ऐसा होना चाहिए वास्तुशास्त्र सम्मत –.प्रबंधक/ मेनेजर/व्यवस्थापक का कमरा
विद्यार्थी को विद्या का अर्जन करना परम आवश्यक हैं। योगी पुरूष के जीवन में योग परम आवश्यक है। सन्यासी के लिए वैराग्य भाव का विकास एवं आध्यात्मिक जागृति परम आवश्यक हैं, परंतु गृहस्थ के लिए जीविकोपार्जन और कार्यक्षेत्र में उन्नति परम आवश्यक है। विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति के लिए प्रयासरत व्यक्ति को प्रकृति के द्वारा प्रदत्त अनेक प्रकार की अनुपम ऊर्जा की संतुजित मात्रा में प्रति आवश्यक है।
जिस प्रकार किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विशिष्ट प्रयास जरूरी है, उसी प्रकार विषिश्ट क्षेत्र में कार्यरत व्यक्ति को विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा आवश्यक है। किसी भी भवन का जब निर्माण किया जाए तब उसमें वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का भलीभांति पालन करना चाहिए चाहे वह निवास स्थान हो या व्यवसायिक परिसर ।
वास्तुशास्त्र के नियम भी इसी को आधार मानकर बनाए गए है। इसमें कहा गया है कि प्राकृतिक ऊर्जा से सामंजस्य स्थापित कर अलग-अलग कार्यक्षेत्र के व्यक्ति अपने से संबंधित क्षेत्र में सफलता अर्जित कर सकते हैं। वास्तु शास्त्र में एक घर में निवास करने वाले अलग-अलग व्यक्तिओं के वास हेतु अलग-अलग दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसी प्रकार एक ही कार्यालय में कार्यरत मालिक, प्रबंधक, विपणन कर्मचारी, लेखा कर्मचारी, स्वागत अधिकारी आदि को अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इन सभी के बैठने के स्थान यदि उपयुक्त दिशा में न हों, तो कार्यालय में वास्तु संबंधी दोश उत्पन्न हो जाते हैं। इसके कारण उनकी कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है और उनकी सफलता संदिग्ध हो जाती है। ऐसे में वास्तु से संबंधित नियमों का पालन कर बिना अतिरिक्त प्रयास के सफलता अर्जित की जा सकता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार कार्यालय में प्रबंधक का कक्ष दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम दिशा में होना श्रेयस्कर रहता हैं। इसके साथ ही कार्यालय के अंदर की व्यवस्था भी वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरूप हो रखनी चाहिए। चूंकि प्रबंधक किसी भी कार्यालय से आधार स्तंभ होता है और नीतियों के क्रियान्वयन से लेकर सहयोगी कर्मचारियों से सामंजस्य स्थापित करने तक का काम उसी के ऊपर रहता है, इसलिए उसके कक्ष में वास्तु के नियमों का पालन बेहद जरूरी माना जाता है। यदि ऐसा नहीं होता है, तो सफलता संदग्धि हो जाती है। कई बार देखा गया है कि यदि उपरोक्त दिशा की बजाय प्रबंधक का कक्ष उत्तर-पश्चिम में हो, तो कार्यालय संबंधी व्यवस्था में तब तक अवरोध उत्पन्न होते रहेंगे, जब तक उसे दूर न कर लिया जाए। इस दशा में कार्यालय के ऐसे कर्मचारियों को भी जिन्हें वहां उपस्थित रहना होता है, जैसे-लेखा संबंधी कार्य करने वाले कर्मचारी आदि, तो उनका कार्यालय से मन उचटने लगता है तथा व्यवस्था में भी दोष पैदा होने लगता है।
जिस प्रकार घर कार निर्माण करते वक्त वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन कर सुख-शांति और धन-संपदा में वृद्धि की जा सकती है, उसी प्रकार कार्यालय के निर्माण में भी उन नियमों का पालन कर लाभ पाया जा सकता है। सच पूछें तो व्यक्ति का आधा समय यदि घर पर बीतता है, तो आधा समय कार्यालय में। कहा जाता है कि एक घर में निवास करने वाले व्यक्तियों पर वास्तु संबंधी सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव एक ही परिवार पर पड़ता है, जबकि एक कार्यालय में यदि पचास व्यक्ति कार्यरत हैं, तो कार्यालय के वास्तुदोष का सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव सभी पचास परिवारों पर पड़ेगा। अतः कार्यालय में वास्तु संबंधी दोषों का निवारण अवश्य किया जाना चाहिए ताकि वांछित लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।
इन साधारण किंतु चमत्कारिक वास्तु सिद्धांतों के आधार पर यदि प्रबंधक का कक्ष का निर्माण किया जाऐ तो उत्तरोतर प्रगति संभव है।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
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