्षेत्र का रिसर्च और उससे संबंधित भविष्यवाणियां करने की जबाबदेही मुझ पर ही है। पूरे जीवन की मेहनत के बाद उत्साह बढाने वाली भी कोई बात हो , तभी तो इतनी उम्र में वे पुन: मेहनत कर सकते थे। लेकिन सारी गणना करने के बाद क्या निकला परिणाम , इसे जानने के लिए आपको अगली कडी का इंतजार करते हुए एक बार आप सभी पाठकों को और तकलीफ करनी पडेगी।
2012 दिसंबर को दुनिया के समाप्त होने के पक्ष में जो सबसे बडी दलील दी जा रही है , वो इस वक्त माया कैलेण्डर का समाप्त होना है। माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , इस सभ्यता के कुछ अवशेष खोजकर्ताओं ने भी ढूंढे हैं। माना जाता है कि माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है।
वैसे तो माया कैलेण्डर के आधार के बारे में मुझे पूरी पूरी जानकारी नहीं , फिर भी माया कलेंडर में एक साथ दो दो साल , पहला 260 दिनों का और दूसरा 365 दिनों के चलते थे। मैं समझती हूं कि 365 दिन का साल तो निश्चित तौर पर सौर गति पर आधारित होता होगा , जबकि 260 दिनों का साल संभवत: 9 चंद्रमास का होता हो। इस तरह इसके 4 चंद्रवर्ष पूरे होने पर 3 सौरवर्ष ही पूरे होते होंगे , जिसका सटीक तालमेल करते हुए वर्ष के आकलन के साथ ही साथ ग्रह नक्षत्रों और सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण तक के आकलन का उन्हें विशिष्ट ज्ञान था। इससे उनके गणित ज्योतिष के विशेषज्ञ होने का पता तो चजता है , पर फलित ज्योतिष की विशेषज्ञता की पुष्टि नहीं होती है। कोर्नल विश्वविद्यालय में खगोलविद ऐन मार्टिन का भी कहना है कि माया कैलेंडर का डिजायन आवर्ती है। ऐसे में कहना कि दीर्घ गणना दिसंबर2012 को समाप्त हो रही है, सही नहीं है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हमारी सभ्यता ने नई सहस्त्राब्दी का स्वागत किया था। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि माया कैलेण्डर के वर्ष का समाप्त होना बिल्कुल सामान्य घटना है।
हिस्ट्री चैनल ने जो सूर्य के विचलन एवं मृत्युराशि—डार्क रिफ्ट— की बात कही है यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। नक्षत्र वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक 72 वर्ष के अंतराल पर सौर प्रणाली में एक डिगरी का विचलन होता है तथा 2160 साल में यह विचलन 300 हो जाता है जब सूर्य अपने पथ से विचलित होकर 300 ऊपर आकाश गंगा के मार्ग में आ जाता है और वह उसके दक्षिण स्थित डार्क रिफ्ट को स्पर्श करता है। इस स्पर्श से किसी एक राशि के जीवन काल की समाप्ति होती है और यही 2160 वर्ष एक राशि के समाप्त होने का एक चक्र होता है। इस समय प्रात: बेला में आकाश में तारामण्डल साफ-साफ दिखायी देता है। नक्षत्र वैज्ञानिकों के अनुसार 21 दिसंबर, 2012 को प्रात: 11 बजकर 12 मिनट पर सूर्य डार्क रिफ्ट को स्पर्श करेगा। भौतिक शास्त्रियों के अनुसार कुल 12 राशियों के समाप्त होने में लगभग 26000 वर्ष लगते हैं जब सूर्य के पूर्ण विचलन का एक चक्र सम्पूर्ण होता है, एवं सूर्य 3600 विचलित होते-होते पुन: पूर्व स्थिति में आ जाता है।
हिन्दू दर्शन तथा आध्यात्मिक चिन्तन के अनुसार जगत में प्रलय की घटना निरन्तर होती रहती है। हिंदू धर्मग्रन्थों में चार प्रकार के प्रलय का उल्लेख मिलता है। नित्य, नैमित्तिक (या महाप्रलय), प्राकृतिक एवं आत्यन्तिक। क्षण-प्रतिक्षण का परिवर्तन नित्य है, त्रैलोक्य एवं सृष्टि का विलय नैमित्तिक हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एवं तत्वों का प्रकृति में विलय प्राकृतिक है। जीव का आत्मारूप होना आत्यन्तिक प्रलय कहलाता है। इस तरह सम्पूर्ण सृष्टि को समाप्त करने वाला महाप्रलय प्रत्येक कल्प के अंत में होता है। हिंदू दर्शन एवं अध्यात्म में चार युग माने गये हैं। चार युगों को महायुग कहते हैं जिसकी आयु सूर्यसिद्धधान्त के अनुसार 43.20 लाख वर्ष है; 71 महायुग का एक मन्वन्तर; 14 मन्वन्तर का एक कल्प होता है इस कल्प की समाप्ति पर ही महाप्रलय होता है। वर्तमान चल रहे कलियुग का प्रारम्भ ईसा पूर्व 3012 की 20 फरवरी को हुआ था और अभी तक इसे आये 5212 वर्ष पूर्ण होने वाले हैं जबकि कलियुग की आयु 4.32 लाख वर्ष है। अत: हिन्दू दर्शन की मान्यतानुसार 2012 में महाप्रलय की कोई संभावना ही नहीं है।
