इस वर्ष का अंतिम ग्रहण दस दिसंबर,…1 को —छह घंटे का पूर्ण चन्द्र ग्रहण—
मार्ग शीर्ष पूर्णिमा अर्थात 10 दिसंबर को शनिवार के दिन चंद्रग्रहण लगेगा. यह चंद्रग्रहण ज्योतिषीय मतानुसार वृषभ पर लग रहा है. वृषभ राशि पृथ्वी के अर्द्धोन्नत पृष्ठ तल पर पड़ती है. एक मोटी गणना के अनुसार पृथ्वी का लगभग 64 हजार किलोमीटर का क्षेत्रफल ग्रहण के दौरान चन्द्रमा के प्रकाश से महरूम रहेगा. ग्रहण के दौरान चन्द्रमा के ठीक पीछे गुरु एवं इससे लगभग 61 अंश क़ी दूरी पर ठीक आगे मंगल है. चन्द्रमा मृगशीर्ष नक्षत्र, सूर्य ज्येष्ठा, मंगल पूर्वाफाल्गुनी, वक्री बुध अनुराधा, वक्री गुरु अश्विनी, शुक्र पूर्वाषाढा, शनि चित्रा, राहू ज्येष्ठा एवं केतु रोहिणी नक्षत्र में रहेगा. विश्व के लिए इसका फल निम्न प्रकार प्राप्त होगा—
मध्य भारत, सम्पूर्ण यवन प्रदेश (मुस्लिम शाषित देश जैसे इरान, इराक, बहरीन, कुवैत, ओमान, जेद्दा, दोहा, अल्जीरिया, लीबिया, इजराईल आदि), अफ्रिका का मध्य भाग जैसे जाम्बिया, घाना, इथोपिया, सोमालिया तथा केमरून आदि प्रदेश, तथा उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी प्रांत, चीन के सूदूरवर्ती पूर्वी प्रदेश अज्ञात बीमारी, नरसंहार एवं उग्र प्राकृतिक विपदा से गुजरेगें.
पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान 10 दिसंबर को सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की लुका छिपी का रोमांचक नजारा भारत समेत दुनिया के अधिकांश भू-भागों में देखा जा सकेगा। छह घंटे की खगोलीय घटना के दौरान चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की ओट में छिप जायेगा। उज्जैन की जीवाजी वेधशाला के तकनीकी अधिकारी दीपक गुप्ता ने आज फोन पर भाषा को बताया कि पूर्ण चंद्रग्रहण की शुरूआत भारतीय समय के मुताबिक 10 दिसंबर को शाम पांच बजकर दो मिनट पर होगी और यह रात 11 बजकर दो मिनट पर खत्म हो जायेगा।
यह ग्रहण 10 दिसम्बर, 2011 दिन शनिवार को भारत में दिखाई देगा. ग्रहण की अवधि . घण्टे 33 मिनट तक रहेगी. शाम को 6 बजकर 15 मिनट से रात 9 बजकर 48 मिनट तक ग्रहण सारे भारत में दिखाई देगा. भारत में ग्रहण आरम्भ होने से पहले ही चन्द्र उदय हो जाएगा. भारत के सभी भागों में शाम 4:30 मिनट से 5:45 मिनट तक चन्द्र उदय हो जाएगा. इस ग्रहण का प्रारम्भ, मध्य तथा समाप्ति रुप भारत के सभी भागों में दिखाई देगा.
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण अफ्रीका, यूरोप, मध्य-पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरीका, ग्रीनलैण्ड, पूर्वी कनाडा, हिन्द, प्रशान्त और आर्कटिक महासागर में दिखाई देगा.
