वास्तु शास्त्र अपनाएं समृद्धि पाएँ..!!!!


मानव की जीवन शैली में गृह को एक प्रधान शक्ति के रूप आयोजित कर उसका वास्तु नामकरण किया। भवन में जल, वायु आकाश, अग्नि एवं भूमि इन पांच तत्वों को अपनी-अपनी जगह निर्धारित कर मानव की सुख शांति की कामना की। संपूर्ण विष्व का आधार स्रोत  ऊर्जा है। यह ऊर्जा उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव पर स्थिर रहकर चुंबकीय लहरों के रूप में उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर सतत प्रभावित होती रहती है। इसी वजह से वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दक्षिण का भाग ऊंचा तथा उत्तर पूर्व दिशा वाला भाग नीचा होना चाहिए ताकि चुंबकीय लहरों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न नहीं हो। भूखंड खरीदने के पूर्व वास्तु नियमों के अनुसार भूमि की परीक्षा एवं भूखंड की आकृति एवं कोणों की जांच किसी अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ से करानी चाहिए। भवन निर्माण चाहे औद्योगिक हो या आवासीय, भूमि चयन में सावधानी आवश्यक है। भूखंड के सामने किसी भी तरीके का अवरोध नहीं होना चाहिए। वर्गाकार प्लाॅट परिवार के लिए समृद्धिकारक होता है। आयताकार प्लाॅट लेते समय ध्यान रखें कि भूखंड की लंबाई उसकी चैड़ाई से दुगुनी से अधिक नहीं हो। आयताकार भूखंड सर्वमंगलकारी होता है। धन एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति करवाता है। विदिशा भूखंड, त्रिभुजाकार, गोल एवं चार से अधिक कोणों वाला भूखंड अनिश्टकारक, समस्या, तनाव, मुकदमा आदि की तकलीफं देने वाला होता है। गोमुखी अत्यंत शुभ माना गया है आगे की ओर कम, पीछे की चैड़ाई अधिक हो तो गोमुखी कहलाता है। शेरमुखी भूखंड अशुभ माना गया है। आगे से चैड़ाई ज्यादा, पीछे से कम हो उसे शेरमुखी भूखंड कहते हैं। 
वास्तु शास्त्र का ज्ञान चार दिशाओं और चार कोणों पर आधारित है। दिशा ज्ञान बिना वास्तु शास्त्र के लगभग शून्य है। दिशा ज्ञान वास्ते दिशा-सूचक सर्वमुलभ उत्तम यंत्र है। इस यंत्र का प्रयोग कर भवन या भूखंड के बीचों-बीच रखने से दिशा ज्ञान हो जाता है। वास्तु शास्त्र में आठों दिशाओं का विकास महत्व है। भवन निर्माण में सर्वप्रथम दिशाओं और कोणों का ज्ञान आवश्यक है। शास्त्र में जो दिशाएं सुनिष्चित की गई हैं, उसके क्रम के अनुसार प्रत्येक सद्गृहस्थ को आवासीय भवन, बहुमंजिली इमारतें, औद्योगिक संस्थान, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, कार्यालय कारखाना, दुकान, दवाखाना, सार्वजनिक स्थान के कक्षों का निर्माण करवाना चाहिए। भवन निर्माण में नींव खुदाई आरंभ करने से लेकर भवन पर छत पड़ने तक भूखंड के चारों दिशाओं के कोण 9. डिग्री के कोण पर रहे तभी भवन निर्माण कर्ता को वास्तु शास्त्र के सर्वोत्तम शुभदायक परिणाम प्राप्त होंगे। भवन निर्माण में जहां दिशा का महत्व है, कोणों का महत्व उसमें कहीं अधिक होता है, क्योंकि कोण दो दिशाओं के मिलन से बनता है। हानि-लाभ, परिणाम भी दोहरा ही प्राप्त होता है। सभी जानते हैं दिशाएं चार होती हैं-पूर्व, पश्चिम, उत्तर-दक्षिण। जहां दो दिशाएं मिलती हैं वह कोण कहलाता है। 
ईशान कोणः पूर्वी दिशा के उत्तर की तरफ वाले भाग को पूर्वी ईषान तथा उत्तरी दिशा में पूर्वी दिशा की तरफ वाले भाग को उत्तरी ईशान कहते हैं। आग्नेय कोणः पूर्वी दिशा में दक्षिण की तरफ वाले भाग को पूर्वी आग्नेय तथा दक्षिण दिशा में पूर्वी दिशा वाले भाग को दक्षिण आग्नेय कहते हैं। नेऋत्य कोणः दक्षिण दिशा में पश्चिम की तरफ वाले भाग को दक्षिण नेऋत्य तथा पश्चिम में दक्षिण दिशा के उत्तर की तरफ वाले भाग को पश्चिम नेऋत्य कहते हैं। वायव्य कोणः पश्चिम दिशा में उत्तर दिशा के अंत में स्थित भाग को पश्चिम वायव्य तथा उत्तर और पश्चिम वाले भाग को उत्तर वायव्य कहते हैं। 
जन्मकुंडली के ग्रहों की प्रकृति व स्वभाव अनुसार सृजन प्रक्रिया बिना लाग लपेट के प्रभावी होती हैं और ऐसे में अगर कोई जातक जागरूकता को अपनाकर किसी विद्वान जातक से परामर्श कर अपना वास्तु ठीक कर लेता हैं तो वह समृद्धि प्राप्त करने लगता हैं। 
संक्षेप में कहाँ क्या चाहिए –
.. घर में बुजुर्ग या कर्ताधर्ता का शयन कमरा मकान के दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम व सिर सोते समय दक्षिण में चाहिए। 
.. सबसे बड़े लड़के का कमरा भी दक्षिण पश्चिम या पश्चिम उत्तर में होना चाहिए। 
.. विवाह योग्य लड़की का कमरा पश्चिम उत्तर या उत्तर पूर्व में होना चाहिए। अगर दक्षिण या दक्षिण पश्चिम में सायेगी तो शादी ना                  हो पाएगी या शादी करके मायके में ही रहेगी। ससुराल नहीं जाकर मायके की मालिक बनेगी। 
4. मेहमानों का कमरा , पूजा का कमरा व नौकरों का कमरा , खाली स्थान भी उत्तर पूर्व में चाहिए। दक्षिण पूर्व में सोने वाला गेस्ट व दक्षिण पूर्व का भाग किराए से देने पर वह कभी खाली नहीं होगा। मेहमान किसी न किसी कारण देर तक रहेगा। 
5. दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाफ्ट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में ड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें। 

6. मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढि़या हैं। दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें , पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।

 पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0– .
E-Mail –    dayanandashastri@yahoo.com,      
                  -vastushastri08@rediffmail.co

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