हम सभी जानते हैं कि घडी या कैलेण्डर समय को याद रखने का एक माध्यम भर है , यह अपने में बिल्कुल तटस्थ है और हरेक व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार इसका उपयोग करना होता है। न तो किसी प्रकार की खुशी और न ही किसी प्रकार के गम से इसका कोई लेना देना होता है। अपनी सुविधा के लिए हम घडी और कैलेण्डर की तरह अन्य साधनों का निर्माण करते हैं। किसी न किसी दिन सबका अंत होना ही है , कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग 2000 तक के लिए की गयी थी। 2000 के एक दो वर्ष पूर्व से ही इस बात को लेकर हंगामा मचा हुआ था कि Y2K की समस्या के कारण हमारे सारे कंप्यूटर बेकार हो जाएंगे , पर ऐसा नहीं हुआ। उस समस्या को दूर किया गया और आज भी हम उसका उपयोग कर रहे हैं। पिछले लेख में आपने पढा कि 2010 तक ही अपने सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग किए होने से 2012 दिसंबर की ग्रहीय गणना में मेरे समक्ष भी बाधा आयी। अब यदि इस मध्य मैं दुनिया में न होती , तो मेरे किसी शिष्य के द्वारा इस बात का भयावह अर्थ लगाना भी संभव था। किसी असामान्य परिस्थिति में इस प्रकार का भ्रम पैदा हो जाना बिल्कुल स्वाभाविक है , पर हर वक्त हमें अपने विवेक से काम लेना चाहिए।
दिसंबर 2012 में पृथ्वी पर प्रलय आने की संभावना को प्रमाणित करते एक दो नहीं , बहुत सारे सुबूत जुटाए गए हैं। माया कैलेण्डर के समाप्त होने से युग बदजता है , इस मान्यता को मान भी लिया जाए तो यह सिद्ध नहीं होता कि युग बदलने के लिए इस दुनिया का नष्ट होना आवश्यक है। दुनिया के नष्ट होने की संभावना में एक बडी बात यह भी आ रही है कि ऐसा संभवतः पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव बदलने के कारण होगा। वास्तव में हमलोग सूर्य की सिर्फ दैनिक और वार्षिक गति के बारे में जानते हैं , जबकि इसके अलावे भी सूर्य की कई गतियां हैं। सूर्य की तीसरी गति के अनुसार पृथ्वी क्रमश: अपनी धुरी पर भी झुकते हुए घूमती रहती है, इस समय पृथ्वी की धुरी सीधे ध्रुव तारे पर है इसलिये ध्रुवतारा हमको घूमता नहीं दिखाई पड़ता है। इस तरह हजारों साल पहले और हजारों साल बाद हमारा ध्रुव तारा परिवर्तित होता रहता है। धीरे धीरे ही सही , झुकते हुए पृथ्वी २५७०० साल में एक बार पूरा घूम जाती है।पर यह अचानक एक दिन में नहीं होता , जैसा भय लोगों को दिखाया जा रहा है। जिस तरह धरती की धुरी पलटने की बात की जा रही है, पर नासा के प्रमुख वैज्ञानिक और ‘आस्क द एस्ट्रोबायलॉजिस्ट’ के चीफ डॉ. डेविड मॉरिसन का कहना है कि ऐसा कभी न तो हुआ है, न ही भविष्य में कभी होगा।
इंटरनेट पर बिना नाम पते वाले कुछ वैज्ञानिकों के हवाले से लिखा जा रहा है कि प्लेनेट एक्स निबिरू नाम का एक ग्रह दिसंबर 2012 में धरती के काफी करीब से गुजरेगा। पर नासा का कहना है कि प्लेनेट एक्स निबिरू नाम के जिस ग्रह की 2012 दिसंबर को धरती से टकराने की बात की जा रही है, उसका कहीं अस्तित्व ही नहीं है। जबकि ये वैज्ञानिक कहते हैं कि यह टक्कर वैसी ही होगी, जैसी उस वक्त हुई थी , जब पृथ्वी से डायनासोर का नामोनिशान मिट गया था। आश्चर्य है , ये वैज्ञानिक डायनासोर का नोमोनिशान मिटने के सटीक कारण भी वे जानते हैं। अब यह कैसा टक्कर था , जो सिर्फ डायनोसोर का ही , और वो भी समूल नाश कर सका। अपने एक वक्तव्य में नासा ने यह स्वीकारा है कि इस समय एक ही लघुग्रह है, एरिस, जो सौरमंडल की बाहरी सीमा के पास की कुइपियर बेल्ट में पड़ता है और आज से 147 साल बाद 2257(ये हिसाब भी मेरी समझ में नहीं आ रहा) में पृथ्वी के कुछ निकट आएगा, तब भी उससे छह अरब चालीस करोड़ किलोमीटर दूर से निकल जाएगा। अब ऐसी स्थिति में दिसंबर 2012 में ऐसी संभावना की बात भी सही नहीं लगती।