कोई दो सदी पुरानी वेधशाला के अधिकारी ने संस्थान की गणना के हवाले से बताया कि पूर्ण चंद्रग्रहण रात आठ बजकर दो मिनट पर अपने चरम स्तर पर पहुंचेगा, जब पृथ्वी की छाया से चंद्रमा पूरी तरह ढंक जायेगा। उन्होंने बताया कि पूर्ण चंद्रग्रहण का नजारा मध्य-पूर्व एशिया, अफ्रीका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका और ग्रीनलैंड में दिखायी देगा।
यह इस साल का आखिरी ग्रहण होगा। पूर्ण चंद्रग्रहण तब होता है, जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है। परिक्रमारत चंद्रमा इस स्थिति में पृथ्वी की ओट में पूरी तरह छिप जाता है और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ती है।यह मृगशिरा नक्षत्र व वृष राशि में होगा। ग्रहण शाम 6 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और रात 9 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगा। मृगशिरा नक्षत्र व वृष राशि वालों के लिए ग्रहण अनिष्टकारी रहेगा।चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा तिथि को होता है। सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने से पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है तो पृथ्वी के उस हिस्से में चन्द्र ग्रहण नजर आता है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नजर आता है। पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण तथा आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास चन्द्रग्रहण लगता है।पृथ्वी की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर पर भ्रमण करती है तथा पूर्णमासी को चन्द्रमा की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर होते हुए जिस पूर्णमासी को सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों के अंश, कला एवं विकला पृथ्वी के समान होते हैं अर्थात एक सीध में होते हैं, उसी पूर्णमासी को चन्द्र ग्रहण लगता है।
चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी का आना ही चन्द्र ग्रहण कहलाता है। चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी इस तरह से आ जाता है कि पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है और पृथ्वी सूर्य की किरणों के चांद तक पहुंचने में अवरोध लगा देती है। तो पृथ्वी के उस हिस्से में चन्द्र ग्रहण नज़र आता है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नज़र आता है।
01.—पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण ।
02.–आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास (उपच्छाया) चन्द्रग्रहण लगता है। ऐसा केवल पूर्णिमा के दिन संभव होता है, इसलिये चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही होता है।
इस खग्रास चन्द्र ग्रहण की अवधि – भारतीय समयानुसार —
ग्रहण आरम्भ – 18:15 घण्टे
खग्रास प्रारम्भ – 19:36 घण्टे
ग्रहण मध्य या परम ग्रास – 20:02 घण्टे
खग्रास समाप्त – 20:28 घण्टे
ग्रहण समाप्त – 21:48 घण्टे
चन्द्र मलिन आरम्भ – 17:02 बजे से
चन्द्र क्रान्ति निर्मल – 23:02 बजे से
ग्रहण का सूतक काल–10 दिसम्बर 2011 के दिन खग्रास चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा. इस ग्रहण का सूतक काल, इस दिन सुबह भारतीय समयानुसार 09:15 बजे से आरम्भ हो जाएगा.
ग्रहण काल तथा बाद में करने योग्य कार्य ——
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मन्त्र, सिद्धि, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना कल्याणकारी रहता है. धार्मिक लोगों को ग्रहण काल अथवा 10 दिसंबर के सूर्यास्त के बाद दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए. तथा अगले दिन 11 दिसंबर,2011 को प्रात: सूर्योदय के समय पुन: स्नान करके संकल्पपूर्वक योग्य ब्राह्माण को दान देना चाहिए.
ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्म सिन्धु के अनुसार, ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्मसिन्धु के अनुसार ग्रहण काल में स्पर्श के समय स्नान, ग्रहण काल में मध्य समय में होम तथा देवपूजन करना चाहिए. ग्रहण मोक्ष के समय में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. अन्न, वस्त्र, धन आदि का अपनी क्षमतानुसार दान करना चाहिए. ग्रहण जब पूर्ण रुप से समाप्त हो जाए तब फिर स्नान करना चाहिए. यह सभी क्रम से करना चाहिए.
सूतक व ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, तैल, श्रंगार आदि करना वर्जित होता है. झूठ-कपटादि, वृ्था- अलाप आदि से परहेज करना चाहिए. वृ्द्ध, रोगी, बालक व गर्भवती स्त्रियों को यथानुकुल भोजन या दवाई आदि लेने में दोष नहीं लगता है.भारतीय शास्त्रों में ग्रहण काल में कुछ कार्यों के बारे में बताया गया है जिन्हें ग्रहण समय में नहीं करना चाहिए. इस समय गर्भवती महिलाओं को चाकू का उपयोग नहीं करना चाहिए. सब्जी तथा फलों को नहीं काटे. पापड़ भी नहीं सेंकना चाहिए. उत्तेजित पदार्थों से दूर रहना चाहिए. इस दौरान संभोग नहीं करना चाहिए. माँस तथा मदिरा का परहेज करना चाहिए.