2012 दिसंबर को दुनिया के समाप्त होने के पक्ष में जो सबसे बडी दलील दी जा रही है , वो इस वक्त माया कैलेण्डर का समाप्त होना है। माया सभ्यता 300 से 900 ई. के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी , इस सभ्यता के कुछ अवशेष खोजकर्ताओं ने भी ढूंढे हैं। माना जाता है कि माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलिंडर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। इसका कैलिंडर ई. पू. 3114 से शुरू हो रहा है, जो बक्तूनों में बंटा है। इस कैलिंडर के हिसाब से 394 साल का एक बक्तून होता है और पूरा कैलिंडर 13 बक्तूनों में बंटा है, जो 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है।
वैसे तो माया कैलेण्डर के आधार के बारे में मुझे पूरी पूरी जानकारी नहीं , फिर भी माया कलेंडर में एक साथ दो दो साल , पहला 260 दिनों का और दूसरा 365 दिनों के चलते थे। मैं समझती हूं कि 365 दिन का साल तो निश्चित तौर पर सौर गति पर आधारित होता होगा , जबकि 260 दिनों का साल संभवत: 9 चंद्रमास का होता हो। इस तरह इसके 4 चंद्रवर्ष पूरे होने पर 3 सौरवर्ष ही पूरे होते होंगे , जिसका सटीक तालमेल करते हुए वर्ष के आकलन के साथ ही साथ ग्रह नक्षत्रों और सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण तक के आकलन का उन्हें विशिष्ट ज्ञान था। इससे उनके गणित ज्योतिष के विशेषज्ञ होने का पता तो चजता है , पर फलित ज्योतिष की विशेषज्ञता की पुष्टि नहीं होती है। कोर्नल विश्वविद्यालय में खगोलविद ऐन मार्टिन का भी कहना है कि माया कैलेंडर का डिजायन आवर्ती है। ऐसे में कहना कि दीर्घ गणना दिसंबर 2012 को समाप्त हो रही है, सही नहीं है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हमारी सभ्यता ने नई सहस्त्राब्दी का स्वागत किया था। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि माया कैलेण्डर के वर्ष का समाप्त होना बिल्कुल सामान्य घटना है।
हम सभी जानते हैं कि घडी या कैलेण्डर समय को याद रखने का एक माध्यम भर है , यह अपने में बिल्कुल तटस्थ है और हरेक व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार इसका उपयोग करना होता है। न तो किसी प्रकार की खुशी और न ही किसी प्रकार के गम से इसका कोई लेना देना होता है। अपनी सुविधा के लिए हम घडी और कैलेण्डर की तरह अन्य साधनों का निर्माण करते हैं। किसी न किसी दिन सबका अंत होना ही है , कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग 2000 तक के लिए की गयी थी। 2000 के एक दो वर्ष पूर्व से ही इस बात को लेकर हंगामा मचा हुआ था कि Y2K की समस्या के कारण हमारे सारे कंप्यूटर बेकार हो जाएंगे , पर ऐसा नहीं हुआ। उस समस्या को दूर किया गया और आज भी हम उसका उपयोग कर रहे हैं। पिछले लेख में आपने पढा कि 2010 तक ही अपने सॉफ्टवेयर की प्रोग्रामिंग किए होने से 2012 दिसंबर की ग्रहीय गणना में मेरे समक्ष भी बाधा आयी। अब यदि इस मध्य मैं दुनिया में न होती , तो मेरे किसी शिष्य के द्वारा इस बात का भयावह अर्थ लगाना भी संभव था। किसी असामान्य परिस्थिति में इस प्रकार का भ्रम पैदा हो जाना बिल्कुल स्वाभाविक है , पर हर वक्त हमें अपने विवेक से काम लेना चाहिए।
नास्त्रेदम की भविष्यवाणी को सुलझाने का दावा करने वाले लोग भी 21 दिसंबर, 2012 की तारीख को महत्वपूर्ण मानते हैं, परन्तु पृथ्वी की आयु इतनी अधिक है कि इस दिन पृथ्वी के नष्टï हो जाने या प्रलय आ जाने की कोई भी संभावना नहीं है।
कुरआन में भी कयामत के दिन की चर्चा है किंतु हजरत मुहम्मद सल्ल ने कयामत के जो छह लक्षण बताये हैं, उनमें से कुछ अभी तक प्रकट नहीं हुए हैं जैसे कि अराजकता और खूनी हिंसा जिसमें अरब का कोई घर सलामत न रहे तथा दूसरा जब रोमन 80 झण्डों के साथ सैन्य शक्ति लेकर अरब पर हमला करें। अत: कुरआन के अनुसार भी अभी दुनिया समाप्त नहीं जा रही है।
न्यू टेस्टामेण्ट (बाइबिल) में पतरस की पहली पत्री 18:20 के वर्णन के अनुसार 2012 में आर्मागडेन (अंतिम युद्ध) प्रारम्भ होगा जो अच्छाई तथा बुराई के बीच संघर्ष करेगा किन्तु यह युद्ध कब समाप्त होगा इसका उल्लेख उसमें नहीं है। भले ही ईसाई इसे अंतिम युग मानते हों पर मैथ्यू 24:36 के अनुसार ‘कोई भी वह घड़ी या वह दिन समय नहीं जानता जब ईश्वर न्याय करेगा यहां तक कि स्वर्ग में रहने वाले देवदूत भी…’ तब 2012 अंतिम युग का समाप्त करने वाला कैसे हो सकता है?
कुछ इण्टरनेट एवं मीडिया चैनलों में ऐसा कहा गया कि 21 दिसम्बर, 2012 को हाल ही में खोजा गया धुंधला-अस्पष्ट- दसवां ग्रह-नीबिरू-पृथ्वी से टकरायेगा जिससे पृथ्वी का अंत हो जाएगा। कुछ छद्म वैज्ञानिकों के अनुसार इस दसवें ग्रह की खोज सुमेरियनों द्वारा की गयी और उन्होंने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा पर आरोप लगाया कि उन्होंने इस खोज की खबर को छिपाया, जबकि नासा ने इसे मिथ्या, काल्पनिक तथा इण्टरनेट द्वारा फैलाया गया झांसा कहा। एक ब्रिटिश समाचार पत्र के हवाले
से भी कहा गया कि इस दावे में कोई भी वास्तविकता नहीं है और उसमें नासा के प्रतिवाद का समर्थन किया गया है। इतना ही नहीं, कुछ वैज्ञानिक 21 या 23 दिसंबर, 2012 को सौर तूफान आने की आशङ्कïा व्यक्त कर रहे हैं जब सूर्य की तीव्रता में अचानक वृद्धि हो जायेगी परन्तु सौर तूफान आने या तीव्रता में वृद्धि का कोई माप या पैमाना अभी तक नहीं बन सका है। वैसे प्रगति प्रकाशन (मास्को) द्वारा प्रकाशित पुस्तक धरती और आकाश के अनुसार सूर्य का जन्म 10 अरब वर्ष पूर्व हुआ तथा लगभग 6 अरब वर्ष पश्चात सूर्य रक्त दानव बन जायेगा। इसके ताप में इतनी वृद्धि हो जायेगी कि निकटस्थ ग्रह पिघल कर इसके उदर में समा जायेंगे, समुद्र सूख जायेंगे, पृथ्वी राख बन जायेगी तदनन्तर 10 करोड़ वर्षों में सूर्य बौना हो जायेगा। उसका ताप समाप्त हो जायेगा और सृष्टि पुन: प्रारम्भ होगी। इस तरह 2012 में ही सूर्य की ताप तीव्रता में वृद्धि या सौर तूफान आने की कल्पना निराधार है।
कुछ वैज्ञानिक आइन्सटाइन की पोलर शिफ्ट थ्यूरी को आधार बना रहे हैं जिसके अनुसार प्रत्येक 7.50 लाख वर्ष के अंतराल पर दोनों ध्रुव अपना स्थान परिवर्तित करते हैं। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र परिवर्तित हो जाता है और वे यह अनुमान लगाते हैं कि दिसम्बर 2012 में यह घटना घटित होगी, किन्तु इसकी सम्भावना मात्र काल्पनिक ही है और इसका कोई आधार नहीं है, न ही कोई प्रामाणिक उल्लेख ही उपलब्ध होता है। दूसरी तरफ कुछ वैज्ञानिक, विशेषकर भू-वैज्ञानिक, यह कह रहे हैं कि 2012 में अमेरिका के विशाल येलोस्टोन ज्वालामुखी में विस्फोट होगा क्योंकि यह घटना प्रत्येक 6.50 लाख वर्ष में घटती होती है। किन्तु क्या कोई पूरे विश्वास के साथ यह कह सकता है कि उपर्युक्त दोनों घटनायें घटेंगी ही? यदि नहीं तो यह भी कल्पना ही कही जायेगी।
ऊपर की कल्पना को घटना बना कर 13 नवंबर, 2009 को हालीवुड की सोनी पिक्चर्स ने रोनाल्ड ऐमेरिक द्वारा निर्देशित फिल्म 2012 रिलीज की जिसमें सौर तूफान, येलोस्टोन ज्वालामुखी विस्फोट के कारण विश्व की सभ्यता एवं पृथ्वी के विनाश का चित्रण किया गया है। इस फिल्म की कथा को लेकर भी नासा ने कहा कि इसमें कोई तथ्य या सच्चाई नहीं है कि सन 2012 में ऐसी कोई घटना घटने वाली है और दुनिया समाप्त होने वाली है।
इसके अलावे सुनामी, भूकम्प, ज्वालामुखी, ग्लोबल वार्मिग, अकाल, बीमारियां, आतंकवाद, युद्ध की विभीषिका व अणु बम जैसे कारणों से भी प्रलय आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि फ्रांसीसी भविष्यवक्ता माइकल द नास्त्रेदमस ने भी 2012 में धरती के खत्म होने की भविष्यवाणी की है, पर नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी करने के आधार की मुझे कोई जानकारी नहीं कि उसकी भविष्यवाणियां ग्रहों के आधार पर थी या किसी प्रकार की सिद्धि के बाद। अभी तक घटना के घटित होने से पहले उसकी कितनी भविष्यवाणियां आ चुकी और कितने प्रतिशत सत्यता के साथ , वे तो नास्त्रेदमस के संकेतों को