कुप्रभाव से ऐसे बचें —–
ग्रहण का सूतक तीन प्रहर यानी नौ घंटे पहले से शुरू होगा। सूतक और ग्रहण काल में भगवान की पूजा व मूर्ति स्पर्श नहीं करना चाहिए। ग्रहण के कुप्रभाव से बचने के लिए भगवान के नाम का स्मरण करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान व चंद्रमा से संबंधित सफेद वस्तुएं व अन्न दान करें।
चन्द्रग्रहण में बोलें चंद्र गायत्री मंत्र.. टेंशन से मिलेगा छुटकारा—-
प्रतियोगिता के इस दौर में मानसिक तनाव जीवन का हिस्सा है। तनाव से बिखरा और दु:खी मन इंसान की मनोदशा ही नहीं व्यवहार में भी बुरे बदलाव लाता है। जिससे जीवन में आंतरिक ही नहीं बाहरी कलह भी स्वयं के साथ करीबी लोगों के तनाव और कष्ट का कारण बन सकता है। ऐसी दशा से बाहर आने के लिए मानसिक संयम रख तनाव का कारण बनी समस्या, असफलता या अधूरी इच्छाओं पर सकारात्मक विचार जरूरी है।
वहीं इस समस्या के धार्मिक उपायों पर विचार करें तो शास्त्रों में चन्द्र मन का स्वामी माना गया है। यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्रों में तनाव, बेचैनी, मानसिक रोगों का कारण चन्द्र दोष माना जाता है। चन्द्र की अनुकूल स्थिति में इंसान मानसिक ऊर्जा से भरपूर, शांत और निरोगी जीवन पाता है।
वैसे तो चन्द्र दोष दूर करने के लिए सोमवार, अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है। किंतु चन्द्र दोष से पीडि़त के लिए चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्र उपासना बहुत ही जरूरी होती है। चन्द्रग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले अमृत के बंटवारे के दौरान पैदा हुई शत्रुता के कारण छायाग्रह राहु के द्वारा चन्द्र को ग्रसने से चन्द्रग्रहण होता है।
बहरहाल, धर्म हो य विज्ञान चन्द्र के मानव जीवन और प्रकृति पर चन्द्र के प्रभाव को स्वीकारते हैं। इसलिए अगर आप भी किसी मानसिक परेशानी या तनाव से गुजर रहें है तो मन को शांत और एकाग्र करने के लिए कल यहां बताई जा रही चन्द्र पूजा की सरल विधि के साथ चन्द्रग्रहण के दौरान इस चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करें –
– प्रात: स्नान कर नवग्रह मंदिर या देवालय में चन्द्रदेव की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
– स्नान के बाद चंद्र पूजा में विशेष तौर पर सफेद सामग्रियों को अर्पित करें। इनमें सफेद चंदन, सफेद सुंगधित फूल, अक्षत, सफेद वस्त्र, दूर्वा चढ़ाकर दही या दूध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
– पूजा के बाद इस चन्द्र गायत्री मंत्र का स्मरण करें, इसी चंद्र मंत्र का चंद्रग्रहण के दौरान भी जाप करें –
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।।
– पूजा व मंत्र जप के बाद घी व कर्पूर से आरती कर मानसिक सुख की कामना कर प्रसाद ग्रहण करें। रात्रि में चन्द्रग्रहण के दौरान मन ही मन चंद्र जप का यथाशक्ति जप मन को शांत, एकाग्र और स्थिर करने के साथ स्वास्थ्य और संतान सुख भी देने वाला माना गया है।
इस खग्रास चन्द्र ग्रहण (10 -12 -2011 _का विभिन्न राशियों पर प्रभाव—
इस खग्रास चन्द्र ग्रहण का प्रभाव विभिन्न राशियों पर भिन्न-भिन्न पडे़गा. यह ग्रहण वृष राशि में रोहिणी तथा मृगशिरा नक्षत्र में लगेगा. इसलिए इस ग्रहण का प्रभाव इन दोनों नक्षत्रों के जातकों तथा राशि पर पडे़गा. इन्हें इस दिन दान तथा जाप आदि अवश्य करने चाहिए. इन्हें चन्द्र, शुक्र तथा राहु का जाप तथा दान करना चाहिए. ग्रहण का प्रभाव ग्रहण लगने के 15 दिन तक देखा जा सकता है. सभी राशियों पर इस खग्रास चन्द्र ग्रहण का प्रभाव निम्न होगा :-
मेष राशि—
इन जातकों को धन हानि उठानी पड़ सकती है. घर में कलह-क्लेश का सामना करना पड़ सकता है. घर के सुख में अथवा माता के सुख में कमी रह सकती है.
वृष राशि —
यह ग्रहण वृष राशि में लगने के कारण इन जातकों को शारीरिक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है. स्वास्थ्य खराब अथवा चोट आदि भी लग सकती है.