समझने वाले ही कुछ अधिक बता सकते हैं , इसलिए मैं इस विषय पर अधिक नहीं कहना चाहती। इसके अतिरिक्त कुछ कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा एक सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है , जो इंटरनेट के पन्नों पर नजर रखकर उससे संबंधित आंकडों को एकत्रित कर आनेवाले समय के लिए भविष्यवाणी करता है। इस विधि से की गयी भविष्यवाणी ग्रहों के आधार पर की जानेवाली भविष्यवाणियों की तरह सटीक हो ही नहीं सकती इसलिए इसको मैं लॉटरी से अधिक नहीं समझती , जिसके अंधेरे में टटोलकर निकाले गए अच्छे या बुरे परिणाम को स्वीकार करने के लिए हमें बाध्य होना पडता है।
जब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की ओर से पृथ्वी के धुर बदलने या किसी प्रकार के ग्रह के टकराने की संभावना से इंकार किया जा रहा है , तो निश्चित तौर पर प्रलय की संभावना सुनामी, भूकम्प, ज्वालामुखी, ग्लोबल वार्मिग,अकाल, बीमारियां, आतंकवाद, युद्ध की विभीषिका व अणु बम जैसी घटनाओं से ही मानी जा सकती है, जिनका कोई निश्चित चक्र न होने से उसके घटने की निश्चित तिथि की जानकारी अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं है। पिछले 40 वर्षों से‘गत्यात्मक ज्योतिष’विश्व भर में होनेवाले इन प्राकृतिक या मानवकृत बुरी घटनाओं का ग्रहीय कारण ढूंढता रहा है। बहुत जगहों पर खास ग्रह स्थिति के वक्त दुनिया में कई प्रकार की घटनाएं होती दिख जाती हैं। पर चूंकि पूरे ब्रह्मांड में पृथ्वी की स्थिति एक विंदू से अधिक नहीं , इस कारण घटना की जगह को निर्धारित करने मे हमें अभी तक कठिनाई आ रही है। वैसे इन घटनाओं की तिथियों और समय को निकालने में जिस हद तक हमें सफलता मिल रही है ,आनेवाले समय में आक्षांस और देशांतर रेखाओं की सहायता से स्थान की जानकारी भी मिल जाएगी ,इसका हमें विश्वास है।
पिछले 16 सितम्बर को मैने एक आलेख ’19 सितंबर की ग्रह स्थिति से … बचके रहना रे बाबा’शीर्षक से एक पोस्ट किया था , जिसमें एक खास ग्रह स्थिति की चर्चा करते हुए मैने लिखा था … ऐसी ही सुखद या दुखद ग्रहीय स्थिति कभी सारे संसार , पूरे देश या कोई खास ग्रुप के लिए किसी जीत या मानवीय उपलब्धि की खुशी तथा प्राकृतिक विपत्ति का कारण बनती है तो कभी प्राकृतिक आपदा , मानवकृत कृत्य या किसी हार का गम एक साथ ही सब महसूस करते हैं। आनेवाले 19 सितम्बर को 5 बजे से 9 बजे सुबह भी आकाश में ग्रहों की ऐसी ही स्थिति बन रही है , जिसका पूरी दुनिया में यत्र तत्र कुछ बुरा प्रभाव महसूस किया जा सकता है। इसका प्रभाव 18 सितम्बर और 20 सितम्बर को भी महसूस किया जा सकता है।
ठीक 20 सितंबर 2009 , रविवार के दिन समाचार पत्र में पढने को मिला कि इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में शनिवार यानि 19 सितंबर को सुबह 6.04 बजे भूकम्प के तेज झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर 6.4 की तीव्रता वाले इस भूकम्प में नौ लोग घायल हो गए और कई भवन क्षतिग्रस्त हो गए। ठीक मेरे बताए गए दिन ठीक मेरे बताए गए समय में दुनिया के किसी कोने में भी प्राकृतिक आपदा का होना उन सबों को ज्योतिष के प्रति विश्वास जगाने में अवश्य समर्थ होगा, जिनका दिमाग ज्योतिष के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो। पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त लोग उस तिथि और समय पर ध्यान न देते हुए अभी भी मुझसे यह मांग कर बैठेंगे कि आपने शहर या देश की चर्चा क्यूं नहीं की। इस प्रश्न का जबाब फिलहाल मेरे पास नहीं , जो मेरे हार मान लेने का एक बडा कारण है।
इस उदाहरण को देकर मैं ‘गत्यात्मक ज्योतिष’ की ओर आप सबों का ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूं ,ताकि आप इसकी भविष्यवाणियों पर गौर कर सके। इस सिद्धांत को समझने की कोशिश करते हुए इस टार्च के सहारे आप कुछ कार्यक्रम बना सकें। मेडिकल साइंस ने भी हड्डियों की आंतरिक स्थिति को जानने के लिए पहले एक्सरे को ढूंढा और जब उसे मान्यता मिली , उसपर खर्च हुआ , हजारो हजार लोगों ने रिसर्च करना शुरू किया , तो वे स्कैनिंग जैसी सूक्ष्म व्यवस्था तक पहुंचे , पर ज्योतिष में सबसे पहले ही सूक्ष्मतम बातों की मांग की जाती है, यही हमारे लिए अफसोस जनक है।
प्रसंगवश विगत दो शताब्दियों के दौरान विश्व के विनाश को लेकर अनेक भविष्यवाणियां की गयी किन्तु उनमें से कुछ भी नहीं घटा। उदाहरण के लिए मई 1980 में पैट राबर्टसन ने एक टीवी शो में कहा कि वह गारंटी के साथ कह रहे हैं कि 1982 के अंत तक विश्व समाप्त हो जायेगा और ईश्वर सब का न्याय करेगा जबकि बाइबिल के मैथ्यू 24:36 के अनुसार देवदूत तक यह नहीं जानते हैं। नास्त्रेदम की भविष्यवाणी को समझने के दावे करने वालों ने दावा किया कि सन 1999 के सातवें महीने में आकाश से महान शासक लोगों का न्याय करने के लिये आयेगा पर क्या वह आया? रिचर्ड नून (अमेरिकी लेखक) ने 5 मई, 2000 के लिये दावा किया था कि उस दिन भयानक तबाही मचेगी, अण्टार्कटिका में तीन मील मोटी बर्फ जमेगी, स्वर्गस्थ ग्रहनक्षत्र में उथल-पुथल होगी पर क्या यह हुआ? इतना ही नहीं, गाड्स चर्च मिनिस्टर रोनाल्ड वीनलैण्ड ने 2006 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘गाड्स फाइनल विटनेस’ में दावा किया कि 2008 के अंत तक हजारों करोड़ों लोगों की मृत्यु हो जायेगी पर यह भी दावा खोखला, भ्रांतिमूलक ही सिद्ध हुआ। इसी तरह 2012 में भी पृथ्वी विनाश की बहस का कोई आधार नहीं है।
अन्तत: पुन: हिंदू दर्शन एवं सिद्धान्त की बात रखते हुए यही कहा जा सकता है कि अभी महाप्रलय नहीं होने वाली है किन्तु विगत वर्षों में घटी सुनामी, रीटा आदि प्रलय का एक आंशिक रूप अवश्य कही जा सकती हैं परन्तु क्या इसके बाद पृथ्वी का अन्त हुआ? वह तो यथावत् है। अत: यदि 21 या 23 दिसंबर, 2012 को ऐसी ही कुछ दुर्घटना हो भी (जिसकी संभावना नगण्य या शून्य है) तो भी पृथ्वी का विनाश होने की आशङ्का निराधार ही है।
पूरे विश्व में प्रसारित 21 दिसंबर 2012 के प्रलय की संभावना के पक्ष में इतने सारे तर्क को देखते हुए इस दिन की ग्रह स्थिति का मैने गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया। उस दिन की ग्रहीय स्थिति मानव मन के बिल्कुल मनोनुकूल दिख रही है। एक बृहस्पति को छोडकर बाकी सभी ग्रह गत्यात्मक शक्ति से संपन्न दिखाई दे रहे हैं , जो जनसंख्या के बडे प्रतिशत को किसी भी प्रकार का तनाव दे पाने में असमर्थ हैं। बृहस्पति की स्थिति कमजोर होते हुए भी इतनी बुरी नहीं कि वो प्रलय की कोई भी संभावना की पुष्टि करे, उस प्रलय से बचे दस, सौ , हजार, लाख या कुछ करोड व्यक्ति दुनिया को देखकर दुखी हों। इसका कारण यह है कि सुनामी, भूकम्प, ज्वालामुखी, ग्लोबल वार्मिग,अकाल, बीमारियां, आतंकवाद, युद्ध की विभीषिका या अणु बम के लिए जबाबदेह जो भी ग्रहस्थिति हमें अभी तक दिखाई पडी, उसमें से एक भी उस दिन मौजूद नहीं है , जैसे योग में जानेवाले तो चले जाते हैं , पर जीनेवाले गम में होते हैं, और यही कारण है कि उस दिन हमें ऐसी प्रलय की भी कोई संभावना नहीं दिखती।