मिथुन राशि —
इस राशि के जातकों को धन हानि हो सकती है. लाभ में कमी बनी रह सकती है. अकारण खर्चों में बढोतरी हो सकती है. आमदनी कम तो व्यय अधिक होगा.
कर्क राशि —
कर्क राशि के जातकों को निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह ग्रहण उनके लिए धन लाभ देने वाला है. उन्हें आकस्मिक लाभ हो सकता है.
सिंह राशि—-
सिंह राशि के जातकों को गुप्त चिन्ता बनी रह सकती है. इन्हें अपनी चिन्ताओं को किसी के साथ अवश्य बाँटना चाहिए.
कन्या राशि—-
कन्या राशि के जातकों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि उन्हें अपमान का सामना करना पड़ सकता है. इन्हें शत्रु भय भी सता सकता है.
तुला राशि—
इन जातकों को सुख की प्राप्ति होगी. गुप्त रुप से लाभ में वृद्धि होगी. राह की बाधाएँ दूर होगीं.
वृश्चिक राशि —-
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण कुछ कष्टकारी हो सकता है. इस ग्रहण का प्रभाव इनके दाम्पत्य जीवन पर पडे़गा. घर में कलह अथवा जीवनसाथी का स्वास्थ्य चिन्ता का विषय बन सकता है.
धनु राशि—-
इस राशि के जातकों को शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ सकता है. इससे मन भी दुखी रहेगा.
मकर राशि —–
मकर राशि के जातकों को संतान से कष्ट अथवा संतान को कष्ट हो सकता है. इन्हें सभी क्षेत्रों में सावधान रहना चाहिए, क्योंकि इन्हें मानहानि का सामना करना पड़ सकता है.
कुम्भ राशि—-
इन जातकों के सभी मनोरथ पूर्ण होने की संभावना बनती है. मनोवांछित कार्य सिद्ध होगें.
मीन राशि —-
मीन राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण शुभफलदायी रहेगा. इन्हें धन लाभ होगा. छोटे भाई-बहनों की ओर से सुख की प्राप्ति हो सकती है.
व्यक्तिगत रूप में जिनका जन्म रोहिणी एवं मृगशिरा नक्षत्र में हुआ है तथा कुंडली में विंशोत्तरी महादशा किसी प्रबल षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश क़ी चल रही हो तो कृपया मानसिक रूप से भयंकर हानि एवं कष्ट का सामना करने के लिए तैयार रहे. किन्तु यदि शुभ लग्नेश, पंचमेश, नवमेश या द्वादशेश क़ी महादशा चल रही हो तो थोड़ी बहुत परेशानी ही होगी. उत्तरा फाल्गुनी एवं हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वालो को पारिवारिक क्लेश का सामना करना पडेगा. चित्रा एवं स्वाती नक्षत्र वालो को अपमान एवं पदावानती झेलनी पड़ेगी. ज्येष्ठा नक्षत्र जातको को पति/पत्नी तथा बच्चो से घृणा या अपमान मिलेगा. शेष नक्षत्र में जन्म लेने वाले सामान्य रूप से ही रहेगें. पुष्य एवं अश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वालो को शुभ सन्देश एवं सफलता के अलावा धन लाभ का भी बहुत बड़ा अवसर मिलेगा. उत्तरभाद्रपद, रेवती, पूर्वाफाल्गुनी एवं मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले सुख एवं उन्नति प्राप्त करेगें. कुंडली में जिसकी बुध एवं चन्द्रमा क़ी दशान्तार्दाशा चल रही होगी उन्हें भी विशेष सावधानी क़ी ज़रुरत है.
ऊपर जिनके लिए ग्रहण का फल अशुभ बताया गया है उन्हें चाहिए कि ग्रहण के दौरान समूल कुश, मंजरी समेत तुलसी के पत्ते, लाल चन्दन क़ी एक छोटी लकड़ी, हाथी के पूंछ का एक या दो बाल, अरोघ्नी, देवरस एवं निवारू साथ में रखे. इसे शास्त्रों में “सप्तार्क” कहा गया है. जब तक जगे है तब तक तो इन सब को पाकिट में ग्रहण के दौरान रखें. जब ग्रहण समाप्त हो जाय तो इन सब को स्वच्छ शुद्ध जल में ड़ाल कर स्नान कर लें. अगले दिन सूरज निकलने पर फिर इन सब को कही ज़मीन में दबा दें या कही बहते जल में ड़ाल दें. इससे ग्रहण का कुप्रभाव दूर होता है.