चाहे 2012 में दुनिया के खत्म हो जाने की भविष्यवाणी हो या दो सूरज और दो तारों के टकराने की या फिर ये 13वीं राशि की खोज को लेकर बहस, सब बकवास है। सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसी भविष्यवाणियों, ऐसी बातों पर बहस शुरू होती है। न तो 2012 में दुनिया खत्म हो रही है, न ही दो सूरज टकराने वाले हैं और न ही कोई 13वीं राशि मिल गई है।
अगले साल दुनिया खत्म हो जाने वाली भविष्यवाणी का कोई आधार नहीं, वह अफवाह है और कुछ सिरफिरे लोगों की फैलाई बातें हैं। दो सूरज या तारों के टकराने की बात भी बचकानी है। यह तो सुपरनोवा की घटना है जो वैज्ञानिक है और जिसकी तिथि के बारे में वैज्ञानिकों को भी अभी कुछ पता नहीं है।
13वीं राशि के रूप में जिस सर्पधारी को नई राशि माना जा रहा है, उसे मैं अपनी पुस्तक में सालों पहले लिख चुका है। ऐसे तारे तो अनेक हैं लेकिन राशि कहलाने की योग्यता नहीं रखते। अगर काला कौआ सफेद हो जाएगा, समुद्र में लहरें उठना बंद हो जाएंगी, मच्छर पहलवान से लड़ने लग जाएगा, सूरज पूरब के बजाए पश्चिम से निकलने लगेगा, तभी हम ऐसी भविष्यवाणियों पर विश्वास कर सकते हैं।
भारत में जिन पांच ग्रंथों के आधार पर भविष्यवाणियां की जाती हैं, वे हैं- जातक पारिजात, यवन जातक, कृष्णमूर्ति पद्धति, लघु पाराशरी और बृहद जातक। विदेशों में ज्योतिष छह तरह के संबंध मानता है। लुई मैक्नीज के अनुसार ये संबंध हैं – कनजंक्शन, ट्राइन एक्सपेक्ट, स्क्वॉयर एक्सपेक्ट, सेक्सटाइल एक्सपेक्ट, कुइंट सेक्सटाइल एक्सपेक्ट। हमारे यहां निरयन पद्धति है तो वहां सायन पद्धति। इसकी वजह से सात दिन का अंतर आ जाता है। इसकी वजह से ही दोनों जगहों की भविष्यवाणियां मूर्खतापूर्ण होती हैं। सिर्फ कृष्णमूर्ति पद्धति से ही अस्सी प्रतिशत तक परिणाम सही निकलते हैं, क्योंकि उन्होंने कालिदास के आधार को आगे बढ़ाते हुए काम किया था। कालिदास ने अपने ग्रंथ ‘पूर्व कालामृत’ और ‘उत्तर कालामृत’ में नौ नक्षत्र और बारह राशियां मिलाकर एक सौ आठ की संख्या बनाई। इस पद्धति को आगे बढ़ाकर कृष्णमूर्ति ने नक्षत्रों की संख्या सत्ताइस की। कृष्णमूर्ति को गणेश जी की सिद्धि प्राप्त थी, लेकिन उनका जो अपना बीस प्रतिशत था, उसे वह छिपा गए।
ज्योतिर्विज्ञान और आयुर्वेद, इन दोनों के विषय में अथर्वा ऋषि ने लिखा है कि यह धन कमाने की विद्या नहीं है। इसे अपने सुहृद, अपने बंधु-बांधव एवं अपने शासक-प्रशासक की रक्षा के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए। सामंती युग में हर दरबार में एक राज ज्योतिषी और राज वैद्य होता था। उसका काम था, अपने राजा की रक्षा करना। अब यह विद्या बाजार में आ गई है और बिकाऊ हो गई है। इससे धन कमाने लगे हैं। लोगों को भयभीत करने लगे हैं। इस विद्या को पढ़ने के बाद मेरी समझ में यह आया है कि अगर कुल मिलाकर गणित पक्ष सही है और आपके भीतर लोभ नहीं है, तो फलितार्थ तो यह होना चाहिए कि इतने बज कर इतने मिनट पर आपकी किताब के फलां पेज पर मक्खी बैठेगी। लेकिन ऐसा होना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि इसका आधार है- लंकोदय। वहां से सूर्य की डिग्री गिननी चाहिए। लंकोदय की खबर किसी को नहीं है। शास्त्रीय आधार लंकोदय है, जो किसी को आता नहीं है। जब फलितार्थ को लेकर ही पांच अलग-अलग ग्रंथ हैं, तब ऐसी स्थिति में आप सिवा मिथ्या लाभ के और क्या करेंगे।
आज बाजार का युग है। यहां हर चीज को बाजार में बेचा जा रहा है। भगवान के दर्शन इंटरनेट पर हो रहे हैं और प्रसाद घर पहुंच रहा है। ऐसे समय में कुछ लोग भविष्यवाणियों के बाजार में भी सीढ़ियां चढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। पहले की भविष्यवाणियां ठीक होती थीं लेकिन आज की अधिकांश भविष्यवाणियों के पीछे उद्देश्य, बाजार का लाभ उठाना होता है। भविष्य के किसी वक्तव्य में कहीं-कहीं सत्य होता है लेकिन जिस चीज का बाजारीकरण होने लगता है, उसमें अतिशयोक्ति होने लगती है।
मनुष्य योनि चतुबरुद्धि का मुख्य स्नोत है। वह पहले भविष्यवाणियां करता था तो उसमें जरूरत निहित होती थी। बड़ी-बड़ी आपदाओं और घटनाओं की सूचना होती थी और वे सही भी साबित होती थीं। लेकिन जब मनुष्य ने ज्यादा दिमाग लगाना शुरू कर दिया तो दिक्कतें आने लगी और विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े किए जाने लगे। मेरे पिताजी भी ज्योतिष विद्या के बहुत बड़े जानकार थे। जब ऐसी-वैसी भविष्यवाणियां कहीं अखबार-पत्रिकाओं में छपती थीं तो वे हंस पड़ते थे। जब हम कारण पूछते थे तो वे बताते थे कि इन संबंधित भविष्यवाणियों में कोई सच्चाई नहीं है बल्कि खुद को प्रसिद्ध करने के लिए ही की गई हैं। उस भविष्यवाणी की सच्चाई तो बाद में सामने आती है, वह व्यक्ति तो तभी प्रसिद्ध हो जाता है। बाजार ऐसी चीजों को तवज्जो देता है और आज के समय में अच्छाइयों की मार्केटिंग आसान नहीं होती।
जिस माया शिलालेख पर 2012 का ज़िक्र है उस शिलालेख के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि माया लोगों ने 2012 में पृथ्वी के अंत की नहीं अपने कैलेंडर के हिसाब से एक युग के अंत की बात कही थी.
यह शिलालेख माया सभ्यता के लोगों ने 1300 साल पहले उकेरा था.
माया चिन्हों के जानकार स्वेन ग्रौनेमेयर के अनुसार, “यह दिन सृष्टि के दिन की झलक होगा.”
ग्रौनेमेयर के अनुसार इस दिन माया लोगों के भगवान की वापसी भी होगी.
उनका कहना है, “बोलोन योक्ते, जो कि माया लोगों के सृष्टि और युद्ध के देवता है, वो माया लोगों के हिसाब से 2012 में वापस लौटेगें.”
ग्रौनेमेयर कहते हैं कि 2012 में माया लोगो के कैलेण्डर का एक 400 साल का चक्र समाप्त हो रहा है.
मेक्सिको के नेशनल इंस्टीट्युट फ़ॉर एनथ्रोपोलॉजिकल हिस्ट्री ने भी इस बात का खंडन करने की कोशिश की है कि माया लोगों के अनुसार सृष्टि में प्रलय आने वाली है.
माया लोगों के लिखे हुए 15000 आलेखों में से केवल दो में साल 2012 का ज़िक्र है.
माया सभ्यता पर एक दूसरे विशेषज्ञ एरिक वेलास्क्वेज़ के अनुसार 2012 में प्रलय की बात महज़ बाज़ार की ताकतों का खिलवाड़ है.
अगर भविष्यवाणियों पर आपका विश्वास है, तो खुलकर जिंदगी जी लीजिए। दरअसल, 2012 दिसंबर को दुनिया के खात्मे की बात कही जा रही है। इस भविष्यवाणी के पक्ष में जो सबसे बड़ी दलील दी जा रही है, वो है माया कैलेण्डर का समाप्त होना। माया सभ्यता 300 से 900 ई़ के बीच मेक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर आदि इलाकों में फल फूल रही थी। माया सभ्यता के लोगों को गणित, ज्योतिष और लेखन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल थी। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि जब इस कैलेण्डर की तारीखें खत्म होती हैं, तो धरती पर प्रलय आता है और नए युग की शुरुआत होती है। और ये कैलेंडर 21 दिसंबर 2012 को खत्म हो रहा है। कुछ खगोलविदों और भौतिकशास्त्रियों ने भी वर्ष 2012 में पृथ्वी के साथ क्षुद्र ग्रह ‘एक्स’ की टक्कर होने की आशंका जाहिर की है। इस टक्कर के कारण भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट , सुनामी से व्यापक विनाश हो सकता है। यह विनाश इतना ज्यादा हो सकता है कि इसमें पूरी मानव प्रजाति भी समाप्त हो सकती है। हालांकि, नासा ने इस तरह की भविष्यवाणियों को बकवास बता दिया है।